Sunday 30 June 2019

Shaayri

चिराग़

मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश-गुमान न हो।


चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं।।

फ़रियादी

लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है,

तुम झूठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है,


इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें,

सरकार तुम्हारी है, दरबार तुम्हारा है ..।

खौफ़ की हद

मैं अपने खौफ़ की हद पर खड़ा हूँ,

अब इसके बाद घबराना है तुम को।

बेहिसी

बेहिसी शर्त है जीने के लिये,

और हमको अहसास की बीमारी है।

ज़वाल

क़ुव्वते फिक्रो अमल पहले फ़ना होती है ..

फिर किसी क़ौम की अज़मत पे ज़्वाल आता है !!

दोस्त

जो दिल को अच्छा लगता है उसी को दोस्त कहता हूँ
मुआफिक बनके रिश्तों की सियासत मैं नहीं करता।
वाबस्ता
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे।
सुलूक
अहबाब के सुलूक से जब वास्ता पड़ा।
शीशा तो मैं नहीं था मगर टूटना पड़ा।।
तासीर
उनकी तासीर बेहद कड़वी होती है,
जिनकी गुफ्तगु शक्कर जैसी होती है
अदब
अदब की बात है मुनीर,सोचो तो,
जो शख़्स सुनता है, वह बोल भी तो सकता है।
ज़ुल्म
Kucch na kehne se bhi Chhin jaata hai Aijaz E Sukhan
Zulm Sehne se bhi Zaalim ki Madad hoti hai
ज़ख़्म
आपने तीर चलाया तो कोई बात ना थी..
और हमने ज़ख्म दिखाए तो बुरा मान गए..
ज़िल्लत
*ठुकरा दो अगर दे कोई जिल्लत से समंदर,*
*इज्जत से जो मिले ओ कतरा भी बहुत है।*
ज़मीर
Mera zameer bahot hai mujhe saza ke liye,
Tu dost hai tou nasihat na kar khuda ke liye!
डर
वो चाहते हैं कि हिंदुस्तान छोड़ दें हम
बताओ भूत के डर से मकान छोड़ दें हम
सवाल
ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
कोई सवाल उठाओगे मारे जाओगे!
खुद्दार...
दोनों खुद्दार थे इतने कि ख़ामोशी का सबब,,,,!!
उसने पूछा भी नहीं मैंने बताया भी नहीं....!!
बारिश...
सहमी हुई है झोपड़ी बारिश के ख़ौफ़ से।
महलों की आरज़ू है कि बरसात तेज़ हो ।।
तबीयत...
*कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं*
*हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती*
कसूर...
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़..
हमें यक़ीन था हमारा क़ुसूर निकलेगा..
शीशा...
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
पत्थर....
Raz sheeshe se pochna tanhai mein, kitna nuqsan hai paththar se shanashai mein.
ताला....
लब-ए-खामोश का सारे जहाँ में बोलबाला है,
वही है महफूज़ यहाँ,जिसकी ज़ुबाँ पर ताला है!!!
चिराग़...
फक़त बातें अंधेरों की, महज किस्से उजालों के,,,,!!
चिराग ए आरज़ू लेकर, ना तुम निकले ना हम निकले,,!!
तलवार...
हमीं को कत्ल करते हैं हमीं से पूछते हैं वो,....
शहीदे-नाज बतलाओ मेरी तलवार कैसी हैं,..!!
आग...
आग, लगाने वालों को, कहाँ है, ये खबर,_*
रुख, हवाओं ने बदला, तो खाक वो भी होंगे.....।_*

Friday 14 June 2019

मोदी और मुस्लिम

मोदी पर भरोसा करके देखेंगे मुसलमान?

0दोबारा पीएम चुने जाने के बाद मोदी ने अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों का भरोसा भी जीतने की इच्छा जताई है। यह एक अच्छी पहल है। इसका मुसलमानों को भी स्वागत कर अंध मोदी विरोध छोड़कर देखना चाहिये नहीं तो हिंदू मुस्लिम दूरी और बढ़ती जायेगी।       
  -इक़बाल हिंदुस्तानी

   2019 का चुनाव जीतकर फिर से सरकार बनाने के बाद पीएम मोदी ने कहा है कि सेकुलर दलों ने मुसलमानों को भाजपा से डराकर लंबे समय तक छला है। मोदी का आरोप है कि इस भय और छलावे से मुसलमानों का कोई लाभ नहीं हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस भाजपा को सत्ता में आने से रोकने को मुसलमान सेकुलर दलों को थोक में वोट करते रहे उससे भाजपा को सरकार बनाने से नहीं रोक पाये। साथ ही यह भी सच है कि ऐसा करने से मुसलमानों को कोई अतिरिक्त लाभ तो क्या मिलता उल्टे उनका गैर मुस्लिमों के मुकाबले जीवन स्तर गिरता चला गया है।

