Friday 13 October 2017

Sultaanaa....

एक था सुल्ताना........

   सुल्ताना डाकू का नाम आज कौन नही जानता, ये नाम भारत मै ही नही बल्कि पुरी दुनिया मै मशहूर...और मशहूर है सुल्ताना की बहादुरी और दरिया दिली की किस्से...जहॉ सुल्ताना डाकू ने नजीबाबादको विश्वस्तर पर पहचान दिलाई वही नजीबुद्दोला के बनाये किले को अपने नाम से प्रसिद़ कर दिया.सुल्ताना डाकू के इस पर कब्जा करने के बाद इस किले ने देश ही नहीं बल्कि विदेश में प्रसिद्धि पाई। नाटकों, नौटंकी और कहानी में सुल्ताना को नजीबाबाद,बिजनौर का  बताया जाता है पर वह और उसका गिरोह मुरादाबाद जिले का था। अंग्रेजी हुकूमत के समय लगभग 155 साल पहले भांतू जाति का एक गिरोह मुरादाबाद में सक्रिय था, जिसमें सुल्ताना भी था। इस गिरोह ने सीधे अंग्रेजों की हुकूमत को चुनौती दे रखी थी। गिरोह से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों ने पत्थरगढ़ किले को कब्जे में लेकर इस गिरोह के लोगों को पत्थरगढ़ किले में लाकर डाल दिया तथा उन्हें काम पर लगाने के लिए यहां पर एक कपड़े का एक कारखाना स्थापित कर दिया। इन लोगों को काम पर लगा दिया गया। यहां पर गिरोह बनने का कारण इन लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे थे। इन लोगों की मजदूरी इतनी कम थी कि इनके परिवार का पालन-पोषण नहीं हो पाता था। हां इनको सप्ताह में एक दिन नजीबाबाद शहर में जाने की इजाजत मिलती थी। जेलनुमा जिंदगी से परेशान तथा आर्थिक तंगी के चलते इन लोगों ने चोरी छिपे फिर से एक गिरोह बना लिया, जिसका सरगना बालमुकुंद को बनाया गया। कुछ समय बाद बालमुकुंद नजीबाबाद के पठानपुरा मोहल्ले के मोहम्मद मालूक खां की गोली का शिकार हो गया। बालमुकुंद के मरते ही गिरोह की बागडोर सुल्ताना के हाथ में आ गई, जिसने अपने जज्बे आैर चालाकी से अंग्रेजों को छकाकर नजीबाबाद के पास ही कंजली बन में डेरा डाल दिया। सुल्ताना का गिरोह इस वन में कितना सुरक्षित था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कंजली वन का विस्तार कई सौ किलोमीटर था।
   सुल्ताना ने नजीबाबाद के आसपास के गरीबों को विश्वास में लेकर जमींदारों व साहूकारों के घरों में डकैती डालनी शुरू कर दी। हर जगह अंग्रेजों व जमीदारों को चुनौती पेश करने वाले इस डाकू के चर्चे पूरे हिन्दुस्तान में होने लगे। सुल्ताना गरीबों में इसलिए भी ज्यादा लोकप्रिय था कि क्योंकि उसका कहर जमींदारों तथा साहूकारों पर ही टूटता था आैर उनसे लूटकर वह सब कुछ गरीबों में बांट देता था। कहा जाता है कि उसने कई गरीब बेटियों की शादी भी कराई। सुल्ताना की विशेष बात यह भी थी कि डाकू होने के बावजूद वह महिलाओं की इज्जत करता था तथा उनके द्वारा पहने जेवर को लूटने की इजाजत अपने लोगों को नहीं देता था। सुल्ताना के बारे में कहा जाता है कि डकैती डालने से पहले वह डकैती के दिन व समय का इश्तहार उस मकान पर चिपका देता था। इस बात में इतना दम नहीं, जितनी मजबूती के रूप में यह पेश की गई। हां, इतना जरूर था कि उसने बदले की भावना से कुछ जमींदारों के घर पर इश्तहार जरूर लगाए थे तथा इश्तहार लगाने कुछ ही समय बाद डकैती भी डाल दी थी। सुल्ताना ने नजीबाबाद के पास जहां डकैती डाली, उनमें जालपुर आैर अकबरपुर प्रमुख हैं। नजीबाबाद से लगभग 10 किलो दूर जालपुर में शुब्बा सिंह जाट जमींदार था, वह गरीबों पर बहुत अत्याचार करता था। किसी गरीब ने उससे छुटकारा पाने की गुहार सुल्ताना से लगाई तो उसने शुब्बा सिंह को सबक सिखाने की योजना बना ली। जमींदार ने अपनी हिफाजत के लिए कई गोरखा सिपाही भी रखे हुए थे, जो 24 घंटे उसे घर पर पहरा देते थे लेकिन वह भी सुल्ताना को नहीं रोक सके। सुल्ताना के गिरोह तथा गोरखा के बीच कई घंटे तक गालियां चलीं। इसी बीच सुब्बा सिंह घर से फरार हो गया। बाद में सुल्ताना सुब्बा सिंह को पकड़ तो न सका पर उसने वहां डकैती जरूर डाली। कहा जाता है कि सुल्ताना के पास एक घोड़ी थी, जिस पर सवार होकर वह एक से बढ़कर एक निशाना साध सकता था। अक्सर डकैती डालते समय वह इस घोड़ी को किसी दीवार से सटाकर खड़ा कर फायरिंग करता था।
