Monday 28 December 2015

बीजेपी और भ्र्ष्टाचार

बीजेपीः भ्रष्टाचार पर और दलों से अलग कहां है ?
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0पीएम मोदी कथनी करनी के अंतर पर तेज़ी से खो रहे जनाधार !
         भाजपा का कभी नारा था चाल चरित्र और चेहरा। आज उसकी आर्थिक नीतियों की चाल कांग्रेस की सरकार जैसी हो चुकी है चरित्र भ्रष्टाचार पर जेटली को लेकर और दलों जैसा होता जा रहा है और चेहरा राम मंदिर पर बहुमत होने के बावजूद कानून बनाकर निर्माण कराने के वादे पर बार बार बदल रहा है। 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में वो एक बार इंडिया शाइनिंग के नारे के फेल होने पर हारी तो उसके बाद एक दशक तक वो सबको परखा बार बार हमको परखो एक बार का नारा दोहराने का साहस तक नहीं जुटा सकी। 2014 में वो पार्टी या हिंदुत्व की वजह से कम मोदी की विकास पुरूष की छवि घड़कर  स्पश्ट बहुमत लाने में कामयाब हुयी थी। चुनाव जीतने के लिये मोदी ने जनता को जो सपने दिखाये थे समय के साथ साथ वे सब साकार होते नज़र नहीं आ रहे।
     मोदी का विकास का वादा और कांग्रेस का अहंकारी भ्र्र्र्र्र्र्र्रष्टाचार का दंभ और राहुल गांधी के रूप में पीएम पद का एक बचकाना कमज़ोर और अपरिपक्व केंडीडेट बीजेपी की जीत का बहुत बड़ा आधार बना था। यह सच है कि विकास में तो कुछ समय लग सकता है लेकिन जिस नैतिकता उच्च मूल्यों और सुशासन का मोदी ने दावा किया था वो तो सरकार बनते ही दिखना शुरू हो जाना चाहिये था लेकिन उनकी कथनी करनी में एक के बाद एक झोल नज़र आ रहा है। करप्शन पर उनका कहना था कि न खायेंगे और न ही किसी को खाने देंगे। आज करप्शन के मुद्दे पर अपने वित्तमंत्री अरूण जेटली को लेकर वे अपने ही दावे से पीछे हटते नज़र आ रहे हैं।
     यह ठीक है कि भ्र्र्र्र्रष्टाचार को लेकर आम आदमी पार्टी का जो रूख़ रहा है मोदी सरकार की कई कमियों के बावजूद उसने भी सीएम केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार के मामले में सीबीआई जांच को लेकर उस परिपक्वता का परिचय नहीं दिया जो उसे देना चाहिये था लेकिन यहां सवाल मोदी और भाजपा का है कि पहले तो उसने जेटली को लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी वित्तमंत्री के महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करके जनमत का अपमान किया और अब जब उनकी ही पार्टी के कीर्ति आज़ाद ठोस सबूत और दमदार तथ्यों के साथ विपक्ष के साथ मिलकर जेटली पर डीडीसीए में प्रेसीडेंट रहते भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रहे हैं तो मोदी हवाला मामले में साफ बरी हुए आडवाणी की तरह जेटली के बाइज़्ज़त क्लीनचिट पाने का ऐलान तो कर रहे हैं लेकिन आडवाणी की तरह उनसे इस्तीफा लेने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।
     इससे होगा यह कि मोदी जेटली को तो शिवराज चौहान रमन सिंह और सुषमा स्वराज की तरह बचा लेंगे लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के मुकाबले भ्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रष्टाचार पर सख़्त शासक की अपनी बनी साख को बट्टा लगा बैठेंगे। दिल्ली में हार के बाद बिहार में ही नहीं अपने गृह राज्य गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव मध््य प्रदेश में रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव  और यूपी सहित कई राज्यों के कई विधानसभा उपचुनाव में एक के बाद एक भाजपा की हार यह बता रही है कि मोदी की कथनी करनी का अंतर उनका जनाधार तेज़ी से गिरा रहा है। पाकिस्तान को लेकर मोदी और भाजपा जिस तरह का विपक्ष में बैठकर राग अलापते थे आज बिना बुलाये पाक पीएम नवाज़ शरीफ की नाती की शादी में खुद ‘‘बिरयानी खाने’’ में कोई बुराई नहीं समझते।
     इससे पहले अपनी तरफ से अपनी ही शर्तों से पीछे हटते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बिना बुलाये मोदी पाक भेज चुके हैं। विदेश में भी बिना पाक पीएम की पहल और बिना किसी सुधार के मोदी उनसे अपनी तरफ से इतनी आत्मीयता से मिले मानो पाकिस्तान गंगा नहाकर अपने सारे पाप धो चुका हो? इतना ही नहीं मोदी नेपाल में गुपचुप तरीके से पहले भी नवाज़ से मुलाकात को लेकर चर्चा में आ चुके हैं। चुनाव जीतने से पहले मोदी का दावा था कि किसान इसलिये आत्महत्या कर रहा है क्योंकि उसको उसकी उपज का सही दाम नहीं मिल रहा है और यूपीए सरकार की नालायकी और मिलीभगत से बिचौलिये किसान को लूट रहे हैं और वे सत्ता में आकर लागत मूल्य में 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर किसानों को भुगतान करेंगे।
    आज का सच यह है कि मोदी सरकार का सालिसीटर एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा हलफनामा दे रहा है कि हम किसानों को वादे के मुताबिक भुगतान नहीं कर सकते। इतना ही नहीं मोदी सरकार का विदेशी निवेश, रोज़गार और कालाधन 100 दिन में वापस लाने का वादा भी पूरा होना तो दूर उनको पूरा करने को लेकर कोई ठोस योजना पर अमल होता नज़र नहीं आ रहा है। निचले स्तर पर भ्रष्टाचार कमीशनखोरी और लालफीताशाही पहले की तरह बदस्तूर जारी है जिससे कारपोरेट सैक्टर निराश होकर यह कहने लगा है कि मोदी और बीजेपी सरकार से जो आशायें थी वो दो साल होने को जा रहे हैं न केवल पूरी होती नज़र नहीं आ रही बल्कि ऐसे आसार भी नहीं दिखाई दे रहे कि उनके किये वादे ज़मीन पर कभी उतर पायेंगे।
      राम मंदिर को लेकर पहले भाजपा का दावा रहा है कि उसको संसद में बहुमत मिलेगा तो वह कानून बनाकर उसका निर्माण करायेगी लेकिन आज वह अपने उस वादे से भी मुकर रही है और यह कहकर पल्ला झाड़ रही है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा तो कांग्रेस की सरकार रहते भी सुप्रीम कोर्ट ही तय करता फिर राम भक्तों का मोदी और बीजेपी को सत्ता में लाने का क्या फायदा हुआ? समान नागरिक आचार संहिता हज सब्सिडी और कश्मीरी पंडितों को फिर से घाटी में बसाने की योजना भी लगता है सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने ठंडे बस्ते में यह सोचकर डाल दी है कि ये तो चुनाव जीतने के लिये जुमलों के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले नारे थे।
     ऐसे एक नहीं अनेक वादे हैं जिनपर मोदी फेल होते नज़र आ रहे हैं हो सकता है कुछ पर वो कोशिश के बावजूद सफल नहीं हो पा रहे हों और कुछ सत्ता में बने रहने की मजबूरी की वजह से भुला दिये हों लेकिन उनको यह बात याद रखनी चाहिये कि जो जनता उनको सत्ता में ला सकती है उसका एक हिस्सा फ्लोटिंग मतदाताओं का है जो उनसे हिंदुत्व या विकास के झांसे में हर हाल में चिपके रहने वाला नहीं है और अगर मोदी इसी तरह कथनी करनी में अंतर को बढ़ाते गये तो वे अर्श से फ़र्श पर जल्दी ही आ जायेंगे। 
    0 वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से ,
      मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता।।

