Saturday 30 December 2017

कांग्रेस नीति भी बदले!

कंग्रेस: नेता बदला, नीति भी बदलो!
सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी के कांग्रेस का मुखिया बनने से यह पार्टी भाजपा को टक्कर तो देती नज़र आ रही है। लेकिन केवल नेता बदलने से कांग्रेस भाजपा को सत्ता से नहीं हटा पायेगी। इसके लिये कांग्रेस को अपनी गल्तियांे कमियों और नीतियों पर गंभीरता से चिंतन करना होगा।

सबको पता था कि सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी ही कांग्रेस के सुप्रीमो बनेंगे। लेकिन यह किसी को पता नहींे था कि औपचारिकता के लिये भी कोई कांग्रेसी अपनी अंतर आत्मा की आवाज़ पर पार्टी प्रमुख का चुनाव लड़ने को नामांकन तक कराने की हिम्मत नहीं करेगा। इससे यह साबित होता है कि कांग्रेस के अंदर ही जब लोकतंत्र नहीं है तो वह देश में सरकार बनाने पर लोकतंत्र का कितना सम्मान कर सकती है? साथ ही कांग्रेस के साथ यह समस्या बड़ी नहीं थी कि सोनिया गांधी पार्टी की प्रमुख रहकर विदेशी मूल की होने और भारतीय परंपराओं व हिंदी को ठीक से नहीं अपना पा रही थीं।

अगर ऐसा होता तो वे 2004 से 2014 तक दस साल सरकार नहीं चला पातीं। एक तरह से देखा जाये तो सोनिया ने प्रधनमंत्री पद का त्याग करके भारतीय इतिहास में एक दुर्लभ मिसाल कायम कर दी। असली सवाल यह था कि सोनिया गांधी का देश और पार्टी को चलाने का तरीका जनता को पसंद नहीं आया। खासतौर पर यूपीए 2 के करप्ट कार्यकाल के बाद कांग्रेस राजनीति रूप से पूरी तरह दिवालिया सी हो गयी चुकी है। राहुल गांधी में भी अपनी मां और पिता के वे सारे लक्ष्ण मौजूद हैं। वे कांग्रेस को अपनी बपौती समझते हैं।

कंेद्र या राज्य में किसी कांग्रेस नेता को उभरने नहीं दिया जाता है। बड़े से बड़े कांग्रेस नेता को राहुल गांधी भी मिलने के लिये आसानी से समय तक नहीं देते हैं। अगर किसी कांग्रेस नेता की राहुल से मुलाकात हो भी जाये तो उसकी बात को कोई तवज्जो नहीं दी जाती। इसका नतीजा यह होता है कि कई बड़े नेता या तो कांग्रेस छोड़कर भाजपा व अन्य क्षेत्रीय दलों में जा चुके हैं या फिर अपनी नई पार्टी बना चुके हैं। इसके साथ ही कांग्रेस की सरकारों में करप्शन बढ़ते जाने पर सोनिया कोई लगाम नहीं लगा सकीं। भ्रष्टाचार कांग्रेस की पहचान बन चुका है।

उसके अनेक नेता रिश्वतखोरी और कमीशनखोरी के मुकदमों का सामना कर रहे हैं। कांग्रेस अपनी अल्पसंख्यक धार्मिक तुष्टिकरण की नीति भी छोड़ने को तैयार नज़र नहीं आ रही। जो गल्ती उसने शाहबानो के मामले में की थी। वही अब तीन तलाक विरोधी विधेयक को लेकर दोहराती नज़र आ रही है। बाबरी मस्जिद राम मंदिर विवाद में भी उसके वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मोदी सरकार हटने तक रोकने की मांग कर देश के बहुसंख्यकों को गलत संदेश दिया है।

