Tuesday 27 June 2017

नरेश जी का 40वां

*नरेश जी के लिए  क़ुरान पाक का पाठ!*
Nbt blog
*तीन दशक से अधिक के मेरे पत्रकारिता जीवन में पहली बार यह ख़बर मिली है कि किसी मुस्लिम ने अपने प्रिय एक ग़ैर मुस्लिम के लिये कु़रान का पाठ कराकर बाक़ायदा उनका चालीसवां मुस्लिम रीति रिवाज से मनाया है।*

साम्प्रदायिकता और जातिवाद की सियासत के ज़हरीले दौर में क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि यूपी के बिजनौर ज़िले के नजीबाबाद नगर में पूर्व चेयरमैन और समाजसेवी स्व. श्री नरेशचंद अग्रवाल का एक मुस्लिम परिवार ने बाक़ायदा मुस्लिम रीति रिवाज से 40वां ठीक उसी तरह से मनाया जैसा अपने परिवार के मुखिया का मनाया था। जी हां यह बिल्कुल सच है। इरशाद अहमद ‘इरशाद’ भी यहां के उन गिने चुने समाजसेवियों में रहे हैं। जिनका नाम शहर का हर आदमी सम्मान के साथ लेता है। इरशाद साहब का इंतक़ाल लगभग चार महीने पहले हो गया था। उनका 40वां उनके परिवार ने धार्मिक तौर तरीकों से मनाया था। उनसे उम्र में लगभग दो महीने बड़े पूर्व चेयरमैन स्व. नरेशचंद अग्रवाल मरहूम इरशाद साहब के पक्के दोस्तों मंे शामिल थे।

इरशाद साहब नगरपालिका के उसी बोर्ड मंे वाइस चेयरमैन रहे थे। जिसमें नरेशचंद जी चेयरमैन चुने गये थे। बीती 11 मई को श्री नरेशचंद जी का भी दुखद निधन हो गया। स्व. अग्रवाल जी और मरहूम इरशाद साहब के परिवार दोनों को ही अपना सरपरस्त और बुज़ुर्ग मानते थे। दोनों की ही बात दोनों परिवार का हर सदस्य सर माथे पर लेता रहा है। इरशाद साहब के परिवार ने पहले इरशाद साहब का 40 वां किया। इसके बाद जब 20 जून को नरेशचंद जी के निधन को 40 दिन पूरे हुए तो ठीक उसी तरह से नरेशचंद जी के 40वंे की रस्म पूरी की जैसे मरहूम इरशाद साहब के लिये आयोजित की थी।

इरशाद साहब के बड़े पुत्र और मिलनसार हंसमुख युवा समाजसेवी ज़ीशान सैफ़ी ने स्व. नरेशचंद अग्रवाल जी के लिये भी 40वें पर बाक़ायदा मदरसे के बच्चो को अपने घर बुलाया और कु़रानख़्वानी कराई। इस अवसर पर कुरान पाक के 30 सिपारों का पाठ पूरा होने पर नरेशचंद जी की आत्मा की शांति और उनको जन्नत में जगह दिलाने के लिये वहां मदरसे के बच्चो के साथ ही मौजूद मुस्लिम नागरिकों और मरहूम इरशाद साहब के परिवार ने दुआ मांगी। इसी दिन शाम को ज़ीशान सैफ़ी ने स्व. नरेशचंद जी को याद करने और श्रध्दा सुमन अर्पित करने को नगर के सैकड़ों गणमान्य लोगों की एक शोक सभा आयोजित की।

इस प्रोग्राम में नरेशचंद जी का एक चित्र बतौर यादगार एक टेबिल पर न केवल रखा गया। बल्कि उनके परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य और चंद्रा कत्था इंडस्ट्रीज़ के एमडी श्री राकेश कुमार अग्रवाल से उस तस्वीर पर माल्यार्पण भी कराया गया। इसके बाद वहां रखे फूल भी कई वक्ताओं ने अपने संबोधन से पहले स्व. नरेशचंद के चित्र पर अर्पित किये। ये बातें हम यहां इसलिये बयान कर रहे हैं कि कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम किसी गैर मुस्लिम के लिये यह सब करना ठीक नहीं मानते। साथ ही तस्वीर को लेकर मना किया जाता है। उस चित्र पर फूल माला पहनाना और फूल चढ़ाना तो पहली बार ही किसी मुस्लिम परिवार द्वारा आयोजित प्रोग्राम में हुआ है।

