Wednesday 14 March 2018

श्रीदेवी

श्रीदेवी: दिखावे के पीछे की असलियत!

फ़िल्म निर्माता और निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने जानी मानी अभिनेत्री श्रीदेवी की आकस्मिक और दुखद मौत के बाद लिखा है कि श्रीदेवी बाहर से चाहे जितनी खुश नज़र आती हों लेकिन वह अंदर से बहुत परेशान और बेचैन रहती थीं। उनकी बात में दम लगता है।

फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी दुनिया से कम उम्र में ही चलीं गयीं। इसका हम सबको दुख है। साथ ही हम सब इस बात से भी दुखी हैं कि उनकी मौत अचानक पानी के टब में डूबने से एक हादसे में हुयी। अब इस चर्चा पर अंतिम रूप से विराम लग चुका है कि उनकी मौत आत्महत्या या हत्या भी हो सकती है। लेकिन यह चर्चा जारी है कि क्यों ऐसी लोकप्रिय सुंदर और नामी नायिकायें इतना परेशान और तकलीफ़ में जिं़दगी गुज़ारती हैं? मुंबई की एक जानी मानी डॉक्टर भी यह कह चुकी हैं कि फिल्मी दुनिया में आने वाली अभिनेत्रियों को छोटी आयु से ही यौन शोषण तक का शिकार होना पड़ता है।

अगर कोई अभिनेत्री अपने साथ होने वाली ऐसी बेजा हरकतों का शुरू में ही विरोध करने की हिम्मत दिखाती है तो उसको फिल्मी दुनिया के लगभग सभी निर्माता निर्देशक काम देना ही बंद कर देते हैं। अभिनेत्री हंसा वाडकर अपनी आत्मकथा में ऐसी ही व्यथा विस्तार से बयान कर चुकी हैं। अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने तो काम और पेंशन मिलते रहने की शर्त पर बहुत कुछ धमाका करने वाला बोलने का प्रस्ताव रखा है। लेकिन साफ है कि उनको न तो कोई ऐसी गारंटी देगा और न ही वह अपना मंुह खोलेंगी। अगर फिल्मी दुनिया के इतिहास पर एक सरसरी नज़र भी डाली जाये तो आप पायेंगे कि श्रीदेवी का मामला पहला या आखि़री मामला नहीं है।

अपने समय की बेहद लोकप्रिय और खूबसूरत अभिनेत्री मीना कुमारी और मध्ुाबाला के बारे में भी ऐसी बहुत सी चर्चायें आज भी चलती रहती हैं कि उनकी जिं़दगी में सबकुछ नॉर्मल नहीं था। जानकार सूत्रों का दावा है कि श्रीदेवी खुद को जवान और सुंदर दिखाने के लिये कई बार कॉस्मेटिक सर्जरी करा चुकीं थीं। वे अपने हाथों चेहरे और गर्दन की झुर्रियां छिपाने के लिये और नई फिल्मों में काम मिलते रहने के लिये भी ऐसा कराने को मजबूर थीं। सच तो यह है कि श्रीदेवी ही नहींे फिल्मी दुनिया की उम्रदराज़ होती हर अभिनेत्री खुद को लाइमलाइट में रखने के लिये दवा और ड्रग्स तक का सहारा लेने लगती हैं।

इसका नतीजा यह होता है कि कुदरत के सिस्टम में दख़ल देने से वे दौलत और शोहरत की ख़ातिर अपनी पर्सनल जिं़दगी दांव पर लगा देती हैं। वे खुद को एक्टिव और अपने समय की चुनौती बनकर उभर रहीं नई अभिनेत्रियों को टक्कर देने के लिये न केवल जानलेवा डाइटिंग शुरू कर देती हैं बल्कि घंटों नहीं कई कई दिन तक ब्यूटी पॉर्लर में बिताती हैं। यह अफ़सोस और चिंता की बात है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने के बावजूद ये अभिनेत्रियां पुरूषवादी सोच और ग्लेमर का शिकार होकर पंूजीवाद उपभोक्तावाद और भोगवाद के हाथों अपना जीवन जीते जी तबाह कर रही हैं।

