Saturday 26 June 2021

2 बच्चे

असम सरकार सुविधायें छीनकर करायेगी परिवार नियोजन?

0इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी देश प्रदेश की उन्नति के लिये बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगनी चाहिये। यह भी सही है कि छोटा परिवार सुखी परिवार होता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या असम सरकार के पास जनता को 2 से अधिक बच्चे होने पर शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित कर एक तरह से सज़ा देने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है?आदर्ष जन्मदर का लक्ष्य 2.1 की बजाये 1.9होने के बावजूद असम सरकार ने 2 से अधिक बच्चो वालों को सरकारी सेवा व पंचायत चुनाव लड़ने से पहले ही वंचित कर रखा है। केरल सरकार ने इस तरह के फै़सलों के बिना ही आबादी पर लगाम लगाकर पूरे देश के सामने एक मिसाल पेश की है।    

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की निगरानी में काम करने वाली सरकारी संस्था नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की दिसंबर 2020 में जारी पांचवी रिपोर्ट के अनुसार असम की कुल जन्म दर 1.9तक नीचे आ चुकी है। आदर्श रूप से किसी भी देश प्रदेश की आबादी की वर्तमान जनसंख्या स्थिर बनाये रखने के लिये यह टीएफआर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 होनी चाहिये। इसका मतलब असम न केवल आदर्श जन्म दर का लक्ष्य पहले ही हासिल कर चुका है। बल्कि वह उससे भी नीचे जाकर अब अपनी मौजूदा आबादी से कम जनसंख्या की ओर जा रहा है। सवाल यह है कि इसके बावजूद आबादी घटते जाने का जोखिम उठाकर भी किस राजनीतिक एजेंडे के तहत असम के सीएम हेमंत विस्व सरमा ऐसे सरकारी उपाय अपनाना चाहते हैं।

       जिससे कुछ खास वर्ग के लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने से रोका जा सकेहालांकि उन्होंने यह भी स्पश्ट किया है कि यह प्रस्ताव धीरे धीरे लागू किया जायेगा और फिलहाल सभी सरकारी योजनाओं से दो बच्चो से अधिक वाले परिवारों को एक साथ वंचित नहीं किया जायेगा। उनका कहना है कि प्रधनमंत्री आवास योजना और राज्यों के स्कूल काॅलेजों में पढ़ने से किसी भी परिवार को फिलहाल नहीं रोका जायेगा। लेकिन भविष्य में अगर मीडियम क्लास के लिये मुख्यमंत्री आवास योजना शुरू की जाती है तो उससे दो बच्चो से बड़े परिवार को बाहर रखा जायेगा। हालांकि विपक्षी दलों ने सीएम सरमा को अपने पिता के 5 पुत्रों के बड़े परिवार का हिस्सा होने पर निशाने पर लिया है। लेकिन हमारा कहना है कि सरमा को इसके लिये जि़म्मेदार ठहराना सही नहीं है।

      यह भी सच है कि आज से चार पांच दशक पहले सरमा ही नहीं लगभग सभी के परिवार बड़े ही होते थे। बहरहाल सीएम सरमा का यह कहना कि असम की तमाम सामाजिक बुराइयों पर लगाम लगाने लिये ज़रूरी है कि प्रवासी मुसलमान परिवार नियोजन को अपनायेंअपने आप में सियासी बिल्ली थैले से बाहर आ जाना है। यह उनका एक तरह से राजनीतिक बयान माना जा रहा है। इससे वे अपने हिंदू वोट बैंक को खुश करना चाहते हैं। इसकी वजह यह है कि सरमा ने इस कानून से अनुसूचित जाति जनजाति और विकीपीडिया के अनुसार असम की सबसे बड़े यानी 65 लाख की जनसंख्या वाले चायबागान वर्ग को बाहर रखा है। यही कारण है कि अगर विपक्षी दलों के आरोप के अनुसार यह कानून पक्षपातपूर्ण और एक वर्ग विशेष को नुकसान पहंुचाने की नीयत से लागू करने की संविधान विरोधी कोशिश की गयी तो इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जायेगी।

