Wednesday 28 February 2018

मोब लिंचिंग

मोब लिंचिंग: सिस्टम की नाकामी ?

0 जयपुर में केरल के आदिवासी गरीब असहाय मज़दूर फ़ैज़ल को भीड़ ने भूखा होने पर खाना चुराने के आरोप में पीट पीटकर मार डाला। उधर असम में 800 लोगों की एक भीड़ ने बलात्कार के एक आरोपी को थाने में घुसकर मौत के घाट उतार दिया। ऐसी घटनायें तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं। शायद ही इनके आरोपियों को कानून द्वारा कभी सज़ा मिले? उधर विजय माल्या ललित मोदी और नीरव मोदी बैंको के हज़ारों करोड़ रूपये डकार आराम से विदेष भाग गये। इसका मतलब सरकारी कारिंदे अमीरों को अभयदान दे रहे हैं जबकि गरीब और लाचार आम आदमी बिना आरोप साबित हुए ही भीड़ के हाथों जान से हाथ धो रहा है।

 

हमारे देश में इस समय ऐसा घृणा और हिंसा का घुटनभरा माहौल बन गया है। जिसमें एक बड़ा वर्ग 24 घंटे 365 दिन दूसरे छोटे वर्ग को अपना और देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानकर नफ़रत और बदले की भावना से तपता रहता है। इसी का नतीजा है कि कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति और रेप के नाम पर एक समूह के लंपट दूसरे समूह के निरीह और अकेले प्राणी को कहीं भी कभी भी पीट पीटकर किसी ना किसी बहाने जान से मार देते हैं। अजीब बात यह है कि संविधान और कानून के नाम पर शपथ लेने वाली विभिन्न सरकारें भी ऐसी क्रूर और वीभत्स हिंसा को अंदर ही अंदर शह देती नज़र आती हैं।

हालांकि मीडिया और विदेश तक मेें शोर मचने और दूसरे वर्ग की प्रतिक्रिया के डर से दिखावे के लिये ऐसे मामलों में छिटपुट कानूनी कार्यवाही भी की जाती है। लेकिन बाद में इन मामलों में या तो आरोपियों की सांठगांठ सत्ताधारी नेताओं से होने के कारण फ़ाइनल रिपोर्ट लगा दी जाती है या फिर उल्टे पीड़ित को ही आरोपी बनाकर चार्जशीट कोर्ट में पेश की जाती है। अलवर के पहलू खान के मामले में पुलिस यह हैरतनाक और दुखद कारनामा करके दिखा चुकी है। अन्य मामलों में भी पुलिस का रूख़ सत्ताधारी दल और सरकार मंे बड़े पदों पर आसीन अपने आक़ाओं के इशारे पर कानून और निष्पक्षता के खिलाफ ही नज़र आता है।

असम के मामले से यह भी पता लगता है कि जब एक बार भीड़ को आप किसी धर्म या जाति विशेष के लोगों को सबक सिखाने के लिये कानून हाथ में लेने के लिये उकसाते हैं। या खुद कानून हाथ में लेने पर उनके खिलाफ कोई गंभीर मुक़दमा दर्ज नहीं होता तो उनको देखकर लोग देश के अन्य क्षेत्रों में भी मोब लिंचिंग का प्रयोग अकसर करने लगते हैं। असम में 800 लोगों की जिस भीड़ ने बलात्कार के आरोपी को थाने में घुसकर जान से मारा वह बहुसंख्यक समाज का ही था। यानी जो भीड़ की हिंसा कभी विधर्मी और विजातीय लोगों के लिये जायज़ और वाजिब ठहराई जा रही थी।

वह आज उसी समुदाय के लिये काल बनती जा रही है। जिसने इसको दूसरे समुदाय के खिलाफ कभी गाय तो कभी लव जेहाद तो अस्पर्श्यता के लिये तय किया था। भीड़ अब यह भी दुहाई देने लगी है कि अगर ऐसी घटनाओं में आरोपी को कानून के हिसाब से सज़ा दिलाने की कोशिश की जाये तो वह अकसर नाकाम हो जाती है। भीड़ का तर्क है कि अकसर तो पुलिस घंटों तक बुलाने पर आती नहीं। जब पुलिस आ भी जाती है तो वह मुक़दमा कायम करने में आनाकानी करती है। इसके बाद आरोपी की सिफारिश या उसके पक्ष में भी भीड़ जुट जाने पर उसको छोड़ने पर मजबूर हो जाती है।

