Wednesday 24 January 2018

हज सब्सिडी खत्म...

हज सब्सिडी ख़त्म करने का नाटक!
 हज सब्सिडी ख़त्म करके मोदी सरकार ने एक तीर से कई शिकार किये हैं! एक तरफ़ केंद्र सरकार ने हिंदू कट्टरपंथियों को खुश किया है कि जो काम कांग्रेस मुस्लिम वोटबैंक के नाराज़ होने के डर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं कर रही थी। वह मोदी सरकार ने 2022 की सीमा ख़त्म होने से भी पहले कर दिया है। दूसरी तरफ़ हाजियोें के नाम पर एयर इंडिया को मिलने वाली 600 करोड़ की सब्सिडी ख़त्म कर उसको दिवालिया बनाने और अडानी अंबानी को बेचने की ज़मीन भी तैयार हो गयी हैै।

      कंेद्र सरकार जून माह में एयर इंडिया को चार प्राईवेट कंपनियों के हाथों बेचने जा रही है। अब तक एयर इंडिया इतने अधिक घाटे और नालायकी के बावजूद केवल मुसलमानों के हज के बहाने सरकार से हासिल सब्सिडी से ही चल रही थी। सरकार हाजियों से इकॉनोमी क्लास के हज के 2लाख 11 हज़ार रूपये वसूल रही थी। सरकार की निगरानी में हज होने से एयर इंडिया की हाजियों को मनमाने किराये पर ले जाने के मामले में मोनोपोली होने से एक तरह से खुली लूट मची हुयी थी। हाजी चाहकर भी किसी और प्राइवेट विमान सेवा का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।

एयर इंडिया प्रति हाजी किराया57000रूपया वसूल रही थी। जबकि रियाद का जेट किराया 12000 रूपये तय है। अगर किसी निजी विमान सेवा को दो लाख हज यात्री बल्क में मिलेंगे तो वह हो सकता है कि ग्लोबल टेंडर लेने की होड़ मंे यह किराया घटाकर8 से 10 हज़ार ही ले। ऐसा करने से अकसर आधे खाली जाने वाले विमान भी पूरी तरह भरकर चलेंगे। यह बात कहने सुनने मंे भले ही अच्छी लगती हो कि किसी सेकुलर देश में किसी भी वर्ग के धार्मिक कामों के लिये सरकार को आर्थिक सहयोग नहीं करना चाहिये। लेकिन हिंदू तीर्थ यात्रियों की सरकारी सब्सिडी लगातार बढ़ती जा रही है।

मध्य प्रदेश उत्तराखंड और यूपी सरकार कैलाश मानसरोवर अमरनाथ और श्रवण यात्रा के नाम पर एक लाख रूपये प्रति यात्री तक खर्च कर रही है। यह बात भाजपा और उसकी सरकारें खुलकर स्वीकार नहीं करती कि वे अपने राज्यों व देश को बिना संविधान संशोधन किये व्यावहारिक रूप से एक तरह से हिंदू राष्ट्र बनाती जा रही है। जहां मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यकों को मिलने वाली थोड़ी बहुत सरकारी सुविधायें धर्मनिर्पेक्ष संविधान की दुहाई देकर सेकुलर सरकार के नाम पर बंद की जा रही हैं। लेकिन दूसरी तरफ हिंदू तुष्टिकरण के लिये रोज़ नई नई स्कीमें शुरू की जा रही हैं।

हिंदू साम्प्रदायिकता की सियासत चल ही इसी बात पर रही है। जब तक केंद्र में गैर भाजपा सरकार थी तब तो धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर उन सरकारों पर मुसलमानों का तथाकथित तुष्टिकरण करने का आरोप हिंदू वोटों का ध््रुावीकरण भाजपा के पक्ष में करने में मददगार होता था। अब जबकि सेंटर में मोदी की पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार राज कर रही है तब यह बात समझ से बाहर है कि वे हज सब्सिडी को ख़त्म करने को लेकर दोहरा रूख़ क्यों अपना रहे हैंजहां तक हज सब्सिडी का सवाल है। इसके लिये खुद मुसलमान ख़त्म करने पर लंबे समय से राज़ी रहे हैं।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी 2012 में सरकार को आदेश दे चुका है कि वह दस साल के भीतर मुसलमानों को हजयात्रा के दौरान दी जाने वाली सब्सिडी धीरे धीरे ख़त्म करे। यह संभवतया पहला मौका है कि किसी वर्ग की सब्सिडी ख़त्म होने का उसी वर्ग द्वारा न केवल स्वागत किया जा रहा है बल्कि यह भी मांग की जा रही थी कि यह नेक काम सरकार दस साल में नहीं पहले ही पूरा कर दे।

