Thursday 28 March 2024

केजरीवाल जेल में...

केजरीवाल को जेल: आप को फायदा, भाजपा को नुकसान ?
0यह विडंबना ही है कि जिस पार्टी का जन्म करप्शन के खिलाफ चले एक जन आंदोलन से हुआ आज उसका मुखिया भ्रष्टाचार के आरोप में ही जेल में है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि उनको जल्दी ही ज़मानत मिलेगी या लंबे समय तक जेल में ही रहना होगा? लेकिन इतना साफ है कि यह कोई कानूनी नहीं राजनीतिक लड़ाई है। गौर से देखा जाये तो यह देश को करप्शन से मुक्त कराने की मुहिम भी नहीं है क्योंकि जो भी विपक्षी नेता करप्शन के गंभीर आरोप छापा जांच के बाद या जेल जाने के डर से भाजपा में शरीक हो जाता है उसके खिलाफ या तो जांच ठंडे बस्ते में चली जाती है या स्लो हो जाती है। खुद भाजपा नेता भी दूध के ध्ुाले हो ऐसा भी नज़र नहीं आता है।      
    -इक़बाल हिंदुस्तानी
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शायद देश के पहले सीएम हैं जिन्होंने जेल जाने के बावजूद अपने पद पर बने रहने का निर्णय लिया है। हालांकि जेल से शासन चलाने में संवैधानिक रूप से कोई रोक नहीं है लेकिन नैतिकता के आधार पर जेल जाने केस चलने या आरोप लगने पर त्यागपत्र देने की अब तक परंपरा रही है। ऐसा भी पहली बार हुआ है कि आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद किसी मुख्यमंत्री को जेल भेजा गया है। इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि आम आदमी पार्टी ने उस कांग्रेस से दिल्ली में चुनावी गठबंधन किया है। जिसका भाजपा से छत्तीस का आंकड़ा यानी सीधी चुनौती मिल रही है। यही वजह है कि बिहार में नीतीश कुमार ने जहां इस दबाव में इंडिया गठबंधन यानी कांग्रेस से किनारा कर फिर से एनडीए का दामन थामने में ही अपनी भलाई समझी तो वहीं बंगाल में ममता बनर्जी ने इडी और सीबीआई को अपने दर पर दस्तक देने से रोकने को कांग्रेस से पल्ला झाड़ लिया है। उधर 70,000 करोड़ के घोटाले में गले तक डूबे एनसीपी के अजित पवार ने जेल जाने की बजाये भाजपा से हाथ मिलाकर डिप्टी सीएम बनने में ही अपनी खैर समझी। पंजाब मंे आप के सीएम मान ने मोदी सरकार से पंगा न लेकर कांग्रेस के साथ सीटों का समझौता करने से मना कर अपनी जान बचाई है। 
आंध््राा में टीडीपी के मुखिया और पूर्व सीएम चन्दरबाबू नायडू ने भी जांच से डरकर भाजपा से गठबंधन कर लिया है। उड़ीसा में नवीन पटनायक गठबंधन करते करते फिलहाल तो छिटक गये लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद वे भी भाजपा के साथ आने को मजबूर होंगे जब केंद्र सरकार उनको जांच एजंसियों के ज़रिये घेरेगी। कर्नाटक में जेडीएस और यूपी में आरएलडी पहले ही भाजपा के मोहपाश में घुटने टेक चुके हैं। बसपा की मुखिया मायावती ने जेल जाने के डर से पहले ही अपनी पार्टी का जनाज़ा खुद निकाल लिया है। यह अलग बात है कि वे सीधे भाजपा के साथ गठबंधन न करके अपने दलित वोटबैंक और कुछ मुसलमानों को विपक्ष में जाने से रोकर भाजपा की जीत का रास्ता आसान करती रही हैं। ठीक ऐसे ही एमआईएम के ओवैसी मुसलमानों के पक्ष में बड़े बड़े बयान देकर भाजपा की चोर दरवाजे़ से मदद करते रहे हैं जिसका इनाम उनको आज तक किसी भी एजेंसी की जांच से बचाकर दिया जाता रहा है। कहने का मतलब यह है कि करप्शन के नाम पर विपक्ष में भी उन नेताओं दलों और सरकारों को टारगेट किया जा रहा है जो भाजपा के लिये चुनौती विरोध व हार का कारण बन सकती हैं। दिल्ली हालांकि पूर्ण राज्य नहीं है। उसकी आबादी भी बहुत कम है। लेकिन राजधानी क्षेत्र होने की वजह से केजरीवाल पूरी दुनिया की नज़र में छाते रहे हैं। 
