Wednesday 16 April 2014

बुखारी

बुख़ारी से ज़्यादा सियासत तो आम मुसलमान समझता है !
      -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 मज़हब के नाम पर अपील से हिंदू ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष मंे?                   
     पहले दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने एक सियासी डील के तहत यूपी में सपा को सपोर्ट किया था लेकिन वहां जब आज़म खां के कारण उनकी दाल नहीं गली और उनके दामाद को ना तो विधानसभा चुनाव में जीत मिली और ना ही विधान परिषद और राज्यसभा में भेजा जा सका तो उन्होंने मौका देखकर पाला बदल लिया। अजीब बात यह है कि जो कांग्रेस भाजपा पर हिंदू वोटों की साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाती है वही मुसलमानों के वोट साम्प्रदायिक आधार पर लेने के लिये दो कौड़ी के एक इमाम को अपने पक्ष में अपील करने के लिये मैदान में उतार रही है।
    इमाम बुखारी का एक दौर था जब वे किसी पार्टी के पक्ष मेें मुसलमानों से वोट करने की अपील करते थे तो मुसलमान लब्बैक कर उनकी हां में हां मिलाता था और वह भी बाबा रामदेव की तरह एक अपील ही होती थी ना कि फतवा जिसका प्रचार मीडिया में जोरदार तरीके से इस्लाम को बदनाम करने के लिये किया जाता रहा है। कम लोगोें को ही यह बात पता होगी कि इस्लाम में फतवा कोई मफती ही दे सकता है जिसके लिये बाकायदा डिग्री लेनी होती है जबकि बुखारी एक मस्जिद के मामूली इमाम हैं जिनको फतवा देने का ना तो अधिकार है और ना ही वे अपनी अपील को फतवा बता सकते हैं। अब यह बात आम मुसलमान समझ चुका है कि इमाम साहब का एजेंडा सदा ही निजी होता है और वे उनके वोट का सौदा अपने फायदे नुकसान के हिसाब से करते हैं।
    दूसरी बात मुसलमानों में तालीम और तरक्की बढ़ने से उनकी सोच भी कुछ हद तक प्रगतिशील और तर्कशील हो रही है जिससे उनको यह बात समझने में आने लगी है कि जब वे भाजपा की हिंदू साम्प्रदायिकता की राजनीति को नापसंद करते हैं तो उनका धर्म के नाम पर किसी पार्टी विशेष को वोट करना और इसकी प्रतिक्रिया में हिंदू वोटों को ध््राुवीकरण ना होना कैसे संभव है? सच तो यह है कि जिस तरह से बुराई का मुकाबला हो तो बड़ी बुराई जीतती है उसी तरह से अगर साम्प्रदायिकता का मुकाबला होगा तो बड़ी साम्प्रदायिकता यानी बहुसंख्यक हिंदू साम्प्रदायिकता की ही जीत होना तय है।
    आज जब कांग्रेस ने मुसलमानों की हालत अपने 50 साल से ज्यादा के राज में दलितों से भी बदतर कर दी है जिसकी पोल सच्चर कमैटी ने खोली हैऔर भ्रष्टाचार और महंगाई में अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं, ऐसे में बुखारी साहब का यह कहना कि भ्रष्टाचार से बड़ी बुराई साम्प्रदायिकता है, सुनकर हैरत ही होती है। साम्प्रदायिकता तो अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों की भी बुरी है लेकिन उसको बुखारी खाद पानी ही नहीं दे रहे बल्कि उसके नाम पर मुसलमानों का और नुकसान ही कर रहे हैं। बुखारी से ज्यादा बेहतर और असरदार सियासी समझ तो खुद मुसलमान बना चुका है जो कांग्रेस या किसी एक सेकुलर पार्टी के साथ ना जाकर हर सीट और हर राज्य में उसको जो भाजपा को हराने में सक्षम नज़र आता है उसके पक्ष में टेक्टिकल वोटिंग करके हर बार भाजपा के लिये बड़ी मुसीबत खड़ी करने में कामयाब हो जाता है।