अगर कांग्रेस को गुजरात में भाजपा को चुनाव में कांटे की टक्कर देकर 150 सीट की जगह 99 पर रोक देने की खुशफहमी हो रही तो उसको यह याद रखना चाहिये कि वहां उसकी अपनी उपलब्धि कम और राजनीतिक हालात भाजपा के खिलाफ अधिक थे। मिसाल के तौर पर पटेलों को भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी सत्ता में आने पर आरक्षण नहीं दे सकती थी। 22 साल की इंकम्बैंसी भी वहां भाजपा के खिलाफ काम कर रही थी। भाजपा के राज में हिंदुत्व से पीड़ित दलित कांग्रेस के साथ मजबूरी में आया। जबकि पिछड़े पटेल आरक्षण के डर से उससे बिदक गये। कांग्रेस का संगठन भी वहां कमज़ोर था। कांग्रेस सत्ता में न सही अगर मज़बूत विपक्ष और विकल्प ही बनना चाहती है तो अपनी नीतियों पर फिर से विचार कर पूंजीवाद व समाजवाद मंे संतुलन लाये।

Thursday 28 December 2017

गुजरात का जनादेश

गुजरात: न मोदी जीते न राहुल हारे!

0 जिस गुजरात के कथित विकास मॉडल का जनता को सपना दिखाकर आज मोदी देश पर राज कर रहे हैं। उसको राहुल गांधी ने राज्य के चुनाव में ज़ोरदार चुनौती देकर भाजपा के मिशन 150 को 99 के फेर में उलझा दिया है। साथ ही मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे की हवा भी उनके घर में घुसकर निकाल दी है।

  2014 के आम चुनाव के बाद से पीएम मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। जबकि यह एक लोकतंत्र विरोधी नारा था। स्वस्थ और मज़बूत लोकतंत्र के लिये जितना ज़रूरी सत्ताधरी दल होता है। उतना ही आवश्यक विपक्ष होता है। बिना विपक्ष के लोकतंत्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती। साथ ही विपक्ष न होने या कमज़ोर होने पर सरकार के बेलगाम होने का ख़तरा रहता है। वैसे भी यह कहा जाता है कि सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता सत्ताधरियों को पूरी तरह से करप्ट करती है। भाजपा और मोदी यह भूल गये कि एक टाइम था जबकि देश में भाजपा के केवल 2एमपी हुआ करते थे।

उस समय भी किसी ने यह नारा नहीं दिया कि देश को भाजपा मुक्त बनाया जाना चाहिये। आज कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी राहुल गांधी ने यही कहा है कि वे कभी नहीं चाहेंगे कि देश भाजपामुक्त हो जाये। गुजरात में भाजपा जीत के बावजूद यह देखकर हैरान परेशान है कि जिस राहुल गांधी को वह कल तक पप्पू कहकर मज़ाक बनाया करती थी। उस राहुल गांधी ने न केवल भाजपा को 99 पर रोक दिया। बल्कि उसको यह सामान्य बहुमत हासिल करने के लिये भी नाको चने चबाने पड़े। जहां राहुल ने अकेल3 महीने में वहां भाजपा के सामने पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी कर दी।

वहीं मोदी उनकी पार्टी के एक दर्जन सीएम और केंद्र के 50 मंत्री अन्य बड़े नेता गुजरात के गली मुहल्ले की खाक छानने को मजबूर नज़र आये। साथ ही मोदी को बुलैट ट्रेन, सी प्लेन से लेकर सरदार सरोवर बांध तक के विकास के बड़े बड़े दावे गुजरात की जनता के सामने पेश करने पड़े। उनको 22 साल की एंटी इंकम्बैंसी का इतना डर सता रहा था कि हार्दिक अल्पेश और जिगनेश ने मिलकर उनके सामने इतनी ज़बरदस्त चुनौती खड़ी कर दी कि लगने लगा कि कांग्रेस जीत भी सकती है।

बाद में जब हवा का रूख पहले राउंड में भाजपा के खिलाफ जाता दिखाई दिया तो मोदी और भाजपा विकास की बात छोड़ गुजरात की अस्मिता साम्प्रदायिकता पाकिस्तान की साज़िश और केंद्र राज्य में एक ही दल की सरकार की ज़रूरत पर उतर आये। इस दौरान कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को अपशब्द कहकर उनका काम आसान कर दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद राम मंदिर विवाद में 2019 के बाद सरकार बदलने पर सुनवाई की बात कहने पर भाजपा को अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का एक और औज़ार हाथ लग गया।

