Tuesday 12 June 2018

Today muslim!

🔮 سچے اور کھرے مسلمان 🔮

آپ کو شاید یہ جان کر حیرت ہو گی مسلمانوں نے عالم اسلام کا 95 فیصد علاقہ اسلامی عروج کی پہلی صدی میں فتح کر لیا تھا‘

مسلمان اس کے بعد ساڑھے تیرہ سو سال اس علاقے کے لیے ایک دوسرے سے لڑتے رہے‘

ہمارے علم‘ فلسفے‘ سائنس اور ایجادات کی 95 فیصد تاریخ بھی ابتدائی تین سو سال تک محدود تھی۔

ہم نے اس کے بعد باقی ہزار سال تک حرام خوری کے سوا کچھ نہیں کیا‘

عالم اسلام ہزار سال سے نیل کٹڑ سے لے کر کنگھی تک ان لوگوں کی استعمال کر رہا ہے جنھیں ہم دن میں پانچ بار بددعائیں دیتے ہیں‘

آپ کمال دیکھئے‘ہم مسجدوں میں یہودیوں کے پنکھے اور اے سی لگا کر‘ عیسائیوں کی ٹونٹیوں سے وضو کر کے‘ کافروں کے ساؤنڈ سسٹم پر اذان دے کر
اور لادینوں کی جائے نمازوں پر سجدے کر کے ان سب کی بربادی کے لیے بددعائیں کرتے ہیں۔

ہم ادویات بھی یہودیوں کی کھاتے ہیں‘
بارود بھی کافروں کا استعمال کرتے ہیں
اور پوری دنیا پر اسلام کے غلبے کے خواب بھی دیکھتے ہیں‘

آپ کو شاید یہ جان کر حیرت ہو گی ہم خود کو دنیا کی بہادر ترین قوم سمجھتے ہیں لیکن ہم نے پچھلے پانچ سو برسوں میں کافروں کے خلاف کوئی بڑی جنگ نہیں جیتی‘

ہم پانچ صدیوں سے مار اور صرف مار کھا رہے ہیں‘

پہلی جنگ عظیم سے قبل پورا عرب ایک تھا‘ یہ خلافت عثمانیہ کا حصہ ہوتا تھا‘

یورپ نے 1918ء میںعرب کو12ملکوں میں تقسیم کر دیا اور دنیا کی بہادر ترین قوم دیکھتی کی دیکھتی رہ گئی۔

برطانیہ نے عربوں کی زمین چھین کر اسرائیل بنایا اور ہم رونے دھونے اور یوم القدس منانے کے سوا کچھ نہیں کر رہے‘

ہم اگر جنگجو تھے‘ ہمارا اگر لڑنے کا چودہ سو سال کا تجربہ تھا تو ہم کم از کم لڑائی ہی میں ’’پرفیکٹ‘‘ ہو جاتے

اور کم از کم دنیا کے ہر ہتھیار پر ’’میڈ بائی مسلم‘‘ کی مہر ہی لگ جاتی

اور ہم اگر دنیا کے بہادر ترین فوجی ہی تیار کر لیتے تو ہم آج مار نہ کھا رہے ہوتے‘

آج کم از کم عراق‘ لیبیا‘ مصر‘ افغانستان اور شام انسانی المیہ نہ بن رہے ہوتے۔

آپ اسلامی دنیا کی بدقسمتی ملاحظہ کیجیے‘ ہم لوگ آج یورپی بندوقوں‘ ٹینکوں‘ توپوں‘ گولوں‘ گولیوں اور امریکی جنگی جہازوں کے بغیر خانہ کعبہ کی حفاظت بھی نہیں کر سکتے‘

ہماری تعلیم کا حال یہ ہے دنیا کی 100 سو بڑی یونیورسٹیوں کی فہرست میں اسلامی دنیا کی ایک بھی یونیورسٹی نہیں آتی‘