संयोग से आप सरकार ने जिस तरह निशुल्क बिजली पानी और क्वालिटी एजुकेशन व हैल्थ सुविधायें उपलब्ध कराने के साथ करप्शन फ्री जन उपयोगी सेवायें दिल्ली की जनता को देकर नया माॅडल सामने रखा उसको भाजपा अपने लिये चुनौती मानकर चलती है। पंजाब में बंपर बहुमत से सरकार बनाकर आप नेशनल पार्टी का दर्जा भी हासिल कर चुकी है। यही वजह है कि आप और भाजपा का लगातार टकराव चलता रहा है। भाजपा केजरीवाल और उनकी पार्टी की ईमानदार छवि को खत्म करने के लिये लगातार करप्शन के आरोप लगाती रही है। उसके स्वास्थ्य मंत्री डिप्टी सीएम और राज्यसभा सांसद पहले ही विभिन्न आरोपों में जेल में हैं। कई विधायक भी जेल और जांच के घेरे में आ चुके हैं। केजरीवाल के जेल जाने के बाद भी सीएम पद से रिज़ाइन ना करने की एक वजह यह भी हो सकती है उनको अपने किसी अन्य नेता पर भरोसा नहीं है। उन्होंने पार्टी के सत्ता में आते ही योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे वरिष्ठ लोगों को वनमैन शो के रूप में खुद को सर्वेसर्वा बनाने के लिये बाहर का रास्ता दिखाकर आत्मघाती रास्ता अपनाया था। ऐसे ही शाहीन बाग जैसे मशहूर सीएए विरोधी आंदोलन , दिल्ली दंगों व अल्पसंख्यकों के मकानों पर बुल्डोज़र चलाने पर उन्होंने अपराधिक चुप्पी साध ली थी जिसकी कीमत उनको आज चुकानी पड़ रही है। 
यह भी तथ्य है कि केजरीवाल उनकी आप और उसके दूसरे नेता व विधायक भी अन्य दलों की तरह गलत भ्रष्ट और अनैतिक हो सकते हैं। लेकिन यहां सौ टके का सवाल यही है कि केवल विपक्ष के नेताओं को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है। दूसरे जिस तरह के हल्के सबूत केजरीवाल वे दूसरे विरोधी दलों के नेताओं को जांच आरोप व जेल भेजने के लिये प्रयोग किये जा रहे हैं जिस तरह से उनको लंबे समय तक ज़मानत देने का सरकारी एजंसियां विरोध करती हैं और जिस तरह से इससे गंभीर और आपत्तिजनक मामलों में भाजपा या एनडीए के नेताओं को बचाया जाता रहा है उससे राहुल गांधी के इस आरोप में दम लगता है कि भारत में लोकतंत्र धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है क्योंकि यहां लेवल प्लेयिंग फील्ड नहीं रह गया है। यह भी नज़र आ रहा है कि भाजपा भले ही इस बार 400 पार का नारा दे रही हो लेकिन वह साधारण बहुमत लाने को लेकर भी सशंकित है। इसकी वजह महाराष्ट्र बिहार बंगाल और कर्नाटक आदि राज्यों से आ रहे वे निष्पक्ष व विश्वसनीय सर्वे हैं जिनमें भाजपा की सीट कम होने का दावा किया गया है। इसकी वजह यह भी है कि जहां जहां भाजपा पहले से ही लगभग सभी सीटें जीत चुकी है। वहां उसके और बढ़ने की बजाये महंगाई बेरोज़गारी व करप्शन की वजह से पहले से कम सीट लाने का अनुमान लगाना समझ में आता है। 
दूसरी तरफ यूपी को छोड़कर दक्षिण के किसी राज्य में उसकी सीट बढ़ने या खाता खुलने के आसार कम ही नज़र आते हैं। इसकी एक वजह इंडिया गठबंधन में अधिकांश राज्यों में सीट समझौता होना माना जा रहा है। भाजपा का राम मंदिर उद्घाटन और सीएए लागू करने का कार्ड भी कोई खास असर करता नहीं लग रहा है। इलैक्टोरल बांड के खुलासे ने भी भाजपा को करप्शन के मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर कर दिया है। यह अलग बात है कि इस मामले में विपक्ष भी पूरी तरह से साफ सुथरा साबित नहीं हो रहा है लेकिन चंद कंपनियों पर छापा मारकर उनसे मोटी रकम चुनावी बांड के ज़रिये लेना और फिर जांच खत्म या पंेडिंग कर देना और आरोपी को सरकारी गवाह बनाकर विपक्ष के नेताओं को फंसा देना भी उस न्यूटल वोटर को नहीं पच रहा है जो पक्ष विपक्ष किसी के भी साथ पहले से अंधभक्त की तरह नहीं जुड़ा है। हालांकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाता राज्यों में अलग अलग दलों को वोट करता रहा है। यही वजह है कि दो दो बार दिल्ली विधानसभा में जहां आप को जबरदस्त बहुमत मिल रहा है वहीं लोकसभा चुनाव मंे भाजपा सभी सातों सीटें जीत ले रही है। लेकिन इस बार आप का कांग्रेस से सीट समझौता होने और केजरीवाल व उनकी सरकार को भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा बार बार हर कदम पर घेरा जाना तय करेगा कि जनता को यह कदम कितना पसंद आ रहा है?      नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के एडिटर हैं।

सायबर क्राइम से बचें...

सायबर क्राइम से बचें: लालच में फंसे तो लुट जायेंगे आप!