हालांकि रमज़ान का पवित्र माह चल रहा है। इसलिये प्रोग्राम समाप्त होने पर सभी के लिये भोजन के साथ मुस्लिम रोज़ेदारों के लिये अफ़तार का भी आयोजन किया गया था। जब सब लोगों ने मिलजुलकर अफ़तार और खाना साथ साथ खाया तो नरेशचंद जी की आत्मा प्रसन्न ज़रूर हुयी होगी क्योंकि उनका जीवन नगर और आसपास की जनता को सदा यह समझाने में ही बीता है कि आपस में मेल मिलाप से प्यार मुहब्बत और भाईचारे से रहो। साथ ही गरीब को तलाश करो और उसकी बिना ढिंढोरा पीटे मदद करो। इस मौके़ पर सभी वर्गों के वक्ताओं ने कहा कि नरेशचंद जी आज के दौर में भी ऐसे विरले इंसान थे। जिनको हिंदू मुस्लिम यानी नगर के हर नागरिक का विश्वास प्राप्त था।

वो सबकी सेवा करते थे। सब उनका सम्मान करते रहे हैं। इस ऐतिहासिक प्रोग्राम में मौजूद सभी नागरिकों का कहना था कि नरेशचंद जी को सच्ची श्रध्दांजलि तो यही होगी कि उनके दिखाये रास्ते पर हम सब चलें। नरेशचंद जी न केवल जीवनभर गरीबों की बिना किसी स्वार्थ के मदद करते रहे। बल्कि शिक्षा साहित्य एकता भाईचारा आपसी सौहाद और नगर कल्याण के भी अनेक काम बिना प्रचार किये करते थे। इस मौके पर सबसे खास और अहम बात कई बड़े सम्मान और पुरस्कार प्राप्त राष्ट्रीय स्तर के कवि,साहू जैन डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर और समालोचन वेब पत्रिका के संपादक डा. अरूण देव ने कही। उनका कहना था कि आज नगर को ही नहीं पूरे मुल्क को हज़ारों नरेशचंद जी की ज़रूरत है।

उन्होंने सियासत के नाम पर हिंदू मुस्लिम के बीच पैदा की जा रही दरार का हल नरेशचंद जी जैसे एकता के मसीहा को बताया। उनका दो टूक कहना था कि दुनिया में नफ़रत हिंसा और अलगाव के साथ कभी इंसान सहज भाव से नहीं जी सकता। बल्कि प्रेम भाईचारे इंसानियत सौहार्द एकता आपसी तालमेल सहयोग और मिलनसारी से ही कोई मुल्क तरक्की कर सकता है। डा. देव ने बड़ी साफगोई से उन अलगाववादी और समाज के दुश्मन तत्वों को चेतावनी दी कि एक दिन आयेगा जब पूरा देश ही नहीं बल्कि दुनिया स्व. नरेशचंद जी जैसे चिंतकों और संत प्रवृत्ति के लोगों के दर्शन और विचार को अपनाने पर मजबूर होगी। उनका कहना था कि नरेशचंद जी ने जो मशाल जलाई है। उसको हम जैसे लोग अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी बुझने नहीं देेंगे।

*ग़मों की आंच पर आंसू उबालकर देखो,*

*बनेंगे रंग जो किसी पर डालकर देखो।*

*तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर कम होगी,*

*किसी के पांव का कांटा निकालकर देखो।*

Tuesday 20 June 2017

मानव क्रूरता और बढ़ेगी?

पशु क्रूरता रुकेगी, मानव क्रूरता बढ़ेगी?

