Thursday 29 August 2019

सभी भारतीय

सभी भारतीयों की चिंता करनी चाहिये!

0वीएचपी के प्रवक्ता ने कहा है कि हमने मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया है। उनका यह भी दावा था कि पहले कांग्रेस सपा बसपा जैसे दलों की सरकारों में हिंदुओं को दोयम दर्जे का शहरी बना दिया गया था। उनसे पूछा गया था कि भाजपा के राज में एक वर्ग खुद को असुरक्षित और उपेक्षित महसूस कर रहा है। इसका मतलब यह है कि मोदी जी का नारा सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास केवल नारा ही है। हमारा मानना है कि जो सरकार सबको साथ लेकर नहीं चलेगी वह कभी भी सफल नहीं हो सकती। आर्थिक मंदी की दस्तक इसका प्रमाण है।         

       

  सत्ता में आने से पहले भाजपा का नारा था। न्याय सबकोतुष्टिकरण किसी का नहीं। सबका साथ सबका विकास का नारा भाजपा ने 2014 में दिया था। लेकिन उसको अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों का कभी भी पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। हो सकता है इसी वजह से उसने मुसलमानों को चुनाव में ना के बराबर ही टिकट दिये हों। लेकिन सत्ता में आने के बाद किसी भी लोकतांत्रिक देश में कोई सरकार इस वजह से किसी वर्ग विशेष के साथ पक्षपात नहीं कर सकती कि उसने सत्ताधारी पार्टी को आशा के अनुरूप वोट नहीं दिये। हमारे पीएम मोदी जी बार बार संविधान देशभक्ति और राष्ट्रवाद की दुहाई देते हैं।

   लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी वर्ग विशेष को उपेक्षित और असुरक्षित छोड़कर कोई सरकार सफल हो सकती हैभाजपा के केंद्र और अनेक राज्यों की सत्ता में आने के बाद यह देखा गया है कि अचानक मॉब लिंचिंग की घटनायें काफी बढ़ गयी हैं। यह ठीक है कि ऐसी घटनायें पहले भी होती थीं। यह भी सही है कि दूसरे वर्गों की मॉब लिंचिंग भी होती रही है। लेकिन 2014 के बाद गाय के नाम पर मुसलमानों को पीट पीटकर मार डालने की घटनायें सबसे अधिक होने लगी हैं। यह भी सच है। इन घटनाओं को महज़ संयोग भी माना जा सकता था।

   हाल ही में राजस्थान के अलवर में पहलू खान की जान लेने वाले गोरक्षक पुलिस की लापरवाही और राजनीतिक दबाव के चलते संदेह का लाभ लेकर बच निकले। सबसे दुखद बात यह है कि ऐसे मामलों में पुलिस अकसर समय पर नहीं पहुंचती। इसके बाद पुलिस पीड़ित को शीघ्र उपचार नहीं दिलाती। इतना ही नहीं उल्टा पुलिस ऐसे अनेक मामलों में पीड़ित को ही आरोपी बना देती है। मॉब लिंचिंग के शिकार मामलों में डाक्टर भी ठीक से इलाज में रूचि नहीं लेते। इसके बाद पीड़ित के मर जाने पर उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जानबूझकर ऐसी कमियां और विरोधाभासी बातें लिख दी जाती हैं।

    जिससे उसकी जान लेने वाले आरोपी सजा पाने से साफ बच निकलते हैं। इसके साथ ही यह भी देखने में आया है कि पुलिस पीड़ित के मरने समय दिये गये बयान के आधार पर आरोपी को ना पकड़कर उन अन्य लोगों को फर्जी फंसाती है। जो मौका ए वारदात पर ना होने के पहले से मौजूद ठोस सबूत देकर कोर्ट से बरी हो जाते हैं। इतना ही नहीं पुलिस ने पहलू खान के मामले में उस वीडियो की फॉरेंसिक जांच तक नहीं कराई जिसके आधार पर कोर्ट में उस वीडियो को प्रमाणित माना जाता। पुलिस ने पहलू खान की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर डाक्टर का बयान तक रिकॉर्ड नहीं किया।

