Tuesday 27 September 2016

सपा टूटेगी ज़रूर

*सपा आज नहीं तो कल बंटेगी ज़रूर !*


         समाजवादी पार्टी में तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव फिलहाल पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के दबाव में एक दूसरे के विरोध में उठे सवालों पर चुप्पी साध गये हैं। लेकिन अलगाव और बदले की चिंगारी अंदर ही अंदर सुलग रही है। फिलहाल दोनों को सामने खड़े यूपी चुनाव में आपसी दरार के चलते होने वाले भारी राजनीतिक नुकसान की दुहाई भी दी गयी होगी। दरअसल अखिलेश के सामने जो द्वन्द्व है। वह अभी अभी नहीं आया है। यह विरोधाभास उनके साथ उनके सीएम बनने के समय से ही चल रहा है। मुलायम सिंह और शिवपाल सिंह जिस तरह की राजनीति करते हैं।
     2012 में सपा उसी के बल पर सत्ता में आई थी। जातिवाद अवसरवाद भ्रष्टाचार अपराधीकरण और अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता के समीकरण से सपा बनी और सत्ता में कई बार आई। पहले से स्थापित एक पार्टी का ताज मुलायम सिंह ने अपने भाई शिवपाल के स्वाभाविक उत्तराधिकारी होने के बावजूद अपने पुत्रमोह में अखिलेश के सर पर रख दिया। हालांकि शिवपाल को यह बात किसी कीमत पर स्वीकार नहीं थी। लेकिन मुलायम सिंह ने उनको यह कहकर मना लिया कि असली सत्ता की चाबी तो उनके हाथ में ही रहेगी। सच यही है कि अखिलेश सीएम बन तो गये लेकिन मुलायम सिंह ही नहीं वाया शिवपाल रामगोपाल आज़म खां के उनकी सरकार की डोर इधर उधर से हिलती रही।
    अब अखिलेश के सामने मजबूरी यह थी कि वे अपने पिता से विद्रोह नहीं कर सकते थे। अखिलेश ने एक सकारात्मक और रचनात्मक रास्ता इसकी तोड़ के लिये यह निकाला कि वह चुपचाप विकास और जनहित की योजनाओं पर तेज़ी से काम में जुट गये। उनपर कभी भ्रष्टाचार और अशिष्टता का भी आरोप नहीं लगा। धीरे धीरे युवा अखिलेश ने कौमी एकता दल जैसे अपराधियों के सुप्रीमो का सपा में विलय महाभ्रष्ट खनन मंत्री गायत्री प्रसाद और शिवपाल के खासमखास मुख्य सचिव दीपक सिंघल को बाहर का रास्ता दिखाकर अपनी साफ सुथरी छवि की चमक और बढ़ानी शुरू कर दी। हालांकि बाद में उनको अपने कई फैसले अपने पिता और पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह के आदेश पर बेमन से बदलने पड़े।
    लेकिन इससे जनता में यह संदेश जाने लगा कि अखिलेश ठीक लड़का है। उनको उनके पिता और चाचा काम करने के लिये फ्रीहैंड नहीं दे रहे। अब अखिलेश और शिवपाल की नज़र इस बात पर है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट बांटने का ज़िम्मा किसको मिलता है। जाहिर बात है कि अगर शिवपाल इस काम को करेंगे तो वह जीत से ज्यादा अपने उन खास वफादार कार्यकर्ताओं को सपा का टिकट देना पसंद करेंगे जो चुनाव जीतकर अगर शक्ति परीक्षण की बारी आई तो उनका आंख बंद कर समर्थन करें। इस मुद्दे पर अखिलेश ने भी अभी से पेशबंदी शुरू कर दी है। अखिलेश जानते हैं कि उनकी साफ सुथरी निष्पक्ष और विकास पुरूष की छवि तभी काम आ सकती है।
    जबकि उनके चुने हुए साफ सुथरे योग्य और निष्पक्ष प्रत्याशी सपा के टिकट पर चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे। यह बात साफ है कि इस लड़ाई में शिवपाल और अखिलेश में से एक ही जीत सकता है। मुलायम भाई और बेटे के बीच चाहे जितना समझौता कराने की नाकाम कोशिश कर लें। लेकिन आज नहीं तो कल इसी विचार और सिध््दांत को लेकर अखिलेश और शिवपाल अलग अलग दल बनायेंगे। समाजवादियों का इतिहास और तमिलनाडू में द्रमुक अन्ना द्रमुक व महाराष्ट्र में शिवसेना के दो फाड़ होने की मिसाल हमारे सामने यूपी के भविष्य का खाका पेश करने के लिये साफ दिखाई दे रही है।
0इब्तिदा ए इश्क है रोता है क्या,
 आगे आगे देखिये होता है क्या।

Monday 26 September 2016

Sindhu agreement

*सिंधु जल संधि के बारे में जानते हैं...

भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर मतभेद है। एक ऐसा मतभेद जिसे इसे विश्व बैंक के तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में भेजा जा चुका है। यह मुद्दा उड़ी में सेना के एक शिविर पर सीमा पार से आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ पैदा हुए हालिया तनाव की वजह से फिर चर्चा में है। गुरुवार को भारत ने इस मुद्दे को यह कहते हुए उठाया कि कोई भी संधि 'एकतरफा' नहीं हो सकती। तो, क्या है यह सिंधु जल संधि?
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सिंधु जल संधि पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।

समझौते पर हस्ताक्षर क्यों किया गया था?
इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किया गया, क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों के स्रोत भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं)। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्ते तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है। पाकिस्तान को डर था कि भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो वह पाकिस्तान में सूखे की आशंका पैदा कर सकता है। इसलिए इस संबंध में एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया। बाद में दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन एक द्विपक्षीय तंत्र होने से सिंधु जल संधि पर किसी विवाद की नौबत नहीं आई। इसके तहत दोनों देशों के अधिकारी आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं, इन नदियों का एक-दूसरे के यहां जाकर निरीक्षण करते हैं तथा किसी छोटे-मोटे विवाद को आपस में ही सुलझा लेते हैं।

इस समझौते में क्या है?
इस संधि के तहत तीन 'पूर्वी नदियां' ब्यास, रावी और सतलुज के पानी का इस्तेमाल भारत बिना किसी बाधा के कर सकता है। वहीं, तीन 'पश्चिमी नदियां' सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान को आवंटित की गईं हैं। भारत हालांकि इन पश्चिमी नदियों के पानी को भी अपने इस्तेमाल के लिए रोक सकता है, लेकिन इसकी सीमा 36 लाख एकड़ फीट रखी गई है। हालांकि भारत ने अभी तक इसके पानी को रोका नहीं है। इसके अलावा भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 7 लाख एकड़ जमीन में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है।

क्या कोई विवाद है?
दोनों देशों के बिना किसी बड़े विवाद के इस संधि के तहत पानी का बंटवारा चलता रहा है। लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है। पाकिस्तान ने इसी साल जुलाई में भारत द्वारा झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने तैयारी की आशंका में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग की थी। हालांकि, इस समझौते को सबसे सफल जल बंटवारे समझौतों में से एक के रूप में देखा जाता है लेकिन अब दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच मौजूदा तनाव में यह समझौता टूटने की आशंका पैदा हो गई है। सामरिक मामलों और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य के युद्ध पानी के लिए लड़े जाएंगे।

क्या भारत इस समझौते को रद्द कर सकता है?
इसकी संभावना नहीं है। दोनों देशों के बीच तीन युद्धों के बावजूद यह संधि बनी रही है। हालांकि, गुरुवार को भारत ने इस मुद्दे को उठाया, कहा कि कोई भी संधि दोनों पक्षों के बीच 'आपसी सहयोग और विश्वास' पर ही टिकी होती है। लेकिन, यह किसी वास्तविक खतरे की तुलना में दबाव बनाने की रणनीति ज्यादा प्रतीत होती है। ऐसा भारत पहले भी कह चुका है। अगर भारत इसे रद्द करेगा तो दुनिया के शक्तिशाली देश इसकी आलोचना करेंगे क्योंकि यह समझौते कई मुश्किल हालात में भी टिका रहा है।

समझौता रद्द करने के अलावा भारत क्या कर सकता है?
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Ad ACTIONAID कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि भारत 'पश्चिमी नदियों' के पानी का भंडारण शुरू कर दे (संधि के तहत जिसकी इजाजता है, भारत 36 लाख एकड़ फीट का इस्तेमाल कर सकता है) तो पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश होगा। पाकिस्तान इस मामले में भारत द्वारा कुछ करने की आहट से ही अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़ता है। इससे उस पर काफी दबाव पड़ेगा।