     बहुत कम लोगों को हज सब्सिडी का इतिहास और इसकी आरंभिक पृष्ठभूमि का ज्ञान होगा कि कैसे पानी की जहाज़ से की जाने वाली हज यात्रा की लागत लगातार यात्री कम होते जाने से महंगी होते जाने के बाद जब सरकार ने इसका किराया बढ़ाने का प्रस्ताव किया तो मुस्लिम समाज ने इसका जमकर इस आधार पर विरोध किया कि ऐसा करने से उनका एक धार्मिक कर्तव्य पूरा होना कठिन होता जायेगा। चूंकि हज यात्रियों के अलावा बाकी लोगों ने हवाई यात्रा का विकल्प उपलब्ध होने के कारण जलयात्रा को थकाऊ और लंबा समय लगने से लगभग छोड़ दिया था।

इसलिये 1954 में सरकार ने मुस्लिम समाज के सामने यह विकल्प रखा कि वह अगर जलयात्रा की जगह हवाई यात्रा करने को राज़ी हो जाये तो ऐसा करने से दोनों के यात्रा व्यय में जो अंतर आयेगा उसकी पूर्ति सब्सिडी के रूप में सरकार कर देगी। मुस्लिम समाज को यह तर्क गलत नहीं लगा। उसने सोचा ऐसा करने से न केवल उसकी हजयात्रा सुगम हो जायेगी बल्कि उस पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी नहीं बढ़ेगा। इसके बाद यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा।

हालांकि हिंदूवादी संगठनों ने इसे मुस्लिम समाज का तुष्टिकरण बताकर इसका समय समय पर विरोध भी किया लेकिन खुद भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए की वाजपेयी सरकार भी संवेदनशील मामला होने से हज यात्रा की बढ़ती सब्सिडी को समाप्त करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं हो सकी। एयर इंडिया की सेवा का स्तर भी बेहद घटिया रहा है। यह हालत तब है जबकि सऊदी सरकार हज पर जाने वाले यात्रियों की सहायता के लिये एयर इंडिया को एक तरफ का तेल निःशुल्क देती है। साथ ही सऊदी सरकार धार्मिक भावना का सम्मान करने के लिये हजयात्रा के लिये जाने वाले विमानांे से किसी प्रकार का हवाई अड्डा शुल्क भी नहीं वसूलती।

लेकिन वह एक तरफ से हज यात्रियों को वापस लाने का काम किफायती दर पर अवश्य करती है। 2007 में सरकार ने प्रति हाजी 47,454 रु. एयर इंडिया को भुगतान किया था। हज की बजाये जो लोग उमराह करने कभी भी सऊदी अरब जाते हैं तो वे मात्र 18,000 रु. तक ख़र्च कर रिटर्न एयर टिकट किसी भी विदेशी या देसी प्राइवेट फ्लाइट का आराम से हासिल कर लेते हैं।

0 उसके होंठों की तरफ न देख वो क्या कहता है,

  उसके क़दमों की तरफ देख वो किधर जाता है।

Islamic/hindu science

वुसतुल्लाह ख़ान का लेख
'गाय के पेशाब से कैंसर का इलाज..ये भी तजुर्बा है'
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दिवंगत राष्ट्रपति जनरल ज़िया-उल-हक़ ने एक कारनामा ये भी किया था कि पाकिस्तान में इस्लामिक साइंस का परिचय करवाने के लिए दो बड़ी अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस करवाईं.

एक 1973 में जिसका सारा खर्चा हमारी जेब से गया और दूसरी 1987 में होने वाली इस्लामिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉन्फ़्रेंस जिसका आधा खर्चा यानी चार लाख डॉलर सऊदी सरकार ने दिया.