0 आज के दौर में मोबाइल ने नेट को घर घर तक पहंुचा दिया है। दिन रात लोग व्हाट्सएप इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे मनोरंजक एप का मज़ा ले रहे हैं। ईमेल भेजते हैं। पैसे का लेनदेन और टिकट की खरीद आॅनलाइन करते हैं। शाॅपिंग करते हैं। आॅडियो वीडियो मैसेज और काॅल का सुख लेते हैं। लेकिन सायबर कैफे बढ़ने के साथ साथ सायबर क्राइम भी बढ़ते जा रहे हैं। कुछ सावधानी जागरूकता और समझदारी से हम आॅनलाइन होने वाली चीटिंग फ्राॅड और नये नये स्कैम के जाल से बच सकते हैं। इसके लिये न केवल हमें इंटरनेट पर होने वाली चालाकियों से खुद को होशियार रखना होगा बल्कि अपने अंदर मौजूद लालच पर भी काबू पाना होगा। आज के लेख में आपको ऐसे ही कुछ टिप देने हैं।      
   -इक़बाल हिंदुस्तानी
कई बार आपके फोन पर अंजान काॅल आती है जो आपसे तरह तरह के बहाने बनाकर कुछ रूपये वैरिफिकेशन के नाम किसी खास एकाउंट में भेजने की बात कहते हैं। उनका दावा होता है कि अगर उनके बताये नंबर पर यह छोटी सी रकम भेज देते हैं तो आपको उसके बाद इनाम के तौर पर यही रकम डबल करके वापस आपके एकाउंट में भेज दी जायेगी। जबकि आपने एक बार यह गल्ती कर दी तो डबल तो दूर आपकी भेजा गया पैसा भी आपको वापस नहीं मिलेगा। आप एक बार इस झांसे में फंसे तो मामला यहीं खत्म नहीं होगा बल्कि वे आपसे आपकी और भी पर्सनल डिटेल भी मांगेगे। इसके बाद आपके मोबाइल पर ओटीपी आयेगा। अगर आपने उनके चक्कर में फंसकर वो ओटीपी शेयर कर दिया तो आपका बैंक एकाउंट खाली होने में देर नहीं लगेगी। हमें यह बात जान लेनी चाहिये कि बैंक कभी भी आपको फोन करके ऐसी कोई गोपनीय व्यक्तिगत जानकारी नहीं मांगता। ओटीपी मांगने का तो मतलब ही नहीं है। कभी कभी नौकरी देने फिल्म में काम करने या किसी सरकारी स्कीम का लाभ देने के नाम पर आपको किसी अंजान आॅफिस या सुनसान जगह में बने रिसाॅर्ट व होटल में बुलाया जायेगा। अगर आप लालच में बिना सोचे समझे वहां पहुंुच गये तो बातों बातों में आपकी फोटो आॅडियो व वीडियो रिकाॅर्ड कर उसको अश्लील बनाकर आपको ब्लैकमेल करके बाद में मंुहमांगी रकम वसूल की जायेगी। 
ऐसे में बिना डरे ब्लैकमेल होने की बजाये पुलिस को खबर करें तो रकम मांगने वाले चुप होकर बैठ जायेंगे। कभी भी बिना पैसा दिये सैक्स मनपसंद खूबसूरत लड़की से शादी लिव इन रिलेशनशिप निशुल्क पिकनिक के जाल में ना फंसे वरना बाद में पछताने और उसकी भारी कीमत चुकाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। यूट्यूब इंस्टाग्राम और फेसबुक व एक्स पर कई बार लाइक शेयर रिट्वीट करने के बहाने आपको कुछ इनाम देने की चाल चली जाती है। इसके लिये आपको एक अंजान ग्रुप में जोड़कर वहां पहले से सैट अपने फर्जी व नकली सदस्यों से स्क्रीन शाॅर्ट्स शेयर कराकर यह दावा किया जाता है कि हमने ऐसा किया तो वास्तव में पैसा उनके एकाउंट में आ गया। ऐसे में इंसान के अंदर का लालच जाग जाता है और वह ना चाहते हुए भी जाल में फंस जाता है। इसका बचाव यह है कि आज ही अपने व्हाट्सएप एकाउंट की सेटिंग में जाकर प्राइवेसी पर क्लिक कर एवरीवन की जगह आॅनली माई काॅन्टैक्ट्स पर क्लिक कर दें। इससे आपको आपकी बिना अनुमति के कोई किसी ग्रुप में नहीं जोड़ सकेगा। यह भी जान लेना ज़रूरी है कि लाइक या शेयर करने का कोई पैसा कहीं नहीं मिलता है यह सरासर धोखा झूठ और मक्कारी ही होती है। आपको इंटरव्यू पार्ट टाइम जाॅब और वर्क फ्राॅम होम के नाम पर भी धोखा दिया जा सकता है। 
याद रखिये आज के दौर में पढे़ लिखे नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही है। ऐसे में आपको घर बैठे बिना किसी आवेदन बिना किसी ठोस काम और बिना योग्यता के जाने कोई क्यों नौकरी कारोबार या लाभ दे सकता है? ऐसे ही कई बार काॅल आती है कि हम बिजली कंपनी से बोल रहे हैं। आपका बिल हमारे रिकाॅर्ड के हिसाब से जमा नहीं हुआ है। आपकी लाइट रात दस बजे काट दी जायेगाी। अगर आप कनेक्शन बचाना चाहते हैं तो इस लिंक पर मांगी गयी जानकारी तत्काल दीजिये। टेलिकाॅम विभाग ट्राई नेट कंपनी के नाम से भी केवाईसी पूरा करने के बहाने फर्जी काॅल आने लगी हैं जिनमें आपसे गोपनीय डाक्यूमंेट आधार पैन कार्ड एटीएम कार्ड या बैंक डिटेल फीड करने को कहा जाता है। इसमें आपसे कई बार स्टार 401 हैश डायल करने को कहा जाता है जिससे आपके मोबाइल में काॅल फाॅरवर्डिंग फीचर आॅन हो जाता है। ऐसा होने से आपकी सभी काॅल स्कैम करने वाले के नंबर पर फाॅरवर्ड हो जाती है। इसके बाद वह आपके फोन की सभी गोपनीय जानकारी आराम से चुरा लेता है। फिर आपको चूना लगाने से कोई नहीं रोक सकता। कई बार ऐसी काॅल करके आपको एनी डेस्क जैसी रिमोट एप डाउन लोड करा दी जाती है जिससे आपके फोन का कंट्रोल फ्राॅड करने वाले के हाथ में चला जाता है। याद रखने की बात यह है कि बैंक बिजली कंपनी टेलिकाॅम डिपार्टमेंट या कोई भी सरकारी विभाग आपसे ऐसी गोपनीय महत्वपूर्ण व संवेदनशील जानकारियां कभी भी फोन पर नहीं मांगता है। 
