Wednesday 26 July 2017

इंसान नहीं उपभोक्ता

*हम इंसान नहीं उपभोक्ता हैं?*

एल पी जी यानी लिबरलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन के इस दौरमें सरकार और कंपनियों ने हमें ग्राहक बनाकर बाज़ारवाद  के हवाले कर दिया है।

आज दुनिया में पूंजीवाद पूरी तरह छा चुका है।पंूजीवाद को बाज़ार चाहिये। बाज़ार को ग्राहक चाहिये। यही वजह है कि आज हम नागरिक नहीं बाज़ार के लिये मात्र ग्राहक हैं। देसीकंपनियोें से लेकर एम एन सी यानी मल्टीनेशनल कंपनियों तक को किसी कीमत पर भीअधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना है। अबसवाल यह है कि जब इंसान की ज़रूरतें सीमितहैं तो उसको ज़्यादा से ज़्यादा बिना ज़रूरत केमाल कैसे बेचा जाये? इसके लिये पूंजीवाद नेसमाज शस्त्रियों मानव विज्ञानियों और दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञों की सेवा भारी किराये परलेनी शुरू की हैं। पूंजीवाद को इंसान की ज़रूरतसे कहीं अधिक सामान बाज़ार में उतारने औरउसको ग्राहक को न चाहते हुए खरीदने के लियेमजबूर करने का नुस्खा हाथ लग गया है।

पूंजीवाद ने एक योजना के तहत लोगों कीआवश्यकताओं के बजाये उनकी इच्छाओं परकाम करना चालू किया है। इसके लिये कंपनियोंने अपने गैर ज़रूरी प्रोडक्ट थोक में बेचने केलिये झूठे दावोें पेड मीडिया और बाज़ार केनक़ली विशेषज्ञों का सहारा लिया है। आपअकसर टीवी और अख़बारों में एड देखते होंगे।उनमें यह दावा किया जाता है कि आप चूंकिकाले हैं। इसलिये आप नाकाम हो रहे हैं। इसबहाने गोरे होने की क्रीम खूब बिक रही है। इतनाही नहीं लेडीज़ को सुंदर दिखाने के लिये भीगोरा होने की क्रीम बेची जा रही है। उनको यहसमझाया जा रहा है कि अच्छे वर और अच्छीनौकरी के लिये गोरा होना ही सबसे अधिकज़रूरी है। एक सोचे समझे प्लान के तहत 24घंटे 365 दिन ऐसे विज्ञापन मीडिया पर चलायेजा रहे हैं।

जिनमें हर स्तर पर यह प्रयास किया जाता है किआपकी महत्वकांक्षाओं को लगातार जगाये रखाजाये। अमेरिका जैसे विकसित देश में सिगरेटपीती औरतों को यह कहकर गौरान्वित कियागया कि ऐसा करना महिलाओं की आज़ादी काहिस्सा है। इधर भारत जैसे विकासशील देश मेंमर्दों को रेंड एंड व्हाइट सिगरेट पीते दिखाकरदावा किया गया कि ऐसा करना ही मर्दानगी कीपहचान है। सिगरेट के इस एड में बड़ी चालाकीसे सिगरेट पीने वाले हीरो या किसी अन्यसेलिब्रिटी को किसी की जान बचाते दिखाकरयह भ्रम फैलाया जाता है कि केवल सिगरेट पीनेवाले ही इतने बहादुर होते हैं। हंसी आती है  यहसोचकर कि क्या कोई सिगरेट पीने वालाताक़तवर और बहादुर होगा ही, यह ज़रूरी है?

