Thursday 30 May 2024

कोई हारे कोई जीते 2024

*कोई हारे, कोई जीते: न तो राहुल 'पप्पू' , न ही कांग्रेस मुक्त भारत बना!*
O 2024 के चुनाव का नतीजा चाहे जो भी हो लेकिन एक बात साफ़ है कि हज़ारों करोड़ खर्च करके भी संघ परिवार न तो राहुल को "पप्पू" बना सका न ही कांग्रेस मुक्त भारत बना सका है। उल्टा मोदी की लोकप्रियता और भाजपा सरकार का ग्राफ जहां काफी नीचे आया है वहीं कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन बनाकर साढ़े तीन सौ से अधिक सीटों पर लड़ाई वन टू वन करके भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की है। नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी से लेकर चीन की घुसपैठ पर जिस तरह से राहुल ने मोदी को हर अहम मुद्दे पर घेरा उसका कोई सटीक जवाब भाजपा के पास नहीं था। चुनाव के दौरान संविधान खत्म करने आरक्षण खत्म करने और भविष्य में कोई चुनाव न होने के इंडिया गठबंधन के आरोपों पर भी मोदी सरकार विपक्ष के एजेंडे में उलझकर सफ़ाई देती नज़र आई। साथ ही राहुल द्वारा राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार न कर मोदी ने कमज़ोरी दिखाई है। 
*इक़बाल हिंदुस्तानी*
      2014 का चुनाव जीतते ही भाजपा ने कांग्रेसमुक्त भारत का नारा दिया था। उसे पता था कल उसको कोई क्षेत्रीय दल नहीं अखिल भारतीय स्तर पर मौजूद और उसके 23 करोड़ के मुकाबले 12 करोड़ वोट लेने वाली कांग्रेस ही चुनाव में चुनौती देगी। इसके लिए ही राहुल को पप्पू साबित करने के लिए मुख्य धारा के मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया में भी बड़ा इन्वेस्ट किया गया। लेकिन आज इसके नतीजे उल्टे आ रहे हैं। वे जानते थे कि अगर राहुल की छवि को खराब नहीं किया गया तो राहुल एक दिन भाजपा संघ और मोदी की छवि बेरोजगारी महंगाई और करप्शन के मुद्दों पर खराब कर सकते हैं। कुछ साल तक संघ परिवार राहुल को लेकर अपने मिशन में सफल होता भी लग रहा था लेकिन अचानक राहुल ने दो दो भारत यात्रा और निडरता से हर जनहित के मुद्दे पर बेबाक राय देश के सामने जैसे जैसे रखनी शुरू की मोदी सरकार परेशान होने लगी। आज राहुल और कांग्रेस जिस तरह से बोल रहे हैं जो मुद्दे जनता के सामने अपने मेनिफेस्टो में रख रहे हैं और इंडिया गठबंधन जिस तरह एकजुट होकर मोदी सरकार की पोल खोल रहा हैं उससे राहुल मोदी सरकार की सीटें और वोट कम कर कांग्रेस और अपने साथी क्षेत्रीय दलों का आत्मविश्वास बढ़ाने में पूरी तरह सफल लग रहे हैं। अब तक संघ परिवार चुनाव का एजेंडा तय करता रहा है लेकिन इस बार राहुल और कांग्रेस ने उस पर धन्ना सेठों की सरकार होने का आरोप लगाकर चुनावी पिच खुद तय कर दी है। आज हालत ये है कि भाजपा का हिंदुत्व हिंदू राष्ट्र राम मंदिर धारा 370 कॉमन सिविल कोड पाकिस्तान शरीयत कानून मुस्लिम लीग की छाप घुसपेठिए बुलडोजर यहां तक कि हिंदू जातियों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने का झूठा दुष्प्रचार भी इंडिया गठबंधन के लोकलुभावन मुद्दों के सामने टिक नहीं पा रहा है। हालांकि ये इस बात की गारंटी नहीं है कि इससे इंडिया जीत ही जायेगा क्योंकि भाजपा के धर्म सांप्रदायिकता और भावनात्मक मुद्दे उसे एक बार फिर सत्ता में साधारण बहुमत से ला सकते हैं ऐसा हमारा अनुमान है। अलबत्ता कांग्रेस और उसके साथी दलों ने इस चुनाव में एक बात समझ ली है कि वो भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला सॉफ्ट हिंदुत्व से नहीं कर सकते। इसका एक नुकसान विपक्ष को ये हुआ कि उसके कई नेता ईडी सीबीआई और इनकम टैक्स के डर से भाजपा में चले गए। उनको राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का कोई उज्ज्वल भविष्य नज़र नहीं आ रहा था। लेकिन चुनाव आते आते बाज़ी पलट गई और राहुल ने मोदी के सामने ऐसी बिसात बिछा दी है कि वो उसमें फंसते नज़र आ रहे हैं। जो मोदी टेलीप्रॉम्पटर से पढ़कर ज़ोरदार भाषण देने वाले बड़े वक्ता समझे जाते थे उनको राष्ट्रीय समस्याओं पर किसी भी सार्वजनिक मंच पर बहस करने की चुनौती देकर राहुल ने परेशानी में डाल दिया है। आज मोदी अपनी सरकार के कामों पर वोट मांगने की हालत में भी नहीं हैं। भविष्य की कोई बड़ी योजना लक्ष्य या सपना भी वे लोगों को नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि लोग उनसे दस साल का हिसाब मांग रहे हैं। उधर राहुल जनता को उनकी समस्याओं के समाधान के साथ ही बहुत कुछ आर्थिक रूप से देने के ठोस वादे कर रहे हैं। वे अपनी