Thursday 31 August 2017

डर और लालच

*डर-लालच के कंट्रोल में हम सब?*

*ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया डर और लालच की गिरफ़्त में है। जो इन दोनों से बाहर निकलजाता है। वो दुनिया को हिलाने और बदलने कीशक्ति पा जाता है।*

साइंस से पहले आदमी नेचर से डरता था।इसीलिये उसने उसकी पूजा करनी शुरू कर दी।धीरे धीरे प्रकृति का रहस्य खुला लेकिन आदमीका डर यानी अंधविश्वास बना रहा। इसके बादजाति और धर्म भी एक दूसरे को डराने के कामआने लगे। इतना ही नहीं इनमें से मज़हब या पंथतो बाकायदा डर और लालच पर ही पूरी तरह सेटिका रहा है। धर्म के जानकार कहते हैं कि ऐसाकरोगे तो स्वर्ग में जाओगे। यानी लालच। दूसरीतरफ कहते हैं कि ऐसा नहीं करके उसके उल्टाकरोगे तो नर्क में जाओगे। यानी डर। ये कोईनहीं कहता कि अच्छे काम करना हमारा नैतिकमानवीय और संवैधानिक कर्तव्य है। अजीबबात यह है कि समाज में जब जब शिक्षा औरजागरूकता बढ़ने से अंधविश्वास कुछ कम होनेलगता है।

तब तब डर का माहौल फिर से ताज़ा कियाजाता रहा है। हद यह है कि डर और लालच कामाहौल बनाये रखने वालों को खुद सवालों सेबड़ा डर लगता है। उनको अपनी पोल खुल जानेका डर भी लगा रहता है। जिसकी मिसालआपने बाबा राम रहीम के चेलों की हरकतेंरिकॉर्ड कर करे पत्रकारोें की पिटाई के तौर परदेखी होगी। मिसाल के तौर पर व्यापारी को घाटेका डर छात्रों को फेल होने का डर औरत कोइज़्ज़त खोने का का डर और बीमार को मरनेका डर दिखाकर ही उनसे मनचाहा पैसा वसूलकिया जाता है। अजीब बात यह है कि कई बारमहिला को बदनामी का डर दिखाकर उसकीआबरू से खिलवाड़ किया जाता है। फिर भीइसका कारण उसकी आबरू बच जाना बतायाजाता है।

जिनके पास दुनिया मेें डरने का कोई कारण नहींहोता उनको मरने के बाद का डर दिखाया जाताहै। कमाल की बात यह है कि तंत्र मंत्र का ढांेगकरने वाले ओझाओं का सारा कारोबार ही डरसे चलता है। वे उूपरी हवा जिन्न भूत और बुरीआत्माओं के साये का डर दिखाकर धन दौलतही नहीं कई बार कुछ लोगों का सबकुछ लूट लेतेहैं। कहा जाता है कि अफ़वाहें डर को पर लगातीहैं। इससे डर हवा में उड़ने लगता है। अफ़वाहेंमूर्ख फैलाते हैं। उनको नफ़रत करने वाले घड़तेहैं। साथ ही अपना दिमाग इस्तेमाल न करनेवाले उनको चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं।फासिस्ट शक्तियां अकसर अफवाहों का सहारालेती हैं। वे सबसे पहले मीडिया पर कब्ज़ाकरती हैं।

जैसाकि आजकल हो रहा है। आजकल नेता भीइन अफवाहों का खूब लाभ उठाने लगे हैं। वेदूसरे दलों के नेताओं को अपने दल में आने केलिये मजबूर करने को उनको सीबीआई जांचका डर दिखाते हैं। कुछ को भारी रकम कालालच देकर ख़रीद लेते हैं। अफवाहों से लोगडर जाते हैं। यह मनोविज्ञान है कि डरा हुआआदमी आपसे कभी सवाल नहीं पूछ सकता।सत्ताधरी यही चाहते हैं। आजकल देश में कहाजा रहा है कि मोब लिंचिंग से अल्पसंख्यक डरेहुए हैं। जब जगह जगह उनका मज़हब देखकरबीफ़ या देशद्रोह के बहाने उनको मारा जा रहा हैतो उनका डरना स्वाभाविक ही है। हैरत की बातयह है कि बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों सेडराने का काम बड़ी तेज़ी से चल रहा है।