ऐसे ही मोटरसाइकिल के एड में यह नारा दियाजाता है कि बाइक चलाना युवाओं की आज़ादीकी गारंटी है। इस एड के इस नकरात्मक पहलूपर आज तक पता नहीं क्यों किसी मानवअधिकार संगठन ने कोर्ट में जनहित याचिकादायर नहीं की। इस एड से यह संदेश जा रहा हैमानो जिस गरीब के पास मोटरसाइकिल नहीं है।वह तो गुलाम है? अजीब बात है कि समानतास्वतंत्रता और ख़्वाहिशों का गलत इस्तेमाल करविभिन्न वस्तुओं के उत्पादक अपना माल बेचनेमें लगे हैं। आवश्यकता से अधिक सामानखरीदने को मूर्खता और फ़िजूलखर्ची के बजायेझूठी शान ओ शौकत और कामयाबी का सबूतबताया जा रहा है।

ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि एक फालतूसामान ख़रीदने के बाद भी आप चुपचाप घर मेंन बैठें बल्कि प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा के इसदौर मंे पुराने मॉडल को रिजेक्ट कर अब नयापरचेज़ करने निकल पड़ें। दरअसल पूंजीपतिउद्योगपति और व्यापारी आपकी ज़रूरत नहींबल्कि जेब का वज़न देखकर अपना कूड़ा कचराभी आपको बेचने में लगा है। गांधी जी अकसरकहा करते थे। यह धरती दुनिया के सभी इंसानोंकी ज़रूरत तो पूरी कर सकती है। लेकिन यहहवस एक आदमी की भी पूरी नहीं कर पायेगी।आज हमारी सरकार ने गांधी की इस सोच कोनकार दिया है। अमेरिका में हाल ही में इसउपभोक्तावाद पंूजीवाद और विलासिता के दौरके खिलाफ एक आंदोलन अमिश समुदाय नेखड़ा किया है।

वे खुद बहुत सादगी से रहते हैं। उनका कहना हैकि धरती के साधनों का गलत इस्तेमाल रूकनाचाहिये। इस समुदाय का कहना है कि आनेवाली नस्लों के लिये हमें संसाधनों को विरासतके तौर पर सौंपकर जाना है। यह समुदाय कार नरखकर सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करताहै। इन्होंने एक अच्छी पहल यह भी की है किएक दुकान खोली है। जिसका नाम दरियादिलरखा गया है। यहां जिसके पास जो ज़रूरत सेफालतू सामना होता है। वह रख जाता है।जिसके पास ज़रूरत का सामान भी नहीं होताहै। वह दरियादिल दुकान से चुपचाप उठाकर लेजा जाता है। उनसे उस सामान की कोई कीमतनहीं वसूल की जाती है। ऐसे ही कुछ होटलों नेभूखे लोगों को बिना बिल खाना खिलाना शुरूकिया है।

इन होटल मालिकों का कहना है कि अगरआपको ठीक लगे तो जो चाहो उतना पैसा बिलके तौर पर चुका भी सकते हो। इन होटलमालिकों का कहना है कि उनको नुकसान नहींहुआ। इसकी वजह यह है कि होटल वालों कायह नेक काम देखकर कुछ अमीर औरसमाजसेवी ग्राहक अपने बिल से अधिकभुगतान भी कर जाते हैं। सबको पता है किपंूजीवाद मानव स्वभाव के खिलाफ है। लेकिनइंसान अपनी सोच से न चलकर मीडिया केप्रभाव और दिखावटी समाज के झांसे में आकरयही सोचकर अधिक से अधिक फालतू खरीदारीकरने में तल्लीन है कि ऐसा नहीं करेंगे तो लोगउनको क्या कहेंगे? सच तो यह है कि कारपोरेटसे विशाल चंदा लेने के लालच में मुख्य दलों कीसरकारें भी आजकल पूंजीवाद के एजेंट के तौरपर काम करती नज़र आ रही है।

पूंजीवाद भौतिकवाद और उपभोक्तावादबेतहाशा दौलत और फालतू दिखावे का सामानसमेटने के चक्कर में आज  के इंसान को ज़ालिमअन्यायी अमानवीय स्वार्थी असभ्य औरसंस्कृति विहीन बनाने पर तुला है।