दोनों कॉन्फ़्रेंसों में पाकिस्तान और दूसरे मुस्लिम देशों के साइंसदानों ने सौ से अधिक साइंटिफ़िक पेपर पढ़े.

काहिरा की अल अज़हर यूनिवर्सिटी के मोहम्मद मुतलिब ने साबित किया कि आइंस्टीन की थियरी ऑफ़ रिलेटिविटी बकवास है, असल में तो पृथ्वी अपने भ्रमण पथ पर इसलिए ठीक-ठीक घूम रही क्योंकि पहाड़ों ने पृथ्वी के सीने पर पैर जमा के उसका संतुलन बना रखा है.

अगर पहाड़ उड़ जाएं तो पृथ्वी भी अंतरिक्ष में सूखे पत्ते जैसे उड़ने लगे और सुरमा हो जाए.

पाकिस्तान काउंसिल ऑफ़ साइंस एंड रिसर्च के डॉक्टर अरशद अली बेग़ ने किसी समाज में छल कपट की मात्रा नापने के फ़ॉर्मूले से ये साबित किया कि पश्चिमी देशों में छल-कपट का लेवल 22 है. मगर एक पश्चिमी देश पुर्तगाल में 14 है.

पाकिस्तान में छल कपट की क्या मात्रा है, डॉक्टर साहब बताना भूल गए.

डिफ़ेंस साइंड एंड टेक्नोलॉजी संस्था के डॉक्टर सफ़दर जंग राजपूत ने बड़े अनुसंधान के बाद साबित किया कि मांस से बने इंसान के साथ-साथ आग से बने जिन्न भी हमारे आज़ू-बाज़ू रहते हैं मगर उनसे धुआं इसलिए नहीं निकलता क्योंकि उनका जिस्म मीथेन गैस से बना है.

पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन के एक वैज्ञानिक बशीरूद्दीन महमूद के पेपर का निचोड़ ये था कि जिन्न चूंकि आग से बने हैं अगर उन्हें किसी तरह काबू कर लिया जाए तो उनकी एनर्जी से भारी मात्रा में बिजली पैदा की जा सकती है.

मुझे ये पुरानी साइंस की रिसर्च हिंदुस्तान टाइम्स में पिछले हफ्ते छपने वाली उस रिपोर्ट से याद आ गई जिसके अनुसार दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने ह्यूमन रिसोर्स और साइंस के मंत्रालयों के पैसे से एक वर्कशॉप की जिसमें 200 साइंसदानों ने इस बात पे सिर जोड़ा कि पंचगव के इंसानी फ़ायदे पर रिसर्च के लिए अलग से गौ विज्ञान विश्वविद्यालय बनाया जाए.

इस वर्कशॉप में उत्तराखंड के वेटरीनरी प्रोफ़ेसर आर एस चौहान ने चार गायों पर तजुर्बा करके साबित किया कि गाय के पेशाब से कैंसर का इलाज संभव है.

राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि गाय अकेला ऐसा पशु है जो ऑक्सीजन अंदर ले जाता है और ऑक्सीजन ही बाहर निकालता है.

मुझे लगता है अगले वर्ष का नोबेल पुरस्कार श्री वासुदेव के लिए पक्का.

मैं तो समझा था कि ज्ञान जनरल ज़िया-उल-हक़ की इस्लामिक साइंस कॉन्फ़्रेंसों से शुरू होकर नरेंद्र मोदी की गणेश जी के सिर की प्लास्टिक सर्जरी वाली साइंटिफ़िक थियरी पर ख़त्म हो गया होगा. मगर मैं शायद ग़लत सोच रहा था.

ज्ञान तो वो दौलत है जिसे जितना बांटा जाए उतना ही बढ़ता है.