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में मोदी सरकार द्वारा आस्था के नाम पर किये गये संशोधन से जानवरों के साथ क्रूरता कम हो या ना हो लेकिन मानव कू्ररता बढ़ने की आशंका लगातार बढ़ रही है। इससे किसानों का कारोबार प्रभावित होना तय माना जा रहा है।

हिंदुओं के एक वर्ग के लिये गाय पूजनीय रही है। हिंदुओं का ही दूसरा वर्ग भले ही तादाद में कम हो लेकिन वह ऐसा नहीं मानता। इसके साथ ही पूर्वोत्तर और दक्षिण के कई राज्य गाय का मांस आमतौर पर खाते हैं। कई राज्यों ने पहले से और कुछ ने भाजपा की सरकार बनने के बाद गाय काटने और उसके मांस के कारोबार पर रोक लगा दी है। हालांकि आस्था के नाम पर उन वर्गों पर कोई नियम कानून नहीं थोपा जाना चाहिये जो ऐसा नहीं मानते हैं। हमारा मानना है कि खुद उन वर्गों को यह पहल करनी चाहिये। जिससे दूसरे लोगों की भावना का सम्मान किया जा सके। लेकिन केंद्र मंे जब से मोदी सरकार बनी है। वह लगातार संघ के दबाव में ऐसे एक के बाद एक फैसले कर रही है।

जिनसे इस तरह की आशंका पैदा हो रही है कि ये सब एक सोची समझी रण्नीति के हिसाब से वोटों की राजनीति का हिस्सा है। जब से केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता कानून में संशोधन कर यह प्रावधन किया है कि पशु हाट में कोई भी गाय भैंस काटने के लिये नहीें बेची जायेगी। तब से पूरे देश में इस पर चर्चा चल रही है। मामला कोर्ट में भी पहंुच गया है। कोर्ट ने अभी कोई फैसला हालांकि नहीं दिया है। लेकिन यह साफ कर दिया है कि किसी भी सरकार को लोगों को यह बताने का अधिकार नहीं है कि वे क्या खायें और क्या नहीं। यह बात लोगों की समझ से बाहर है कि गाय का बचाव करते करते अचानक सरकार भैंस के पक्ष में भी कैसे खड़ी हो गयी?
जहां तक गाय का सवाल है। वह भी हिंदू वोटबैंक की राजनीति के लिये भाजपा खुलकर साम्प्रदायिक कार्ड खेल रही है। लेकिन जहां तक भैंस पर भी गाय वाले नियम कानून लागू करने की बात है तो यह भाजपा का मुस्लिम विरोधी एजेंडा भी हो सकता है। हालांकि देश में 70 प्रतिशत से अधिक लोग मांसाहारी है। लेकिन उनमें अल्पसंख्यक खासतौर पर मुसलमान और ईसाई पूरी तरह मीट खाने वाले वर्गों में गिने जाते हैं। भैंस के मीट का कारोबार भी अधिकांश मुसलमान ही करते हैं। हालांकि मशीनी स्लॉटर हाउसों को इससे छूट दी गयी है। लेकिन वे अपने यहां तैयार अधिकांश मीट विदेश निर्यात करते हैं। भारत में जो मुसलमान भैंस का मीट खाते हैं।

इससे उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी होने लगी है। इसके साथ ही ईद ए कुर्बां पर वो बकरों के साथ ही भैंस भी बड़ी तादाद में काटते रहे हैं। ऐसा लगता है इस बार बकरा ईद पर इस ईद के नाम के अनुसार उनको केवल बकरे काटकर ही काम चलाना होगा। उधर इससे चमड़े का कारोबार भी प्रभावित होने जा रहा है। चमड़े के काम से जुड़े दलित समाज के लोग भी इस फैसले को अपनी रोज़ी रोटी पर हमला मानकर चल रहे हैं। इस नये कानून का और विस्तार देखें तो जो किसान पशु पालन और डेयरी का कारोबार करते थे। उनके हालात भी बिगड़ने के आसार बन रहे हैं। कोई भी किसान गाय भैंस तब तक ही पालना पसंद करता है। जब तक कि वह दूध देती रहे।