कांग्रेस की संगठन की कमी,राज्यसभा चुनाव के बाद से निष्क्रियता, उसके पास गुजरात के लोगों को दिखाने के लिये कोई सपना न होना, मोदी के बराबर गुजरात का कोई कांग्रेसी दमदार नेता न होना,पाटीदारों का पूरी तरह कांग्रेस से न जुड़ना और मोदी का गुजराती में भाषण देना कुछ ऐसे मुद्दे थे। जिनसे भाजपा हारते हारते चुनाव जीत गयी और कांग्रेस चुनाव जीतते जीतते हार गयी। लेकिन यह भी सच है कि अब मोदी के लिये2019 का आम चुनाव जीतना इतना आसान नहीं रह गया है। जितना वे गुजरात चुनाव से पहले समझ रहे थे।               

0 हवा के दोश पे रक्खे हुए चिराग़ हैं हम,

  जो बुझ गये तो हवाओं से शिकायत कैसी।।                   

Saturday 16 December 2017

कानून के रखवाले?

*कानून के रखवाले ऐसा क्यों करते हैं?*

0 8 सितंबर को गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में दूसरी क्लास के छात्र प्रद्युम्न का मर्डर होता है। अभी पुलिस मामले की जांच ही कर रही थी। ख़बर आती है कि गुड़गांव ज़िले के सोहना की बार एसोसियेशन ने पहले ही अपना फै़सला सुना दिया कि इस केस के आरोपी का बचाव कोई वकील नहीं करेगा।  

  प्रद्युम्न एक मासूम बच्चा था। उसके हत्यारों को न केवल सज़ा मिलनी चाहिये बल्कि जल्दी और सख़्त सज़ा मिलनी चाहिये। इस से किसी को एतराज़ नहीं हो सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सज़ा कानून के रखवाले समझे जाने वाले वकील जांच से पहले ही खुद दे देंगे? अगर नहीं तो फिर यह फैसला किस आधार पर हो गया कि आरोपी का केस कोई वकील नहीं लेगा? यह तो वही मामला हो गया। जैसे कुछ बीमार दिमाग़ लोग आयेदिन यह रट लगाते हैं कि माफ़ियाओं और गंभीर अपराध के आरोपियोें को बिना कोर्ट में केस चलाये पुलिस एनकाउंटर में मार दिया जाना चाहिये।

यहां तक कि हमारे कुछ बड़े नेता और संवैधानिक पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि भी यह गैर कानूनी बयान खुलेआम देते रहते हैं। क्या हमारी पुलिस और राजनेता इतने ईमानदार और निष्पक्ष हैं कि वे केवल वास्तविक अपराधियों को ही इस चोरदरवाजे़ से ठिकाने लगायेंगे? सवाल यह है कि क्या हम यह मान लें कि हमारा सिस्टम नाकाम हो चुका है? जिससे वकील और पुलिस किसी के दोषी साबित हुए बिना ही उसको सज़ा देने लगे हैं?इससे पहले खुद मीडिया ऐसे चर्चित मामलों की ऐसे रिपोर्टिंग करता है। मानो उसको पक्का पता लग गया हो कि आरोपी ही असली मुजरिम है।

खासतौर पर आतंकवाद के मामलों में पुलिस जिनको पकड़ती है। मीडिया उनको दोषी साबित होने से पहले ही आतंकी घाषित कर देता है। जबकि90 प्रतिशत से अधिक मामलों में ऐसे आरोपी बेकसूर पाये जाते हैं। उसके बाद मीडिया उनकी और उनके परिवार की बर्बादी व तबाही के बाद न तो उनके बाइज़्ज़त छूटने की ख़बर देता है न ही अपनी गलती मानता है। ठीक इसी तरह जब प्रद्युम्न केस में पुलिस ने फर्जी तौर पर बस कंडक्टर को पकड़ा और थर्ड डिग्री देकर उससे ज़बरदस्ती यह कबूल कराया कि उसी ने प्रद्युम्न की हत्या की है तो सोहना के वकीलों ने उस गरीब और मजबूर इंसान के पक्ष में केस लड़ने दो टूक मना कर दिया।

