Thursday 28 September 2023

बसपा सांसद बनाम भाजपा सांसद

*दानिश बनाम विधूड़ी: दो एमपी नहीं दो विचारधाराओं का विवाद ?* 

0भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी ने बसपा सांसद दानिश अली को नई संसद में जिन साम्प्रदायिक घृणास्पद और ज़हरीले विशेषणों से संबोधित किया। वे कोई अचानक या भावावेश में लगाये लांछन नहीं थे बल्कि  एक विचारधारा एक सोचे समझे अभियान और बड़े मिशन का हिस्सा है। यह अजीब बात है कि एक तरफ संघ कहता है कि मुसलमान भी हमारे हैं। दूसरी तरफ भाजपा मुस्लिम मित्र बनाकर उनके वोट लेने की कोशिश कर रही है। तीसरी तरफ हमारे पीएम मोदी जी पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने के लिये भाजपा नेताओं को उनके बीच जाने की सलाह देते हैं। लेकिन इस सब कवायद के साथ अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों को ज़लील करने की मुहिम भी जारी है।      

                  -इक़बाल हिंदुस्तानी

      भाजपा के कई आकर्षक नारों में एक नारा रहा है ‘तुष्टिकरण किसी का नहीं लेकिन न्याय सबको।’ लेकिन व्यवहार में ऐसा होता नज़र नहीं आता। संसद में जब भाजपा के एमपी विध्ूाड़ी बसपा एमपी दानिश अली को अपशब्दों से नवाज़ रहे थे। उस समय उनके पीछे बैठे पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद हर्षवर्धन जैसे सीनियर भाजपा नेता हंस रहे थे। इतना ही नहीं उनका बयान केवल संसद के रिकाॅर्ड से हटाया गया और उनको पार्टी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया लेकिन यह लेख लिखे जाने तक उनके खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही होने की खबर नहीं है। सवाल यह है कि क्या अगर ऐसा ही बयान किसी विपक्षी सांसद ने भाजपा सांसद के खिलाफ दिया होता तो सरकार का रूख़ यही होता? मुसलमानों को निशाने पर लेेने की देश में आज हालत यह है कि केरल में सेना के एक जवान ने चर्चा में आने के लिये अपने ही दोस्त से अपनी पीठ पर ब्लेड से पीएफआई खुदवाकर खुद पर इस प्रतिबंधित संगठन के हमले के आरोप में कई मुसलमानों को फर्जी तरीके से फंसाना चाहा लेकिन पुलिस ने मामला खोल दिया। गोहत्या गोमांस और चोरी जैसे मामूली आरोपों में मुसलमानों की माॅब लिंचिंग आम बात हो चुकी है। जिनमें सरकारें ना तो तत्काल सख़्त कानूनी कार्यवाही करती हैं न ही मृतक के परिवार को अकसर मुआवज़ा या नौकरी देती है। कोर्ट के स्टे के बावजूद चर्चित व विवादित बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गयी। लेकिन इसके लिये आज तक किसी को सज़ा नहीं मिली। सपा नेता आज़म खान डाक्टर कफील खान एक्टर शाहरूख खान के बेटे और उमर खालिद व गुजरात दंगों की गैंग रेप पीड़ित बिल्कीस बानो को न्याय मिलता नज़र नहीं आता। बुल्डोज़र की कार्यवाही एकतरफा गैर कानूनी और बदले की भावना से समय समय पर मुसलमानों पर अधिक होती नज़र आती है। एनआरसी  सीएए को मुसलमानों को टारगेट करने के लिये लाया जा रहा था। पहली बार सरकारी सम्पत्ति के नुकसान की वसूली इसके आंदोलनकारियों से उस समय ऐसा कोई कानून मौजूद ना होने के बावजूद की गयी। इसके खिलाफ चलने वाले शाहीन बाग के आंदोलन को कुचलने के लिये पूर्वी दिल्ली में दंगा हुआ और अनेक बेकसूर लोगों को इस दंगे के आरोप में जेल भेज दिया गया। उनमें से कुछ को आज तक ज़मानत नहीं मिली। अनेक कुख्यात अपराधियों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया जिनमें से अनेक बृहम्ण व अल्पसंख्यक समाज के लोगों के मारे जाने