   सबसे बड़ा अन्याय यह कि सरकारें पीड़ित के परिवार को आर्थिक सहायता तक नहीं देती। क्या वह दूसरे दर्जंे का नागरिक हैहालांकि अब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। उसने दोबारा मामले की जांच का झांसा दिया है। लेकिन पुलिस के काम करने के तौर तरीके नहीं बदले हैं। इससे पहले झारखंड में मॉब लिंचिंग के आरोपियों को एक भाजपाई मंत्री जेल से छूटने पर फूलों का हार पहना आये थे। कश्मीर में जब एक मासूम मुस्लिम बच्ची के साथ बलात्कार के बाद उसकी वीभत्स हत्या कर दी गयी तो भाजपा कुछ नेता  आरोपियों के पक्ष में सड़कों पर उतर आये।

    इनमें राज्य के दो मंत्री भी शामिल थे। यूपी के मुजफफरनगर में हुए दंगों के कुल 41मामलों में से 40 में सभी हिंदू आरोपी बच निकले। केवल एक मामले में आरोपियों को सज़ा हुयी जिसमें आरोपी मुस्लिम थे। इतना ही नहीं ऐसे अनेक मामले यूपी सरकार थोक में वापस ले रही है। जिनमें कुछ भाजपा नेता आरोपी थे। साथ ही यूपी सरकार ने इन मामलों में बड़ी अदालत में अपील करने से भी मना कर दिया है। सवाल यह है कि फिर 50 से अधिक इन लोगों को दंगों में किसने मारा था?किसने बलात्कार किये थेकिसने इनके घरों में आग लगाई थी?

   सरकार की यह बात मानी जा सकती थी कि इन मामलों में पूर्व सपा सरकार ने फर्जी लोगों को फंसाया था। लेकिन  भाजपा सरकार जिन लोगों को बचा रही हैै। उनकी जगह किसी और को भी आरोपी नहीं बना रही है। वह तो मामलों की नये सिरे से जांच तक कराने को तैयार नहीं है। इसका मतलब क्या निकलता हैऐसे अनेक और मामले भी गिनाये जा सकते हैं। जिनमें भाजपा की केेंद्र और अन्य राज्य सरकारें मुसलमानों के साथ भेदभाव का रूख अपना रही हैं। इसका एक बड़ा नुकसान यह हो रहा है कि सरकारें सबके विकास का काम ना करके हिंदू मुस्लिम दरार बढ़ाने और अपना हिंदू वोट बैंक मज़बूत बनाने पर अधिक जोर दे रही हैं।

    इसी का परिणाम है कि हमारा देश तेजी से आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रहा है। हमारी अर्थव्यवस्था पांचवे से सातवें नंबर पर आ गयी है। कंपनियां बंद होती जा रही है। लोगों के रोज़गार जा रहे हैं। किसान पहले से अधिक आत्महत्या कर रहा है। जीडीपी की दर कम हो रही है। शेयर मार्केट में हाहाकार मचा है। सरकार का आयकर और जीएसटी घट रही है। ऐसे हालात में हमें नहीं लगता कि आबादी में अधिक संख्या वाले हिंदू पहले दर्जे के नागरिक बनकर खुश रह सकते हैं। इसलिये हमारा कहना है कि किसी भी सरकार को सबको साथ लेकर आगे बढ़ना होगा वर्ना जब संकट आयेगा तो सभी भारतीयों को कष्ट भोगना होगा।                                                       

0 वतन की फ़िक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है,

   तेरी बरबादियों के मश्वरे हैं आसमानों में ।।                    

 

कश्मीर की 370

कश्मीर को 370 से क्या हासिल हुआ?

0मुख्यधारा के मीडिया के एकतरफ़ा प्रचार के सामने शायद ही आपको यह पढ़कर विश्वास आये कि कश्मीर से अभी तक अनुच्छेद 370 न तो पूरी तरह हटा है और न ही वहां यह पूरी तरह अब तक लागू था। अभी केवल इसके भाग 2और 3 ही हटाये गये हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की केेंद्र सरकारें इसको 90 प्रतिशत से अधिक पहले ही निष्क्रिय कर चुकी थीं। देखना यह है कि कश्मीर की ज़मीन नहीं कश्मीरियों का दिल सरकार कैसे जीतती है।          

        

  कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 का भाग एक राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे उसमें संशोधन या कमी बेशी कर सकते हैं। मोदी सरकार ने इसी के तहत इस धारा के भाग दो और तीन समाप्त कर दिये हैं। धारा 370 पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं की गयी है। जितना कुछ किया गया है। उसके लिये भी कश्मीर की संविधान सभा से प्रस्ताव आना ज़रूरी था। लेकिन वहां की संविधान सभा 1957 में ही भंग हो चुकी है। ऐसे में यह प्रस्ताव वहां की निर्वाचित विधानसभा से आ सकता था। लेकिन वहां चुनी हुयी सरकार भी नहीं है।

    मोदी सरकार ने इसके लिये गवर्नर के प्रस्ताव का सहारा लिया है। लेकिन यह प्रस्ताव कोर्ट में टिकना कठिन ही है। सवाल यह है कि फिर इससे पहले के संशोधन कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने कैसे कियेतो इसके लिये नेहरू ने वहां के निर्वाचित मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्लाह को अपने हिसाब से न चला पाने की वजह से एक दशक से अधिक जेल में डाल दिया था। बाद में शेख के बहनोई गुलाम मुहम्मद बख़्शी को चापलूसी की वजह से सीएम बनाकर उनसे अपने मनमाफिक एक के बाद एक प्रस्ताव पास कराकर 370 को 90प्रतिशत से अधिक ख़त्म कर दिया गया।

    कम लोगों को पता होगा कि 370 पूरी तरह लागू रहते केंद्र के जो 97 अधिकार वहां प्रतिबंधित थे। उनमें से कांग्रेस सरकारों ने तिगड़म और शॉर्ट कट से कश्मीर में 370 में संशोधन कर 94 लागू कर दिये। ऐसे ही राज्य और केंद्र के समवर्ती सूची के 395 में से 260कानून लागू कर दिये गये। इतना ही नहीं राज्य के अधिकार क्षेत्र वाले 47 कानूनों में से भी 26कांग्रेस की सरकारों ने धीरे धीरे लागू कर दिये। इससे कश्मीरियों में असंतोष पनपने लगा था। लेकिन उनकी नाराज़गी उस समय अधिक बढ़ी जब कांग्रेस ने वहां के चुनाव में धांधली करनी शुरू की। जो लोग जीते उनको हारा हुआ घोषित कर दिया गया।

    इसके बाद कई बार कश्मीर की निर्वाचित सरकारें राजनीतिक कारणों से बर्खास्त की गयीं। इस दौरान बढ़ती लूटखसोट से कश्मीरियों का नेशनल कांफ्रेंस से भी मोहभंग होने लगा। बची खुची कसर फारूक़ अब्दुल्लाह ने कश्मीर में विलेन बन चुकी कांग्रेस से गठबंधन करके पूरी कर दी। इसके बाद हमारे पड़ौसी दुश्मन पाकिस्तान को कश्मीर के युवाओं को अलगाववाद और आतंकवाद की तरफ खींचने का मौका मिल गया। जहां तक धारा 370 का सवाल है। उससे कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा ज़रूर मिला। लेकिन इस धारा से कश्मीरियों का कोई लाभ होता नज़र नहीं आया।

    आज अगर मोदी सरकार ने इसे ख़त्म करने की प्रक्रिया शुरू कर कश्मीर का विकास करने की नीयत का एलान किया है तो हम सबको उनपर विश्वास करके कुछ समय प्रतीक्षा करनी होगी। यह बात एक हद तक सच है कि धारा370 की वजह से कश्मीर में बाहरी लोगों के ज़मीन न ख़रीद पाने की वजह से भी वहां विकास नहीं हो पा रहा था। लेकिन देश के अन्य11 राज्यों की तरह कश्मीर में ज़मीन ख़रीदना अभी भी शेष भारतीयों के लिये आसान नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि जम्मू कश्मीर केंद्र शासित होने के बावजूद अनुच्छेद 239 ए की धारा 13 के अनुसार सातवां शेड्यूल कहता है कि राज्य के पास 61 और केंद्र के पास 52विषय रहेंगे।

     राज्य के इन 61 सब्जैक्ट में अहम ज़मीन का मामला भी शामिल है। केंद्र के मुख्य विषयों में बड़ा मुद्दा पुलिस और कानून व्यवस्था शामिल है। मोदी जी ने वादा किया है कि कश्मीर के हालात सुधरते ही उसको फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दे दिया जायेगा। अब सवाल आता है कि मोदी सरकार का यह फैसला कोर्ट में टिकेगा या नहींतो इसके बारे में हम वेट ही कर सकते हैं। लेकिन कुछ समय पहले राज्य का हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट धारा370 को स्थाई बताकर उसे हटाने से मना कर चुके हैं। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो उसकी हायतौबा को समझा जा सकता है।