इसके बाद 9 नवंबर को सीबीआई ने इस केस में सीसीटीवी और छात्र के दोस्तों के बयान के आधार पर जिस छात्र को आरोपी बनाया। वह संयोग से एक वकील का ही पुत्र निकला। सही मायने में तो बार संघ को अपने फैसले पर अटल रहते हुए दूसरे आरोपी वकील पुत्र का केस भी नहीं लड़ना चाहिये था। लेकिन नहीं सोहना के वकील साहेबान अब वकील पुत्र की पैरवी करने को तुरंत तैयार हो गये। इतना ही नहीं सोहना के वकीलों ने मर्डर के आरोपी को बेकसूर बताते हुए उसे छोड़ने की मांग करते हुए उसके समर्थन में जोरदार प्रदर्शन भी किया।

हम दावे से यह नहीं कह सकते कि प्रद्युम्न का असली हत्यारा कौन है? हम यह भी मानते हैं कि जिस वकील पुत्र को सीबीआई ने अभियुक्त बनाया है। उसको वकील के द्वारा कानूनी बचाव का भी हक है। लेकिन यह हक तो उस बस कंडक्टर का भी था। ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस बस कंडक्टर को पुलिस ने हत्यारा बताकर पकड़ा और थर्ड डिग्री दी। वह तो जांच से पहले अपराधी हो गया और जिस वकील पुत्र को सीबीआई ने पकड़ा वह जांच से पहले ही बेकसूर हो गया? ऐसे हमारा सिस्टम कैसे चलेगा?             

0 तहज़ीब सिखाती है जीने का सलीक़ा,

  तालीम से जाहिल की जहालत नहीं जाती।।                 

Thursday 14 December 2017

मौलवी या आतंकी...

*जनरल बाजवा की हिम्मत तो देखो!*

0 नेता चाहे भारत के हों या पाकिस्तान के, वे इतनी सच्ची और कड़वी बात कहने की अकसर हिम्मत नहीं करते। उनको हर समय अपने वोटबैंक की चिंता सताती रहती है। लेकिन पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने यह कहकर हिम्मत दिखाई है कि मदरसों में पढ़कर निकलने वाले बच्चे या तो मौलवी बन रहे हैं या फिर आतंकी…..।  

    अगर भारत के किसी हिंदू नेता ने मदरसों के बारे में ऐसा बयान दिया होता तो माना जा सकता था कि वह संघ परिवार से जुड़ा होगा जिसकी वजह से वह हिंदू वोटबैंक को खुश करने के लिये ऐसा कोरा झूठ जानबूझकर बोल रहा होगा। वैसे भारत के ही किसी मुस्लिम नेता का भी ऐसा ही बोलना नामुमकिन सा ही है। लेकिन अगर किसी ने ऐसी जुर्रत की होती तो इन ही मदरसों से उसके खिलाफ कुफ्र और क़त्ल का फरमान जारी हो चुका होता। बहरहाल मदरसों के बारे में यह ख़तरनाक बयान आया है पाकिस्तान से। वहां के सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने दो टूक कहा है कि मदरसों से पढ़कर निकलने वाले बच्चे मौलवी या आतंकी ही बन रहे हैं।

    ज़ाहिर है कि जनरल बाजवा को ऐसे कहने में न तो कोई डर रहा होगा और न ही उनका इसमें कोई वोटोें का स्वार्थ तलाशा जा सकता है। दरअसल पाकिस्तान में आज जो हालात हैं। उनमें आतंकवाद की समस्या वहां की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। यह अलग चर्चा का विषय है कि पाक में आतंकवाद पैदा कैसे हुआ? किसने किया और क्यों किया? इन सवालों के जवाब तलाश करने के लिये पाकिस्तान के इतिहास में थोड़ा पीछे मुड़कर देखना होगा। अफ़गानिस्तान से रूस के क़ब्ज़े को हटाने के लिये अमेरिका ने पाकिस्तान में तालिबान का सहारा लिया था।