की घटनाओं पर विपक्ष ने फर्जी होने का आरोप लगाया। सोशल मीडिया पर मुस्लिम औरतों को बदनाम करने के लिये सुल्ली डील और बुल्ली सेल, मुसलमानों को कपड़ों से पहचान लेने का दावा, सड़क या सार्वजनिक स्थानों पर पांच मिनट की नमाज़ पर भी रोक, तीन तलाक पर अपराधिक कानून बनाना, लव जेहाद और धर्म परिवर्तन के नाम पर मुसलमानों के अंतरधार्मिक विवाहों को रोकना जबकि मुस्लिम लड़कियों के ऐसा करने व मुसलमानों के हिंदू बनने को घरवापसी बताकर सही ठहराना न्याय नहीं कहा जा सकता है। 80 बनाम 20 की लड़ाई असम में मियां म्यूज़ियम बंद करना, मुसलमानों को सब्ज़ी की महंगाई का कसूरवार बताना हलाल बनाम झटका हिजाब विवाद पैगंबर का अपमान करने वाली नूपुर शर्मा के खिलाफ आज तक ठोस कार्यवाही ना होना अतिक्रमण हटाने के नाम पर उत्तराखंड व गुजरात में कई मज़ार हटा देना, मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में एक मुस्लिम बच्चे की दूसरे बच्चो स ेपिटाई कराने के संगीन मामले को समझौता कराकर दबाना, काॅमन सिविल कोड, कश्मीर फाइल और केरल स्टोरी जैसी झूठी और फर्जी फिल्में बनवाकर मुसलमानों को बदनाम करना, हज सब्सिडी खत्म करना, कोरोना जेहाद के नाम पर तब्लीगी जमात के बहाने मुसलमानों को विलेन बनाना, मुस्लिम पहचान से जुड़े शहरों मार्गों और रेलवे स्टेशनों के नाम थोक में बदलते जाना, उत्तराखंड के उत्तरकाशी के पुरूलिया में एक लड़की के अपहरण के आरोप में मुसलमानों को राज्य छोड़ने की धमकी देना, हरिद्वार धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार की खुली धमकी देना, ट्रेन में आरपीएफ के सिपाही द्वारा हेट स्पीच देकर अपने एक अधिकारी की हत्या के बाद मुसलमानों को चुनचुनकर मारना और मीडिया का दिन रात मुसलमानों के खिलाफ चलने वाला झूठा भड़काने वाला और नफ़रती एजेंडा सुप्रीम कोर्ट के बार बार आदेश के बावजूद नहीं रोकना बताता है कि ये सब खुद या अनजाने में नहीं बल्कि एक संगठन एक पार्टी और उसकी सत्ता के इशारे व सपोर्ट संग बांटो और राज करो की सियासत और चुनाव दर चुनाव इसी बहाने जीतने की सोची समझी योजना के तहत होता आ रहा है। दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री के खिलाफ हेट स्पीच के आरोप होने के बावजूद दिल्ली पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती, असम के सीएम पर लंबे समय से करप्शन के आरोप हैं लेकिन भाजपा में आने पर उनको इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। महाराष्ट्र में 70 हज़ार करोड़ के घोटाले के आरोपी को भाजपा डिप्टी सीएम बनाकर उनके खिलाफ जांच की फाइल ठंडे बस्ते में डाल देती है। भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह से लेकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा सहित पक्ष और विपक्ष के उन नेताओं की लंबी लिस्ट है जिनको भाजपा में शामिल हो जाने के बाद ना केवल जांच से आज़ादी मिल गयी बल्कि उनको पद देकर पुरस्कार दिया गया है। यही मामला बसपा सांसद दानिश को गाली देने वाले भाजपा सांसद विधूड़ी का लग रहा है जिनका अतीत पहले भी विवादित रहा है लेकिन उनको भाजपा ने ना तो पार्टी से निकाला और ना ही कोई ठोस कानूनी कार्यवाही की गयी जिससे लगता है कि भाजपा सबको समान न्याय नहीं दे रही है। मुसलमानों के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार अपमान और उत्पीड़ने व अन्याय करने के बावजूद उनसे वोट और सपोर्ट की उम्मीद करना दुश्यंत त्यागी के शब्दों में यही कह सकते है।