इतनी समझ योग्यता और नाम होने के बाद तो कम से इन अभिनेत्रियों को समाज की अपने बारे में परंपरागत सोच को चुनौती देते हुए सुंदर और सेक्सी दिखने की बजाये साहसी और अक़्लमंद होने पर ज़ोर देना चाहिये था। लेकिन आज भी काली और बड़े दांतों वाली लड़की की शादी मुश्किल हो जाती है। साथ ही बाज़ार वाद ने लड़कियों को सौंदर्य प्रसाधनों और गोरी होने वाली क्रीम में उलझाकर उनको नक़ली मानव और प्रोडक्ट बनाया है।

अहबाब के सुलूक़ से जब वास्ता पड़ा,

शीशा तो मैं नहीं था मगर टूटना पड़ा।

Tuesday 13 March 2018

Press banam islam

यूरोप में जब प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार हुआ तो उसे इस्लाम मे हराम करार दे दिया गया। क्योंकि उससे पहले मुस्लिम उलेमा वज़ू करके कुरान व हदीस की किताबों को हाथों से लिखते थे। उलेमाओं का मानना था कि ये नापाक मशीन है जिस पर अल्लाह और रसूल का कलाम छापना हराम है लेकिन अब ये हलाल है।।
*लाउडस्पीकर जब आया तो उसकी आवाज़ को गधे की आवाज़ से तुलना कर उसे शैतानी यंत्र करार दे दिया गया। लेकिन आज हर मस्जिद और आलिम के मजलिस के लिए जरूरी है।।
*रेलगाड़ी आई तो हमारे उलेमाओं ने फरमाया कि हमारे नबी ने कयामत की एक निशानी ये भी बताई थी कि लोहा लोहे पर चलेगा, लेकिन आज....* *माशाअल्लाह हमारे उलेमा इसी लोहे के बर्थ पर नमाज़ें अदा करते नजर आते हैं।।*
*हवाईजहाज का जब चर्चा आम हुआ तो उलेमा ने कहा कि जो इस लोहे में उड़ेगा उसका निकाह खत्म हो जाएगा। लेकिन जाहिर है कि आज अल्हमदुलिल्लाह इसी लोहे पर उड़ कर हमारे मुसलमान हज व उमरा की नेकियां बटोर रहे हैं।।*
*अंग्रेजों ने जब नई चिकित्सा पद्धति अपनाया तो टीके पर भी फतवा लगा, ऐसी लम्बी लम्बी बहसें हुईं कि अगर उन्हें एक जगह जमा करके पढ़ा जाए तो आदमी हंसते हंसते लोट पोट हो जाए।।*
*मुर्गियों पर भी फतवे लगे। ऐसी घरेलू मुर्गी जो बाहर से दाना चुग कर आई हो उसे हलाल नहीं किया जा सकता। पहले उसे तीस दिनों तक डरबे में रखा जाए फिर हलाल किया जाए।।*
*पोल्ट्री फार्म की मुर्गी आई तो उसके अंडों पर फतवा लगा क्योंकि उन अंडों का कोई बाप नहीं था।।*
रक्तदान को भी हराम कर दिया गया लेकिन आज देश में ऐसा कौन सा अस्पताल है जहां ये सहूलियत मौजूद न हो अब तो रक्तदान नेकी का काम है।।*
*फोटो खिंचाना हराम है लेकिन आज कौन सा ऐसा मुसलमान है जो इससे इनकार करता हो।।*
*सऊदी अरब जैसा कट्टर मुस्लिम देश भी नहीं।।*
*टीवी को हराम ही नहीं बल्कि उसे शैतानी डिब्बा कहा गया। *जमाअतुतदावा के एक मासिक पत्रिका में उसके खिलाफ लगातार लेख छपते रहे। लेकिन आज उसी के बड़े रहनुमा इसी शैतानी डिब्बा में अपनी ईमान से भरी तकरीर से उम्मत को नवाजते रहते हैं।*
और भी बड़े बड़े उलेमा तो ज्यादा समय इसी डिब्बे में गुजारते हैं।।