Sunday 13 December 2015

मोदी का द्वन्द्व

मोदी को अतीत और भविष्य के द्वन्द्व से बाहर आना ही होगा!

इक़बाल हिंदुस्तानी

हिंदुत्व-विकास दोनों को एकसाथ साधना उनके लिये चुनौती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पूर्ण बहुमत से सरकार बनने के बावजूद आज तक एक अजीब द्वन्द्व में फंसे हुए हैं। एक तरफ उनका मुल आधार हिंदुत्व रहा है तो दूसरी तरफ वे कांग्रेस राज से दुखी जनता को विकास का सपना दिखाकर सत्ता में आये हैं। विडंबना यह है कि विकास उनके लिये भविष्य है तो हिंदुत्व उनका अतीत रहा है। गांधी जी कहा करते थे कि सही लक्ष्य हासिल करने के लिये सही साधन भी प्रयोग करने चाहिये लेकिन हिंदुत्व और विकास एक साथ साधना ही मोदी के लिये विरोधाभास बन गया है। एक तरफ उनपर जनता के उस वर्ग का भारी दबाव है जिसने विकास के लिये उनको चुना है तो दूसरी तरफ हिंदू साम्प्रदायिकता का ध्वजवाहक उग्र वर्ग जिसको हिंदुत्व कहा जाता है उसका एजेंडा लागू करने लिये उनपर संघ परिवार का भारी दबाव है।

पहले मोदी ने सोचा था कि जिस तरह उन्होंने गुजरात में एक के बाद एक चुनाव जीतकर संघ परिवार को अनसुना कर अपनी मनचाही हकूमत चलाई थी वैसे ही वे देश का राज भी चला सकते हैं लेकिन राज्य और देश का अंतर क्या होता है यह उनको अब समझ में आ रहा है। पहले मोदी ने शिक्षा और संस्कृति का मामला संघ के हवाले कर अर्थव्यवस्था व विदेश नीति पर फोकस किया लेकिन जल्दी ही उनका टकराव हिंदूवादी गरमदल से होने लगा। संघ के दख़ल पर पहले पाकिस्तान से बात करने के लिये उसको आतंकवाद बंद करने की धमकी दी गयी लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते फिर  बिना शर्त बात शुरू कर दी गयी।

ऐसे ही राज्यसभा में बिल पास कराने को पहले कांग्रेस और विपक्ष की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया गया लेकिन एक बार फिर संघ के दबाव में कांग्रेसमुक्त भारत का नारा याद करते हुए नेशनल हैराल्ड मामले में कांग्रेस को घेरने के लिये पेशबंदी होने लगी जिससे जीएसटी और दूसरे ज़रूरी बिल एक बार फिर ठंडे बस्ते में जाने की आशंका सामने है। सच तो यह है कि राजनीति की जटिलता और बारीकी संघ समझता ही नहीं और जब जब भाजपा और मोदी इस जाल से निकलने की कोशिश करते भी हैं संघ उसमें दीवार बनकर खड़ी हो जाता है। मोदी के इस द्वन्द्व को समझने के लिये थोड़ा पीछे चलना होगा।  दरअसल मोदी बचपन में ही संघ में शामिल होकर दो दशक तक उसकी नीतियों रीतियों को पूरी तरह आत्मसात कर चुके थे। उसके बाद उनको संघ ने भाजपा में प्रवेश कराया और बहुत जल्दी उनका प्रमोशन गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर कर दिया गया।

गुजरात शुरू से ही संघ की प्रयोगशाला रहा है। वहां किसी संघी का सीएम पद पर आना जहां संघ के लिये बड़ा अहम था वहीं मोदी के लिये भी यह उनके जीवन का एक तरह से टर्निंग प्वाइंट था। एक शेर की लाइन है खुदा जब हुस्न देता है नज़ाकत आ ही जाती है। मोदी के साथ भी यही हुआ वे गुजरात की सत्ता संभालने के बाद खुद को संगठन की पकड़ से बाहर मानने लगे। यहीं से उनकी संघ परिवार से भी ठन गयी लेकिन एक के बाद एक चुनाव जीतने का श्रेय वे खुद को देने के कारण दिन ब दिन मज़बूत होते गये। उधर भाजपा के एक के बाद एक चुनाव हारने से देश की राजनीति में जब संघ का आडवाणी जी से मोहभंग हुआ तो उसकी नज़र मोदी पर गयी लेकिन उनकी मनमानी संघ को चुभ रही थी। वक्त की नज़ाकत और ज़रूरत ने दोनों को एक दूसरे का पूरक बना दिया।

