Thursday 13 February 2020

दिल्ली की जीत


दिल्ली: सबका साथ सबका विकास की जीत!

0देश की 137 करोड़ आबादी के सामने दिल्ली2 करोड़ की आबादी के साथ बहुत छोटा राज्य है। वह पूर्ण राज्य भी नहीं है। लेकिन राजधानी होने की वजह से वह पूरी दुनिया में चर्चा में था। साथ ही एक दशक से कम की आम आदमी पार्टी की भारी भरकम भाजपा से सीधी टक्कर की वजह से सबकी निगाहें उसके चुनाव नतीजों पर लगी थीं। राष्ट्रवाद हिंदुत्व और बहुसंख्यकवाद की बजाये दिल्ली की जनता ने जनहित के काम पर जीत दिलाकर पूरे भारत को विकास का एक नया मॉडल दिया है। 

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

 दिल्ली की कुल 70 सीटों में से 62 सीटें जीतकर आप ने जीत की हैट्रिक लगा दी है। इस जीत का श्रेय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सबका साथ सबका विकास और सुलझी हुयी समझ व लगन को देना होगा। हालांकि सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास का नारा भाजपा का रहा है। लेकिन अपने काम नीति और नीयत से आप ने इस नारे को अमल में उतारकर भाजपा के सामने एक नई चुनौती की बड़ी लकीर खींच दी है।

सबने देखा कि केंद्र और एक दर्जन से अधिक राज्यों में राज कर रही भाजपा ने अपने 70केंदीय मंत्री 200 सांसद और 11 मुख्यमंत्री दिल्ली चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर चुनाव मैदान में हर कीमत पर जीत को उतारे थे। इतना ही नहीं अपनी परंपरा से हटकर वहां सीएम का कोई चेहरा सामने ना रखकर भाजपा ने पीएम मोदी के नाम पर केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ा। साथ ही गृहमंत्री अमित शाह ने सब काम छोड़कर दिल्ली चुनाव की कमान संभाल रखी थी। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा और दिल्ली प्रभारी मनोज तिवारी ने भी ज़मीन आसमान एक कर दिया।

भाजपा ने चुनाव जीतने के लिये सीएए के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहे शांतिपूर्ण धरने को बड़ा मुद्दा बनाने के साथ ही जामिया और एएमयू पर निशाने साधकर चुनाव का धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने की नाकाम कोशिश भी की। उसके एक केंद्रीय मंत्रीसांसद व विधायक ने खुलकर एक वर्ग विशेष के खिलाफ ज़हर उगला। यहां तक कि उसने कश्मीर में धारा 370 हटाने राम मंदिर का निर्माण कराने और तीन तलाक पर पाबंदी लगाने जैसे राष्ट्रीय व भावनात्मक मुद्दे उठाकर चुनाव को हिंदू मुस्लिम का रंग देना चाहा। लेकिन केजरीवाल उनके जाल में नहीं फंसे।

आप ने सस्ती बिजली पानी शानदार सरकारी स्कूल और अपने विश्व विख्यात मुहल्ला क्लीनिक व अन्य सरकारी सेवाआंे का एजेंडा ही जनता के सामने रखा। आपके पक्ष में उसकी सरकार का करप्शन पर कड़ा रूख भी काम आया । केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर की सलाह पर अमल करते हुए कंेद्र सरकार पीएम मोदी दिल्ली के उपराज्यपाल और भाजपा पर सीध्ेा हमलों से परहेज़ करते हुए सारा फोकस अपने जनहित के विकास कार्यों पर ही किया। हालांकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिये वे पहले काफी संघर्ष करते रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंन इसे बड़ा मुद्दा नहीं बनाया।

दिल्ली में उनके अधिकार क्षेत्र में पुलिस भूमि और अन्य प्रशासनिक सेवायें भी नहीं आती हैं। इसके लिये वे सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगा चुके हैं। लेकिन वहां से भी उनको कोई विशेष राहत नहीं मिली है। आम आदमी पार्टी को घेरने के लिये भाजपा के पास कोई बड़ा आरोप या घोेटाला भी नहीं था। उसको मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू विरोध के मुद्दे पर घसीटने के लिये भाजपा नेताओं ने शाहीन बाग़ को निशाना बनाया। लेकिन केजरीवाल ने बड़ी होशियारी से यह कहकर अपना पीछा छुड़ा लिया कि पुलिस होम मिनिस्टर अमित शाह के अधीन है।