वजह पूरी दुनिया में मुसलमानों की छविआतंकवादी की बन गयी है। कुछ उनकेकट्टरपंथियों ने काम भी ऐसे ही किये हैं। इसकेपीछे अमेरिका और पश्चिमी देशों का क्या रोलहै। उसको पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दियागया है। भारत में एक संस्था और राजनीतिकदल लंबे समय से बहुसंख्यक हिंदुओं का डराताआ रहा है कि अगर मुसलमानों को दबाकर नरखा गया तो ये देश का एक और बंटवारा करदेंगे। यह भी दावा किया जाता है कि मुसलमानोंकी आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। यह भीबहकाया जाता है कि जल्दी ही मुसलमान देश मेंबहुसंख्यक हो जायेेंगे। फिर ये भारत को भीइस्लामी राष्ट्र बनाकर पहले की तरह हिंदुओं सेजज़िया वसूलेंगे।

जबकि ये बातें कोरा झूठ हैं। खुद भारत सरकारके जनगणना के ताज़ा आंकड़े इस अफवाह कोझुठलाते हैं। लेकिन बेचारे हिंदुओं को लगातारडराकर सत्ता में बैठे चालाक लोग कभीगोरखपुर अस्पताल कभी शामली रेल दुर्घटनाऔर तो कभी चंडीगढ़ में बाबा रामरहीम सेनिबटने के बहाने सैकड़ोें की तादाद में लोगों केमरने पर भी मुसलमानों से डराने का एक सूत्रीफार्मूला अपनाये हुए हैं। ऐसे ही मुसलमानों कोउनके कट्टरपंथी डराकर अकसर उकसाते रहतेहैं। जिससे बार बार टकराव दंगे और नफ़रतलगातार बढ़ती जा रही है। पता नहीं कितनानुकसान उठाकर सभी मज़हब के लोगों कीआंखे खुलेंगी जिससे वे सच को देख समझसकें।

मेरे बच्चे तुम्हारे लफ़्ज़ को रोटी समझते हैं,

ज़रा तक़रीर कर दीेजे कि इनका पेट भरजाये।

 

Saturday 26 August 2017

3 तलाक़ का अंत

*तीन तलाक सुधार का अंत नहीं शुरुआत है!*
बहुमत से ही सही सुप्रीम कोर्ट ने आशा केअनुरूप एक साथ तीन तलाक़ पर रोक लगा दीहै। 1985 में भी सबसे बड़ी अदालत ने शाहबानों के केस में संवैधनिक और मानवीय आधार पर शाहबानों के पक्ष में एतिहासिकफैसला दिया था। लेकिन उस समय वोटबैंक के चक्कर में कांग्रेस की तत्कालीन राजीव सरकार ने उस फैसले को कानून बनाकर पलट दिया। लेकिन आज केंद्र में भाजपा की सरकार है।आज हालात बदले हुए हैं। दूसरी बात खुद मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग खुलकर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के पक्ष में आ गया है। साथ ही सेकुलर दल भी फैसले के साथ दिखने को मजबूर लग रहे हैं। मुट्ठीभर कट्टरपंथी औरमौलाना न पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा विचार करने के पक्ष में थे।