2014 के चुनाव में कांग्रेस अपने भ्रष्टाचार और अहंकार से देश की जनता की नज़र में विलेन बन चुकी थी वहीं मोदी गुजरात के कथित विकास और अपनी भाषण देने की मनमोहक कला से आम चुनाव में लोगों के दिल में उतर गये। सही मायने में उनकी जीत विकास और हिंदुत्व का कॉकटेल थी जिसमें सामने मोदी और पीछे संघ की जीतोड़ मेहनत और लगन काम कर रही थी। इस समीकरण में कारपोरेट ने भी सुर में सुर मिलाया और अपनी पूंजी का मंुह खोल दिया लेकिन चुनाव के बाद वही रस्साकशी शुरू हो गयी जिसका डर था। आज डेढ़ साल बाद भी विकास के नाम पर मोदी सरकार कुछ ठोस नहीं कर पाई है। इससे कारपोरेट सैक्टर भी उदास होने लगा है। उपलब्ध्यिों के नाम पर गिनाने को मोदी सरकार के पास कुछ भी खास नहीं है। सरकार उसी पुराने ढर्रे पर मामूली फेरबदल के साथ चल रही है।

विरोधाभास यह है कि मोदी समझते हैं सरकार उनकी वजह से बनी है और उनको अपने वायदे के हिसाब से विकास करना है जबकि संघ यह मानकर चल रहा है कि सरकार हिंदुत्व के एजेंडे पर बनी है लिहाज़ा मोदी सरकार को चाहिये कि वे हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करने के लिये संघ को फ्रीहैंड दें। इस टकराव का नतीजा यह है कि न तो ठीक से विकास हो पा रहा है और न ही संघ अपने हिंदुत्व के एजेंडे को पूरी तरह लागू कर पा रहा है। ये दोनों काम एक साथ हो भी नहीं सकते क्योंकि विकास भविष्य का सवाल है जो आधुनिक और प्रगतिशील सोच मांगता है और हिंदुत्व का विचार एक अतीतजीवी पिछड़ा और साम्प्रदायिक विमर्श है जो मोदी को लगातार पीछे खींच रहा है।

मोदी संघ को भी नाराज़ नहीं कर सकते जिसका दुष्परिणाम यह है कि उनके मंत्री और सांसद संघ की शह पर लगातार आग लगाने वाले और सद्भाव व शांति को नुकसान पहुंचाने वाले बयान और काम करते रहते हैं जबकि आध्ुानिक और वैज्ञानिक विकास के लिये जो साम्प्रदायिक सहिष्णुता उदारता धर्मनिर्पेक्षता और निष्पक्षता चाहिये वो मोदी संघ के हाथ में अपना रिमोट देकर कायम रख ही नहीं सकते। इसका नतीजा पहले दिल्ली फिर बिहार और अब गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की बुरी तरह हार के बाद सामने आने लगा है।

मुझे पता है मेरे इस लेख को पढ़ते ही मोदीभक्त एक बार फिर अपनी सभ्यता और संस्कृति का परिचय देते हुए मुझ पर गालियों की बौछार व वामपंथी और ‘‘देशद्रोही’’ तक होने का अनर्गल आरोप लगायेंगे लेकिन सच का आईना दिखाना हमारा काम है चाहे आज आप कुछ भी कहंे लेकिन आम चुनाव आते आते वास्तविक विकास न होने पर मोदी का समर्थक रहा एक बड़ा वर्ग उनसे छिटक जायेगा और बिहार की तरह अगर विपक्ष देश में भी एकजुट हुआ तो संघ भाजपा और मोदी एक दूसरे को चाहे जितना दोष देते रहें लेकिन उनकी यह एतिहासिक भूल समय कभी माफ नहीं करेगा।

सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राहे शौक़ में

मंज़िल मेरी तमाम उम्र मुझे ढंूढती रही।।

Friday 4 December 2015

AATANKVAAD-SHIYA MSG

Yes i am muslim not WAHABI
MUSLIMS ARE NOT TERRORISTS AND TERRORISTS ARE NOT MUSLIMS."

In the HISTORY of the world, who has KILLED maximum INNOCENT human beings

1) "Hitler"
Do you know who he was?

He was a Christian, but media will never call Christians terrorists.