वे जब चाहें शाहीन बाग खाली करा सकते हैं। यहां तक कि एक सोची समझी रण्नीति के तहत तमाम उकसाने बावजूद केजरीवाल शाहीन बाग सीएए के खिलाफ समर्थन देने तक नहीं गये। उनका कहना था कि उनकी पार्टी लोकसभा में सीएए के खिलाफ वोट कर चुकी है। अगर कोई लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज करने को शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहा है तो वे उसमेें दखल नहीं देंगें। पत्रकारों के सवालों में फंसकर आप के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने शाहीन बाग के आंदोलन के पक्ष में नैतिक समर्थन का एक बयान दे दिया तो वे चुनाव कांटे की टक्कर में हारते हारते बचे।

केजरीवाल ने खुद को आतंकी तक बताये जाने पर संयम का परिचय देते हुए मोदी की तरह भावनात्मक कार्ड खेला। उन्होंने जनता से मासूम सवाल किया कि क्या उनकी भलाई के लिये काम करने वाला उनका बेटा और भाई केजरीवाल आतंकी हैइसका उनको चुनाव में सहानुभूति के रूप में लाभ भी मिला। इस सबका ही नतीजा था कि उनको एकतरफा मुस्लिम वोट का भी समर्थन मिला और वे चुनाव जीत गये।

सोचने की बात यह है कि जो कांग्रेस पिछले चुनाव में 9.7 प्रतिशत वोट लेकर भी अपना खाता नहीं खोल सकी थी। वह और अधिक घटकर 4.26 प्रतिशत पर खिसक गयी। उधर भाजपा का वोट 32.2 प्रतिशत से बढ़कर38.51 प्रतिशत अवश्य हो गया लेकिन उसकी सीट 3 से 8 ही हो सकीं हैं। आप ने हालांकि अपना वोट 54.3 प्रतिशत से थोड़ा सा गंवाकर53.58 तक सुरक्षित रखा है। लेकिन उसने अपनी 5 सीट भाजपा के हाथों गंवा दी हैं। अन्य दल का वोट प्रतिशत पहले की तरह 3.7प्रतिशत की तरह लगभग 3.65 प्रतिशत स्थिर बना रहा है।

पांच सीट और 6 प्रतिशत वोट बढ़ने से भाजपा खुद को दिलासा दे सकती है कि उसने आप और कांग्रेस के मुकाबले कुछ तो बढ़कर हासिल किया है। लेकिन उसने इसके लिये जिन तौर तरीकों का इस्तेमाल किया वे आगे देश स्वीकार करता नज़र नहीं आ रहा है। न तो भाजपा को सबका साथ मिला और ना ही उसने अपनी सरकार वाले राज्यों में विकास का कोई ऐसा मॉडल पेश किया जिससे सबका विश्वास उस पर कायम हो पाता। हिंदुत्व राष्ट्रवादी भावनाओं और मोदी ब्रांड की अपनी सीमायें हैं। यह दिल्ली के चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया है। साथ ही कांग्रेस का जहां भी गैर भाजपा विकल्प उपलब्ध होगा वहां कांग्रेस की अब वापसी नहीं होगी। यह भी इन चुनावों ने साफ संकेत दे दिये हैं। क्या भाजपा और कांग्रेस इन चुनाव नतीजों से कोई सबक लेंगेअब यही असली सवाल है।                        

0 उसके होंठों की तरफ़ ना देख वो क्या कहता है,

  उसके क़दमों की तरफ़ देख वो किधर जाता है ।।         

Sunday 2 February 2020

शाहीन बाग़

शाहीन बाग़ः संवाद से ही निकलेगा विवाद का हल!

0केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि सरकार शाहीन बाग़ के आंदोलनकारियों से बात करने को तैयार है। साथ ही उन्होंने यह शर्त भी लगाई है कि आंदोनकारियों को बातचीत के लिये बिना शर्त उनके पास आना होगा। शाहीन बाग़ खाली हो भी जाये तो सत्यग्रह दूसरी जगह शुरू हो जायेगा। उधर शाहीन बाग़ की तर्ज पर पूरे देश में जगह जगह सीएए और एनपीआर के खिलाफ पहले ही सत्यग्रह बढ़ते जा रहे हैं। शाहीन बाग़ को दिल्ली में बड़ा चुनावी मुद्दा भी बनाया जा रहा है। साथ ही वहां कई बार गोलीबारी करके उनको हटाने भगाने को डराया भी जा रहा है। 

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

 ‘‘ईवीएम का बटन इतने ज़ोर से दबाओ कि करंट शाहीन बाग़ को लगे’’

‘‘8 फ़रवरी को दिल्ली की सड़कों पर भारत पाकिस्तान का मुक़ाबला होगा’’

‘‘शाहीन बाग़ के लोग आपके घरों में घुसेंगे,और आपकी मां बहनों से बलात्कार करेंगे’’

‘‘देश के ग़द्दारों कोगोली मारो सालों को’’

   ये वो बयान हैं। जो दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीतने के लिये भाजपा के बड़े बड़े मंत्री से लेकर सांसद और विधायक आयेदिन बेशर्मी से जारी कर रहे हैं। लेकिन उनकी मजबूरी को समझा जा सकता है कि उनके पास विकास उपलब्धि और सकारात्मक कुछ भी नहीं है। सवाल यह है कि शाहीन बाग़ में अगर कुछ लोग शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक तरीके से सीएए और एनपीआर के खिलाफ डेढ़ महीने से सत्यग्रह कर रहे हैं तो इसमें क्या बुराई हैक्या सरकार से असहमत होना देश से असहमत होना है?

   क्या भाजपा अपने चुनावी घोषणा पत्र में अगर कोई संविधान विरोधी बात शामिल कर लेती है तो उसे सत्ता में आने पर उसको लागू करने का असीमित अधिकार मिल जाता है?भाजपा को लोकसभा में 303 सीट मिली थीं। उसको देश की 134 करोड़ आबादी में से मात्र22 करोड़ वोट मिले थे। अगर मान लें उसको संसद की सभी सीटें भी मिल जाती तो क्या वह कोई भी कानून बनाने को स्वतंत्र हो जाती है?जवाब है नहीं। वजह हमारा देश एक लोकतांत्रिक गणतंत्रवादी धर्मनिर्पेक्ष देश है। कोई भी दल सरकार और राष्ट्रपति तक संविधान की सीमा से बाहर जाकर कोई कानून नहीं बना सकते।

    संविधान में संशोधन हुए हैं। आगे भी हो सकते हैं। लेकिन उसके बुनियादी ढांचे में कोई परिवर्तन कोई भी सरकार कितने भी प्रचंड बहुमत से जीतकर आने पर भी नहीं कर सकती। मोदी सरकार ने पिछले दिनों सिटीज़न एक्ट में जो संशोधन किया है। वह हमारे संविधान के सेकुलर ढांचे और समानता की मूल भावना के खिलाफ माना जा रहा है। यही वजह है कि ना केवल विपक्ष बल्कि भाजपा के सहयोगी दल भी इस मामले में भाजपा सरकार का खुलकर साथ नहीं दे पा रहे हैं। यहां तक कि असम में तो भाजपा का पुराना सहयोगी दल असम गण परिषद उससे इसी मुद्दे पर अलग हो चुका है।

    पूरे उत्तर पूर्व में मोदी सरकार के इस धर्म आधारित पक्षपातपूर्ण कानून का ज़बरदस्त विरोध हो रहा है। महाराष्ट्र में कल तक उसके साथ रही शिवसेना अपनी अलग सरकार बनाने के बाद एनआरसी लागू करने से साफ मना कर चुकी है। शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर भाजपा का साथ नहीं दे रहा है। यहां तक कि बिहार में नितीश कुमार और राम विलास पासवान तक मोदी सरकार को एनआरसी नहीं लाने और एनपीआर के विवादित कॉलम हटाने को दो टूक कह चुके हैं। इतना ही नहीं केरल राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और बंगाल सहित कई प्रदेश सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास कर सुप्रीम कोर्ट में इसे निरस्त कराने के लिये गये हैं।