इसके अलावा पुलिस पर जेब गर्म कर आयेदिन आरोपी को थाने से ही भगा देने के आरोप भी आम बात है। बाद में केस दर्ज होने पर लोगों को वादी और गवाह बनना पड़ता है। जिससे सालों तक कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने होते हैं। फिर भी आरोपी 97 फीसदी मामलों में छूट जाता है। तो क्या हमारा सिस्टम नाकाम है?

0दुनिया ने तजुर्बात ओ हवादिस की शक्ल मेें,

जो कुछ मुझे दिया है वही लौटा रहा हूं मैं ।।

Saturday 24 February 2018

हिजाब का विरोध

ईरान में हिजाब जाकर ही रहेगा!

01979 में ईरान में तथाकथित क्रांति के नाम पर जो कट्टर पंथ और दकियानूसी परंपराओं को जबरन कानून के बल पर लोगों पर थोपा गया था। अब उसके खिलाफ़ महिलाओं ने हिजाब उतारने का झंडा बुलंद पहल कर दी है।        

       

   बदलाव ही एकमात्र ऐसा शब्द है। जो कभी नहीं बदला जायेगा। जबकि दुनिया की हर चीज़ को समय और ज़रूरत के हिसाब से बदलना ही है। जो नहीं बदलेंगे या तो ख़त्म हो जायेंगे या फिर प्रगति और विकास की दौड़ में पीछे रह जायेंगे। कुछ लोगों का यह दावा रहा है कि कुछ मुल्क और कौमें कभी नहीं बदलेंगी। जबकि यह महज़ क़यास ही है। अब ईरान को ही ले लीजिये। वहां महिलाओं ने हिजाब के खिलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। कम लोगों को याद होगा कि 1979 से पहले ईरान एक खुला और आधुनिक देश हुआ करता था। वहां धार्मिक क्रांति के बाद महिलाओं पर तरह तरह के प्रतिबंध लगा दिये गये।

हिजाब भी उन प्रतिबंधों में से एक था। एक तरह से चार दशक बाद ईरानी महिलाओं ने हिजाब के खिलाफ बग़ावत की है। जोकि आज नही ंतो कल होनी ही थी। बीते साल27 दिसंबर को 31 साल की मोवाहेदी ने सड़क पर रखे यूटिलिटी बॉक्स पर अपने हिजाब को झंडे की तरह लहरा दिया। पुलिस ने उसको पकड़ लिया। उसको हिजाब कानून तोड़ने के आरोप में सज़ा दी गयी। वह जेल गयी। बाद में रिहा हो गयी। इसके बाद मोवाहेदी की हिम्मत को महिलायें दाद देने लगीं। उनसे प्रेरणा और हिम्मत हासिल कर ईरान की दूसरी महिलायें भी हिजाब से बग़ावत करने लगीं हैं।

दरअसल ईरान मंे हिजाब के खिलाफ़ अभियान काफी पुराना है। 2014 में प्रवासी ईरानी पत्रकार मासिह एलिनेजाद ने मेरी गुप्त स्वाधीनता’ नाम से फेसबुक पर एक पेज बनाया था। मासिह ने ईरानी महिलाओं से अपील की थी कि वे सार्वजनिक स्थान पर अपना हिजाब खोलकर फैंके और उसकी फोटो लेकर उनके फेसबुक पेज पर अपलोड कर दें। यह पेज जल्दी ही पूरी दुनिया में मशहूर होने लगा। इस पर ईरानी महिलाओं ने थोक में हिजाब उतारते हुए फोटो पोस्ट करने शुरू कर दिये। बाद में हिजाब के खिलाफ महिलाओं का बढ़ता रूजहान देखकर मासिह ने व्हाइट वैंस्डेआंदोलन शुरू कर दिया।