Market change

मित्रों !  दिल्ली में इन्वर्टर बैटरी व्यवसाय नाम मात्र का रह गया है ।
आपने कभी ध्यान दिया ?
आजकल बाज़ार में हर तीसरी दूकान आजकल मोबाइल फोन की है ।
sale ,service ,recharge , accessories , repair , maintenance की ।
आज से 5 या 10 साल पहले ऐसी कोई दूकान नहीं होती थी ।
पहले जगह जगह PCO हुआ करते थे । फिर जब सबकी जेब में मोबाइल फोन आ गया तो PCO बंद होने लगे । फिर उन सब PCO वालों ने फोन का recharge बेचना शुरू कर दिया  । अब तो लोगों ने रिचार्ज भी दूकान से कराना शुरू कर दिया ।
अब सब Paytm से हो जाता है । अब तो लोग रेल का टिकट भी अपने फोन से ही बुक कराने लगे हैं । अब पैसे का लेनदेन भी बदल रहा है । currency note की जगह पहले plastic money ने ली और अब digital हो गया है लेनदेन ।

दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है । आँख कान नाक खुले रखिये वरना आप पीछे छूट जायेंगे ।
1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% Foto Paper बेचते थे । चंद सालों में ही Digital Fotography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया । Kodak दीवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए ।
आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाली 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे ।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है ।
Exponential Age में आपका स्वागत है ।
software अगले 10 सालों में दुनिया को बदल देगा ।
क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं  ?
Uber सिर्फ एक software है । उनकी अपनी खुद की एक भी car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi company है ।
Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel company है जबकि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है ।
US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है क्योंकि IBM Watson नामक software पल भर में ज़्यादा बेहतर legal advice दे देता है ।
अगले 10 साल में US के 90 % वकील बेरोजगार हो जायेंगे । जो 10% बचेंगे वो Super Specialists होंगे ।
Watson नामक software मनुष्य की तुलना में cancer का diagnosis 4 गुना ज़्यादा accuracy से करता है ।
2030 तक computer मनुष्य से ज़्यादा intelligent हो जाएगा ।

2018 तक driverless cars सड़कों पे उतरने लगेंगी ।
2020 तक ये एक अकेला आविष्कार पूरी दुनिया को बदलने की शुरुआत कर देगा ।
अगले 10 सालों में दुनिया भर की सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी । जो बचेंगी वो या तो Electric cars होंगी या फिर Hybrid ।
सडकें खाली होंगी । petrol की खपत 90% घट जायेगी । सारे अरब देश दीवालिया हो जायेंगे ।
आप Uber जैसे एक software से car मंगाएंगे और कुछ ही क्षणों में एक driverless कार आपके दरवाज़े पे खड़ी होगी । उसे यदि आप किसी के साथ शेयर कर लेंगे तो वो ride आपकी bike से भी सस्ती पड़ेगी ।
cars के driverless होने के कारण 99 % accidents होने बंद हो जायेंगे । इस से car insurance नामक धंदा बंद हो जाएगा ।
ड्राईवर जैसा कोई रोज़गार धरती पे नहीं बचेगा ।
जब शहरों और सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी तो traffic और parking जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी । क्योंकि एक कार आज की 20 cars के बराबर काम करेगी ।

अपने आप को समय के साथ अपग्रेड करते रहें, नहीं तो समय आपको बाहर कर देगा ।

��

Saturday 24 September 2016

पाक को सबक

*जंग नहीं तो पाकिस्तान को सबक तो सिखाओ*

उड़ी हमले के बाद देश दो विचारों में बंट गया है। एक वर्ग मोदी को एक के बदले 10 सिर लाने की बात याद दिला रहा है। दूसरा वर्ग जो बात-बात पर जंग चाहता था। आज जंग के नुकसान गिना रहा है।

हमारा कहना है कि बेशक पाकिस्तान पर जवाबी सैनिक हमला ना किया जाये। लेकिन उसको यह अहसास तो हर हाल में कराया जाना चाहिये कि अब हमारी सहनशीलता की सीमा ख़त्म हो गयी है। सबको पता है कि जंग भावनाओं में बहकर नहीं ठोस तर्क के आधार पर लड़ी जाती है। आज के दौर में जंग जीतने वाला भी काफी कुछ हार जाता है। अमेरिका की मिसाल सामने है। दुनिया की सुपर पॉवर बनने वाला अमेरिका अफगानिस्तान ईराक और वियतनाम में मुंह की खा चुका है।