गारंटी और न्याय को पूरा करने के लिए अपनी राज्य सरकारों की उपलब्धि और मोदी के कॉरपोरेट प्रेम से छुटकारा पाने का संकल्प भी पेश कर रहे हैं। वे पिछड़ी जातियों दलितों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ ही गरीब सवर्णों को भी उनकी आबादी के अनुपात रोजगार आय संपत्ति और सरकारी सुविधाओं का वादा कर रहे हैं। राहुल कहते थे जब संघ परिवार मेरी मज़ाक बनाता है तो वे बुरा नहीं मानते सीखते हैं। पहले वास्तव में उनकी पहचान गांधी परिवार के उत्तराधिकारी और अमेठी के सांसद की थी लेकिन आज राहुल ने अपनी नई छवि बनाई है। उन्होंने नफ़रत से लड़ने को मुहब्बत की दुकान खोलने की हिम्मत दिखाई है। उनको सोची समझी योजना के तहत टारगेट किया गया, असली फर्जी केस दर्ज किए गए, फिर उनमें से कुछ में अधिकतम सजा हुई, उनकी सांसदी छीनी गई, सरकारी आवास रातो रात खाली कराया गया, मज़ाक बनाई गई, ईडी ने 55 घंटे पूछताछ की लेकिन राहुल न तो डरे न ही मैदान छोड़कर भागे बल्कि निडरता से डटकर खड़े हो गए इससे उनको जनता की सहानुभूति मिली। यही वो डर था जिससे संघ और मोदी पहले से डरे हुए थे। आज वो खतरा सामने है और भाजपा हारने की आशंका से सहमी हुई है। राहुल में बहुत कुछ ऐसा है जो मोदी में हो ही नहीं सकता। राहुल ने बिना अहंकार ये स्वीकार कर लिया कि कांग्रेस और उसकी सरकारों ने कई गलतियां की हैं जो वे भविष्य में सुधारेंगे। राहुल ने ये कहकर अपना कद बढ़ा लिया कि 2004 की आर्थिक नीतियां 2010 आते आते बदलाव मांग रही थीं जो कांग्रेस चूक गई। मोदी कभी भी अपनी गलती नहीं मान सकते वे पूंजीपति दोस्तों को नाराज़ नहीं कर सकते वे संविधान पर लफ्फाजी के सिवा कभी संजीदगी से अमल नहीं कर सकते और इसी लिए वे कभी राहुल का मुकाबला नहीं कर पाएंगे जिससे मोदी एक बार फिर से पीएम बन भी गए तो कांग्रेस और राहुल उनके लिए अब और बड़ी चुनौती बनकर सामने आएंगे और एक दिन उनसे सत्ता छीनकर ही दम लेंगे ये बात आप लिखकर रख सकते हैं। शायद राहुल के लिए ही किसी शायर ने ये लिखा है...
 *0 चोटों पर चोट देते ही जाने का शुक्रिया,*
*दीवारों मेरी राह में आने का शुक्रिया।*
*तुम बीच में न आती तो मैं क्यों बनाता सीढियां,*
*दीवारों में मेरी राह में आने का शुक्रिया।।*
*नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डॉटकॉम के ब्लॉगर और पब्लिक आब्जर्वर के एडिटर हैं।*

चुनावी मुद्दे 2024

*चर्चित चुनावी मुद्दे: कांग्रेस के लाॅजिकल, भाजपा के इमोशनल ?* 
0 2024 के चुनाव में सबसे चर्चित मुद्दा कांग्रेस का घोषणा पत्र बन गया है। 2019 के चुनाव में जिस कांग्रेस का मेनिफेस्टो मुश्किल से 50,000 लोगों ने भी नहीं पढ़ा था उसको पीएम मोदी के लगातार हमलों की वजह से अब तक 85 लाख से अधिक बार डाउन लोड किया जा चुका है। ज़ाहिर है कि यह करोड़ों लोगों ने इस जिज्ञासा की वजह से पढ़ डाला है कि इसमें मुस्लिम लीग की छाप या मुसलमानों को क्या क्या दिये जाने का वादा किया गया है? जबकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है। जो गोदी मीडिया कांग्रेस व विपक्ष को पूरी बेशर्मी बेईमानी और बिका हुआ होने की वजह से एक तरह से सेंसर कर देता था वह भी मोदी के आरोपों की बदौलत कांग्रेस के 5 न्याय और 25 गारंटी को जाने अनजाने जन जन तक पहंुचाने में जी जान से लगा हुआ है। इसका नतीजा यह हुआ है कि इंडिया गठबंधन आज एनडीए को कड़ी टक्कर दे रहा है।    
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा ने चुनाव का एजेंडा खुद तय किया था। इसके विपरीत 2024 का चुनाव इंडिया गठबंधन और खासतौर पर कांग्रेस ने अपनी पिच पर खींच लिया है। यही वजह है कि मोदी सरकार अपनी उपलब्धि के नाम पर वोट नहीं मांग पा रही है। विपक्ष ने भाजपा सरकार पर उसके कुछ बड़बोले नेताओं और उसके अब तक के दलित पिछड़ा व अल्पसंख्यक विरोधी कामों से संविधान खत्म करने आगे चुनाव ना होने और आरक्षण समाप्त करने का जोरदार अभियान चलाकर उसको बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर कर दिया है। इससे ये तीनों समाज भाजपा के खिलाफ कुछ हद तक लामबंद होते लग रहे हैं। आज राममंदिर हिंदुत्व हिंदू राष्ट्र रामराज और विश्वगुरू यानी किसी भी धार्मिक साम्प्रदायिक और भावनात्मक मुद्दे को भाजपा चर्चित चुनावी मुद्दा बनाने में तमाम झूठ फर्जी आंकड़ों और फेक पोस्ट के बावजूद सफल होती नज़र नहीं आ रही है। यही वजह है कि पीएम जैसे सबसे बड़े पद पर आसीन मोदी अपने पद की गरिमा भूलकर लगातार चुनाव को मुस्लिम विरोधी बनाकर हिंदू वोट बैंक का ध््राुवीकरण कर जीतना चाहते हैं। शायद जीत भी जायें? लेकिन कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जो 5 न्याय और 25 गारंटी दी हैं। उससे यह चुनाव हार जीत से अधिक लोकतंत्र संविधान और समान नागरिक अधिकार बचाने का अवसर बन गया है। उसने लाॅजिकल जीवन से जुड़े वास्तविक और आम आदमी के असली मुद्दों को उठाते हुए वादा किया है कि इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो वह 30 लाख सरकारी नौकरी देगा। 
