Wednesday 31 May 2017

हाइवे गैंगरेप

क्या घर से निकलना बंद कर दें?

 

 

 

0 हाईवे पर गैंगरेप और लूट बदस्तूर जारी रहने से न केवल नई भाजपा सरकार पर उंगलियां उठना स्वाभाविक है बल्कि अब यह चर्चा भी एक बार फिर शुरू हो गयी है कि क्या निर्भया बलात्कार कांड के बाद बनाया गया सख़्त कानून भी बेअसर हो गया है?

ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैस वे से उतरते ही ज़ेवर से बुलंदशहर वाले रास्ते पर पिछले दिनों लूट, हत्या और सामूहिक बलात्कार की जो लोमहर्षक अपराधिक घटना हुयी। उससे एक बार फिर यह सवाल उठा है कि क्या सत्ता और कानून बदलने से इस तरह के हादसे रोके जा सकते हैं? इतना ही नहीं हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर हाईवे पर एक साल पहले हुयी ऐसी ही घटना को यूपी में जंगलराज की संज्ञा दी गयी थी। उस समय के काबीना मंत्री आज़म खां ने सपा सरकार को बदनाम करने के लिये जब विपक्ष पर इस घटना की साज़िश में शामिल होने का शक ज़ाहिर किया था तो उनको सभी ने आड़े हाथों लिया था। आज भाजपा की योगी सरकार के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा बिल्कुल वैसा ही संदेह विपक्ष पर जताकर अपनी ज़िम्मेदारी से बचने का असफल प्रयास करते नज़र आ रहे हैं। समझ में नहीं आता कि हम रामराज में जी रहे हैं या जंगल राज में? इस घटना के बाद ऐसे दो परिवार और सामने आये हैं जिन्होंने यह बताया है कि उनके साथ भी कुछ समय पहले ऐसी घटनायें की गयीं थीं। लेकिन उन्होंने अपने परिवार की प्रतिष्ठा और लोकलाज की वजह से रेप का मामला दर्ज न कराकर केवल लूट का केस दर्ज कराया था। दूसरी तरफ हमारे पुलिस प्रशासन का का रूख़ अकसर ही ऐसी वीभत्स घटनाओं को दबाना छिपाना व पीड़ित को उल्टे डराना धमकाना और अपराध को हल्का करके मजबूरी में दर्ज करने का ही बना हुआ है। योगी सरकार आने के बाद भी पुलिस के इस जनविरोधी और असंवेदनशील रूख में कोई खास अंतर आया हो ऐसा व्यवहार में नहीं लगता है। यह कितनी गंभीर बात है कि ज़ेवर कस्बे का एक भाई अपने परिवार को रात को लेकर बुलंदशहर के एक अस्पताल में भर्ती अपनी गर्भवती बहन की सुरक्षित डिलीवरी के लिये कार से निकलता है। उसके वाहन के सामने वही परंपरागत नुकीली चीज़ फंैकी जाती है। जिससे हर बार हाईवे के वाहनों के टायर अचानक फट जाते हैं। जैसे ही वे लोग कार से बाहर आते हैं। वैसे ही पास के खेत में घात लगाये बैठे आधा दर्जन से अधिक बदमाश सड़क पर उनको घेर लेते हैं। पहले उनसे धन और कीमती सामान लूटते हैं। जो वो यह सोचकर चुपचाप बिना किसी विरोध के दे देते हैं कि जान बची तो लाखो पाये। इसके बाद बदमाश जब परिवार की महिलाओं को बुरी नीयत से खींचकर खेत में ले जाने लगते हैं तो परिवार का नौजवान मर्द सहन नहीं कर पाता और जमकर विरोध करता है। बदमाश पहले उसे डराने के लिये ज़मीन पर उसके पांव के पास गोली मारते हैं। लेकिन वह अपने परिवार की मां बहन भाभी और पत्नी की इज़्ज़त बचाने को आखि़री