न ही आज हैं। लेकिन एक बड़ा परिवर्तन उनमेंभी देखने में आ रहा है कि वे खुलकर इस फैसलेका विरोध करने या सड़कों पर आंदोलन करनेका अल्टीमेटम देने से बच रहे हैं। ऐसा लगता हैकि वे कोई बीच का रास्ता निकालने की सोच रहेहैं। जिससे उनकी मुस्लिम समाज पर पकड़ भीपहले की तरह बनी रहे और वे सुप्रीम कोर्ट सेभिड़ने से भी बच जायें। लेकिन यह उनकीखुशफहमी होगी अगर वे ये मानकर चल रहे होंकि मामला यहीं ख़त्म हो जायेगा। दरअसल यहफैसला इंस्टेंट तीन तलाक का अंत नहीं बल्किमुस्लिम पर्सनल लॉ के ऐसे सभी प्रावधानों कोख़त्म करने की शुरूआत है। जो संविधानसमानता और मानवता की भावना के खिलाफजाते हों।

आप नोट कर लो जल्दी ही याचिकाकर्ता पीड़ितमहिलायें हलाला और मुस्लिम पुरूषों केबहुविवाह का मुद्दा सर्वोच्च अदालत के सामनेउठाने जा रही हैं। उधर भाजपा की मोदी सरकारइस फैसले के आलोक में विधि आयोग कीसमान नागरिक संहिता के लिये आने वालीसिफारिशों की प्रतीक्षा कर रही है। इस समयभले ही सरकार ने मौके की नज़ाकत को देखतेहुए इस बारे मेें कोई कानून बनाने की ज़रूरत सेमना कर दिया हो। लेकिन वह इस बारे में चुपबैठने वाली नहीं है। संघ उसको ऐसा कानून याकॉमन सिविल कोड उसके एजेंडे के हिसाब सेबनाने को हर हाल में मजबूर करेगा। इससे होगायह कि सरकार ऐसा करेगी तो सुप्रीम कोर्ट उसको नहीं रोकेगा और जैसा कि अब सुप्रीम कोर्टने किया है तो सरकार इस फैसले को नहींपलटेगी।

अगर कट्टरपंथी या चंद मौलाना इस बारे में कोईहंगामा करते भी हैं तो सरकार उसको आसानीसे अनदेखा कर देगी। इसकी वजह इस मामले मेंसेकुलर दलों का हिंदू वोट बैंक पहले हीखिसककर पूरी तरह भाजपा के पाले में चलेजाने से डरकर खामोश या तटस्थ बने रहनाहोगा। हमें लगता है कि यह एक सकारात्मकशुरूआत है। भले ही भाजपा पर मुस्लिम विरोधीहोने का आरोप हो लकिन इस मामले में वहसेकुलर दलों से अधिक प्रगतिशील औरआधुनिक नज़र आ रही है। आप चाहें तो इसकोकुछ मुसलमानों को गोरक्षकों के द्वारा पीटपीटकर मारने और मीट बंद करने की तरहभाजपा सरकार का मुसलमानोें को एक औरसबक सिखाने वाला बदले की भावना का कदमभी मान सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने तीन तलाक केखिलाफ अपनी मंशा पहले ही ज़ाहिर कर दी है।मुस्लिम संस्थाओं का दावा है कि तीन तलाक़उनके पर्सनल लॉ का एक अहम हिस्सा है।उनका यह भी कहना है कि पर्सनल लॉ उनकेमज़हब की ही आचार संहिता है। साथ साथ वेयह भी जता रहे हैं कि पर्सनल लॉ को संविधानसे मान्यता मिली हुयी है। देखने सुनने में उनकीबात एक हद तक ठीक ही नज़र आती है।लेकिन इसमें एक पेंच फंस गया है। इस्लाम केजानकारों का कहना है कि इस्लाम की बुनियादकुरआन पाक पर टिकी है। कुरआन पाक में एकसाथ कहीं भी तीन तलाक़ की इजाज़त नहीं दीगयी है। मुस्लिम उलेमा का कहना है कि उनकेलिये जितना अहम कुरआन पर चलना है।