कभी कभी आपको मैसेज पर रेंस्पोंस ना करने पर बैंक का कोई अधिकारी आपसे आपके खाते से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें जानने सत्यापित करने या किसी चैक पर शक हाने पर सच जानने के लिये आपको बैंक बुला सकता है। यूपीआई के नाम पर एक धोखा आम है कि किसी से पैसा पाने के लिये आपका पिन पूछा जाता है जबकि पैसा देने के लिये पिन की ज़रूरत होती है ना कि पैसा लेने के लिये। आजकल आर्टिफीशियल इंटेलिजैंस तकनीक से आपकी आपके परिवार के किसी सदस्य या करीबी रिश्तेदार की हू ब हू आवाज़ बनाकर उसकी फोटो लगाकर और उसके नंबर को ही हैक कर काॅल करके आपसे कुछ पैसा मांगा जा सकता है जिसके लिये आपको काॅल काटकर फिर से काॅल बैक कर सच पता लगाने की ज़रूरत होती है नहीं तो आप लुट सकते हैं। यूपीआई पिन बार बार बदलते रहिये। पब्लिक वाईफाई का इस्तेमाल कर पैसे का लेनदेन ना करें क्योंकि इससे आपका पिन पासवर्ड और गोपनीय जानकारी आसानी से काॅपी हो जाती है। किसी भी अंजान आदमी के भेजे ईमेल मैसेज या लिंक पर भूलकर भी क्लिक ना करें। कभी भी किसी कंपनी का कस्टमर नंबर गूगल पर सर्च ना कर उसकी वेबसाइट पर ही चैक करें क्योंकि गूगल पर लोगों ने जानी मानी कंपनियों के नाम से नकली फर्जी और फेक कस्टमर नंबर देकर लोगों को ठगने का जाल बिछा रखा है। 
अपने सभी एकाउंट के पासवर्ड मुश्किल से मुश्किल और अलग अलग रखे्रं। भूलकर भी अपनी या परिवार के किसी सदस्य की जन्मतिथि या कार बाइक का नंबर व एक दो तीन चार तथा एबीसीडी पासवर्ड ना रखें क्योेंकि ये स्कैमर का काम आसान कर देते हैं। अपनी पर्सनल जानकारी फोटो वीडियो घर आॅफिस की पिक अपनी यात्रा सूचना कभी भी नेट पर शेयर ना करें इससे बदमाशों का निशाना बन सकते हैं। इतना कुछ एलर्ट रहने के बाद या भूल से फिर भी आपके साथ कोई धोखा चीटिंग या स्कैम हो जाये तो डरकर ब्लैकमेल ना हों बल्कि पुलिस सायबर क्राइम सैल उपभोक्ता फोरम सिविल कोर्ट बैंक या बैंकिंग लोकपाल सायबरक्राइम डाॅट जीओवी डाॅट इन या 1930 पर काॅल कर शिकायत कर अपना पैसा या मान सम्मान वापस पा सकते हैं।    
0 शराफ़तों की यहां कोई एहमियत ही नहीं,
  किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है।
 *नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के एडिटर और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

Wednesday 20 March 2024

खुली किताब परीक्षा

*खुली किताब एग्ज़ाम से पहले स्टूडेंट्स का दिमाग खोलना होगा!* 
0 सेंटरल बोर्ड आॅफ सेकंड्री एजुकेशन यानी सीबीएसई ने हाईस्कूल और इंटर के पहले साल में एक बार फिर से ओपन बुक एग्ज़ाम की योजना बनाई है। वैसे तो यह प्लान विद्यार्थियों के लिये पुराना ही है। 2014 में सबसे पहले यह व्यवस्था लागू की गयी थी। तब हिंदी अंग्रेज़ी गणित विज्ञान और सोशल साइंस कक्षा 9 और अर्थशास्त्र जीव विज्ञान व भूगोल कक्षा 11 के लिये यह सुविधा दी गयी थी। स्टूडेंट्स को चार माह पहले दिये गये स्टडी मैटीरियल से सहायता लेने की छूट दी गयी थी। लेकिन बिना कोई ठोस कारण बताये इस व्यवस्था को 2017 में बंद कर दिया गया । उच्च शिक्षा में खुली किताब परीक्षा काफी समय से उपलब्ध रही है जिसमें 2019 में आखि़री सलाहकार समिति की सिफारिश पर इंजीनियरिंग काॅलेजों में ओपन बुक एग्ज़ाम की परंपरा रही है।      
  -इक़बाल हिंदुस्तानी
खुली किताब परीक्षा का विचार नया नहीं है। लेकिन फिलहाल सीबीएसई ने यह प्रयोग चुनिदा स्कूलों में पायलट आधार पर करने का निर्णय लिया है। हालांकि यह बोर्ड के एग्ज़ाम में लागू नहीं होगा। दिल्ली यूनिवर्सिटी जेएनयू एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया आईआईटी दिल्ली इंदौर और बाॅम्बे ने भी काफी पहले खुली किताब परीक्षा की शुरूआत कर दी थी। ऐसे ही केरल के उच्च शिक्षा परीक्षा सुधार आयोग ने भी आंतरिक व प्रायोगिक परीक्षाओं के लिये ओपन बुक एग्ज़ाम का सुझाव दिया है। आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि याद करके इम्तहान देने के मुकाबले किताब से देखकर सवालों के जवाब देने से छात्र छात्रायें आसानी से न केवल पास हो जायेंगे बल्कि उनके टाॅप करने यानी शत प्रतिशत नंबर लाने की संभावना भी नकल की तरह बहुत हद तक बढ़ जायेगी जबकि असलियत इसके विपरीत है। खुली किताब परीक्षा का मकसद बच्चो की समझ सीख और बौधिक क्षमता का परीक्षण होता है। आॅल इंडिया मेडिकल साइंस की भुवनेश्वर शाखा के मेडिकल के छात्रों के बीच 2021 में किये गये एक सर्वे मंे पता चला है कि इस तरह की परीक्षा से छात्रों का तनाव काफी हद तक कम हो जाता है। 2020 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस की आॅनलाइन पायलट स्टडी में खुली किताब परीक्षा की व्यवस्था की जांच में पाया गया कि 79 प्रतिशत छात्र पास तो 21 प्रतिशत असफल हुए थे। 