भारत की तो मजाल ही क्या है? जब पठानकोट एयर बेस पर पाक का आतंकी हमला हुआ था। उस समय सरकार ने सिक्योर्टी ऑडिट का ऑर्डर दिया था। ऐसे संवेदनशील सैनिक ठिकानों पर गरूड़ कमांडो लगाने की सिफारिश की गयी थी। सुरक्षा प्रबंधों की नियमित जांच की बात भी सामने आई थी जिससे मुस्तैदी बनी रहे। थर्मल इमेज सर्विलांस रडार और भूतल मॉनीटर जैसी आधुनिक तकनीक इसके लिये इस्तेमाल करने का ऐलान किया गया था। साथ ही कश्मीर की पूरी 2900 कि.मी. लंबी सीमा अभेद्य बनाने के लिये 130 नालों सहित पानी के अन्य क्षेत्रों पर भी कड़ी निगरानी की बात तय की गयी थी। लेकिन हुआ यह कि हर बार की तरह सारी कवायद ज़बानी जमाखर्च और कागजों तक सीमित होकर रह गयी।

उड़ी का सेना बटालियन का मुख्यालय तीन तरफ से लाइन ऑफ कंट्रोल से घिरा है। इसके चौथी तरफ एलओसी 6 कि.मी. दूर है। यह सैनिक ठिकाना पाक आतंकियों की घुसपैठ रोकने और सेना के अन्य ठिकानों को रसद पहुंचाने के लिये बनाया गया था। सवाल यह है कि इतने कुछ वादे दावे और कवायद होने के बाद भी हम जागे क्यों नहीं? जनवरी में हुए पठानकोट हमले में हमारे 7 सैनिक शहीद हो गये थे। अब उड़ी हमले में हमारे 18 सैनिक शहीद हो गये हैं। क्या हम एक के बाद दूसरे हमले का इंतज़ार करते रहते हैं? फिलहाल हमें कुछ समय के लिये देशहित में यह सियासी सवाल एक तरफ रख देना चाहिये कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार क्या लापरवाही बरतती थीं और भाजपा की मोदी सरकार क्या झूठे वादे करके सत्ता में आ गयी है?

बड़ा सवाल यह है कि अगर हम पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिये उससे जंग नहीं कर सकते तो क्या अपनी सुरक्षा भी इतनी चाक चौबंद नहीं कर सकते कि एलओसी से घुसपैठ पूरी तरह नामुमकिन हो जाये? क्या हम पाकिस्तान को खुद आतंकी देश घोषित कर उससे सभी तरह के रिश्ते नहीं तोड़ सकते? क्या हम पाकिस्तान से किया गया सिंधु जल समझौता यह कहकर नहीं तोड़ सकते कि वह अपने वादों पर खरा नहीं उतरा है? क्या हम दुनिया के विभिन्न मंचों पर पाकिस्तान को अपनी शक्ति का कुछ इस रण्नीति से अहसास नहीं करा सकते कि वो हमसे दुश्मनी करके अपना ही नुकसान करेगा? जिस तरह से अफगानिस्तान और बंग्लादेश को विश्वास में लेकर हमने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरना शुरू किया है।

क्या इसी तरह से अमेरिका से दो टूक नहीं कह सकते कि अगर हमसे अच्छे और मज़बूत रिश्ते रखने हैं तो पाकिस्तान को पूरी दुनिया में अलग थलग करना होगा? मोदी पीएम बनने से पहले इस बात की मज़ाक उड़ाते थे कि पाक आतंकी हमला करता है तो हमारी सरकार पाक का इलाज तलाशने के लिये अमेरिका जाकर ओबामा से शिकायत करके चुप्पी साध लेती है। लेकिन अब उूंट पहाड़ के नीचे आ गया है। देखना यह है कि जंग न सही पाकिस्तान को किस तरह क्या सबक सिखाये जाते हैं।

न इधर उधर की बात कर ये बता क़ाफ़िला क्यों
लुटा,मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है

Thursday 22 September 2016

Corruption in india

Hard hitting article but sadly true: The following message from New Zealand is forwarded as received. *Makes interesting reading*

A New Zealander's view on reason for corruption in India:

Indians are Hobbesian (Culture of self interest)

Corruption in India is a cultural aspect. Indians seem to think nothing peculiar about corruption. It is everywhere. 