    इसके साथ ही मुसलमान की इसी रण्नीति का नतीजा यह होता है कि सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, राजद और अन्य सेकुलर क्षेत्रीय दल चुनाव में मुसलमान के वोट से जीतने के बाद भाजपा को सपोर्ट देने में हिचकिचाते हैं। अगर मुसलमान डूबते जहाज़ कांग्रेस के साथ सपोर्ट में चले जायेंगे तो क्षेत्रीय धर्मनिर्पेक्ष दलों को एनडीए में जाने में क्या दिक्कत हो सकती है? क्या बुखारी साहब नहीं जानते कि सेकुलर कहलाने वाले दलों का सेकुलरिज़्म मात्र एक बहाना और ढकोसला ही अधिक है। जब तक उनको ऐसा कहकर मुसलमानों के वोट और राज्यों या केंद्र की सत्ता मिल रही है वे तब तक सेकुलर हैं वर्ना तो पासवान, ममता, नीतीश और मायावती की तरह भगवा होने में उनको देर नहीं लगती, इसका नमूना वे पहले ही पेश कर चुके हैं। इससे पहले कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे का आंदोलन एक एतिहासिक आंदोलन रहा है।
    इस आंदोलन को लेकर बुखारी साहब ने दावा किया था कि इसके पीछे आरएसएस, भाजपा, और विदेेेेेशी ताक़तों का हाथ है। हैरत की बात है कि  बुखारी साहब ने उस समय यह अजीबो गरीब बयान दे दिया कि मुसलमानों को इस आंदोलन से दूर रहना चाहिये क्योंकि इसमंे वंदेमातरम और भारत माता की जय के नारे लग रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि बुखारी साहब की बेतुकी बात का मुसलमानों पर कितना असर होगा, बल्कि मसला यह है कि बुखारी एक मस्जिद के मामूली इमाम हैं। उनको इमामत करनी चाहिये। सियासत की न उनको समझ है और ना ही मुसलमानों को उनकी सलाह की ज़रूरत है। सच तो यह है कि बुखारी जैसे कट्टरपंथी जिस कांग्रेस के पक्ष में आज मुसलमानों से भाजपा की साम्प्रदायिकता को रोकने की अपील कर रहे हैं वह खुद ही तआस्सुबी हैं।
   यह बात समझ से बाहर है कि बुखारी साहब को जिस बात की एबीसीडी पता ही नहीं है उसमें जबरदस्ती टांग अड़ाने की ज़रूरत ही क्या है? उनको एक बात और समझ लेनी चाहिये कि उनकी हैसियत अब ऐसी रह भी नहीं रह गयी है कि उनकी बात पर बड़ी तादाद में मुसलमान कान तक दें। उनका जिस कांग्रेस से अच्छा तालमेल रहा है उसको आज मुसलमान बाबरी मस्जिद के विवाद में भाजपा से भी बड़ा कसूरवार मानता है। बुखारी साहब को पता होना चाहिये कि अभी मुसलमानों ने कर्बला के 1400 साल पुराने हादसे के लिये यज़ीद को ही माफ नहीं किया है तो केवल 22 साल पुराने मामले के लिये कांग्रेस को कैसे माफ कर सकते हैं? उनको शायद पता नहीं है कि भ्रष्टाचार से गरीब सबसे ज़्यादा परेशान है और आंकड़े बता रहेे हैं कि मुसलमान आज सबसे अधिक ग़रीब है जिससे भ्रष्टाचार अपने आप ही मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है।
    बुखारी मुसलमानों के इमरान मसूद की तरह नादान दोस्त हैं जो सही मायने में भाजपा का ही भला अधिक कर रहे हैं, यही वजह है कि इस बार केवल मुस्लिम बुध्दिजीवी ही नहीं बल्कि मज़हबी रहनुमा भी बुखारी की इस गंदी और घटिया सियासी डील के खिलाफ खुलकर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। हमें तो पूरा भरोसा है कि मुसलमान खुलकर भाजपा के साथ तो नहीं जा सकता लेकिन आज जब पूरा मुल्क कांग्रेस के खिलाफ खड़ा है तो मुसलमान भी बुखारी की अपील को अनसुना करके गैर कांग्रेस गैर भाजपा दलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मतदान करता नज़र आयेगा।
0 मसलहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