इसका दुष्परिणाम यह और हुआ कि हिंदू जातिवाद और मुस्लिम साम्प्रदायिकता के मिलन से बनने वाली सपा बसपा राजद एनसीपी लोकदल जनता दल व जेडीएस जैसी सरकारें मनमानी परिवारवाद और भ्रष्टाचार में गले गले तक डूब गयीं। इससे भाजपा को वंशवादी यादव जाटव मराठा व जाट एवं मुस्लिम वर्चस्व वाली सरकारों के खिलाफ पूरे हिंदू समाज को एकजुट करने का अवसर मिला। हालांकि खुद मोदी और उनकी भाजपा कांग्रेस से लेकर अन्य क्षेत्रीय सेकुलर सरकारों पर मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है।

      लेकिन जब मुसलमानों के ख़राब हालात की जांच करने को सच्चर कमैटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग बना तो सच इसके विपरीत सामने आया। पता चला कि मुसलमानों की आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक स्थिति तो दलितों से भी खराब हो चली है। इसके साथ ही संघ परिवार ने मुसलमानों पर पाकिस्तान आतंकवाद कट्टरवाद देशद्रोह हिंदू विरोध अलगाववाद हिंसक सैक्सी लवजेहाद और चार चार बीवी व चालीस बच्चे पैदा कर भारत को दो चार दशक बाद इस्लामी राष्ट्र बनाने का षडयंत्र रचने का झूठा आरोप लगाकर उसको लगभग भारत यानी हिंदू विरोधी साबित करने का एक सुनियोजित अभियान चलाया।

बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद उर्दू विरोध दंगे कॉमन सिविल कोड कश्मीर की धारा 370हज सब्सिडी बढ़ते मदरसे और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का मुस्लिम दर्जा ख़त्म करने करने का आंदोलन चलाया तो मुसलमान भाजपा से और भी अधिक भयभीत और घृणा करने लगा। खुद मोदी ने गुजरात का सीएम बनने से लेकर भारत का पीएम बनने के बाद भी कब्रिस्तान शमशान ईद दिवाली और मुसलमानों को सीधे निशाने पर लेकर हिंदू वोटबैंक बनाने और उसके बल पर बार बार चुनाव जीतने का खुला सियासी खेल खेला है। लेकिन कहते हैं कि सियासत और जंग में सब जायज़ होता है।

सत्ता से बाहर रहकर विपक्ष के रूप में सरकारों के खिलाफ आरोप विरोध और आंदोलन आसान है। जबकि सरकार बनने पर सबका साथ सबका विकास करना कठिन है। इस बार मोदी ने इस नारे में सबका विश्वास शब्द भी जोड़ा है। यह सच भी है कि बिना सबको साथ लिये किसी देश का आज तक विकास नहीं हुआ है। हमारा मानना है कि जब मोदी ने मुसलमानों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तो उनको एक बार मोदी का हाथ थामकर आज़माना चाहिये।

जहां तक इस सवाल का जवाब है कि भाजपा के 303 सांसदों में से एक भी मुस्लिम क्यों नहीं है तो इसका जवाबी सवाल खुद मुस्लिमों से भी किया जा सकता है कि वे जब भाजपा के प्रत्याशी को वोट ही नहीं देते तो भाजपा उनको टिकट क्यों देगीकम लोगों को पता होगा कि इस बार भाजपा ने बंगाल से दो और कश्मीर से चार मुसलमानों को एमपी का चुनाव लड़ाया था। लेकिन यह सब हार गये। संघ परिवार मुसलमानों पर देश के बंटवारे का भी आरोप लगाता रहा है। लेकिन वो यह सच नहीं बताता कि पहली बार सावरकर की हिंदू महासभा द्वारा हिंदू राष्ट्र का विचार सामने लाने पर कांग्रेसी नेता जिन्नाह ने प्रतिक्रिया के तौर पर पाकिस्तान की मांग उठाई थी।

    इस मांग का सबसे जोरदार विरोध मुस्लिम उलेमा ने किया था। दूसरी बात जो मुसलमान भारत में रह गये उनसे अधिक भारत से प्यार कौन करेगाक्योेंकि उनके पास पाकिस्तान जाने का विकल्प था। लेकिन वे अपने हिंदू भाइयों पर भरोसा कर यहीं रूक गये। इस भरोसे को हिंदू समाज ने आज़ादी के बाद निभाया भी है। 1971 मेें पाकिस्तान से अलग होकर बंग्लादेश बनने से जिन्नाह की धर्म के नाम पर देश बनाने की सोच 24 साल में ही गलत भी साबित हो गयी। इसलिये हमें लगता है कि भाजपा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर जिन्नाह वाली भूल नहीं दोहरायेगी।