वे सफेद हिजाब के खिलाफ एक नई तरह का अनोखा आंदोलन चला रही हैं। मासिह2009में ईरान छोड़ चुकी हैं। मासिह ने बिना हिजाब के कार चलाने का फोटो भी अपने फेसबुक पेज पर अपलोड किया था। आपको याद दिला दें कि 1979 से पहले शाह पहलवी ने औरतों के हिजाब को ईरान में पूरी तरह से रोक दिया था। लेकिन 1979की कट्टरपंथी बग़ावत के बाद खुमैनी ने सबसे पहला काम महिलाओं के हिजाब का आदेश जारी कर के ही किया था।2014 में हिजाब को उतार कर सार्वजनिक स्थानों पर विरोध दर्ज करने वाली औरतों की तादाद ईरान में 36 लाख तक पहंुच चुकी थी।

2006 मेें नारीवादियों ने हिजाब के खिलाफ10 लाख हस्ताक्षर कर के वहां की सरकार को हिजाब ख़त्म करने के लिये एक मांग पत्र भी दिया था। लेकिन जैसा कि आशंका थी। ईरान की सरकार पर इससे कोई असर नहीं पड़ा। हाल ही में महिलाओं का हिजाब विरोधी आंदोलन काफी तेज़ होता जा रहा है। वहां की सरकार अब तक29 महिलाओं को हिजाब की होली जलाने पर जेल भेज चुकी है। लेकिन ईरान पर इस बार पूरी दुनिया का यह दबाव है कि वह महिलाओें के साथ जबरन हिजाब के नाम पर किये जा रहे इस लैंगिक भेदभाव को तत्काल बंद करे। ऐसी चर्चा है कि ईरान सरकार हिजाब कानून वापस लेकर हिजाब वैकल्पिक कर सकती है।                             

0 मज़हबी बहस हमने की ही नहीं,

  फ़ालतू अक़्ल हम में थी ही नहीं।।

Tuesday 20 February 2018

प्यार बनाम नफ़रत

आखि़र प्यार से हार ही गयी नफ़रत!

0इस बार 14 फ़रवरी को एक खास बात हुयी। वैलंेटाइन डे का हर बार विरोध करने वाले विश्व हिंदू परिषद के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट प्रवीण तोगड़िया ने ऐलान किया कि वे इस बार प्यार के दिन का विरोध नहीं करेंगे। उनका कहना था कि प्यार करने का हर युवक युवती को पूरा अधिकार है।       

       

   तोगड़िया ने कहा कि युवक युवतियां प्रेम नहीं करेंगे तो शादी नहीं होगी और जब शादी ही नहीं होगी तो सृष्टि कैसे चलेगी? उनका कहना है कि युवक युवतियों को प्रेम करने का पूरा अधिकार है। यह उनको मिलना ही चाहिये। हमारी बेटी और हमारी बहन को भी प्यार करने का अधिकार है। यह हैरतनाक है। आपको याद होगा पहले हर साल इस दिन विहिप बजरंग दल और विद्यार्थी परिषद के उग्र तत्व प्रेमी जोड़ों को पार्कों होटलों और सार्वजनिक स्थानों पर दौड़ा दौड़ा कर पीटा करते थे। वे प्रेमी प्रेमिकाओें को पकड़कर जबरदस्ती भाई बहन भी मनवाया करते थे।

पुलिस ऐसे मामलों में अव्वल तो खुद ऐसे प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराती थी। अगर कोई उनसे संघ परिवार के इस उग्र तत्वों के काले कारनामों की शिकायत भी करता तो पुलिस ऐसे पेश आती थी। जैसे उसको प्रेमी प्रेमिका को नहीं उनका विरोध कर रहे हिंसक तत्वों के बचाव के लिये नियुक्त किया गया हो। कई बार जब मीडिया और प्रगतिशील लोगों ने पुलिस प्रशासन और सरकार की इन कथित भारतीय संस्कृति के ठेकेदारोें की कड़ी निंदा की तो पुलिस को इन मामलों में कार्यवाही करने को मजबूर होना पड़ा। बाद में ऐसे मामले जब कोर्ट में पहुंचे तो वहां भी पुलिस प्रशासन को जमकर डाट लगाई गयी।