इस ऐतबार से भारत और पाकिस्तान में ज्ञान बंट नहीं रहा बल्कि लुट रहा है तो फिर लूट लो दोनों हाथों से और नारा लगाओ 'जय हो चेतना की'.
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पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
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Thursday 18 January 2018

तोगड़िया

*मोदी राज में विश्व हिंदू नेता असुरक्षित?*

विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया अपने एनकाउंटर की आशंका जता रहे हैं! अभी लोग अनुमान लगा ही रहे थे कि उनको किससे ख़तरा हो सकता है। तोगड़िया का ताज़ा बयान आया है कि दिल्ली के राजनीतिक बॉस यानी पीएम मोदी के इशारे पर उनको परेशान किया जा रहा है।

 

विहिप नेता तोगड़िया का आरोप है कि उनको मोदी के इशारे पर क्राइम ब्रांच के कमिश्नर जे के भट्ट एक षड्यंत्र के तहत परेशान कर रहे हैं। उनका अपने आरोप की पुष्टि के लिये दावा है कि अगर भट्ट और मोदी की फोन पर हुयी बातचीत सार्वजनिक कर दी जाये तो सच सामने आ जायेगा। तोगड़िया का यह भी दावा है कि आरएसएस के प्रचारक संजय जोशी के खिलाफ सन् 2005 में जो सेक्स सीडी चर्चा में आई थी। वह फर्जी थी। वह सेक्स सीडी किसने बनाई थी। उनके नाम भी तोगड़िया समय आने पर सार्वजनिक करने की बात कर रहे हैं।

उनका यह भी कहना है कि आईबी ही उनके खिलाफ आजकल स्लेक्टिव वीडियो मीडिया चैनलों को दे रहा है। तोगड़िया को यह सब लोकतंत्र के खिलाफ लगता है। यह बात भी सबको पता है कि संघ प्रचारक जोशी का विवाद भी मोदी के साथ रहा है। यह भी चर्चा है कि मोदी का विवाद तोगड़िया के साथ भी रहा है। तोगड़िया का यहां तक कहना है कि उनकी हिंदू हेल्पलाइन से जुड़े वर्कर्स और डाक्टर्स तक को केंद्र के इशारे पर खुफिया एजेंसियां परेशान कर रही हैं। उनका आरोप है कि उनके खिलाफ केंद्र के इशारे पर राजस्थान और गुजरात में पुराने अपराधिक केस चालू किये गये हैं।

गंगापुर की अदालत के वारंट के बहाने राजस्थान और गुजरात पुलिस उनको पकड़ने घर आई थी। तोगड़िया को किसी ने डरा दिया कि उनका एनकाउंटर करने पुलिस उनको वारंट के बहाने साथ ले जाने आई है। यह पता लगने पर तोगड़िया घर से चुपचाप अकेले बाहर निकले और एक ऑटो में बैठकर दूर भाग निकले। तोगड़िया कुछ समय बाद एक पार्क में बेहोश मिले थे। बाद में उनको पुलिस ने अस्पताल में भर्ती कराया। उधर राजस्थान की सीएम का कहना है कि उनके खिलाफ न तो कोई वारंट जारी हुआ है न ही उनको पकड़ने राज्य की पुलिस उनके घर कभी गयी।

सवाल यह है कि फिर कौन है जो उनको पुलिस की वर्दी में घर से पकड़ने गया था?सवाल यह भी है कि आखि़र संघ परिवार का विश्व स्तर का इतना बड़ा नेता ही अगर जैड ग्रेड की सुरक्षा मिलने के बाद भी सुरक्षित नहीं है और उसको सबक सिखाने के लिये किसी राजनीतिक बॉस के इशारे पर इस तरह बेदर्दी और बेशर्मी से सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करके गैर कानूनी तरीके से डराया धमकाया जा सकता है तो विपक्षी और विरोधी सोच के असहमत लोगों के साथ क्या कुछ नहीं होता होगा? संघ का दावा है कि विहिप भारतीय मज़दूर संघ और भारतीय किसान संघ का नेतृत्व बदला जाना है।

इसी से बचने के लिये तोगड़िया ने यह नाटक किया है। आरएसएस के ये तीनों अनुसांगिक संगठन समय समय पर मोदी की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने की हिम्मत अभी भी जुटा लेते थे। उधर मोदी जब से 2014 का चुनाव जीतकर पीएम बने हैं। उनको लगता है कि भाजपा या संघ की वजह से नहीं वे खुद अपने बल पर पीएम बने हैं। यही वजह है कि मोदी वनमैन शो सरकार चला रहे हैं। उनको विरोध तनिक भी सहन नहीं है। तोगड़िया ने उनकी पोल खोल दी है।