उतना ही अमल शरीअत पर करना ज़रूरी है।उनका यह भी दावा है कि शरीयत मंे एक साथदी गयी तीन तलाक़ भी जायज़ करार दी गयी है।अब सवाल आता है कि फिर दुनिया के लगभगदो दर्जन मुस्लिम देशों ने इस तरह की तलाक परकानूनन पाबंदी क्यों लगा दी है? तो मज़हब केठेकेदारों का बड़ा रक्षात्मक जवाब होता है किअगर दुनिया के तमाम देश कुछ गलत कर रहे हैंतो क्या ज़रूरी है कि वे भी उस गुनाह में शरीकहो जायें? अब ज़ाहिर सी बात है कि इस्लामीमामले तो इस्लामी उलेमा ही तय करते रहे हैं।अगर सियासी हिसाब से न देखकर इस मामलेको सामाजिक और मानवीय आधार पर देखाजाये तो संविधान धर्मों की तरह लिंग के आधारपर कोई अंतर भारतीयोें में नहीं करता।

चाहे वो चंद मुस्लिम औरतें ही हों। लेकिन वे हीतीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गयी हैं।संविधान ही हमारे देश को सेकुलर स्टेट बनाताहै और संविधान ने ही सबको बराबर अधिकारदिये हैं। अगर हमें संविधान के हिसाब से देश कोचलाना है तो उसकी सारी बातों को माननाहोगा। ऐसा नहीं हो सकता कि मीठा मीठा गप्प।और कड़वा कड़वा थू। जब सती प्रथा पर रोकलगाई गयी थी। तब भी हिंदू धर्म को ख़तरे मेंबताया गया था। आज नहीं तो कल इस मुद्दे परकोई भी सरकार हो कट्टरपंथियों से दो दो हाथकरने ही पड़ेंगे।

0ऐसा लगता है शायद यह दौर ए तबाही है,

शीशे की अदालत है पत्थर की गवाही है।

दुनिया में कहीं ऐसी तमसील नहीं मिलती,

क़ातिल ही मुहाफ़िज़ है क़ातिल ही सिपाही है।

Thursday 24 August 2017

चोटी कटने का डर

आदमी पर आदमी का काबू पाने औरअपनी मर्जी से हांकने का सबसे बड़ाहथियार हमेशा से डर रहा है। लालच शायदउससे छोटा तरीकाहोगा क्योंकि वह सब परलागू नहीं हो पाता है। 

चोटी काटने के शक में यूपी के आगरा मेंएकबुजुर्ग महिला मानदेवी की भीड़ ने पीटपीटकरहत्या कर दी। इससे पहले भी डायनहोने के आरोप में कई महिलाओं को भीड़ नेऐसे ही कईराज्यों में मौत के घाट उतारा है।कुछ उग्रगोरक्षक भी बहाना भले ही गाय कालेते होंलेकिन अंदर से मुस्लिम आबादीबढ़ने औरभारत के एक दिन इस्लामी राष्ट्रबनने केकाल्पनिक दुष्प्रचार और अफवाहोंसे डरकर हीकई जगह पीट पीटकर कुछमुसलमानों कोडराने के लिये ही मार चुके हैं।पहले राजस्थानके बीकानेर नोखा में लड़कीकी चोटी कटने कीख़बर आई। बाद मेंजोधपुर के पास नागौर पालीव सिरोही केगांवों से भी एक के बाद एक ऐसीख़बरेंअचानक थोक मेें आने लगीं।

जब पुलिस ने एकाएक बढ़े ऐसे मामलोंकीजांच संजीदगी से शुरू की तो पता लगाकि कईमामले झूठे हैं। एक लड़की ने अपनेबाल खुद हीकाटे और अगले दिन ब्यूटीपार्लर जाकरबॉबकट सैटिंग करा आई। एकजगह पति पत्नीके झगड़े में मियां ने खुदबीवी की चोटी गुस्सेमंे काट डाली। बाद मेंलोकलाज के डर से यहअफवाह फैला दीकि उसकी चोटी रात में सोतेसमय किसी नेकाट दी। गुजरात में भी जब इसतरह कीघटनायें बढ़ने लगीं तो पुलिस नेपीड़ितों सेसख़्ती से पूछताछ की तो अधिकतरमामलोंमें यह पब्लिसिटी स्अंट या अफवाहसाबितहुयीं। इस दौरान अंधविश्वासों काकारोबारकरने वाले ओझा भी मौका भांपकरसक्रियहो गये।

