Wednesday 23 September 2015

FASLEn

फसलों का वर्गीकरण

(1) रबी की फसलें:-
- अक्टूबर से नवम्बर में बोयी जाती हैं ओर मार्च से अप्रैल तक काटी जाती हैं।
- रबी की फसलों को शीतोष्ण कटिबंधीय फसले कहते हैं। वे फसलें जिन्हें कम तापमान चाहिये शीतोष्ण कटिबंधीय कहलाती हैं। इन फसलों को ज्यादा पानी चाहियें।
गेहँ, जौं , मक्का, चना, सरसों, मेथी, राई, तारामीरा, ईसबगोल, जीरा.

(2) खरीफ की फसलें:-
- जून-जुलाई मं बोयी जाती हैं। सितम्बर से अक्टूबर तक कटाई हो जाती हैं।

- ये फसले गर्मी में बोयी जाती हैं। इसलियें ऐसी फसलों को उष्ण कटिबंधीय फसलें कहते हैं।
चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, जूट, मूंग, मोठ, मूंगफली, तम्बाकू, उड़द, कपास, रागी, लोबिया, चंवला, सोयाबीन.

(3) जायद की फसलें:-
- मार्च से अप्रैल के मध्य बोई जाती हैं एवं जुन-जुलाई में काटी जाती हैं। इसके अंतर्गत सब्जियां, मक्का, खरबूज, तरबूह, अरबी, तरककड़ी, भिंड़ी आदि आती हैं।

गेहूँ:-

- इस हेतु जलोढ़ मिट्टी सर्वोत्तम हैं, चीन के बाद भारत का उत्पादन में दूसरा स्थान हैं।
- यह चावल के बाद खाया जाने वाला मुख्य खाद्यान्न हैं। गेहूँ की कृषि भारत के कुल कृषि क्षेत्र का 10% भाग पर (कृषि योग्य भूमि का 10 %) तथा बोये गये भू-भाग का 13 % गेहूँ की पैदावार होती हैं।
- उत्पादक राज्य:- गेहूँ की खेती सिंचाई के द्वारा होती हैं। इसलिये गेहूँ उन्ही राज्यों में होगा, जहां सिंचाईं की सुविधा होती हैं।
- प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश फिर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार का आता हैं। भारत में गेहूँ का कुल उत्पादन का 35% (या 1/3 भाग) उत्तर प्रदेश में होता हैं।
- आजादी के बाद उत्पादन में सर्वाधिक वृद्धि हुई। विशेषकर 1966 की हरित क्रांति के बाद से।
- भारत में गेहूँ का प्रति हैक्टरउत्पादन 2770 किग्रा प्रति हेक्टर हैं।
नोट:- रबी की फसलों को पलाव प्रणाली से बोया जाता हैं।

चावल:-

- उष्ण कटिबंधीय, खरीफ की फसल।
- भारत का मुख्य खाद्यान्न।
- देश में कुल बोयी गयी भूमि का 23% भू-भाग पर बुवाई।
- कुल खाद्यान्न की भूमि का 47 %।
- विश्व का कुल चावल क्षेत्र का 28% भारत में बुवाई। जबकि उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान।

- भारत में चावल की तीन फसलें हैं:-
(1) अमन:- शीतकालीन
(2) ओस:- शरदकालीन (जब ओस पड़ती हैं)
(3) बोरा:- ग्रीष्मकाल में

- भारत में अमन का उत्पादन सर्वाधिक होता हैं।
- उत्पादन राज्य:- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, बासमती चावल का उत्पादन, उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल के उत्तर में तथा उत्तर प्रदेश में।

गन्ना:-

- विश्व का 40% गन्ना भारत में उत्पादित। उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों में बोया जाता है। गन्ने की फसल तैयार होने में एक वर्षं का समय लगता हैं।
- गन्नें के लिये आर्द्र व नम जलवायु उपयुक्त रहती हैं। इसमें सिंचाई के लिये 200 सेमी. वर्षां चाहियें। इसमें आर्द्र जलवायु के कारण शर्करा की मात्रा में वृद्धि होती हैं।
- उत्पादन:- सर्वाधिक (उत्तर प्रदेश), महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक। (महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन सबसे ज्यादा)
- भारत गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं। विश्व का 40% उत्पादन भारत में होता हैं।

