Friday 30 April 2021

मोदी की लोकप्रियता....

कोरोना संकट में भी में मोदी की लोकप्रियता बरक़रार ?

0 2 मई को जब 5 राज्यों में हो रहे चुनावों के नतीजे आयेंगे तो यह बात एक बार फिर साफ़ हो जायेगी कि तमाम उतार चढ़ाव आरोपों और शिकायतों के बावजूद पीएम मोदी की लोकप्रियता आज भी जनता में बरक़रार है कि नहीं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया तो उनका वो परंपरागत जोश आक्रामक तेवर और अटूट आत्मविश्वास कहीं नज़र नहीं आया। विदेशी मीडिया में तो उनकी सरकार की गैर ज़िम्मेदारी नासमझी की इस दौरान ज़बरदस्त आलोचना हो रही है।  जबकि मोदी की जनहित की कई योजनाएं आज भी लोगों के सर चढ़कर बोल रही हैं।   

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   मोदी सरकार का मीडिया मैनेजमैंट अब तक बहुत शानदार रहा है। इस सच को उनके विरोधी भी मानते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव में उनका यही दांव उल्टा पड़ गया। हुआ यह कि गोदी मीडिया ने बंगाल में उनके चुनाव प्रचार को ही 24 घंटे पूरी तरह कवर किया। जबकि पहले की तरह विपक्ष को या तो पूरी तरह ब्लैकआउट कर दिया या फिर कभी कभी कहीं कहीं तड़का लगाने विरोधी दलोें की खिंचाई करने या उनकी जनसभा व रैली कम भीड़ दिखाकर नाकाम साबित करने को आधी अध्ूारी ख़बरें दिखाईं। इसका नतीजा यह हुआ कि जनता को यह लगा कि एक तरफ देश में कोरोना की दूसरी भयंकर लहर से जनता को ना तो ठीक से सरकारी इलाज मिल रहा है और ना ही उसकी कोई सुनने वाला है।

     जबकि दूसरी तरफ पूरी मोदी सरकार पांच राज्यों के चुनाव में जीत हासिल करने को सब काम छोड़कर पूरी जीजान से लगी हुयी है। इसमें भी खासतौर पर बंगाल का चुनाव 8चरण में इसी लिये रखवाया गया है। जिससे मोदी और उनके सिपहसालार लगभग हर सीट पर चुनाव रैली सभा और रोडशो करके हर कीमत पर बंगाल का चुनाव जीत सकें। छोटी छोटी बात पर राष्ट्र को संबोधित करने वाले मोदी जब कोरोना की दूसरी लहर से देश में हाहाकार मचने के लगभग एक माह बाद भी जनता के आंसू पोछने जनता को संदेश देने को समय नहीं निकाल सके तो पूरे देश में इस बात की चर्चा होने लगी कि मोदी के लिये जनता नहीं बल्कि उनकी चुनावी जीत ही सब कुछ है।

     उधर कोरोना से जैसे जैसे हालात बिगड़ते गये। विपक्ष हावी होने लगा। राहुल गांधी तो एक साल से कहते आ रहे हैं कि कोरोना से निबटने का कोई सुनियोजित प्रोग्राम मोदी सरकार के पास नहीं है। समय ने मोदी विरोधियों का यह आरोप भी सही साबित कर दिया कि मोदी का एक साल पहले चार घंटे के नोटिस पर लगाया गया देशव्यापाी लॉकडाउन पूरी तरह जनविरोधी और मनमाना था। इससे कोरोना तो रूका नहीं उल्टे देश की अर्थव्यवस्था आम आदमी का रोज़गार जीडीपी और हर तरह का कारोबार तबाह हो गया। विपक्ष ने मौका देखकर बढ़ते कोरोना कहर से बचाने को चुनाव आयोग से बंगाल का चुनाव छोटा करने को गुहार लगाई।

