Wednesday 29 April 2020

लॉकडाउन और कोरोना

लॉकडाउन धीरे धीरे हटेगा

कोरोना साथ साथ चलेगा !

0कृषि क्षेत्र सहित कुछ क्षेत्रों से लॉकडाउन पहले चरण के बाद ही हट चुका था। पहले रोज़े से कुछ और दुकानें खुल गयीं हैं। बाक़ी 3 मई के बाद धीरे धीरे अलग अलग राज्यों के हिसाब से लॉकडाउन आज नहीं तो कल किश्तोें में हटना ही है। लेकिन एक चीज़ जो महीनों या सालों तक नहीं जायेगी वह कोरोना है। ज़ाहिर है कि कोरोना अब हमारी ज़िंदगी के साथ साथ चलेगा। इसलिये बचाव को सावधनी लगातार जारी रखनी होगी।     

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   कोरोना एक बीमारी है। यह अजीब तरह की बीमारी है। इसके प्लेग स्पेनिश फ्रलू व ब्लैक फीवर की तरह महामारी बनने का ख़तरा दुनिया पर अब भी मंडरा रहा है। पहले आई महामारियों में करोड़ों लोग मारे गये थे। उस समय आज की तरह आध्ुानिक स्वास्थ्य सुविधायें तेज़ जनसंपर्क और लॉकडाउन जैसी सुविधायें दुनिया में उपलब्ध नहीं थीं। लेकिन यह भी सच है कि एक देश की महामारी इतनी जल्दी और इतनी तेज़ी से दूसरे देशों में भी पहले नहीं फैलती थी। इसकी वजह यह थी कि यातायात के साधन उतने अच्छे नहीं थे। जितने आज हैं।

हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि लॉकडाउन से कोरोना को ख़त्म नहीं किया जा सकता। लेकिन इससे होने वाला नुकसान कम किया जा सकता है। कुछ सूत्रों का दावा है कि लॉकडाउन तो एक तरह से पॉज़ बटन का काम करेगा। जैसे ही लॉकडाउन ख़त्म होगा। लोग घरों से बाहर निकलेंगे। एक दूसरे के संपर्क मेें आयेंगे तो कोरोना का असर फिर से बढ़ने लगेगा। अब यह तो समय ही बतायेगा कि इस आशंका में कितनी सच्चाई हैलेकिन जानकारों की इस बात में दम है कि लॉकडाउन का वास्तविक लाभ तभी मिलता है। जब सरकारें शत प्रतिशत ना सही अपने अधिकतक नागरिकों की देशबंदी के दौरान कोरोना जांच कर लें।

हमारे देश में हालत यह है कि शासन प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद कोरोना संक्रमित तक अपने घरों में छिपे बैठे हैं। वे तमाम अपील और कोई कानूनी कार्यवाही या उत्पीड़न ना करने के सरकार के आश्वासन के बावजूद जाने अंजाने में अपने घरों मुहल्लों व पूरे रिहायशी इलाकों के लिये कोरोना प्रसार का ख़तरा बने हुए हैं। इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना लगातार अपने रंग बदल रहा है। पहले इसके लक्ष्ण 7 से 14 दिन में दिखने लगते थे। इसके बाद कुछ मामलों में कोरोना संक्रमितों में बुखार खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत 21 से 28 दिन बाद सामने आने लगी।

सरकार ने कोरोना के बारे में विशेषज्ञों की इसी राय को नज़र में रखते हुए ही पहले चरण का लॉकडाउन 14 की बजाये 21 दिन का रखा था। लेकिन जब 28 दिन और उससे भी अधिक दिन की बात सामने आयी तो सरकार ने 19दिन और बढ़ाकर इसको कुल 40 दिन का यह सोचकर किया होगा कि इससे जो भी कोरोना रोगी होंगे। उन सबके लक्ष्ण हर हाल में सामने आ जायेंगे। ऐसे मेें उन हज़ार या लाख दो लाख लोगों का इलाज करके देश के बाकी लोगों को कोरोना के प्रकोप से बचाया जा सकेगा।