लेकिन इस सिस्टम से लगभग सभी छात्र तनावमुक्त पाये गये। हालांकि 2020 की नई शिक्षा नीति में खुली किताब परीक्षा के बारे कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है लेकिन इतना ज़रूर है कि इसमें एक नई गुणवत्तापरक सक्षम और अधिक सिखाने वाली परीक्षा पर खासा जोर दिया गया है। दरअसल अब तक किताबों कुंजियों और ट्यूशन  में बच्चो को अधिक से अधिक रटाने यानी याद कराने पर फोकस किया जाता रहा है लेकिन जब हम बच्चो को परीक्षा में आये सवालों का जवाब लिखने के लिये किताब में पढ़ने उत्तर खुद तलाशने और विश्लेषण की सुविधा उपलब्ध कराते हैं तो उनका दिमाग याद करने के मुकाबले सोचने समझने और अपनी पहले से प्राप्त जानकारी को लागू करने के लिये तेजी से काम करना शुरू करता है। आज का दौर सृजन चिंतन और सूचना व सहयोग का है। पुरानी परीक्षा प्रणाली में लगातार बढ़ते तनाव के कारण हर साल परीक्षा में असफल होेकर बड़ी संख्या में छात्र छात्रायें आत्महत्या भी करते रहे हैं। इस कारण से भी समाज के जागरूक नागरिक शिक्षक और अभिभावक खुली पुस्तक परीक्षा का स्वागत करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि 2013-14 में जब पहली बार ओपन बुक एग्ज़ाम की शुरूआत हुयी थी तब टीचर और छात्र छात्राओं के माता पिता ही इस सिस्टम का यह कहकर विरोध कर रहे थे कि इससे बच्चे सीखना याद करना और ज्ञान अर्जित करना ही छोड़ देंगे। 
 इस बार यह जानकारी मिल रही है कि सीबीएसई नये सिस्टम को लागू करने से पहले इसकेे पक्ष में मानसिक तैयारी अनुकूल वातावरण और इस व्यवस्था की उपयोगिता लाभ व सकारात्मक प्रभाव का व्यापक प्रचार प्रसार करने की भी तैयारी कर रही है। इसके साथ हमें इस तथ्य पर भी विचार करना होगा कि इस नई व्यवस्था के प्रश्नपत्र तैयार करने के लिये पेपर सैटर को भी नये सिरे से ट्रनिंग देनी होगी। ऐसा ना करने से बिना व्यापक जानकारी के उनके लिये नयी परीक्षा प्रणाली लागू करने को प्रश्नपत्र के नये अंदाज़ में सवाल तैयार करना स्वयं एक बड़ी चुनौती होगी। इसकी वजह यह है कि नई परीक्षा प्रणाली के लिये पूछे जाने वाले सवालों में कोर्स की किताबों के साथ काफी सवाल काल्पनिक पूछे जायेंगे जिसके लिये अभी वर्तमान टीचर्स को कोई विशेष अनुभव नहीं है। खुली किताब इम्तेहान का यह मतलब नहीं है कि आप जो भी सवाल परीक्षा में आये उसको किताब से आराम से देखकर नकल कर दें। इसके लिये छात्र छात्रा को अपना खुद का विवेक प्रतिभा जानकारी और समझदारी का प्रयोग करना होगा। अगर आसान शब्दों में कहें तो खुली पुस्तक परीक्षा अकादमिक से व्यवहारिक ज्ञान की ओर पहला क़दम मानी जा सकती है। अभी तक देखने में यह आया है कि जो विद्यार्थी जितना अधिक रट सकता है वह उतना ही अधिक अंक लाने में सफल हो जाता है। रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि रटने के लिये किसी का योग्य प्रतिभावान और जानकार होना ज़रूरी नहीं होता है। 
 यही वजह है कि अब ओपन बुक एग्ज़ाम के द्वारा इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है कि जो बच्चे अधिक माकर््स नहीं ला पाते वे कम काबिल नहीं हैं। यह अलग बात है कि इस नई परीक्षा प्रणाली से उन टीचर्स और कोचिंग सेंटर का धंधा काफी घाटे में में जा सकता है जो बच्चो को बुनियादी काम की और ज्ञान की व्यवहारिक जानकारी के बजाये केवल अधिक से अधिक अंक लाने की जुगत में केवल किताबी तोता बनाने में लगे रहते हैं। नई परीक्षा प्रणाली से एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि इसके लागू होने के बाद नकल माफिया पर भी कुछ हद तक नकेल कसी जा सकती है क्योंकि अगर कोई पेपर आउट भी होता है तो उसका जवाब मुश्किल होगा।
0 मकतब ए इश्क का दस्तूर निराला देखा,
 उसको छुट्टी ना मिली जिसने सबक याद किया।            
 *नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

Thursday 7 March 2024

देश में कितने गरीब

80 करोड़ लोग 5 किलो अनाज पर तो देश में कितने गरीब हैं ?