    इस पर दिखावे के लिये आयोग ने सर्वदलीय बैठक बुलाई लेकिन केवल भाजपा इस पर राज़ी नहीं हुयी जिससे आयोग ने हाथ खड़े कर दिये। बंगाल में बड़ी बड़ी रैली और जनसभाओं से कोरोना के केस बेतहाशा बढ़ते देख विपक्षी दल कांग्रेस वामपंथी और टीएमसी ने एक तरफा अपने चुनाव प्रचार को या तो रोक दिया या फिर बेहद सीमित कर दिया। इससे पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जो किसी कीमत पर बंगाल में चुनाव प्रचार कम करने को तैयार नहीं थे। पहली बार मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दबाव में आने को मजबूर हो गये।

     उधर पूर्व प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गांधी कम्युनिस्ट शिवसेना ममता बनर्जी शरद पवार किसान नेता वैज्ञानिक वरिष्ठ डाक्टर पूर्व जज मानवतावादी वकील सेकुलर टीचर निष्पक्ष पत्रकार और विभिन्न समाजसेवी संगठन मोदी सरकार पर कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को मरता छोड़ बंगाल चुनाव जीतने को लगे होने का आरोप लगाने लगे। जब संघ परिवार भाजपा और मोदी को यह लगा कि अब ना केवल बंगाल कोरोना का बड़े पैमाने पर शिकार होने और बाज़ी विपक्ष के हाथ जाने से निकल रहा है बल्कि पूरा देश उनके खिलाफ होेेेने जा रहा है।

    ऐसे में मजबूरन मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देने बेमन बिना किसी ठोस तैयारी बिना किसी प्रमाणिक जानकारी के अचानक प्रकट हुए। लेकिन इस बार उनके पास कहने को कुछ नहीं था। एक अपराधबोध सा मोदी के चेहरे पर साफ झलक रहा था। लेकिन अपने अहंकार और अब तक ज़िम्मेदारी से भागकर झूठे प्रचार के ज़रिये सफल सरकार चलाने का स्वांग रचने वाले प्रधानमंत्री केवल यह कहकर पल्ला झाड़ते नज़र आये कि उनको अहसास है कि लोगों पर क्या बीत रही है। यह बात तो विपक्ष का कोई नेता कहता तो समझ में आ सकती थी।

     लेकिन कोरोना की दूसरी लहर इतनी घातक रही है कि ना तो लोगोें को अस्पताल में बैड मिल रहा है और ना ही रैमिडिसिविर इंजैक्शन ऑक्सीजन आईसीयू वैंटीलेटर और ना ही समय पर कोरोना टैस्ट की रिपोर्ट। इतना ही नहीं सरकारी आंकड़े के मुकाबले कोरोना या इस दौर में दूसरी बीमारियों का इलाज ना मिलने से मरने वालों का वास्तविक आंकड़ा इतना अधिक है कि कई शहरों में शमशान पर चिता जलाने को लकड़ी और कब्रिस्तान में कब्र खोदने को मज़दूर तक उपलब्ध नहीं हैं। अलबत्ता यूपी के पिछले चुनाव में मोदी की यह शिकायत ज़रूर दूर हो गयी होगी कि कब्रिस्तान का विकास होता है तो शमशान का भी होना चाहिये कि नहीं?

    आज मोदी लॉकडाउन से तौबा करते नज़र आ रहे हैं। लेकिन इस एक साल में ना तो वे स्वास्थ्य सुविधायें बढ़ा पायें और ना ही उनमें कोई विशेष सुधार कर पाये। उनकी सरकार की नालायकी की हद यह है कि उनके स्वास्थ्य मंत्री दो माह पहले कोरोना का नाम ओ निशान खत्म होने का दावा कर रहे थे। हालत यह है कि देश के 138 करोड़ में से मात्र तीन करोड़ नागरिकों को कोरोना के दोनों टीके देने के बाद मोदी सरकार विश्वगुरू बनने के चक्कर में विदेशों को इससे कहीं ज़्यादा वैक्सीन सप्लाई कर चुकी थी। इतना ही नहीं आज जिस ऑक्सीजन की कमी से देश के कई अस्पतालों में कोरोना के रोगी दम तोड़ रहे हैं।