जनसंघ के बलराज मधोक और भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी की दुर्गत से तोगड़िया को पहले ही सबक ले लेना चाहिये था कि संघ में उनका इस्तेमाल पूरा कर उनको बाहर फेंके जाने का समय आ गया है। अगर वास्तव में उनको मोदी ही नहीं चाहते है तो उनको आज नहीं तो कल किसी न किसी बहाने विहिप ही नहीं संघ परिवार से बाहर जाना ही होगा। उनको समझना चाहिये कि संघ एक फासिस्ट संगठन है। जहां किसी आदमी का यूज़ एंड थ्रो होना आम बात मानी जा सकती है।

तुम्हारे घर में दरवाज़ा है लेकिन, तुम्हे ख़तरे का अंदाज़ा नहीं है,

हमें ख़तरे का अंदाज़ा है लेकिन, हमारे घर में दरवाज़ा नहीं है।

4 जज

*सुप्रीम कोर्ट: जज और क्या करते?*

0सबसे बड़ी अदालत के चार सीनियर जज जस्टिस जे चेलमेश्वर  रंजन गोगोई मदन बी लोकुर व कुरियन जोसफ़ ने चीफ़ जस्टिस के तौर तरीकों को लेकर अपनी नाराज़गी और चिंता जनता के सामने रखकर सराहनीय पहल की है! लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है।

 

सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ जजों ने पिछले दिनों मीडिया के सामने आकर न्याय देने की प्रणाली मुख्य न्यायधीश के काम करने के तरीकों और हाईकोर्ट की स्वतंत्रता पर अपनी नाराज़गी और चिंता जताई। इस पर दो तरह की प्रतिक्रियायें सामने आ रही हैं। एक वर्ग का कहना है कि सीनियर जजों ने इस तरह से सबसे बड़ी अदालत की प्रतिष्ठा को कम कर दिया है। उनका यह भी कहना है कि अगर उनको कोई भी शिकायत थी तो उनको अपनी बात सुप्रीम कोर्ट के अंदर ही रखनी चाहिये थी। साथ ही मोदी सरकार समर्थक यह दावा भी कर रहे हैं कि चीफ जस्टिस का यह अधिकार होता है कि वह कौन सा केस किस बैंच को सुनवाई के लिये रोस्टर बनाते हैं।

एक तरह से वे मुख्य न्यायधीश के साथ खड़े नज़र आते हैं। उधर दूसरे वर्ग का मानना है कि चारों सीनियर जजों ने जनता की अदालत में जाकर बिल्कुल ठीक कदम उठाया है। इनको यह भी लगता है कि संविधान के हिसाब से अगर चीफ़ जस्टिस नहीं चल रहे हैं तो उन पर भी सवाल उठाया जा सकता है। इस वर्ग का यह भी कहना है कि जब चारों जजों ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखी और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुयी तो वे इस तरह अपनी बात जनता के सामने रखने के अलावा और क्या करते?दोनों वर्गों की बात अपनी अपनी जगह पहली नज़र में सही लगती है।

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अंदर आपसी बातचीत से निबट जाता तो इन जजों को जनता के बीच आकर मीडिया के सामने अपनी बात क्यों रखनी पड़ती? रहा सवाल सुप्रीम कोर्ट की अपनी प्रक्रिया का, तो अगर उसका ठीक और निष्पक्षता से पालन हो रहा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। इसके अलावा इन न्यायधीशों के पास एक रास्ता यह था कि वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन और सब जजों को नियुक्त करने वाले प्रेसीडेंट से इस मामले की शिकायत करते।

इस बारे में कार्यवाही की आशा रखने वाले लोग या तो मासूम हैं या फिर शातिर, क्योंकि जब आरोप यह हो कि चीफ जस्टिस मोदी सरकार के पक्ष में झुकते नज़र आ रहे हैं तो ऐसे में राष्ट्रपति से शिकायत का क्या नतीजा निकलता? क्या हमारे प्रेसीडेंट इतने आज़ाद और अधिकार सम्पन्न हैं कि वे बिना मोदी सरकार की सहमति के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को कोई दिशा निर्देश जारी कर सकें?इतना ही नहीं कोर्ट की परंपराओं और नियम कानून की जानकारी रखने वाले बता सकते हैं कि जिन फांसी के मामलों को प्रेसीडेंट के पास दया याचिका के रूप में माफी के तौर पर भेजा जाता है।

