Monday 17 August 2020

सबकी कट्टरता का विरोध हो...

सब धर्मों की कट्टरता का विरोध होना चाहिये !

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कन्डेय काटजू और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का यह कहना बिल्कुल वाजिब लगता है कि कट्टरता और साम्प्रदायिकता बहुसंख्यकांे की हो या अल्पसंख्यकों कीवह ख़राब ही होती है। वरिष्ठ समाज विज्ञानी और सेफोलोजिस्ट योगेंद्र यादव भी कई बार यही बात दोहरा चुके हैं कि तथाकथित सेकुलर दलों की अल्पसंख्यक धार्मिक तुष्टिकरण की घटिया सियासत से संघ परिवार को बहुसंख्यकों की साम्प्रदायिकता व कट्टरता बढ़ाने में भारी मदद मिली है।            

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

      हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में अल्पसंख्यक समुदाय की भीड़ ने सोशल मीडिया पर अपने धर्म के खिलाफ वायरल हुयी एक बेहद आपत्तिजनक पोस्ट के बाद हिंसक प्रदर्शन किया। विवादित पोस्ट और हिंसक प्रदर्शन दोनों की तमाम निष्पक्ष लोगों व संगठनों ने निंदा की है। आरोप है कि पोस्ट करने वाला सत्तारूढ़ राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ होने के कारण पुलिस उसके खिलाफ रपट दर्ज करने को तैयार नहीं थी। जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ा और वे तोड़फोड़ आगज़नी और अराजकता पर उतर आये। हिंसक भीड़ पर पुलिस की ओर से गोली चलाये जाने से तीन लोगों की मौत भी हो गयी।

करोड़ों रू0 की सम्पत्ति आग की भेंट चढ़ गयी। पूरा सच जांच के बाद सामने आयेगा। लेकिन अब तक इस मामले में तमाम तरह के आरोप प्रत्याआरोप लग रहे हैं। हमारा कहना है कि विवादित पोस्ट चाहे जितनी भी आपत्तिजनक रही हो लेकिन लोगों को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिये था। अगर पुलिस रपट दर्ज नहीं कर रही थी तो लोगों को कोर्ट जाना चाहिये था। इससे पहले भी देश के विभिन्न राज्यों में समय समय पर ऐसी हिंसक घटनायें होती रही हैं। इससे पहले गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की अनेक घटनायें हमारे देश में होती रही हैं।

इन मामलों में भी कानून हाथ में लेने उल्टा पीड़ित के खिलाफ केस दर्ज करने और आरोपियों को बचाने हल्की धाराओं में चालान करने थाने से ही ज़मानत दे देने उनको संघ परिवार द्वारा कानूनी व आर्थिक सहायता देकर सम्मानित और पुरस्कृत करने की खुद बहुसंख्यक समाज के बड़े वर्ग ने निंदा और आलोचना की है। इससे पहले शाहबानो मामले सलमान रूशदी और तस्लीमा नसरीन को लेकर कट्टरपंथी अल्पसंख्यकों का जो आक्रामक व हिंसक रूख रहा है। उसको भी सेकुलर वर्ग ने कभी पसंद नहीं किया है।

लेकिन पूर्व जज काटजू और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का यही कहना है कि अल्पसंख्यकों की साम्प्रदायिकता कट्टरता और भावनायें भड़कने पर बात बात पर हिंसक हो जाना बहुसंख्यक समाज को साम्प्रदायिक कट्टर व संकीर्ण बनाकर उनको संघ और भाजपा के बैनर के नीचे वोटबैंक के रूप में लाने में बहुत ही सहायक रहा है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि बहुसंख्यक तो कभी कभी अपनी संख्या व सत्ता की ताकत में आपे से बाहर हो सकते हैं। लेकिन अल्पसंख्यक तो हर देश में हिंसा की पहल तो दूर जायज़ और कानूनी मामले मंे भी डरे व सहमे हुए ही रहते आये हैं। लेकिन 2014से पहले भारत इसका अपवाद था।