5 की जगह 10 किलो अनाज निशुल्क देगा। जाति आधारित जनगणना कराकर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से हटाकर जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के हिसाब से आरक्षण देगा। साथ ही श्रमिक न्याय में स्वास्थ्य का अधिकार युवा न्याय के तहत हर शिक्षित बेरोज़गार युवा व गरीब महिला को हर साल एक लाख रूपये, किसानों को कानूनन एमएसपी के साथ ही कर्ज माफी मनरेगा की मज़दूरी बढ़ाकर 400 रूपये, 25 लाख रूपये तक का स्वास्थ्य बीमा, 10 साल के करप्शन की जांच, सुप्रीम कोर्ट में सभी वर्गों जातियों व धर्मों के जजों की भर्ती के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन, संवैधनिक और अपील न्यायालय अलग अलग, दोनों सदन साल में 100 दिन अनिवार्य रूप से चलेंगे, स्पीकर निष्पक्षता बनाये रखने के लिये अपने दल से त्यागपत्र दिया करेंगे, सप्ताह में एक दिन विपक्ष के एजेंडे पर चर्चा हुआ करेगी, चुनाव इवीएम से होगा मगर वीवीपेट की 100 प्रतिशत गिनती कर मिलान होगा, चुनाव आयोग सूचना आयोग और सीएजी जैसी संस्थाओं को पूरी तरह स्वायत्त बनाकर सराकारी दख़ल से मुक्त किया जायेगा, नीति आयोग की जगह योजना आयोग फिर से बहाल होगा, संवैधनिक न्याय की डेढ़ दर्जन गारंटियों के तहत भयमुक्त वातावरण, मीडिया के साथ भाषण और अभिव्यक्ति की पूरी व वास्तविक आज़ादी, मानहानि अपराध नहीं लेकिन तय समय में पीड़ित को मुआवज़ा, इंटरनेट पर सरकारी रोकटोक खत्म होगी, दूरसंचार अधिनियम 2023 की समीक्षा कर विवादित प्रावधन हटाये जायेंगे! 
निजता के अधिकार की सुरक्षा होगी, शांतिपूर्वक एकत्र होने सभा करने विरोध करने और संगठन बनाकर आंदोलन करने की छूट होगी, भोजन पहनावा प्यार शादी देश में कहीं भी यात्रा निवास और काम करने का सबको समान अधिकार, जो कानून इन पर्सनल मामलों मंे दखल देते हैं उनको खत्म किया जायेगा, दलबदल तत्काल सदस्यता खत्म करेगा, पुलिस व जांच एजेंसी मनमानी अत्याचार और अन्याय नहीं कर सकें ऐसे प्रावधान लाये जायेंगे जिससे मनमानी तलाशी फर्जी ज़ब्ती बिना ठोस वजह के कुर्की गिरफतारी थर्ड डिग्री लंबी हिरासत पूछताछ में अत्याचार से मौत रोकने, ज़मानत के लिये एकसमान आसान कानून, जेल अपवाद होगी, जेलों में बड़े पैमाने पर सुधार होंगे, बुल्डोज़र न्याय के नाम पर अन्याय बंद होगा, प्रैस अध्निियम 1978 में व्यापक संशोधन करके हर तरह की सेंसरशिप अख़बारों पर मालिकों का एकाधिकार रोकना पत्रकारों की स्वतंत्रता व सुरक्षा का पूरा इंतज़ाम होगा। हालांकि एनडीए भाजपा और पीएम मोदी लगातार कांग्रेस और विरोधी दलों पर हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक होने का बेबुनियाद आरापे लगा रहे हैं लेकिन इसके पक्ष में कोई ठोस सबूत ना दे पाने की वजह से लोगों पर इस झूठ का कोई खास असर नहीं हो रहा है। 
हिंदुओं को सर्वश्रेष्ठ बताना फिर उनको पीड़ित दर्शाना और मुसलमानों से फर्जी ख़तरा दिखाकर डराना व रक्षा के नाम पर खुद को नायक के तौर पर पेश करना इस बार हर बार की तरह वोट लेने का आज़माया हुआ हथकंडा पूरी तरह काम नहीं कर रहा है। यही वजह है कि पीएम हार की कल्पना से ही बौखलाकर अपने खास दोस्त अडानी अंबानी पर भी कांग्रेस को टैंपू में भरभरकर नोट देने और इंडिया गठबंधन की सरकार आने पर राम मंदिर पर बाबरी ताला लगाने का भय दिखा रहे हैं। हम यह तो मानते हैं कि आज भी लाॅजिकल से अधिक इमोशनल मुद्दे काम करते हैं जिससे भाजपा एक चुनाव और जीत सकती है लेकिन अच्छी बात यह है कि लोग असल मुद्दों यानी बेरोज़गारी महंगाई और भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार से सवाल पूछने लगे हैं। जिससे उसके वोट और सीटें पहले से घट सकते हैं।
0 ना इधर उधर की बात कर यह बता काफ़िला क्यों लुटा,
  मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटेकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक हैं।*

Monday 13 May 2024

मुसलमान भाजपा में?