चाय:-

- 1834 में अंग्रेजो के द्वारा प्रयोग के तौर पर चाय का उत्पादन किया गया जो वर्तमान में भारत की प्रमुख पेय फसले हैं। (चाय प्रमुख रूप से चीनी फसल हैं)। यह बागानी फसल हैं। जिसके लिये वर्षां 150-250 सेमी. तथा तापमान 25-30 सेमी. तक होना चाहियें।
- मिट्टी में गंधक, कैल्शियम से युक्त। पहाड़ी ढ़लानों में जहां पानी नहीं ठहरता हों तथा सूर्यं की किरणें सीधी नहीं पड़ती हों, चाय की खेती होती हैं।
- उत्पादन राज्य:- आसाम, ब्रहृमपुत्र नदी घाटी, सुरमा नदी घाटी, भारत की कुल चाय का 50% असम में उत्पादित। पश्चिम बंगाल में दार्जलिंग, कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, उत्तरांचल में गड़वाल कुमायुं, नैनीताल,
अलमोड़ा। हिमाचल प्रदेशमें कुल्लू घाटी। दक्षिण में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र। (दक्षिण में तमिलनाडु का पहला स्थान)।
- भारत का विश्व में पहला स्थान (उत्पादन में)।
- निर्यात में श्रीलंका का पहला स्थान।
- हरि चाय:- उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल।
- सबसे अच्छी चाय:- असम की

कॉफी:-

- भारत में विश्व का 2% कॉफी उत्पादन होता हैं।
- विश्व में सर्वाधिक स्वादिष्ट कॉफी भारत में उत्पादित होती हैं।
- उत्पादक राज्य:- कर्नाटक का पहला स्थान, केरल, तमिलनाडु
- भारत में अरेबिका, रोबस्टा कॉफी की खेती होती हैं। 60% भाग पर अरेबिका होती हैं और शेष पर रोबस्टाहोती हैं।
- इसके लिये लेटेराइट व पहाड़ी मिट्टी उपयोगी।
- कॉफी के बीज:- कहवा।

कपास:-

- यह खरीफ की फसल हैं।
- इसके लियें काली मिट्टी सर्वाधिक उपयोगी।
- गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में देश के 55ः उत्पादन।
- पाला, ओला रहित, दिन साफ, स्वच्छ आकाश, तेज चमकदार धूप, 50 से 100 सेमी. वर्षां।
- काली मिट्टी सर्वाधिक उपयोगी।
- इसे वाणिमा भी कहते हैं। क्योंकि यह वाणिज्यिक फसल कहते हैं।
- इसे ‘‘सफेद सोना’’ भी कहते हैं यह रेशेदार फसल हैं।

जूट:-

- रेशेदार फसल, खरीफ में बोयीं जाती हैं।
- इसके लिये 100-200 सेमी. वर्षां।
- दोमट (जलोढ़) मिट्टी।
- सर्वाधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में ;71ःद्ध।
- उड़ीसा, बिहार, आंध्र-प्रदेश, असम में।
- बोरीया, टाटे, रस्सी, कालीन, कपड़े तैयार कीये जाते हैं।
- पटसन, सनेही, रेशेदार फसले हैं वहीं उत्पादित होती हैं, जहां जूट उत्पादित होता हैं।

रबड़:-

- उष्ण कटिबंधीय बागानी फसल।
- लैटेराइट व पहाड़ी मिट्टी उपयोगी।
- केरल, तमिलनाडु, अंडमान निकोबार।

दालें:-

- सर्वाधिक प्रोटीन युक्त शाकाहारी भोजन।
- चना, अरहर, मटर, मूंग, मोठ, उड़द, राजमा, मसूर, लोबिया।
- दाल उत्पादन में राजस्थान का पहला स्थान, इसके अलावा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व आंध्र प्रदेश में भी उत्पादन होता हैं।
- भारत विश्व में प्रथम स्थान पर हैं।
- राजमा में उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, सोयाबीन मध्यप्रदेश में।

मक्का:-

- खरीफ की फसल
- उत्पादक राज्य:- मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान
- लाल मिट्टी उपयोगी।
- राजस्थान के दक्षिण (मेवाड़) का मुख्य खाद्यान्न।

जौ:-

- रबी की फसल
- उत्पादक राज्य:- उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा।
- मोटे अनाज की श्रेणी में आता हैं।
बाजरा:- राजस्थान का पहला स्थान।
सरसों, मेथी:- राजस्थान का पहला स्थान।
ईसबागोल, जीरा:- राजस्थान का पहला स्थान।

