Saturday 18 May 2019

क्षेत्रीय दल किंगमेकर

23 मई: क्षेत्रीय दल बनेंगे किंगमेकर ?

01984 के तीन दशक बाद 2014 में किसी दल को संसद में अपने बल पर पूर्ण बहुमत मिला था। एक तरह से यह बहुमत भाजपा को न मिलकर मोदी को मिला था। वजह यह थी कि जनता को एमपी न चुनकर सीध्ेा पीएम के तौर पर मोदी को चुनने का एक नया प्रयोग संघ परिवार ने किया था। हालांकि यह संसदीय चुनाव की भावना के खिलाफ़ एक तरह से पीएम को सीधे राष्ट्रपति चुनने जैसा था। इसका परिणाम आज हमारे सामने है।        

         

   देश में चल रहे चुनाव के 7 में से 6 चरण निबट चुके हैं। यानी 543 में से 484 सीटों पर चुनाव हो चुका है। अभी तक के जो रूजहान सामने आये हैं। उनसे यह तो पक्का नहीं कहा जा सकता कि किसकी सरकार केंद्र में बनेगी?लेकिन चुनावी विश्लेषक यह ज़रूर मानकर चल रहे हैं कि इस बार जो भी सरकार बनेगी वह गठबंधन सरकार होगी। इसका मतलब यह भी माना जा सकता है कि लंबे समय से केंद्र सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभा रहे क्षेत्रीय दल एक बार फिर से 2019 के चुनाव में मज़बूत होकर उभरने जा रहे हैं।

    मिसाल के तौर पर देश के सबसे बड़े राज्य यूपी मेें सपा बसपा और लोकदल का महागठबंधन सत्ताधरी भाजपा का दिल्ली का रास्ता रोकने में कामयाब होता नज़र आ रहा है। पिछले चुनाव में यहां कुल 80 सीटों में से भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 73सीटें जीत ली थीं। लेकिन इस बार भाजपा पहले से आधी सीटें भी जीत ले तो उसके लिये बड़ी उपलब्धि होगी। ऐसे ही 48 सीट वाले महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना को विरोधी कांग्रेस व एनसीपी के गठबंधन से तगड़ी चुनौती मिल रही हैै। इतना ही नहीं वहां पूरे 5 साल भाजपा को कोसकर फिर उसके साथ चुनाव लड़ने वाली शिवसेना को चुनाव में भारी नुकसान की ख़बरें आ रही है।

    शायद इतना ही काफी नहीं था जिससे मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भाजपा गठबंधन के खिलाफ जोरदार मोर्चा खोल दिया है। एटीएस प्रमुख रहे करकरे के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी आतंक आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के घटिया बयान से भी मराठी मानुष भारी गुस्से में बताया जाता है। उधर गुजरात और राजस्थान जहां पिछले चुनाव में भाजपा ने मोदी के नाम पर सभी लोकसभा सीटें जीत लीं थीं। इस बार सीन बिल्कुल बदला हुआ है। मोदी के घर यानी गुजरात में 2017 के चुनाव में जब कांग्रेस ने भाजपा को 150 के लक्ष्य की बजाये 99 के फेर में फंसाया था।

    यह बात तभी साफ हो गयी थी कि भविष्य में लोकसभा चुनाव मेें भी कांग्रेस भाजपा से ज़ीरो पर आउट नहीं होगी। ऐसे ही राजस्थान में अब कांग्रेस की सरकार है। इससे यह तय है कि परिणाम चाहे जो हो कांग्रेस वहां भाजपा से कुछ एमपी ज़रूर छीन लेगी। इसके साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की 6माह पहले सरकारें बनी हैं। वहां भी भाजपा को वह एकतरफा वाकऑवर नहीं देगी। कर्नाटक में जेडीएस कांग्रेस का गठबंधन बन गया है। दिल्ली में सभी सातों सीटें जीतने वाली भाजपा से आप और कांग्रेस दो या तीन सीट झटक ही लेंगी।

    अब सवाल यह है कि अगर सभी राज्यों में भाजपा घटेगी तो वह बढ़ेगी कहांमोदी और अमित शाह का दावा है कि वे बंगाल व उड़ीसा में भारी संख्या में सीटें जीतने जा रहे हैं। लेकिन जानकार बताते हैं कि न तो उन दोनों राज्यों में ममता बनर्जी और नवीन पटनायक की पकड़ कमज़ोर हुयी है और न ही भाजपा इतनी मज़बूत हो सकी है कि वह सीध्ेा दो डिजिट में एमपी जिता सके। अलबत्ता यह तय है कि दोनों राज्यों में भाजपा का मत प्रतिशत तेज़ी से बढ़ रहा है। वह इस बार भी काफी बढ़ेगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि ऐसा होने से वहां के क्षेत्रीय दलों को कोई भारी नुकसान होगा।