लेकिन कोरोना ने 79 फीसदी रोगियों में अपने लक्ष्ण ज़ाहिर ना करके हमारे देश ही नहीं पूरी दुनिया के सामने यह नई चुनौती पेश कर दी कि कोरोना पीड़ितों को कैसे तलाश किया जाये?ज़ाहिर बात है कि जब तक हम एक एक कोरोना पीड़ित को देश में चिन्हित नहीं कर लेते उनका इलाज भी नहीं कर सकते। हालांकि सरकार ने इस दौरान स्वास्थ्य सुविधायें बढ़ाने कोरोना संक्रिमितों की जांच करने को लैब बड़े पैमाने पर स्थापित करने अस्पताल की संख्या बढ़ाने रेलवे के कोचों में अस्थायी कोरोना चिकित्सालय बनाने वैंटिलेटर और कोरोना टैस्ट की त्वरित किटें मंगाने में काफी अच्छा काम किया है।

लेकिन हमारी बड़ी आबादी और उनमें गरीबी व जहालत अधिक होने से कोरोना महामारी फैलने पर सब मरीज़ों का एक ही समय मंे इलाज करना कठिन नहीं लगभग नामुमकिन सा ही होगा। इसलिये लॉकडाउन खुलने के बाद हम सबको पूरी तरह से पहले की तरह सावधानी बरतते हुए नई दुनिया में जीना है।

कोरोना आने के बाद की दुनिया में सबको मास्क लगाना सड़क पर ना थूकना फिज़िकल डिस्टेंसिंग रखना बार बार साबुन से हाथ धोना बिना ज़रूरत घर से नहीं निकलना भीड़ में जाने से बचना शादी जन्मदिन की छोटी से छोटी पार्टी करना चाट मिठाई व चाउूमिन डोसे और बाहर का खुला सामान खाने से बचना डिजिटल पेमेंट करना खांसते छीेंकते समय मुंह ढकना हाथ ना मिलाना गले ना मिलना किस ना करना घर से बाहर जाने पर वापस आते ही नहाना दूसरे जूते चप्पल पहन लेना अवांछित लोगों को घर से बाहर ही रखना फालतू लोगों से ना मिलना फालतू बात ना करना स्कूल जाने वाले बच्चों को अपने साथ के बच्चों से दूरी बनाये रखने को समझाना सफाई का घर पर खास खयाल रखना और अनावश्यक सार्वजनिक स्थानों सिनेमा मीटिंग खरीदारी खेलकूद पिकनिक यात्रा टालना हर किसी से मिलने में 6 फुट से अधिक की दूरी बनाये रखना ही कोरोना से बचाव का एकमात्र रास्ता होगा।

यानी सरकार की भूमिका लॉकडाउन के बाद एक सीमा तक ही काम करेगी। हम सबको खुद ही ऐसे तौर तरीके विकसित करने होेंगे। जिससे कोरोना से समाज को जागरूक कर कोरोना के ख़तरे के साथ एक नई दुनिया में कोरोना से बचाव कर सकें। मतलब कोरोना की मौजूदगी के साथ एहतियात बरतते हुए लंबे समय तक हर पल हर क़दम पर चौकस रहकर नई जीवन शैली अपनानी होगी।                                                  

0 मैं बदले हुए हालात में ढल जाता हूं,

  देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे।।      

Monday 20 April 2020

डॉक्टर्स पर हमला

जान बचाने वालों पर हमला किसी कीमत पर सहन नहीं होगा !