आज सड़कों पर लिखे सैकड़ों नारे न देख,

घर अंधेरे देख तू आकाश के तारे न देख।

Wednesday 19 July 2017

हिंसा सबकी असहनीय

*हिंसा किसी की भी असहनीय!*

हिंसा किसी की भी असहनीय! गोरक्षा के नाम पर धर्म देखकर पहले ही देशके विभिन्न राज्यों में एक वर्ग के लोगों कोचुनचुनकर मारा जा रहा था। अब इसमें कश्मीर के डीएसपी अयूब पंडित अमरनाथ यात्रियों और पश्चिमी बंगाल के कार्तिक घोष का नाम और जुड़ गया है।

पहले अमेरिका को यह लगता था कि वह सुपरपॉवर होने की वजह से जो चाहे वो कर सकता है। अमेरिका की यह खुशफहमी पहले छोटे से मुल्क वियतनाम ने उसके अवैध क़ब्ज़े को हटाकर दूर की। इसके बाद रूस ने अफ़गानिस्तान पर इसी महाशक्ति होने की भूल से क़ब्ज़ा किया। लेकिन उसको भी मुंह की खानी पड़ी। रूस को वहां से हटाने के लिये अमेरिका ने पाकिस्तान के सहयोग से जोतालिबान का जेहादी खेल शुरू किया। वह उसको अलकायदा में बदलकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटरतक  नुकसान पहुंचाकर भी बख़्शने के लिये तैयार नहीं है। इसके बाद अमेरिका ने बिना किसी सबूत के रसायनिक हथियारों का आरोप लगाकर ईराक पर चढ़ाई कर दी। वहां से वहबड़ा बे आबरू होकर निकला।

इतना ही नहीं अपने साथ ही वह पूरी दुनिया केपीछे तालिबान अलकायदा के बाद एक औरतीसरा आतंकवादी भूत आईएसआईएस औरलगा आया। आतंकवाद ही नहीं हम अमेरिकासहित भारत में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसाके भी खिलाफ हैं। अमेरिका की मिसाल इसलियेदी है कि आतंकवादी और कथित गोरक्षक यहबात समझ लें कि उनका आक़ा अमेरिका अगरइतनी बड़ी ताक़त होकर मनचाहा नतीजाहासिल नहीं कर सकता तो बाकी तो पिद्दी नपिद्दी का शोरवा। कश्मीर में मुट्ठीभर आतंकियोंको अपने आक़ा पाकिस्तान  से हथियारप्रशिक्षण और अकूत धन मिलने से यहगलतफहमी हो गयी है कि एक दिन वे हमें औरहमारे देश को कश्मीर को आज़ाद करने के लियेमजबूर कर देंगे।

लेकिन यह मात्र एक सपना ही है। कश्मीर मेंजिस तरह अलविदा जुमे की नमाज़ के दौराननमाज़ियों की सुरक्षा में तैनात एक पुलिसअधिकारी अय्यूब पंडित की हत्या की गयी। वहकेवल इसलिये नहीं की गयी कि वह पुलिस केडीएसपी थे। बल्कि इसकी बड़ी वजह यह थीकि उनकी नेमप्लेट पर नाम ए पंडित लिखा था।जिससे नमाज़ियों ने उनको हिंदू मानकर पीटपीटकर जान से मारा। ऐसे ही बंगाल के बशीरहाट में एक 17 साल के लड़के ने इस्लाम केखिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट फेसबुक पर की।शिकायत पर पुलिस ने न केवल फौरन रपट दर्जकी। बल्कि उस लड़के के नाबालिग होने केबावजूद घर से पकड़कर थाने थाने ले आई।कट्टर मुसलमानों की भीड़ इतने पर भी शांत नहींहुयी।