इसके बाद सरकार बार बार किरकिरी होने से ऐसे मामलों में सक्रिय होनी शुरू हुयी। इसके साथ देश में बढ़ती बे रोज़गारी से युवाओं में वर्तमान सरकार के प्रति लगातार रोष बढ़ रहा है। खुद तोगड़िया का संघ परिवार में विवाद चल रहा है। उनको उनके पद से हटाने की तैयारी चल रही है। लेकिन वे अभी अपना पद किसी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनका सरकार के वर्तमान मुखिया से वैचारिक मतभेद है। उन्होंने पिछले दिनों अपने फर्जी एनकाउंटर तक की आशंका व्यक्त की थी। ऐसे में तोगड़िया को लगता होगा कि उनको अगर युवाओं का दिल जीतना है तो उनको 14फ़रवरी को प्यार करने से नहीं रोकना चाहिये।

इतना ही नहीं इस बार हर बार की तरह संघ परिवार के अन्य घटक भी उतनी उग्रता और हिंसक तरीके से वैलेंटाइन डे का विरोध नहीं कर पाये जितना तीखा विरोध वे 14 फ़रवरी का किया करते थे। इसका एक मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि देर से ही सही संघ परिवार और तोगड़िया को यह बात धीरे धीरे समझ आने लगी है कि आज के युवाओं को वे न तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देकर और न ही डरा धमकाकर हिंसक तरीके से प्यार करना छोड़ने को तैयार कर पायेेंग।

इसके विपरीत आज की युवा पीढ़ी धीरे धीरे यह समझती जा रही है कि संघ और भाजपा सरकारें उनको रोज़गार शिक्षा स्वास्थ्य और व्यक्तिगत आज़ादी देने की बजाये झूठे इतिहास में उलझाकर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिये मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। यही वजह है कि हाल ही मंे कई विश्वविद्यालयों के छात्र संगठनों के चुनाव में संघ की विद्यार्थी परिषद से छात्र छात्राओं का मोहभंग होता नज़र आने लगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि संघ परिवार को यह अहसास होने लगा है कि आज का युवा उसके झांसे में अधिक दिन तक नहीं रह पायेगा। यह एक तरह से नफ़रत पर प्रेम की जीत है।                           

0 लहजे के बाद अब वो बदलता निगाह भी,

  रस्ता बदल के हमने उसे हैरान कर दिया ।।

Thursday 15 February 2018

भागवत जी बताएं

भागवत जी से पूछा जाना चाहिए !

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी ने कहा है कि सेना को जंग के लिये तैयार होने में 6 माह लग जाते हैं। जबकि उनके स्वयंसेवक मात्र तीन दिन में इस काम के लिये तैयार हो सकते हैं। लेकिन भागवत जी से पूछा जाना चाहिये कि उनके स्वयंसेवकों ने आज तक कौन सी जंग लड़ी है? जबकि हमारी सेना ने तो कई जंग लड़ी और जीती हैं।

आरएसएस खुद को सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करता है। लेकिन सबको पता है कि हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं। संघ एक साम्प्रदायिक संगठन है। यह बात उसके न मानने के बावजूद किसी से छिपी नहीं है। संघ का राजनीतिक मुखौटा भाजपा है। एक तरह से देखा जाये तो आज संघ ही सत्ता मंे है। मोदी जी एक दिखावटी प्रधनमंत्री हैं। अटल बिहारी वाजपेयी तो एनडीए सरकार का पीएम रहते संघ की कई बातों को टाल भी देते थे। लेकिन मोदी जी संघ के अनुशासित स्वयंसेवक हैं। जिस तरह से सत्ताधारी दल सरकार में रहने पर कभी कभी मनमाहनी और तानाशाही पर उतर आता है।

उसी तरह अप्रत्यक्ष रूप से आज केंद्र और देश के आध्ेा से अधिक राज्यों में संघ या उसके घटक दलों की सरकार होने से संघ अहंकार का शिकार होकर खुद को कानून से बाहर समझने लगा है। यह बात किसी हद तक सही भी साबित होती नज़र आ रही है। सेना की तैयारी को लेकर जो बयान भागवत जी ने दिया है। अगर ठीक ऐसा ही बयान किसी विपक्षी दल के नेता या दलित व अल्पसंख्यक नेता ने दिया होता तो संघ परिवार न केवल अब तक आसमान सर पर उठा लेता बल्कि उसपर सेना का मनोबल गिराने के आरोप में पुलिस केस भी दर्ज कर चुकी होती।