ساری اسلامی دنیا مل کر جتنے ریسرچ پیپر تیار کرتی ہے وہ امریکا کے ایک شہر بوسٹن میں ہونے والی ریسرچ کا نصف بنتا ہے۔
پوری اسلامی دنیا کے حکمران علاج کے لیے یورپ اور امریکا جاتے ہیں‘

یہ اپنی زندگی کا آخری حصہ یورپ‘ امریکا‘ کینیڈا اور نیوزی لینڈ میں گزارنا چاہتے ہیں‘

دنیا کی نوے فیصد تاریخ اسلامی ملکوں میں ہے لیکن اسلامی دنیا کے نوے فیصد خوشحال لوگ سیاحت کے لیے مغربی ملکوں میں جاتے ہیں‘

ہم نے پانچ سو سال سے دنیا کو کوئی دواء‘ کوئی ہتھیار‘ کوئی نیا فلسفہ‘ کوئی خوراک‘ کوئی اچھی کتاب‘ کوئی نیا کھیل اور کوئی اچھا قانون نہیں دیا۔

ہم نے اگر ان پانچ سو برسوں میں کوئی اچھا جوتا ہی بنا لیا ہوتا تو ہمارا فرض کفایہ ادا ہو جاتا‘

ہم ہزار برسوں میں صاف ستھرا استنجہ خانہ نہیں بنا سکے‘

ہم نے موزے اور سلیپر اور گرمیوں میں ٹھنڈا اور سردیوں میں گرم لباس تک نہیں بنایا‘

ہم نے اگر قرآن مجید کی اشاعت کے لیے کاغذ‘ پرنٹنگ مشین اور سیاہی ہی بنا لی ہوتی تو ہماری عزت رہ جاتی‘

ہم تو خانہ کعبہ کے غلاف کے لیے کپڑا بھی اٹلی سے تیار کراتے ہیں۔
ہم تو حرمین شریفین کے لیے ساؤنڈ سسٹم بھی یہودی کمپنیوں سے خریدتے ہیں‘

ہمارے لیے آب زم زم بھی کافر کمپنیاں نکالتی ہیں‘

ہماری تسبیحات اور جاء نمازیں بھی چین سے آتی ہیں اور ہمارے احرام اور کفن بھی جرمن مشینوں پر تیار ہوتے ہیں‘

ہم مانیں یا نہ مانیں لیکن یہ حقیقت ہے دنیا کے ڈیڑھ ارب مسلمان صارف سے زیادہ اہمیت نہیں رکھتے‘
یورپ نعمتیں ایجاد کرتا ہے‘
بناتا ہے‘
اسلامی دنیا تک پہنچاتا ہے اور ہم استعمال کرتے ہیں اور اس کے بعد بنانے والوں اور ایجاد کرنے والوں کو آنکھیں نکالتے ہیں۔

آپ یقین کیجیے جس سال آسٹریلیا اور نیوزی لینڈ نے سعودی عرب کو بھیڑیں دینے سے انکار کر دیا اس سال مسلمان حج پر قربانی نہیں کر سکیں گے

اور جس دن یورپ اور امریکا نے اسلامی دنیا کو گاڑیاں‘ جہاز اور کمپیوٹر بیچنا بند کر دیے ہم اس دن گھروں میں محبوس ہو کر رہ جائیں گے‘

ہم شہر میں نہیں نکل سکیں گے‘ یہ ہیں ہم اور یہ ہے ہماری اوقات لیکن آپ کسی دن اپنے دعوے سن لیں۔

آپ ان نوجوانوں کے نعرے سن لیں جو میٹرک کا امتحان پاس نہیں کر سکے‘

جنھیں پیچ تک نہیں لگانا آتا اور جس دن ان کے بوڑھے والد کی دیہاڑی نہ لگے اس دن ان کے گھر چولہا نہیں جلتا‘