2) "Joseph Stalin called as Uncle Joe".

He has killed 20 million human beings including 14.5 million were starved to death.

Was he a Muslim?

3) "Mao Tse Tsung (China)"

He has killed 14 to 20 million human beings.

Was he a Muslim?

4) "Benito Mussolini (Italy)"

He has killed 400 thousand human beings.

Was he a Muslim?

5) "Ashoka" In Kalinga Battle

He has killed 100 thousand human beings.

Was he a Muslim?

6) Embargo put by George Bush in Iraq,

1/2 million children
has been killed in Iraq alone!!! Imagine these people are never called terrorists by the media.

Why?

Today the majority of the non-muslims are afraid by hearing the words "JIHAD".

Jihad is an Arabic word which comes from root Arabic word "JAHADA" which means "TO STRIVE" or "TO STRUGGLE" against evil and for justice. It does not
mean killing innocents.

The difference is we stand against evil, not with evil".

You still think that ISLAM is the problem?

1. The First World War, 17 million dead
(caused by non-Muslim).

2. The Second World War, 50-55 million dead (caused by non-Muslim).

3. Nagasaki atomic bombs 200000 dead
(caused by non-Muslim).

4. The War in Vietnam, over 5 million dead (caused by non-Muslim).

5. The War in Bosnia/Kosovo, over 5,00,000 dead (caused by non-Muslim).

6. The War in Iraq (so far) 12,000,000 deaths
(caused by non-Muslim).

7. Afghanistan, Iraq, Palestine, Burma etc (caused by non-Muslim).

8. In Cambodia 1975-1979, almost 3 million deaths (caused by non-Muslim).

"MUSLIMS ARE NOT TERRORISTS
AND
TERRORISTS ARE NOT MUSLIMS."

Please remove first double standards on Killings.

Please share as much as you can if you are a Muslim...

    SHIA
MESSAGE( aazam zaidi)

Sunday 22 November 2015

पैरिस हमला: ज़िम्मेदार कौन?