    वह धमकी चाहे जो दे लेकिन इस समय उसके हालात इतने नाजुक हैं कि अगर वह जंग की बात सोचता भी है तो उसका दिवाला निकलने में देर नहीं लगेगी। उसको अफ़गानिस्तान के तालिबान ने भी कश्मीर से उनका कोई लेना देना न होने की बात कहकर उसकी औकात बता दी है। साथ ही दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम मुल्क उसकी आतंकवादी छवि होने की वजह से उसके साथ कश्मीर मुद्दे पर न केवल खड़े होने से बच रहे हैं बल्कि खुलकर कई देश हमारे साथ आ गये हैं। अमेरिका ने तो उसे गच्चा दे ही दिया है। उसका खास चीन भी उसे संयम बरतने की सलाह दे रहा है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस मामले में अपनी कोई भूमिका होने से पाकिस्तान का रोना सुने बिना ही पल्ला झाड़ रहा है। कुल मिलाकर हालात हमारी सरकार हमारे देश और कश्मीर की भलाई के पक्ष में अधिक नज़र आ रहे हैं। यह सच हमें स्वीकार कर लेना चाहिये कि पहले1947 में कश्मीर के आज़ाद रहने के एलान के बावजूद पाकिस्तान ने क़बाइलियों की शक्ल में धोखे से अपने सैनिक वहां भेजकर अवैध कब्ज़ा करना चाहा। जब वहां के राजा हरिसिंह ने भारत के साथ रहने का लिखित दस्तावेज़ हस्ताक्षर कर दिया तो भी पाकिस्तान कश्मीर की बड़ी आबादी मुस्लिम होने की वजह से उसे जोर ज़बरदस्ती से पाकिस्तान में मिलाने की नाकाम चालें चलता रहा।

     लेकिन उसको हर बार मुंह की खानी पड़ी। सवाल यह भी है कि अगर पाक इस्लाम धर्म के नाम पर बना था तो बंग्लादेश उससे 24 साल बाद ही अलग क्यों हो गयासवाल यह भी है कि कश्मीर के तीन हिस्से रहे हैं। जम्मू हिंदू बहुल है। लद्दाख़ बौध बहुल है। इन दोनों क्षेत्रोें में आतंकवाद और अलगाववाद की कोई प्रॉब्लम नहीं रही है। लेकिन अकेली कश्मीर घाटी ही मुस्लिम बहुल है। वहां कुछ लोग भारत के साथ कुछ आज़ाद तो कुछ पाकिस्तान के साथ रहने की वकालत करते रहे हैं। पाकिस्तान भी इनको ही भड़काने हथियार उठाने या विदेशी आतंकियों को शरण देने के लिये तैयार कैसे और क्यों कर सका है?

    वहां से कश्मीरी पंडितों को इस्लामी कट्टरता आने के बाद बड़ी बेदर्दी से निकाला गया। वहां आईएसआईएस के झंडे भी लहराये जाते हैं। जो कोई भी सरकार सहन नहीं कर सकती। कश्मीर समस्या का इसका मतलब एक धार्मिक कोण भी मौजूद रहा है। जब तक हम रोग की असली जड़ को स्वीकार नहीं करेंगे। तब तक न तो उसकी ठीक से जांच हो सकती है और न ही उसका अच्छा और लगातार इलाज हो सकता है। एक तरह से कश्मीर के नासूर की सर्जरी शुरू हो गयी है। अब हम सबको दुआ करनी चाहिये कि मरीज़ भला चंगा हो जाये।                                                   

0 न हमसफ़र से न हमनशीं से निकलेगा,

  हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा ।।                   

Sunday 4 August 2019

3 तलाक़

3 तलाक़ क़ानून सामाजिक सुधार है!