 

0पहले इंदौर और उसके बाद मुरादाबाद में संदिग्ध लोगों को कोरोना से बचाने गये डाक्टर्स नर्सों और पुलिस पर हमला हुआ। इस हमले को अफ़सोसनाक नहीं शर्मनाक माना जायेगा। यह भूल या मामूली गल्ती नहीं भयंकर व जघन्य अपराध है। तमाम अगर मगर और बहानों के बावजूद हम इस हमले को अक्षम्य और पागलपन मानते हैं। जब शासन प्रशासन पुलिस और स्वास्थ्य विभाग आपकी जान बचाने को अपनी जान दांव पर लगाकर दिन रात सेवा कर रहा है तब ऐसे हमले किसी कीमत पर सहन नहीं किया जा सकते हैं।    

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   कोरोना से आज पुरी दुनिया परेशान है। दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडाउन है। दुनिया के कई विकसित अमीर और कम आबादी वाले देश भी अपनी अकड़ नालायकी और लापरवाही से कोरोना की चपेट में आकर अब तक भारी नुकसान उठा चुके हैं। हमारा देश दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। हम विकासशील देश हैं। लिहाज़ा हमारे पास अभी पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं वाला ढांचा भी उपलब्ध नहीं है। हमारी सरकार ने इलाज से बेहतर बचाव की नीति पर चलते हुए देश में लॉकडाउन किया है। विपक्ष के साथ ही सरकार के आलोचक और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत के इस क़दम का समर्थन किया है।

     ज़रूरत के हिसाब से लॉकडाउन को 21दिन के बाद 19 दिन और बढ़ाया गया है। इस दौरान सरकार ने अपने स्तर पर गरीब मीडियम क्लास और ज़रूरतमंद लोगों की आर्थिक सहायता और राशन देकर यथा संभव सहायता भी की है। हालांकि इसमें कुछ कमियां और भूलचूक भी सामने आ रही हैं। लेकिन इतने बड़े देश इतनी बड़ी आबादी और इतने बड़े सिस्टम में यह सब होना स्वाभाविक है। जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो पहले एक सप्ताह सब कुछ काफी ठीक से चला। प्रवासी मज़दूरों के सड़कों पर निकलकर अपने घर जाने के लिये बड़ी तादाद में आने से कुछ समस्यायंे सामने आयीं। लेकिन जल्दी ही इनको संभाल लिया गया।

    इसके बाद दिल्ली में तब्लीगी जमात के मरकज़ में बड़ी संख्या में लोगों के पाये जाने पर हंगामा मचा। उधर तब्लीग के तुर्कमान गेट पर चल रहे दूसरे गुट ने डेढ़ महीने पहले ही अपने सारे प्रोग्राम कोरोना की ख़बर आते ही रद्द कर दिये थे। अरब में मक्का व मदीना की यात्रा भी निरस्त की जा चुकी थी। लेकिन फिर भी नासमझी नादानी और अपराधिक लापरवाही करने वाले जमाती और उनके अंधसमर्थक अपनी भूल ना मानकर सरकार व बहुसंख्यकों पर आरोप लगा रहे हैं। जबकि मीडिया की भूमिका वास्तव में एकतरफा रही है।

    आंकड़े बताते हैं कि देश के कुल कोरोना रोगियों में से एक तिहाई जमात से जुड़े या उनके परिवार के लोग पाये गये हैं। यहां तक सब निभ जाता। लेकिन जब यह बात सामने आई कि जमात का मुखिया यह मानकर चल रहा है कि उनको कोरोना हो ही नहीं सकता। यहां तक कि उनका दावा था कि अगर तब्लीग का नेक काम करते उनको कोरोना हो भी जाये तो उनका मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए मरना बहुत अच्छी बात होगी। बताया जाता है कि जमात के मुखिया की ये बुतुकी और अंध्विश्वासी बातें यूट्यूब और जमात की अपनी वैबसाइट पर अपलोड हैं।