0 उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें,

 चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये।।  

 *0लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

महिला आरक्षण

महिला आरक्षण के लिये संसद की सीटें भी बढ़ेंगी ?
0 लेडीज़ को पार्लियामंेट और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिये 128 वें संविधान संशोधन के साथ नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल संसद के दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से पास हो गया है। लेकिन यह कानून नई जनगणना और संसदीय सीटों का नया परिसीमन होने के बाद ही लागू होगा। 2021 में होने वाली जनगणना कोरोना महामारी की वजह से सरकार ने टाल दी थी, लेकिन 2022 या इस साल भी यह क्यों नहीं हुयी और आगे कब तक टलती रहेगी यह कोई नहीं कह सकता। मतलब साफ है कि 2024 के आम चुनाव में महिला आरक्षण लागू होने नहीं जा रहा है। लेकिन यह 2029 के चुनाव में भी लागू हो ही जायेगा यह दावा भी कोई नहीं कर सकता। कांग्रेस सहित विपक्ष और भाजपा सरकार दोनों ही लेडीज़ रिज़र्वेशन का श्रेय लेने की होड़ करते नज़र आ रहे हैं।      
   *-इक़बाल हिंदुस्तानी* 
नई लोकसभा में 888 एमपी बैठने की सीट बनाई गयी हैं। यह दूरदर्शिता का फैसला है। जनगणना और नये परिसीमन के बाद लोकसभा की वर्तमना 545 सीट अगर बढ़ती हैं तो उनके लिये पहले ही व्यवस्था कर दी गयी है। इससे महिलाओं के लिये एक तिहाई सीट रिज़र्व होने का पुरूषों के नेतृत्व पर कोई विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। 1951 में तत्कालीन 489 संसदीय सीटों को बढ़ाकर 494 और 1961 के बाद 522 और अंतिम बार 1971 में 543 नई जनगणना और परिसीमन के बाद किया गया था। इसके बाद यह सवाल उठने लगा कि दक्षिण के जो राज्य देशहित में जनसंख्या नियंत्रण कर परिवार नियोजन कर रहे हैं। अगर उत्तर भारत की तेजी से बढ़ती आबादी के हिसाब से सीटों का परिसीमन कर उनके सांसदों और विधायकों की संख्या बढ़ती है तो इससे एक नया विरोधाभास खड़ा होगा। उत्तर बनाम दक्षिण का विवाद बढ़ता देख तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान में 42 वां संशोधन कर नये परिसीमन को 2001 तक के लिये रोक दिया। इसका मकसद देश में परिवार नियोजन को बढ़ावा देना था। सन 2000 में 91 वां संविधान संशोधन कर एनडीए की वाजपेयी सरकार ने इस रोक को आगामी 25 साल और बढ़ाकर नये परिसीमन की मयाद 2026 कर दी। नये परिसीमन पर इस 50 साल की रोक का मकसद जनसंख्या का टीएफआर 2.1 यानि जन्म और मृत्यु दर समानता पर लाकर स्थिर करना था। हालांकि आज़ादी से पहले ही लिंग के आधार पर होने वाले पक्षपात को खत्म करने की आवाज़ उठने लगी थी। लेकिन फिर भी संविधान सभा की महिला सदस्यों ने उस समय लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण का संविधान प्रावधान करने पर जोर नहीं दिया। संविधान सभा की सदस्य रेणुका राय का कहना था कि भविष्य में जब सबको समान अवसर मिलेंगे तो योग्य महिलाएं जनरल सीटों पर ही अपनी भागीदारी खुद बढ़ाती जायेंगी। बदकिस्मती से ऐसा व्यवहारिक रूप से कई दशक तक भी हो नहीं सका। इसके बाद राजीव गांधी सरकार द्वारा 73 और 74 वें संविधान संशोधन के बाद जब महिलाओं को ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में भी ऐसा ही करने की मांग तेज़ होने लगी। इसके बाद पहली बार 1996 में संसद में महिला आरक्षण बिल आया लेकिन यह पास नहीं हो सका। इसके बाद 2008 में यूपीए सरकार ने यही बिल राज्यसभा में 186 बनाम एक वोट के अंतर से पास कर दिया। लेकिन लोकसभा में सपा बसपा और राजद जैसे यूपीए के घटकों के इसमें ओबीसी व अल्पसंख्यक महिलाओं के लिये अलग से दलितों व आदिवासियों की तरह आरक्षण की मांग पूरी ना होने पर विरोध के चलते यह वहां पास नहीं हो सका और अंत में लोकसभा भंग होने के साथ ही लैप्स हो गया। विपक्ष का अब भी आरोप है कि मोदी सरकार ने यह बिल केवल 2024 में होने वाले संसदीय चुनाव में महिलाओं के वोट खींचने के लिये संसद के नये भवन में पेश किया है। अन्यथा इसको लागू करने के लिये एक तयशुदा प्रोग्राम पेश किया जाना चाहिये था। इसके साथ ही आरक्षण का विस्तार राज्यसभा और राज्य की विधान परिषदों में भी किये जाने की मांग हो रही है। इसके साथ ही ओबीसी और अल्पसंख्यक महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये आरक्षण में आरक्षण की मांग अभी भी जारी है। लेकिन वर्तमान सरकार के तौर तरीकों और इरादों को देखकर लगता नहीं वह इस बिल में फिलहाल कोई संशोधन पेश करने को राजी होगी। ऐसा इसलिये भी लग रहा है क्योंकि ओबीसी आरक्षण के लिये जाति की गणना होना ज़रूरी है। जिसके लिये मोदी सरकार किसी कीमत पर तैयार नहीं है। विधानमंडलों में महिला आरक्षण जब लागू होगा तब होगा लेकिन भविष्य में यह भी देखना होगा कि प्रधान और चेयरमैन की तरह उनके पति पिता भाई पुत्र या ससुर उनको कठपुतली बनाकर बैकडोर से अपनी सत्ता ना चलाने लगें। इसके लिये समतावादी नीतियां लागू कर समाज में महिलाओं का लगातार हर क्षेत्र में सशक्तिकरण करने के लिये उनका आर्थिक और शैक्षिक स्तर उठाना होगा। यह आरक्षण हालांकि फिलहाल 15 साल के लिये लागू होना है। लेकिन दलितों व आदिवासियों के लिये 70 साल से लागू आरक्षण भी सिवाय सांकेतिक के उनकी दयनीय स्थिति में कोई आमूल चूल बदलाव नहीं कर पाया है।