जहां तक हमारे संविधान समान नागरिक अधिकार धर्मनिर्पेक्षता उदारता सहिष्णुता और आपसी भाईचारे का सवाल है। हमें नहीं लगता धर्म के नाम पर देश के कुछ हिस्सों में कभी कभी कुछ सिरफिरे हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा चंद मुसलमानों की गोरक्षा के बहाने मोब लिंचिंग करने मारने पीटने अपमानित करने और पक्षपात व अन्याय अत्याचार करने से मुसलमान खत्म या डर जायेगा। हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान का मूल स्वरूप किसी संशोधन से बदलने नहीं देगा। जब 1992 में संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद धोखे से शहीद की तो सबसे ज़्यादा विरोध सेकुलर हिंदुओं ने ही किया।

आज भाजपा का फिर से बहुमत आने के बावजूद भी 62 प्रतिशत मतदाता उससे सहमत नहीं है। ऐसे ही मोदी सरकार ने 3 तलाक़ को सिविल से अपराधिक मामला बना दिया। ऐसा कई मुस्लिम मुल्कोें में भी हो चुका है। जहां तक मोदी और भाजपा की राज्य सरकारों के रहते मुसलमानों के साथ कभी कभी पक्षपात अपमान व हिंसा होने का सवाल है। हम आश करते हैं कि मोदी के नये बयान से आगे इनमंे कमी आयेगी। पाकिस्तान सहित मुस्लिम मुल्कों में वहां के अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव होता है। यह तथ्य और सत्य भी मुसलमानों को नज़र मंे रखना चाहिये।

जहां तक मोदी सरकार की जनहित की योजनाओं का सवाल है। हमारी जानकारी में अब तक मुसलमानों को कहीं भी इन लाभों से वंचित रखने की शिकायत सामने नहीं आई है। हो सकता है इसी वजह से 8 से 9 प्रतिशत मुसलमानों ने मोदी को चुनाव में वोट भी दिया है। समय बदलता रहता है। चार दशक से अधिक कांग्रेस का राज रहा। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़े नेतृत्व के क्षेत्रीय दलों का दो दशक से अधिक केंद्र व कई राज्यों में सेकुलर राज रहा। इनमें मुसलमानों को उनकी हैसियत से कहीं अधिक वेट दिया जाता था। आज मोदी का दौर है।

हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले उनमें अधिक भरोसा जता रहा है। मुसलमान का वोट एकजुट होकर भी इसको रोक नहीं सकता। उसको चाहिये कि वह भी अपने हिंदू भाइयों को एक नया विकल्प आज़माने का अवसर देकर देखें। उनके विरोध से हिंदुओं का मोदी के लिये समर्थन और बढ़ेगा। साथ ही ऐसा करने से मुसलमानों को कट्टरपंथी हिंदुओं से और अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। समय इसका जवाब खुद देगा।                                                 

0 रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,

  रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।।

Tuesday 11 June 2019

टूट गया गठबंधन

यूपी: गठबंधन टूटाआरोप झूठा!

0जिसका डर था वही हुआ। सपा बसपा का गठबंधन टूट ही गया। इसकी पहल मायावती ने की। बहनजी का दावा है कि उनको सपा का वोटबैंक यादव ट्रांस्फर नहीं हुआ। गठबंधन बनाना या तोड़ना दलोें के नेताओं का अधिकार है। लेकिन उसको तोड़ने के लिये झूठा आरोप लगाना जनता को गुमराह करना है। आंकड़ों से सच तलाशने की कोशिश करते हैं।       

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा को22.35 प्रतिशत वोट के साथ पांच और बसपा को 19.77 फीसद मतों के साथ शून्य सीट मिलीं थीं। इस बार इन दोनों दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा जिससे 17.96 वोट प्रतिशत के साथ सपा को 5 और बसपा को 19.26प्रतिशत वोट प्रतिशत के साथ 10 सीट मिलीं हैं। उधर 2014 में 42.63 प्रतिशत वोट के साथ कुल 71 सीट जीतने वाली भाजपा को इस बार49.26 प्रतिशत मत पाकर भी 62 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। यह बात ठीक है कि सपा बसपा का गठबंधन यूपी में भाजपा को अपनी बढ़त बनाये रखने से रोकने मेें नाकाम रहा है।