मोदी जी! मुसलमान भाजपा में आये तो हिंदू वोटबैंक साथ रहेगा क्या?
O "टाइम्स नाउ को दिए गए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने मुस्लिम वोट बैंक को लेकर कहा कि पहली बार मैं मुस्लिम समुदाय से आत्ममंथन करने को कह रहा हूं। आप यह सोचते रहेंगे कि सत्ता में किसे बिठाएंगे और किसे उतारेंगे? उसमें आप अपने बच्चों का भविष्य ही खराब करेंगे।" 2019 के चुनाव में भाजपा को 38% वोट मिले थे जिनमें 16% मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिया था। बाकी मुसलमान उन 62% हिंदू व अन्य अल्पसंख्यकों के साथ था जिन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया था। दरअसल अधिकांश मुसलमान मौत ज़िंदगी दुख सुख नफा नुकसान और इज़्ज़त जिल्लत अल्लाह के हाथ में मानता है जिससे वो डरकर वोट नहीं करता, अलबत्ता अपवाद सब जगह होते हैं सो कुछ मुसलमान भाजपा को भी वोट करते हैं। ये समझना होगा मुसलमान और भाजपा एक दूसरे का विरोध क्यों करते रहे हैं।
*इक़बाल हिंदुस्तानी* 
      प्रधानमंत्री मोदी ने मुसलमानों से वोटबैंक न बनने की अपील की लेकिन क्या मुसलमानों पर भाजपा नेता खुद पहले अपना विरोध ख़त्म करेंगे? यह देखना अभी बाकी है क्योंकि खुद मोदी कभी उनको आंदोलन के दौरान कपड़ों से पहचानने लगते हैं तो कभी चुनाव के दौरान उनको घुसपेठिया और ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला बताकर निशाने पर लेने लगते हैं। सच ये है ये सब करना उनकी सियासी मजबूरी है। हिंदू वोट बैंक को खुश करने और मुसलमानों से नफ़रत व उनका झूठा डर दिखाकर बहुसंख्यक सांप्रदायिकता व हिंदुत्व की भावनात्मक राजनीति ने भाजपा और मुसलमानों को नदी के दो किनारे बना दिया है जो कभी मिल नहीं सकते।अलबत्ता ये सच मुसलमान भी जानते हैं कि वे चाहकर भी भाजपा को अकेले सत्ता से हटा नहीं सकते लेकिन अब कुछ हिंदू भी भाजपा से पहले की तरह खुश नहीं है ये इस चुनाव में साफ़ नज़र आ रहा है। मोदी कहते हैं मुसलमान भाजपा में आएं लेकिन वे ये भूल जाते हैं कि अव्वल तो आज के हालात में ये मुमकिन नहीं लेकिन जिस दिन ऐसा हो गया खुद कट्टर हिंदू भाजपा से किनारा करने लगेगा। जैसा कि बसपा ने ब्राह्मणों को पार्टी में जोड़ने का आत्मघाती फैसला किया था। क्या संघ परिवार को लग रहा है कि वह हिंदुत्व की सियासत को और आगे विस्तार नहीं दे सकता? उसकी अंतिम सीमा तक वह पहुंच चुका है? इसके साथ ही भाजपा यह भी समझ रही है कि एंटी इंकम्बैंसी उसकी 2019 में जीती कुछ सीटों की बलि अवश्य ही लेगी। ऐसे में उसका ज़ोर कम अंतर से हारी उन 160 सीटों पर है। जहां मुसलमानों की भी अच्छी खासी हराने जिताने लायक तादाद है। इसमें कोई दो राय नहीं राशन का निशुल्क अनाज हो या पीएम आवास पीएम गैस नलजल मनरेगा और मुद्रा योजना मुसलमानों को भी सरकार की जनहित की स्कीमांे का अपवाद छोड़ दें तो लाभ मिल ही रहा है। इससे कुछ मुसलमान अब कई राज्यों और केंद्र के चुनाव में भाजपा को वोट देने लगा है। भाजपा की नज़र ऐसे ही मुसलमानों पर है जो उसको पहले से और अधिक वोट देकर हारती हुयी सीटें जिता सकते हैं। जहां तक सेकुलर दलों को वोट देने वाले हिंदू मतदाताओं का सवाल है। उनमें धीरे धीरे यह धरणा मज़बूत होती जा रही है कि भाजपा हिंदुत्व के नाम पर धर्म यानी साम्प्रदायिकता की राजनीति से बार बार सत्ता हासिल कर उनके आर्थिक हितों की अनदेखी कर रही है। जिससे देश में बेरोज़गारी महंगाई करप्शन और अराजकता की पहले से अधिक गंभीर स्थिति बन रही है। सवाल यह है कि जब संघ और भाजपा ने शुरू से हिंदुत्व यानी मुस्लिम विरोध की राजनीति की है तो उसके नेता अचानक अपील करने पर मुस्लिम विरोध का अपना पुराना एजेंडा कैसे