इक़बाल हिंदुस्तानी
@मुस्लिम समाज को भी इस सवाल का जवाब जल्द तलाशना होगा।
पैरिस पर आईएस के भीषण आतंकवादी हमले की पूरी दुनिया ने निंदा की है। इससे पहले जब रूस के विमान को आईएस ने मार गिराया था तब भी पूरे विश्व में दहशतगर्दी को लेकर चिंता व चर्चा हुयी थी लेकिन जिस तरह आईएस के खिलाफ कार्यवाही को लेकर आज संयुक्त राष्ट्र ने मंजूरी दी है पैरिस जैसा हमला जब भारत के मुंबई पर हुआ था तब न तो यूरूपीय देशों और न ही अमेरिका ने ऐसा कठोर रूख अपनाया था। अमेरिका जो इस सारे फ़साद की एक बड़ी वजह खुद है वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले से पहले भारत पर आये दिन होने वाले आतंकी हमलों को दो देशों का आपसी विवाद मानकर बहुत हल्के में लेता रहा है। इतना ही नहीं जिस विश्वव्यापी आतंकवाद को लेकर आज दुनिया भयभीत और चिंतित है वह उस समय चुपचाप तमाशा देख रही थी जब रूस ने अफ़गानिस्तान पर अवैध रूप से घुसपैठ करके कब्ज़ा किया था और नजीबुल्ला के नेतृत्व में वहां अपनी कठपुतली सरकार अपनी सेना के बल पर बैठा दी थी।
इसके बाद अमेरिका ने जब पाकिस्तान के सहयोग से वहां से रूसी सेना को निकालने के लिये अपनी और पाकिस्तान की फौज के बजाये आतंकवादी संगठन तालिबान का आत्मघाती सहयोग लिया तब भी पूरी दुनिया इस पर चुप्पी साध्ेा रही। इसके बाद जब अफगानिस्तान से रूस का कब्ज़ा ख़त्म हो गया तो वही हुआ जिसका डर था कि एक बार जब तालिबान का आतंकी जिन्न बोतल से बाहर आ गया तो उसने काम ख़त्म होने के बाद वापस बोतल में जाने से साफ मना कर दिया। अमेरिका और पाकिस्तान ने सोचा इससे उनका क्या बिगड़ना है लिहाज़ा वे इसे अफगानिस्तान की अन्दरूनी समस्या मानकर एक तरफ हो गये। उधर तालिबान कब अलकायदा बन गया यह अमेरिका को तब पता लगा जब वह 9/11 का खुद शिकार हो गया।
ऐसे ही पाकिस्तान जब तक तालिबान के आतंकियों को अफगानिस्तान और भारत के कश्मीर में भेजकर अपना नापाक मकसद पूरा करता रहा तब उसको गांधी जी की इस बात का अहसास नहीं हुआ कि पवित्र लक्ष्य को हासिल करने के लिये साधन भी पवित्र होने चाहिये लेकिन जब तालिबान आतंकियों ने अपने आक़ा पाकिस्तान को भी डसना शुरू किया तो उसे लगा यह तो आग का खतरनाक खेल है। शायद इतना कुछ कम था जो अमेरिका और ब्रिटेन ने बिना किसी ठोस सबूत के रासायनिक हथियारों का झूठा आरोप लगाकर अपनी सेना ईराक में भेज दी। इसके पीछे दुनिया ने अमेरिका की अकड और ईराक के तेल पर उनकी लालची नज़र मानी। फिर इसके बाद सीरिया में विद्रोहियों की मदद से वहां की सरकार उखाड़ने का अभियान बिना यह सोचे अमेरिका ने चालू कर दिया कि इसके बाद जो लोग सत्ता में आयेंगे वे पहले से अधिक कट्टर और मज़हबी उन्मादी होंगे जो पूरी दुनिया के लिये आतंकी शैतान साबित हो सकते हैं।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में इतना समय धन शक्ति लगाकर और लाखों लोगों की जान लेकर भी यह सबक नहीं सीखा कि वह अपने विरोधभासी रूख के कारण इस तरह से आतंकवाद को ख़त्म नहीं कर सकता। यूरूप और अमेरिका को आज भी यह बात समझ में नहीं आ रही कि एक तरफ तो वह पाकिस्तान और सउूदी अरब जैसे अपने दोस्त रूपी दुश्मनों के साथ मिलकर आतंक का मुकाबला करने की नाकाम कोशिश कर रहा है और दूसरी तरफ केवल सैन्य शक्ति के बल पर यह काम कठिन नहीं असंभव है। जहां तक मुस्लिम मुल्कों और इस्लामी आलिमों का मामला है वे हर बड़े आतंकी हमले के बाद इसकी निंदा करते हैं और साथ साथ यह दावा करके खुद को इस ज़िम्मेदारी से मुक्त कर लेते हैं कि इस्लाम ने इस तरह की हरकतों को सख़्ती से मना किया है और ऐसा करने वाले सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते।