آپ ان کے نعرے‘ ان کے دعوے سن لیجیے‘ یہ لوگ پوری دنیا میں اسلام کا جھنڈا لہرانا چاہتے ہیں‘

یہ اغیار کو نیست ونابود کرنا چاہتے ہیں‘ آپ اپنے علماء کرام کی تقریریں بھی سن لیجیے‘

یہ اپنے مائیک کی تار ٹھیک نہیں کر سکتے‘ یہ اللہ اور اللہ کے رسولؐ کا نام بھی اپنے مریدوں تک مارک زکر برگ کی فیس بک کے ذریعے پہنچاتے ہیں۔

ہم کس برتے پر خود کو دنیا کی عظیم ترین قوم سمجھتے ہیں!۔
ہم اگر دل پر پتھر رکھ کر یہ حقیقت مان لیں‘

آپ اپنے اردگرد نظر ڈالیے‘ اسلامی دنیا ہزار سال سے یہ غلطی دوہرا رہی ہے ‘

ہم واقعی سچے اور کھرے مسلمان ہیں

        ” جس نے بھی یہ پوسٹ لکھی ہے مبنی بر حقیقت ہے ،  ہم میں سے کوئی قائد ایسا پیدا کر جو امت مسلمہ کی خامیوں کو دور کرنے کا ذریعہ بنے ،

آمین یا رب ربالعالمین

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Monday 11 June 2018

शिया फ़तवा

इंसान बन जाओ, सबके यहां खाओ !

0दारूल उलूम के उस फ़तवे की आजकल बहुत चर्चा है। जिसमें सुन्नी मुसलमानों को शिया मुसलमानों के यहां खाने पीने से परहेज़ रखने को कहा गया है। लेकिन ऐसा करने को नाजायज़ या हराम नहीं बताया गया है। यह मात्र सलाह है। मानना ना मानना आपका निजी मामला है। इसलिये इस पर हंगामें की ज़रूरत नहीं है।