मिसाल के तौर पर अगर हम अपने पड़ौस मंे देखें तो आजकल पाकिस्तान में वहां का 15साल का फ़ैसल खान वहां के मीडिया में छाया हुआ है। सोशल मीडिया में वकीलों और पुलिस के साथ उसकी सैल्फी वायरल हो रही है। वहां के कट्टरपंथी भी उसको पवित्र योध्दा का खिताब देकर जनता में उसको हीरो की तरह पेश कर रहे हैं। फै़सल का कारनामा यह है कि उसने ईशनिंदा के 57 साल के एक अमेरिकी आरोपी  ताहिर नसीम को भरी अदालत मंे गोलियों से भून दिया है। वजह चाहे जो हो लेकिन यह साफ है कि फैसल एक हत्यारा है।

लेकिन पाकिस्तान में उसकी इस घटिया हरकत के प्रति इतनी दीवानगी और पागलपन सवार है कि उसका बचाव करने को वकीलों की एक बड़ी फौज लाइन मंे लगी है। फैसल ने पेशावर की जिस अदालत में यह खूनी खेल खेला है। वहां तीन स्तर पर सुरक्षा जांच होती है। उसके रिवॉल्वर लेकर कोर्टरूम मेें पहंुच जाने में पुलिस और कोर्ट प्रशासन मिला हुआ था। यह शक इससे भी पुख़्ता होता है। जब फैसल मर्डर के बाद पकड़े जाने पर पुलिस वैन में बैठा आराम से फोटो और वीडियो बना रहा था तो उसके साथ मौजूद पुलिस अफसर और सरकारी अधिकारी न केवल उसको यह सब करने दे रहे थेबल्कि ऐसे मुस्कुरा रहे थे और वी व थम्पसअप का निशान बना रहे थे जैसे फैसल ने बड़ा बहादुरी और हिम्मत का नेक काम किया हो।

ब्लैसफेमी सन्दिग्ध नसीम की गोली लगने के बाद मौके पर ही मौत हो गयी थी। नसीम के अमेरिका मूल का नागरिक होने से यह घटना पूरी दुनिया में चर्चा और निंदा का विषय बन गयी है। इस घटना के बाद हत्यारा फैसल जहां कट्टरपंथियों का लाडला बन गया है। वहीं यू एन ओ मानव अधिकार संगठनों सहित पूरी विश्व बिरादरी में पाकिस्तान के इस  पुराने काले कानून को ख़त्म करने की मांग एक बार फिर से तेज़ हो गयी है। उधर फैसल के घर पर उसके परिवार के पक्ष में कट्टरपंथी मूर्ख और धूर्त लोगों का मजमा बढ़ता जा रहा है। जो उसके समर्थन में अब तक अनेक रैली प्रदर्शन और आंदोलन चला चुके हैं।

फैसल के पक्ष मंे आम मुसलमान ही नहीं कई जाने माने नागरिक संगठन वकील राजनेता और मौलाना तक खुलकर सरकार के खिलाफ खड़े हो गये हैं। यहां तक कि कुख्यात आतंकी संगठन पाकिस्तान तालिबान का बधाई संदेश भी फैसल के घर हर तरह की कानूनी आर्थिक मदद के लिये पहुंच चुका है। कट्टरपंथी उसके परिवार को इस हत्या के लिये बाकायदा मुबारकबाद दे रहे हैं। इस मामले में अमेरिका के सख़्त तेवर दिखाने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने यह कहकर कि कानून अपना काम करेगा औपचारिक बयान देकर मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है।

आपको याद होगा कि इससे कई साल पहले पाक के पंजाब राज्य के गवर्नर सलमान तासीर को भी उनके अपने ही अंगरक्षक मुमताज़ कादरी ने इस विवादित कानून की समीक्षा करने की मात्र मांग करने के बयान पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। मतलब कट्टरपंथी सब एक जैसे ही होते हैं।                                                                

 लेखक नवभारत टाइम्स डॉटकॉम के ब्लॉगर व स्वतंत्र पत्रकार हैं ।।           

Sunday 9 August 2020

कब ख़त्म होगा कोरोना?