हम भी मान लेते हैं कि वे ठीक कह रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि फिर भी ऐसा लगातार न केवल हो रहा है बल्कि ऐसी आतंकी घटनाये बढ़ती जा रही हैं तो दुनिया मुसलमानों से यह सवाल तो बार बार पूछेगी ही कि जब इस्लाम में इस तरह की हिंसा को मना किया गया है तो ये लोग क्यों पूरी दुनिया मंे तबाही और बर्बादी मचा रहे हैं? सवाल यह है कि केवल मुसलमानों का एक कट्टर वर्ग ही ऐसा क्यों सोच रहा है कि केवल उनका मज़हब ही अच्छा और सच्चा है? मुस्लिम आतंकी ही यह दावा क्यों कर रहे हैं कि एक दिन पूरी दुनिया में इस्लामी हकूमत क़ायम करनी है? सिर्फ मुस्लिम दहशतगर्द ही ऐसा क्यों मानते हैं कि अपनी जान देकर आत्मघाती विस्फोट कर वे इंसानियत के क़ातिल नहीं शहीद हो रहे हैं और ऐसा करके वे दीन की बड़ी सेवा कर सीधे दोज़ख़ नहीं जन्नत में जाने की तैयारी कर रहे हैं?
मुस्लिम समाज को इस सवाल का भी जवाब तलाशना होगा कि जो मुस्लिम आतंकवादी खुद को सच्चा अच्छा और पक्का मुसलमान मानकर पूरी दुनिया में ख्ूान खराबा कर रहे हैं उनका प्रेरणा श्रोत कौन और कहां है और उसको कैसे ख़त्म किया जा सकता है? आतंकवादी घटनायें बढ़ते जाने से आज पूरी दुनिया में हर मुसलमान को शक की निगाह से देखा जा रहा है उनकी हवाई अड्डों रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक स्थानों पर सघन तलाशी हो रही है उनको बम विस्फोट और आत्मघाती हमलों के डर से दूसरे धर्मों के लोग रोज़गार देने स्कूलों में प्रवेश देने और किराये पर मकान देने से भी बचने लगे हैं।
आज ज़रूरत इस बात की है कि जहां अमेरिका यूरूप और विकसित देशों को अपनी भूल सुधार करके अपनी पूर्व में की गयीं मानवता विरोधी गल्तियों की माफी मांगकर भविष्य में किसी मुस्लिम देश में अवैध घुसपैठ और कट्टर आतंकी सोच के विद्रोहियों को हथियार और प्रशिक्षण से तौबा करनी होगी जिससे प्रतिक्रिया में पैदा होने वाला सशस्त्र विरोध और बदला आतंकवाद व कट्टरवाद का खाद पानी न बन सके और साथ ही मुस्लिम देशों और आलिमों को अपने बिगड़े हुए भ्रमित मुस्लिम युवाओं को ब्रैनवाश करके यह समझाना होगा कि यह खून और आग का रास्ता दुनिया ही नहीं पूरी मुस्लिम कौम की भी तबाही और बर्बादी का कारण बन सकता है।
इसके साथ ही विश्व ही नहीं हमारे देश में भी भारत को हिंदू या इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना पाले धर्म और साम्प्रदायिकता की सियासत करने वालों को यह समझना होगा कि इस तरह की हरकतें आतंकवाद को न केवल जन्म देती हैं बल्कि एक बार माओवाद की तरह यह पैदा हो जाये तो लंबे समय तक आप हथियारों के बल पर भी इससे निजात नहीं पा सकते इसलिये बेहतर यही है कि धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव पक्षपात हिंसा और अन्याय न किया जाये तो ये सबके हित में है। कवि नीरज की ये पंक्तियां आज के दौर में कितनी सामयिक हैं।
अब तो दुनिया में एक मज़हब ऐसा भी चलाया जाये,
जिसमें हर आदमी को पहले इंसान बनाया जाये।।