छोड़ सकते हैं? जब पार्टी के बड़े बड़े नेता मुसलमानों को 2002 के गुजरात दंगों में सबक सिखा देने शमशान कब्रिस्तान की तुलना करने 80 बनाम 20 की चुनौती देने वोट ना देने पर बुल्डोज़र और तेज़ चलाने आर्थिक बायकाट इवीएम का बटन इतनी जोर से दबाने की बात करते हैं जिससे करंट शाहीन बाग में जाकर लगे। बहुत पुरानी बात नहीं है। जब आतंकी घटनाओं की आरोपी सांसद हिंदुओं से अपने घरों में हथियार रखने की बात कह रही थी। उन्होंने लवजेहादियों का नाम लेकर यह भी बताया कि वे सब्ज़ी काटने का चाकू किसके लिये तेज़ करने की बात कह रही थीं। इससे पहले एक भाजपा सांसद ने खुलेआम मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की बात कही। सुल्ली सेल और बुल्ली डील सोशल मीडिया पर चलाकर मुस्लिम महिलाओं का अपमान किया गया लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुयी। भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने टीवी चैनल पर पैगंबर का अपमान किया लेकिन भाजपा ने तब तक उनको पार्टी से नहीं निकाला जब तक अरब मुल्कों में इसकी ज़बरदस्त प्रतिक्रिया शुरू नहीं हो गयी। एक भाजपा विधायक खुलेआम मुसलमानों को धमकी देता है कि भाजपा को वोट दो नहीं तो बुल्डोज़र के लिये तैयार रहो? टीवी चैनल रोज़ मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कई बार नाराज़गी दर्ज करा चुका है। लेकिन सरकार कोई ठोस कार्यवाही नहीं करती है। बिल्कीस बानो के केस में जिन आरोपियों को सज़ा पूरी करने से पहले छोड़ा गया उनका फूल मालाओं से स्वागत होता है। मुसलमानों की मोब लिंचिंग करने वालों को जब ज़मानत पर छोड़ा जाता है तो भाजपा नेता उनका जेल से बाहर आने पर स्वागत करते हैं। मासूम बच्ची का कश्मीर में बलात्कार करने के आरोपियों के पक्ष में दो भाजपा मंत्री रैली तक निकाल देते हैं। देश को बिना हिंदू राष्ट्र घोषित किए आए दिन ऐसे कानून फैसले और पक्षपातपूर्ण काम किए जाते हैं जिनसे मुसलमान खुद को दूसरे दर्जे का नागरिक महसूस करने लगा है। दूसरी तरफ झूठे या सच्चे आरोप लगाकर आज़म खां डा. कफील खान जुबैर अहमद उमर खालिद सफूरा ज़रगर शरजील इमाम सद्दीक कप्पन आदि अनेक मुस्लिमों को लंबे समय तक जमानत का विरोध कर जेल में डाल दिया जाता है। बाबरी मस्जिद से लेकर एनआरसी सीएए सड़क पर नमाज़ राष्ट्रीय संपत्ति हानि वसूली तीन तलाक धर्म परिवर्तन लव जेहाद हलाल हिजाब मजार मस्जिद अतिक्रमण हटाओ के नाम पर आयेदिन ध्वंस गुजरात दंगा मुस्लिम आबादी का हव्वा कश्मीर फाइल केरल स्टोरी हज सब्सिडी का खात्मा कोरोना जेहाद से बदनामी गोमांस के बहाने उत्पीड़न शहरों के मुस्लिम नाम लगातार बदलना जुर्म करने वाला मुस्लिम होने पर पुरुलिया खाली करने की बार बार धमकी और ट्रेन में आरपीएफ़ के सिपाही द्वारा कई मुसलमानों को उनकी पहचान की वजह से मारने पर मुआवजा तक न देना भाजपा सरकार का मुस्लिम विरोध ज़ाहिर करने वाली और भी अनेक घटनाएं गिनाई जा सकती हैं।मुसलमान इसके बावजूद सब्र और शांति से काम लेकर कानून का पालन करता रहा है करना भी यही चाहिए और चुनाव आने पर लोकतांत्रिक व संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल कर अपनी विरोधी पार्टी को अपने सेकुलर हिन्दू नागरिकों के साथ मिलकर सर्वहित में सत्ता से हटाने की कोशिश करता है तो इसमें कानूनन क्या गलत है।
O चाकू की पसलियों से सिफारिश तो देखिए,
वो चाहते हैं काटने में हम उनकी मदद करें।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लागर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक हैं।

Thursday 9 May 2024

मोदी सरकार की कथनी करनी...

आधा चुनाव ख़त्म: मोदी सरकार की कथनी नहीं करनी पर मतदान?