    सुल्ताना का कहर जब साहूकारों तथा जमींदारों पर टूटने लगा तो उन्होंने अंग्रेज हुकूमत से सुल्ताना को गिरफ्तार करने की गुहार लगाई। अंग्रेजी हुकुमत ने तेज तरार अधिकारी यंगसाहब को इंग्लैंड से बुलाया तथा सुल्ताना को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंपी। यंग साहब ने नजीबाबद आकर सुल्ताना के करीबी रहे गफ्फूर खां से सुल्ताना की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा। पहले तो गप्फूर खां ने आना-कानी की पर बाद में यंग साहब के समझाने पर वह तैयार हो गए। नजीबाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मेमन सादात के रहने वाले डिप्टी सुपरिटेंडेंट अब्दुल कासिम के संबंध नजीबाबाद के लोगों से अच्छे थे। अब्दुल कासिम की वजह से ही नजीबाबाद के कुछ लोग सुल्ताना की गिरफ्तारी के लिए यंगसाहब का साथ देने को तैयार हो गए। सुल्ताना की मुखबिरी इतनी जबर्दस्त थी। यंगसाहब की हर योजना का पता उसे तुरंत चल जाता था। इसकी वजह से कई साल तक जूझने के बाद भी यंग साहब उसे नहीं पकड़ पाए। आखिरकार थककर वह आगरा हेड क्वार्टर चले गए।
आखिरकार वह हुआ जो हिन्दुस्तान में होता आया है। नजीबाबाद के मुंशी की मुखबरी पर यंग साहब नजीबाबाद आए आैर खेडि़यों के जंगल में बेफिक्र पड़े सुल्ताना को चारों ओर से घेर लिया पर किसी थानेदार के गोली चलाने पर सुल्ताना अपने साथियों के साथ भाग निकलने में सफल हो गया। यंगसाहब सिर पटक कर रह गए। कहा जाता है कि सुल्ताना वहां लाखों के जेवरात छोड़कर गया था। यंगसाहब ने झुंझलाकर थानेदार को नौकरी से निकाल दिया। अगले दिन जट्टीवाला में मुंशी की मुलाकात सुल्ताना से हुई, जिसमें उसने गैंडीखाता न जाने की सलाह दी। गैंडीखाता उस समय साहनपुर रियासत (जाटों की रियासत) का एक गांव था। कहा जाता है कि सुल्ताना महिलाओं से बहुत दूर रहता था। यह सही नहीं है। सुल्ताना गैंडीखाता स्थित एक स्कूल के चपरासी की पत्नी की सुंदरता पर मोहित था, वह उसकी कमजोरी थी, जिसका फायदा यंग साहब ने उठाया। मुंशी के मिलने के तीन-चार दिन बाद अपने साथियों के साथ सुल्ताना गैंडीखाता पहुंचा। यंग साहब नजीबाबाद रुके हुए थे। पल-पल की खबर उन्हें थी। सुल्ताना और उसके दो साथी उस महिला के घर चले गए और अन्य साथी गैंडीखाता के बाग में ठहर गए। योजना के अनुसार सुल्ताना तथा उसके दोनों साथियों की वहां खूब खातिर हुई, उन्हें खूब शराब पिलाई गई।
   यंग साहब अपने जवानों के साथ उस महिला के घर में घुस गए और सुल्तान जिलेदार तथा गांव के चौकीदार मिथरादास ने पूरी ताकत से सुल्ताना को दबोच लिया, जब सुल्ताना ने राइफल पर डाथ डाला तो वह पहले ही हटा दी गई थी। गठीला व नाटा सुल्ताना इतना ताकतवर था कि शराब के नशे में भी वह दोनों को घसीटता हुआ बाहर की ओर भागा। एक सिपाही के उसके पैरों पर राइफल की बट मारने से वह गिर गया। अब सुल्ताना और उसके दोनों साथी पुलिस हिरासत में थे । सुल्ताना वह उसके साथियों को हरिद्वार स्टेशन पर ले जाया गया तथा स्पेशल ट्रेन से नजीबाबाद लाया गया। यह सुल्ताना की गरीबों में लोकप्रियता ही थी कि उसकी एक झलक के लिए पूरा नजीबाबाद तथा आसपास के गांवों के लोग स्टेशन पर मौजूद थे। सुल्ताना और उसके दोनों साथियों को आगरा जेल भेज दिया गया। धीरे-धीरे उसके गिरोह के 130 बदमाश भी गिरफ्तार कर लिए गए। उनमें से एक सरकारी गवाह बन गया, जिसने उन तमाम लोगों की शिनाख्त की जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुल्ताना से संबंध था। सुल्ताना के गिरोह पर मुकदमा चलाया गया। यह केस इतिहास में 'गन केस" के नाम से मशहूर है। बाद में सुल्ताना समेत तीन को सजा-एक मौत हुई तथा उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। उसके अन्य साथियों में से कुछ को उम्र कैद तथा कुछ को अन्य अवधि की सजा दी गई। सुल्ताना के हाथ की तीन अंगुलियां कटी हुई थी, जिनसे उसकी शिनाख्त हुई थी।
............................संकलित

