Thursday 24 August 2023

नई भारतीय संहिता

*नाम बदलने से संहिताओं में क्या क्या बदल जायेगा ?* 
0भारत सरकार ने 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा बनाई गयी आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता 1973 की सीआरपीसी यानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट यानी भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलकर एतिहासिक क़दम उठाये हैं। लेकिन विपक्ष इसके कई प्रावधानों को जनविरोधी बताकर अभी से विरोध कर रहा है। हालांकि अभी ये तीनों विधेयक संसद से पास नहीं हुए हैं। इन तीनों के ड्राफ्ट पर फिलहाल गहन विचार करने के लिये संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। लेकिन इस पर व्यापक चर्चा होने लगी है कि क्या इससे क्रिमनल जस्टिस सिस्टम पर कोई सार्थक व सकारात्मक अंतर पड़ेगा या केवल इन संहिताओं के नाम व कुछ धाराओं की संख्या व उनमें जोड़ घटाओ तक ही यह कवायद सीमित रहने वाली है?      
   *-इक़बाल हिंदुस्तानी* 
      संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद अगर कुछ संशोधन कर इन तीनों विधेयकों को संसद से शीतकालीन सत्र में पास किया जाता है तो इंडियन पेनल कोड को भारतीय न्याय संहिता क्रिमनल पेनल कोड को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट को भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 के नाम से जाना जायेगा। भारतीय दंड संहिता का पहला मसौदा थाॅमस बबिंगटन मैकाले की अध्यक्षता वाले प्रथम विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया था। यह मसौदा इंग्लैंड के कानून के सरल संहिताकरण पर आधरित था। इसके साथ ही इसमें नैपोलियन कोड और 1825 के लुइसियाना नागरिक संहिता से भी कुछ प्रावाधन शामिल किये गये थे। आईपीसी का पहला ड्राफ्ट 1837 में काउंसिल में गवर्नर जनरल के सामने पेश किया गया था। संहिता को अंतिम रूप देने में ईस्ट इंडिया कंपनी राज को 20 साल गुजर गये। संहिता का अंतिम मसौदा 1850 में तैयार हुआ। इसको 1856 में विधान परिषद में रखा गया। इसके बाद 1857 के गदर की वजह से इसे कुछ समय को रोक दिया गया। बान्र्स पीकाॅक ने कई संशोधनों और बदलाव के बाद इसे 1 जनवरी 1860 को बाकायदा लागू किया गया। इस संहिता को 23 अध्याय में विभाजित किया गया है। जिसमें कुल 511 धारायें शामिल रही हैं। अब सरकार ने आईपीसी के 22 प्रावधानों को खत्म करने और वर्तमान 175 प्रावधानों में परिवर्तन करने का फैसला किया है। इनमें 8 नई धारायें जोड़ी गयी हैं। कुल 356 प्रावधान हैं। सरकार ने एक ओर कहा है कि यह विध्ेायक राजद्रोह कानून को पूरी तरह समाप्त करता है। जबकि राज्य के विरूध अपराध की नई धारा 150 कहती है कि भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कामों लिये कड़ी कानूनी कार्यवाही की जायेगी। साथ ही माॅब लिंचिंग के अपराध के लिये 7 साल या उम्रकैद या