    इसकी कई वजह हो सकती हैं। लेकिन बहनजी का यह कहना कि सपा का वोट उनको नहीं मिल पाया है। इसलिये वे गठबंधन से फिलहाल बाहर निकल रही हैं। सरासर झूठ और गलत है। दरअसल  इसके पीछे असली वजह कुछ और ही है। जिस पर हम बाद में चर्चा करेंगे। पहले बहनजी के इस दावे की सच्चाई परखना ज़रूरी है। जिसमें उन्होंने अखिलेश यादव पर अपने यादव वोट बसपा को ना दिला पाने का आरोप लगाया है। सबको पता है कि 2014 के संसदीय चुनाव में बसपा ने यूपी की सभी 80 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था। लेकिन उनको एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।

  इस बार उन्होंने 38 सीट पर चुनाव लड़ा और उनको 10 सीटों पर जीत मिल गयी। साथ ही उनको वोट भी लगभग उतने ही मिल गये जितने 80 सीट लड़ने पर पिछले चुनाव मंे मिले थे। इसका मतलब साफ है कि इस चुनाव में बसपा को सपा के नये वोट मिले हैं। बहनजी ने बड़ी चालाकी से गठबंधन तोड़ने का ठीकरा अखिलेश के सर पर फोड़ते हुए उनपर यह आरोप भी लगा दिया कि उनका यादव वोट बसपा को नहीं मिला है। सही मायने में तो सपा भी बहनजी पर यह आरोप लगा सकती है कि उनका दलित वोट सपा को नहीं मिला है।

  जिससे उनकी सीट नहीं बढ़ी जबकि बसपा बिना सपा का वोट मिले जीरो से 10 सीट पर नहीं पहुुंच सकती थी। बहनजी को इस बात का जवाब भी देना होगा कि उन्होंने घोर जातिवाद पर चलने वाले यूपी जैसे राज्य में चुनाव परिणाम आने से पहले ही खुद को पीएम पद का दावेदार क्यों घोषित कियाइसका नतीजा यह हुआ कि जिन पिछड़ों विशेष रूप से यादवों का ज़मीनी स्तर पर दलितों से 36 का आंकड़ा रहता है। वे बहनजी को पीएम बनने से रोकने को मोदी का रूख़ ना करते तो क्या करते?

  दूसरा सवाल यह है कि जो बसपा कभी उपचुनाव लड़ती ही नहीं वह इस बार यूपी में गठबंधन तोड़ने का बहाना तलाशने को आखि़र विधानसभा के 11 उपचुनाव लड़ने को उतावली क्यों हैअगर वे सभी 11 उप  चुनाव जीत भी जाती हैं तो क्या सदन मंे उनका बहुमत हो जायेगाक्या इससे बहनजी पीएम ना बनने का गम भुला सकती हैंसवाल यह भी पूछा जायेगा कि अगर वे गठबंधन बनाकर भी यूपी में भाजपा को नहीं हरा सकती तो क्या अकेले हरा सकती हैंयह किस ज्योतिष ने बताया हैबहनजी को यह भी नहीं भूलना चाहिये कि उनको गठबंधन की वजह से जिन मुसलमानों ने दलितों के साथ मिलकर वोट किया है।

   वे अकेले चुनाव लड़ने पर उनपर भरोसा मुश्किल से ही करेंगे। बहनजी को यह भी सोचना चाहिये कि आखि़र वे सभी दलितों पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का विश्वास क्यों नहीं जीत पायींअगर आप गौर से देखंे तो पायेंगे कि बिहार में नीतीश कुमार बंगाल में ममता बनर्जी दिल्ली मंे अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव तमिलनाडू में जयललिता व करूणानिधि आदि क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने अपने व्यापक जनहित के कामों और सबका निष्पक्ष विकास करके सरकार बनने पर लगातार अपनी पकड़ अपनी जाति के मतदाताओं के अलावा दूसरे वर्गों पर मज़बूत बनाई है।

   इसके विपरीत बहनजी का काम करने का ढंग कुछ ऐसा रहा कि उनके साथ नये जाति वर्ग के मतदाता तो क्या जुड़ते उल्टा अति पिछड़े और मुसलमान व ब्रहम्ण भी भाग गये। मुलायम के राज में लगभग यही हाल गैर यादव पिछड़ों का भी रहा। आखि़र मेें तो यादवों की बजाये सपा सैफ़ई परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में ही तब्दील होती नज़र आई। अखिलेश यादव ने इस दायरे को तोड़ने का आधा अध्ूारा प्रयास किया था। लेकिन मुलायम शिवपाल और आज़म खां ने उनको अपने एजेंडे पर चलने की आज़ादी ही नहीं दी। 

   कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैै कि चुनाव परिणाम आने से दो दिन पहले जिस तरह से मोदी सरकार के इशारे पर तोते की तरह काम करने वाली सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को आय से अधिक मामले में क्लीन चिट देकर केस में क्लोज़र रिपोर्ट लगाई है। उससे बहनजी को यह शक हो गया है कि सपा और उसके मुखिया अंदरखाने मोदी और भाजपा सरकार से कोई गोपनीय डील कर रहे हैं। उनको अपने खिलाफ चल रही सीबीआई जांच में लालू यादव की तरह जेल जाने का ख़तरा भी सता रहा है।

   अब मोदी सरकार एक बार फिर से 5 साल को सत्ता में आ गयी है। उधर यूपी का चुनाव दो साल बाद होगा। ऐसे में जानकार सूत्रों का कहना है कि बहनजी भाजपा सरकार से सीबीआई जांच को लेकर नरम रूख़ अपनाने को लेकर पर्दे के पीछे सियासी सौदेबाज़ी कर रही हैं। इसीलिये उन्होंने जेल जाने के भय से भाजपा के दबाव में चुनाव नतीजे आने के एक सप्ताह बाद ही गठबंधन तोड़ने का एकतरफा ऐलान किया है। इसका मतलब साफ है कि सत्ता से लड़ने को विपक्ष का ईमानदार होना भी पहली शर्त है।                                            

0 मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

  तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।।

मोदी और मुस्लिम

मोदी पर भरोसा करके देखेंगे मुसलमान?

0दोबारा पीएम चुने जाने के बाद मोदी ने अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों का भरोसा भी जीतने की इच्छा जताई है। यह एक अच्छी पहल है। इसका मुसलमानों को भी स्वागत कर अंध मोदी विरोध छोड़कर देखना चाहिये नहीं तो हिंदू मुस्लिम दूरी और बढ़ती जायेगी।       

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   2019 का चुनाव जीतकर फिर से सरकार बनाने के बाद पीएम मोदी ने कहा है कि सेकुलर दलों ने मुसलमानों को भाजपा से डराकर लंबे समय तक छला है। मोदी का आरोप है कि इस भय और छलावे से मुसलमानों का कोई लाभ नहीं हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस भाजपा को सत्ता में आने से रोकने को मुसलमान सेकुलर दलों को थोक में वोट करते रहे उससे भाजपा को सरकार बनाने से नहीं रोक पाये। साथ ही यह भी सच है कि ऐसा करने से मुसलमानों को कोई अतिरिक्त लाभ तो क्या मिलता उल्टे उनका गैर मुस्लिमों के मुकाबले जीवन स्तर गिरता चला गया है।

इसका दुष्परिणाम यह और हुआ कि हिंदू जातिवाद और मुस्लिम साम्प्रदायिकता के मिलन से बनने वाली सपा बसपा राजद एनसीपी लोकदल जनता दल व जेडीएस जैसी सरकारें मनमानी परिवारवाद और भ्रष्टाचार में गले गले तक डूब गयीं। इससे भाजपा को वंशवादी यादव जाटव मराठा व जाट एवं मुस्लिम वर्चस्व वाली सरकारों के खिलाफ पूरे हिंदू समाज को एकजुट करने का अवसर मिला। हालांकि खुद मोदी और उनकी भाजपा कांग्रेस से लेकर अन्य क्षेत्रीय सेकुलर सरकारों पर मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है।

      लेकिन जब मुसलमानों के ख़राब हालात की जांच करने को सच्चर कमैटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग बना तो सच इसके विपरीत सामने आया। पता चला कि मुसलमानों की आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक स्थिति तो दलितों से भी खराब हो चली है। इसके साथ ही संघ परिवार ने मुसलमानों पर पाकिस्तान आतंकवाद कट्टरवाद देशद्रोह हिंदू विरोध अलगाववाद हिंसक सैक्सी लवजेहाद और चार चार बीवी व चालीस बच्चे पैदा कर भारत को दो चार दशक बाद इस्लामी राष्ट्र बनाने का षडयंत्र रचने का झूठा आरोप लगाकर उसको लगभग भारत यानी हिंदू विरोधी साबित करने का एक सुनियोजित अभियान चलाया।

बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद उर्दू विरोध दंगे कॉमन सिविल कोड कश्मीर की धारा 370हज सब्सिडी बढ़ते मदरसे और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का मुस्लिम दर्जा ख़त्म करने करने का आंदोलन चलाया तो मुसलमान भाजपा से और भी अधिक भयभीत और घृणा करने लगा। खुद मोदी ने गुजरात का सीएम बनने से लेकर भारत का पीएम बनने के बाद भी कब्रिस्तान शमशान ईद दिवाली और मुसलमानों को सीधे निशाने पर लेकर हिंदू वोटबैंक बनाने और उसके बल पर बार बार चुनाव जीतने का खुला सियासी खेल खेला है। लेकिन कहते हैं कि सियासत और जंग में सब जायज़ होता है।