उन्होंने चोटी कटने से बचाने के नाम पर घरोंमें2100 से 5100 रू. लेकर अनर्थ टालनेवालीमूर्तियां स्थापित करनी शुरू कर दीं।इसके साथही उन्होंने अपने हलवाई भाइयोंके हितों काख़याल रखते हुए निर्मल बाबाकी तरह कृपापाने को चोटी कटने से बचानेके लिये जलेबीखीर खाने की भी सलाह देनीशुरू कर दी।अफवाहों को जब पर लगे तो वेयूपी से बिहारझारखंड होते हुए उत्तराखंडकी पहाड़ियों परजा चढ़ीं। इस दौरान समाजविज्ञानियों औरबुध्दिजीवियों ने जो सवालउठाया उसका जवाबआज तक किसी केपास नहीं है कि अमीर उच्चशिक्षित और बड़ेपदों पर बैठीं महिलाओं कीचोटी कटने कीएक भी घटना सामने क्यों नहींआई? उनकोजिन्न भूत उूपरी हवा और दिव्यशक्ति नेकैसे छोड़ दिया?

किसी भी पॉश कॉलोनी ऑफिसरकॉलोनीसैनिक कॉलोनी पुलिस कॉलोनीऔर फिल्मसिटी यानी वीवीआईपी क्षेत्र मेंरहने वालीमहिला की चोटी न कटने काआखि़र राज़ क्याहै? गांवों और कस्बों में भीकेवल उन हीमहिलाओं की चोटी कटी जोगरीब या लोवरमीडियम क्लास लेडीज़ खुलेमें या असुरक्षितघरों में रहती हैं। इसकामतलब साफ है कि यहकिसी इंसान की हीशरारत है। आपको यादहोगा कि 21 सितंबर1995 को इसी तरह कीअफवाहों और लोगोंके अवचेतन में पहले सेमौजूद अंधविश्वासके कारण ही देशभर में गणेशजी की मूर्तियोंको दूध पिलाया गया था।

इसके बाद मुुंहनोचवा और मंकीमैन भीसालभरसे अधिक समय तक कमज़ोरआत्मविश्वासवालों को जगह जगह लगातारडराते रहे औरफिर एक दिन बिना पुलिस केएनकाउंटर यापकड़े ही तड़ीपार हो गये।आपने शायद इसबात पर गौर नहीं कियाहोगा कि जब येअफवाहें जोरशोर से फैलतीहैं तो सरकारें या तोअपनी किसी नाकामी सेलोगों का ध्यान हटानेको इस दौरान राहतकी सांस लेती हैं। या फिरकोई ऐसा बड़ाजनविरोधी फैसला अंजाम देदेती हैं।जिसको अफवाहें न फैलने पर शायदभारीविरोध का सामना करना पड़ता। यहमहज़संयोग होता है या फिर सोची समझीचाल? आपअगर विचार करें तो आपकोअंधविश्वास विरोधीअभियान चलाने वालेनरेेंद्र डाभोलकर की हत्याभी इसी जं़जीरकी एक कड़ी नज़र आयेगी।

इसके साथ ही रचनात्क और वैज्ञानिक सोचकोबढ़ावा देेने वाले गोविंद पांसारे और एमएमकालबुर्गी की जान लेना भी उसी डर काएकहिस्सा रहा है। जिसका कारोबार समाजके उसधर्मभीरू और बुज़दिल नादाननागरिक कोखौफज़दा करने में ये लोगदीवार बनने लगेथे।   

0मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

  तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादानहै।

Monday 14 August 2017

सेंसर बोर्ड

*सेंसर बोर्ड का काम क्या है?*

पहलाज़ निहलानी को शायद यह बात आजतक समझ में नहीं आई कि जब आप किसी संस्था के मुखिया बन जाते हैं तो आपको उदार, विनम्र और खुले दिमाग़ से काम लेना होता है।