Friday 6 October 2017

असहमति

*असहमति अपराध है क्या ?*

जानी मानी पत्रकार सागरिका घोस ने ट्विटर पर लिखा है कि आजकल दिल्ली के कई पत्रकारों को धमकी भरे संदेश मिले हैं कि अगर वे पीएम और उनकी सरकार का विरोध करते हैं तो उनका हश्र भी गौरी लंकेश जैसा होगा।          

भाजपा के अपने बल पर सत्ता में आने से पहले जब उसके विरोधी यह दावा करते थे कि ये लोग फासिस्ट हैं तो हमको लगता था कि ये एक राजनीतिक आरोप है। लेकिन अब जब एक के बाद एक ऐसी घटनायें धमकी और दबाव सामने आ रहे हैं। जिनमेें भाजपा संघ और उसकी सरकारों की नीतियों का असहमत होकर शालीन और गरिमापूर्ण तर्कों तथ्यों व प्रमाण सहित आंकड़ों के आधार पर विरोध करने वाले लेखकों और पत्रकारों सहित हर क्षेत्र के लोगों को तरह तरह से न केवल डराया धमकाया जा रहा है बल्कि उन पर बाकायदा हमले भी किये जा रहे हैं।

तो यह साफ होता जा रहा है कि भाजपा विरोधियों मानवतावादियों और बुद्धुजीवियों की आशंकायें गलत नहीं थीं। हालांकि डाभोलकर, पांसारे, कालबुर्गी और गौरी लंकेश के हत्यारे अभी तक पकड़े नहीं गये हैं। जिससे पक्के तौर पर यह कहा जा सके कि उनकी हत्या क्यों और किसने की? लेकिन उनको जिन लोगों ने धमकी दी और जिन्होंने उनकी मौत पर जश्न भी मनाया वे आज किसी से छिपा नहीं रह गया है। इतना ही नहीं कुछ लोगों ने खुलेआम यहां तक कहा कि अगर गौरी संघ परिवार और भाजपा के खिलाफ न लिखती तो वे आज ज़िंदा होतीं।