      ज़ाहिर है वहां मराठा और पटेल आरक्षण की तरह यह टिक नहीं पायेगा। सरमा ने हालांकि अपने बयान को बैलंेस करने के लिये यह भी कहा कि प्रवासी मुसलमानों की गरीबी दूर करने के लिये मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित किया जाना चाहिये। उनका कहना है कि ऐसा करने से ना केवल मुस्लिम परिवारों में बच्चे कम होंगे बल्कि उनकी गरीबी भी दूर होने लगेगी। सरमा का दावा है कि असम के जाने माने मुस्लिम दल एआईयूडीएफ के मुखिया बदरूद्दीन अजमल ने उनसे मिलकर मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित किये जाने का समर्थन किया है। ज़ाहिर बात है कि अजमल ही नहीं कोई भी समझदार और दूरदर्शी प्रगतिशील नेता अपने समाज की महिलाओं को शिक्षित किये जाने का विरोध नहीं कर सकता। दरअसल यही वह पेंच है जिसको सरमा वोट बैंक की राजनीति की वजह से छिपा लेना चाहते हैं।

      सच तो यह है कि अगर जनता के सब वर्गों में शिक्षा और सम्पन्नता बढ़ेगी तो खुद ब खुद लोग परिवार नियोजन अपनाने लगेंगे। लेकिन सरकार बड़े परिवारों को शिक्षा रोज़गार और अन्य सरकारी सुविधाओें से वंचित करके उल्टा काम कर रही है। जिस तरह से केरल सरकार ने राज्य में लगभग शत प्रतिशत शिक्षा का लक्ष्य हासिल करके गरीबी और बड़े परिवारों की समस्या से छुटकारा पाया है। वही माॅडल असम ही नहीं पूरे देश में अपनाया जाना चाहिये। वहां हिंदू मुस्लिम सभी में शिक्षा और परिवार नियोजन बिना किसी सरकारी दंड के खुद ब खुद लोगों ने अपनाया है। अगर बड़े परिवारों की वजह धर्म होता तो कश्मीर की टीएफआर1.6 नहीं हो गयी होती। असम में 2017 में जनसंख्या एवं महिला सशक्तिकरण नीति बनाई गयी थी। इसी नीति पर अमल करते हुए2019 में तय किया गया था कि वो लोग जिनकेे दो से अधिक बच्चे होंगे वे असम सरकार में जनवरी 2021 से नौकरी हासिल नहीं कर सकेंगे।

      राजस्थान एमपी महाराष्ट्र में ऐसे कानून पहले से ही लागू हैं। इसके बाद असम सरकार ने असम पंचायत एक्ट को 2018 में संशोधित कर यह नियम जोड़ दिया कि जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे वो लोग पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। ऐसा ही कानून देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों तेलंगाना उड़ीसा उत्तराखंड आंध्रा गुजरात महाराष्ट्र और राजस्थान में मौजूद है। सवाल यह है कि नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार पूरे देश में शिशु जन्म दर जब 1992-93 की 3.4 से घटकर 2015-16 में2.2 तक आ गयी है। जबकि आबादी को बढ़ने से रोकने के लिये सरकार का आदर्श लक्ष्य इसको सब राज्यों में 2.1 बनाये रखना है। साथ ही सरकारी आंकड़े गवाह है कि यह टीएफआर असम में 1.9 तक नीचे आ चुकी है तो फिर असम सरकार की वास्तविक चिंता और छिपा हुए एजेंडा क्या हैनेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-3 की 2005-06 की रिपोर्ट बताती है कि वहां हिंदू आबादी की जन्म दर 1.95 थी तो मुस्लिम आबादी 3.64 की दर से बढ़ रही थी। यह अंतर वास्तव में चिंताजनक था।