दम तक लड़ता है। नतीजा यह होता है कि बदमाश उसको गोली मारकर मौके पर ही मौत की नींद सुला देते हैं। अब आप सपा के राज को गुंडा राज बताने वाले योगी राज की भाजपा सरकार की पुलिस का अमानवीय चेहरा देखिये। पुलिस इस घटना की ख़बर मिलने के दो घंटे बाद मौके पर पहंुची। उसने मामले को दबाने की भरपूर कोशिश की। पुलिस ने बाद में पीड़ित परिवार को मीडिया से छिपा दिया। पुलिस ने यह भी दावा किया कि केवल लूट हुयी है। बलात्कार के आरोप संदिग्ध हैं। इसके बाद केवल एक महिला के साथ रेप होने का पुलिस ने दावा किया। इसके बाद खुद पुलिस ने इसे आपसी रंजिश का मामला ठहराकर घटना की गंभीरता को कम करना चाहा। पुलिस ने यहां तक दावा किया कि पीड़ित परिवार ने शुरू में अपने कुछ पड़ौसियों पर ही इस हादसे का शक जताया था। यह बात हम सब जानते हैं कि खुद पुलिस किस तरह ऐसे मामलों में पीड़ितों को अकसर मजबूर करती है कि वे तहरीर घटना की वास्तविकता के हिसाब से नहीं बल्कि पुलिस के बताये अनुसार लिखें। इसके बाद पुलिस ने बलात्कार पीड़ित महिलाओं की स्वास्थ्य जांच के बाबा आदम के सदियोें पुराने तरीके आज़माकर बाकायदा प्रैस वार्ता कर यह दावा किया कि प्राथमिक जांच में रेप की पुष्टि नहीं हुयी है। हालांकि मामला पूरे देश में चर्चा में आ जाने से पुलिस ने मामले की फोरंेसिक जांच का इंतज़ार करने का दावा किया है। सबको पता है कि कुछ दिन तक यह मामला मीडिया की वजह से चर्चा में रहेगा। इसके बाद बुलंदशहर हाईवे रेप और निर्भया दिल्ली गैंग रेप की तरह सरकार पुलिस प्रशासन ही नहीं खुद समाज भी इस केस को भूल जायेगा। आपको याद होगा अरूणा शानबाग जैसे चर्चित मामले में भी फैसला आने में पूरे 38 साल लग गये थे। और तो और जिस निर्भया का गैंग रेप मामला पूरे देश को हिला चुका है। उसको हल करने में भी पांच साल का टाइम लगता है। जबकि यह एक तरह से प्राथमिकता के आधार पर तय किया जाने वाला स्लैक्टि व रेयर आॅफ दि रेयरिस्ट केस था। हर बार चुनाव में सरकार बदलने और कानून बदलने के साथ हम लोग इस खुशफहमी का शिकार हो जाते हैं कि अब ऐसे हादसे फिर कभी नहीं होेंगे। हम हर बार यह याद दिलाते हैं कि ऐसे हादसे सत्ता नहीं व्यवस्था बदलने से रूकेंगे। लेकिन हमारी आवाज़ नक्कारखाने मंे तूती की आवाज़ बनकर रह जाती है। कुछ दिन ऐसी हर भयावह घटना के बाद खूब शोर मचता है। शासकों के कड़क बयान आते हैं। विपक्ष इन घटनाओं को जंगल राज बताकर कड़े शब्दों में निंदा करता है। सामाजिक और मानव अधिकार संगठन चिंता जताते हैं। लेकिन बदलता कुछ भी नहीं। एक तरह से हम सब ऐसी ही नई और दूसरी तीसरी गंभीर घटना का शिकार बनने को अभिषप्त है। सवाल यह भी उठता है कि अगर लोग इस तरह की वारदातों से बचने को डरकर रात में सफर करना बंद करदें तो क्या बदमाश दिन में इस तरह ही लूट और बलात्कार का दुस्साहस नहीं करेंगे? या हम लोग स्कूलोें अस्पतालों आॅफिसों बाज़ारों यहां तक कि थानोें और अपने अपनेे घरों तक में भी सुरक्षित रह गये है?