तिल:-

- खरीफ की फसल।
- राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश में उत्पादन होता हैं।
- राजस्थान का तिलहन उत्पादन में प्रथम स्थान है। तिल, राई, रायड़ा, तारामीरा, अरण्डी, सोयाबीन, सुरजमुखी, मूंगफली।
सुरजमुखी के तेल में राजस्थान का कोई स्थान नहीं। कर्नाटक का प्रथम स्थान हैं।

मैथी:-

- कोटा में सर्वाधिक होती हैं। सबसे सुंगधित मेथी (विश्व की सबसे सुंगधित मेथी)। कोटा से पीली मेथी निर्यात होती हैं।
- नोट:- भारत की कृषि जलवायु की दृष्टि से 15 भागों में बांटा गया हैं, इनका वर्गीकरण वर्षां, तापमान, मिट्टी आदि विशेषताओं के आधार पर किया गया हैं।

Sunday 20 September 2015

ओवैसी किसकी देन हैं

��औवेसीः भाजपा नहीं सेकुलर दलों की देन है !

-इक़बाल हिंदुस्तानी

0 जातिवाद और भ्र्रष्टाचार का कॉकटेल मुसलमानों को क्या देगा?

असदुद्दीन औवेसी अगर आज हैदराबाद की सीमा से निकलकर पूरे देश में अपनी साम्प्रदायिक पार्टी एमआईएम को फैलाना चाहते हैं तो इसके लिये भाजपा नहीं वो सेकुलर दल ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं जो खुद को सेकुलर बताकर जातिवादी और मुस्लिम साम्प्रदायिकता की ख़तरनाक राजनीति करते रहे हैं। इन कथित धर्मनिर्पेक्ष दलों ने भ्रष्टाचार जंगलराज और मनमानी के भी रिकॉर्ड बनाये हैं जिससे औवेसी को पूरे देश के मुसलमानों का नेता बनने का सपना पूरा होता नज़र आ रहा है। अगर साम्प्रदायिकता बढ़ाने वाले सबसे बड़े मुद्दे बाबरी मस्जिद और शाहबानों केस की बात की जाये कांग्रेस का रिकॉर्ड बेहद ख़राब और विवादित है। दंगों में यही कांग्रेस मुसलमानों को ही नहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खुद सिखों को सबक सिखाने के आरोपों से आज तक बरी नहीं हो सकी है।

ऐसे ही यूपी मंे सपा बसपा तो बिहार में आरजेडी और जेडीयू ने उनको रोज़गार शिक्षा और विकास की बजाये केवल भाजपा से डराने का काम किया है। इतिहास गवाह है कि इन दलों के नेताओं ने अपनी जातियों को आगे बढ़ाने और अकूत धन कमाने के लिये सियासत में मुसलमानों को वोटबैंक बनाकर ही अकसर इस्तेमाल किया है। आज बिहार के सीमांचल के चार ज़िलों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में औवेसी यह कहकर चुनाव लड़ने को उतर रहे हैं कि इन ज़िलों में मुस्लिमों की आबादी 40 से 70 प्रतिशत है और इनका इसीलिये विकास नहीं किया गया है। वे यह भी दलील देते हैं कि इन 4 ज़िलों की कुल 24 सीटों में से आज भी एनडीए की भाजपा के पास 13 और एलजेपी के पास 2 सीट हैं जबकि सेकुलर दलों यानी जेडीयू  4 कांग्रेस 3 और आरजेडी व अन्य के पास एक एक सीट है।

वे कहते हैं कि उनके चुनाव लड़ने से मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ेगी जबकि औवेसी यह सच छिपाते हैं कि उनको अगर यह सभी 24 सीटें भी मिल जायें तो पूरे बिहार में इसकी प्रतिक्रिया होगी और शेष सवा दो सौ सीटों पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा की जीत को आसान करेगा। वैसे भी यह सच है कि बिहार में इस बार ऐतिहासिक और करो या मरो की चुनावी लड़ाई है जिसमें सीबीआई जांच का डर दिखाकर मुलायम सिंह यादव को नितीश और लालू के महागठबंधन से अलग होने को मजबूर करके अलग तीसरा मोर्चा बनाकर भाजपा का अप्रत्यक्ष सहयोग करने को मैदान में उतारा गया है साथ ही वामपंथी पहले ही दोनों मोर्चों से अलग लड़ाई लड़ रहे हैं अजीब बात यह है कि उनकी धर्मनिर्पेक्षता पर कोई उंगली नहीं उठाता कि वे भी मुलायम और औवेसी की तरह सेकुलर महागठबंधन से अलग चुनाव लड़कर भाजपा के हाथ मज़बूत कर रहे हैं