     बल्कि इसका मतलब यह है कि वहां पहले से विपक्ष में मौजूद कांग्रेस और वामपंथी पिछले चुनाव से और कमज़ोर होंगे। इनका वोट भाजपा की तरफ जा रहा है। उधर दक्षिण के एकमात्र अपने प्रभाव वाले राज्य कर्नाटक में कमज़ोर पड़ने के बाद भाजपा ने तमिलनाडू और केरल में पांव जमाने की जीतोड़ कोशिश की है। लेेकिन वहां उसने जिस एआईडीएमके से गठबंधन किया था। जयललिता की मृत्यु के बाद वह पूरी तरह बिखर गया है। इससे भाजपा को न तो खुद और न ही उसके इस नये घटक को बड़ी संख्या में सीट मिलने जा रही है।

    कुल मिलाकर नतीजा यह लग रहा है कि एक बार फिर 2004 के फीलगुड नारे की नाकामी की तरह भाजपा पिछड़कर 200 सीट तक सिमट सकती है। साथ ही कांग्रेस 120सीट तक पहुंच सकती है। एनडीए और यूपीए के घटक भी मिलकर 272 का आंकड़ा हासिल नहीं कर पायेंगे। इन हालात को मोदी ने अभी से भांप लिया है। इसलिये वह अपने दोनों विकल्प खुले रखने वाले बीजू जनता दल के नवीन पटनायक की खुलकर तारीफो के पुल बांध रहे हैं। साथ ही वे बसपा की मायावती को भी सपा और कांग्रेस की चालों से सावधान करके अपने लिये कम पड़ने पर बहुमत जुगाड़ने की चाल चल रहे हैं।

    उनकी नज़र लगभग 20 सीट जीतकर आने की चर्चा वाले आंध््रा के वाइएसआर कांग्रेस के जगन रेड्डी पर भी लगी है। लेकिन चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाने की बात करे रहे तेलंगाना के चंद्रशेखर राव ने खुद को डिप्टी पीएम बनाने की शर्त पर कांग्रेस को ही ज़रूरत पड़ने पर समर्थन का ऐलान करके इशारा दे दिया है कि वह मोदी को फिर से पीएम बनता नहीं देखना चाहते हैं। उधर मायावती शरद पवार और ममता बनर्जी की नज़र भी देश के सबसे बड़े पद पर गड़ी हुयी है। भाजपा महासचिव राममाधव और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने भी यह मान लिया है कि मोदी को पीएम बनने के लिये गठबंधन के घटकों की ज़रूरत पड़ सकती है।

    इसका मतलब इतना तय है कि मोदीराहुल या तीसरा मोर्चा चाहे जो सरकार बनाये किंगमेकर क्षेत्रीय दल ही बनने जा रहे हैं।                                                

0 लहजे के बाद अब वो बदलता निगाह भी,

  रस्ता बदलके हमने उसे हैरान कर दिया ।।

Sunday 5 May 2019

चुनाव आयोग

चुनाव आयोग भाजपा का मतदान प्रकोष्ठ ?

0आजकल सोशल मीडिया पर चुनाव आयोग पर एक जोक वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया गया है कि चुनाव आयोग ने भाजपा में शामिल होने से साफ़ इन्कार कर दिया है। लेकिन साथ ही चुनाव आयोग ने भाजपा को यह विश्वास भी दिलाया है कि वह बाहर रहकर उसको समर्थन देता रहेगा। यह चुनाव आयोग के पक्षपात की बानगी मात्र है।       

       

   देश आज़ाद होने के बाद शायद ऐसा पहली बार हो रहा है। जब हमारी स्वायत्त संस्थायें जैसे चुनाव आयोग सीबीआई आरबीआई ईडी एनआईए सूचना आयोग सतर्कता आयोग और मानव अधिकार आयोग राष्ट्रीय सांख्यकी संगठन और सीएजी आदि अपनी निष्पक्षता को लेकर सवालों के घेरे में हैं। आजकल चूंकि देश में चुनाव चल रहे हैं तो इनमें चुनाव आयोग का नाम सबसे अधिक चर्चा में है। हालत इतनी ख़राब है कि लोकतंत्र का तीसरा सबसे मज़बूत स्तंभ न्यायपालिका तक अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भता को लेकर चिंतित नज़र आती हैै।

       एक समय था। जब देश के चुनाव आयुक्त टी एन शेषन हुआ करते थे। वे मज़ाक में कहते थे कि वह नाश्ते में नेताओं को खाते हैं। यह बात किसी हद तक सच भी है कि उन्होंने इसी चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्त रहते हुए बेलगाम और अहंकारी नेताओं को संविधान के दायरे में उनकी सीमा दिखा दी थीं। साथ ही नियम कानून न मानने वाले कई नेताओं का सियासी दिवाला भी शेषन ने निडरता से निकाल कर उनमेें एक भय पैदा कर दिया था। आज हालत यह है कि चुनाव आयोग अव्वल तो किसी नेता के खिलाफ चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने पर मुंह खोलने से ही डरता है।