0हादसों की ज़द पर हैं तो क्या मुस्कुराना छोड़ दें,

ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें??

Tuesday 30 May 2017

Buddhijivee

*"आप बुद्धीजीवियों से बहुत चिढ़ते हैं?*
क्योंकि बुद्धिजीवी ऐसी बात बोलते हैं जिससे आपको चिढ है,
आइये आपको बुद्धिजीवी लोगों की गुप्त बातें बताता हूँ,
बुद्धीजीवी कैसे बना जाता है वह समझाता हूँ,
बुद्धीजीवी बनने की पहली सीढी है कि थिंक अबाउट योर थिंकिंग,
यानी अपनी सोच के बारे में सोचो ?
यानी खुद की सोच पर ध्यान दो,
अगर आप का जन्म सवर्ण परिवार में हुआ है और आपको दलितों का पक्ष गलत लगता है,
अगर आप हिन्दू घर में पैदा हुए हैं और आपको अपना धर्म महान और दुसरे धर्म गलत लगते हैं,
अगर आपका घर खाते पीते घर में हुआ है और आपको मजदूर कामचोर और गरीब आलसी लगते हैं,
तो फिर से अपनी सोच पर ध्यान दीजिये,
सोचिये आप दलित होते तो क्या आपके विचार यही होते जो सवर्ण होने की वजह से हैं ?
सोचिये अगर आप मुसलमान होते तो आपके विचार वही होते जो हिन्दू होने के कारण हैं ?
सोचिये अगर आपका घर एक गरीब मजदूर के रूप में होता तो क्या आपके विचार वही होते जो एक खाते पीते घर का सदस्य होने के कारण हैं ?
अगर आप पूरी ईमानदारी और हिम्मत से अपनी सोच की समीक्षा करेंगे,
तो आप पायेंगे कि आपके विचार असल में आपके परिवेश, स्थान, वर्ग, वर्ण और सम्प्रदाय के कारण बने हैं,
जैसे ही आप इस तथ्य को स्वीकार करते हैं,
आपके विचार बदलने लगते हैं,
अब आप सत्य की खोज शुरू करते हैं,
आप अपनी जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र, वर्ण, वर्ग की तुच्छ सीमाओं से ऊपर उठने लगते हैं,
आपकी सोच सच्ची ईमानदार और वास्तविक होने लगती है,
अब आप अपने धर्म के लोगों की गलत बातों का विरोध करने लगते हैं,
आप अपनी जाति के द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ जाकर पीड़ित जाति के पक्ष में खड़े हो जाते हैं,
आप अपने राष्ट्र द्वारा किये जाने वाले गलत कामों का विरोध करते हैं,
आप धीरे धीरे निखरते जाते हैं,
आपको दुसरे लोगों की छुद्र सोच पर दया आने लगती है,
आप कोशिश करते हैं कि आप सच्ची बात सबको बताएं,
लेकिन सम्प्रदाय, जाति, वर्ग में फंसे हुए लोग आपको गालियाँ देते हैं,
आपको धर्म विरोधी, जाति का गद्दार, राष्ट्रद्रोही कहा जाता है,
आपको विदेशी पैसे पर पलने वाला गद्दार बुद्धीजीवी कहा जाता है,
आप अचरज से सारी बातें सुनते हैं,
लेकिन अब आपका दुबारा से मूर्ख बनने का रास्ता बंद हो चुका है,
क्योंकि सत्य में जीने का आनन्द आपसे अब छूटता नहीं है,
आप अब धर्म, जाति, वर्ग, राष्ट्र की मूर्खता के दलदल में दोबारा जा ही नहीं पाते हैं,
दुनिया अगर युद्ध से बची है,
दुनिया में अगर दया, समझदारी, नियम, कानून, और सत्य काम कर रहा है,
तो वह ऐसे ही मुक्त सोच वालों के कारण है,
धर्म, जाति, वर्ग, राष्ट्र की मूर्खता में फंसे हुए नेता अफसर व्यापारी, फौजी और भीड़ तो युद्धों, शोषण मारकाट में लगी हुई है,
दुनिया को ज़्यादा से ज़्यादा आज़ाद सोच के बुद्धीजीवियों की ज़रूरत है,
ताकि यह दुनिया धार्मिकों, राष्ट्रवादियों, जातिवादियों और नस्लवादियों के हाथों नष्ट ना हो सके..."
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@ Himanshu Kumar

Friday 26 May 2017

मोदी सरकार के 3 साल

मोदी सरकार के 3 साल!

 

 

 

0सियासत में कई बार काम से अधिक धरणाहावी हो जाती हैहालांकि मोदी सरकार कीसाल में कई छोटी बड़ी उपलब्ध्यिां भी हैं,लेकिन नाकामियां उनकी बढ़ती लोकप्रियताकी ओट में छिप गयीं हैं। इसकी वजह यह हैकि लोगों का भरोसा उन पर बना हुआ है।

        

      मोदी सरकार के 3 साल यानी आधे सेअधिक कार्यकाल पूरा हो चुका है। उनकीसरकार का विश्लेषण करने के लिये यहसमय कम नहीं है। इस दौरान उनकी दो बड़ीउपलब्ध्यिों में नोटबंदी और जीएसटी काफैसला रहा है। हालांकि दोनों के ही लागू होनेका लाभ अभी धीरे धीरे सामने आयेगा।लेकिन ये फैसले साहसिक तो माने ही जानेचाहिये। नोटबंदी से वक्ती तौर परअर्थव्यवस्था को झटका लगाआम आदमीबुरी तरह परेशान भी हुआ और कालाधनबाहर  आकर जाली करेंसी उल्टा बैंकों मेंजमा हो गयी। लेकिन इसकी वजह से हीआज 91 लाख नये करदाता सामने आने कोमजबूर भी हो गये हैं। मोदी सरकार कीजाम यानी जनधन खाते आधार कार्ड औरमोबाइल योजना भी काफी हद तक सफलमानी जा रही है।