उन पर फैसला करने लिये भी राष्ट्रपति को गृह मंत्रालय से रिपोर्ट की ज़रूरत होती है। एक तरह से वे बिना सरकार की मर्जी के ऐसे मामलों में कोई फैसला नहीं कर सकते। चार जजों का यही कहना था कि चीफ जस्टिस उनमें से ही पहले हैं। बेशक उनको अनुशासन और प्रभावी कार्यवाही के लिये केस किसी भी पीठ को भेजने का अधिकार है। लेकिन यह अधिकार मनमाना या परंपरा तोड़कर किसी खास मकसद से सरकार को खुश करने की इजाज़त भी नहीं देता। और कुछ हो या न हो लेकिन सच सामने आ गया है।

0 इंसाफ़ ज़ालिमों की हिमायत में जायेगा,

यह हाल है तो कौन अदालत में जायेगा।।

Wednesday 10 January 2018

आधार डाटा लीक

आधारः पुरस्कार के बदले एफ़आईआर?

0एक अख़बार ने आधार की सुरक्षा मंे कमी का मुद्दा उठाया। उसकी रिपोर्टर ने एक स्टिंग ऑप्रेशन करके इस गोरखधंधे का पर्दाफ़ाश किया। होना तो यह चाहिये था कि उस अख़बार और पत्रकार को शाबाशी और सुरक्षा दी जाती। लेकिन उल्टा उसके खिलाफ रपट दर्ज हो गयी। सरकार एक तरह से पुलिस का साथ न देकर चोर का साथ देती नज़र आई। इसका विरोध हुआ है।   

          

  दि ट्रिब्यून’ अख़बार ने कुछ दिन पहले एक ख़बर छापी थी । उस ख़बर में बताया गया था कि आप 500 रू. मंे देश के किसी भी नागरिक का आधर डाटा हासिल कर सकते हैं। कई बार ऐसे दावे हवा में किये जाते हैं। इस अख़बार की बहादुर संवाददाता रचना खेरा ने इस जानकारी की पुष्टि करने के लिये आधार डाटा लीक करने वाले गिरोह का बाकायदा स्टिंग कर दिया। रिपोर्टर ने एक आम आदमी बनकर इस गिरोह से संपर्क किया। मांग के अनुसार गिरोह को500 रू. का भुगतान पेटीएम के द्वारा कर दिया गया। दावे के मुताबिक इस पत्रकार को गिरोह ने 10 मिनट के अंदर एक लॉग इन आईडी और पासवर्ड उपलब्ध करा दिया।

इस आईडी और पासवर्ड से किसी के भी आधार का पूरा विवरण खंगाला जा सकता था। जो भी आधार नंबर आप फीड करेंगे। उसका नाम पता पोस्टल कोड फोटो फोन नंबर और ईमेल आईडी आपके सामने कुछ ही पल में हाज़िर हो जायेगी। इसके बाद रिपोर्टर ने किसी आधार नंबर की डिटेल का पिं्रट निकालने की इच्छा जताई तो उसका300 रू. अलग से सुविधा शुल्क मांगा गया। रिपोर्टर ने वो भी अदा कर दिया तो आधार का पिं्रट निकालने वाला एक सॉफ्टवेयर भी तत्काल मिल गया। इसके बाद आधार की सुरक्षा के सरकारी दावे हवा हवाई साबित हो गये।

इस सनसनीखेज़ और खोजपूर्ण साहसी खुलासे के बाद होना तो यह चाहिये था कि अख़बार को शाबाशी और महिला पत्रकार को इस स्टिंग के लिये सुरक्षा व पुरस्कार मिलता। लेकिन उल्टा अख़बार को इस कारनामे के लिये डराया धमकाया गया। हद तो तब हो गयी जबकि संवाददाता रचना खेरा के खिलाफ विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने आईपीसी की धरा 419, 420, 468और471 के अंतर्गत और आईटी एक्ट के तहत रपट दर्ज करा दी। पत्रकार पर तरह तरह के हथकंडो से ख़बर का खंडन करने का दबाव भी बनाया गया।