लेकिन सरकार ने दूध से भागने वाली गाय भैंस को काटने पर भी रोक लगा दी है। सवाल यह है कि दूध न देने वाली भैंस कौन पशु पालक किसान या डेयरी वाला अपने यहां रखकर चारा खिलायेगा? साथ ही उसे बेचकर जो 30 से 40 हज़ार रक़म मिलने वाली थी वह उसे कौन देगा? इससे आगे दूध की भी कमी हो सकती है ? जानवर पालने वाले किसानों का कहना है कि सरकार ने इतनी काग़जी़ कार्यवाही ज़रूरी कर दी है कि इसके अनुसार जानवरों को खरीदना बेचना बड़ा पेचीदा काम हो गया है। पहले पंजाब यूपी दिल्ली बिहार गुजरात राजस्थान के साथ दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों के व्यापारी अच्छी नस्ल की गाय भैंस मंुह मांगे दाम पर ख़रीद लेते थे।

लेकिन अब दूध से भागने पर जानवर को काटने को बेचने के लिये कानूनन मनाही होने की वजह से उससे मिलने वाली रक़म मूल खरीद की रकम में से घट गयी है। इससे गाय भैंस की कीमतों में एक झटके में भारी गिरावट आ गयी है। इसके बावजूद इन जानवरों के ग्राहक मौजूद नहीं है। कथित गौरक्षकों के नाम पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा खासतौर पर गाय के बहाने मुसलमानों के साथ आये दिन की जा रही लूट मारपीट और गुंडागर्दी से मुस्लिम व्यापारी ने तो लगभग पूरी तरह गाय से दूरी बना ली है। पिछले दिनों तमिलनाडु के हिंदू अधिकारियों तक को गौरक्षक ने बाड़मेर मेें गाय ले जाते देख सारे कागज़ दिखाने के बावजूद जमकर पीटा और उस ट्रक में आग लगाने का प्रयास किया जिसमें गाय और बछड़े मौजूद थे। किसी ने ठीक कहा है कि आप दूसरों के घरों में आग लगायेंगे तो आग एक दिन आपके घर में भी लगेगी।

Monday 19 June 2017

बकायादार

*बड़े बक़ायादार अच्छे, छोटे बुरे?*

 मोदी सरकार बनते ही यह आरोप लगा था कि यह सूटबूट वालों की सरकार है। इसको कारपोरेट की सरकार भी कहा जाता है। अब बड़े बक़ायादारोें और छोटे बक़ायादारों के मामले में सरकारी पक्षपात से यह आरोप एक बार फिर लग रहा है।*
जो सरकारें दो चार हज़ार की वसूली के लिये किसानों की ज़मीनें नीलाम कर देती हैं। या फिर बैंको का बक़ाया न चुकाने पर आम आदमी व किसानों को पकड़कर तहसील की हवालात में 15 दिन के लिये बंद कर देती हैं। वही सरकार बड़े बक़ायादारों का नाम तक सार्वजनिक करने को तैयार नहीं हैं। यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि मोदी सरकार भी पुरानी सरकारों के उन ही तौर तरीकों को अपना रही है। जिसमें आम आदमी और बड़े आदमी के साथ दो अलग अलग पक्षपातपूर्ण पैमाने अपनाये जाते हैं। सत्ता में आने से पहले मोदी और भाजपा इन मुद्दों को बड़े ज़ोरशोर से उठाकर कांग्रेस और अन्य सेकुलर दलों पर धन्नासेठों के गुलाम होने का खुलेआम आरोप लगाते थे।

लेकिन अब हालत यह है कि जिस तरह अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवादियों को अच्छे तालिबान और बुरे तालिबान जैसे दो वर्गों में बांटकर अलग अलग बर्ताव किया जाता है। वैसे ही हमारी सरकारें छोटे और बड़े बक़ायादारों के साथ दो पैमाने अपना रही है। हाल ही में आरबीआई ने 12 ऐसे बड़े बक़ायादारों की लिस्ट तैयार की है। जिनपर लगभग 175000 करोड़ का बैंकों का बकाया है। यह बैंकोें के कुल एनपीए का एक चौथाई है। बैंको का दावा है कि गोपनीयता की शर्तों की वजह से इन बकायादारों के नाम नहीं बताये जा सकते। पहले इन एक दर्जन बड़े बकायादारों को दिवालिया घोषित किया जायेगा। इसके बाद इन्सोल्वैंसी एंड बैंकरप्शी कोड 2016 के तहत आगे की कार्यवाही होगी।