जो योजनाएं ज़मीन पर लागू होती दिखाई दींउनमें गरीब परिवारों को निशुल्क रसोई गैसकनेक्शन उज्जवला सबसे अधिक चर्चितऔर प्रभावशाली रही है। इसके साथ हीबिजली खपत घटाने के लिये शुरू की गयीसस्ते एलईडी बल्ब बांटने की योजना औरउन गांवों में बिजली पहुंचाने की बड़े पैमानेपर कोशिशें फलीभूत होती नज़र  रही हैं,जहां आज़ादी के बाद से आज तक बिजनीनहीं पहुंच सकी है। यह भी कहा जा सकता हैकि इस दौरान कोई बड़ा घोटाला या किसीमंत्री की रिश्वतखोरी का मामला भी सामनेनहीं आया है। लेकिन यह भी हो सकता है किआरटीआई प्रमुख सतर्कता आयुक्त औरलोकपाल की नियुक्ति  होने से ऐसे मामलेअभी पर्दे के पीछे चल रहे हों।

इसके साथ ही फसल बीमा योजनाबेटीबचाओ बेटी पढ़ाओस्मार्ट सिटी , बुलेट ट्रेन,कौशल विकास योजनास्वच्छता अभियान,डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसेनारे केवल दावे बनकर रह गये हैं।साम्प्रदायिकताअसहिष्णुता और कट्टरताइतनी बढ़ गयी है कि इनकी आड़ में लवजेहाद गोरक्षा और हिंदू राष्ट्र के नाम परआयेदिन अल्पसंख्यकों और दलितों कोसताये जाने की घटनाओं के साथ ही अबहिंसक भीड़ खुद हिंदुओं को भी जगह जगहनिशाना बनाने लगी है। झारखंड इसका एकनमूना है। पूंजीवादी मीडिया ने लोगों कोअसली समस्याओं से हटाकर तीन तलाकराम मंदिर और पाकिस्तान  कश्मीर में होनेवाली आये दिन की घटनाओं पर चर्चा मेंव्यस्त कर दिया गया है।

अगर असफलता  नाकामियों की बात करेंतो मोदी सरकार की यह सूची भी काफी लंबीहै। सबसे पहले उनको भूमि अधिग्रहणकानून में संशोधन वापस लेना पड़ा था।नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमीशनसुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का खारिज करदिया। आम आदमी को राहत देने की बजायेलगातार मोदी सरकार कारपोरेट टैक्स कमकर उनको ही एनपीए माफ कर सूटबूट वालीसरकार के रास्ते पर अभी भी चलती नज़र रही है। दो करोड़ रोज़गार हर साल पैदाकरने का दावा करने वाली मोदी सरकार अबतक के सबसे कम 14 लाख ही नौकरियांनिकाल सकी है। विदेश से कालाधन लाकरहरेक भारतीय को 15 लाख रूदेने का वादाजुमला बन चुका है।

कश्मीर और पाक समस्या आज तक सुलझीनहीं है। चीन से रिश्ते खराब हो रहे हैं।आतंकवाद और माओवाद की कमर भी नहींटूटी है। खेती की हालत खराब है। किसानआत्महत्या पहले से अधिक कर रहा है। पटेलमराठा और गूजर आरक्षण का कोई हलआज तक नहीं निकला है। गंगा रत्ती बराबरभी साफ नहीं हुयी है। लोकपाल नियुक्त करनेकी सरकार में इच्छा शक्ति ही नहीं है। गोहत्यारोकने को कोई अखिल भारतीय कानून तकनहीं बना है। गोमांस का निर्यात और बढ़ रहाहै। धारा 370 कश्मीरी पंडित महंगाई सस्तातेल प्रशासनिक करप्शन दागियांे को जेलसैनिकों को अच्छा खाना हज सब्सिडी डॉलरका मूल्य बंगलादेशी घुसपैठियों कोनिकालना पाक को आतंकी राष्ट्र घोषितकरना और उसका मोस्ट फेवर्ड नेशन कादर्जा तक नहीं छीना गया है।

सबसे खराब बात यह हुयी है कि अच्छे दिनलाने का वादा करने वाले पीएम मोदी केवलभाषण देते हैं या रेडियो पर एकतरफा मन कीबात करते हैं। वे कभी भी प्रैस वार्ता करपत्रकारों के जवाब देने की आज तक हिम्मतनहीं जुटा सकें। लेकिन फिर भी यह माना जासकता है कि विपक्ष के पस्त और बिखरा होनेसे मोदी का आज भी कोई दमदार विकल्पनहीं है। हम तो यहां तक कह सकते हैं किअभी जब तक मोदी सरकार खुद कोई बड़ाजनविरोधी या देश के मूड के खिलाफ गलतकाम नहीं करती हैअगला चुनाव भी केंद्र मेंमोदी ही जीतने जा रहे हैं।    

0उसके होंठो की तरफ़  देख वो क्या कहताहै,

 उसके क़दमों की तरफ़ देख वो कहां जाता है।।           

Monday 22 May 2017

आरोपों की सियासत


आरोपों की सियासत में दोनों पक्ष संदिग्ध?