अधिकांश को है होनातब ख़त्म होगा कोरोना?

0आज हर किसी के दिमाग मंे एक ही सवाल है कि आखि़र कोरोना कब ख़त्म होगाहमने दो माह का सख़्त लॉकडाउन लगाकर देख लियालेकिन कोरोना की चैन नहीं टूटी।62,538 प्रतिदिन कोरोना पॉज़िटिव का आंकड़ा हम छू चुके हैं। अगर सरकार अब हो रहे कुल टैस्ट 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख तक रोज़ करने लगती है तो दो माह बाद इस स्पीड से यह आंकड़ा डेली 1,60,000 तक पहंुच सकता है। ऐसा 3 प्रतिशत रोगी रोज़ बढ़ने से लग रहा है। अंत मंे 2 लाख मरीज़ रोज़ और कुल कोरोना पॉज़िटिव 2 करोड़ से अधिक तक हो सकते हैं। अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रैस का यह अनुमान है।           

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   डब्ल्यू एच ओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन का सर्वे तो यह कहता है कि कोरोना जब तक आधे से अधिक आबादी को संक्रमित नहीं करेगा। तब तक इससे दो ही तरीकों से छुटकारा मिल सकता है। उन दो उपायों में कोरोना की वैक्सीन या इसकी दवाई शामिल है। हालांकि पूरी दुनिया में इन दोनों कामों पर वैज्ञानिक और डाक्टर पूरी तत्परता से अनुसंधान कर रहे हैं। उनको इस मिशन में कुछ प्राथमिक सफलतायें मिली भी हैं। लेकिन इसके आविष्कार में मेडिसिन तलाश करने से लेकर क्लिनिकल ट्रायल मानवीय परीक्षण पेटेंट सरकारी औपचारिकतायें और साइड इफैक्ट से बचने को अन्य सुरक्षा उपाय करने में 6 से 18 महीने लगने ही हैं।

इसके साथ ही दवा या टीका मिल जाने पर इसका इतना पर्याप्त उत्पादन करना कि यह पूरे विश्व की जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाये। वह भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगा। साथ ही इसमें चाहे जितनी जल्दी और बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन निर्यात और वैक्सीनेशन किया जाये। कुछ माह नहीं बल्कि कुछ साल लग सकते हैं। एक समस्या इसके खर्च को लेकर भी आने वाली है। विकसित देश तो इसको किसी कीमत पर भी आयात कर सकते हैं। लेकिन भारत जैसे विकासशील और बड़ी आबादी के देश को यह दवा विदेश से मंगाने या अपने यहां बनाने से लेकर अपनी बड़ी गरीब आबादी को उपलब्ध कराने तक में कई बाधाओं को पार करना होगा।

    ऐसे में सवाल यह है कि जब लॉकडाउन से कोरोना को नहीं हराया जा सका तो अब सरकार और जनता क्या करेजनता अर्थव्यवस्था बंद होने से लॉकडाउन भी आखि़र कितने दिन झेल सकती थीसरकार ने मास्क शारिरिक दूरी और बार बार हाथ धोने की शर्तों के साथ लॉकडाउन खोला तो लोग इन नियम कानूनों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि हम कोरोना को अपना संक्रमण फैलाने को खुला छोड़ दें। इससे जब देश की आध्ेा से अधिक आबादी धीरे धीरे करके संक्रमित हो चुकी होगी तो उसमें हर्ड इम्युनिटी आ जायेगी।