Friday 20 November 2015

Phansivadi / pragatisheel

Humans Hi Kumar
फासीवादी कहेगा - गरीब आलसी होते हैं मेहनती लोग अमीर होते हैं

प्रगतिशील कहेगा - किसान मजदूर लोग तो बहुत मेहनत करने के बाद भी गरीब बने रहते हैं , यह असल में गलत राजनैतिक सिस्टम की वजह से होता है कि चालाक लोग दूसरे की मेहनत और दूसरे के संसाधनों का फायदा उठा कर अमीर बन जाते हैं . जैसे अदाणी आदिवासियों की ज़मीनों और मजदूरों की मेहनत का फायदा उठा कर अमीर बना है मेहनत के कारण नहीं .

फासीवादी कहेगा - झुग्गी झोंपड़ी मे रहने वाले नशेड़ी और अपराधी होते हैं , इनके ऊपर पुलिस को सख्त कार्यवाही करनी चाहिये .

प्रगतिशील कहेगा - झुग्गी झोंपडियां हमारे समाज की गलत नीतियों के कारण बनी हैं . हमें इन नीतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिये , पुलिस को झोपडियों में रहने वाले लोगों के साथ सख्ती करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती . हमें इन जगहों पर रहने वाले लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए झुग्गी झोपडियों में काम करना चाहिये .

फासीवादी कहेगा - औरतें कमज़ोर होती हैं , उन्हें अपने पिता या भाई से पूछे बिना घर के बाहर नहीं जाना चाहिये , औरतों को ढंग के कपड़े पहनने चाहियें , अपने साथ होने वाली छेड़छाड़ के लिए औरतों के कपड़े ज़िम्मेदार होते हैं

प्रगतिशील कहेगा- आदमी और औरत एक बराबर होती हैं . समाज को ऐसा माहौल बनाना चाहिये जिसमें महिला रात को भी घूमने फिरने में डर महसूस ना करे . महिलाओं के साथ छेड़छाड करना पुरुषों की समस्या है इसलिए हमें लड़कों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिये कि वे महिलाओं के बारे में स्वस्थ ढंग से सोचें .