      लेकिन एनएफएचएस -5 का सर्वे बताता है कि मुस्लिम प्रजनन दर एतिहासिक रूप से1.24 घटकर 2.4 तक आ गयी है। जबकि इस दौरान हिंदू जन्म दर मात्र 0.35 ही घटी है। इसका मतलब यह है कि ऐसा लोगों खासतौर पर महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ने गरीबी घटने और जागरूकता आने से हुआ है। परिवार नियोजन करने के लिये असम या किसी भी सरकार को जनता चाहे किसी भी धर्म जाति भाषा या क्षेत्र की हो डराने ललचाने या सरकारी सुविधाऐं छीन लेने के लिये धमकाने की ज़रूरत नहीं है। अगर अधिक बच्चे होने का कारण धर्म को माना जाये तो केरल में ईसाई मुसलमान और हिंदू लगभग बराबर होने के बावजूद सबका परिवार शिक्षित और छोटा होना और यूपी में 3.5 बिहार मेें 3.7 जन्मदर हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद पूरे देश में सब से अधिक होना विरोधाभासी तथ्य है। केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को चाहिये कि वे बिना भेदभाव बिना सियासी लाभ और अपने अपने वोटबैंक की परवाह किये सबके लिये समान परिवार नियोजन की नीति बनायें।                                             

0 लेखक नवभारतटाइम्सडाॅटकाम के ब्लाॅगर व स्वतंत्र पत्रकार हैं।।         

Friday 25 June 2021

राहुल कैसे बनेंगे पीएम?

2024 में राहुल गांधी पीएम कैसे बन सकते हैं?

0चुनावी रण्नीतिज्ञ प्रशांत किशोर ने कहा है कि2024 में राहुल गांधी सबको आश्चर्यचकित करते हुए देश के बड़े राजनेता बनकर उभरेंगे और देखते देखते ही शीर्ष पद तक पहुंच जायेंगे। हालांकि अभी यह बात अतिश्योक्ति लग सकती है। लेकिन यह भी सच है कि जिस तरह से संघ परिवार भाजपा उसका आईटी सेल मोदी सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया हाथ धोकर एकमात्र विपक्षी नेता राहुल गांधी के पीछे पड़े रहता है। उससे यह ज़रूर लगता है कि उनको सबसे बड़ा खतरा राहुल से ही नज़र आता है। कांग्रेसमुक्त भारत का नारा भी इसीलिये दिया गया था। लेकिन उनको रोकने बदनाम करने की तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस और राहुल आज भाजपा के लिये सबसे बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं।     