Indians tolerate corrupt individuals rather than correct them.

No race can be congenitally corrupt.

But can a race be corrupted by its culture? 

To know why Indians are corrupt, look at their patterns and practices.

Firstly:
Religion is transactional in  India.

Indians give God cash and anticipate an out-of-turn reward.

Such a plea acknowledges that favours are needed for the undeserving. 

In the world outside the temple walls, such a transaction is named “bribe”. 

A wealthy Indian gives not cash to temples, but gold crowns and such baubles.

His gifts can not feed the poor. His pay-off is for God. He thinks it will be wasted if it goes to a needy man.

In June 2009, The Hindu published a report of Karnataka minister G. Janardhan Reddy gifting a crown of gold and diamonds worth Rs 45 crore to Tirupati.

India’s temples collect so much that they don't know what to do with it. Billions are gathering dust in temple vaults.

When Europeans came to India  they built schools. When Indians go to Europe & USA, they build temples.

Indians believe that if God accepts money for his favours, then nothing is wrong in doing the same thing. This is why Indians are so easily corruptible.

Indian culture accommodates such transaction

First: Morally. There is  no real stigma. An  utterly corrupt JayaLalita can make a comeback, just unthinkable in the West.

Secondly:
Indian moral ambiguity towards corruption is visible in its history. Indian history tells of the capture of cities and kingdoms after guards were paid off to open the gates, and commanders paid off to surrender.

This is unique to India.

Indians' corrupt nature has meant limited warfare on the subcontinent.

It is striking how little Indians have actually fought compared to ancient  Greece and modern Europe.

The Turk's battles with Nadir Shah were vicious and fought to the finish.

In India fighting wasn't needed, bribing was enough to see off armies.

Any invader willing to spend cash could brush aside India’s kings, no matter how many tens of thousands soldiers were in their infantry.

Little resistance was given by the Indians at the “Battle” of Plassey.

Clive paid off Mir Jaffar and all of Bengal folded to an army of 3,000.

There was always a financial exchange to taking Indian forts. Golconda was captured in 1687 after the secret back door was left open.

Mughals vanquished Marathas and Rajputs with nothing but bribes.

The Raja of Srinagar gave up Dara Shikoh’s son Sulaiman to Aurangzeb after receiving a bribe.

There are many cases where Indians participated on a large scale in treason due to bribery.

Question is: Why Indians have a transactional culture while other 'civilized' nations don't?

Thirdly:
Indians do not believe in the theory that they all can rise if each of them behaves morally, because that is not the message of their faith.

Their caste system separates them.

They don't believe that all men are equal.

This resulted in their division and migration to other religions.

Many Hindus started their own faith like Sikh, Jain, Buddha and many converted to Christianity and Islam.

The result is that Indians don't trust one another.

There are no Indians in India, there are Hindus, Christians, Muslims and what not.

Indians forget that 1400 years ago they all belonged to one faith.

This division evolved an unhealthy culture. The inequality has resulted in a corrupt society, in India every one is thus against everyone else, except God ­and even he must be bribed.

*BRIAN from*
*Godzone NEW ZEALAND*
Sadly....yes !
(Incidentally, New Zealand is one of the least corrupt nations in the world.)

