Tuesday 16 April 2024

भाजपा हराओ छोड़ें मुसलमान

मुसलमान भाजपा हराओ अभियान से करते हैं अपना ही नुकसान ?
0 आम चुनाव शुरू हो चुका है। सब वोटर अपनी पसंद की पाटीर्, प्रत्याशी या जाति व धर्म के आधार पर वोट देते हैं। संविधान ने उनको यह अधिकार दिया है। लेकिन मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी चिंता भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिये किसी भी सेकुलर दल को वोट देने की होती है। वह इस एक सूत्रीय अभियान को छिपाता भी नहीं है। यही वजह है कि उसके वोट से जीतने वाला चुनाव के बाद उसकी खास चिंता भी नहीं करता है। लेकिन मुसलमान को यह नहीं पता कि उसके भाजपा हराओ नारे से हिंदू समाज में रिएक्शन से ध्रुवीकरण होने से देश की मुस्लिम बहुल 100 से अधिक सीटों पर भाजपा मजबूत होती रही है! यही वजह है कि आज भाजपा केंद्र व देश के आधे राज्यों में राज कर रही है।
     -इकबाल हिंदुस्तानी   
ऐसा माना जाता है कि भाजपा और मुसलमान दोनों एक दूसरे का विरोध लंबे समय से करते रहे हैं। लेकिन सच यह है कि मुसलमान ऐसा करके भाजपा को आज सरकार बनाने से नहीं रोक पा रहे हैं। दूसरी तरफ मुसलमानों का वोट ना मिलने से भाजपा को लोकसभा और राज्यों के चुनाव में मुसलमानों को अपना प्रत्याशी ना बनाने का मौका मिल गया है। इस बार भी भाजपा ने पूरे देश में केरल की एक सीट से एक मात्र मुसलमान अब्दुल सलाम को अपना प्रत्याशी बनाया है। भाजपा सरकारों पर मुसलमानों के साथ पक्षपात उनका उत्पीड़न और अन्याय करने का आरोप भी विपक्ष लगाता रहता है। लेकिन खुद सेकुलर दल भी मुसलमानों के मुद्दों पर उनके पक्ष में बोलने से हिंदू वोट ना मिलने की आशंका से डरे रहते हैं। हमारा मानना है कि मुसलमानों को अगर भाजपा पसंद नहीं है तो उनको देश के आधे से अधिक हिंदुओं की तरह अपनी पसंद की पार्टी को वोट देने का हक है लेकिन यह सच उनको समझना होगा जब वे केवल भाजपा हराओ अभियान के तहत कांग्रेस सपा बसपा क्षेत्रीय दल या निर्दलीय उम्मीदवार तक को वोट देने को तैयार हो जाते हैं तो इससे ना केवल उनके अपने अकेले जिताने लायक वोट बैंक का बंटवारा हो जाता है बल्कि प्रतिक्रिया में हिंदू समाज के बहुमत को गोलबंद कर भाजपा की जीत का रास्ता भी खुल जाता है। 
इसके बाद सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार का मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार चुनाव के दौरान उनके विरोध से कुछ गैर मुस्लिमों को न्यायसंगत लगने लगता है। जबकि भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति के लिये यह काम हर हाल में करना ही था। यहां मुसलमानों को यह बात समझनी चाहिये कि अगर वे किसी दल को सकारात्मक वोट देने की नई परंपरा अपनाते हैं तो उनका वोट इधर उधर खराब ना होकर एक ही पार्टी को जाने से वह दल मज़बूत होगा और वह यह भी मानेगा कि मुसलमानों ने उसको वोट देकर उस पर ज़िम्मेदारी डाल दी है कि सत्ता में आने पर उनका भी बराबर काम करे या विपक्ष में रहने पर उनके जायज़ मुद्दों के लिये भी आंदोलन संघर्ष या विरोघ प्रदर्शन करने को तैयार रहे। लेकिन जब मुसलमान किसी सीट पर किसी को और किसी सीट पर किसी को केवल इस वजह से वोट देते हैं कि ऐसा करने से भाजपा हार जायेगी तो इससे ऐसा कोई सही सही पैमाना नहीं बन पाता कि जिससे यह पता लग सके कि वास्तव में मुसलमानों ने उस भाजपा विरोधी केंडीडेट को ही वोट दिया है जो जीता है। इससे भाजपा तो ज़रूर उनसे ख़फा होगी लेकिन जीतने वाला उनका एहसान ज़रा भी नहीं मानेगा। 