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   राहुल गांधी को पप्पू’ साबित करने के लिये लंबे समय से एक सोचा समझा अभियान खासतौर पर सोशल मीडिया में चलता रहा है। नेहरू से लेकर राजीव गांधी सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी तक को इस मकसद को पूरा करने के लिये समय समय पर निशाने पर लिया जाता है। यहां तक कि उनका चरित्र हनन करने से भी परहेज़ नहीं किया जाता क्योंकि ऐसा करने वाले जानते हैं कि वर्तमान सत्ता के रहते उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होने का कोई जोखिम भी नहीं है। आज करोड़ों रूपये का खर्च राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने के एजेंडे पर ही किया जा रहा है। हैरत और मज़ाक की बात यह है कि राहुल गांधी न तो किसी राज्य के सीएम हैं और न ही पीएम यहां तक कि वे कांग्रेस के प्रेसीडेंट या विरोधी दल के नेतामंत्री या किसी सरकारी आयोग के मुखिया तक नहीं हैं। सबको पता है कि राहुल गांधी ने छोटी सी उम्र में अपनी दादी प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या देखी। इसके कुछ साल बाद ही उनके पिता पीएम राजीव गांधी की भी हत्या हो गयी। इसके बाद जब उनकी मां सोनिया गांधी ने दो टूक ऐलान कर दिया था कि वे अपने बच्चों की सुरक्षा के लिये कभी भी राजनीति में नहीं आयेंगी। शायद देश के हालात जनता की बेहाली और अन्य नेताओं की मनमानी ने सोनिया को मजबूर किया कि वे सियासत में आयें। सोनिया को बहुमत होने के बावजूद पीएम बनने से रोका गया। राहुल गांधी ने तमाम दबाव पड़ने के बावजूद खुद कोई लाभ का पद नहीं लिया। लेकिन जब भी देश में कुछ गलत होता है। मोदी सरकार से सवाल करने की बजाये गोदी मीडिया और सत्ताधारी दल द्वारा उल्टा राहुल गांधी से जवाब तलब किया जाता है। अजीब बात यह है कि कांग्रेस 2014 के बाद2019 का लोकसभा ही नहीं एक के बाद राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हारती जा रही है। यहां तक कि बड़ी मुश्किल से कांग्रेस राजस्थान एमपी और 36 गढ़ के चुनाव जीती थी। वहां भी एमपी में उसकी सरकार समय पूरा होने से पहले ही गिरा दी गयी। राजस्थान में कांग्रेस सरकार गिरते गिरते बची। जबकि कर्नाटक में उसकी गठबंधन सरकार और पुडुचेरी में पूर्ण बहुमत की सरकार साम दाम दंड भेद से चुनाव आने से पहले ही तख्तापलट का शिकार हो गयी। इतना ही नहीं जहां जहां कांग्रेस की सरकार बची हुयी है। वे कब उसके विधायकों के दल बदल या त्यागपत्र देने से हिल जायेंगी। यह भी कोई पक्का दावा नहीं कर सकता। सवाल यह है कि जब कांग्रेस और राहुल गांधी की सियासी हालत इतनी खराब और कमज़ोर हो चुकी है तो भाजपा को उनसे सबसे ज़्यादा डर क्यों लगता हैसंघ परिवार उनके बारे में बात करना उनकी हर बात पर वार करना और उनको गलत साबित करने करने को ज़मीन आसमान एक करने में क्यों लगा रहता हैइसकी वजह यह भी है कि राहुल गांधी अपने खिलाफ लगातार चलने वाले दुष्प्रचार के बावजूद दिन ब दिन मज़बूत परिपक्व और संस्कारी नेता की छवि बनाने मेें सफल होते नज़र आ रहे हैं। इस देश के लोगों की एक खूबी संघ परिवार को और डरा रही है कि आप जिसको लगातार टार्गेट करोगे। उससे जनता की सहानुभूति बढ़ने लगती है। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल इसके जीते जागते सबूत हैं। लाख जतन करके भी भाजपा इनसे पार नहीं पा सकी है। आज हालत यह है कि मोदी सरकार लगभग हर मोर्चे पर मात खाती जा रही है। जबकि राहुल गांधी अर्थव्यवस्था से लेकर किसान मज़दूर गरीब महंगाई शिक्षा रोज़गार चिकित्सा कालाधन कश्मीर और कोरोना से निबटने को जो कुछ कहते हैं। उसकी हाथो हाथ मोदी सरकार के कई मंत्री और भाजपा नेता व प्रवक्ता प्रैस वार्ता कर खिंचाई करने के बाद कुछ समय बाद ठीक वही फैसले करने को मजबूर हो जाते हैं। जो राहुल कहते हैं। तमाम आरोपों के बावजूद कांग्रेस सरकारें मोदी सरकार से कई मामलों में बेहतर भी थीं। इससे देश की जनता को धीरे धीरे यह अहसास होने लगा है कि भाजपा और मोदी भले ही चुनाव जीतने या उनका दिल जीतने में बार बार सफल और कांग्रेस और राहुल ऐसा करने में उनकी चालबाज़ी लफ्फाजी तिगड़म झूठ मीडिया सेटिंग लंबे चैड़े वायदों और दावों की सफल मार्केटिंग विपक्षी नेताओं विधायकों और सांसदों का दलबदल या इस्तीफा और पूंजीपतियों से सांठगांठ करके सूटबूट की सरकार चलाने को सत्ता में ना आ पा रहे हों,लेकिन राहुल जो कुछ कह रहे हैं। वह मोदी सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों के मुकाबले अधिक बेहतर जनहित सत्यता वास्तविकता व्यवहारिकता सबके विकास अहिंसा धर्मनिर्पेक्षता और निष्पक्षता पर आधारित है। दरअसल यही वो असली डर है जो भाजपा और संघ को राहुल से खौफज़दा रखता है। हम चुनावी विशेषज्ञ प्रशांत किशोर की 2024 में राहुल के अचानक पीएम बन जाने की भविष्यवाणी का आधार तो नहीं जानते लेकिन इतना तय है कि खुद मोदी सरकार और भाजपा की राज्यों की सरकारें जिस तरह से साम्प्रदायिकता कट्टरपंथ अंधविश्वास पंूजीवाद महंगाई बेरोज़गारी कानून व्यवस्था भ्रष्टाचार कालाधन विकास पर लगातार असफल होती नज़र आ रही हैं। उससे वे लंबे समय तक जनता को बहुसंख्यक भावनाओं हिंदुत्व हिंदूराष्ट्र का सपना मुसलमान विरोध विपक्ष को विलेन बनाना पाकिस्तान कश्मीर समान नागरिक संहिता सीएए एनआरसी पर उत्तेजित करके जीतने लायक वोट नहीं पा सकती। कांगे्रस और राहुल की तमाम कमियों नालायकी नाकामियों और गल्तियों के बावजूद जिस दिन जनता ने बढ़ती समस्याओं से तंग आ कर मोदी और भाजपा की सरकार से मुक्ति पाने का मन बना लिया वह उस दिन सारे हथकंडे फेल कर किसी क्षेत्रीय दल या राज्य स्तर केे नेता की बजाये कांग्रेस और राहुल गांधी को ही सरकार बनाने का अवसर देगी।