नेट बन्द

*बिजनौर: नेट बिन , तीन दिन !*

      यूपी के बिजनौर शहर के पास कुछ दिन पहले एक गांव में दो वर्गों में टकराव हो गया था। इसमंे तीन लोगों की जान चली गयी। कुछ लोग ज़ख़्मी भी हुए। नागरिकों की सूझबूझ से पुलिस प्रशासन ने हालात को और बिगड़ने से बचा लिया। इस दौरान सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने मुज़फ्फरनगर की तरह साम्प्रदायिकता की आग में अपनी सियासी रोटी सेंकने को अफवाहें फैलानी शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने बजाये ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही करने के पूरे ज़िले का नेट ही बंद करा दिया। इससे जनता पर क्या गुज़री इसकी किसी को कोई परवाह नहीं थी। शुरू में यह सेवा 24 घंटे के लिये बाधित की गयी थी।
      लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर पहले 48 और फिर 72 घंटों तक खींच दिया गया। अच्छा यह हुआ कि मीडिया के दबाव में पहले दिन ही बीएसएनएल की ब्रॉडबैंड सेवा शाम को 6 से 8 बजे तक समाचार भेजने के लिये खोल दी गयी। इसके बाद अगले दिन भी ऐसा ही करने का दावा किया गया। लेकिन सरकारी नेट की सेवा पत्रकारों को मुश्किल से 45 मिनट ही मिल सकी। इसके साथ ही यह थोड़ा राहत की बात थी कि बैंकों में नेट की कनक्टिविटी इस लिये चलती रही क्योंकि उनके पास नेट की  स्पेशल लीज़ लाइन या अपना नेट टॉवर था। इससे कुछ एटीएम भी काम करते रहे। दूसरी तरफ प्रशासन और निजी क्षेत्र की सभी गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प हो गयीं।
     वैसे तो समझदार और ज़िम्मेदार लोगों ने यह माना कि अगर ज़िले में कुछ दिन नेट बंद करने से अमन चैन बरक़रार रह सकती है तो ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन साथ साथ यह भी सवाल उठता है कि बिजनौर से दो कि.मी. दूर पौड़ी-दिल्ली रोड पर स्थित पेदा गांव में जो कुछ हुआ। उसमें पुलिस का 100 नंबर एक घंटे तक अटैंड क्यों नहीं हुआ? सवाल यह भी है कि एक तरफ सपा सरकार दावा करती है कि प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर बिल्कुल ठीक है। दूसरी तरफ एक वर्ग के कुछ शरारती लड़के दूसरे वर्ग की कालेज जाती लड़की के साथ नेशनल हाईवे के बस स्टैंड पर खुलेआम छेड़छाड़ करते हैं। जब लड़की के परिजन इसका विरोध करते हैं तो उनकी पिटाई की जाती है।
    इसके बाद लड़की के पक्ष के पास के उसके गांव से काफी लोग आ जाते हैं। छेड़छाड़ करने वालों की जमकर ठुकाई हो जाती है। कुछ बुजुर्ग शरारती लड़कों से माफी मंगवाकर मामला रफा दफा करा देते हैं। लेकिन मामला ख़त्म नहीं होता। छेड़छाड़ करने वाले पक्ष के लोग बड़ी तादाद में हथियारों से लैस हो कर लड़की के घर पर धावा बोल देते हैं। अचानक गोलीबारी से जब लड़की पक्ष के तीन लोग जान गंवा बैठते हैं तो बाकी छिप जाते हैं। इसके बाद उनके घर पर हमलावर पथराव शुरू कर देते हैं। इतने पर भी मन नहीं भरा तो वे लड़की के घर में घुसकर छिपे लोगों के साथ जमकर मारपीट करते हैं। हैरत की बात यह रही कि पुलिस के बीट कांस्टेबिल से लेकर बड़े अफसरों तक को एक घंटा लगातार पीड़ित पक्ष ने मदद के लिये फोन किये।
     लेकिन  10 मिनट में कहीं भी पहुंचने का दावा करने वाली पुलिस पर्याप्त संख्या में नहीं पहुंची। गज़ब यह हुआ कि जो एक दारोगा और उसके साथ एक कांस्टेबिल व होमगार्ड मौके पर देर से पहुंचे भी वे हमलावरों को रोकने की बजाये हाथ बांधे खड़े तमाशा देखते रहे। हद यह है कि हमला रोकने को उस एसआई ने हवाई फायर तक नहीं किये। अखिलेश सरकार पर अल्पसंख्यक वोटबैंक का पक्ष करने का अकसर भाजपा आरोप लगाती रही है। लेकिन यहां तो मामला उल्टा ही नज़र आया। क्या पुलिस प्रशासन को नेट बंद करने से पहले अपनी कार्यशैली में सुधार की ज़रूरत नहीं है? हालांकि सरकार ने इस केस में बाद में सख़्त उठाये हैं

Wednesday 21 September 2016

कोठे....