 

 

 

*जनता अब इस बात को बखूबी समझने लगी है कि कल तक आप जिस पार्टी में थे तब तक वह और उसका मुखिया गंगा की तरह पवित्र कैसे था!*

आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में आजकल एक समानता देखने में आ रही है। आआपा से वरिष्ठ नेता कपिल मिश्रा को निकाल दिया गया तो उनको अहसास हुआ कि आआपा तो भ्रष्ट है। तभी उनको आसमान से यह भी भविष्यवाणी हुयी कि आआपा के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी बेईमान हैं। उधर बसपा के वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जैसे ही पार्टी के पैसे का हिसाब किताब न देने के आरोप में बीएसपी से निकाला गया तो उनको भी सपना आया कि यह पार्टी तो करप्ट है। साथ ही उनको बसपा सुप्रीमो मायावती से अब तक जब तब होती रही बातचीत के रिकॉर्डेड फोन टेप सुनकर ऐसा लगा कि बहनजी तो खुद बेईमान हैं।
संयोग की बात है कि ये दोनों घटनायें लगभग एक ही समय पर हुयीं। इत्तेफाक यह भी था कि जिस दिन कपिल मिश्रा को यह पता चला कि आआपा और केजरीवाल दोनों ही गड़बड़ हैं। उससे अगले दिन ही केजरीवाल दिल्ली विधनसभा में इवीएम पर छेड़छाड़ के अपने आरोप का बाकायदा डेमो करने जा रहे थे। कपिल मिश्रा के आरोप का नतीजा यह हुआ कि इवीएम में गड़बड़ी का केजरीवाल का दावा विधानसभा में बाकायदा प्रदर्शन करने के बावजूद हल्का पड़ गया जिसको मीडिया ने कोई खास भाव नहीं दिया। उधर मीडिया में कपिल मिश्रा के आरोप सर चढ़कर बोलने लगे। अब यह अलग बात है कि इसमें भी पूरी पूरी संभावना है कि कपिल मिश्रा के केजरीवाल द्वारा दो करोड़ अवैध रूप से लेने के आरोप जांच के बाद वास्तव में सही भी साबित हो सकते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि कपिल मिश्रा को यह बात पहले से पता थी तो वे अब तक अपना मुंह बंद क्यों किये हुए थे? कहीं ऐसा तो नहीं उनको आआपा मेें रखकर जो मंत्री का पद दिया गया था। उसके लालच में वे चुप्पी साधे हुए थे? कपिल मिश्रा पर यह भी आरोप है कि वे खुद करप्ट हैं। और किसी दूसरे पक्ष से मोटी रकम खाकर यह सब तमाशा कर रहे हैं। लेकिन उनके खिलाफ इस तरह के कोई ठोस क्या प्राइमरी सबूत भी नहीं है। उधर केजरीवाल पर उनकी ध्ुार विरोधी भाजपा की केंद्र सरकार ने हाथो हाथ सीबीआई एसआईटी और एसीबी मेें कपिल मिश्रा के बयान के आधार पर ऐसे केस दर्ज जांच करानी शुरू कर दी है।
मानो कपिल मिश्रा कोई भगवान हों और केजरीवाल कोई शैतान या राक्षस जिनका दोनों का पुराना रिकॉर्ड देखेते हुए यह मानकर चला जाये कि केजरीवाल कसूरवार होंगे ही और उनको हर हाल में जेल भेजना है। भाजपा की यह रहमदिली या भलमनसाहत ही मानी जानी चाहिये कि उसने केजरीवाल के केस को एनआईए या हवाला वगैरा से जोड़कर उनका लिंक मोओवादियों या आतंकवादियों के ‘‘देषद्रोह’’ के एंगिल से भी जांच की मांग अभी नहीं की। दूसरी तरफ बसपा के नसीमुद्दीन का मामला है। सबको पता है कि बसपा अकेली पार्टी है। जिसने अपने दलित वोट बैंक का खुला सौदा करने की घटिया और नापाक राजनीति शुरू की थी। आज हालत यह हो गयी है कि बसपा के टिकट बोली लगाकर नीलाम होने लगे हैं।
इसका नतीजा यह भी हुआ है कि भ्रष्ट माफिया और बेईमान लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा देेकर बसपा का टिकट खरीद ले रहे थे। जाहिर बात है कि केवल टिकट खरीद लेने से तो कोई प्रत्याशी सिर्फ दलित वोटों के बल पर चुनाव जीत नहीं सकता। हालत यह हो गयी पैसे के लालच में उन बदनाम लोगों को भी कई जगह टिकट दे दिये गये जिनका रिकॉर्ड जनविरोधी समाज विरोधी और दलितों को सताने का था। यह ठीक ऐसा ही मामला था। जैसे थाने का थानेदार अगर रिश्वतखोर होगा तो यह हो ही नहीं सकता कि निचले स्तर के दारोगा दीवान और मुंशी जेब गर्म नहीं करेंगे। ऐसा ही कुछ बसपा में भी चल रहा था। जिसका सबूत नसीमू ने बहनजी से अपनी बातचीत के टेप सार्वजनिक करके बहनजी और अपनी ही नहीं पूरी पार्टी को ही सड़क पर कटोरा लेकर खड़ा कर दिया है।
हालांकि जनता को यह बात पहले से ही पता थी कि बसपा में टिकट को लेकर क्या क्या खेल चलता है। लेकिन अब यह बात एक तरह से मंज़र ए आम पर आ गयी है। ऐसे ही आआपा में केजरीवाल जिस तरह से शुरू से ही दिल्ली की 70 में 67 सीट जीतकर अहंकार मनमानी और प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव जैसे दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाकर वनमैन शो तरीके से पार्टी और सरकार को चला रहे थे। उससे आज नहीं तो कल उनको उनके विरोधी किसी न किसी तरह से घेरने में सफल होने ही थे। दिल्ली के एमसीडी चुनाव में केजरीवाल की पार्टी की बुरी तरह हार से उनके विरोधियों के हौंसले जहां बढ़े वहीं दो करोड़ की गड़बड़ी के सीध्ेा आरोप से केजरीवाल का मॉरल बुरी तरह से गिर चुका है।
अब वे पहले की तरह अपने विरोधियों पर आक्रामक न होकर अपने को बचाव की मुद्रा में पा रहे होंगे। कहने का मतलब यह है कि आजकी सियासत इतनी घटिया खराब और बदनाम हो चुकी है कि आज आरोप लगने के बाद जिस खाने में केजरीवाल और मायावती खड़े हैं। उसी खाने में खुद नसीमुद्दीन और कपिल मिश्रा भी खड़े हैं। *साथ ही भाजपा से भी यह सवाल पूछा जाना चाहिये कि उसको विपक्ष पर लगे आरोप तो एकदम वास्तविक ठोस और सच्चे नज़र आते हैं। जिनकी वो तुरंत रपट दर्ज कर जांच भी करानी शुरू कर देती है। लेकिन जब खुद पीएम मोदी और भाजपा के किसी सीएम जैसे शिवराज सिंह पर कोई गंभीर से गंभीर आरोप भी लगता है तो वह जांच कराने की ज़हमत तो दूर उनके पद से इस्तीफे की बात भी नहीं सोचती।*
आखि़र चाल चरित्र चेहरे का नारा देने वाली पार्टी के ये दो पैमाने क्यों?
*0दूसरों पर तब्सरा जब किया कीजिये,*
*आईना सामने रख लिया कीजिये।।*