    तालिबान पाकिस्तान में मदरसों में ही पैदा किया गया था। इसमें वहां की सरकार से लेकर सेना और खुफिया एजंसी आईएसआई का भी पूरा सहयोग था। अफ़गानिस्तान से रूस तो तालिबान के हाथ मात खाकर भाग गया। लेकिन अमेरिका ने तालिबान का जो जिन्न बोतल से बाहर निकाला था। वह वहां के मदरसों में बदस्तूर बनाया जाता रहा। अब सवाल यह था कि इस नये तालिबान का क्या किया जाये?पहले तो ये आतंकवादी कश्मीर में भारत से लड़ने के लिये भेजे गये। लेकिन यहां उनको हमारी सेना और कश्मीर पुलिस ने जब चुनचुनकर जन्नत पहुंचाना शुरू किया तो उनका मोहभंग हो गया।

    उसके बाद हमारे देश के अलग अलग क्षेत्रों में इन तालिबानी आत्मघाती दस्तों को तबाही बर्बादी के लिये यह सोचकर भेजा गया। शायद इन हरकतों से डर कर ही हम कश्मीर को आज़ाद कर देंगे। इसका सबसे बड़ा नमूना पाकिस्तान का आत्मघाती आतंकी हमला 26 बटे 11 था। इससे भी पाक को हासिल तो कुछ खास हुआ नहीं उल्टे उसका एक आतंकी अजमल क़साब रंगे हाथ पकड़े जाने से पूरी दुनिया में उसकी पोल खुल गयी। इसके बाद आतंकियों के अलग अलग गिरोह बन गये। इनमें से कुछ ने वहां की सरकार सेना और आईएसआई के खिलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया।

    इतना ही नहीं कुछ साल पहले आतंकियों का कहर एक सैनिक स्कूल के सौ से अधिक मासूम बच्चो पर टूटा तो सेना को झटका लगा। आज पाकिस्तान में तबाही मचा रहे आतंकियों के कारण वहां के सेना प्रमुख को पता लगा है कि मदरसों से पढ़े तालिबान या तो दो चार हज़ार की तन्ख्वाह पर मौलवी बन रहे हैं या फिर आतंकी? सवाल यह है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये? पाकिस्तान की आंखे अगर अभी भी खुल जायंे तो खून खराबा रूक जायेगा।             

0 जिन पत्थरों को हमने अता की थीं धड़कनें,

  जब बोलने लगे तो हम ही पर बरस पड़े।।                    

Wednesday 13 December 2017

बीजेपी एमपी का इस्तीफ़ा

भाजपा सांसद का इस्तीफ़ा बड़ा संदेश

0महाराष्ट्र से भाजपा सांसद नाना पटोले ने लोकसभा और भाजपा से भी त्यागपत्रा दे दिया। गुजरात चुनाव में कांग्रेस इस ख़बर को बड़ा मुद्दा बना सकती थी। लेकिन राहुल ने पूर्व कांग्रेसी इस सांसद को मंच साझा करने लायक नहीं भी समझा। जबकि मोदी जी ने मणिशंकर अय्यर के एक आपत्तिजनक बयान को गुजरात चुनाव में भावुक मुद्दा बनाकर बखूबी भुना लिया।  

  भंडारा-गोंदिया से एनसीपी के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल को हराकर भाजपा के टिकट पर 2014 में सांसद चुने गये नाना पटोले ने आरोप लगाया कि भाजपा में लोकतंत्र नाम की कोई चीज़ नहीं बची है। वो कहते हैं कि भाजपा और केंद्र सरकार केवल दो आदमी मोदी और शाह चला तानाशाह की तरह चला रहे हैं। उनका आरोप है कि उन्होंने कई बार पीएम मोदी,महाराष्ट्र के सीएम फडनवीस और भाजपा मुखिया अमित शाह के सामने किसानों की समस्याओं को उठाया। लेकिन न केवल उनकी बातों का कोई संज्ञान नहीं लिया गया बल्कि उनके सवाल पूछने पर उनके साथ ऐसा अजीब और उपेक्षित व्यवहार किया गया।

मानो उन्होंने कोई  अनुशासनहीनता,अपराध या इन नेताओं का अपमान कर दिया हो। नाना का दावा है कि भाजपा और उसकी सरकारें किसान विरोधी हैं। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिखकर कृषि,अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी से जुड़े14 अहम मुद्दे पार्टी की तरफ से उठाये थे। इसके बाद जब कोई कार्यवाही होती नज़र आई तो उन्होंने हर मीटिंग मंे यही मुद्दे प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाने शुरू किये। मोदी जी ने इन मुद्दों पर कोई तवज्जो न देते हुए उनके साथ ऐसा बर्ताव किया। मानो वे जनहित को लेकर कोई सवाल कर भारी गलती कर रहे हों।