यह हमारे लेख का विषय नहीं है कि दारूल उलूम ने ऐसा फ़तवा क्यों दिया? न ही हम यह तय कर सकते हैं कि ऐसा फ़तवा देना सही है या ग़लत? ज़ाहिर है कि जब आप सवाल करेंगे तो आलिम उसका जवाब देंगे ही। जवाब पर एतराज़ इसलिये भी नहीं करना चाहिये क्योंकि दारूल उलूम हो या कोई और इदारा, वो अपनी जानकारी समझ और सोच के हिसाब से ही राय देगा। फ़तवा असली है या नक़ली इस पर भी बहस की ज़रूरत नहीं रह गयी है क्योंकि दारूल उलूम ने आजतक इसका खंडन नहीं किया है। अब यह आपको देखना है कि क्या व्यवहारिक है ?
मिसाल के तौर पर आप किसी घोर जातिवादी खाप पंचायती या साम्प्रदायिक आदमी या संगठन से सवाल कीजिये कि यार मेरी बेटी दूसरे सम्प्रदाय या जाति के लड़के से प्यार करती है। वह उससे शादी की ज़िद कर रही है। हम सब समझा रहे र्हैं। लेकिन मानती ही नहीं। कह रही है कि घर वाले न माने तो घर छोड़कर कोर्ट मैरिज कर लेगी। विश्वास कीजिये उसका बिना सोचे जवाब होगा कि उसको ऐसा करने से पहले ही ठिकाने लगा दो। नहीं तो हम सबकी नाक कट जायेगी। यही सवाल आप किसी उदार सेकुलर और सुलझे हुए आदमी या पार्टी से करेंगे तो वह कहेगा कि पहले समझाओ नहीं माने तो उसे उसकी मर्जी से शादी करने दो।
ज़्यादा से ज़्यादा उससे रिश्ता मत रखना। मतलब यह है कि एक ही मामले में अलग अलग लोगों और जमातों की सोच अलग अलग होती है। ऐसे मंे यह आपको तय करना है कि क्या करना है? और क्या नहीं? हमारा मीडिया फ़तवों को लेकर जितना हल्ला करता है। उतना हल्ला संविधान विरोधी और मानवता विरोधी उन संगठनों व दलों को लेकर नहीं करता जिनकी सारी गतिविधियां और सियासत इंसानी लाशों पर चल रही है। हमारा कहना तो यह है कि फ़तवा देने वाले और लेने वाले जाने।
आपको दारूल उलूम ने कौन सी चेतावनी दी है कि आप उनका जारी किया फ़तवा नहीं मानेंगे तो आपको पहले नोटिस फिर समन और बाद में वारंट जारी कर पकड़कर उनकी शरई अदालत में पेश किया जायेगा? दारूल उलूम की कोई पुलिस तो है नहीं जो आपको फ़तवा ना मानने पर जेल भेज देगी? आलिम कभी भी फ़तवा ना मानने वालों का सामाजिक बहिष्कार करने की अपील भी नहीं करते। सच तो यह है कि कोई भी मुसलमान पूरी तरह फ़तवों पर चल भी नहीं रहा है।
चल भी नहीं सकता है। हमारा कहना तो यह है कि जिस तरह से हमें यह बहुत बुरा लगता है कि कोई हमारे मुसलमान होने की वजह से हमें नुकसान पहुुंचाये या बुरा समझे या देशद्रोही माने या किसी तरह का भी हमसे पक्षपात करे। ठीक इसी तरह अगर सुन्नी मुसलमान शिया मुसलमानों के यहां दावत और इफ़तार से परहेज़ करेंगे तो वे भी सुन्नी मुसलमानों से परहेज़ करेंगे। इसके बाद उनके साथ आपसी मेल मिलाप भाईचारा और प्यार मुहब्बत धीरे धीरे नफ़रत गलतफहमी और यहां तक कि दुश्मनी में बदल सकती है। हम इसीलिये इस तरह की सलाह से असहमत हैं।
हो सकता है कि ऐसा करके हम गुनहगार हो जायें। लेकिन शिया ही नहीं हम तो सभी गैर मुस्लिम यहां तक यहूदी ईसाई और दलितों के साथ भी आपसी भाईचारे मेल मिलाप बराबरी सम्मान और खाने पीने के रिश्ते रखते हैं। यह हमारा संवैधानिक अधिकार है। एक अच्छे और सच्चे इंसान का यह फ़र्ज़ भी है। अगर हमें देश और दुनिया में शांति और प्रेम से रहना है तो अपने अपने धर्म और अलगाववादी मान्यताओं परंपराओं और मानवता विरोधी रीति रिवाजों को छोड़ना होगा। आप हिंदू मुसलमान सिख ईसाई यानी जो भी हों अपने घर या ज़्यादा से ज़्यादा बस धार्मिक स्थल में रहिये।
जब घर से बाहर निकलें तो सिर्फ और सिर्फ एक भला इंसान बनकर निकलिये। जो चीजे़ लोगों को बांटती हैं। उनको छोड़ दीजिये। जब आप संकट में यह नहीं देखते कि हम जिसकी मदद कर रहे हैं या जो हमारी मदद कर रहा है। वो किस धर्म का है? तो सामान्य जीवन में भी यह भेदभाव और संकीर्णता छोड़ दीजिये। अगर किसी के यहां खाने पीने से परहेज़ करके बबूल का पेड़ बोओगे तो वो आपको कांटा बनकर चुभेगा ही। यह गलतफहमी मत पालना कि वो फिर भी आपको गुलाब का फूल पेश करेगा। दरअसल आज हमारी सबसे बड़ी प्रोब्लम ही यह है कि हम खुद को अच्छा सच्चा और सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरों को बुरा हकीर और नीच समझ रहे हैं।
यही सारे फ़साद की जड़ है। अच्छे बुरे लोग तो आपको सब जगह सब धर्मो जातियों और सब वर्गो में मिलेंगे। जब तक आप दूसरों को अपने जैसा बराबर हैसियत और अहमियत का इंसान नहीं समझेंगे। तब तक समाज में न तो अमन चैन बहाल होगा और न ही पूरे समाज देश और दुनिया का बराबर विकास होगा। अब फैसला आलिमों या देशभक्ति के ठेकेदार साम्प्रदायिक संगठनों को नहीं आपको करना है कि आप खुद बराबर का दर्जा दूसरों से चाहते हैं तो उनको भी हर तरह से बराबर मानना ही होगा।
0 ये लोग पांव नहीं जे़हन से अपाहिज हैं,
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है।।