0 हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये

आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी

शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिये।

 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीपफ एडिटर हैं।*

Wednesday 6 September 2023

कोटा में बढ़ते सुसाइड...

*कोटाः कैरियर बनाने के चक्कर में जान दांव पर?* 

0 हर बच्चा पढ़ लिखकर डाॅक्टर इंजीनियर या कोई बड़ा प्रोफेशनल बनना ही चाहे यह ज़रूरी नहीं है। लेकिन उसके माता पिता अकसर यही चाहते हैं कि जो वे खुद नहीं बन पाये या जो वे हैं या फिर वे जो सपने अपने बच्चो के लिये देखते हैं। उनके बच्चे को हर हाल में हर कीमत पर और हर जुगाड़ से वही बनना है। यहीं से बच्चो और अभिभावकों का द्वन्द्व शुरू होता है। यह माना जा सकता है कि मांबाप कभी भी बच्चो का बुरा नहीं चाहते लेकिन यह भी सही है कि वे अंजाने में ही बच्चो का बुरा कर बैठते हैं। मिसाल के तौर पर कोटा में जो आजकल बच्चो की आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। उसके पीछे बड़ों की यही ज़िद है कि बच्चो को हर हाल में पढ़ना ही होगा।      

                  -इक़बाल हिंदुस्तानी

      राजस्थान की कोटा पुलिस के अनुसार इस साल अब तक जेईई और नीट क्वालिफाई करने के लिये कोचिंग करने वाले 23 छात्र छात्राओं ने आत्महत्या कर ली है। जबकि 2015 में 17, 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4, 2021 में शून्य और 2022 में 15 बच्चो ने अपनी जान दी थी। उच्च शिक्षा लेकर अपना कैरियर बनाने के लिये हर साल यहां 2 लाख बच्चे 4 हज़ार टीचर से कुल 10 कोचिंग सेंटर में पढ़ने आते हैं। इनमें से 7 बहुत बड़े जाने माने कोचिंग सेंटर हैं। यहां इन बच्चो के लिये लगभग 4 हज़ार होस्टल और 40 हज़ार से अधिक पेयिंग गेस्ट सेंटर भी हैं। राजस्थान सरकार ने इस साल बच्चो की बढ़ती आत्महत्यायें रोकने के लिये कुछ कदम उठाये हैं। जिनमें फिलहाल हर माह होने वाले टेस्ट पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। प्रशासन का मानना है कि टेस्ट होने के बाद उनमें असफल रहने वाले छात्र ही अकसर अपनी जान दे रहे हैं। इसके साथ ही हाॅस्टल की छत के पंखों में विशेष प्रकार के स्प्रिंग लगाये जा रहे हैं जिससे उनमें लटकने पर दम ना घुटकर बच्चा अपने वज़न से सीधे ज़मीन पर सुरक्षित आ जाये और उसकी जान बच जाये। हाॅस्टल में एंटी सुसाइड नेट भी लगाये जा रहे हैं। जिससे छात्र के हाॅस्टल की किसी स्टोरी से कूदकर जान देने के प्रयास को जाल में फंसने से बचाया जा सके। यह सारी कवायद 27 अगस्त को दो और बच्चो के द्वारा टेस्ट में फेल होने पर आत्मघाती कदम उठाने के बाद की गई है। हालांकि पुलिस प्रशासन सरकार और बच्चो के घरवाले भी जानते हैं कि ये केवल वक्ती तौर पर उठाये जाने वाले एहतियाती कदम हैं। जिनसे कुछ समय के लिये