लेकिन जहां तक औवेसी का सवाल है यह अभी शुरूआत है मगर यह महाराष्ट्र की तरह ही सेकुलर दलों को नुकसान पहुंचाकर भाजपा को चोर दरवाज़े से मदद करने की सोची समझी चाल भले ही मानी जाये लेकिन इसके लिये वो सेकुलर दल ही कसूरवार हैं जो मुस्लिमों से थोक में वोट लेकर भी आज तक उनके लिये ही नहीं आम जनता के लिये कोई ठोस विकास का काम नहीं कर सके हैं। सेकुलर दलों को अभी तक यह बात समझ में नहीं आ रही है कि उनको जातिवाद मुस्लिम साम्प्रदायिकता और भ्र्र्रष्टाचार की सियासत छोड़कर भाजपा को हराने के लिये सुशासन और सबका विकास का काम गंभीरता सेे शुरू करना होगा जैसा कि बंगाल उड़ीसा और केरल में गैर भाजपा दलों के ज़रिये हो रहा है।

एक समय था जब सर सैयद अहमद खां ने मुसलमानों की इस बुनियादी ज़रूरत को समझा था और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की स्थापना की। उनको अंग्रेज़ों का एजेंट बताया गया और बाक़ायदा अंग्रेज़ी पढ़ने और उनके खिलाफ अरब से फतवा लाया गया। आज पूरी दुनिया में यह सवाल बहस का मुद्दा बना हुआ है कि इस्लाम इतना शांतिप्रिय धर्म होते हुए भी उसके मानने वाले यानी मुसलमान आतंकवाद, मारकाट और खूनख़राबे में क्यों शामिल हो रहे हैं। यह आरोप लगाना बहुत आसान है कि हमारे साथ पक्षपात होता है। अगर आज मुसलमान शिक्षा, व्यापार, राजनीति, अर्थजगत, विज्ञान, तकनीक, शोध कार्यों, सरकारी सेवाओं और उद्योग आदि क्षेत्रों में पीछे है तो इसके लिये उनको अपने गिरेबान मंे भी झांककर देखना होगा न कि दूसरे लोगों को पक्षपात का सारा दोष देकर इसमें कोई सुधार होगा।

माना कि हर जगह शक्तिशाली और बहुसंख्यक वर्ग कमज़ोर व अल्पसंख्यकों के साथ कम या अधिक अन्याय और पक्षपात तो करते हैं लेकिन यह भी सच है कि समय के साथ बदलाव जो लोग स्वीकार नहीं करते उनको तरक्की की दौड़ में पीछे रहने से कोई बचा नहीं सकता। दरअसल यह बात मुसलमानों को भी समझने की ज़रूरत है कि जिसे वह र्ध्मनिर्पेक्षता समझते हैं वह कई क्षेत्रीय और जातीय दलों की उनका भयादोहन कर अपनी जीत पक्की कर सत्ता की मलाई खुद खाने की एक सोची समझी चाल है इसीलिये 2014 के लोकसभा चुनाव में बहनजी को यूपी में बजाये अपने अच्छे काम गिनाने के मुस्लिमों को यह समझाना पडा़ था कि जिन इलाकों में सपा का वोट बैंक यानी यादव नहीं है वहां मुसलमान बसपा के वोटबैंक दलित के साथ मिलकर मोदी को पीएम बनने से रोक सकते हैं।

औवेसी मुस्लिमों को यह सपना दिखाकर गुमराह कर रहे हैं कि उनके लोकसभा में 23 नहीं 60 एमपी होने चाहिये क्योंकि केवल मुस्लिम जनप्रतिनिधि बढ़ने से नहीं सबका और खासतौर पर गरीबों का विकास होने से मुसलमानों का खुद ब खुद भला हो सकता है क्योंकि वे ज़्यादा गरीब हैं। इसका एक नमूना यह है कि यूपी के स्थानीय निकायों में सभासदों के कुल 11816 पद हैं जिनमें से 3681 मुस्लिमों के पास हैं। राज्य में उनकी आबादी 18.5 के अनुपात में यह आंकड़ा 31.5 है। ऐसे ही बिजनौर ज़िले में मुस्लिम  आबादी 41.70 है जबकि पूरे जनपद में नगर पालिका और नगर पंचायतों के 19 में से उनके पास 17 चेयरमैन पद हैं। इससे उनका कोई खास भला नहीं होता बल्कि जवाबी हिंदू ध्रुवीकरण होने से पूरे देश में उनका प्रतिनिधित्व कम ही होता जा रहा है।