फासीवादी कहेगा- सेना अर्ध सैनिक बल और पुलिस सर्वोच्च होती है जो भी सेना अर्ध सैनिक बल और पुलिस के बर्ताव पर सवाल खड़े करता है वह देशद्रोही है

प्रगतिशील कहेगा- सेना अर्ध सैनिक बल और पुलिस सरकार के आदेश पर चलती है सरकार अमीरों की मुट्ठी में होती है इसलिए अक्सर सेना अर्ध सैनिक बल और पुलिस अमीरों के फायदे के लिए गरीबों के विरुद्ध क्रूर बर्ताव करते हैं इसलिए हम शासन को सेना अर्ध सैनिक बल और पुलिस के बल पर चलाये जाने को पसंद नहीं करते . लोकतंत्र में जनता से बातचीत के द्वारा कामकाज किया जाना चाहिये

फासीवादी कहेगा- राष्ट्र सर्वोपरी है . राष्ट्रभक्ति से बड़ा कोई कोई भाव नहीं है

प्रगतिशील कहेगा- राष्ट्र भक्ति प्रतीकों से नहीं होती . झंडा लिए एक औरत का चित्र या तिरंगा झंडा या भारत का नक्शा राष्ट्र नहीं होता बल्कि राष्ट्रभक्ति वास्तविक होनी चाहिये . राष्ट्र का मतलब इसमें रहने वाले सभी गरीब , अल्पसंख्यक , आदिवासी होते हैं . इनके मानवाधिकारों और इनकी बराबरी का ख्याल रखना ही सबसे बड़ा काम होना चाहिये . इनके अधिकारों को कुचल कर राष्ट्र की बात करना ढोंग है

फासीवादी कहेगा - पाकिस्तान आतंकवादी देश है . उसे कुचल देना चाहिये

प्रगतिशील कहेगा - पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है . पाकिस्तान हमेशा हमारे पड़ोस में ही रहेगा . हमें पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखने चाहियें . हमारे बीच में जो भी झगड़े के मुद्दे हैं उनका हल कर लेना चाहिये . हम पाकिस्तान से इसलिए भी नफ़रत करते हैं क्योंकि हम अपने देश के मुसलमानों से ही नफ़रत करते हैं . अगर हम मुसलमानों से नफ़रत करना बंद कर दें तो हमारी पाकिस्तान के प्रति नफ़रत भी खत्म हो जायेगी . आतंकवादी हरकतें दोनों देशों की सरकारें करती हैं . दोनों मुल्कों के हथियारों के सौदागर दोनों मुल्कों के बीच डर का माहौल बनाते हैं ताकि जनता हथियार खरीदने को मंजूरी देती रहे . लेकिन वह पैसा तो असल में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये .भारत और पाकिस्तान के सिर्फ दो सौ परिवार ऐसे हैं जो हथियार खरीदी से कमीशन खाते हैं और चुनावों मे चंदा देते हैं और दोनों मुल्कों की जनता को एक दूसरे से डराते रहते हैं ताकि उनका धंधा चलता रहे .

फासीवादी कहेगा - सेक्युलर लोग देशद्रोही हैं ,इन्हें पाकिस्तान भेज दो

प्रगतिशील कहेगा - लोकतंत्र का मतलब बहुसंख्य आबादी का अल्पसंख्यक आबादी पर शासन नहीं होता . उसे तो भीड़तंत्र कहा जाता है . लोकतंत्र का मतलब है सभी नागरिक सामान हैं सबकी इज्ज़त बराबर है , सबके अधिकार बराबर हैं , भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की बराबरी की बात करने वाले लोगों को सिक्युलर और शेखुलर कह कर चिढाया जाता है इसी तरह पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के बराबर अधिकार की बात करने वाले मुस्लिम लोगों को पाकिस्तान के कट्टरपन्थी लोग गाली देते हैं .
-हिमांशु कुमार (आवाज़ ए हिन्द)