सितंबर माह में उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह बात जनता के सामने भी रखी कि मोदी जी को यह पसंद नहीं आ रहा है कि कोई उनसे सवाल पूछे। जबकि देश के सबसे बड़े पद पर बैठे नेता से सवाल करना लोकतंत्र में पटोले अपना अधिकार मानते हैं। उनको लगता है कि यह उन मतदाताओं का भी अधिकार है। जिन्होंने उनको भारी वोटों से चुनकर संसद भेजा है। वे यह भी मानते हैं कि अगर वे पीएम सीएम और स्पीकर से जनता की समस्याओं का समाधान नहीं करा सकते तो उनको सांसद बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। हमारे विचार से पटोले पहले भाजपा सांसद हैं जिन्होंने अपना पद छोड़कर यह साबित किया है कि उनकी अंतरात्मा अभी ज़िंदा है।

उनका यह भी आरोप था कि भाजपा सरकार के दौरान किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने सब तरफ निराशा हाथ लगने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिंहा के नेतृत्व में परिणाम की चिंता किये बिना साहस के साथ अकोला में किसानों के पक्ष में आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। लेकिन भाजपा और उसकी राज्य व केंद्र सरकार पर न कोई असर होना था न ही हुआ। हो सकता है भाजपा ने मात्र एक सांसद के पार्टी और संसद छोड़कर जाने को बड़ी चिंता का विषय इसलिये न माना हो कि उसके पास पर्याप्त बहुमत है।

लेकिन यह उसकी भूल भी साबित हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि भाजपा में अभी और भी असंतुष्ट सांसद हों। जो पटोले जैसे किसी एक सांसद की पार्टी छोड़ने की पहल का इंतज़ार कर रहे हों। हो सकता है कि गुजरात का चुनाव नतीजा भाजपा के खिलाफ आने पर अन्य सांसद मोदी का साथ छोड़ने का मन बना रहे हों। सोचने की बात यह है कि जो भाजपा अब तक दूसरे दलों के सांसद विधायक और नेताओं को अपने दल में लाने में महारत रखती हो उसका एक सांसद ऐसे गंभीर आरोप लगाकर पार्टी को छोड़ता है तो यह बड़ा मामला है।

दरअसल कम लोगों को यह पता है कि मोदी एमपी नहीं चुने गये थे। बल्कि वे सीधे पीएम घोषित करके एक गलत परंपरा के तहत चुनाव जीते। इतना ही नहीं उनके हिसाब से पसंद और पैमाने पर ही अन्य भाजपा नेताओं को टिकट दिये गये। इससे मोदी जी को ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि उनकी वजह से ही भाजपा की सरकार बनी है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक मोदी के कई ऐसे फैसले सामने आ चुके हैं। जिनके बारे में उनको पूरा ज्ञान नहीं था। लेकिन वनमैन शो होने की वजह से मोदी हर गलत सही फैसला अकेले करते जा रहे हैं। इससे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली भी दांव पर है।         

0 सभी को छोड़कर खुद पर भरोसा कर लिया मैंने,

 वो मैं जो मुझमें मरने को था ज़िंदा कर लिया मैंने।।                 

Monday 11 December 2017

निकाय चुनाव

निकाय चुनाव क्या कहते हैं?