Friday 8 June 2018

संघ में प्रणव

संघ के कार्यक्रम में प्रणब ने खोया, संघ ने पाया!

0पूर्व राष्ट्रपति और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी आरएसएस के प्रोग्राम में हो आए। हालांकि कांग्रेस ही नहीं अन्य सेक्युलर दल के लोग भी उनके वहां जाने के खिलाफ थे। बावजूद इसके प्रणब दा वहां गए। इस पूरे घटनाक्रम में एक तरह प्रणब दा लूजर रहे और संघ गेनर रहा है। दरअसल, प्रणब दा ने संघ के कार्यक्रम में जो कुछ कहा उससे यह तो साबित हो गया कि उन्होंने अपनी सेक्युलर विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया, लेकिन उनकी पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी इस मामले में उनसे ज्यादा सही साबित हुईं। शर्मिष्ठा का सुझाव था कि उनको संघ के प्रोग्राम में जाना ही नहीं चाहिए। इसकी वजह उनकी पुत्री प्रणब की साफ सुथरी छवि खराब होने का खतरा मानकर चल रही थीं। कार्यक्रम के एक दिन बाद ही शर्मिष्ठा की आशंका सही साबित हो गई।

संघ के प्रोग्राम में प्रणब ने क्या कहा यह संघ के लिये कोई अहमियत नहीं रखता। संघ के कार्यक्रम में  प्रणब दा की मौजूदगी को भी भुना लिया है जैसा कि भाजपा का आईटी सेल हमेशा करता है। आरोप है कि अगले दिन ही प्रणब की तस्वीर फोटोशॉप करके सोशल मीडिया पर वायरल कर दी गई। इस फोटो में प्रणब भी संघ प्रमुख भागवत की तरह काली टोपी पहनकर और एक हाथ सीने पर रखकर वह सब कुछ करते दिखाई दे रहे हैं जो केवल संघ के नेता और प्रचारक ही करते हैं। अब अगर प्रणब इस फेक चित्र के बारे में सफाई या कोई कानूनी कार्यवाही भी करेंगे तो इससे कुछ बदलने वाला नहीं है। उनकी निष्पक्ष और धर्मनिरपेक्षता की छवि को जो नुकसान पहुंचना था, वह तो कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की तरह पहुंच चुका है। यह अलग बात है कि प्रणब ही नहीं कांग्रेस के कई नेता संघ के प्रति नरम रूख पहले भी अपना चुके हैं।

प्रणब दा ने राष्ट्रपति रहते कई विवादित निर्णय भाजपा के पक्ष और कांग्रेस की राज्य सरकारों के खिलाफ लिए थे। उनका संघ के कार्यक्रम में न केवल जाना बल्कि वहां जाकर उसके संस्थापक डा. हेडगवार को भारतमाता का महान सपूत बताना भी कुछ लोगों द्वारा अच्चा नहीं लग रहा है। ऐसे लोगों का सवाल है कि एक ऐसे संगठन जिस पर साम्प्रदायिकता और अतिवाद का आरोप लगता रहा हो, ऐसी क्या मजबूरी थी कि प्रणब दा को उनके कार्यक्र में जाना पड़ा।