वह आरोपी के घर तोड़फोड़ पर उतर आई।इसके बाद भी भीड़ का गुस्सा बेकसूर हिंदुओं केघर व दुकानों को जलाने पर उतरा। भीड़आरोपी को पुलिस से अपने हवाले कर उसकासंगसार करना चाहती थी। इसके बाद जबउनकी नाजायज़ मांग पूरी नहीं हुयी। जो होनीभी नहीं चाहिये थी। ऐसे में भीड़ रोड जाम करनेलगी। उधर से कुछ समय बाद एक हिंदू कीशवयात्रा निकली तो भीड़ ने उसको भी रास्तानहीं दिया। जिससे दोनों वर्ग आमने सामने आगये। इसके कुछ देर बाद उधर से कार्तिक घोषनाम का वह आदमी गुज़र रहा था। जो कट्टरमुसलमानों के निशाने पर पहले से ही चल रहे साम्प्रदायिक विवाद के कारण था। भीड़ ने उसको पकड़ा और पीट पीटकर मार डाला।

उधर अमरनाथ यात्रा के दौरान कश्मीर में तीनस्तर की सुरक्षा व्यवस्था में चल रही काफिले कीएक बस पिछले दिनों अचानक टायर पंक्चर होनेसे पीछे छूट गयी। इसके बाद बिना सुरक्षा के रातमें जब यह बस चली तो आतंकवादियों कोअपने  बेशर्म और दुस्साहसी नापाक मंसूबे पूरेहोते नज़र आये। बस पर अंधाधुंध फायरिंग कीग यी। जिससे 7 अमरनाथ यात्रियों की मौके पर दुखद मौत हो गयी। वह तो अच्छा हुआ बस के चालक सलीम ने अपनी बहादुरी और समझदारी दिखाते हुए बस को तेज़ दौड़ाये रखा। उसने कंडक्टर को भी चिल्लाकर गेट बंद करने को कहा जिससे बाकी अमरनाथ यात्रियों की जान सही सलामत बच गयी। वर्ना एक आतंकी बसके अंदर एक पांव रखकर घुसने की तैयारी मेंथा।

जिसे धक्का देकर नीचे उतारा गया। एक अच्छीबात यह भी हुयी कि इस बार पूरे कश्मीर ने एक आवाज़ में आतंकियों की इस हरकत को बिनाडरे बुरा और घिनौना बताया। देश के कोने कोने से न केवल गैर मुस्लिम मानवतावादियों बल्कि मुसलमानों ने भी सेकुलर हिंदुओं की तरह अमरनाथ यात्रियोें की हत्या की खुलकर निंदा की। हालांकि मोदी भक्त संघ परिवार के कुछ कट्टर नेता और साम्प्रदायिकता की नफ़रत में अंदर से जल रहे कुछ लोगों ने एक बार फिर सेअपनी हिंसा को सही ठहराने को इस कुतर्क का सहारा लिया कि मुसलमानों की हत्या पर बोलनेवाले कथित सेकुलर अब हिंदुओं की हत्या पर चुप हैं। लेकिन सच यह है कि मानवतावादी औरनिष्पक्ष लोग चाहे जिस मज़हब और पार्टी के होंवे हर हत्या पर अपना विरोध दर्ज कराते हैं।

लेकिन हिंदू कट्टरपंथी बड़ी चालाकी से मोदी और अपनी भाजपा की साझा सरकार को बचाते हुए सारा कसूर विपक्ष का बता रहे हैं।अब समय आ गया है कि सब वर्गों के मुट्ठीभर कट्टरपंथियों अलगाववादियों और आतंकवादी हत्यारों को समाज से अलग थलग किया जाये और सरकार को वोटबैंक की सियासत के कारण इस तरह ही हरकतों को शह देने या चुप्पी साधनेपर संविधान कानून और शांति व्यवस्था कोबहाल करने के लिये मजबूर किया जाये।

न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफ़िला क्यों लुटा,

मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी कासवाल है।।