0मोदी सरकार की नीयत चाहे जो रही हो लेकिन एक बार में तीन तलाक़ जुर्म बनाने का कानून मुस्लिम समाज की एक बड़ी बुराई रोकने में कामयाब साबित होगा। यह ठीक है कि भाजपा की सियासत और उसकी सरकारों के कई फै़सले मुस्लिम विरोधी भी होते हैं। मगर इस वजह से उसके अच्छे कामों का विरोध नहीं किया जाना चाहिये।          

      

  इत्तेहाद मुस्लिम कौंसिल और बरेली मरकज़ के मुखिया मौलाना तौक़ीर रज़ा खां उन गिने चुने मुस्लिम विद्वानों में से एक हैं। जिन्होंने तीन तलाक़ कानून का निडरता और दूरअंदेशी से खुलकर समर्थन किया है। हालांकि मौलाना रज़ा खां भी मोदी और भाजपा सरकारों के गलत व मुस्लिम विरोधी कई फ़ैसलों की पूर्व में जमकर आलोचना और विरोध करते रहे हैं। लेकिन मुसलमानों को यह समझना चाहिये कि विरोध केवल विरोध के लिये नहीं होना चाहिये। एक बार में एक साथ तीन तलाक़ जिसको तलाक़ ए बिद्दत यानी बुरी तलाक़ कहा जाता है।

    मुस्लिम समाज में लंबे समय से विवाद का मुद्दा बनी हुयी थी। हालत यह थी कि किसी पति द्वारा गुस्से नशे और किसी गलतफहमी में बहककर आवेश में दी गयी इंस्टैंट तीन तलाक़  भी मौलानाओं ने मान्य बता रखी थी। जबकि इस तरह की तीन तलाक़ एक साथ एक सांस में देकर मियां बीवी का रिश्ता ख़त्म करने का कोई उल्लेख कुरान पाक में नहीं मिलता है। कम लोगों को पता होगा कि सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार ने तीन माह में तीन तलाक पूरी कर मुस्लिम पति पत्नी को इस्लामी तरीके से अलग होने से अभी भी नहीं रोका है।

   यानी अगर किसी मुसलमान को अपनी बीवी से अलग होना है तो वह अच्छी तरह से ठंडे दिमाग़ से सोच समझकर तीन माह में तलाक़ की प्रक्रिया पूरी कर अभी भी उसको छोड़ सकता है। इसका एक फ़ायदा यह होगा कि अगर वह फिर से अपनी बीवी को अपनाना चाहे तो उसको हलाला की ज़लालत से नहीं गुज़रना होगा। वह उससे सीधे निकाह कर सकता है। तीन माह में तलाक पूरी होने से पति पत्नी को समझौता करने का भी पूरा समय मिलेगा। ऐसा होने से जल्दबाज़ी गुस्से या भावनाओं में बहकर होने वाली एक साथ तीन तलाक़ से बरबाद होने वाले परिवार बच सकेंगे।

   अब सवाल यह आता है कि सरकार ने तीन तलाक़ के खिलाफ जो कानून बनाया है। उसमें सिविल मामले को क्रिमनल क्यों बनाया है?यानी एक बार में तीन तलाक़ देने वाले को तीन साल की सज़ा का प्रावधान क्योें रखा है?हमारा मानना है कि ऐसा करने से ही इंस्टैंट तीन तलाक़ देने वाले अपनी मनमानी और महिला विरोधी सोच से डरकर बाज़ आ सकेंगे। जिन लोेगों ने कानून को विस्तार से नहीं पढ़ा है। उनको यह भी नहीं पता होगा कि अगर तीन तलाक़ देने वाला पति अपनी ग़ल्ती मानकर भूल सुधार करना चाहे तो अपनी पत्नी को विश्वास में लेकर उससे समझौता करके केस ख़त्म करा सकता है।

    साथ ही उसकी पत्नी चाहे तो वह ज़मानत पर बाहर भी आ सकता है। वह जब तक उसको ठीक से रखेगा और गुज़ारा भत्ता देता रहेगा वह बाहर रहेगा। जैसे ही वो उसे घर से निकालेगा या मनमानी करेगा वह पत्नी की शिकायत पर ज़मानत खारिज होने पर फिर से जेल चला जायेगा। इस दौरान तीन माह की तलाक़ का उसका विकल्प खुला है। जो लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि अगर पति जेल चला जायेगा तो पत्नी को गुज़ारा भत्ता कौन देगा?उनसे पूछा जाना चाहिये कि जो लोग बिना तलाक दिये अपनी पत्नी को घर से निकाल देते हैं। जिनमें मुसलमान भी बड़ी तादाद में शामिल हैं। उनकी पत्नी को गुज़ारा भत्ता कौन देता है?