रिज़र्व बैंक की इंटरनल एडवाइज़री कमैटी की अनुशंसा के बाद ये मामले नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में जायेंगे। जो 6 माह के भीतर इन बकायादारों से वसूली का तरीका बतायेगा। बताया जाता है कि यह सब कवायद बड़े बकायादारों को राहत पैकेज देने की रण्नीति के तहत मोदी सरकार करने जा रही है। आरबीआई का बड़े बकायादारों को दिवालिया घोषित करने के बाद वसूली का तरीका मात्र एक खानापूरी या नाटक है। इसके लिये सबसे पहले कंपनी के खिलाफ सभी लेनदारों को अपने मामले कोर्ट से वापस लेने होंगे। कंपनी के वैल्यूशन के लिये एक सीए नियुक्त किया जायेगा। सब लेनदार उसको अपने अपने दावे पेश करेंगे। फिर वह सीए तय करेगा कि कंपनी से कितनी वसूली हो सकती है।

ये सीए उन चार्टर्ड एकाउंटैंट में से ही एक होता है। जो कंपनी में पहले घपले घोटाले करने के मामले मेें ऐसी कंपनियों को चलाने वालों को अपनी कीमती सलाह देता है। मिसाल के तौर पर एक स्टील कंपनी जिसकी तरफ कुल 46000 करोड़ की बैंक देनदारी है। उससे वसूली जाने वाली कुल रक़म मात्र 2000 करोड़ आंकी गयी है। ऐसा ही और कंपनियों के साथ भी होगा। कंपनी से नाम मात्रा को प्राप्त होने वाली रकम लेनदारों मंे उसी अनुपात मंे बांट दी जायेगी। कंपनियां दिवालिया घोषित होने को बेताब हैं। जिनके नाम इस पहली सूची में आ गये हैं। उनके संचालक चैन की सांस ले रहे हैं। आपको याद होगा कि जब विजय माल्या से 9000 करोड़ की बैंक वसूली के लिये ई डी ने कार्यवाही शुरू की तो नियमानुसार सबसे पहले उसका पास्पोर्ट ज़ब्त किया जाना चाहिये था।

लेकिन सरकार में उसके चाहने वाले बैठे हुए थे। इसलिये वह चुपचाप विदेश भाग गया। इसके बाद जब किसानों ने विभिन्न राज्यों में अपने बकाया माफ करने को आंदोलन शुरू किया तो सरकार ने कारपोरेट के बड़े कर्जे माफ करने से पहले यह दिखावे की सुनियोजित योजना लागू की है। इससे एक बार फिर यह आरोप लग रहा है कि यह सरकार कॉरपोरेट के भारी भरकम चंदे से जीतकर बनी है। इसीलिये सरकार बड़े बकायादारों की बड़ी कर्ज़ की रकम को बट्टेखाते में डालने जा रही है। इसके विपरीत छोटे कर्ज़दारोें पर सरकार वसूली के लिये सख़्ती कर रही है।

Saturday 17 June 2017

आंदोलन में हिंसा...

*हिंसक क्यों हो जाते हैं आंदोलन?*

*0हाल ही में विभिन्न राज्यों में शुरू हुआ किसान आंदोलन हो या पहले हुए छात्र आंदोलन आखि़रकार शांतिपूर्ण तरीके से शुरू होकर कुछ ही समय बाद हिंसक क्यांे हो जाते हैं? इस सवाल के जवाब के लिये हमें उन आंदोलनोें पर एक नज़र डालनी होंगी जो लोकतांत्रिक ढंग से कानून के दायरे में चालू हुए और सरकार की उपेक्षा से अपनी मौत आप मर गये।*