  तुम नहीं समझोगे सियासत तुम अभी नादान हो।।

मोदी लहर

मोदी लहर को भाजपा की बताने का मतलब?
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 सेकुलरिज़्म पर भारी पड़ेगा विकास और सुशासन का मुद्दा!
    नरेंद्र मोदी का जितना विरोध सारे धर्मनिर्पेक्ष दल मिलकर नहीं कर पा रहे शायद उससे कहीं ज़्यादा उनका विरोध खुद उनकी पार्टी भाजपा में अभी भी मौजूद है। पहले आडवाणी ने पीएम पद की दावेदारी छोड़ने को तैयार ना होकर उनको नाको चने चबवाये और अब बनारस सीट मोदी के लिये छोड़ने का ग़म शायद भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को अभी तक सता रहा है जिससे उनकी ईर्ष्या  इस बयान के रूप में बाहर आई है कि देश में मोदी की नहीं भाजपा की लहर है। उनसे पूछा जा सकता है कि यह लहर 10 साल से कहां छिपी हुयी थी जब भाजपा 2004 और 2009 में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाकर ना केवल सत्ता में नहीं आ सकी थी बल्कि उसकी लोकसभा की सीटें भी घट गयीं थीं।
    6 माह पहले तक वरिष्ठ नेता आडवाणी तक खुद मान रहे थे कि लोग कांग्रेस और यूपीए के कुशासन से भले ही नाराज़ हों लेकिन भाजपा या एनडीए कांग्रेस या यूपीए का विकल्प बनती नज़र नहीं आ रही हैं बल्कि क्षेत्रीय दल एन्टी इन्कम्बैसी का लाभ उठाते नज़र आ रहे हैं। धीरे धीरे अन्ना हज़ारे आर टी आई से एक के बाद एक खुले घोटाले और बढ़ती महंगाई के बाद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलकर कांग्रेस को इतना नंगा और गंदा कर दिया कि लोग उसको सबक सिखाने के लिये उतावले होने लगे।
    दिल्ली में कांग्रेस की जो गत बनी और उसकी तीन बार सीएम रही शीला दीक्षित को जो शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और पार्टी मात्र 8 सीटों तक सिमट गयी उसका श्रेय भाजपा से कहीं अधिक ‘‘आप’’ को ही देना होगा यही वजह थी कि भाजपा बहुमत के नज़दीक पहंुचकर भी सत्ता से बाहर रह गयी और आप उससे पीछे होकर भी कम समय के लिये ही सही सत्ता में आने में कामयाब रही। इसी दौरान चार राज्यों के चुनाव में सध्ेा हुए नेटवर्क, पर्याप्त तैयारी, अनुशासित कैडर, विपुल आर्थिक संसाधन, सटीक चुनाव प्रचार और सुव्यवस्थित संगठन के बल पर आरएसएस के मार्गदर्शन में भाजपा ने इकलौते मज़बूत विपक्ष के रूप में कांग्रेस का सूपड़ा तीन राज्यों में जो साफ किया उसमें मोदी को पीएम बनाने का ऐलान भी काम कर रहा था।
    यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि 2002 के दंगों के दाग को छोड़ दिया जाये तो गुजरात का विकास मॉडल आज मोदी के लिये सबसे बड़ा तुरप का पत्ता बन गया है जबकि राहुल गांधी ने इन दस सालों में शासन का कोई बड़ा पद ना संभाल कर जनता को निराश किया जिससे उल्टे मनमोहन सिंह और यूपीए सरकार की बदनामी के लिये हाईकमान सोनिया के होने से राहुल की अच्छी और बेहतर बात पर भी आज कोई विश्वास करने को तैयार नहीं है।
    इसे संसदीय व्यवस्था के लिये आप ख़तरा माने या व्यक्तिवाद की तानाशाही को बढ़ावा लेकिन सच यही है कि संघ परिवार ने महंगाई और भ्रष्टाचार के लिये विलेन बन चुकी कांग्रेस के खिलाफ सौ सवालो का एक जवाब या सब मर्जों की एक दवा की तरह मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी पेश कर क्षेत्रवादी और जातिवादी राजनीति के अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता के साथ बने कोकटेल को बहुसंख्यक हिंदू ध्रुवीकरण से तोड़ने की जोरदार कोशिश की है जो मीडिया को कारपोरेट सैक्टर के द्वारा अपने हिसाब से मेनेज कर मोदी को विकास पुरूष पेश करने से  और प्रभावशाली साबित हो रही है।
    भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी से कोई सहमत हो या असहमत, प्रेम करे या घृणा और समर्थन करे या विरोध लेकिन उनके 2014 के चुनाव को विकास के एजेंडे पर लाकर सत्ताधरी यूपीए गठबंधन के लिये बड़ी चुनौती बन जाने को अब कांग्रेस और सेकुलर दलों के नेता भी स्वीकार करने को मजबूर हो रहे हैं। यह बहस का विषय हो सकता है कि गुजरात पहले से ही और राज्यों के मुकाबले विकसित था या मोदी के शासनकाल में ही उसने विकसित राज्य का दर्जा हासिल किया है लेकिन इस सच से मोदी के विरोधी भी इन्कार नहीं कर सकते कि आज मोदी को भाजपा ने अगर पीएम पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट किया है तो इसके पीछे उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि कम उनका विकासपुरूषवाला चेहरा ज्यादा उजागर किया जा रहा है।
    सेकुलर माने जाने वाले नेता चाहे जितने दावे करंे लेकिन लोग यह बात मानने को तैयार नहीं हैं कि गुजरात में मोदी केवल 2002 के दंगों और साम्प्रदायिकता की वजह से लगातार जीत रहे हैं। देश की जनता भ्र्रष्टाचार से भी तंग आ चुकी है वह हर कीमत पर इससे छुटकारा चाहती है,ऐसा माना जा रहा है कि अगर भाजपा 200 तक लोकसभा सीटें जीत जाती है तो चुनाव के बाद जयललिता, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी और मायावती को राजग के साथ आने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। लोजपा के पासवान, तेलगूदेशम के चन्द्रबाबू नायडू और इंडियन जस्टिस पार्टी के उदितराज जैसे नेता पहले ही भाजपा के साथ आ चुके हैं। इन सबके आने के अपने अपने क्षेत्रीय समीकरण और विशेष राजनीतिक कारण है। कोई भाजपा या मोदी प्रेम के कारण नहीं आयेगा। इन सबके साथ एक कारण सामान्य है कि कांग्रेस के बजाये भाजपा के साथ काम करना इनको सहज और लाभ का सौदा लगता है।
   इस बार जनता का मूड कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय और धर्मनिर्पेक्ष दलों से भी उखड़ा नज़र आ रहा है और वह सेकुलरिज्म के नाम पर खासतौर पर हिंदू मतदाता को मोदी के पक्ष में जाने से रोक पाने मंे ज्यादा सफल नहीं होने वाले क्योंकि मोदी से उनको सुशासन, विकास और आतंकवाद को काबू करने की उम्मीद जाग चुकी है, अब यह तो समय ही बतायेगा कि वह सपनों के सौदागर साबित होते हैं या जादू की छड़ी से सरकार अगर बनी तो सब फटाफट ठीक करते जायेंगे।
    फिलहाल जो लोग यह खुशफहमी पाले बैठें हैं कि भाजपा का देश की 35 में से आधी से ज्यादा स्टेट में अस्तित्व ही नहीं है उनको एक बार फिर यह देखना चाहिये कि जिन 16 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दल चुनाव जोरदार तरीके से लड़ रहे हैं उनमें यूपी-80 महाराष्ट-48 आन्ध्रा-42 बिहार-40 तमिलनाडु39मध्यप्रदेश29 कर्नाटक-28 गुजरात-26 राजस्थान-25 पंजाब-13 छत्तीसगढ़-11 हरियाणा-10 दिल्ली-उत्तराखंड-हिमाचल-गोआ-2 में ही कुल 390 सीटें मौजूद हैं जिससे विधानसभा के तीन राज्यों की तरह ही अगर भाजपा और उसके घटकों ने क्लीनस्वीप किया तो एनडीए की 200 से अधिक सीटें आने पर किसी को हैरत नहीं होनी चाहिये। यह सच दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि आज देश के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस का विकल्प तीसरे मोर्चे के नेताओं या केजरीवाल में ना देखकर मोदी की बहुमत की मज़बूत सरकार बनने में ज्यादा देख रहा है यह अलग बात है कि व्यक्तिपूजा और चमत्कार में विश्वास रखने वाला यह बड़ा तबका कितना साबित होता है???
0 ये लोग पांव नहीं ज़ेहन से अपाहिज हैं,

  उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है।।

Wednesday 9 April 2014

अंधविश्वासी नेता

ये अंधविश्‍वासी नेता देश का क्‍या भला कर सकते हैं.....
0 मोदी ने 7 का अंक शुभ मानकर मेनिफेस्‍टो 7 अप्रैल को ही जारी ि‍कया...
0 जयललिता ने अपने सभी प्रत्‍याशियों से नामांकन 12.40 से 3.00 बजे के बीच कराया
0 एमडीएमके के वायको ने नामांकन का शुभ मुहूर्त 1.40 बजे होने पर एेसा ही किया....
0 डीएमके के नेता स्‍टालिन राहुकाल चलने से अपनी सभा में तय सयम से 1घंटे बाद गये..
0 येदियुरप्‍पा ने अपना राजनीतिक संकट टालने के लिये काला जादू व तंञ मंञ किया है
0 राजस्‍थान की सीएम वसंुधरा ने 13.13 बजे शपथ ली और 13 नं0 का आवास लिया
0 लालू यादव ने राजद में बगावत के बाद अपने घर का स्‍वीमिंग पूल भरवा दिया है...
0 दक्षिण बंगलौर सीट से कांग्रेस के नंदन निलेकणि ठीक 12.26 बजे नामिनेशन कराना चाहते थे उन्‍होंने चुनाव अधिकारी से समय भी लिया लेकिन एक निर्दलीय ने उनके विरोधी के इशारे पर एनवक्‍त पर वहां पहंुचकर सारा खेल खराब कर दिया....
अब सवाल यह उठता है कि जिन नेताओं को अपने ऊपर ही ि‍वश्‍वास नहीं वे अंधविश्‍वास और काला जादू से देश का क्‍या भला कर सकते हैं......

Tuesday 8 April 2014

बीजेपी और मुस्लिम



क्‍या भाजपा मुसलमानों के बारे में भी सोच रही है.....
भाजपा के घोषणापञ में मदरसो उर्दू व मुसलमानों को सब क्षेञों में समान अवसर देने की बात कही गयी है, इससे ऐसा लगता है कि अब भाजपा भी यह बात समझ रही है ि‍क इतनी बड़ी कम्‍युनिटी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता लेकिन मुसलमाना यह सोचने पर मजबूर है कि यह वही भाजपा है जिसने बाबरी मस्जिद बचाने का शपथपञ सुप्रीम कोर्ट मे दिया था और बाद में नतीजा क्‍या हुआ यह कोबरा पोस्‍ट के स्टिंग से अब किसी शक की गुंजायश नहीं रही है....इसलिये दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है....क्‍योंकि यह तो फिर भी घोषणा पञ ही है जिस पर अमल करना पार्टियों की कानूनी मजबूरी नहीं होती.

धर्म की सियासत

धर्म और जाति की राजनीति वोटर भी पसंद करते हैं क्‍या.....
2014 के चुनाव को लेकर मैं मन ही मन सोच रहा था कि चलो इस बार भगवा पार्टी को भी अक्‍ल आई और वह भी हिंदुत्‍व की बात ना कर विकास का नारा देकर सत्‍ता में आना चाहती है लेकिन विकास और विनाश का दावा करते करते आखिर इमरान मसूद वसुंधरा राजे इमाम बुखारी व अमित शाह ने राजनीति को वहीं पहुंचा दिया जहां से वह धर्म के नाम पर चली थी. अब मुझे शक हो रहा है ि‍क शायद वोटर भी यह पसंद करता है..