बच्चो का बचाव हो सकता है। लेकिन उनके आत्महत्या से रोकने लिये उनकी काउंसिलिंग और साथ ही माता पिता का उन पर कुछ खास बनने का बेजा दबाव खत्म करना होगा। दरअसल कोटा में बढ़ती छात्र आत्महत्याओं ने सीएम अशोक गहलौत को चिंता में डाल दिया है। उन्होंने 18 अगस्त को कोचिंग सेंटर के संचालकों की एक मीटिंग कर बढ़ती सुसाइड के लिये उनकी ज़िम्मेदारी तय करने की बात कहकर पुलिस प्रशासन को कोचिंग सेंटर पर सख़्ती करने का इशारा दे दिया। मुख्यमंत्री ने खासतौर पर एलन नामक सबसे मशहूर कोचिंग सेंटर को निशाने पर लेते हुए कहा कि कुल 21 में 14 छात्र आपके सेंटर के ही जान देने वालों मेें शामिल हैं। हालांकि इसकी वजह यह भी है कि हर साल जो दो लाख बच्चे यहां कोचिंग लेने आते हैं। उनमें से पिछले साल भी एक लाख 25 हजार केवल इसी जाने माने संेटर पर पढ़ने आये थे। इस सेंटर का दावा है कि उसने बच्चो की काउंसिलिंग करने को 72 काउंसिलर तैनात कर रखे हैं। लेकिन इस सेंटर के बच्चो की बड़ी संख्या देखते हुए ये उूंट के मुंह में ज़ीरा यानी 1700 बच्चो पर एक काउंसिलर ही उपलब्ध है। असली प्राॅब्लम यह है कि बच्चो के मातापिता यह समझने को तैयार नहीं हैं कि हर बच्चा पढ़ना नहीं चाहता हर बच्चा डाॅक्टर इंजीनियर नहीं बनना चाहता हर बच्चा अपने घर परिवार और रिश्तेदार व दोस्तों से अलग रहने की शक्ति नहीं रखता। हर बच्चे में इन मुश्किल और थकाउू व उबाउू कोर्स को करने की प्रतिभा और साहस नहीं होता। हर बच्चा उतनी मेहनत और लगन नहीं रखता जितनी इन कोर्स को करने के लिये चाहिये। हर बच्चे में वो शौक चाहत और सेवा की भावना नहीं होती जो इन कोर्स को करने के बाद डाॅक्टर इंजीनियर बनकर बाद में नौकरी या अपना क्लीनिक व अस्पताल शुरू करने लिये चाहिये। बच्चो को अपनी ज़िद के सामने आत्महत्या कर मर जाने तक के लिये जोखिम लेने वाले मातापिता कभी बच्चे से उसके मन की बात जानने की कोशिश नहीं करते कि वह क्या चाहता है? आजकल बच्चे मोबाइल लिव इन रिलेशन और नशे के भी शिकार होने लगे हैं। उनके मातापिता को अपने बच्चे के बारे मेें कभी पता ही नहीं होता कि वह वहां रहकर जी जान से पढ़ रहा है या मौज मस्ती और टाइम पास कर रहा है? ऐसे में जब वह अचानक टेस्ट या परीक्षा में नाकाम होता है तो मातापिता उस पर खूब गुस्सा नाराज़गी और दुख जताने लगते हैं। ऐेसे में या तो बच्चा कोचिंग और घर छोड़कर हमेशा के लिये कहीं भाग जाता है या फिर अपनी जान देने के अलावा कोई दूसरा रास्ता उसको नज़र ही नहीं आता। हमार कहना है कि बच्चे उनके मातापिता और उनके कोचिंग सेंटर को यह समझना चाहिये कि हर बच्चा ना तो पास हो सकता है और ना ही उसकी रूचि ये सब करने में होती है और साथ ही उनमें से अनेक में इतनी प्रतिभा भी नहीं होती इसलिये बच्चो को उनकी पसंद सामर्थ और प्रतिभा के हिसाब से पढ़ने दें।

 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*