दरअसल, इतने बड़े नेता का संघ के कार्यक्रम में जाना ही संघ का महत्व बढ़ा देता है। संघ के ऊपर लगने वाले साम्प्रदायिकता के आरोप की वजह से ही न केवल कुछ सेक्युलर दल बल्कि देश के विभिन्न नामचीन लोग भी उससे दूरी बनाकर रखना पसंद करते हैं। संघ इस बात से परेशान रहता है कि वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक नेता ही नहीं आम बुद्धिजीवी भी संघ और भाजपा की सोच को समाज को बांटने वाला और देश की एकता अखंडता को खतरा बताता है। यही वजह है कि संघ आज भी वंदेमातरम और भारतमाता की जय के नारे लगाकर अपने माथे पर लगा अंग्रेज़ों से हमदर्दी के आरोप का कलंक हटाना चाहता है। जो लोग संघ को गहराई से जानते हैं, उनको पता है कि संघ की सोच पर एक प्रणब दा ही नहीं सैकड़ों हजारों प्रणब दा की नसीहत का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यही वजह है कि समझदार और जानकार लोग संघ से हमेशा दूरी बनाकर रखते हैं।

अखिलेश की चुनौती

अखिलेश की बीजेपी को चुनौती!

एसपी नेता अखिलेश यादव ने बीजेपी को यह कहकर उसके ही जाल में फंसा दिया है कि वह वन नेशन वन इलेक्शन के लिए तैयार हैं। उधर यूपी में बीजेपी को रोकने के लिए, वह जिस ठोस रणनीति से गठबंधन कर रहे हैं, उससे भी मोदी और अमित शाह के माथे पर चिंता झलक रही है। मोदीभक्त भले ही दावा करते रहे हों कि मोदी पीएम बनने के बाद साल के 365 दिन 18 से 20 घंटे काम करते हैं, लेकिन सच यह है कि वह ज़्यादा समय केवल बीजेपी को चुनाव जिताने और विदेश घूमने में लगा रहे हैं, जबकि विदेश यात्राओं पर भारी भरकम खर्च होने के बावजूद देश को इसका कोई लाभ मिलता नज़र नहीं आ रहा है। उधर वन नेशन वन इलेक्शन का शिगूफा भी बीजेपी ने यही सोचकर छोड़ा है, जिससे मोदी पूरे देश में एक बार ही चुनाव प्रचार करके केंद्र सहित सारे राज्यों में बीजेपी को जिताकर निश्चिंत होकर पांच साल राज करें।

लेकिन यह व्यावहारिक प्रस्ताव नहीं है। मिसाल के तौर पर जब कभी भी देश में सारे राज्यों में एक साथ चुनाव की बात आएगी। कहीं पांच साल पूरे होने वालें होंगे तो कहीं अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ होगा। जैसा कि अखिलेश ने यूपी के हिसाब से सोच-समझकर बीदेपी को ललकारा है। यूपी में एसपी-बीएसपी का गठबंधन होने के बाद अब यहां बीजेपी की वापसी कठिन नहीं असंभव सी लगती है। साथ ही अभी यूपी में जीते बीजेपी को लगभग सवा साल ही बीता है। ऐसे में आरएसएस से लेकर सीएम योगी तक केंद्र के साथ चुनाव को कभी भी तैयार नहीं होंगे।