सत्ता से बाहर रहकर विपक्ष के रूप में सरकारों के खिलाफ आरोप विरोध और आंदोलन आसान है। जबकि सरकार बनने पर सबका साथ सबका विकास करना कठिन है। इस बार मोदी ने इस नारे में सबका विश्वास शब्द भी जोड़ा है। यह सच भी है कि बिना सबको साथ लिये किसी देश का आज तक विकास नहीं हुआ है। हमारा मानना है कि जब मोदी ने मुसलमानों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तो उनको एक बार मोदी का हाथ थामकर आज़माना चाहिये।

जहां तक इस सवाल का जवाब है कि भाजपा के 303 सांसदों में से एक भी मुस्लिम क्यों नहीं है तो इसका जवाबी सवाल खुद मुस्लिमों से भी किया जा सकता है कि वे जब भाजपा के प्रत्याशी को वोट ही नहीं देते तो भाजपा उनको टिकट क्यों देगीकम लोगों को पता होगा कि इस बार भाजपा ने बंगाल से दो और कश्मीर से चार मुसलमानों को एमपी का चुनाव लड़ाया था। लेकिन यह सब हार गये। संघ परिवार मुसलमानों पर देश के बंटवारे का भी आरोप लगाता रहा है। लेकिन वो यह सच नहीं बताता कि पहली बार सावरकर की हिंदू महासभा द्वारा हिंदू राष्ट्र का विचार सामने लाने पर कांग्रेसी नेता जिन्नाह ने प्रतिक्रिया के तौर पर पाकिस्तान की मांग उठाई थी।

    इस मांग का सबसे जोरदार विरोध मुस्लिम उलेमा ने किया था। दूसरी बात जो मुसलमान भारत में रह गये उनसे अधिक भारत से प्यार कौन करेगाक्योेंकि उनके पास पाकिस्तान जाने का विकल्प था। लेकिन वे अपने हिंदू भाइयों पर भरोसा कर यहीं रूक गये। इस भरोसे को हिंदू समाज ने आज़ादी के बाद निभाया भी है। 1971 मेें पाकिस्तान से अलग होकर बंग्लादेश बनने से जिन्नाह की धर्म के नाम पर देश बनाने की सोच 24 साल में ही गलत भी साबित हो गयी। इसलिये हमें लगता है कि भाजपा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर जिन्नाह वाली भूल नहीं दोहरायेगी।

जहां तक हमारे संविधान समान नागरिक अधिकार धर्मनिर्पेक्षता उदारता सहिष्णुता और आपसी भाईचारे का सवाल है। हमें नहीं लगता धर्म के नाम पर देश के कुछ हिस्सों में कभी कभी कुछ सिरफिरे हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा चंद मुसलमानों की गोरक्षा के बहाने मोब लिंचिंग करने मारने पीटने अपमानित करने और पक्षपात व अन्याय अत्याचार करने से मुसलमान खत्म या डर जायेगा। हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान का मूल स्वरूप किसी संशोधन से बदलने नहीं देगा। जब 1992 में संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद धोखे से शहीद की तो सबसे ज़्यादा विरोध सेकुलर हिंदुओं ने ही किया।

आज भाजपा का फिर से बहुमत आने के बावजूद भी 62 प्रतिशत मतदाता उससे सहमत नहीं है। ऐसे ही मोदी सरकार ने 3 तलाक़ को सिविल से अपराधिक मामला बना दिया। ऐसा कई मुस्लिम मुल्कोें में भी हो चुका है। जहां तक मोदी और भाजपा की राज्य सरकारों के रहते मुसलमानों के साथ कभी कभी पक्षपात अपमान व हिंसा होने का सवाल है। हम आश करते हैं कि मोदी के नये बयान से आगे इनमंे कमी आयेगी। पाकिस्तान सहित मुस्लिम मुल्कों में वहां के अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव होता है। यह तथ्य और सत्य भी मुसलमानों को नज़र मंे रखना चाहिये।