Monday 15 May 2017

नरेश चन्द अग्रवाल जी

*सबके मसीहा थे नरेशचंद अग्रवालः*
*नजीबाबाद के लिये थे बेमिसाल!*

 
*–इक़बाल हिंदुस्तानी*

*0आज के दौर में जब कोई अपनी बिरादरीकानेता है तो कोई अपने धर्म के एक गुट कावैसे मेंसमाजसेवी ज्ञानी और शिक्षाविद श्रीनरेशचंदअग्रवाल जी ने नजीबाबाद के हर वर्गका दिलजीता था।*

    श्री नरेशचंद अग्रवाल 87 साल की उम्र में 11मई को इस दुनिया से विदा हो गये। वे 1971 से1977 तक नगरपालिका के ऐसेचेयरमैन रहेजिनकी छवि एक ईमानदारसादगी पसंद औरन्यायप्रिय जननेता की रही।आज भी नगर कीछोटी छोटी गलियांे में भीबनी पक्की सड़कें नकेवल उनके गरीबनवाज़काम की याद दिलातीहैं। बल्कि वे 40 सालबाद भी क्वालिटी केमामले में गड्ढा मुक्त हैं।नगर की कभी बेतरतीबरही सब्ज़ी मंडी कोभी उनके ही कार्यकाल मेंबाकायदा पंक्तिबध्ददुकानों में बनाकर सायेदारबनाया गया था।