इसके बाद एडिटर्स गिल्ड और देश के निष्पक्ष लोग इस मामले में अख़बार और पत्रकार के पक्ष में तथा सरकार के खिलाफ जोरदार आवाज़ उठाने लगे। उनका कहना था कि यह सरकार की चोरी और सीनाज़ोरी है। यह तो वही बात हो गयी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। तमाम फ़ज़ीहत और किरकिरी होने के बाद सरकार की तरफ से एक केंद्रीय मंत्री ने सफाई दी कि रपट में पत्रकार और अख़बार को नहीं अज्ञात लोगों को कानून की ज़द में लाया जायेगा। जनता का भरोसा बनाये रखने और गुस्सा शांत करने को अब यह ख़बर भी आ रही है कि सरकार आधार डाटा की सुरक्षा के लिये द्विस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था करने की योजना बना रही है।

इस संदर्भ मेें सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी व्यवस्था कई बार दे चुका है कि किसी भी ख़बर को आधार बनाकर पत्रकार या मीडिया के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही तब तक नहीं की जानी चाहिये। जब तक कि इस आरोप के पुख़्ता प्रमाण न हों कि ख़बर का मक़सद किसी की मानहानि या सार्वजनिक हितों को नुकसान पहंुचाना था। ज़ाहिर है कि इस ख़बर का मकसद तो जनहित की रक्षा करना ही था। समय आ गया है कि सरकार मीडिया की आज़ादी का सम्मान करे और अपना अहंकार और तानाशाही जनहित में छोड़ दे। अन्यथा इससे सरकार की लगातार छवि ख़राब हो रही है।     

Monday 8 January 2018

बड़बोले नेता...

सत्ता में हैं तो कुछ भी बोल सकते हैं ?

0हमारे देश में राजनीतिक बयानबाज़ी का स्तर शायद कभी इतना नहीं गिरा था। जितना आजकल गिर चुका है। जिसका जो जी चाहे बोल देता हैै। अगर बयान देने वाला सत्ताधरी दल से जुड़ा है तो उसको कुछ अधिक ही आज़ादी मिली हुयी है। हालांकि मर्यादा और सीमा लांघने में विपक्ष के नेता भी कभी पीछे नहीं रहे हैं। पहले कम से कम बड़े पदों पर बैठे नेता ऐसे वाचाल नहीं थे।   

        

  केंद्रीय कौशल विकास मंत्री अनंत हेगड़े ने पिछले दिनों सेकुलर लोगोें को एक तरह से घुमा फिराकर नाजायज़ रिश्तों से पैदा हराम की औलाद तक बता दिया था। उनका कहना था कि ऐसे लोगांे के मांबाप का पता नहीं होता। वे कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में ब्रहम्ण युवा परिषद के एक प्रोग्राम में बोल रहे थे। उनको यह भी एहसास नहीं हुआ कि वे खुद एक जातिवादी प्रोग्राम में हिस्सा ले रहे हैं। जो कि खुद में एक बड़ी बुराई है। उनका सवाल था कि सेकुलर लोगों को जब अपने इतिहास संस्कृति और परंपरा का ही नहीं पता तो वे धर्मनिर्पेक्ष होने में कैसे गौरव महसूस कर सकते हैं?

उनका यह भी दावा था कि संविधान से भी सेकुलर शब्द निकाला जाना चाहिये। वे इस काम को करेंगे क्योंकि भाजपा संविधान बदलने के लिये ही सत्ता मेें आई है। बाद में हंगामा मचने पर उन्होंने संविधान बदलने वाले बयान से किनारा कर लिया लेकिन सेकुलर लोगों को एक तरह से घुमा फिराकर दी गयी गाली पर कायम रहे। सही भी है उनके पास सेकुलर लोगों के खिलाफ कोई ठोस तर्क नहीं हैं जिससे वे इस स्तर पर बोल गये। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी के लिये अपशब्द बोले तो मोदी ने इस मुद्दे को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया कि वे गुजरात चुनाव हारते हारते जीत गये।

लेकिन जब खुद पीएम मोदी ने अय्यर के घर पर पाकिस्तानी षडयंत्र से कांग्रेस नेता अहमद पटेल को गुजरात का सीएम बनाने का आरोप लगाया तो न तो इसके लिये कोई सबूत पेश किया गया  और न ही बाद में चुनावी स्टंट केे लिये इतने हल्के दावे के लिये माफी मांगी गयी। साथ ही इस गंभीर आरोप की जांच भी नहीं कराई गयी। कार्यवाही तो क्या होतीयूपी के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि बाटी चोखा कच्चा वोटदारू मुर्गा पक्का वोट। लेकिन इस पर न तो मांस विरोधी किसी मोदीभक्त का खून खोला न ही चुनाव आयोग ने इस खुली वोट की सौदेबाजी का कोई संज्ञान लिया।