इससे पहले भागवत संविधान और आरक्षण को लेकर भी विवादित बयान दे चुके हैं। लेकिन चंूकि वे सत्ता मेें हैं तो उनको सात खून माफ हैं। खुद देशभक्त होने और दूसरों की देशभक्ति को चैक करने का ठेका लेने वाला संघ एक बार सभी भारतवासियों को हिंदू भी घोषित कर चुका है। जबकि हिंदुओं का ही बड़ा वर्ग उनकी इस बात से सहमत नहीं हुआ है। हम सब भारतीय या हिंदुस्तानी तो हो सकते हैं। सब हिंदू कैसे बताये जा सकते हैं? मुसलमान सिख ईसाई जैन पारसी यहूदी और अन्य अनेक धर्मों को मानने वाले खुद को किसी कीमत पर हिंदू मानने को तैयार नहीं हैं।

ऐसे ही एक बार भागवत जी ने यह ऐलान कर दिया कि अयोध्या के विवादित मंदिर मस्जिद स्थान पर राम मंदिर ही बनेगा चाहे कोर्ट का फैसला किसी के भी पक्ष में आये। इसका मतलब उनका कानून कोर्ट और संविधान में ही विश्वास नहीं है। इससे पहले संघ अपने नागपुर मुख्यालय पर 50 साल से अधिक समय तक भारतीय तिरंगा भी नहीं फहराता था। संघ पर देश के आज़ादी के आंदोलन में अंग्रेज़ों का साथ देकर स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा देने के आरोप भी लगते रहे हैं। संघ की विचारधारा से ही प्रभावित एक उग्र युवा नाथूराम गोडसे पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगा था।

इसी वजह से संघ पर कई साल तक प्रतिबंध भी लगा था। बाद मंे उसने लिखित माफीनामा देकर सरकार से यह वादा किया था कि वह कभी भी राजनीतिक गतिविधि नहीं करेगा। लेकिन बाद में उसने पहले जनसंघ और फिर भाजपा बनाकर बैक गेट से सियासत शुरू कर दी। आज जब उसके नियंत्रण में चल रही मोदी और राज्यों की अन्य भाजपा सरकारें हर मोर्चे पर नाकाम है तो वे ऐसे बयान देते हैं।

कुर्सी ही तो है, तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है,

कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते।

मंदिर मस्जिद

मंदिर मस्जिद विवादः समझौता मानेगा कौन ?

0बाबरी मस्जिद राम मंदिर विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसके साथ साथ कुछ समझदार ज़िम्मेदार और सुलझे हुए लोग इस विवाद को आपसी बातचीत से निबटाने की भी कोशिश करते रहे हैं लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सीनियर संस्थापक सदस्य मौलाना सलमान नदवी को जिस तरह सुलह सफाई की इस कोशिश में शामिल होने पर बोर्ड से निकाला गया वह कट्टरता और संकीर्णता को ही दर्शाता है।

आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर आजकल रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद आपसी बातचीत से अदालत से बाहर निबटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने एक बार पहले भी ऐसा प्रयास शांति और सद्भाव के लिये शुरू किया था। लेकिन दोनों पक्षों का सहयोग न मिलने से उनको आशातीत सफलता नहीं मिल सकी थी। इस बार उन्होंने फिर से यह कोशिश शुरू की है। उनका मानना है कि कोर्ट का फैसला किसी एक पक्ष में जायेगा जिससे दूसरा पक्ष या तो उसको मानने से मना करेगा या  फिर अंदर ही अंदर नाराज़ रहेगा। हारने वाले पक्ष को लगेगा उसके साथ न्याय हुआ।

ऐसे में देर सवेर इस मुद्दे पर टकराव बना रहेगा। श्री श्री को लगता है कि किसी एक पक्ष को इस अपमान और दुखी होने से बचाने के लिये आपसी बातचीत के ज़रिये कोई बीच का सम्मानजनक समझौते का रास्ता बातचीत से निकाला जाना चाहिये। हमें नहीं लगता इसमें श्री श्री का कोई निजी स्वार्थ या आकांक्षा हो सकती है। इस बार उनके साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य मौलाना सलमान नदवी खुलकर खड़े हो गये।