0 नीति आयोग ने पहले कहा था कि देश में 11.28 प्रतिशत गरीब हैं लेकिन बाद में उसने दावा किया कि इनकी संख्या 5 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इस अनुमान का आधार नेशनल संैपल सर्वे द्वारा प्रकाशित 2022-23 के हाउसहोल्ड कंज़म्पशन एक्सपेंडीचर सर्वे को बताया जाता है। आयोग के अनुसार शहरों में प्रति माह 6459 रू आय का 39 प्रतिशत भोजन पर  और गांवों में 3773 रू. में से 46 प्रतिशत खाने पर खर्च करने वाले लोग गरीब नहीं हैं। सवाल यह है कि अगर नीति आयोग के आंकड़े सही है तो सरकार 81.35 करोड़ लोगों को गरीब मानकर निशुल्क अनाज क्यों दे रही है? क्या मनरेगा में रजिस्टर्ड 15.4 करोड़ लोग और उज्जवला योजना में गैस पाये जो लोग एक साल में केवल 3.7 सिलेंडर ही खरीद पा रहे हैं वे अमीर हैं?        
    *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
 देश में गरीबों की वास्तविक संख्या जानने से पहले यह देखा जाये कि हमारे माननीय सांसदों की आर्थिक हालत क्या है तो पता चलता है कि संसद पर एक तरह से पूंजीपतियों या उनके प्रतिनिधियों का अघोषित अधिपत्य स्थापित होने लगा है। एडीआर यानी एसोसियेशन आॅफ़ डेमोक्रेटिक रिफाॅम्र्स ने 2023 में एक सर्वे कर बताया था कि हमारे सांसदों की औसत सम्पत्ति 38.33 करोड़ रूपये है। लोकसभा और राज्यसभा के कुल सांसदों में से 7 प्रतिशत अरबपति हैं। उधर देश के किसानों की आय औसत भारतीय से भी कम है। विडंबना यह है कि 40 प्रतिशत एमपी पर क्रिमनल केस चल रहे हैं। इनमें से जिन 25 प्रतिशत सांसदों पर बेहद संगीन अपराधिक मामले चल रहे हैं वे और भी अधिक अमीर हैं। स्वच्छ छवि वाले एमपी की संपत्ति 30 करोड़ तो अपराधिक छवि वाले एमपी की संपत्ति 50 करोड़ से अधिक है। सरकार के आयुष्मान भारत के द्वारा निशुल्क इलाज के दावों के बावजूद एनएसएसओ की रिपोर्ट बताती है कि शहरी इलाकों में 5.91 और गांवों में 7.13 प्रतिशत खर्च दवाओं पर हो रहा है। ऐसे ही शहरी आबादी जहां ईंधन पर अपनी आय का 6.26 तो गावों की आबादी 6.66 प्रतिशत खर्च करती है। 2004 से 2012 के दौरान हमारी विकास दर आज़ादी के बाद की सबसे अधिक यानी 8 प्रतिशत थी जिसमें 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गये थे। 
पहले गरीबी से बाहर आने का पैमाना लोेगों की व्यक्तिगत खपत को माना जाता था लेकिन पिछले दस साल से यूएनडीपी ने इस पैमाने को बदल दिया है। भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के गरीबी मापने के 10 पैमानों में दो अपनी तरफ से जोड़ दिये हैं। इनमें एक तो स्टैंडर्ड आॅफ लिविंग में सुधार मानते हुए परिवार में बैंक एकाउंट और महिला की डिलीवरी अस्पताल या नर्सिंग होम में होना माना गया है। ज़ाहिर है कि पिछले कुछ सालों में पीएम जनधन योजना के तहत 40 करोड़ से अधिक लोगों के खाते बैंकों में खुले हैं। इसके साथ जागरूकता बढ़ने से 80 प्रतिशत महिलायें बच्चो को जन्म देने के समय चिकित्सा संस्थानों में भर्ती होने लगी हैं। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रहमण्यम ने 17 जुलाई 2023 को बताया था कि 2019-21 तक देश की 14.96 प्रतिशत आबादी गरीब थी यानी पांच साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गये। हैरत की बात यह रही कि इसके 6 माह बाद ही नीति आयोग के एक चर्चा पत्र जारी कर दावा किया कि 2022-23 तक देश में गरीबों की तादाद घटकर 11.28 प्रतिशत ही रह गयी है। आयोग ने इस तरह पिछले 9 साल में 24.82 करोड़ लोगों के निर्धनता से मुक्त होने का दावा कर दिया। 
इसके बाद फरवरी 2024 में आयोग ने देश में 5 प्रतिशत आबादी ही बीपीएल रह जाने का अनोखा दावा कर एक तरह से एक माह में ही 8 करोड़ गरीब कम होने का चमत्कार वाला एलान कर दिया। गरीबी कम होने का सीधा आधार देश की जीडीपी बढ़ना भी माना जाता है। लेकिन अगर हम कोविड लाॅकडाउन नोटबंदी और जीएसटी का असर अर्थव्यवस्था पर देखें तो करोड़ों लोगों की असंगठित क्षेत्र में नौकरियां गयीं हैं। इसके बाद गांव के वे लोग या तो कृषि की ओर लौटे या फिर मनरेगा में काम करके अपने परिवार को जैसे तैसे जीवन यापन के लिये स्वरोज़गार की तरफ रूख़ किया। इस काम के लिये