ऐसे ही, जिन राज्यों में एक साथ चुनाव होने के बाद सरकारें अल्पमत में आकर गिर जाएंगी, वहां चुनाव कराना संवैधानिक मजबूरी होगी। अगर इसके लिए संविधान संशोधन कर किसी भी राज्य की विधानसभा को जबरन पांच साल चलाने की अनिवार्यता की जाती है, तो एक बार फिर ‘आयाराम गयाराम’ की दलबदल राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। खुद बीजेपी की ही सरकारें एक साथ चुनाव पर राज़ी नहीं होंगी। उधर एसपी-बीसएपी उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गईं हैं। हालांकि बीजेपी की गोद में बैठा मीडिया यह अफवाह फैला रहा है कि एसपी-बीएसपी में सीट बंटवारे को लेकर झगड़ा होगा, लेकिन अखिलेश ने परिपक्वता और दूरअंदेशी दिखाते हुए साफ कर दिया है कि 2014 के चुनाव में जिस सीट पर जो सेकुलर दल जीता था या दूसरे स्थान पर रहा था, वह सीट उसको दे दी जाएगी। इस हिसाब से एसपी ने 5 सीट जीती थीं, जबकि 35 पर वो दूसरे स्थान पर थी। इसी तरह से बीएसपी 37 सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी। सवाल यह है कि अगर दोनों दल 80 में से 77 सीट इस तरह आपस में बांट लेते हैं तो उनके अन्य सहयोगी कांग्रेस और रालोद को बाकी बची 3 सीट में कैसे बंटवारा हो सकता है? इसके लिये एसपी ने अपना दिल बड़ा करते हुए अपने कोटे से अजीत सिंह की आरएलडी को सीट देने का मन बनाया है।

उल्लेखनीय है कि 2009 के चुनाव में बिजनौर, अमरोहा, बागपत, हाथरस और मथुरा की सीटें आरएलडी ने जीती थीं। इसी तरह 2009 में जीती गौतम बुद्धनगर सीट एसपी मायावती का गृह जिला होने से उनको उपहार में दे सकती है। ऐसे ही बीएसपी ने एमपी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का रूख देखकर वहां गठबंधन में मिलने वाली पर्याप्त सीटों के हिसाब से यूपी में कांग्रेस को अपने कोटे से सीट देने का मन बनाया है। कांग्रेस ने उसको एमपी में 15 और छत्तीसगढ़ में 4 विधानसभा सीट ऑफर भी कर दी हैं। हालांकि कांग्रेस यूपी में सपा बसपा से 2009 के हिसाब से लड़ने को 22 लोकसभा सीट मांग रही है, लेकिन एसपी ने इसके बदले उसे एमपी में रहे अपने 7 विधायकों की याद दिला दी है। अब कांग्रेस को सपा बसपा ने इस हाथ दे उस हाथ ले का फारमूला पकड़ा दिया है। जिससे गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर एक तर्कसंगत और संतुलित पैमाना बन सकता है। अलबत्ता अपने विकास और उपलब्धि की बजाये विपक्ष को ख़त्म कर फिर से 2019 का चुनाव जीतने की खुशफहमी में जी रही बीजेपी को एक के बाद एक झटके पर झटका लग रहा है।

यह अलग बात है कि वह इतनी आसानी से हथियार नहीं डालेगी और चुनाव को साम्प्रदायिक भावुक और साम दाम दंड भेद से किसी भी तरह से जीतने की हर संभव कोशिश करेगी, लेकिन अब विपक्ष उसको एक बार फिर 2014 की तरह अलग अलग चुनाव लड़कर सत्ता थाली में रखकर परोसने वाला भी नहीं है।

Thursday 7 June 2018

कांग्रेस गठबंधन

कांग्रेस गठबंधन नहीं कर पायेगी ?

0जिस तरह से अंग्रेजों ने जब देश को गुलाम बनाया था तो नवाबों और राजाओं के नखरे और अकड़ आखि़री दम तक नहीं गयी थी। वैसे ही आज कांग्रेस के तौर तरीके़ गठबंधन को लेकर नज़र आ रहे हैं। लगता है वो अभी 2019 में मोदी से एक बार फिर अपनी फ़ज़ीहत करायेगी।