    साथ ही जो पति अपनी पत्नी के साथ हिंसा करते हैं। जो पति पत्नी को गैर कानूनी या नाजायज़ काम के लिये मजबूर करते है। जो पति अपनी पत्नी पर दहेज़ लाने के लिये आयेदिन अत्याचार और उत्पीड़न करते हैं। जो पति अपने बच्चे की हत्या या बलात्कार तक कर देते हैं। जो पति अपने सुसराल वालों पर आपसी विवाद में आपे से बाहर होकर जानलेवा हमले कर देते हैं। उनके खिलाफ जब रपट दर्ज होती है। जब वे जेल चले जाते हैं। उस दौरान पत्नी को गुज़ारा भत्ता कौन देता है?

    क्या पत्नी पति के हर अत्याचार बलात्कार अप्राकृतिक कुकर्म साली या सलज के साथ अवैध संबंध हिंसा हराम काम या नाजायज़ मांग पर इसलिये चुप रहती है कि अगर उसने पुलिस से शिकायत की और पुलिस ने उसके पति को जेल भेज दिया तो फिर वह गुज़ारा भत्ता किससे और कैसे लेगीनहीं सोचती ना?तो जो तीन तलाक़ उसकी ज़िंदगी को जीते जी दोज़ख़ बना रहा हो उसके बच्चों को दर दर की ठोंकरें खाने को मजबूर कर रहा हो और उसके माता पिता को भारी मुसीबत में डालने जा रहा हो उस पर वह इस डर से चुप क्यों रहे कि उससे रिश्ता ख़त्म करने वाले पति को जेल हो गयी तो उसको गुज़ारा भत्ता कौन देगा?

    ऐसे और भी कई मामले और अपराध पति करता है। जिससे वह जेल चला जाता है। उस हालत में पत्नी को गुज़ारा भत्ता कौन देता है?सच तो यह है कि यह कानून लागू होने के बाद जब कुछ बिगड़े हुए पति तीन तलाक़ देते ही तीन मिनट के अंदर जेल में दिखाई देंगे तो बाकी के ऐसा करने से पहले सौ बार सोचेंगे। जो लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि हिंदू अपनी पत्नी को बिना तलाक दिये ही छोड़ देते हैं। उनका तो कुछ नहीं बिगड़ता या बहुत लंबे समय तक कानूनी कार्यवाही चलने के बाद उनको सज़ा मिलती है। हमारा मानना है कि समाज सुधार के लिये बुरी नहीं अच्छी बातों से नसीहत लेनी चाहिये।

    जो कट्टरपंथी अभी भी यह दावा कर रहे हैं कि वे सरकार के इस कानून को नहीं मानेंगे और एक साथ तीन तलाक़ पर ही पति पत्नी का रिश्ता ख़त्म करा देंगे। वो भूल रहे हैं कि1986 के शाहबानो केस के बाद राजीव सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट देने के बावजूद जो तलाक़शुदा पत्नियां आईपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट गुज़ारा भत्ता अपने पति से दिलवाने के लिये जाती है। कोर्ट उनको गैर इस्लामी बताये जाने के बावजूद गुज़ारा भत्ता दिला रहा है। इतना ही नहीं जो मुस्लिम पति अपनी गल्ती या खुदगर्जी में अपनी पत्नी को अब तक जबरन तलाक देकर घर से निकाल देते थे।

   उनके खिलाफ उनके सुसराल वाले फर्जी दहेज़ एक्ट का अकसर केस दर्ज कराकर पति के पूरे परिवार को जेल की हवा खिला देते थे। जो कानून से सबक नहीं सिखा पाते वो खुद दो दो हाथ कर लेते हैं। इसका मतलब साफ है कि एक बार तीन तलाक के खिलाफ कानून बन गया है तो कोई मौलाना कोई मौलवी और कोई कट्टरपंथी एक साथ तीन तलाक़ देने वाले पति को बचा नहीं पायेंगे। हमारा कहना है कि कुछ समय बाद पूरा मुस्लिम समाज इस कानून को स्वीकार कर लेगा और अपने समाज के हित में पायेगा।                                                   

0 हाथ से हाथ छुड़ाना कोई ज़रूरी तो नहीं,

  साथ रहकर भी कई लोग बिछड़ जाते हैं ।।