Saturday 5 April 2014

मुसलमान अच्छा इंसान चुनें

मुसलमान वोट देते हुए मज़हब नहीं अच्‍छा इंसान और पार्टी भी देखे.....
यूपी में स्‍थानीय निकायों में कुल 11816 मेंबर हैं जिनमें से 3681 मुस्लिम हैं. राज्‍य में मुसलमानों की आबादी 18.5 फीसदी है लेकिन उनके वार्ड मेंबरों की तादाद 31.5 प्रतशित है. हालांकि सांसद और विधायक मुसलमानों की आबादी से काफी कम चुने जाते हैं लेकिन एक बात साफ है कि जो वार्ड मेंबर चुने गये हैं वे मुस्लिम होने की वजह से साम्‍प्रदायिकता की बुनियाद पर मतदान करने से चुने गये हैं. इनका कोई खास फायदा मुसलमानों को नहींहोना है लेकिन यह सच है कि बिजनौर ि‍जले की कुल 19 नगरपालिका व नगर पंचायतों में से 17 मुसलमान चुने गये हैं जिले में उनकी आबादी जबकि 42 फीसदी है . यह भी सच है कि अल्‍पसंख्‍यकों की मानसिकता सभी जगह इसी तरह की होती है चाहे वे किसी भी मज़हब के हों लेकिन हमारा कहना यह है कि अच्‍छा इंसान चाहे जिस धर्म का हो उसको चुना जाना चाहिये बशर्त कि वह मुस्लिम विरोधी पार्टी से ना खड़ा हो........