दशहरा पर रामलीला ग्राउंड परमेलाआतिशबाज़ी दिवाली मेला होली मेलाईदमिलन होली मिलन पर कवि सम्मेलनमुशायराप्रमुख त्यौहारों पर नगर के चौकबाज़ार कीसजावट और कई दशकों तकअपने निजी खर्चपर हिंदू मुस्लिम भाईचारे कोबढ़ावा देने के लियेसामूहिक रोज़ा अफ़तारकराना उनके उन चंदनेक कामों में शामिलथा। जो वे आयेदिन थोकमें समाजसेवाशिक्षा के प्रचार प्रसार एकताअमन गरीबोें कीमदद के लिये खामोशी के साथकरते रहते थे।उनको यहां एसडीएम रहतेलोकप्रिय कविऔर गायक श्री जेपी गुप्ता केप्रयासों सेसाम्प्रदायिक एकता और सौहार्द केलियेबिजनौर रत्न एवार्ड से भी ज़िला प्रशासनने 2012 में नवाज़ा था।

इसके साथ ही उनको ढेर सारे सम्मानऔरपुरस्कार अपने समाजिक कार्यो के लियेविभिन्नसरकारी और गैर सरकारी संस्थाओंने समयसमय पर दिये थे। नजीबाबाद मेंशिक्षा कामाहौल बनाने से लेकर समाजसेवीअपने बड़ेभाई साहू सुरेशचंद अग्रवाल एवंसाहू रमेशचंदअग्रवाल, टाइम्स ऑफ इंडियाके चेयरमैन रहेसाहू रमेशचंद जैन के साथसहयोग और परामर्शसे उन्होंने एमडीएसएमडीकेवी साहू जैन डिग्रीकॉलेज और रमाजैन कन्या डिग्री कॉलेज सेलेकर आचार्यआर एन केला इंटर कॉलेज तककी स्थापनासे लेकर इन शिक्षा मंदिरों केसंचालनसंयोजन और प्रबंधन में अपने मित्रश्रीसुरेशचंद लाहौटी और कृष्ण अवतारअग्रवालएडवोकेट आदि के साथ नजीबाबादको शिक्षाका हब बनाने में कोई कोर कसरनहीं छोड़ी।

उन्होंने नगर और नागरिकों के हितों कोसदाअपने व्यक्तिगत हितों से उूपर रखा। एकबारचेयरमैनी के चुनाव के दौरान शहर कामाहौलकुछ लोगों ने साम्प्रदायिक बनाने काप्रयासकिया तो वे बुरी तरह नाराज़ हो गये। 1989 मेंउन्होंने एमडीकेवी पोलिंग स्टेशन परबूथकैप्चरिंग की अफवाह पर तेजी से बढ़ रहीभीड़को यह कहकर उल्टे पांव घर लौटा दियाकिचुनाव में उनकी हार जीत इतनी अहमियतनहींरखती जितनी शहर की अमन चैनऔरभाईचारा। उनकी दूरअंदेशी और उदारताही थीकि जैसे ही उन्होंने अपने विरोध मेंचुनाव लड़रहे प्रत्याशी के भतीजे को तनावके माहौल मेंमौके पर आता देखा।

प्यार से समझाकर उनके घर वापस भेजदियाऔर आगे के लिये अपना ही बच्चामानकरताकीद की जब कभी ऐसा ख़तरनाकमाहौल होआरोपी को मौके पर नहीं आनाचाहिये। मैं नहींचाहता चुनाव के चक्कर में मेरेनगर के किसीभी नागरिक को अपमान यानुकसान पहुंचे।1992 में जब बाबरी मस्जिदराम मंदिर विवादचल रहा था। उस समय भीनरेशचंद जी नेनजीबाबाद को दंगे से बचाने मेंबहुत अहम रोलअदा किया था। वे लगातारदोनों वर्गो के लोगोंको समझाते रहे कि हमसबको हमेशा साथसाथ यहीं रहना है। एकदूसरे के बिना काम नहींचलेगा।