    जनता और अनेक राजनीतिक व सामाजिक संस्थाओं ने भी इस कानून के खिलाफ जनहित याचिकायें कोर्ट में दायर की हैं। यह समय बतायेगा कि सबसे बड़ी अदालत इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष सुनने के बाद क्या फैसला देती हैसोचने की बात यह है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मंदिर मस्जिद का फैसला आने से पहले देश के विभिन्न वर्गों से बातचीत कर शांति बनाये रखने को काफी दिन पहले से बात शुरू कर दी थी। लेकिन सीएए एनपीआर और एनआरसी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर औपचारिक बैठक तक नहीं की।

    इसके विपरीत गृहमंत्री संसद में कम से कम7 बार कह चुके थे कि पहले सीएबी आयेगा। इसके बाद एनआरसी आयेगा। उनका यह भी दावा था कि सीएबी से सब गैर मुसलमानों को नागरिकता दे दी जायेगी लेकिन उसके बाद जब एनआरसी होगा तो जो खुद को भारतीय नागरिक साबित नहीं कर पायेंगे। उनको देश से चुन चुनकर निकाला जायेगा। जब तक उनको देश से निकाला नहीं जा सकेगा तब तक उनको डिटंेशन कैंप में रखा जायेगा। यही बात मोदी सरकार ने संसद में अपने इरादे ज़ाहिर करने को राष्ट्रपति से अपने अभिभाषण में भी पिछले साल कहलवाई थी।

    ज़ाहिर बात है कि सरकार के इन इरादों होम मिनिस्टर की बार बार दी गयी धमकियों और संघ परिवार भाजपा और मोदी सरकार के मुस्लिम विरोध व दुश्मनी के पुराने ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए मुसलमान अपनी नागरिकता छिनने के ख़तरे को सामने देख बुरी तरह से डर गया। वह सड़कों पर उतरा तो उदार और सेकुलर हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र और बुध््िदजीवी उसके साथ कंध्ेा से कंधा मिलाकर खड़े हो गये। उधर नॉर्थ ईस्ट मोदी सरकार के सीएए के खिलाफ मैदान में उतर आया। इससे मोदी सरकार के हाथ पांव फूल गये।

    लेकिन उसने अपने अहंकार हिंदू मुस्लिम एजेंडे और तानाशाही के कारण विरोध करने वालों को देशद्रोही पाकिस्तान समर्थक और हिंदू विरोधी साबित करने की नाकाम कोशिशें की। जबकि शाहीन बाग सहित कहीं भी किसी मुसलमान या सेकुलर हिंदू ने यह नहीं मांग की कि पड़ौस के देशों से आने वाले उत्पीड़ित हिंदुओं को नागरिकता ना दी जाये। उनका तो मात्र इतना कहना था कि बिना धार्मिक आधार के सभी अल्पसंख्यकों को भारतीय शरण दी जाये। लेकिन मोदी सरकार ने बड़ी चालाकी से पड़ौस के ही श्रीलंका म्यांमार और चीन को छोड़ दिया।

    साथ ही अगर वह धर्म का नाम ना लेकर केवल पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात कहती तो इतना हंगामा ना होता। लेकिन उसको तो अपना हिंदू वोटबैंक और हिंदू राष्ट्र का एजेंडा हर हाल में आगे बढ़ाना है। वह जेएनयू के कन्हैया और दिल्ली के सीएम केजरीवाल सहित मुसलमानों को टुकड़े टुकड़े गैंग का टैग बार बार लगाती है। लेकिन आज पूरी दुनिया को पता चल गया है कि दरअसल संघ परिवार खुद ही ऐसे काम कर रहा है।

     जिससे देश का भाईचारा आपसी प्यार मुहब्बत एकता और संविधान ख़तरे में है। मोदी सरकार को यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाये उतना अच्छा है कि वह सरकारी शक्ति या संघ परिवार की सोच के लोगों द्वारा शाहीन बाग़ जामिया मिलिया या जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों पर हमले होने से सीएए एनपीआर या ठंडे बस्ते से फिर कभी एनआरसी का भूत निकाल कर जबरदस्ती बिना सबका शक व शिकायतें दूर किये बिना लागू नहीं कर सकती है।                        

0 काट डाले सारे शजर खुद अपने ही हाथों से,

  अजीब शख़्स है फिर साया तलाश करता है।।