जहां तक मोदी सरकार की जनहित की योजनाओं का सवाल है। हमारी जानकारी में अब तक मुसलमानों को कहीं भी इन लाभों से वंचित रखने की शिकायत सामने नहीं आई है। हो सकता है इसी वजह से 8 से 9 प्रतिशत मुसलमानों ने मोदी को चुनाव में वोट भी दिया है। समय बदलता रहता है। चार दशक से अधिक कांग्रेस का राज रहा। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़े नेतृत्व के क्षेत्रीय दलों का दो दशक से अधिक केंद्र व कई राज्यों में सेकुलर राज रहा। इनमें मुसलमानों को उनकी हैसियत से कहीं अधिक वेट दिया जाता था। आज मोदी का दौर है।

हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले उनमें अधिक भरोसा जता रहा है। मुसलमान का वोट एकजुट होकर भी इसको रोक नहीं सकता। उसको चाहिये कि वह भी अपने हिंदू भाइयों को एक नया विकल्प आज़माने का अवसर देकर देखें। उनके विरोध से हिंदुओं का मोदी के लिये समर्थन और बढ़ेगा। साथ ही ऐसा करने से मुसलमानों को कट्टरपंथी हिंदुओं से और अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। समय इसका जवाब खुद देगा।                                                 

0 रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,

  रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।।

मोदी की जीत


मोदी में आस्था की जीत को समझो!

02019 के चुनाव नतीजे आ चुके हैं। वोटों की गिनती से पहले देश में तीन वर्ग थे। एक वर्ग का दावा था आयेगा मोदी ही’ दूसरे वर्ग को लगता था इस बार मोदी किसी कीमत पर नहीं जीतेंगे। लेकिन निष्पक्ष और तटस्थ लोगांे का एक तीसरा वर्ग भी था जिसको लगता था। भाजपा अपने दम पर ना सही लेकिन सरकार एनडीए की ही बनेगी। इसके लिये चाहे नया घटक भी जोड़ना पड़े।      

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   2014 में जब पहली बार मोदी सरकार बनी थी। उसकी जीत को बड़े वर्ग ने हिंदुत्व और विकास से अधिक तत्कालीन यूपीए सरकार के करप्शन मनमानी अहंकार मुस्लिम तुष्टिकरण और असफलता का परिणाम बताया था। लेकिन इस बार पहले से भी अधिक सीटेें जीतकर जब मोदी फिर से सरकार बना रहे हैं तो इसको मोदी ब्रांड की ही एकमात्र जीत माना जा रहा है। हालांकि अभी भी इसमें हिंदुत्ववादी विकास और लोगों का मोदी में ज़बरदस्त विश्वास छिपा हुआ है।

हालांकि सबका साथ सबका विकास कालाधन वापसी हर साल दो करोड़ रोज़गार राम मंदिर निर्माण कश्मीर से धारा 370 हटाना प्रशासन से रिश्वतखोरी ख़त्म करना नोटबंदी जीएसटी आतंकवाद माओवाद स्मार्ट सिटी और समान नागरिक संहिता जैसे किसी मुद्दे पर भाजपा ने वोट नहीं मांगे। लेकिन उज्जवला योजना पीएम किसान योजना जनधन खाते हर घर मंे शौचालय मुद्रा योजना पीएम आवास योजना हर घर को बिजली पक्की सड़कें और आयुषमान भारत योजना का भी मोदी की प्रचंड जीत में सहयोग रहा है।

मोदी ने जिस तरह से पुलवामा में 40 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद होने पर पाकिस्तान के बालाकोट में सेना को एयर स्ट्राइक करने की छूट दी उससे उनकी छवि शक्तिशाली और साहसी पीएम की बनी। इसके अलावा राफेल घोटाले को लेकर बिना ठोस सबूत के उन पर विपक्ष ने ‘‘चौकीदार चोर है’’ का नारा देकर जो हमले किये उससे उनको सहानुभूति ही मिली। बाकी रही कसर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने एक बार फिर से मोदी को गाली दोहराकर पूरी कर दी। सवाल यह है कि घरेलू मोर्चे पर इतनी नाकामी के बाद भी मोदी को इतना प्रचंड जनादेश कैसे मिल गया?

कुछ लोग इसके लिये विपक्ष के नाकारापन और कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन न करने को बताते हैं। लेकिन बिहार महाराष्ट्र और कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस गठबंधन ने मुंह की खाई। उससे साफ है कि जनता मोदी में अथाह आस्था रखती है। जो लोग यह सवाल पूछते हैं कि विपक्ष में मोदी का विकल्प कौन थाउनसे हम जवाबी सवाल पूछते हैं कि खुद भाजपा के पास मोदी का विकल्प कौन सा है?यहां तक कि वाजपेयी तक 2004 का चुनाव हार चुके हैं। इसके बाद लगातार दो बार यूपीए सरकार बनी और आडवाणी जैसे कट्टर हिंदूवादी नेता मोदी की तरह चुनाव जीतकर नहीं दिखा सके। 