सेंसर बोर्ड के मुखिया पहलाज़ निहलानीशायद इस बात को अभी तक भूल नहीं पा रहे हैं कि उनको भगवा विचारधारा की वजह से इस पद पर बैठाया गया है। हाल ही में उन्होंने नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन कीडाक्यूमंेट्री फिल्म ‘दि आर्ग्यू मेंटेटिव’ को पासकरने से मना कर दिया। सबसे अजीब बात यहहै कि इसके लिये निहलानी ने जो कारण बतायेवे आम आदमी की समझ से भी निचले स्तर केहैं। उनका कहना है कि इस फिल्म में गुजरातगाय हिन्दुत्व और हिंदू इंडिया जैसे शब्दों काइस्तेमाल क्यों किया गया है? दरअसल ये शब्दसेन के द्वारा कार्नेल यूनिवर्सिटी में दिये गयेउनके भाषण का हिस्सा हैं। गाय की चर्चा उनकीएक बहस से ली गयी है।

हिंदुत्व का ज़िक्र इस संदर्भ में आया है। जब वहयह कहते हैं कि वो भारत को हिंदुत्व के चश्में सेनहीं देखते। सबको पता है कि सेन एक निष्पक्षऔर सेकुलर इंसान हैं। वह कई बार मालूम करचुके हैं कि क्या वजह है कि देश में जब भी हिंदूमुस्लिम तनाव होता है। इसका फायदा भाजपाको क्यों होता है? निहलानी को फिल्म केनिर्माता ने काफी समझाया कि ज़रूरी नहीं हरआदमी की विचार धारा संघ परिवार जैसी हीहो। निर्माता का कहना था कि लोकतंत्र कीबुनियाद ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिकीहै। अभिव्यक्ति का सीधा मतलब है कि कोईआप से सहमत और असहमत होने यानी दोनोंअधिकार रखता है।

जब निहलानी ने निर्माता के किसी तर्क औरतथ्य पर कान नहीं दिये तो उन्होंने इस फिल्मका ट्रेलर नेट की एक वेबसाइट पर पोस्ट करदिया। इससे सेंसर बोर्ड पर इस फिल्म को पासकरने का दबाव बढ़ गया है। निहलानी की भगवासोच की हालत यह है कि उन्होंने 2008 केअहमदाबाद विस्फोट पर बनी फिल्म ‘समीर’ मेंआये मन की बात शब्द को केवल यह सोचकरहटाने ताकीद कर दी कि कहीं इससे पीएम मोदीनाराज़ न हो जायें। क्या प्रधनमंत्री के रेडियो परयह प्रोग्राम इस नाम से शुरू कर देने पर शब्द हीपेटेंट हो गये कि कोई मन की बात शब्दों काइस्तेमाल ही नहीं करेगा? सेंसर बोर्ड ने फिल्मफिल्लौरी को जिस वजह से सर्टिफिकेट देने सेरोका वह कारण और भी हैरतअंगेज़ है।

बोर्ड का कहना है कि इस फिल्म मेें हीरो भूतनीसे डरकर हनुमान चालीसा पढ़ता है और भूतनीफिर भी नहीं भागती। इसलिये भूतनी के भागेबिना फिल्म पास करना भारतीय संस्कृति काअपमान होगा। निहलानी ने साफ कह दिया किनिर्माता भूतनी को भगाये या फिर हनुमानचालीसा का पाठ हटाये क्योेंकि भारतीयों कायह मानना है कि हनुमान चालीसा पढ़ने से हरहाल में भूत भूतनी को भागना ही होगा।पहलाज़ निहलानी की फिल्मों पर रोक की वजहसुनकर ऐसा लगता है कि सब निर्माताओं कोनिहलानी की पसंद को सर्वोपरि मानकर हीफिल्म बनानी चाहिये। ‘लिपिस्टिक अंडर मायबुर्का’ को उन्होंने लेडी ओरियेंटेड बताया साथही इस फिल्म में सपनों और फंतासियों पर भीएतराज़ दर्ज किया। उनका कहना है कि यहचीज़ें ज़िंदगी पर हावी नहीं होनी चाहिये।