0 तीसरे चरण के चुनाव के बाद देश में आधी से अधिक 283 सीटों पर चुनाव पूरा हो चुका है। तमाम ज़हरीली नफ़रती और झूठी बयानबाज़ी के बाद भी न तो मतदान का प्रतिशत बढ़ा है न ही किसी तरह का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही अब तक कहीं नज़र आ रहा है। हालांकि यह सच है कि अगर यही चुनाव फरवरी में हो गया होता तो राममंदिर के उद्घाटन से भाजपा को एकतरफ़ा जीत आराम से मिल जाती। लेकिन अभी भी वह 400 पार न सही लेकिन इंडिया गठबंधन के दावों के हिसाब से 200 से नीचे भी नहीं जा रही है। 2014 और 2019 के मुकाबले 5 से 10 परसेंट वोटिंग कम हुआ है। वोटर्स मंे जोश नहीं है। किसी के पक्ष में कोई लहर नहीं है। भाजपा अपना कोई नैरेटिव सैट नहीं कर सकी है उल्टा उसने कांग्रेस के घोषणापत्र को अनजाने में चर्चित कर दिया है।
    *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
सेंटर फाॅर स्टडी आॅफ डवलपिंग सोसायटी सीएसडीएस -लोकनीति के चुनाव पूर्व सर्वे ने यह पहले ही बता दिया था कि इस बार उतने लोग मोदी सरकार की वापसी नहीं चाहते जितने पिछले चुनाव में चाहते थे। दरअसल भाजपा यह भूल गयी कि 2014 का चुनाव उसने यूपीए सरकार की करप्ट इमेज पर जीता था। साथ ही उसने हर साल दो करोड़ नये जाॅब 100 स्मार्ट सिटी कालाधन विदेश से वापस लाकर गरीबों को बांटना और अच्छे दिन के नाम पर ढेर सारे लुभावने वादे किये थे। इसके बाद 2019 के चुनाव में उसने जनता से अपने किये वादों को अंजाम तक पहुंचाने के लिये और पांच साल का समय मांगा। साथ ही अचानक पुलवामा हादसा होने और मोदी सरकार के द्वारा इसका बदला लेने के लिये सर्जिकल स्ट्राइक के बहाने दुश्मन को घर मंे घुसकर मारने का दावा करने से जनता का बड़ा हिस्सा राष्ट्रवाद के उन्माद में बहकर भाजपा के पक्ष में एक बार फिर जमकर मतदान कर आया था। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं है। भाजपा के तीन बड़े मुद्दों में से राम मंदिर बन चुका है। कश्मीर से धारा 370 हट चुकी है। काॅमन सिविल कोड कुछ राज्यों में आ चुका है। बाकी देश में भी आज नहीं तो कल भाजपा की राज्य सरकारें ही लायेंगी। मथुरा काशी का मुद्दा अदालत में है जिस पर भाजपा सरकार कोई खास फोकस नहीं कर रही है। ऐसे में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी कोई नया या बड़ा या विशेष वादा नहीं किया है। 
भाजपा और पीएम मोदी जो एक बार फिर हिंदू मुस्लिम करके यह चुनाव जीतना चाहते हैं वह इंडिया गठबंधन कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने बेरोज़गारी महंगाई और करप्शन के मुद्दे चुनाव का नैरेटिव बनाकर एनडीए के लिये भारी मुसीबत खड़ी कर दी है। इतना ही नहीं विपक्ष ने भाजपा के अबकि बार 400 पार के नारे और उसके बड़बोले नेताओं के यह सब संविधान बदलने के लिये ज़रूरी बताने से उस पर संविधान व आरक्षण ख़त्म करने का गंभीर आरोप लगाकर उसको बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर कर दिया है। उधर जिस भाजपा के खिलाफ पहले ही मुसलमान उसे हराने के लिये लामबंद रहते थे। इस बार दलित व आदिवासी और कुछ ओबीसी भी संविधान खत्म होने की आशंका से इंडिया गठबंधन की तरफ झुकते नज़र आ रहे हैं। साथ ही बिहार यूपी बंगाल राजस्थान दिल्ली हरियाणा व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इंडिया गठबंधन एनडीए गठबंधन पर भारी नज़र आने लगा है। उधर कई राज्यों में मराठों जाटों व राजपूतों के भाजपा से नाराज़ होने व हिंदू ध्रुवीकरण ना होने से जातीय समीकरण एक बार फिर से चुनाव के केंद्र में आ जाने से भाजपा को साधारण बहुमत लाना भी कठिन लग रहा है। जबकि हमें लगता है कि चाहे जैसे बने लेकिन तीसरी बार सरकार भाजपा की ही बन जायेगी। 
  यही वजह है कि भाजपा और उसका नेतृत्व अपने परंपरागत कोर हिंदू कट्टरपंथ की तरफ लौैैैट रहा है। लेकिन अब काफी देर हो चुकी है। यह एक तरह से चला हुआ कारतूस जैसा है। जिस तरह से यह कर्नाटक के चुनाव में काम नहीं किया था वैसे ही इस बार लोकसभा चुनाव में बेअसर नज़र आने लगा है। कांग्रेस के हर गरीब महिला को साल में एक लाख युवाओं को 30 लाख सरकारी नौकरी पेपर लीक के खिलाफ कानून किसानों को एमएसपी जातीय सर्वे कर दो दर्जन मोदी जी के पूंजीपति दोस्तों से 16 लाख करोड़ की पूंजी वापस लेकर गरीबों मंे बांटने राष्ट्रीय आय में सबको बराबर भागीदारी देने और आरक्षण जारी रख उसकी सीमा 50 प्रतिशत से हटाकर आबादी के हिसाब से भागीदारी देने के वादे देश के एक बड़े वर्ग को अपनी ओर आकृषित करते नज़र आ रहे हैं। पीएम मोदी की लोकप्रियता का आंकड़ा भी पहले से गिरा है। हालांकि वे कांगेस नेता राहुल गांधी से अभी भी काफी आगे हैं। दुनिया में भारत का बजता कथित डंका मज़बूत लीडर की गोदी मीडिया द्वारा बनाई गयी काल्पनिक छवि और मोदी की गारंटी भी चुनाव में भाजपा के पक्ष में अपेक्षित काम करती नहीं दिखाई दे रही है। 