दिल्ली मेें आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में बतया था कि उनकी दिल्ली में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेताओें से चर्चा चल रही है। इस पर दिल्ली कांग्रेस के प्रेसीडेंट अजय माकन ने कुछ इस अंदाज़ में खंडन करते हुए बयान जारी किया। मानो दिल्ली में कांग्रेस इतनी मज़बूत हो कि उसने पिछले चुनाव में सातों सीटें जीत रखी हों। साथ ही आम आदमी पार्टी को माकन ने ऐसा झिड़का जैसे उसका कोई जनाधार ही न हो।
इसके बाद जब आप नेताओं ने अपनी बात संभालने को यह कहा कि उनकी बात कांग्रेस के बड़े नेताओं से चल रही हैै तो दिल्ली के प्रभारी वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी सी चाको से जवाब दिलाया गया कि उनकी कोई बात गठबंधन को लेकर केजरीवाल या उनके किसी बड़े नेता से नहीं चल रही है। साथ साथ कांग्रेस ने अपनी अहंकार और मनमानी को एक बार फिर जताते हुए यह भी दावा किया कि चाको ही कांग्रेस के बड़े नेता हैं। इसके बाद भी जब आप वाले चुप नहीं हुए तो चाको ने इतना और जोड़ दिया कि उनकी पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी हैं और उनको बताकर ही यह ये बयान दिये जा रहे हैं।
अभी राहुल गांधी चूंकि बाहर गये हुए हैं। हो सकता है उनके आने के बाद स्थिति कुछ स्पश्ट हो सके। लेकिन देखने की बात यह है कि जो कांग्रेस एक एक सीट के लिये तरस रही है। वह आप की तरफ से गठबंधन की चर्चा तक को झुठला रही है। सच तो यह है कि आप आज दिल्ली तक ही सीमित हो चुकी है। उसका कभी पंजाब और हरियाणा में जो थोड़ा बहुत असर था। वह वहां सत्ता में न आने से अब धीरे धीरे कम होता जा रहा है। लेकिन जहां तक दिल्ली का सवाल है। उसने 70 में से 67 विधायक जिताकर भाजपा ही नहीं कांग्रेस को भी उसकी औकात दिखा दी थी।
इतना ही नहीं उसकी तीन बार की सीएम शीला दीक्षित को भी आप सीएम केजरीवाल ने भारी मतों के अंतर से हराकर एक रिकॉर्ड बनाया था। जिस तरह से आप सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में शानदार काम किया है और साथ साथ करप्शन काफी हद तक कम करके निशुल्क पानी और सस्ती बिजली उपलब्ध कराई है। उससे अगले विधानसभा चुनाव में भी उसका हारना कठिन है। यह हो सकता है कि उसके वोट और एमएलए कुछ कम हो जायें। इसके साथ ही नगर निगम के चुनाव में आप कुछ कमज़ोर ज़रूर हुयी है। लेकिन अभी भी भाजपा को वही टक्कर दे रही है।
कांग्रेस के अहंकारी और भ्रष्ट नेताओं को यह भी पता होना चाहिये कि दिल्ली में उनकी अपने बल पर अभी एक साल बाद 2019 में नहीं दस से बीस साल बाद भी वापसी नहीं होने जा रही। यूपी और बिहार की तरह कांग्रेस का जहां एक बार किसी क्षेत्रीय दल ने सफाया कर दिया। इतिहास गवाह है उसके बाद फिर कांग्रेस वहां कभी सत्ता में नहीं लौटी। फिर सबसे अहम बात यह है कि आपका लोकसभा चुनाव में कुछ भी दांव पर नहीं लगा है। अगर कांग्रेस को राहुल गांधी को पीएम बनाने का सपना पूरा करना है तो उसे यूपी बिहार की तरह हर राज्य मंे वहां के गैर भाजपा आप जैसे दल के दरवाजे़ पर खुद समर्थन और गठबंधन की भीख मांगनी होगी। असम गुजरात और कर्नाटक में हारकर भी उसकी आंखें नहीं खुल रही हैं।
0 मसलहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।।