मौलाना ने एक प्रस्ताव उनके सामने रखा कि अगर मुसलमान हिंदू भाइयों की भावना आस्था और परस्पर सौहार्द का सम्मान करते हुए बाबरी मस्जिद को कथित रामजन्म भूमि से हटाकर कहीं और बनाने को तैयार हो जाते हैं तो क्या हिंदू भाई इस बात की गारंटी देंगे कि वे भविष्य में किसी और मस्जिद पर इस तरह का विवाद नहीं करेंगे। मौलाना सलमान का यह सवाल भी था कि इसके बदले में खुद हिंदू भाई जो आलीशान मस्जिद तैयार कराकर देंगे उसमें मुसलमानों को बे रोकटोक आने जाने नमाज़ पढ़ने और घूमने की पूरी आज़ादी मिलेगी?

मौलाना की यह मांग भी थी कि अगर मुसलमान शांति एकता और आपसी भाईचारे के लिये इतनी बड़ी कुरबानी देते हैं तो क्या सरकार उनको मॉडर्न एजुकेशन के लिये एक नई यूनिवर्सिटी अलीगढ़ और रामपुर की तरह बनाकर दे सकती है? उनका यह भी कहना है कि बाबरी मस्जिद के केवल उस हिस्से से दावा छोड़ने पर जिसको हिंदू भाई अपने भगवान राम की जन्मभूमि मानते हैं क्या भविष्य में मुसलमानों के साथ समय समय पर होने वाले पक्षपात और अन्याय को ख़त्म कर बराबरी का सलूक और शोषण से मुक्ति का रास्ता खोल सकता है?

अभी मौलाना नदवी ने इस मुद्दे पर सवाल जवाब और चर्चा शुरू ही की थी कि बोर्ड ने उनको बोर्ड से अलग राय रखने पर अनुशासनहीनता के आरोप में निकाल दिया है। यह बोर्ड का कट्टर संकीर्ण और जल्दबाज़ी में उठाया गया क़दम ही माना जायेगा। बोर्ड यह नहीं समझ पा रहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाबरी मस्जिद के पक्ष में आ भी जाता है तो आज ऐसे हालात बन गये हैं कि उस पर अमल कराने के लिये सरकार तैयार नहीं होगी। दूसरी बात शाहबानो के फैसले की तरह भाजपा सरकार कोर्ट के फैसले को संसद में पलटने के लिये कानून बना सकती है।

अपै्रल में भाजपा का राज्यसभा में भी बहुमत होने जा रहा है। जिससे मोदी सरकार को हिंदुओं को खुश करने का एक सुनहरा मौका नज़र आ रहा है। उसको पता है कि वह अपने वादे विकास रोज़गार करप्शन और कालेधन यानी लगभग सभी मुद्दों पर नाकाम है। ऐसे में उसके पास एक ही रास्ता बचता है कि वह मंदिर के पक्ष में कोर्ट का निर्णय न आने पर भी कानून बनाकर अपना हिंदू वोट बैंक मज़बूत कर 2019 का आम चुनाव जीत ले। जबकि कम लोगों को पता है कि समझौता कुछ लोगों के विवाद में हो सकता है। जिस मंदिर मस्जिद विवाद में लगभग पूरा मुल्क ही दो हिस्सों बंट गया हो वहां कोई न कोई असहमत होकर कोर्ट का फैसला ही चाहेगा।

ज़ख़्म भर जाते मगर उफ़ ये खुरचने वाले,

रोज़ आ जाते हैं दिखलाइये अब कैसे हैं ।।

Tuesday 13 February 2018

जय श्री राम

सबको बोलना होगा जय श्रीराम ?