उन्होंने अपने परिवार के दूसरे सदस्यों को भी अपने साथ जोड़ा जिसका आंकड़ा सरकार ने इस्तेमाल करते हुए उसकी नौकरी और उसकी भारी भरकम सेलरी को भाव न देते हुए उसके पूरे परिवार की पहले से कम आय के बावजूद रोज़गार की बढ़ी हुयी संख्या के आंकड़े जारी कर दिये। यही वजह है कि घरेलू बचत दर तेजी से गिरी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन इस तरह के परिवार के सदस्यों के काम को जिसमें उनको कोई वेतन नहीं मिलता रोज़गार नहीं मानती है। यह भी एक तथ्य है कि जीडीपी या अर्थव्यवस्था का साइज़ बढ़ने से ही प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ती क्योंकि अडानी अंबानी और आम आदमी की कुल आय जोड़कर उसको देश की कुल आबादी से भाग देकर औसत आय निकाली जाती है। 
जिससे वास्तविक स्थिति और लोगों की असली आमदनी सामने नहीं आती है। सर्वे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि लोगों की आय और खर्च लगभग उतना ही है जितने अनुपात में पहले था। महंगाई और बेरोज़गारी की बढ़ती दर को देखा जाये तो बढ़ी आय और घरों में होने वाले नये खर्च का समीकरण मेल नहीं खाता है। आर्थिक विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि चूंकि यह सर्वे 11 साल बाद आया है जिससे इसके आंकड़े काफी सीमा तक बढ़े हुए लगते हैं लेकिन उस अनुपात में नहीं बढ़े हैं जिस हिसाब से किसी बढ़ती हुयी प्रगतिशील और सकारात्मक समावेशी इकाॅनोमी में यह प्राकृतिक रूप से स्वयं ही बढ़ने चाहिये। 2017-18 में ऐसी ही हकीकत का आईना दिखाती सर्वे रिपोर्ट को सरकार ने मानने से मना कर दिया था। इसका मतलब यह माना जा सकता है कि सरकार गरीबी को नापने में भी वही खेल कर रही है जो वह अन्य क्षेत्रा में आंकड़ों की बाज़ीगरी अकसर करती रही है। दुष्यंत का शेर याद आ रहा है-
0 तेरा निज़ाम है सिल दे ज़बान शायर की,
  यह एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिये।।
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार ैके संपादक हैं।*

Saturday 2 March 2024

पाक सेना के पास एक देश...

*सब देशों के पास एक सेना है पाक में सेना के पास एक देश है!* 
0 कहते हैं कि पाकिस्तान को तीन ए यानी अल्लाह अमेरिका और आर्मी चलाते हंै। कुछ समय पहले वहां के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना का काम देश की रक्षा करना है वह धंधा क्यों करती है? आंकड़ेे बताते हैं कि पाक आर्मी की प्रोपर्टी भारत के अडानी अंबानी से भी अधिक है। सवाल यह है कि सेना को तो केवल वेतन मिलता है तो यह अकूत धन सम्पत्ति उद्योग ध्ंाध्ेा उसके पास कहां से आये? जवाब है कि पाक बनने के 77 साल में से लगभग 50 साल सेना का राज रहा है। उसके आज तक बने 29 प्रधानमंत्रियों में से सेना ने किसी का भी कार्यकाल पूरा नहीं होने दिया। उसकी कुल खेती लायक ज़मीन में से तीन चैथाई पर लगभग ढाई सौ सेना अफसरों पूर्व सामंतों और नवाबों जैसे बड़े लोगों का कब्ज़ा है।          
  -इक़बाल हिंदुस्तानी
1947 में जब पाक बना तो उसको अखंड भारत की सेना का 33 प्रतिशत जमा पंूजी का 400 करोड़ में से 75 करोड़ और लगभग एक हज़ार इंडस्ट्री में से 34 उद्योग दिया जाना तय हुआ था। योजना के अनुसार उसको बाकी सब चीज़ों के अलावा राजस्व में से 20 करोड़ देकर शेष 55 करोड़ किश्तों में दिया जाना था। लेकिन उसकी सेना ने धोखा देकर कबायली हमले के नाम पर जब कश्मीर में घुसपैठ कर दी तो भारत सरकार ने बाकी रकम देने से मना कर दिया। बाद में गांधी जी ने पीएम नेहरू को वादे के अनुसार पाक को बाकी रकम देने को मजबूर कर दिया। पाक ने उस रकम से हथियार खरीदे और भारत ने प्रोडक्शन पर फोकस करना शुरू किया। 1964 मंे पाक फौज ने पहला चैरिटेबिल ट्रस्ट बनाकर देश की रक्षा की अपनी बुनियादी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़कर जीवन रक्षक ज़रूरी घरेलू सामान बेचना शुरू कर दिया। भारत के साथ 1971 की जंग के बाद उसके भाव और भी बढ़ गये। पाक सेना ने देश की रक्षा के नाम पर देश का ख़ज़ाना जमकर हड़पा। सेना ने अपना कारोबार टैक्स मुक्त कर लिया। इसके बाद जब जब सत्ता में सेना रही उसने ऐसे कानून खुद बनाये या अपनी कठपुतली सरकारों से बनवाये जिससे वह जीवन के हर क्षेत्र में यानी गैस पेट्रोल डीज़ल ज़मीन मकान जे़वर तेल आटा नमक मंझन सीमेंट ईंट साबुन मीट सोलर अस्पताल मेडिसिन फल सब्जी खाद और घरेलू सामान बेचने से लेकर पाक का अंतरिक्ष का काम भी सेना ने खुद ठेके पर लेकर सब में अपनी मोनोपोली बना ली है। 