*कोठों के सामने सिस्टम लाचार?*


दिल्ली में पिछले दिनों पुलिस ने एक कोठे पर छापा मारा था। यहां से कई ऐसी लड़कियों को आज़ाद कराया गया था। जिनसे ज़बरदस्ती यह गंदा धंधा कराया जा रहा था। इस कोठे को चलाने वाले मियां बीवी को भी पकड़ा गया था। बताया जाता है कि इनकी आमदनी इस कोठे से रोज़ाना 10 लाख रू0 थी। अब जानकारी मिली है कि इस रेड लाइट एरिया में कुल 83 कोठे हैं। जो 23 इमारतों में चल रहे हैं। इनमें 35 लड़कियां  जिस्म बेचने को मजबूर की जा रही हैं। बदनाम जीबी रोड पर नीचे मार्केट और उूपर कोठे बने हैं। हैरत इस बात की हो रही है कि देह व्यापार निरोधक कानून मौजूद है। लेकिन फिर भी इतने बड़े पैमाने पर ये कोठे चल रहे हैं।
    
बताया जाता है कि इन कोठों पर धंधे के लिये नेपाल झारखंड उड़ीसा और बंगाल से गरीबी का नाजायज़ फायदा उठाकर लड़कियां लाई जाती हैं। अकसर नौकरी और प्यार के बाद भागकर शादी करने का झांसा देकर भोली भाली लड़कियों को बाकायदा जाल में फंसाकर यहां लाकर दो लाख रू. तक में सौदा कर दिया जाता है। शुरू शुरू में ये लड़कियां इस गलीच पेशे में उतरने का भरपूर विरोध करती हैं। लेकिन जब इनको कई कई दिन भूखा प्यासा रखकर असहनीय यातनायें दी जाती हैं तो ये टूट जाती हैं। एनजीओ भी इनको यहां से आज़ादी न दिलाकर केवल कंडोम और दवाइयां उपलब्ध कराती हैं। सवाल यह है कि जिस्म का यह कारोबार इतने बड़े पैमाने पर देश की राजधनी दिल्ली में चल रहा है।
    
क्या सरकार को पता नहीं होगा? क्या इनसे हफ्ताह और माहवारी वसूलने वाली पुलिस को पता नहीं है कि इन इमारतों में क्या गुल खिलता है? हाल ही में जो कोठा पकड़ा गया है क्या सिर्फ वो अकेला कोठा चल रहा था वहां ? मेरे विचार से नहीं इसके पीछे कुछ और कहानी होगी जो अभी मीडिया के हाथ नहीं लगी है। हो सकता है कि इस कोठे को चलाने वाले का किसी सफेदपोश या खाकी वर्दी वाले  किसी ताकतवर आदमी से कोई विवाद हो गया हो? हो सकता है वो शक्तिशाली आदमी इस कोठे को चलाने में बराबर का शरीक रहा हो और अब हिस्से के बंटवारे को लेकर आपसी टकराव हुआ हो? बहरहाल वजह चाहे जो रही हो। यह मामला इस बात का सबूत है कि केवल कानून बना देने से कोई समस्या हल नहीं हो जाती।
    
बल्कि उसके लिये सरकार और प्रशासन के साथ ही समाज का सहयोग भी ज़रूरी होता है। यह बात मेरे जे़हन को बहुत परेशान करती है कि किसी सामाजिक राजनीतिक और न्यायिक संस्था को इन मजबूर महिलाओं और लड़कियों से सहानुभूति क्यों नहीं है? एक कोठा पकड़ा जाना और बंद किया जाना तो ऐसा ही है। जैसे खाने पीने के सामान में मिलावट को रोकने वाले सरकारी कारिंदे कभी कभी मीडिया में अपवाद के तौर पर ऐसी ख़बर दे देते हैं कि अमुक का मिलावट के आरोप में सैंपिल लेकर जांच के लिये लैब भेज दिया गया है। सब जानते हैं कि सेनेट्री और फूड इंस्पेक्टर बाकी मिलावटियों से मोटी रकम हर माह रिश्वत में लेकर जनता की सेहत से खिलवाड़ करने का लाइसेंस दिये रहते हैं।
   
ये लोग ये पैसा अपने बड़े अफसरों और कई राज्यों में तो अपने आका नेताओं तक को पहुंचाते हैं। मेरी समझ में नहीं आता यह कैसी सरकार है ? कैसा सिस्टम है? और कैसा अंधा बहरा संवेदनहीन हमारा समाज है जो इस तरह के अनर्थ और अमानवीयता को चुपचाप सहन करता रहता है। क्या हम यह मान लें कि अभी हमारा लोकतंत्र परिपक्व होने में सौ दो सौ साल और लगेंगे? यह सहन नहीं होता।