0राजस्थान से पहले कई ख़बरें गोभक्तों द्वारा कई मुसलमानों को गो तस्करी के झूठे आरोप में पीट पीटकर मारने की आईं। अब सिरोही क्षेत्र के आबू रोड पर एक बुज़ुर्ग को पीट पीटकर उससे जबरन जय श्रीराम कहलवाने का वीडियो सोशल नेटवर्किंग पर वायरल हो रहा है। पता नहीं ऐसे कट्टर लोगों को यह बात कब समझ आयेगी कि इस तरह आप किसी से कुछ भी ज़बरदस्ती नहीं करा सकते।

तीन मिनट के इस वीडियो में 18 साल का विनय मीणा 45 साल के एक बुज़ुर्ग सलीम को पीट पीटकर जय श्रीराम कहने के लिये मजबूर कर रहा है। विनय तीन मिनट में इस आदमी को 25 थप्पड़ मारता दिखाई दे रहा है। सलीम विनय को यह कहकर समझाने की कोशिश कर रहा है कि परवरदिगार सबसे बड़ा है। लेकिन विनय के सर पर तो मानो खून सवार है। वह सलीम को जबरन जय श्रीराम का नारा लगाने को कह रहा है। हालांकि इस वीडियो की शिकायत जब आसपास के लोगों ने सिटी थाने में की तो पुलिस ने तत्काल गंभीर धाराओं में रपट दर्ज कर विनय को पकड़कर जेल भेज दिया।

एसपी ओमप्रकाश ने यह भी बताया कि यह साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये गंभीर मामला था। इसलिये इस केस में मारपीट की धाराओं केे साथ दो समुदायों में दुश्मनी बढ़ाने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और शांति भंग की धारायें भी लगाई गयीं हैं। कानून के हिसाब से देखा जाये तो इस मामले में पुलिस ने ख़बर मिलते ही अपना काम अंजाम दे दिया है। लेकिन सवाल यह है कि इस तरह के मामले एकाएक बढ़ क्यों रहे हैं? इससे पहले इसी राज्य के राजसमंद में 6 दिसंबर को अफराजुल नाम के बंगाली मज़दूर को शंभूलाल रैगर ने झूठा लव जेहाद का आरोप लगाकर बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया था।

जबकि उसका अपनी अपनी मुंह बोली बहन से ही नाजायज़ सम्बंध था जिसमें अफराजुल आड़े आ रहा था। यह पुलिस की जांच में सामने आई है। राजस्थान के ही अलवर में दूध की डेरी चलाने वाले पहलू खान को कुछ कथित गो रक्षकों ने पीट पीटकर मार डाला था। जबकि वह रसीद के साथ गाय खरीदकर ला रहा था। उस मामले में पुलिस ने लीपापोती कर मौके से पकड़े गये आरोपियों को बाद में राजनीतिक दबाव में क्लीनचिट देकर छोड़ दिया है। इतना ही उल्टा पहलू खान के खिलाफ ही चार्जशीट दाखिल की है। सवाल यह है कि इस तरह से कुछ लोग क्या समझते हैं कि वे जो चाहे कर लेंगे?

उनको लगता है कि वंदे मातरम की तरह जय श्रीराम भी अल्पसंख्यकों को बोलना ही होगा?वे उनकी देशभक्ति को चैक करने का ठेका लेने वाले भला कौन होते हैं? उनको यह भी समझ मंे नहीं आ रहा है कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि वे जिससे चाहें जो चाहें उसकी देश भक्ति चैक करने को बुलवा सकते हैं? अगर शक्ति के बल पर सारे काम हो जाया करते तो अमेरिका जैसी सुपर पॉवर ईराक सीरिया और अफगानिस्तान में अब तक अपनी बात सबको मनवा चुका होता।

लेकिन एक संगठन विशेष ने एक वर्ग विशेष के बारे में बहुसंख्यकों के एक हिस्से के दिमाग में इतना ज़हर भर दिया है कि बात चाहे कुछ भी हो लेकिन वे मौका मिलते ही सभी अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान समर्थक मानकर हिंसा के बल पर सबक सिखाने पर उतारू हो जाते हैं। उनको यह सीधी और साफ बात भी समझ में नहीं आ रही कि अगर आप किसी वर्ग विशेष का जानबूझकर लगातार एकतरफा नुकसान और अपमान करोगे तो आज नहीं कल देश में गृहयुध्द के हालात बन जायेंगे। कोई भी हो सहने की भी एक सीमा होती है। अगर मुट्ठीभर कट्टरपंथियों को लगता है कि वे सत्ता में बैठे अपने आक़ाओं के बल पर कुछ भी करके बच जायेंगे तो यह उनकी भूल है। अगर माहौल एक बार बिगड़ गया तो इससे सबका नुकसान होना तय है।

इलाज ए दर्द ए दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता,

तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता ।।