इसका बेहतर समाधान यह है कि मुसलमान चाहे भाजपा को वोट करें या ना करें लेकिन नकारात्मक मतदान ना करके उनको जो सुशासन और विकास के साथ कमजोर और गरीब के हक़ में लगे उसको सपोर्ट करें इससे देश में जाति और साम्प्रदायिकता की राजनीति धीरे धीरे कम होगी और तभी सबका विकास हो सकता है लेकिन जातिवादी और भ्र्ष्ट सेकुलर दलों के चंगुल से निकलकर वे अपनी घोर विरोधी और शत्रु भाजपा को भले ही वोट न करें लेकिन साम्प्रदायिक और संकीर्ण अलगाववादी सियासत करने वाले मुस्लिम साम्प्रदायिक दल एमआईएम को सपोर्ट करना उनका अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होगा।

मेरे तो दर्द भी औरों के काम आते हैं,

मैं रो पड़ू ंतो कई लोग मुस्कुराते हैं।।

Monday 14 September 2015

तर्कशीलता को चुनौती

तर्कशीलता के सामने गंभीर चुनौती !

इक़बाल हिंदुस्तानी

प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच की जगह ले रही है कट्टरता !

20 अगस्त 2013 को नरेंद्र डाभोलकर, 20 फरवरी 2015 को गोविंद पानसरे और 30 अगस्त 2015 को एम एम कालबुर्गी की हत्या के बाद एक कट्टरपंथी संगठन के वरिष्ठ पदाकिारी ने बाकायदा ट्वीटर पर लिखकर ध्मकी दी है कि अगली बारी इस कड़ी में प्रोफेसर भगवान की है। इससे पहले अनंतमूर्ति और मीना कंडसामी पर जानलेवा हमले केवल उनके स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति के कारण हो चुके हैं। मुरूगन अपना लिखा वापस लेने के दबाव पर अपनी ही किताबें जलाने के बाद खुद को मृत घोषित करने को मजबूर होते हैं। इतना ही नहीं हमारे पड़ौसी देश बंग्लादेश में एक के बाद एक स्वतंत्र विचारक ब्लॉगर्स की हत्या की जाती है और वहां की सरकार कट्टरपंथियों के दबाव में हत्यारों के खिलाफ ठोस कार्यवाही तो दूर इन हत्याओं की निंदा तक करने को तैयार नहीं है।

महिलावादी और मानवतावादी निष्पक्ष लेखिका तसलीमा नसरीन को इसीलिये अपना देश छोड़ना पड़ता है और फिर हमारे यहां भी कट्टर मुस्लिमों की बार बार धमकी और हमले  से डरकर उनको यूरूप में शरण लेनी पड़ती है। इससे पहले पाकिस्तान में तालिबान आईएसआईएस और लश्करे तय्यबा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाकर क्या क्या गुल खिलाते रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। आज नतीजा यह है कि जिस पाक सरकार ने कट्टरपंथ और आतंकवाद के इस नाग को दूध पिलाकर पाला पोसा था आज वो उनको की डस रहा है।

जिस हिंदू धर्म को सहिष्णु और उदार बताकर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की पूरी दुनिया में दुहाई देते रहे हैं आज उसी को अपनी कट्टर और हिंसक हरकतों से तार तार करने पर उतर आये हैं। कुछ लोग हमारे देश में एक के बाद एक तर्कशील विद्वानों की हत्या और कट्टरपंथियों की हरकतों को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं लेकिन संकीर्ण और फासिस्ट शक्तियां इसी तरह छोटी छोटी घटनाओं से शुरू में समाज को आतंकित करके प्रगतिशील और तर्कशील लोगों का मुंह बंद करती हैं और उसके बाद जब इनको लगता है कि इनकी हरकतों पर सबने चुप्पी साध ली है तो ये खुलकर अपना नंगा खेल करने लगती हैं। धर्म जागरण मंच के नेता राजेश्वर सिंह ने ऐलान किया है कि 31 दिसंबर 2021 तक वे भारत से इस्लाम और ईसाइयत को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे।