    वही ऑक्सीजन मोदी सरकार विदेशों को निर्यात कर रही थी। और तो और दिल्ली हाईकोर्ट को पूछना पड़ा कि जब मरीज़ ऑक्सीजन गैस की कमी से मर रहे हैं। ऐसे में इंडस्ट्रियल प्रयोग को यह गैस अभी तक क्यों दी जा रही हैइस पर भी मोदी सरकार ने तत्काल रोक ना लगाकर कॉरपोरेट को कुछ दिन बाद इस गैस का इस्तेमाल बंद करने का आदेश दिया। ऐसा क्यों किया गया होगा यह अब किसी से छिपा नहीं है कि इस सरकार में किसके हित उूपर हैंमोदी सरकार की नाकामी की हालत यह है कि यह ऑक्सीजन इंजैक्शन रेमिडिसिविर और दूसरी ज़रूर जीवन रक्षक दवाईयों व उपकरणों की कालाबाज़ारी तक रोकने में लकवाग्रस्त साबित हो रही है।

    पहली बार हमें यह देखकर हैरत और दुख हुआ कि पीएम जब टीवी पर लाइव बोल रहे थे तो जिन परिवारों ने कोरोना से इलाज ना मिलने या सही व समय पर उपचार ना मिलने से अपना कोई गंवा दिया वो सोशल मीडिया पर अपने आक्रोश को ऐसे शब्दों में बयान कर रहे थे या कमैंट लिख रहे थे। जिसका उल्लेख हम कम से कम अपनी कलम से यहां नहीं कर सकते। बहरहाल कोरोना के इस भयंकर कहर से पहली बार ऐसा लग रहा है कि मोदी विपक्ष और जनता के सवालों से नज़रें चुराकर लाजवाब असहाय और निराश होकर भविष्य में अपनी परंपरागत लोकप्रियता को बनाये रखने को लेकर सशंकित हैं।                

Wednesday 21 April 2021

कोरोना की दूसरी लहर

दूसरी लहर: लोग कोरोना से नहीं लॉकडाउन से डरे हुए हैं ?

0भारत सरकार की कोविड प्रसार और उसकी गति पर नज़र रखने वाली कमैटी के सदस्य और आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस विशेषज्ञ मणींद्र अग्रवाल का मानना है कि कोरोना वायरस के स्वरूप में अगर कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ तो मई के पहले सप्ताह से कोविड केस अपने चरम पर पहंुचकर घटने लगेंगे। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि लोग कोरोना से अधिक लंबे लॉकडाउन से डरे हुए हैं। यानी इस बार जान से अधिक रोज़ी रोटी की चिंता है।     

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   महाराष्ट्र और दिल्ली राज्यों में लॉकडाउन लगने के बावजूद जिस तरह से कोरोना पॉज़िटिव केस ढाई लाख से तीन लाख आंकड़े को छूने की तरफ बढ़ रहे हैं। उससे ऐसा लगता है कि जल्दी ही भारत अमेरिका का एक दिन में सबसे अधिक केस मिलने का रिकॉर्ड अपने नाम कर सकता है। पहली बार देश में 13 हज़ार164 कोरोना नमूनों की सरकार के स्तर पर जीनोम सीक्वेंसिंग हुयी है। इस जांच से सामने आया है कि देश में 10 प्रतिशत संक्रमित जनसंख्या डबल म्यूटेशन वालों की है। 8.77प्रतिशत मामलों में ब्रिटिश ब्राजील और साउथ कोरिया के वेरियेंट पाये गये हैं।