अब यही धमकी कुछ कलमकारों को यह कहकर दी जा रही है कि अगर वे विरोध से बाज़ न आये तो उनको भी इसकी कीमत चुकानी होगी? एनडीटीवी के रवीश कुमार से लेकर राजदीप सरदेसाई तक यह हिट लिस्ट काफी लंबी बताई जाती है। सवाल यह है कि जो सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर बनी है। जिसके मुखिया ने संविधान की शपथ ली है। जिसको कानून के हिसाब से चलना चाहिये। वह ऐसी घटनाओं और हरकतों पर चुप क्यों है? उसके मुखिया सोशल नेटवर्किंग पर उन लोगों को फॉलो क्यों कर रहे हैं जो मोदी सरकार से असहमत लोगों के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं?

अगर गहराई से देखा जाये तो विपक्ष का तो काम ही सरकार की आलोचना करना और विरोध करना होता है। तो क्या विरोधी दल के नेता भी ऐसा करके अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं? इसके साथ ही लंबे समय से भाजपा की सहयोगी शिवसेना बहुत ही तीखे शब्दों में मोदी और उनकी सरकार की आलोचना करती चली आ रही है। ऐसे ही अब तो खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी सरकार की कमियों और नालायकियों पर जोरदार हमला किया है। इससे पहले वाजपेयी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य रहे अरूण शौरी भी मोदी सरकार की असफलताओं पर कटाक्ष कर चुके हैं।

भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री और जाने माने अभिनेता शत्रुघन सिन्हा से लेकर आरएसएस अर्थशास्त्री एस गुरूमूर्ति भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर समय समय पर उंगली उठाते रहे हैं। पत्रकारों और लेखकों का तो काम ही यह होता है कि वे सदा सत्ता के विरोध में कलम चलाते रहे हैं। लेकिन क्या एनडीए के घटक दल भाजपा के मोदी से असहमत नेता और देश के बड़े बड़े बुध्दिजीवी भी अब मोदी सरकार का विरोध नहीं कर सकते? क्या मोदी उनकी सरकार और भाजपा व संघ दैवीय शक्तियां हैं?जिनपर उंगली नहीं उठाई जा सकती? या फिर देश से विपक्ष, लोकतंत्र और कानून का राज ख़त्म हो चुका है?           

ये जो कुछ लोग फ़रिश्ते से बने फिरते हैं, 
मेरे हत्थे कभी चढ़ जायें तो इंसां हो जायें।          

Wednesday 4 October 2017

बी एच यू

बीएचयूः ज़िम्मेदारी से भागो मत!

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में अपनी सुरक्षा सम्मान और समानता की मांग कर रहीं छात्राओं के साथ जो हिंसा का नंगा नाच हुआ। उसको बाहरी तत्वों का कारानामा बताकर वीसी या भाजपा सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं।

केंद्र में भाजपा की सरकार प्रदेश में भाजपा की सरकार और बनारस पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के बावजूद बीएचयू में अपनी जायज़ मांगों के लिये आंदोलन करने वाली छात्राओं के साथ जो कुछ शर्मनाक और अपमानजनक हिंसक सलूक यूनिवर्सिटी प्रशासन और पुलिस ने किया है। उससे यह बात साफ हो गयी है कि जो लोग हिंसा और घृणा की राजनीति को बुरा नहीं मानते हैं। वे अपने दुश्मनों के साथ ही नहीं मौका आने पर अपनों के साथ भी वैसे ही पेश आते हैं। जैसे बर्बर और हिंसक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रही बीएचयू की छात्राओं को डराने धमकाने और रौंदने के लिये पुलिस का बेशर्म इस्तेमाल बल प्रयोग करने के लिये किया गया है।