सज़ा ए मौत की विचित्र व्यवस्था की गयी है। जबकि हत्या की सज़ा पहले ही आजीवन कारावास या फांसी रही है। ऐसा लगता है कि माॅब लिंचिंग को सरकार साधारण हत्या से कम गंभीर अपराध मानकर चल रही हैै? ऐसे ही भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता सीआरपीसी के 9 प्रावधानों को खत्म कर उसके 160 प्रावाधनों में व्यापक बदलाव कर 9 नये प्रावाधन शामिल करती है। प्रस्तावित नये विधेयक में कुल 533 धारायें शामिल हैं। भारतीय साक्ष्य विधेयक में वर्तमान अधिनियम के 5 प्रावधानों को निरस्त कर 23 प्रावधानों में परिवर्तन कर एक नया प्रावधान शामिल किया गया है। इस विध्ेायक में कुल 170 सैक्शन हैं। नये विध्ेायकों में भगौड़े अपराधियों की एक पक्षीय सुनवाई, दंड की व्यवस्था सभी आपराधिक मामलों में जीरो प्रथम सूचना रिपोर्ट के व्यापक प्रावधान, शून्य एपफआईआर को 15 दिन के अंदर संबंधित थाने में भेजना अनिवार्य, आवेदन के 120 दिनों में अनुमति ना देने पर प्राधिकरण के अपराधों के आरोपी सिविल सेवक पुलिस अफसर व अन्य कर्मचारियों पर स्वतः केस चलाने की सराहनीय प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। एक और प्रशंसनीय काम रिपोर्ट से लेकर केस डायरी चार्जशीट और निर्णय देने की पूरी कार्यवाही का डिजिटीकरण होगा साथ ही अपील जिरह सुनवाई वीडियो काॅन्फ्रेंिसंग के ज़रिये होगी। यौन अपराधों से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान पीड़ितों के बयान और तलाशी व ज़ब्ती की वीडियो बनाना अनिवार्य होगा। रिपोर्ट के 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होगी लेकिन कोर्ट इसकी सीमा 90 दिन और बढ़ा सकता है। इसके बाद कोर्ट को 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे और सुनवाई पूरी कर एक माह में फैसला देना ज़रूरी होगा। फैसला एक सप्ताह के भीतर आॅनलाइन उपलब्ध कराना होगा। ये सब सरकार के सराहनीय कदम माने जा सकते हैं। नया कानून पुलिस को 15 की बजाये 90 दिन की हिरात की इजाज़त देता है। जो आरोपी को एक तरह से अपराधी मानमकर पहले से 6 गुना समय जेल में रखने की मंशा सरकार के आलोचकों को लगती है। विपक्ष का कहना है कि इन नये कानूनों की जांच के लिये वकीलों रिटायर्ड जजों पूर्व पुलिस अफसरों सिविल सेवकों मानव अधिकार नागरिक अधिकार और महिला अधिकार के लिये आंदोलन व संघर्ष करने वालों की एक कमैटी बनाई जाये। उसका कहना है कि इन विधेयकों से संविधान के सैक्शन 14, 19 और 21 के तहत दिये गये नागरिकों के मूल अधिकारों पर गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है। ऐसे ही शादी के झूठे बहाने सैक्स करने को लेकर नया विशेष अपराध बनाना एक नई समस्या खड़ी करेगा। छोटी चोरी आत्महत्या का असफल प्रयास और मानहानि के मामूली मामलों में कम्युनिटी सर्विस का प्रावधान एक सकारात्मक पहल मानी जा सकती है।
 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