यानी उसमें कोरोना के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से वे ठीक इस तरह से कोरोना से संक्रमित होने से सुरक्षित हो जायेंगे। जैसे किसी को एन्टी कोरोना वैक्सीन दिया जा चुका हो। अब सवाल यह है कि इस सारे अभियान और योजना में कुल कितना समय कितना धन और कितने संसाधनों की आवश्ययकता होगीजब तक कोरोना संक्रमण अपने पीक यानी चरम पर नहीं आ जाता है। तब तक हम चैन की संास नहीं ले पायेंगे। आपको याद होगा कि हमने काफी पहले कोरोना से निबटने का ख़तरनाक विकल्प हर्ड इम्युनिटी पर भी एक लेख लॉकडाउन के दौरान लिखा था।

लेकिन उस समय सरकार से लेकर समाज तक इतना डरा हुआ था कि कोई उस विकल्प पर गंभीर चर्चा तक करने को तैयार नहीं था। समय बदलता रहता है। कल तक जो हर्ड इम्युनिटी का विकल्प असंभव और अव्यवहारिक लग रहा था। वो आज सरकार और जनता दोनों को अपरिहार्य लग रहा है। जहां सरकार लॉकडाउन सही समय पर नहीं लगा सकी वहीं जनता भी लॉकडाउन आगे सहन करने की स्थिति में नहीं थी। साथ ही जनता अपनी रोज़ी रोटी के सवाल को कोरोना से अहम सवाल मानकर संक्रमित होने का जोखिम लेने को तैयार लग रही है।

वह मास्क फिज़िकल डिस्टेंसिंग और बार बार साबुन से हाथ तक धोने को तैयार नहीं है। अलबत्ता जान से हाथ धोने को अपनी लापरवाही मनमानी और नादानी के चलते लोग रोज़ सड़कों पर आपको दिखाई दे रहे होंगे। मिसाल के तौर पर आंकड़े बताते हैं कि एक करोड़ के लगभग आबादी वाले देशों को कोराना संक्रमण के पीक पर पहुंचने मेें लगभग दो सप्ताह का औसत समय लगा है। जहां तक यूरूप आदि के 4 से 5 करोड़ जनसंख्या के मुल्कों का मामला है। उनको कोरोना इन्फैक्शन में चरम पर पहुंचने में लगभग एक माह तक का समय लगा है।

आंकड़े हमें कई मामलों में भ्रमित भी करते हैं। उदाहरण के रूप में इंडोनेशिया को देखें जिसकी पॉपुलेशन लगभग 28 करोड़ के आसपास है। उसको संक्रमण के चरम बिंदु पर पहुंचने में 140 दिन से अधिक लग गये। तज़ाकिस्तान की आबादी एक करोड़ होते हुए उसको 15 दिन में ही कोरोना का चरम हासिल हो गया। जबकि अन्य देशों से मुकाबला करें तो उसको पीक पर पहुंचने में 60 दिन लगने चाहिये थे। जहां तक भारत का सवाल है। यहां कोरोना केस 3 से 4 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहे हैं।

अगर सरकार प्रतिदिन होने वाली टैस्टिंग 5लाख से बढ़ाकर 10 लाख तक ले जाती है तो हमारे यहां आज मिल रहे लगभग 50 से 60हज़ार कोरोना मरीज़ की तादाद दो माह बाद 2लाख रोज़ तक पहंुच सकती है। इस तरह आज का कुल कोरोना पॉज़िटिव का आंकड़ा भी 20 लाख से बढ़कर 80 लाख तक पहंुच सकता है। लेकिन हैरत और दुख की बात यह होगी कि यह आंकड़ा भी पीक यानी कोरोना का दि एंड नहीं होगा। बस इतना होगा कि इसके बाद रोज़ मिलने वाले कोरोना पॉज़िटिव केस कम होने लगेंगे। इसके बाद भी कोरोना चार माह के बाद यानी जनवरी 2021 तक चलता रहेगा। इंडियन एक्सप्रैस के अनुसार कोरोना के कुल केस 2 करोड़ 75 लाख तक पहुुंुच सकते हैं।                                                               

।लेखक पब्लिक ऑब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर व स्वतंत्र पत्रकार हैं।         

Tuesday 4 August 2020

राजस्थान का महाभारत

राजस्थान का महाभारत: भाजपा बना ही देगी कांग्रेसमुक्त भारत?