0 यूपी के निकाय चुनाव के नतीजे आये कई दिन बीत गये। लेकिन अभी तक यह चर्चा रूकने का नाम नहीं ले रही कि जहां जहां ईवीएम से चुनाव हुए वहां वहां ही बीजेपी अधिक सीटें जीती है। जबकि इस आरोप में दम नहीं है। ऐसा लगता है सच कुछ और ही है।  

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

  यूपी के नगर निगम चुनाव इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से हुए थे। संयोग से इसमें बीजेपी 16 में से 14मेयर जिताने में सफल रही। जबकि नगरपालिका के जो 198 चेयरमैन के चुनाव बैलेट पेपर से हुए थे। उनमें से बीजेपी 77 जीत सकी। ऐसे ही नगरपंचायत के 438 पदों में से बीजेपी123 चेयरमैन बना सकी। इसी तरह से निगम पार्षद के चुनाव में बीजेपी को45 प्रतिशत और पालिका सदस्यों के चुनाव में 17 प्रतिशत ही वोट मिले हैं। जहां तक चेयरमैनी में ज़मानत ज़ब्त होने का सवाल है तो भाजपा के सबसे कम यानी 38 प्रतिशत प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त हुयी है।

सोशल नेटवर्किंग साइट पर मोदीभक्तों ने जिस तरह सियासी लाभ के लिये झूठ फैलाने की परंपरा शुरू की थी। अब वो कला मोदी विरोधियों ने भी बखूबी सीख ली है। सबसे पहले बात करते हैं। नगर निगम के चुनाव में भाजपा को इतनी ज़बरदस्त सफलता क्यों मिलीतो इसका जवाब है कि जब 2012 में राज्य में सपा की सरकार थी। तब भी 12 में से 10 मेयर भाजपा के चुने गये थे। तब चुनाव ईवीएम से भी नहीं हुआ था। इसके अलावा इस निकाय चुनाव में जो आंकड़े सामने आये हैं। उनमें एक और खेल किया जा रहा है।

निगम के अलावा पालिका परिषद और नगर पंचायतों के कुल नतीजों की तुलना भाजपा को प्राप्त सीटों से की जा रही है। इसमें चालाकी यह है कि इन चुनाव में सभी दलों से अधिक जीतने वाले निर्दलीयों की संख्या छिपाई जा रही है। सच यह है कि सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से इस बार आज़ाद उम्मीदवार कहीं अधिक तादाद में जीते हैं। अगर देखना है तो यह देखा जाना चाहिये कि क्या सपा बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवार भाजपा से अधिक जीतकर आये हैं। जवाब मिलेगा नहीं। इस आंकड़े को इस तरह से भी समझ सकते हैं।

निगम पार्षदों के चुनाव में भाजपा 45सपा 15 बसपा 11 और कांग्रेस अपने8 प्रतिशत प्रत्याशी जिता सकी है। मतलब साफ है कि भाजपा के मुकाबले अन्य विरोधी दल मिलकर भी मात्र 34 प्रतिशत प्रत्याशी जिता सके हैं। अगर पालिका परिषद के सभासदों का आंकड़ा देखेें तो भाजपा के 17प्रतिशत के मुकाबले सपा 9 बसपा 5और कांग्रेस 3 प्रतिशत ही सदस्य चुनवाने में कामयाब रही है। ज़मानत ज़ब्त उम्मीदवारों का हिसाब जोड़ें तो कांग्रेस के 87 प्रतिशत बसपा के 73प्रतिशत और सपा के 52 प्रतिशत के मुकाबले भाजपा के सबसे कम यानी38 प्रतिशत उम्मीदवार ही ज़मानत गंवाने वालों में शामिल है।

यानी एक तरह से भाजपा को हारने के बावजूद इन तीनों विरोधी दलों के मुकाबले अधिक वोट मिले हैं। हालांकि निकाय चुनाव की विधानसभा या लोकसभा के चुनाव के साथ तुलना हर मामले में नहीं की जानी चाहिये। लेकिन खुद भाजपा ने गुजरात में अपने नवनिर्वाचित मेयरों को चुनाव प्रचार के लिये भेजकर इसको जनादेश का नमूना बताया है। सच तो यह है कि इन चुनावों में देश प्रदेश में कोई सरकार नहीं चुनी जाती जिससे लोग सियासी दलों से ज़्यादा निर्दलीयों पर दांव लगाते हैं। दूसरे भाजपा के लिये इतनी चिंता की बात ज़रूर है कि 8माह पहले उसे मिला 39 प्रतिशत वोट घटकर 31 प्रतिशत रह गया है।                   

0 एक उम्र वो थी कि जादू में भी था यक़ीन,

  एक उम्र ये है कि हक़ीक़त पर भी शक है।।