नोटबंदी पर बनी बंगला फिल्म ‘शून्यौता’ भीरूकनी ही थी। बोर्ड किसी फिल्म में इंटरकोर्सशब्द को भी अवांछनीय मानता है। फिल्म ‘नामशबाना’ से बोर्ड ने संता बंता पर जोक औरशराब की बोतल तक निकलवा दी। निहलानी नेखुद पर संघी होने के आरोप लगने पर फिल्म इंदुसरकार को रोककर उसके निर्माता को कोर्टजाने को मजबूर किया। निहलानी को लेकरफिल्मी दुनिया में बढ़ते विवाद पर मोदी सरकारके प्रवक्ता वही घिसी पिटी सियासी दलील दे रहेहैं कि कांग्रेस के राज में अमृत नाहटा की फिल्म‘किस्सा कुर्सी का’ भी संेसर बोर्ड ने रोकी थी।साथ ही सलमान रश्दी की विवादित किताब‘सेटेनिक वर्सेज़’ और बग्लादेश की विवादितलेखिका तस्लीमा नसरीन पर कांग्रेस औरसेकुलर दलों के राज में बार बार रोक को भीमुद्दा बनाया जा रहा है।

मगर संघ बीजेपी और मोदी सरकार यह बातभूल रहे हैं कि कांग्रेस और सेकुलर दलों की उनहरकतों से आज क्या हालत हो गयी है? संघपरिवार को याद रखना चाहिये कि आज नहीं तोकल उनकी पोल ज़रूर खुलेगी कि वे देश को हरक्षेत्र में पीछे ले जाने ही होड़ मेें हिंदूवाद काकेवल नाटक कर रहे हैं। जनता यह बात अबधीरे धीरे समझने लगी है कि भाजपा मुसलमानोंका विरोध करके हिंदुओं या देश का कोई भलानहीं कर रही है। देश के प्रमुख बुध्दिजीवियोें सेलेकर रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी सैनिक औरविदेशी विशेषज्ञ दो टूक जता रहे हैं कि मोदीसरकार बनने के बाद देश विकास और प्रगति मेंलगातार पीछे जा रहा है।

Monday 7 August 2017

नीतीश की पलटी

*नीतीश की सियासत को समझिये!*

नीतीश की सियासत को समझिये!0 जिस तरह से एक झटके में बिहार के सीएमनीतीश कुमार ने लालू यादव से पल्ला झटककरमोदी की भाजपा के साथ गठबंधन किया है उसेअवसरवाद कहना मसले का सरलीकरण करना होगा। 

 

बिहार में 20 महीने राजद के साथ साझासरकार चलाकर जिस तरह से अचानक नीतीशकुमार ने लालू को बीच मंझधार में छोड़करभाजपा का हाथ थामा है। वह सब अचानकनहीं हो गया है। दरअसल यह सब नीतीश केएक नये प्रयोग का असफल होना है। आपकोयाद होगा पहले लंबे समय तक नीतीश आरामसे भाजपा के साथ बिहार में साझा सरकार चलाही रहे थे। नीतीश कुमार खुद को तब नसाम्प्रदायिक मानते थे और न लालू के साथगठबंधन करके कभी सेकुलर होने का दावाउन्होंने किया। आप परत दर परत अगर लालूनीतीश के गठबंधन के अलग अलग नेताओं केबयानों को खंगालेंगे तो पायेंगे कि नीतीश कभीभाजपा पर अलग होने के बावजूद उतनेआक्रामक नहीं हुए जितने लालू गाहे ब गाहेमोदी पर जमकर हमला बोलते रहे हैं।