पिछले दिनों जब एमपी में किसान आंदोलन हिंसक हुआ तो वहां की भाजपा सरकार को उस पर काबू पाने के लिये गोलियां चलानी पड़ीं। साथ ही मामला और बिगड़ने से रोकने को किसानों की मांग भी मानने पर विचार करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी ही किसी अनहोनी के डर से किसानों के कर्ज़ माफ करने की वो मांग मान ली जो वो लंबे समय से टाल रही थी। सवाल यह है कि किसानों का अमनचैन से चल रहा आंदोलन अचानक हिंसक क्यों हुआ? हालांकि सरकार के हिंसा के बाद ही गोली चलाने के दावे पर भी विपक्ष और देश के निष्पक्ष लोग भरोसा करने को तैयार नहीं है। लेकिन तमिलनाडु के किसानों का 40 दिन जंतर मंतर पर चला शांतिपूर्ण मगर नाकाम आंदोलन इसका एक उदाहरण है।

वहां के किसानों ने सरकार और मीडिया सहित देश के दूसरे लोगोे का समर्थन पाने के लिये आत्महत्या कर चुके किसानों के नरमंुड पहनने के साथ ही स्वमूत्र पीने तक के तमाम ऐसे दुखद तरीके भी अपनाये जिससे अधिकारी उनकी बात शासकों तक पहंुचाने को मजबूर हो जायें। मगर उनकी बात तक नहीं सुनी गयी। अंत में उनको अपनी बात मनवाये बिना ही अपने प्रदेश खाली हाथ लौटना पड़ा। इससे पहले मणिपुर में इरोम शर्मिला ने 15 साल तक अपने राज्य से अफसपा हटाने के लिये शांति के साथ भूख हड़ताल की। सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी। फिर वो केजरीवाल की तरह खुद सरकार बनाने के लिये चुनाव लड़ी तो उनको मात्र 90 वोट मिले।

आपको याद होगा नर्मदा बचाओ आंदोलन चलाने वाली मेधा पाटकर ने अपनी अच्छी भली नौकरी छोड़ी। सालों तक अमनचैन के साथ आंदोलन चलाया। जेल भी गयीं। सरकार ने न तो बांध का काम रोका और न ही जबरन विस्थापित किये गये लोगों को आज तक पूरा मुआवज़ा दिया। ऐसे ही बी डी शर्मा एक चर्चित आइएएस हुए हैं। वो आदिवासियों के हक़ के लिये अपनी सरकारी शान और आराम की नौकरी दांव पर लगाकर कानूनी लड़ाई लंबे समय तक लड़ते रहे। इसका नतीजा यह हुआ पहले उनको इस नेक काम से रोकने को धमकाया गया। लेकिन वे गांधीवादी तरीकों से लगातार आवाज़ उठाते रहे तो एक दिन कुछ गुंडों ने कुछ नेताओं के इशारे पर उनके मुुंह पर कालिख पोत दी।

उनके साथ मारपीट भी की गयी। जिस मशीनरी का वो हिस्सा थे। वो सिस्टम चुपचाप तमाशा देखता रहा। अंत में वो थक कर बिना किसी उपलब्धि के घर बैठ गये। इससे पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर से गांधीवादी तरीके से अन्ना हज़ारे ने दिल्ली में करप्शन के खिलाफ बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा किया। लेकिन सरकार ने उनको तिहाड़ जेल मंे डाल दिया। बाद में न केवल सरकार बल्कि सब दलों ने मिलकर ऐसी चाले चलीं कि आज तक उनकी मांग पूरी करने को लोकपाल नहीं बन सका है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि अन्ना ने यह सब कुछ संघ के इशारे पर कांग्रेस को बदनाम कर सत्ता से बाहर करने को किया था। यही वजह है कि अब 3 साल से वे चुप्पी साध्ेा बैठे हैं।

ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकारें शांतिपूर्ण ढंग से अपनी कहने वालों को भाव क्यों नहीं देती? हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि अपनी मांगे मनवाने को हिंसक आंदोलन सही रास्ता है। लेकिन यहां जो मिसालें हमने पेश की उनसे सरकार पर सवाल तो उठता ही है।

Saturday 10 June 2017

मूसा तुम आतंकी......