Thursday 3 April 2014

इमरान मसूद : मुस्लिमों का दुश्मन

इमरान मसूदः मुसलमानों का दुश्मन और मोदी का दोस्त 
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0भाजपा से लड़ना है तो उसके खिलाफ़ ठोस तर्क व प्रमाण दो!
       यूपी के सहारनपुर से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद ने भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी मोदी के खिलाफ जो कुछ कहा वह हर तरह से निंदनीय तो है ही साथ ही मुसलमानों के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में ध््रुावीकरण का कारण बनेगा। उनका यह दावा कि यह बयान 6 माह पुराना और तब का है जब वह सपा में थे उनकी मूर्खता और राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है क्योंकि कोई गैर कानूनी बयान क्या कुछ समय पहले देने और कांग्रेस की बजाये किसी और पार्टी मंे होने से कानूनी हो जाता है? क्या कानून अलग अलग दलों और समय के लिये अलग अलग लागू होता है? पता नहीं कांग्रेस ने क्या सोचकर इमरान को लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट दे दिया?
    जिस आदमी को यह तक नहीं मालूम कि गुजरात में मुसलमानों की तादाद 4 नहीं 9 प्रतिशत से भी ज्यादा है और बात जब राज्य की मुस्लिम आबादी की हो रही है तो उसका मुकाबला यूपी की मुस्लिम आबादी से तो किया जा सकता है लेकिन सहारनपुर जैसे एक ज़िले की 42 फीसदी मुस्लिम आबादी की दुहाई देने की क्या तुक है? क्या यह ज़िला इमरान की रियासत या देश है जो उसके राजा हैं? क्या इस क्षेत्र में यूपी सरकार का कानून नहीं चलता जो केवल 42 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बल पर मोदी को खुलेआम माफियाओं की तरह जान से मारने की धमकी दी जा रही है? क्या यहां मोदी के आने पर मुस्लिम जनता खुली कुश्ती लड़ने जा रही है? क्या ऐसा होने पर दूसरा वर्ग हाथ पर हाथ रखे तमाशा देखता रहेगा? क्या इमरान को पता नहीं है कि मुसलमान चाहें या ना चाहें आज मोदी से हिंदू जनता के बहुत बड़े वर्ग को देश के विकास और सीमा सुरक्षा की आशा बंध चुकी है?
   भले ही इसका एक कारण कांग्रेस और यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ाने वाले कदम रहे हों। कुछ समय पहले ऐसी ही नादानी और बचकानी भरी दुस्साहसी साम्प्रदायिक धमकी हैदराबाद के मुस्लिम नेता ओवैसी ने दी थी जिस पर उनको इमरान की तरह जेल की हवा खानी पड़ी थी। हमारा तो कहना है कि आज मुसलमानों को मोदी या भाजपा से उतना ख़तरा नहीं है जितना मसूद और ओवैसी जैसे सड़कछाप और नादान दोस्तों से है। किसी भी देश का अल्पसंख्यक वहां के बहुसंख्यकों को नाराज़ कर , धमकाकर और ललकार कर चैन से नहीं रह सकता। अगर बहुसंख्यक ना चाहें तो अल्पसंख्यकों का समावेशी विकास भी नहीं हो सकता। आज भारत में मुसलमान कभी कभी होने वाले दंगों और थोड़े बहुत पक्षपात को अपवाद मानें तो बराबरी ही नहीं कहीं कहीं और कभी कभी विशेष अधिकारों के साथ रह रहा है।
   आज देश अगर सेकुलर और समानता के संविधान के आधार पर चल रहा है तो इसके लिये हिंदू भाइयों की उदारता, सहिष्णुता और न्यायप्रियता को सलाम किया जाना चाहिये वर्ना कश्मीर और मुस्लिम मुल्कों में अल्पसंख्यकों के साथ क्या क्या हो रहा है इसे पूरी दुनिया देख रही है। इमरान मसूद शायद भूल रहे हैं कि आज मोदी को हिंदू ह्रदयसम्राट कहा जा रहा है तो मोदी को अगर आप धमकी देंगे या अपमान करेंगे तो बहुसंख्यक हिंदू इसको सहन नहीं करेगा और उनका राजनीतिक ध््राुवीकरण होगा। इसमें वो हिंदू भी मोदी का साथ देने आगे आ जायेगा जो भाजपा को भले ही पसंद ना करता हो लेकिन कांग्रेस से उसका मोहभंग हो चुका है। अगर मसूद की मूर्खता और पागलपन के बयान से दंगा भड़कता है तो इसमें भी मुसलमानों का ही ज्यादा नुकसान होगा। मसूद के इस आत्मघाती बयान से कांग्रेस को सियासी फायदा होने के बजाये उल्टे भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण और तेज़ होगा।
   अगर मोदी को मुसलमान वोट ना करें और भाजपा को हराना चाहें तो यह उनका संवैधानिक अधिकार सुरक्षित है लेकिन मसूद का मोदी को सबक सिखाने का सपना  उसी कांग्रेसी बेवकूफी और आत्महत्या जैसा होगा जो अन्य कांग्रेसी नेताओं ने मोदी को अनाप शनाप कहकर उनके प्रति सहानुभूति और समर्थन पैदा किया है। मसूद अपनी पार्टी हाईकमान सोनिया गांधी के गुजरात चुनाव के दौरान पिछली बार मोदी को ‘‘मौत का सौदागर’’ बताने का नतीजा भी भूल गये। मसूद जैसे मुसलमानों को अगर यह लगता है कि मोदी ने 2002 में गुजरात में जानबूझकर दंगे कराये थे तो इसके लिये मोदी को घटिया और ओछे शब्दों में धमकी देने की बजाये प्रमाण और तर्क अदालत व जांच आयोग के सामने पेश किये जाने चाहिये। मसूद यह भी जानते होंगे कि वह सांसद बनने के लिये लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो उनको संविधान के हिसाब से हर हाल में चलना होगा।
    क्या कानून इस बात की इजाज़त देता है कि जो मामला अभी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी की जांच में पहले स्तर पर  मोदी के खिलाफ नहीं पाया गया है और हाईकोर्ट में चुनौती देने पर सुनवाई हो रही है उस पर कांग्रेस प्रत्याशी अपना फैसला तय कर ऐलान कर दें कि मोदी मुस्लिमों के कातिल हैं और उनको सहारनपुर आने पर सज़ा ए मौत दी जायेगी? ऐसा सिरफिरा और कट्टरपंथी नेता अगर किसी तरह से जीतकर सांसद बन भी गया तो लोकतंत्र के लिये ख़तरा बन जायेगा। मसूद के खिलाफ तो भाजपा सांसद वरूण गांधी की तरह कड़ी कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये जिससे किसी और नौसीखिये और तालिबानी सोच के नेता की आने वाले कल यह हिम्मत ही ना हो कि वह ऐसी बेतुकी और नीच भाषा का इस्तेमाल करे।
    मसूद जैसे मुसलमानों के नादान दोस्त एक बात और सुन लें कान खोलकर कि अगर इस चुनाव के बाद मोदी किसी चमत्कार से प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो वे ऐसे ऐसे सबके विकास के निष्पक्ष लोकलुभावन काम करने की भरपूर कोशिश करेंगे जिससे मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग उनको दंगों के लिये माफ करें या ना करे लेकिन रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर खुलकर भाजपा के साथ आ जायेगा।          
  0अजीब लोग हैं क्या खूब मंुसफी की है,
   हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।
   इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,

   ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।