Wednesday 20 March 2024

खुली किताब परीक्षा

*खुली किताब एग्ज़ाम से पहले स्टूडेंट्स का दिमाग खोलना होगा!* 
0 सेंटरल बोर्ड आॅफ सेकंड्री एजुकेशन यानी सीबीएसई ने हाईस्कूल और इंटर के पहले साल में एक बार फिर से ओपन बुक एग्ज़ाम की योजना बनाई है। वैसे तो यह प्लान विद्यार्थियों के लिये पुराना ही है। 2014 में सबसे पहले यह व्यवस्था लागू की गयी थी। तब हिंदी अंग्रेज़ी गणित विज्ञान और सोशल साइंस कक्षा 9 और अर्थशास्त्र जीव विज्ञान व भूगोल कक्षा 11 के लिये यह सुविधा दी गयी थी। स्टूडेंट्स को चार माह पहले दिये गये स्टडी मैटीरियल से सहायता लेने की छूट दी गयी थी। लेकिन बिना कोई ठोस कारण बताये इस व्यवस्था को 2017 में बंद कर दिया गया । उच्च शिक्षा में खुली किताब परीक्षा काफी समय से उपलब्ध रही है जिसमें 2019 में आखि़री सलाहकार समिति की सिफारिश पर इंजीनियरिंग काॅलेजों में ओपन बुक एग्ज़ाम की परंपरा रही है।      
  -इक़बाल हिंदुस्तानी
खुली किताब परीक्षा का विचार नया नहीं है। लेकिन फिलहाल सीबीएसई ने यह प्रयोग चुनिदा स्कूलों में पायलट आधार पर करने का निर्णय लिया है। हालांकि यह बोर्ड के एग्ज़ाम में लागू नहीं होगा। दिल्ली यूनिवर्सिटी जेएनयू एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया आईआईटी दिल्ली इंदौर और बाॅम्बे ने भी काफी पहले खुली किताब परीक्षा की शुरूआत कर दी थी। ऐसे ही केरल के उच्च शिक्षा परीक्षा सुधार आयोग ने भी आंतरिक व प्रायोगिक परीक्षाओं के लिये ओपन बुक एग्ज़ाम का सुझाव दिया है। आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि याद करके इम्तहान देने के मुकाबले किताब से देखकर सवालों के जवाब देने से छात्र छात्रायें आसानी से न केवल पास हो जायेंगे बल्कि उनके टाॅप करने यानी शत प्रतिशत नंबर लाने की संभावना भी नकल की तरह बहुत हद तक बढ़ जायेगी जबकि असलियत इसके विपरीत है। खुली किताब परीक्षा का मकसद बच्चो की समझ सीख और बौधिक क्षमता का परीक्षण होता है। आॅल इंडिया मेडिकल साइंस की भुवनेश्वर शाखा के मेडिकल के छात्रों के बीच 2021 में किये गये एक सर्वे मंे पता चला है कि इस तरह की परीक्षा से छात्रों का तनाव काफी हद तक कम हो जाता है। 2020 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस की आॅनलाइन पायलट स्टडी में खुली किताब परीक्षा की व्यवस्था की जांच में पाया गया कि 79 प्रतिशत छात्र पास तो 21 प्रतिशत असफल हुए थे। 
लेकिन इस सिस्टम से लगभग सभी छात्र तनावमुक्त पाये गये। हालांकि 2020 की नई शिक्षा नीति में खुली किताब परीक्षा के बारे कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है लेकिन इतना ज़रूर है कि इसमें एक नई गुणवत्तापरक सक्षम और अधिक सिखाने वाली परीक्षा पर खासा जोर दिया गया है। दरअसल अब तक किताबों कुंजियों और ट्यूशन  में बच्चो को अधिक से अधिक रटाने यानी याद कराने पर फोकस किया जाता रहा है लेकिन जब हम बच्चो को परीक्षा में आये सवालों का जवाब लिखने के लिये किताब में पढ़ने उत्तर खुद तलाशने और विश्लेषण की सुविधा उपलब्ध कराते हैं तो उनका दिमाग याद करने के मुकाबले सोचने समझने और अपनी पहले से प्राप्त जानकारी को लागू