      जब उसकी अपराधिक चुप्पी पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहंुच गया तो उसने यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिये कि वह एक दंतहीन संस्था है। लेकिन जब सबसे बड़ी अदालत ने उसको लताड़ लगाई तो वह कुछ ज़बानज़ोर नेताओं पर कुछ घंटों की चुनाव प्रचार पर रोक लगाने को मजबूर हुआ। इसके बाद भी आयोग विपक्षी नेताओं पर तो कुछ सख़्ती करता नज़र आया। लेकिन सत्ताधारी दल के नेताओं को विपक्ष वाली गल्ती दोहराने पर नज़रअंदाज़ करने का विपक्ष का आरोप झेलने को मजबूर हुआ। यानी रूलिंग पार्टी के प्रति वह नरम बना रहा।

     इतना ही नहीं मुख्य चुनाव आयुक्त पीएम मोदी को तो शायद कानून से उूपर मानकर चल रहे हैं। उनको लगता है कि मोदी ने ही उनको बिना योग्यता वरिष्ठता और डिज़र्व किये इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन किया है। वह खुद को अपनी निष्पक्षता की शपथ और संविधान के हिसाब न चलाकर मोदीभक्ति के अनुसार बेशर्मी की सभी सीमायें लांघ चुके हैं। खुद चुनाव आयोग ने चुनाव शुरू होने से पहले सभी दलों के नेताओं को सेना की उपलब्ध्यिों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में न करने को कहा था। मोदी ने सबसे पहले इस निर्देश को ठेंगा दिखाया।

    इसकी शिकायत हुयी। लेकिन पहले तो चुनाव आयोग ने कोई संज्ञान नहीं लिया। इसके बाद हंगामा होने पर महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयुक्त से जांच को कहा। जांच में स्थानीय अधिकारियों ने प्रथम दृष्टया पीएम को दोषी पाया। लेकिन चुनाव आयोग ने फिर भी आज तक कोई एक्शन नहीं लिया। इसके बाद पीएम के बारे में शिकायत आयोग की वेबसाइट से हटा दी गयी। इसके बाद मोदी का विमान एक चुनाव ऑब्ज़र्वर ने उनके विमान से एक रहस्मयी काला बॉक्स उतारे जाने पर चैक कर लिया। इसको मोदी ने अपनी नाक का सवाल बना लिया।

     आयोग ने मोदी के दबाव में ईमानदार और निडर ऑब्ज़र्वर को इनाम की बजाये सज़ा देकर सस्पैंड कर दिया। इतना ही नहीं मोदी बार बार साम्प्रदायिकता हिंदू मुस्लिम और सेना का नाम लेकर आचार संहिता की धज्जियां खुलेआम उड़ाते रहे। लेकिन चुनाव आयोग की हिम्मत ही नहीं हुयी कि उनसे जवाब तलब कर सके। मोदी के साथ भाजपा मुखिया अमित शाह और उनके कई मंत्री व बड़े नेता भी एक के बाद एक चुनाव आचार संहिता का मज़ाक उड़ाते रहे। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट पहंुचने के बाद भी चुनाव आयोग ने शिकायत होने के 25 दिन बाद तक भी आयोग की बैठक तक नहीं की।

     जब सर्वाेच्च न्यायालय ने आयोग को खुद कार्यवाही करने की चेतावनी देकर कहा कि वह बताये कि उसने इन शिकायतों पर क्या कार्यवही कीतब भी आयोग ने निर्लजता से यह कह दिया कि मोदी और शाह ने आचार संहिता का कोई उल्लंघन नहीं किया है। इसके खिलाफ मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। हो सकता है उचित पाये जाने पर कोर्ट आरोपी नेताओं के खिलाफ चुनाव आयोग को ही कदम उठाने पर मजबूर कर सके।

     लेकिन एक बात साफ हो गयी है कि2014 में मोदी को एमपी की बजाये पीएम के रूप में चुनने को मजबूर कर संघ परिवार ने जनता को लोकतंत्र संविधान और निष्पक्षता को दरकिनार कर व्यक्तिवादी तानाशाही का रास्ता खोल दिया था। उसी भूल का नतीजा है कि आज न कैबिनेट की कोई पॉवर है और न ही चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की इतनी हिम्मत है कि वह सारी दुनिया में थू थू होने पर भी पीएम मोदी को कानून का आईना दिखा सके। भविष्य में चुनाव आयुक्त के चयन के लिये पीएमनेता विपक्ष और चीफ जस्टिस की एक कमैटी बनाई जानी चाहिये। इसके साथ ही सभी दल इस बात पर भी सामूहिक रूप से विचार करें कि चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के सभी निर्णयों की समीक्षा अवलोकन और अनुमोदन सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य कर दिया जाये।                                                

0 हवा के दोश के पे रक्खे हुए चिराग़ हैं हम,

  जो बुझ गये तो हवाओं से शिकायत कैसी ।।