अलबत्ता गरीबों को हर माह 5 किलो अनाज मकान के लिये ढाई लाख उज्जवला गैस योजना हर घर नल से जल निशुल्क शौचालय आयुष्मान भारत कार्ड और कई कल्याणकारी योजनाओं से जो भाजपा के पक्ष में एक नया लभार्थी वर्ग खड़ा हो गया है वह उसके पक्ष में कम या अधिक अभी भी वोट करेगा। बंगाल में गवर्नर पर लगे आरोप कर्नाटक में जेडीएस के प्रज्वल रवन्ना पर लगभग तीन हजार महिलाओं का यौन उत्पीड़न कर वीडियो वायरल होने और महिला खिलाड़ियों के उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के पुत्र को टिकट देेकर भी भाजपा दबाव में है। चुनाव शुरू होने से पहले भाजपा को लगता था कि उसे अगर उन राज्यों को कुछ सीटों का नुकसान होगा जहां वह पहले सभी संसदीय सीटें जीत चुकी है तो उसकी पूर्ति यूपी और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों से कर लेगी लेकिन अब हालात यह बता रहे हैं कि दक्षिण के कर्नाटक और यूपी में भी उसकी सीटें बराबर के मुकाबले में कम से कम आधी फंसती लग रही हैं। यह भी ख़बर आ रही है कि जहां मतदान कम हुआ है उनमें विपक्ष की सीटों पर 2 से 3 तो भाजपा व उसके घटकों की जीती सीटों पर 5 से 6 फीसदी कम रहा है। भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान यह होने जा रहा है कि उसके पास पिछले चुनावों में जो दलित व ओबीसी का बड़ा वर्ग आया था इस बार उनमें से काफी बड़ी संख्या में उसको छोड़कर अपने वास्तविक मुददों पर वोट करता दिखाई दे रहा है। इस तरह से कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस बार भाजपा को वोट उसकी कथनी पर नहीं करनी पर मिलेंगे। यह सबको पता है कि उसने क्या क्या ठोस विकास किया है?
0 उसके होंठों की तरफ ना देख वो क्या कहता है,
 उसके क़दमों की तरफ देख वो किधर जाता ळें
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।*

चुनाव के आंकड़े 10 दिन बाद...

*चुनाव आयोग को मतदान के आंकड़े जारी करने में 10 दिन क्यों लगे?* 
0 भारत दुनिया में लोकतंत्र की मां कहा जाता रहा है लेकिन आजकल हमारे देश में जो कुछ हो रहा है उससे यह माहौल बन रहा है कि मानो हमारा संविधान आरक्षण और सबके लिये समानता केवल किताबी बातें रह गयीं हैं। काफी समय से इवीएम को लेकर शक के बादल मंडराते रहे हैं। उसके बाद चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक आॅर्डर पास किया था जिसके तहत पीएम नेता विपक्ष और चीफ जस्टिस की कमैटी को इनका चयन करना था। लेकिन सरकार ने इसे बदलकर मुख्य न्यायधीश की जगह सरकार के एक कैबिनेट मंत्री को शामिल कर लिया। यह अपने आप में बहुत विवादित और अन्यायपूर्ण पक्षपाती निर्णय माना गया। इसके बाद जिस तरह अचानक एक चुनाव आयुक्त ने अपने पद से त्यागपत्र दिया और दो नये आयुक्त बनाये गये वह अजीब है।
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
इलैक्शन कमीशन इवीएम को लेकर आज तक विपक्ष और सिविल सोसायटी की शंकाओं का समाधान नहीं कर सका है। अब उसने जिस तरह से पहले चरण के मतदान के आंकड़े चुनाव के दस दिन बाद जारी किये हैं। वह अपने आप में विपक्ष को उसकी नीयत पर एक बार फिर उंगली उठाने का मौका दे रहा है। आखि़र क्या वजह है कि जो आयोग पहले मतपत्रों से वोटिंग होने के बावजूद 24 घंटे के अंदर कुल मतदान के सारे आंकड़े जारी कर देता था। आज जब तकनीक का विकास हो गया है। पोलिंग पार्टियों रिटर्निंग आॅफिसर और जिला व राज्य के चुनाव कार्यालायों से इंटरनेट के ज़रिये सारा डाटा कुछ ही पलों में मांगा व भेजा जा सकता है तो उसको अपनी वेबसाइट पर वोटिंग का अंतिम डाटा जारी करने में पूरे दस दिन क्यों लगे? आखि़र वो कौन कौन सी और कितनी पोलिंग पार्टी थीं जिन्होंने चुनाव वाले दिन ही पोलिंग का पूरा आंकड़ा मतदान खत्म होने के तत्काल बाद नहीं दिया? और अगर नहीं भी दिया तो क्यों नहीं दिया? उनसे आयोग ने देरी पर जवाब तलब क्यों नहीं किया? जो अनावश्यक देरी के ज़िम्मेदार थे उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं की गयी? अगर उनकी कोई व्यक्तिगत कमी या गल्ती नहीं थी तो इस पर आयोग ने जनता को अपना पक्ष स्पश्टीकरण और कारण बताना ज़रूरी क्यों नहीं समझा? 