इससे पहले बीजेपी सांसद प्रभात झा संसद में ईश निंदा कानून के लिये एक विवादित प्राइवेट बिल पेश करने की उसी तर्ज़ पर तैयारी कर रहे हैं जैसा पाकिस्तान में विवादित कानून बेकसूर और अल्पसंख्यकों को सताने के काम आ आ रहा है। जैन समाज के एक सप्ताह चलने वाले पर्यूषण पर्व पर मुंबई में एक सप्ताह मीट की बिक्री पर रोक लगाकर वहां की महानगर पालिका ने पहले ही विवादित कदम उठाकर हाईकोर्ट में किरकिरी होने के बाद मजबूरन वापस लिया है। इसी को देखकर हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी ऐसा ही विवादित क़दम उठाया है। इसके साथ ही दो राज्य सरकारों ने मुस्लिम पर्व बकरा ईद की छुट्टी की ख़त्म कर दी है। पता नहीं इससे वे क्या संदेश देना चाहती हैं?

मुंबई में कई साल पहले सड़कों पर जुमे की नमाज़ अदा करने से जब घंटों ट्रेफिक जाम होने लगा था तो लोगों ने पुलिस प्रशासन से शिकायत की लेकिन वोटबैंक के चक्कर में न कार्यवाही होनी थी और न हुयी तो शिवसेना ने जवाबी तौर हर मंगलवार को सड़कों पर महाआरती शुरू कर दी। इससे दोनों वर्गों में टकराव और तनाव बढ़ा लेकिन दंगे होने के बावजूद कोई तर्कसंगत हल नहीं निकला। रम्ज़ान में रात में मस्जिदों से रोज़े के लिये उठाने और सुबह 6 बजे से पहले रोज़ फज्र की अज़ान पर भी कई जगह विवाद चला आ रहा है लेकिन आस्था से जुड़ा भावुक मामला होने से कोई इस पर खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। ऐसे ही शिवरात्रि पर कांवड़तियों की वजह से और हरिद्वार व इलाहाबाद वगैरा में कुंभ पर लगने वाले जाम और रोड पर उनकी अचानक मामूली बातों पर हिसंा का अब तक कोई हल नहीं तलाश किया जा सका है।

शबे बरात पर रात भर नमाज़ पढ़ने के बाद बाइकर्स का दिल्ली में हंगामा कई बार चर्चा में आ चुका है। सच तो यह है कि मज़हब और तर्क का एक दूसरे से सदा बैर रहा है। एक समय था कि चार्वाकों ने पुरोहितों के कर्मकांड पर आवाज़ उठाई तो उनको सदा के लिये मिटा दिया गया। बू्रनो ने जब खगोल शास्त्र के बल पर ईसाई धर्मिक ग्रंथ पर ही उंगली उठाई तो उनको ज़िंदा ही जला दिया गया और अनलहक का नारा देने वाले मंसूर अल हजाज को मौत के घाट के उतार दिया गया। इतिहास ऐसी तमाम घटनाओं से भरा पड़ा है जहां तर्क पर आस्था को वरीयता देते हुए तर्कशील लोगों की जान ली गयी लेकिन इतिहास यह भी बताता है कि आज का लोकतंत्र प्रगति विकास विज्ञान समानता मानवता उन्नति और ताशाह राजाओं का अंत केवल और केवल तर्कशीलता से ही हो सका है।
अगर आज हमने इन फासिस्ट और कट्टर हमलों का निर्णायक विरोध नहीं किया तो हमारे देश में भी धीरे धीरे धार्मिक अंधराष्ट्रवाद तानाशाही अंधविश्वास और तालिबानी सोच लोकतंत्र धर्मनिर्पेक्षता वैज्ञनिकता प्रगतिशीलता और उदारता को दीमक की तरह चाट जायेंगे जिससे प्रतिक्रिया में हिंसा आतंकवाद अलगाववाद और ग्रहयुध््द की ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। प्रैस काउंसिल के प्रेसीडेंट और न्यायविद मार्कंडेय काटजू का कहना है कि जब भारत वैज्ञानिक रास्ते पर था, तब उसने तरक्की की। साइंस के सहारे हमने विशाल सभ्यताओं का निर्माण हज़ारों साल पहले किया, जब अधिकतर यूरूप जंगलों में रहता था, उन दिनों हम लोगों ने वैज्ञानिक खोजें कीं लेकिन बाद में हम लोग अंधश्रध्दा और कर्मकांड के रास्ते पर चल पड़े।