0पहले 2014 और फिर 2019 में भाजपा ने केंद्र से कांग्रेस का सूपड़ा पूरी तरह साफ़ करके अमित शाह की 50 साल राज करने की बात को किसी हद तक सही साबित किया। अब वह एक के बाद एक कांग्रेस शासित राज्यों में चुनाव हारकर भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का जैसा साम दाम दंड भेद वाला आक्रामक अभियान छेड़े हुए है। उससे ऐसा लगता है कि वह बहुत जल्दी ही कांग्रेसमुक्त भारत का सपना पूरी कर लेगी। राजस्थान का महाभारत भी भाजपा जीतेगी।          

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   पहले कर्नाटक फिर मध््यप्रदेश और अब राजस्थान में जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस को एक एक कर राज्यों की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू किया है। उससे यह साफ लग रहा है कि आज नहीं तो कल किसी भी राज्य में कम से कम कांग्रेस की सरकार नहीं बचेगी। जबकि यूपी में सपा त्रिपुरा में माकपा को उसने जिस तरह से पटखी दी उससे क्षेत्रीय या अन्य राष्ट्रीय दलों को भी यह खुशफहमी नहीं पालनी चाहिये कि कांग्रेस के बाद भाजपा उनको पहले की तरह आराम से सरकार चलाने देगी। भाजपा का अगला निशाना बंगाल की तृणमूल कांग्रेस है। यानी भाजपा पहले विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को निबटाना चाहती है।

ज़ाहिर है इसके बाद क्षेत्रीय और छोटे दलों को ठिकाने लगाना भाजपा के लिये आसान होगा। दिल्ली मेें ज़बरदस्त और भरपूर विकास कराने के बावजूद जिस तरह भाजपा ने आम आदमी पार्टी को राज्य के चुनाव में नाको चने चबवाये। उससे वह यह संदेश देने में सफल रही है कि इस बार ना सही लेकिन अगले चुनाव तक वह दिल्ली की सत्ता हर हाल हर कीमत पर छीनकर ही दम लेगी। सवाल यह है कि बिना किसी ठोस उपलब्धि विकास शिक्षा स्वास्थ्य रोज़गार कानून व्यवस्था ठीक किये बिना भ्रष्टाचार महंगाई और काला धन रोके बिना भाजपा केंद्र के साथ साथ राज्यों में क्यों सरकार बनाती जा रही है?

सवाल यह भी है कि तमाम अराजकता कमियांे शिकायतों तबाही बरबादी और मनमानी के बावजूद वह बार बार चुनाव में विभिन्न राज्यों में जीतकर या तो खुद ही आ जाती है या फिर चुनाव के कुछ माह बाद ही विपक्षी विधायकों को तोड़कर जोड़तोड़ से अपनी सरकार चोर दरवाजे़ से बनाने में सफल हो जाती हैसच यह है कि किसी भी राज्य में भाजपा की रूचि जनहित में सरकार बनाना या चलाना नहीं है।

उसको पता है कि अधिक पैसा राज्यों की सरकार के हाथ में होता है। इसलिये 200 से400 करोड़ तक में एक दो दर्जन विधायक खरीदकर जैसे तैसे पूंजीपतियों के बल पर किसी राज्य में सरकार बना लेना भाजपा के लिये बायें हाथ का खेल बन गया है। जनादेश अपने खिलाफ होने के बावजूद पूरी बेशर्मी और ढीटता से भाजपा एक के बाद एक राज्य में सत्ता बदल का खुला खेल फर्रूखाबादी एक मिशन के तौर पर चला रही है। हिंदू राष्ट्र का सपना दिखाकर वह पूंजीपतियों के हित में खुलेआम काम कर रही है। मीडिया न्यायपालिका चुनाव आयोग और अन्य स्वायत्त संस्थायें उसने अपने अनुकूल बना ली हैं।