Tuesday 15 June 2021

सोशल मीडिया पर लगाम...


सोशल मीडिया पर लगाम लगा सकेगी सरकार?

0प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया पर काफी हद तक अपना कंट्रोल बना लेने के बाद अब केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर नकेल कसनी शुरू कर दी है। हालांकि इसकी वजह सरकार ने कानून व्यवस्था देशहित और राष्ट्रविरोधी व फेक कंटेन्ट को डिजिटल प्लेटफाॅर्म से हटाने की ज़रूरत बताया है। लेकिन जानकार सूत्रों का दावा है कि सरकार अपने खिलाफ कहीं भी कुछ भी सामाग्री जनता तक नहीं पहुंचने देना चाहती। इसीलिये ये सब कवायद चल रही है।     

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   पहले फेसबुक फिर ट्विटर और बाद में व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को सरकार के सामने घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा है। हालांकि शुरू में ये विश्व स्तरीय मीडिया कोर्ट की शरण में गया। लेकिन वहां से सरकार के आदेश के खिलाफ कोई स्टे आॅर्डर ना मिलने से ना चाहते हुए भी इनको केंद्र सरकार का आदेश तत्काल प्रभाव से मानते हुए भारत में इस मीडिया एप से जुड़े मामलों की शिकायत सुनने वाले उस पर फैसला करने वाले और उस निर्णय का अनुपालन निर्धारित समय अवधि में कराने वाले अधिकारी नियुक्त करने पड़े हैं। हालांकि यह सवाल अभी तक अपनी जगह मौजूद है कि जब व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया एप का दावा यह  है कि उनके ज़रिये होने वाली चैट एंड टू एंड एंक्रिप्ट है तो वे सरकार विरोधी संदेश पढ़ेंगे कैसेऔर अगर वे ये सब मैसेज पढ़ेंगे नहीं तो फिर आपत्तिजनक पोस्ट पकड़ेंगे कैसेयानी सरकार को रिपोर्ट कैसे करेंगेसाथ ही व्हाट्सएप पर रोज़ आने वाले अरबों मैसेज आॅडियो वीडियो को क्या चैक करनाउनमें से भारत सरकार द्वारा बताये गये संदेशों को एप से हटाना और उस पोस्ट को पहली बार भेजने वाले की सारी जानकारी कानूनी कार्यवाही के लिये सरकार को सौंपना और सरकार का इन सबके खिलाफ लगातार कार्यवाही करना व्यावहारिक और संभव होगा?क्या ऐसा करने से व्हाट्सएप की गोपनीयता लोकप्रियता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रह जायेगीइस मामले में ट्विटर का मामला कुछ अलग है क्योंकि उसके मैसेज तो ओपन टू आॅल होते हैं। उनको कोई भी पढ़ सकता है। चैक कर सकता है। ज़ाहिर है कि जब उनको पढ़ा देखा और सुना जा सकता है तो उनपर पुलिस प्रशासन या शासन यहां तक कि शिकायत करने पर खुद ट्विटर भी एक्शन ले सकता है। और अभी भी ऐसे मामलों में कार्यवाही होती ही रही है। जहां तक फेसबुक का सवाल है तो उसने तो बहुत पहले ही भारत सरकार की शर्तें मानकर सरकार को पंसद ना आने वाली सामाग्री अपनी साइट से हटाने ब्लाॅक करने या उस एकाउंट की जानकारी देने का समझौता कर लिया था। उसने भारत मेें अपना एक प्रमुख अधिकारी भी नियुक्त कर दिया था। जो बहुत पहले ही ऐसी सभी जानाकरी पोस्ट और कमेंट हटाने रोकने और ब्लाॅक करने का काम अंजाक