इन सब कामों में सेना 20 से 30 प्रतिशत का भारी मुनाफा वसूल रही है। रिटायर होने के बाद सेना के मेजर जनरल से लेकर एक मामूली सिपाही तक को पेंशन के अलावा इस खुली लूट में तय हिस्सा जीवनभर मिलता है। पाक के कुल बजट 9500 बिलियन डालर में अकेले सेना का हिस्सा 1500 बिलियन डालर का है। 2022-23 में सेना के 100 बडे़ अधिकारियों का बिजनेस नेटवर्क 3500 करोड़ डाॅलर का था। सेना का कुल कारोबार एक लाख करोड़ डालर से अधिक का है। हालत यह है कि पिछले पाक जनरल कमर जावेद बाजवा की पत्नी की सम्पत्ति 2016 में शून्य से 2022 में 220 करोड़ हो गयी। बाजवा परिवार का कुल कारोबार 1270 करोड़ का है। आज पाक सेना 50 से अधिक हाउसिंग प्रोजेक्ट लाखों एकड़ ज़मीन निशुल्क कब्ज़ाकर चला रही है। यही वजह है कि पाक सेना भारत से रिश्ते अच्छे नहीं होने देना चाहती। जब भी कोई पाक सरकार भारत से मेल मिलाप की बात शुरू करती है। पाक सेना कभी मुंबई हमला कभी कारगिल हमला तो कभी पठानकोट पर धावा बोलकर खेल बिगाड़ देती है। यहां तक कि वह भारत के करीब आने वाली पाक सरकारों का तख्ता पलट तक कर देती है। रेटिंग एजेंसी मूडीज़ का कहना है कि पाक की कर्ज़ चुकाने की क्षमता आज दुनिया के किसी भी आज़ाद और संप्रभु देश के मुकाबले सबसे कमज़ोर है। उसके कर्ज़ का ब्याज भुगतान ही कुल आने वाले राजस्व का आधा है। 
2017 का विदेशी कर्ज़ 66 से बढ़कर 100 बिलियन हो चुका है। डाॅलर की कीमत 267 रूपये हो चुकी है जिससे पाक का कर्ज़ बिना और लिये ही बढ़ता जा रहा है। साथ ही इससे महंगाई को भी पर लग गये हैं। जो 40 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 3.67 अरब डालर बचा है। आतंकवाद उग्रवाद चरमपंथ कट्टरपंथ करप्शन सेना का बार बार चुनी हुयी सरकार का तख़्ता पलट या कठपुतली सरकार आर्थिक गैर बराबरी विदेश में काम करने वाले पाकिस्तानियों पर अर्थव्यवस्था का टिका होना आज़ादी के दशकों बाद तक अपना संविधान ना बना पाना लोकतंत्र मज़बूत ना होना सेना पर बजट का बड़ा हिस्सा खर्च करना अमेरिका और खाड़ी के देशों से मिलने वाली बड़ी वित्तीय मदद का बड़ा हिस्सा तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को पैदा कर पालना पोसना और भारत की तरह ज़मींदारी उन्मूलन ना कर देश में केवल बेहद गरीब और बेहद अमीर दो ही वर्ग आज तक बने रहना भी पाक की तबाही का कारण बना है। 
ऐशियन लाइट की रिपोर्ट बताती है कि पाक ने जेहाद के नाम पर अमेरिका से मोटी रकम हथियार और राजनीतिक मदद लेकर पहले 1979 में रूस को अफगानिस्तान से निकालने कश्मीर को आज़ाद कराने के दावे को लेकर और बाद में 2001 में ओसामा बिन लादेन के अमेरिका पर हवाई हमले के बाद अलकायदा को ख़त्म करने को लेकर लोहे को लोहे से काटने के लिये अपनी सरज़मीं पर दहशतगर्द पैदा करने का शातिर धंधा अमेरिकी से भारी रकम वसूल करके किया गया। अब जब ये अभियान खत्म हो चुका है तो पाक को अमेरिकी और अन्य मुल्कों की मदद मिलनी तो बंद हो ही गयी है। उसको 400 मिलियन डालर से मदद घटते घटते 55 मिलियन डालर रह गयी। साथ ही उसने जिस तालिबान के जिन्न को बोतल से निकाला था। वह आज अफगानिस्तान में अमेरिकी मिशन पूरा होने पर पाकिस्तान के जी का जंजाल बन गया है। ऐसा लगता है कि आज पाक को आर्मी ही चला रही है क्योंकि यह उसकी रोटी रोज़ी का सवाल बन चुका है। अल्लाह अमेरिका तो उसको उसके हाल पर छोड़ चुके हैं। लेकिन उसका नया दोस्त चीन उसको कर्ज के जाल में फंसाकर उसका क्या हश्र करने जा रहा है यह उसकी सरकार तो क्या उसकी लालची खुदगर्ज और जालिम सेना को भी एहसास नहीं है। अल्लामा इक़बाल का यह शेर आज पाक सेना पर फिट बैठता है-
0 वतन की फ़िक्र नादां मुसीबत आने वाली है,
   तेरी बरबादियों के मश्वरे हैं आसमानों में।।
 *नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*