    इतना ही नहीं जमात के लोग अपने मुखिया की इस तरह की भटकाने वाली बातों से गुमराह होकर ना केवल कोरोना के ख़तरे को नज़रअंदाज़ करके खुद बड़ी तादाद में विदेशी तब्लीगियों के संपर्क में आकर बीमार हो गये। बल्कि वे बिना जांच कराये खुद को क्वारंटाइन किये और सावधानी बरते पूरे देश में आते जाते रहे। खुदा ही जानता होगा कि इन नादान लापरवाह और ज़िद्दी लोगों ने कितने और लोगों को सफर के दौरान या अपने घर परिवार व मुहल्ले में संक्रमित किया होगा। इसके बाद भी शासन प्रशासन ने इनसे अपील की कि वे खुद सामने आयें। अपना कोरोना टैस्ट करायें। लेकिन ये अधिकांश अपने घरों में छिपकर बैठे रहे।

    जब लॉकडाउन के दौरान जमात केे कई लोग कोरोना पॉज़िटिव पाये गये और कई की मौत होने लगी तो स्वास्थ्य विभाग की टीम ने इनके परिवार के अन्य सदस्यों को क्वारंटाइन करने की पहल की। लेकिन इंदौर और मुरादाबाद की घटनाओं ने एक बार फिर जमात से जुड़े समाज का सर शर्म से झुका दिया है। हमारा मानना है कि चाहे जो वजह रही हो हमें इन घटनाओं के लिये बिना मीडिया और सरकार के 6 साल से जारी पक्षपात व अन्याय का बहाना लिये बिना बिना शर्त माफी मांगनी चाहिये और भविष्य में ऐसी घटनायें किसी कीमत पर दोहरानी नहीं चाहिये।                                                   

0 पत्थर के खुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसा पाये हैं,

  तुम शहर ए मुहब्बत कहते हो हम जान बचाकर आये हैं ।।         

Monday 6 April 2020

कोरोना और जहालत

कोरोना को हराना है तो जहालत को भगाना है !

0संडे की शाम तक देश में कोरोना के कुल3819 मामलों में से 1023 केस तब्लीगी जमात के सामने आये हैं। जमात के निज़ामुद्दीन मरकज़ की इस मामले में कमियां ग़ल्तियां और नालायकी रही है। इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन मंदिर गुरूद्वारों से और सरकार के स्तर पर भी ऐसी कई चूक हुयी हैं। इसलिये जमात के बहाने मुसलमानों को टारगेट करना भी ठीक नहीं कहा जा सकता है। इस समय हम सबको आपस में नहीं बल्कि एक साथ मिलकर कोरोना से लड़ना चाहिये।    

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   कोराना से लड़ने के लिये भारत जैसे बड़ी आबादी और ना के बराबर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश के पास लॉक डाउन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीें था। हो सकता है कि लॉक डाउन करने में हमारी सरकार से कोई देरी या इसका ऐलान करने में जल्दबाज़ी और पूरी तरह सभी क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सलाह मश्वराह ना किया गया हो। लेकिन यह भी सोचा जाना चाहिये कि कभी कभी हम ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो जाते हैं। जहां से जिस तरफ भी जायेंगे कुछ कमियां भूल और गल्तियां बाद में पता चलती हैं। लेकिन यह ऐसा नाजुक समय होता है। जबकि सरकार और उसके मुखिया के सामने दो ही विकल्प होते हैं।

    उसको किसी एक तरफ जाकर निर्णय लेना होता है। इसमेें असफलता और दूसरा विकल्प चुनने पर पहले से भी अधिक नुकसान की आशंका सदा बनी रहती है। इस तरफ या उस तरफ कोई भी फैसला होने के बाद उसके बुरे नतीजे आने या नाकामी के बाद यह कहना बहुत आसान होता है कि दूसरा रास्ता अपनाया जाना चाहिये था। बहरहाल हमें यह भी सममझना चाहिये कि जिस तरह की जनता होती है। उसके नेता भी उसी तरह के होते हैं। जनता की जो प्रथमिकतायें होती हैं। सरकार भी उसी दिशा में काम करती नज़र आना चाहती है।