राजस्थान के अलवर ज़िले के रामगढ़ के भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने कहा कि गो तस्करी और गोकशी करोगे तो यूं ही मरोगे। उनका एक तरह से दो टूक बयान उन हत्यारों के पक्ष में था जो आयेदिन गाय के नाम पर बेकसूर लोगों की जान ले रहे हैं। उनके खिलाफ न तो किसी कोर्ट ने कोई स्वतः संज्ञान लिया और न ही किसी ने उनके खिलाफ कानून हाथ में लेने को उकसाने की रपट ही दर्ज कराई।

छत्तीसगढ़ के श्रम एवं युवा कल्याण मंत्री भईयालाल राजवाड़े ने कहा कि क्या अधिकारियों के बाप का राज चल रहा है?केंद्रीय मंत्री हंसराज अहीर ने चन्द्रपुर में उन डाक्टरों को अप्रत्यक्ष रूप से गोली मारने की धमकी ही दे दी जो उनके दौरे के समय ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे। उनका कहना था कि जब डाक्टरों का पता था कि वे दौरे पर आ रहे हैं तो वे छुट्टी पर कैसे गयेमंत्री जी ने कहा कि डाक्टरों को नक्सलियों में भर्ती हो जाना चाहिये। फिर मंत्री डाक्टरों को भी गोली मार देंगे। राजस्थान के जनजाति विकास मंत्री नंदलाल मीणा फरमाते हैं कि सब कांग्रेसी शराब पीते हैं।

महाराष्ट्र के जलसंसाधन मंत्री गिरीश महाजन का सुझाव है कि शराब की मांग बढ़ाने को शराब के ब्रांड का नाम महिलाओं के नाम पर रखा जाने चाहिये। केंद्रीय मंत्री रविशंकर बिना लाग लपेट के कहते हैं कि जब मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते तो उनको भाजपा टिकट क्यों देइस बयान को आगे बढ़ाते हुए मध्यप्रदेश के सहकारिता राज्यमंत्री विश्वास सारंग कहने लगे कि जो लोग भाजपा को वोट नहीं देते वो पाकिस्तानी होते हैं। ऐसा लगता है कि जिस तरह से पीएम जैसे सबसे बड़े पद पर बैठे मोदी जी ने एक मुस्लिम कांग्रेसी अहमद पटेल को गुजरात का सीएम बनाना एक साज़िश बताया।

उस बैठक में शामिल पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी आदि की उपस्थिति को उनकी देशभक्ति पर सवाल बताया। उसी से प्रेरणा लेकर संघ परिवार से जुड़े अन्य मंत्री सांसद विधायक व दूसरे नेता जो जी चाहे खुलकर बोल देते हैं। उनको पता है कि उनके खिलाफ कानून या पार्टी कोई कार्यवाही न करके शाबाशी ही मिलेगी। उधर भाजपा के विरोधियों और सेकुलर व निष्पक्ष लोगों को बात बात पर न केवल लपेटा जा रहा है बल्कि उनके खिलाफ देशद्रोह सहित संगीन धाराओं में तत्काल मुकदमा कायम कराकर सबक भी सिखाया जा रहा है।

जेएनयू के उमर खालिद और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी पर हाल  ही में दलितों को भड़काने का आरोप लगाकर रपट दर्ज किया जाना इसका ताज़ा नमूना है। बहरहाल हमारा कहना यह है कि चाहे सत्ताधारी हों या विपक्ष के लोग सभी को बयान और भाषण देने में संयम बरतना चाहिये। फिर भी अगर कोई कानून के खिलाफ कुछ बोलता है तो उस पर कार्यवाही करते हुए पक्ष विपक्ष न देखकर अपराध की गंभीरता को देखा जाना चाहिये। हर हाल में कानून का राज कायम रखा जाना चाहिये।                   

0 हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,

  वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।।