इतना ही नहीं पहले फेज का वोटिंग होने के बाद जो आंकड़े सामने आये थे उनमें और जो आंकड़े अब जारी किये गये हैं। उनमें काफी अंतर देखा जा रहा है। हम यह दावा नहीं कर रहे कि ज़रूर कुछ गड़बड़ की गयी है। लेकिन यह सवाल तो पूछा ही जायेगा कि आखि़र इतना समय क्यों लगा? सवाल यह भी है कि जब चुनाव आयोग से यह मांग की जाती है कि वह वीवीपेट का मिलान अपनी सभी इवीएम से कराने के बाद ही मतगणना का अंतिम परिणाम घोषित करे तो उसका दावा होता है कि इससे काउंटिंग में काफी अधिक समय लग जायेगा। यह अजीब तर्क है कि आयोग चुनाव सात चरणों में करा रहा है। उसमें लगभग डेढ़ माह का लंबा समय लगेगा। जहां पहले चरण में चुनाव हो गया उसका नतीजा आने मंे 4 जून तक 45 दिन का समय लगेगा। ज़ाहिर है लोग जब इतना लंबा वेट चुनाव रिज़ल्ट आने में कर सकते हैं तो वीवीपेट गिनने में दो चार दिन अधिक लग जायें तो कौन सा आसमान फट पड़ेगा? आयोग को यह भी समझना चाहिये कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा वीवीपेट से इवीएम के वोटों के मिलान की याचिकायंे खारिज करने के बावजूद विपक्ष और जनता के एक वर्ग के दिमाग से यह शक अभी भी नहीं निकला है कि चुनाव मतदान और मतगणना पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से हो रही है?
आयोग ने चुनाव की तिथि तय करते समय यह भी खयाल नहीं रखा कि इससे देश के किसी वर्ग को चुनाव लड़ने प्रचार करने और मतदान करने में कुछ समस्या इसलिये आ सकती है क्योंकि पहले दो चरण के मतदान के दोनों दिन शुक्रवार को पड़ रहे हैं। इसके साथ ही पहले फेज के मतदान की प्रक्रिया शुरू होने के समय मुसलमानों के पवित्र रमज़ान माह के रोज़े चल रहे थे। इस दौरान मुस्लिम समाज के लोग ना केवल अपना अधिकांश समय इबादत में गुज़ारते हैं बल्कि रोज़े की भूख प्यास में वे चुनाव प्रचार के लिये घर से बाहर अधिक नहीं निकल पायेंगे। आखि़र मुसलमान भी इस देश के नागरिक हैं। उनकी सुविधा का भी खयाल अन्य वर्गों की तरह क्यों नहीं रखा जाना चाहिये? संविधान तो सबको समाना अधिकार सुविधा और समान स्वतंत्रता की बात कहता है। ऐसे ही जितनी गर्मी के दौरान चुनाव रखा गया है उससे भी लोग घर से बाहर निकलने से बच रहे हैं। इस कारण भी मतदान का प्रतिशत पहले के चुनाव से कुछ कम माना जा रहा है। हालांकि यह तो दावा नहीं किया जा सकता कि इससे सत्ताधारी भाजपा का मतदाता ही कम निकल रहा है। अलबत्ता जिन चुनाव क्षेत्रों और धर्म जाति के बहंुल मतदान केंद्रों पर मतदान पिछली बार के मुकाबले काफी घटा है उससे विपक्ष और खासतौर पर इंडिया गठबंधन को ज़रूर अपने पक्ष में लहर नज़र आने लगी है।
साथ ही जिस तरह से पीएम ने अपने पद की गरिमा को त्याग कर एक वर्ग विशेष को चुनावी लाभ के लिये निशाने पर लिया उससे भाजपा की हार या सीटें कम होने की आशंका भी विपक्ष को दिखाई दे रही है तो कोई हैरत की बात नहीं है। हालांकि चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पीएम मोदी को शिकायतें मिलने के बाद उनके दलों के मुखियाओं को नोटिस ज़रूर भेजा था लेकिन जवाब की अंतिम तिथि निकल जाने के बाद भी उन पर आज तक कोई कार्यवाही होने की खबर सामने नहीं आई है। धर्म जाति क्षेत्र के साथ दो समुदायों में घृणा पैदा कर झूठ के आधार पर वोट मांगने वालों पर भी आयोग कोई ठोस कार्यवाही करता नज़र नहीं आ रहा है। इसके अलावा जिस तरह की तिथियों का चुनाव आयोग ने चुनाव किया है उससे कुछ लोग एक दो छुट्टी और लेकर उसे संडे के साथ मिलाकर वीक एंड की पिकनिक पर भी निकल रहे हैं। 
    सूरत और इंदौर सीट पर जिस विवादित तरीके से कांग्रेसी उम्मीदवार का पर्चा खारिज होने या नाम वापस लेने के कारण भाजपा को निर्विरोध विजयी घोषित किया गया है। उससे भी चुनाव आयोेग पर उंगलियां उठ रही हैं। यह दोंनों मामले चार जून के बाद निश्चित रूप से कोर्ट में जा सकते हैं। इसकी वजह पर्चा वापस कराने को लगे आरोप के साथ ही नोटा का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं के अधिकार का हनन माना जा रहा है। लोकतंत्र केवल चुनाव कराने से नहंी निष्पक्ष विश्वसनीय और सबको समान अवसर देने से चलता है।
 *0 कहां क़तरे की गमख़्वारी करे है, समंदर है अदाकारी करे हैं।*
*बडे़ आदर्श हैं बातों मेें लेकिन वो सारे काम बाज़ारी करे है।।*
*0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के एडिटर हैं।*