कम लोगों को पता है कि नीतीश 2014 मेंसियासत में दरअसल एक नया प्रयोग कर रहेथे। वे यह जानते थे कि उनकी जाति के मतदाताबिहार में दो प्रतिशत से थोड़ा सा ही अधिक हैं।उधर उनके निकटतम विरोधी लालू के यादवमतदाता 14 प्रतिशत हैं। साथ ही लालू के साथमुसलमान और दलित आबादी का भी एकसाइजे़बिल हिस्सा सदा रहा है। नीतीश नेजानबूझकर मोदी विरोध का एक दांव खेला।उन्होंने भाजपा की तरफ से पीएम पद काप्रत्याशी मोदी को बनाये जाने से यह सोचकरअलग होने का फैसला किया कि इससे सेकुलरहिंदू और मुसलमानों का बड़ा वर्ग उनके त्याग सेउनका दीवाना होकर समर्थन करेगा। साथ हीअपनी स्वच्छ सरकार की छवि से भी उनकोएक बड़े वर्ग के वोट थोक में मिलने की उम्मीदअलग से थी।

लेकिन मोदी की विकासपुरूष की छवि केसामने आने से ऐसा कुछ नहीं हुआ। उधर लालूजो 15 साल तक लगातार सीएम रहकर एकदशक से सत्ता से अलग रहने का ताप भोग रहेथे। नीतीश के उनसे गठबंधन का प्रस्ताव रखनेसे गदगद हो गये। हालांकि 2014 के लोकसभाचुनाव में मोदी ने नीतीश को यह मानने कोमजबूर कर दिया कि उनका फैसला गलत था।लेकिन नीतीश ने विधानसभा चुनाव मेें लालू काहाथ कांग्रेस के दबाव में यह सोचकर पकड़ा थाकि इस महागठबंधन से भाजपा को रोककर वेराहुल की जगह खुद को विपक्ष का पीएम पदका प्रत्याशी घोषित कराने को मजबूर कर देंगे।एक तरफ भाजपा कांग्रेेस मुक्त भारत का नारा देरही थी।

दूसरी तरफ नीतीश कुमार आरएसएस मुक्तभारत का नारा देकर गैर भाजपा विपक्ष केसाझा गठबंधन का नेतृत्व करना चाहते थे।लेकिन उनकी यह इच्छा कांग्रेस के राहुल कोविपक्ष का नेता ज़बरदस्ती बनाये रखने की ज़िदके कारण पूरी होने के कोई आसार नज़र नहींआ रहे थे। उधर लालू पर लंबे समय से लगते आरहे करप्शन के आरोप उनकी माफिया डॉनशहाबुद्दीन से नज़दीकी और उनके यादवपरिवार का नीतीश सरकार पर बढ़ता दबदबानीतीश को लगातार परेशान कर रहा था। उधरमोदी की भाजपा यूपी जीतने के बाद लगातारबिहार में अपनी सेंध लगाने के जुगाड़ में थी।जिस तरह से नीतीश सर्जिकल स्ट्राइक से लेकरनोटबंदी राष्ट्रपति के चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशीऔर जीएसटी तक का समर्थन खुलकर कर रहेथे।

राजनीति के जानकार तब से यह अंदाज़ लगारहे थे कि आज नहीं तो कल नीतीश भूलसुधारकर भाजपा के साथ दोस्ती करने जा रहे हैं। बसतेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग तो पटकथाके तौर पर एक बहाना मात्र था। महाराष्ट्र काउदाहरण देखें तो एक दिन बिहार में यूनाइटेडजनता दल को भी अपनी सत्ता खुद थाली मेंरखकर भाजपा के हवाले करने होगी। फिलहालअपनी सरकार किसी दिन भी भाजपा के हाथोंगंवाने से भयभीत नीतीश ने भले ही लालू कोधोखा देकर मोदी का हाथ पकड़ लिया हो।लेकिन उनको यह नहीं भूलना चाहिये कि मोदीअपने राजनीतिक गुरू उन एल के आडवाणीको भी किनारे लगा चुके हैं। जिन्होंने उनकीगुजरात का सीएम रहते कुर्सी वाजपेयी से बचाईथी।

सच तो यह है कि नीतीश माने या न माने उनकी उल्टी गिनती बिहार में चालू है।