दे रहा है। जो सरकार को नापसंद होती है। इसके अलावा जो अन्य एप या ओटीटी प्लेटफाॅर्म हैं। उनकी तो सरकार से इस मुद्दे पर भिड़ने की हैसियत ही नहीं थी। सो उन्होंने बिना ना नुकुर के सरकार के सामने पहली बार में चेतावनी मिलते ही हथियार डाल दिये थे। सरकार ने जब देखा कि सोशल मीडिया के बड़े बड़े विशालकाय खिलाड़ी उसके सामने अपने व्यवसायिक हितों की खातिर एक ही धमकी में झुक चुके हैं तो उसने अन्य सभी डिजिटल न्यूज ओटीटी और सोशल मीडिया को नये आई टी नियमों का पालन 15 दिन के भीतर सुनिश्चित करने की डैडलाइन जारी कर दी। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने इस आश्य का आदेश विगत दिनों जारी किया है। मजे़दार बात यह है कि सरकार ने ऐसा करने की वजह सोशल मीडिया पर फर्जी पोस्ट रोकना मुख्य बताया है। जबकि सबसे अधिक फर्जी पोस्ट कौन करता हैउनको किसका संरक्षण मिला हुआ है? 250सदस्य वाले 10 लाख व्हाट्सएप गु्रप किसने बना रखे हैंकौन किसके किसके खिलाफ पूरे देश में झूठ और नफरत फैला रहा हैकौन जनता के दिमाग पर सोशल मीडिया के द्वारा कब्ज़ा करके राजनीतिक लाभ उठा रहा है?कौन एक रूपया दो रूपया और पांच रूपया खर्च कर ट्विटर पर अपने फाॅलोवर खरीदता हैकौन रोज़ एक पोस्ट को पैसे देकर ट्रेंड कराता हैकौन रोज़ कोई ना कोई हैशटैग चलाकर अपने विरोधियों को बदनाम करता है?कौन फर्जी टूलकिट चलाता हैकौन कुछ दल कुछ नेताओं और कुछ धर्म विशेष के लोगों को देश की हर समस्या के लिये जि़म्मेदार ठहराकर उनके खिलाफ जंग का सा माहौल बनाता है?किसने अपनी छवि सोशल मीडिया पर फर्जी करोड़ों फाॅलोवर खरीदकर सबसे अधिक चमकाई हैऐसे और भी अनेक सवाल यहां उठाये जा सकते हैं। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि अख़बार मैग्जीन और टीवी चैनलों को अपने हिसाब से चलने को मजबूर करने के बाद अब जो थोड़ा बहुत सच वास्तविकता और अन्याय शोषण व धोखा सोशल मीडिया की वजह से जनता की नज़र में आ रहा था। अब उस पर भी रोक लगाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। कहने को सोशल मीडिया को नोडल अफसर कंपलेंट अफसर और कंप्लाएंस अफसर रखकर शासन प्रशासन पुलिस द्वारा आपत्तिजनक बताये गये कंटेट और पोस्ट को24 से 36 घंटे में हर हाल में हटाना होगा। राष्ट्रहित राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के नाम पर अब तक 7 साल में किस तरह की सोच के लोगों को सराकर ने निशाना बनाया है। सोशल मीडिया पर भी इसी बहाने किन लोगों को सरकार सबक सिखायेगी यह किसी से छिपा नहीं है। शायद यही वजह है कि आज हमारे देश के लोकतंत्र सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया को लेकर विदेशी मीडिया में ज़बरदस्त चर्चा हो रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सोशल मीडिया पर लगाम लगने के बाद क्या जनता का वो वर्ग जो सरकार की गलत नीतियों जनविरोधी कदमों और पंूजीपरस्त फैसलों का हर हाल में विरोध जारी रखना चाहता हैवो सोशल मीडिया का क्या विकल्प तलाश करता है?