कोई माने या ना माने लेकिन मोदी ने 2002 के गुजरात दंगों के बाद अपनी जो कट्टर हिंदू समर्थक और मुस्लिम विरोधी छवि बनाई थी। आज भी कमोबेश उनको इस विवादित इमेज का चुनावी लाभ मिल रहा है। मोदी सरकार रहते भाजपा की सरकार वाले राज्यों में जिस तरह से मुसलमानों की मॉब लिंचिंग और गाय को लेकर एक सोची समझी राजनीति हुयी उससे हिंदू वोट मोदी के साथ जुड़ता गया। मोदी राज में मीडिया से लेकर चुनाव आयोग सीबीआई आरबीआई ईडी सतर्कता आयोग सुप्रीम कोर्ट आदि स्वायत्त संस्थाओं का खुलकर चुनावी लाभ के लिये इस्तेमाल किया गया ।

उस पर देश में उदार सेकुलर व निष्पक्ष लोगों ने हंगामा ज़रूर किया। लेकिन मोदी सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। जानकारों को लगता था कि यूपी सबसे बड़ा राज्य है। यहां सपा बसपा और लोकदल के गठजोड़ से भाजपा चुनाव में भारी नुकसान उठायेगी। लेकिन इन सेकुलर दलों का कोर वोट बैंक यादव और जाट ही इनको छोड़कर बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ चला गया। हालांकि बसपा का दलित वोट बैंक भी कुछ हद तक भाजपा के साथ गया। लेकिन उसका बड़ा हिस्सा हाथी की पूंछ पकड़े रहा जिससे पिछली बार शून्य पर आउट होने वाली बसपा सपा के 5 से दोगुने यानी 10 सांसद जीतने में कामयाब रही।

रही कांग्रेस की बात उसके पीएम पद के दावेदार मुखिया राहुल गांधी खुद अपनी अमैठी सीट अब तक एक बार भी चुनाव न जीतने वाली भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से हार गये। हालांकि केरल की अपनी दूसरी सीट वायनाड से राहुल गांधी रिकॉर्ड मतों से जीते। लेकिन यहां मोदी का यह आरोप सही साबित हो गया कि राहुल गांधी वहां मुस्लिम वोटों की वजह से जीत सके। राहुल हिंदुओं की बहुसंख्या वाली सीट से नहीं जीत सकते। इतना ही नहीं भाजपा के नेताओं ने राहुल को पारसी पिता और ईसाई मां से जोड़कर उनके जन्म से हिंदू न होने का ही अभियान छेड़ दिया।

राहुल चूंकि कभी मंत्री नहीं बने इसलिये भी उनको अनुभव ना होने की वजह से पीएम पद का सही हकदार नहीं माना गया। राहुल को सोशल मीडिया पर तो संघ परिवार ने पप्पू ही घोषित कर दिया था। मोदी ने उनके दिवंगत पिता दादी और नाना पर भी झूठे सच्चे ढेरों आरोप लगाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि अगर कांग्रेस फिर सत्ता में आती है तो देश के लिये बहुत खराब बात होगी। मोदी ने वंशवाद के नाते भी राहुल पर निशाना साधा। कांग्रेस की नाकामी और राहुल के पीएम पद के दावे को अगर गंभीरता से ना भी लिया जाये तो सवाल यह है कि फिर यूपी में सपा बसपा दिल्ली में आम आदमी पार्टी बिहार में राजद महाराष्ट्र में एनसीपी कर्नाटक में जेडीएस बंगाल में वामपंथी और ममता की टीएमसी तक भाजपा के सामने क्यों नहीं टिक पाई?

तो इसका जवाब यह है कि जो भी पार्टी मुसलमानों को साथ लेकर चलेगी भाजपा उसको हिंदू विरोधी देशविरोधी और पाकिस्तान व आतंकवाद की समर्थक बताकर हिंदुओं का बहुमत अपने साथ कर लेगी। कोई माने या ना माने मोदी की प्रचंड जीत से 25 साल से गुजरात मेें इसी मुस्लिम विरोध और हिंदूवाद के सहारे राज कर रही भाजपा को खुद उसकी सरकार की किसी भयंकर गल्ती आर्थिक संकट या असहनीय असफलता के बाद उपजने वाले जन आक्रोष से ही आगे सत्ता से हटाया जा सकेगा विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस के बस का यह काम अब नहीं रह गया है।                                                 

0 मेरे बच्चे तुम्हारे लफ़्ज़ को रोटी समझते हैं,

  ज़रा तक़रीर कर दीजे कि इनका पेट भर जाये।।