इससे पहले महाराष्ट्र में 361 नमूनों की जब जीनोम सीक्वेंसिंग के तहत इसी तरह की जांच की गयी थी तो पता चला था कि वहां 60प्रतिशत से अधिक केस डबल म्यूटेशन के पाये गये थे। ऐसा माना गया था कि इसी वजह से वहां सारे उपाये करने के बावजूद कोरोना मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि दिल्ली में जीनोम सीक्वेंसिंग का कोई आंकड़ा अधिकारिक रूप से उपलब्ध नहीं है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली राजनीतिक और मुंबई आर्थिक राजधानी होने की वजह से दुनिया के लोगों का इन दोनों महानगरों में बहुत अधिक आना जाना भी कोरोना केस इन दोनों जगह पर तेजी से बढ़ने की एक वजह हो सकती है।

लेकिन जिस तरह से हाल ही में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के साथ छत्तीसगढ़ पंजाब व अन्य एक दर्जन से अधिक राज्यों में अचानक कोरोना के मामले बढ़े हैं। उससे यह तय करना मुश्किल होता जा रहा है कि आखि़र अचानक कोरोना के केस बेतहाशा बढ़ने की वास्तविक वजह क्या हैविशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और जनता की यह भूल ही मानी जायेगी कि उन्होंने फरवरी में कोरोना के केस घटकर 8500 रह जाने पर यह मान लिया कि कोरोना अब खत्म हो चुका है। जबकि वे यह तथ्य भूल गये कि उन दिनों औसत 5 लाख टैस्ट हो रहे थे। आज यही टैस्ट बढ़कर 15 से 20लाख के बीच पहंुच गये हैं।

इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि इस बार कोरोना के केस अधिकांश महानगरों और बड़े शहरों में अधिक हैं। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि चूंकि डबल म्यूटेशन वाले कोरोना वायरस की पहली लहर सीध्ेा इन बड़े शहरों में हवाई अड्डे होने से विदेशों से यहां पहुंची है तो इन शहरों पर अधिक और पहले कहर बरपा रहा है। इसके साथ ही यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि सर्दी जाने के बाद जब गर्मी या बरसात आने से मौसम बदलता है तो अकसर संक्रामक रोग फैलते हैं। आम तौर वायरल फीवर खांसी जुकाम नज़ला बदन दर्द डैंगू मलेरिया टाइफाइड और इससे मिलते जुलते लक्ष्णों वाले मौसमी रोग होने पर बड़े नगरों और सम्पन्न नागरिकों को जागरूकता की वजह से डॉक्टर और अस्पताल ब्लड टैस्ट कराने की सलाह देते हैं।

कुछ प्राइवेट क्लीनिक और हॉस्पिटल तो अपने यहां तब तक किसी भी तरह के रोगी को घुसने ही नहीं देते जब तक कि वे कोरोना की जांच रिपोर्ट साथ ना लायें। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे में मरीज़ चाहे जिस रोग का हो अगर उसकी कोरोना की जांच ज़बरदस्ती कराई जायेगी तो जिनको है। उनका कोरोना तो पकड़ में आये या ना आये लेकिन जब जांच अचानक कई गुना बढ़ जायेंगी तो कोरोना का आंकड़ा भी डरावना हो जायेगा। यह भी कहा जाता है कि हमारे यहां कोरोना की जांच किट पूरी तरह विश्वसनीय और सटीक नहीं है। इस वजह से भी कोरोना के बढ़ते आंकड़ों पर अगर विश्वास ना भी किया जाये तो कम से कम आश्चर्य भी नहीं किया जा सकता।