इतना ही नहीं कई बार जब दोनों वर्गों केलोगोंने एक दूसरे पर हमला करने के लियेछतों परहथियार लेकर जमा होने कीशिकायत की तो येनरेशचंद अग्रवाल जी काही जीवट और हर वर्गके लोगों पर भरोसा थाकि वे बिना किसी सुरक्षाके दोनों तरफ केचार चार आदमी लेकर उनछतों काआकस्मिक मुआयना कराने देर रात कोअपनेसाथ ले गये। जहां दंगाइयों के इकट्ठाहोनेहथियार जमा करने और बाहर आयेलोगों केद्वारा दंगों का प्रशिक्षण देने की चर्चाआम थी।एक बार नगर के एक कन्या इंटरकॉलेज में बोर्डके एक्ज़ाम के दौरान तलाशीलेने को पहलेमुस्लिम लड़कियों के बुर्केउतरवाये गये। बाद मेंजब लड़कियां पेपरदेकर वापस लौटी तो वे बुर्केगायब हो गये।इस पर शहर में एक वर्ग में तनावफैल गया।

नरेशचंद जी को जब पता लगा। वे मौके परगये।बुर्के तलाश कराये तो वे पास में ही पड़ेहुए कुछतो मिल गये। जिनके नहीं मिले अपनेपास सेपैसा देकर हाथों हाथ नये बुर्के बाज़ारसे मंगवायेऔर मामला सुलझा दिया। ऐसे हीएक बार दोलोगों के आपसी समझौते में एकतय टाइम केबाद एक पार्टी को दूसरी पार्टी ने 6 लाख रू0देने थे। जब तयशुदा समय आयातो दूसरी पार्टीसमझौते से मुकर गयी। नरेशजी ने पहली पार्टीको दिया वचन निभाकरएक मिसाल बना दी।उन्होंने इतनी बड़ी रकमअपने पास से ज़मानतीके तौर पर अदा करदी। ऐसे ही दर्जनोंविधवाओं विकलांगांेअनाथों गरीबों बीमारोंऔर राजनीतिक सेलेकर समाजिक खेलसाहित्यिक सांस्कृतिकशैक्षिक संस्थाओं को वेबड़ी रकम सहायताके तौर पर देते थे।

उनके यहां कोई भी कभी चंदा लेने गया तोकभीखाली हाथ नहीं लौटा। नन्हें मियां केउर्स कासारा खर्च वे कई दशक से अकेले हीदेते आ रहेथे। गरीब छात्र छात्राओं कोमासिक फीसवज़ीफा और कपड़े व किताबेंदेना तो उनकेलिये आम बात थी। यहां तककि अगर उनसेकोई कालेज में अपने बच्चे केप्रवेष की अपीलकरता था तो वे अपने पाससे चंदा गुप्त रूप सेभेजकर उसका दाखि़लाकरा देते थे।

चंद्रा परिवार द्वारा कई साल तकआयोजितमाता कुसुम कुमारी हिंदीतर भाषीहिंदी सम्मानमें जब वे मुख्य अतिथि के तौरपर साधिकारबोलते थे तो प्रोग्राम मंे आयेबड़े बड़े विद्वानलेखक कवि मंत्री गवर्नर औरमनीषी यह देखऔर सुनकर हैरत में रह जातेथे कि यह आदमीनजीबाबाद जैसे छोटे सेकस्बे में एक पालिकाका चेयरमैन उद्योगपतिऔर समाजसेवी होने केसाथ ही पूरे भारत केगैर हिंदी भाषी राज्यों केहिंदी विद्वानों कीसमस्याआंे आवश्यकताओंऔर उनकेसमाधान के बारे में कितनी गहरीरूचिजानकारी और विस्तार से विश्लेषणकरसकता है।

शायद यही खूबी थी कि श्री नरेशचंदअग्रवालजी को उनकी वैश्य बिरादरी ही नहींहर धर्मसमाज जाति क्षेत्र राजनीतिक दलसामाजिकशैक्षिक व साहित्यिक संस्थायेंऔर यहां तक किकभी एक न होने वालेपत्रकार भी उनको अपनामसीहा मानकरउनकी एक आवाज़ पर उनकेसामनेनतमस्तक हो जाया करते थे। इन पंक्तियोंकेलेखक को तो वे अपना मानस पुत्र मानते थे।24 साल पहले जब उन्होंने मुझे संचालकसमृाटप्रदीप डेज़ी छोटे भाई शायर शादाबज़फर औरडा. आफ़ताब नौमानी को होलीमिलन ईदमिलन के गंगा जमुनी प्रोग्राम कीबागडोर सौंपीथी। तब से वे हमारे परिवार केमुखिया औरसंरक्षक और मुख्य सलाहकर होगये थे।  

0 यूं तो आये हैं सभी दुनिया में मरने के लिये,

  मौत उसकी है ज़माना करे अफ़सोसजिसका।