एक समय था। जब कांग्रेस भी पूरी बेहयाई और तानाशाही के साथ इसी तरह से लोकतंत्र की हत्या करती थी। लेकिन भाजपा का चाल चरित्र और चेहरे का दावा विपक्ष में रहते खूब ढिंढोरा पीटा जाता था। इसलिये तब हम जैसे पत्रकारों व निष्पक्ष नागरिकों ने कांग्रेस से भी ऐसे ही सवाल पूछे थे और आज भाजपा से भी पूछ रहे हैं। यह सवाल बार बार उठता रहा है कि इस हद तक नीचे जाकर भाजपा कांग्रेस की सरकार क्यों गिरा रही हैइसका एक जवाब तो यह है कि ऐसा करने से भाजपा की पकड़ पुलिस प्रशासन पर मज़बूत बनती है।

इसके बल पर वह अगला विधानसभा और लोकसभा चुनाव आराम से जीत सकती है। इससे भाजपा मतदाताओं को लुभाने अपने मनपसंद अधिकारी तैनात करने सरकारी योजनाआंे में कमीशन बनाकर अपना आधार मज़बूत करने नये वोटबैंक जोड़ने उद्योगपतियों को जायज़ नाजायज़ लाभ पहुुुंचाकर उनसे चुनाव मंे मोटा चंदा वसूलने अपना हिंदूवादी एजेंडा लागू कर लोगों को धर्म के नाम पर भावुक कर असली मुद्दों से भटकाकर उनका थोक में वोट लेने में काफी हद तक सफल हो जाती है।

भाजपा को केंद्र की सत्ता में रहकर अनुभव हो गया है कि केंद्र से कहीं अधिक और आसानी से बहुत सा काला धन चुनाव में और विधायक खरीदने को राज्यों की सरकार के बल पर पैदा किया जा सकता है। दूसरा लाभ यह होता है कि ऐसा करके कांग्रेस सहित सारे विपक्ष को पैसा बनाने और सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से रोककर कमज़ोर किया जा सकता है। विपक्ष को केंद्र सरकार के द्वारा कंेद्रीय एजेंसी जैसे इनकम टैक्स एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट बैंक व सीबीआई के ज़रिये भी कमज़ोर और बदनाम किया जाता है।

यहां तक कि अगर कोई पूंजीपति या कंपनी विपक्ष की चंदा देकर मदद करता है तो केंद्र सरकार उस पर छापे डालकर ऐसा ना करने को भी मजबूर करती है। ऐसे मेें ले देकर राज्य सरकार अगर विपक्षी दल की है तो वह पूरी पार्टी के लिये एक तरह से लाइफ लाइन का काम करने लगती है। आंकड़े बताते हैं कि केंद्र अपने कुल 27 लाख करोड़ के बजट से जहां मात्र 7 लाख करोड़ अपने विवेक यानी मनमर्जी से खर्च कर पाता है। वहीं राज्य सरकारें अपने बजटों के 34 लाख करोड़ में से 60 प्रतिशत अपने हिसाब से खर्च करने को आज़ाद हैं।

सिंचाई सड़क शराब खनन डिस्कॉम की बिजली कोयला विभिन्न संयंत्र पशु चारा तेंदू पत्ता खरीद यानी राज्यों की क्रय सूची बहुत लंबी है। ज़ाहिर सी बात है कि खरीद अधिक तो कमीशन भी अधिक ही मिलता होगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राजस्थान जैसे राज्यों में सत्ता की महाभारत कांग्रेसमुक्त भारत बनाने की भाजपा की एक सोची समझी बड़ी और दूरगामी योजना का छोटा सा हिस्सा है। लेकिन याद रखिये तानाशाही मनमानी और वनमैन शो चाहे इंदिरा गांधी का रहा हो या चाहे मोदी का हो वह लोकतंत्र को कमज़ोर और धीरे धीरे ख़त्म करके अघोषित आपातकाल जनविरोधी अराजकता कर रास्ता ही खोलता है।