इसकी अब एक वजह यह भी सामने आ रही है कि कोरोना का नया वायरस संक्रमण के बाद एक से 30 से 40 की जगह अब 80 से 90लोगों तक को संक्रमित कर रहा है। दूसरी बात यह थी कि दुनिया के अन्य देशों में कोरोना की दूसरी तीसरी लहर ने कहर जब बरपा करना शुरू कर दिया था तो हमारा यह मानना मूर्खों के स्वर्ग में रहना था कि हमारे यहां ऐसा नहीं होगा?तीसरी बात हम सबने कोरोना से बचाव को मॉस्कफिज़िकल डिस्टेंसिंग और हाथों को बार बार साबुन से वाश करने या सेनिटाइज़ करने की ज़रूरत भी लगभग बंद कर दी थी।

इसके साथ ही कोरोना से बचाव को बनी वैक्सीन कोवैक्सीन और कोविशील्ड हम अपने देशवासियों को प्राथमिकता के आधार पर ना लगाकर विश्व गुरू बनने के चक्कर में पूरी दुनिया को निर्यात करने में लगे थे। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां हमारे यहां अभी मात्र लगभग 3 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ दी जा सकी हैं। वहीं हमने लगभग 6करोड़ से अधिक वैक्सीन दूसरे मुल्कों को भेज दी है। इसके साथ ही एक गल्ती यह हुयी कि सरकार ने विदेशी वैक्सीन देश में आने को समय रहते अनुमति नहीं दी। हालांकि अब यह आपातकालीन व्यवस्था के तहत किया जा रहा है।

कुछ लोगों को यह भी भ्रम है कि वैक्सीन लगी होने के बावजूद लोगों को कोरोना हो रहा है तो इसका क्या लाभ हैदरअसल दुनिया की कोई भी वैक्सीन किसी को 100 प्रतिशत सुरक्षा का दावा नहीं करती। वैक्सीन कंपनियां 72 से 92प्रतिशत तक कोरोना से बचाव की बात पहले ही स्पश्ट कर चुकी हैं। लेकिन इतना ज़रूर है कि जिस किसी ने भी एक या दोनों डोज़ वैक्सीन की ली है। उनकी इम्युनिटी काफी हद तक बढ़ जाती है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि ऐसे लोगों को कोरोना संक्रमण होने के बावजूद जान जाने का खतरा काफी हद तक टल जाता है।

बेशक उनको कोरोना हो सकता है। लेकिन वैक्सीन की वजह से उनकी रोग से लड़ने की क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि वे कोरोना को हराकर अपने जीवन की जंग अकसर जीत लेते हैं। स्वास्थ्य की जानी मानी लेंसैट मैग्जीन की नई ख़बर यह आ रही है कि अब कोरोना सरफेस खांसी छींक या ड्रॉपलेट से अधिक हवा के द्वारा एक से दूसरे में अधिक फैल रहा है। इसका इलाज फिर वही डबल मॉस्कदो गज़ दूरी और हैंडवाश के साथ ही जल्दी से जल्दी सबको वैक्सीन लगाना ही है। लेकिन बिना ज़रूरत बाहर घूम रहे भीड़ वाली जगह पर निश्चिंत और राजनेताओं की चुनावी रैली व जनसभाओं के साथ कुंभ मंदिर मस्जिद जैसे धार्मिक स्थलों में थोक में जा रहे लोगांे को देखकर लगता है। उनको कोरोना से बिल्कुल डर नहीं लग रहा है। अलबत्ता वे लॉकडाउन के ज़रूर भय खा रहे हैं कि कहीं पिछले साल की तरह पूरे देश में लंबी तालाबंदी ना हो जाये लेकिन वे भूल रहे हैं कि अगर वे मॉस्क और शारिरिक दूरी का पालन नहीं करेेंगे तो कोरोना का शिकार तो बन ही सकते हैं। साथ साथ बढ़ते जनदबाव संक्रमण और मौत के आंकड़ों की स्पीड बेकाबू होने से धीरे धीरे सरकार भी दिल्ली और महाराष्ट्र की तरह एक बार फिर ना चाहते हुए भी लॉकडाउन के लिये मजबूर हो सकती है।