काटजू का यह बयान यहां हमने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के संदर्भ में पेश किया है जिसमें माननीय न्यायमूर्ति विपिन संघी ने आस्था के कंेद्रो पर लगे लाउडस्पीकरों से होने वाले ध्वनिप्रदूषण पर कानून के ज़रिये सख़्ती से अमल पर जोर दिया है। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि आस्था के नाम पर किसी को भी इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह अपने धर्म और उसके आचार विचारों को दूसरों पर जबरन लादे। कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि धार्मिक संस्थानों के प्रबंधको को यह लगता हो कि उनकी गतिविधियों की तेज़ आवाज़ वहां नहीं पहुंच पा रहे लोगों के लिये लाभप्रद हो सकती है लेकिन इस आधार पर उनको इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वे अपने आसपास के माहौल को बाधित करें या इलाके की शांति को भंग करें।

हमारी सलाह तो यही है कि आस्थावादी और कट्टर धार्मिक लोग अपने विरोधियों व असहमति रखने वालों को ख़त्म करने की नाकाम और बचकानी हरकत के बजाये एक दूसरे से संवाद स्थापित करें तो बातचीत से हर समस्या का हल निकल सकता है।

क़रीब आओ तो शायद हमें समझ लोगे,

ये फ़ासले तो ग़लतफ़हमियां बढ़ाते हैं।।

Saturday 12 September 2015

U TURN SARKAAR

यु-टर्न प्रधानमंत्री मोदी के कुछ यू-टर्न तथा चुनावी हथकंडे :-

1. कहा था कि मैँ देश को लुटने नहीं दूँगा परंतु खुद  दस लाख रूपये का सूट पहन लिया, इतने रूपयों से दिल्ली के फुटपाथों पर  ठंड से मर रहे पांच हजार गरीबों को मुफ़्त कम्बल बांटे जा सकते थे।

2. खुद "मेक इन इंडिया" का नारा दिया परंतु दस लाख का अपना सूट इंग्लैंड की एक मश्हूर कम्पनी से बनवाया।

3. ओबामा के आने पर एक दिन में तीन बार कपड़े बदले जैसे कोई नई नवेली दुल्हन बदलती है। जबकि ओबामा ने पूरा दिन एक ही सूट पहनकर रखा।

4. लाखों रुपए खर्च करके मिशेल ओबामा को 100 कीमती साड़ियां भेंट की। इतने रुपयों से हज़ारों विद्धवओं को साड़ियां दी जा सकती थी।

5. देश में पूर्ण बहुमत मिलने पर भी धारा 370 के मुददे से यु-टर्न ले लिया।

6. पकिस्तान में चल रहे आंतकी कैम्पों पर हमले करने की बात से यु-टर्न ले लिया।

7. न रेल के किराये कम किये, न बसों के और न जहाज के। जबकि तेल के दाम 70 प्रतिशत तक कम हो चुके हैं।

8. दिल्ली के चुनावों में केजरीवाल से डरकर देश के पुरे भाजपा तंत्र को दिल्ली में लगा दिया है जिस पर करोडों रूपये खर्च हो रहे हैं। देश का प्रधानमंत्री, सारे केन्द्रीय मंत्री तथा कई राज्यों के मंत्री तथा सांसद दिल्ली में केजरीवाल की भरष्टाचार विरोधी आवाज़ को दबाने का पूरा जोर लगा रहे हैँ।

9. न काला धन वापिस आया न भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कोई कदम उठाया।

10. न सीबीआई सवतंत्र हुई न अपनी पार्टी को आरटीई के दायरे में लाया।

11. न पाकिस्तान से अपनी जमीन वापिस ली न चीन पीछे हटा।

12. न एक सर के बदले पांच सर कटे न देश से आंतकवाद खत्म हुआ।

तो ये सब बातें क्या लोकसभा चुनावी हथकंडा थी। मोदी जी बहुत बना चुके देशवासियों को ऊल्लू आप बस करो।

अबकी बार नो मोदी सरकार।