खासतौर पर यूपी में मुस्लिम मतों का बंटवारा सपा कांग्रेस गठबंधन व बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार या कहीं मज़बूत व बहुमत वाली हिंदू जाति के निर्दलीय उम्मीदवार तक में साफ दिखाई दे रहा है। इसकी वजह यह है कि मैरिट पर मुस्लिम की पहली पसंद आज भी सपा बनी हुयी है लेकिन उसके पास ऐसा कोई नपा तुला सही सही पैमाना नहीं है कि कौन सी सीट पर भाजपा को हराने के लिये वह किस उम्मीदवार के साथ गारंटी से जीत की उम्मीद कर सकता है? इसके लिये उसे हारने का जोखिम उठाकर भी अपना दल या प्रत्याशी पहले से तय करने की ज़रूरत है। इसमें वह यह ज़रूर तय कर सकता है कि उम्मीदवार इतना कमज़ोर ना हो कि वह मुख्य मुकाबले से पहले ही बाहर दिखाई दे रहा हो। ऐसे में वह किसी दूसरे विकल्प पर विचार कर सकता है। पूरे देश में ऐसी 102 लोकसभा सीट हैं जिनपर मुस्लिमों की तादाद हार जीत के नतीजे तय करने की हालत में है। इनमें से कश्मीर की अनंतनाग बारामूला और श्रीनगर 3 असम की ढुबरी करीमगंज बरपेटा और नावगांग 4 बिहार की किशनगंज 1 छत्तीसगढ़ की रायपुर 1 केरल की मलापपुरम व पोन्नानी 2 लक्षदीप की 1 और पश्चिम बंगाल की जंगीपुर बहरामपुर मुर्शिदाबाद 3 संसदीय सीट सहित कुल 15 सीटें ऐसी भी हैं जिनमें मुसलमानों की मतसंख्या आधे से ज्यादा है। 
इसके साथ ही सबसे अधिक मुस्लिम मतों वाले संसदीय क्षेत्र का राज्य यूपी है जिसमें रामपुर मंे 49 प्रतिशत, मुरादाबाद में 46 बिजनौर में 42 अमरोहा सहारनपुर में 39 मुजफ्फरनगर में 38 बलरामपुर में 37 बहराइच में 35 बरेली में 34 मेरठ में 33 श्रीवस्ती में 26 बागपत में 25 गाजियाबाद पीलीभीत व संतकबीरनगर में 24 बाराबंकी में 22 बदायूं बुलंदशहर और लखनउू में 21 फीसदी मुस्लिम वोट हैं। लंबे समय तक यह होता रहा है कि मुसलमान भाजपा को हराने के लिये तमाम शिकायतों और कमियों के बावजूद कांग्रेस के साथ अन्य कोई विकल्प ना होने से एकतरफा जाता रहा लेकिन जैसे जैसे उसे क्षेत्रीय दल विकल्प के तौर पर उपलब्ध हुए वह उनके साथ हो लिया। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि लोकसभा की जिन 38 सीटों पर मुसलमान वोट 30 से 50 फीसदी हैं उन पर ही हिंदू वोटों का जवाबी ध्रुवीकरण होने से भाजपा और उसके सहयोगी दल ज्यादा मजबूत माने जाते हैं और जिन 49 सीटों पर मुस्लिम मतों की संख्या 20 से 30 फीसदी है वहां वे किसी एक हिंदू जाति के केंडीडेट के साथ जाकर सीट निकालने में सफल हो जाते हैं। इसके विपरीत जिन 15 सीटों पर वे बहुमत में हैं उनमें भी बहुसंख्यक हिंदुओं की तरह बंटवारा होने से कई बार वे वहां के अल्पसंख्यक उम्मीदवार से मात खा जाते हैं। इसका बेहतर समाधान यह है कि मुसलमान चाहे भाजपा को वोट करें या ना करें या कम करें कुछ मुसलमान भाजपा को वोट करते भी हैं ऐसा विगत चुनाव के आंकड़े बताते हैं लकिन इसमें उनका विरोध या बाॅयकाट करने की ज़रूरत इसलिये भी नहीं है क्योंकि आज भी देश के आधेे से अधिक हिंदू भाजपा को वोट नहीं देते लेकिन उनके साथ कोई सौतेला व्यवहार नहीं हो रहा है।
0 मैं आज ज़द पे अगर हूं तो खुशगुमान न हो,
 चिराग़ सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं ।।
 *नोट- लेखक नवभार टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के एडिटर हैं।*

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