करने के लिये तेजी से काम करना शुरू करता है। आज का दौर सृजन चिंतन और सूचना व सहयोग का है। पुरानी परीक्षा प्रणाली में लगातार बढ़ते तनाव के कारण हर साल परीक्षा में असफल होेकर बड़ी संख्या में छात्र छात्रायें आत्महत्या भी करते रहे हैं। इस कारण से भी समाज के जागरूक नागरिक शिक्षक और अभिभावक खुली पुस्तक परीक्षा का स्वागत करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि 2013-14 में जब पहली बार ओपन बुक एग्ज़ाम की शुरूआत हुयी थी तब टीचर और छात्र छात्राओं के माता पिता ही इस सिस्टम का यह कहकर विरोध कर रहे थे कि इससे बच्चे सीखना याद करना और ज्ञान अर्जित करना ही छोड़ देंगे। 
 इस बार यह जानकारी मिल रही है कि सीबीएसई नये सिस्टम को लागू करने से पहले इसकेे पक्ष में मानसिक तैयारी अनुकूल वातावरण और इस व्यवस्था की उपयोगिता लाभ व सकारात्मक प्रभाव का व्यापक प्रचार प्रसार करने की भी तैयारी कर रही है। इसके साथ हमें इस तथ्य पर भी विचार करना होगा कि इस नई व्यवस्था के प्रश्नपत्र तैयार करने के लिये पेपर सैटर को भी नये सिरे से ट्रनिंग देनी होगी। ऐसा ना करने से बिना व्यापक जानकारी के उनके लिये नयी परीक्षा प्रणाली लागू करने को प्रश्नपत्र के नये अंदाज़ में सवाल तैयार करना स्वयं एक बड़ी चुनौती होगी। इसकी वजह यह है कि नई परीक्षा प्रणाली के लिये पूछे जाने वाले सवालों में कोर्स की किताबों के साथ काफी सवाल काल्पनिक पूछे जायेंगे जिसके लिये अभी वर्तमान टीचर्स को कोई विशेष अनुभव नहीं है। खुली किताब इम्तेहान का यह मतलब नहीं है कि आप जो भी सवाल परीक्षा में आये उसको किताब से आराम से देखकर नकल कर दें। इसके लिये छात्र छात्रा को अपना खुद का विवेक प्रतिभा जानकारी और समझदारी का प्रयोग करना होगा। अगर आसान शब्दों में कहें तो खुली पुस्तक परीक्षा अकादमिक से व्यवहारिक ज्ञान की ओर पहला क़दम मानी जा सकती है। अभी तक देखने में यह आया है कि जो विद्यार्थी जितना अधिक रट सकता है वह उतना ही अधिक अंक लाने में सफल हो जाता है। रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि रटने के लिये किसी का योग्य प्रतिभावान और जानकार होना ज़रूरी नहीं होता है। 
 यही वजह है कि अब ओपन बुक एग्ज़ाम के द्वारा इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है कि जो बच्चे अधिक माकर््स नहीं ला पाते वे कम काबिल नहीं हैं। यह अलग बात है कि इस नई परीक्षा प्रणाली से उन टीचर्स और कोचिंग सेंटर का धंधा काफी घाटे में में जा सकता है जो बच्चो को बुनियादी काम की और ज्ञान की व्यवहारिक जानकारी के बजाये केवल अधिक से अधिक अंक लाने की जुगत में केवल किताबी तोता बनाने में लगे रहते हैं। नई परीक्षा प्रणाली से एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि इसके लागू होने के बाद नकल माफिया पर भी कुछ हद तक नकेल कसी जा सकती है क्योंकि अगर कोई पेपर आउट भी होता है तो उसका जवाब मुश्किल होगा।
0 मकतब ए इश्क का दस्तूर निराला देखा,
 उसको छुट्टी ना मिली जिसने सबक याद किया।            
 *नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

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