सवाल यह है कि जब सब कुछ आप के हाथ में है तो आप बाहरी बाहरी का राग अलाप कर अपनी ज़िम्मेदारी से भाग कैसे सकते हैं? कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने काफी पहले बीएचयू का दौरा करके छात्र छात्राओं से उनकी परेशानियों और जेंडर के आधार पर हो रहेे पक्षपात पर मीडिया के ज़रिये सरकार का ध्यान दिलाया था। उस समय यह प्रति आरोप लगाकर मामला झुठला दिया गया कि यह एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय को बदनाम करने की सोची समझी साज़िश है। समस्या उठाने वालों को देशद्रोही भी बताया गया। बहरहाल उस समय मामला चर्चा में आने के बावजूद ठंडे बस्ते में चला गया।

अब जब छात्राओं के साथ पक्षपात तानाशाही और अन्याय बढ़ता गया तो यह मामला अंदर ही अंदर लंबे समय से सुलगने के बाद अचानक चिंगारी से शोला बनकर दहक गया। छात्राओें ने अपनी समस्यायें बड़े शालीन और गरिमामयी ढंग से यूनिवर्सिटी प्रशासन के सामने रखीं थीं। लेकिन कई दिन का समय देने के बावजूद उनपर कोई तवज्जो नहीं दी गयी। इसके बाद छात्राओं का गुस्सा बढ़ने लगा। छात्रायें शांतिपूर्ण धरने पर बैठ गयीं। इस पर भी चीफ प्रोक्टर ने कोई समस्या गंभीरता से नहीं ली। छात्राओें का आरोप था कि उनसे रास्ते में लड़के छेड़छाड़ करते हैं।

एक लड़की के कुर्ते में हाथ भी डाल दिया गया। लेकिन यूनिवर्सिटी से इसकी कोई सूचना पुलिस को नहीं दी गयी। छात्राओं की मांग थी कि उनके आने जाने के रास्तों में सीसीटीवी लगाये जायें जिससे वे ‘रोमियो‘ पकड़े जा सकें जो उनको देखकर बेशर्मी से खुलेआम हस्तमैथुन करते हैं। उनका यह भी कहना था। अगर वे बन संवरकर अपने हॉस्टल से बाहर निकलती हैं तो उनको कुछ लड़के ‘माल’ कहकर चिढ़ाते हैं। एक लड़की के बालों पर अकसर छींटाकशी होती थी। उसने अपने बाल ही कटा दिये जिससे न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।

छात्राओं ने छेड़छाड़ और जेंडर पक्षपात के मामलों को देखने वाली कमैटी को संवेदनशील और सक्रिय बनाने की मांग भी की थी। ऐसी ही व्यवहारिक और आवश्यक मांगे उनकी थीं। जिनके जवाब में यूनिवर्सिटी प्रशासन से लेकर वीसी तक ने उनसे बात तक नहीं की। न ही उनकी पुलिस बुलाकर शिकायत दर्ज कराई गयी। उल्टा आधी रात को पुरूष पुलिस वालों से उनको घेरकर लाठी चार्ज कराया गया। आरोप है कि छात्राओं के हॉस्टल में भी पुरूष वालों ने घुसकर उनको बेरहमी से मारा पीटा। इतना कुछ अनर्थ हो जाने के बावजूद वीसी पूछ रहे हैं कि यूनिवर्सिटी की राष्ट्रवादी छवि बचाये रखने के लिये उन्होंने क्या गलत किया है?

उधर बात बात पर विपक्ष की सरकारों को कटघरे में खड़ा करने वाले पीएम मोदी अपनी ही पार्टी की यूपी सरकार और अपनी ही संघी सोच के वीसी से सख़्ती से पेश न आकर केवल रपट मांग रहे हैं। बनारस पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। इसलिये भी यह शर्मनाक घटना उन पर सवाल खड़े करती है। अब भाजपा सत्ता में है। वह बाहरी तत्वों का बहाना और पीएम मोदी का बनारस दौरा इस कथित साज़िश से जोड़कर अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकती। जो कुछ भी हुआ सबकी ज़िम्मेदारी केवल और केवल केंद्र यूपी और वीसी पर आती है। अगर वे भविष्य में सुधार के पुख्ता इंतज़ाम नहीं कर पायेेंगे तो जनता उनको माफ नहीं करेगी। अब विपक्ष और मीडिया पर पलटवार करने से जनता भाजपा के झांसे में आने वाली नहीं है।

न इधर उधर की बात कर ये बता काफ़िला क्यों लुटा,

मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।