    अगर जनता भावुक और अति धार्मिक है तो सरकार भी स्कूल अस्पताल की बजाये मंदिर मस्जिद और विशाल मूर्तियां लगवाने में अधिक रूचि लेगी। साथ ही यह भी देखा जाना चाहिये कि सरकार के पास जो सूचनायें उपलब्ध होती हैं। वह उसी की रोश्नी में कोरोना जैसे बड़े महामारी के संकट से निबटने के फैसले करती है। यह अलग बात है कि सरकार अगर वनमैन शो है। उसका मुखिया अपनी कैबिनेट या लॉक डाउन के प्रभाव के बारे में विपक्ष या अन्य एक्सपर्ट से चर्चा नहीें करता है तो यह एक संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग कहा जा सकता है।

   जहां तक जनता का सवाल है। कोरोना जैसे एतिहासिक अभूतपूर्व और भयावह संकट से दो दो हाथ करने के लिये बिना जनता के सहयोग के सरकार सफल नहीं हो सकती है। ऐसा देखने में आया है कि जनता का बड़ा वर्ग कोरोना की बजाये अपनी रोज़ी रोटी और भूख से अधिक डर गया है। यही वजह थी कि लॉक डाउन के फौरन बाद दो चार दिन लाखों गरीब मज़दूर और कमज़ोर वर्ग के लोग दिल्ली सहित बड़े शहरों की सड़कों पर अपने घर जाने के लिये निकल आये। वे सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही चलकर अपने घर पहुंचने को तत्पर थे।

    हालांकि सरकार ने उनको अपने स्तर पर सीमित ही सही संसाधन उपलब्ध कराकर उनके घर पहुंचाने की आंशिक व्यवस्था उपलब्ध कराने की नाकाम कोशिश की। लेकिन लॉक डाउन के दौरान जो सोशल डिस्टेंसिंग का मकसद था। वह इस महापलायन से एक तरह से अध्ूारा रह गया। इसी तरह दिल्ली में तब्लीग़ी जमात के निज़ामुद्दीन मरकज़ में लॉक डाउन के कई दिन बाद तक भी जिस तरह से हज़ारों जमाती मौजूद थे। उनमें अच्छी खासी तादाद विदेशी जमातियों की भी थी। उनमें कोराना का संक्रमण फैल चुका था। उनमें से काफी बड़ी तादाद में जमाती लॉक डाउन होने से पहले बिना किसी चैक अप के अपने अपने घर भी जा चुके थे।

    जिससे यह ख़तरा और भी बढ़ गया कि उनके संपर्क में आने वाले ना जाने कितने लोगों को कोरोना का इनफैक्शन हुआ होगा। सरकार को समय रहते विदेशी जमातियों को भारत आने से रोकना चाहिये था। साथ ही मरकज़ के बिल्कुल बराबर वाले पुलिस थाने और खुफिया एजंसियों की भी जवाबदेही होनी चाहिये कि वे कहां सो रही थीं। जब जमाती अपने घर जाने को वाहन पास मांग रहे थे तो उनको समय पर पास क्यों नहीं दिये गये?

    सबसे बढ़कर यह कि जब 11 मार्च को वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन ने कोरोना को महामारी घोषित कर दिया और अरब का मुसलमानों का मक्का मदीना भी बंद हो गया तो मरकज़ 13 से15 मार्च को विश्व सम्मेलन क्यों करने पर अड़ा हुआ थालेकिन यह जमात वालों का अंधविश्वास नादानी और मूर्खता कह सकते हैं कि उनको कोरोना नहीं हो सकता। लेकिन यह कोई साज़िश नहीं थी। जैसा कि हमारे मीडिया के बड़े वर्ग ने दुष्प्रचार किया कि जमाती छिपेहुए थे जबकि मंदिर और गुरूद्वारे में लोग छिपे हुए नहीं बल्कि फंसे’ हुए थे।                                                 

0 ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ,

   ऐसा ना हो कि धोना पड़े ज़िंदगी से हाथ ।।