Saturday 5 August 2023

तीसरी अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था बड़ी होना नहीं प्रति व्यक्ति आय बढ़ना विकास है ?
0 भाजपा का दावा है कि उसकी सरकार ने देश को दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। पीएम मोदी जी का कहना है कि अगर उनको तीसरी बार सरकार बनाने का अवसर दिया गया तो वे देश को विश्व की तीसरी बड़ी इकाॅनोमी बना देंगे। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश की जीडीपी उनके कार्यकाल में कांग्रेस की सरकार के मुकाबले आधी से भी कम स्पीड यानी 2014 से 2023 तक 84 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक दोगुने से भी अधिक यानी 183 प्रतिशत बढ़ी थी। हमारे देश के मुकाबले छटे स्थान पर ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति आय हमसे 25 गुना अधिक है। जबकि दुनिया की तालिका में भारत प्रति व्यक्ति आय 2600 डाॅलर के हिसाब से देखा जाये तो हम 128 वें स्थान पर हैं।   

   *-इक़बाल हिंदुस्तानी* 

      इंटरनेशनल माॅनेटरी फंड के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार दुनिया में जीडीपी के हिसाब से अमेरिका 26855 बिलियन डाॅलर नंबर वन तो चीन 19374 बिलियन डाॅलर दूसरे व जापान 4410 बिलियन डाॅलर तीसरे और 4309 बिलियन डाॅलर जर्मनी चैथे और भारत 3737 बिलियन डाॅलर के साथ पांचवे स्थान पर है। 2014 से 2023 तक चीन की जीडीपी 84 तो अमेरिका की 54 प्रतिशत बढ़ी है। इनके अलावा दुनिया के टाॅप टेन देशों में से कई की जीडीपी या तो मामूली बढ़त के साथ स्थिर रही है या फिर मंदी के कारण वर्तमान से भी कुछ नीचे चली गयी है। मिसाल के तौर पर जिस यूके को हमने पांचवे पायेदान से पीछे छोड़ा है। उसकी जीडीपी बढ़त इस दौरान मात्र 3 तो फ्रांस की 2 और रूस की केवल एक प्रतिशत ही रही है। उधर ब्राजील की जीडीपी उल्टा 15 प्रतिशत पीछे चली गयी है। इसकी वजह दुनिया में आई 2008-09 की मंदी भी बनी। हालांकि भारत भी इस मंदी से प्रभावित हुआ लेकिन उसका असर बहुत हल्का सा था। हालांकि पूर्व अनुमान के अनुसार भारत आशा के अनुसार 8 से 9 प्रतिशत की स्पीड से नहीं बढ़ रहा है लेकिन अगर हम 6 प्रतिशत की जीडीपी औसत बढ़त भी बनाये रख सके तो 2027 तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। इसकी वजह यह होगा कि हमारी इकाॅनोमी तब तक 38 तो जापान और जर्मनी की 15 प्रतिशत ही बढे़गी। 2004-09 में डीडीपी 8.5 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक औसत 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। आज भारत की जीडीपी 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। वह दौर एक तरह से मनमोहन सिंह सरकार का भारत में आार्थिक प्रगति का स्वर्ण काल था लेकिन अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आड़ में मीडिया व संघ परिवार ने एक सोची समझी योजना के तहत तिल का ताड़ बनाकर उस सरकार को काल्पनिक टू जी घोटाले के बहाने इतना अधिक बदनाम कर दिया जितना उसका कसूर नहीं था। इन आंकड़ों की सहायता से हम यह समझ सकते हैं कि किसी देश की जीडीपी बढ़ने में उसकी सरकार आबादी और दूसरे देशों की मंदी कम स्पीड और प्रति व्यक्ति आय की क्या भूमिका होती है? हमारे देश में 35 करोड़ लोग पूरा पौष्टिक खाना नहीं खा पा रहे हैं। 80 करोड़ लोगों को सरकार 5 किलो अनाज देकर जीवन जीने में मदद कर रही है। देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी सालाना आमदनी 50 हज़ार रूपये कमाकर भी कुल जीएसटी का 64 प्रतिशत चुका रही है। जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत मात्र 3 प्रतिशत भागीदारी कर रहे हैं। इससे आमदनी ही नहीं खर्च और कर चुकाने के हिसाब से भी आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। जबकि चोटी के एक प्रतिशत की वार्षिक आय 42 लाख है। जीएसटी हर साल हर माह पहले से अधिक बढ़ने का दावा भी सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर करती है जबकि जानकार बताते हैं कि इसका बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ती बेतहाशा महंगाई भी है। महंगाई बढ़ाने में खुद सरकार पेट्रोलियम पदार्थों रसोई गैस और चुनचुनकर उपभोक्ता पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना या कर की दरें लगातार बढ़ाते जाना भी हैै। जीडीपी प्रोडक्शन का पैमाना माना जाता है। लेकिन यह उपभोग का माप भी है। जब आप कन्ज्यूमर की एक विशाल गिनती लेकर उसे एक मामूली राशि से गुणा करेंगे तो एक बहुत बड़ी संख्या आती है। अगर क्रय मूल्य समता यानी पीपीपी के आधार पर देखा जाये तो हमारी यह 2100 अमेरिकी डाॅलर है। जबकि यूके की 49,200 डाॅलर और अमेरिका की 70,000 डाॅलर है। अगर देश के लोग गरीब हैं तो दुनिया में जीडीपी पांचवे तीसरे नंबर पर ही नहीं नंबर एक हो जाने पर भी क्या हासिल होगा? यह एक तरह से भोली सीधी सादी जनता को गुमराह करने का एक राजनीतिक झांसा ही है। सच तो यह है कि मोदी सरकार की नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी बिना विशेषज्ञों की सलाह लिये और बिना सोचे समझे और जल्दबाज़ी में लागू करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहंुचा है जिससे यह वर्तमान में जहां खुद पहंुचने वाली थी उससे भी पीछे रह गयी है। इसका परिणाम तेज़ी से बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई है। इसके साथ ही यह भी एक बड़ा विचारणीय तथ्य है कि जिस देश में शांति भाईचारा समानता निष्पक्षता धर्मनिर्पेक्षता न्याय नहीं होगा वहां शांति नहीं रह सकती और जब शांति नहीं होगी तो ना विदेशी निवेश आयेगा और ना ही स्थानीय स्वदेशी कारोबार से अर्थव्यवस्था ठीक से फले फूलेगी।                 

 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।*