*मूसा तुम आतंकी, हम देशप्रेमी भारतीय!*

*0हिजबुल मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर कश्मीरी आतंकी ज़ाकिर मूसा ने बिजनौर में रेल में एक सिपाही द्वारा एक महिला के साथ रेप के मामले में बयान जारी कर भारतीय मुसलमानों को न केवल ज़लील किया है बल्कि उनको भड़काने की भी नाकाम कोशिश की है।*

29 मई को लखनऊ-चंडीगढ़ एक्सप्रैस में एक विकलांग महिला के साथ एक पुलिसवाले द्वारा बलात्कार करने का आरोप लगा था। संयोग से महिला मुस्लिम थी। हालांकि यह जांच के बाद ही पता लगेगा कि वास्तव में उसके साथ रेप हुआ या नहीं? लेकिन इतना तय है कि अगर ऐसा हुआ भी होगा तो इसलिये नहीं कि वह मुस्लिम थी। मूसा ने जो ऑडियो बयान जारी किया है। उसकी आवाज़ की जांच कर पुलिस ने दावा किया है कि वह वास्तव में कश्मीरी आतंकी मूसा की ही आवाज़ है। मूसा ने उस बयान में कहा है-‘‘बहन मैं शर्मिंदा हूं और बहुत दुखी हूं कि तुम्हारी लिये कुछ नहीं कर सका।’’ इसके साथ ही मूसा ने भारतीय मुसलमानों को उस महिला के पक्ष में मुसलमान होने की वजह से न खड़ा होने की वजह से खूब अपशब्द भी कहे हैं।
इतना ही नहीं देश के विभिन्न राज्यों में गौरक्षा के नाम पर जो गुंडे मुसलमानों पर हमला कर मार रहे हैं। मूसा ने उन पर भी जमकर गुस्सा निकालने के साथ देश के मुसलमानों के ऐसी घटनाओं पर चुप रहने को उनकी बेशर्मी और बेहिसी बताया है। मूसा ने अपनी लड़ाई को इस्लाम की लड़ाई बताते हुए अब इस जंग को कश्मीर से बाहर यानी पूरे भारत मंे फैलाने की धमकी भी दी है। मूसा के बयान पर मुझे हंसी भी आ रही है और गुस्सा भी। मूसा भारतीय मुसलमानों को दवा के नाम पर ज़हर देना चाहता है। उसको यह नहीं पता कि बिजनौर रेलवे स्टेशन पर उस विकलांग महिला के साथ जो कुछ हुआ उस पर हंगामा शुरू करने वाला 15 साल का नवयुवक अरूण कुमार हिंदू था।

मूसा को यह भी नहीं पता कि उस महिला, उसके परिवार और उसके नाना ने रेप होने से ही मना कर दिया था। लेकिन हिंदू मुस्लिम जनता के दबाव में न केवल पुलिस ने एफआईआर दर्ज की बल्कि उस आरोपी पुलिस वाले को जेल भी भेज दिया। अब कोर्ट जो तय करेगा वह हम सबको मंजूर होगा। पुलिस वाला तो पुलिस वाला होता है। इसमें वह हिंदू पुलिस वाला कैसे हो गया? और जनता और उसमेें भी महिला वह भी गरीब कमज़ोर के साथ सब जगह ऐसा ही होता है। जोकि गलत तो है। लेकिन इसमें हिंदू मुसलमान का सवाल कहां से आ गया? रही बात गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी की तो इसके लिये भी देश में खुद हिंदू ही बड़ी तादाद में लगातार आवाज़ उठा रहे हैं।

यहां तक कि खुद आरएसएस प्रमुख भागवत को भी गौरक्षकों को ऐसा करने के लिये फटकार लगानी पड़ी है। एक बार पीएम मोदी भी ऐसे गौरक्षकों को लताड़ चुके हैं। यहां तक कि भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसी घटनायें होने पर उनके खिलाफ हर बार बाकायदा मुकदमें दर्ज होते हैं। आरोपियों की गिरपफतारी भी होती है। इससे पहले जहां जहां दंगे हुए उन मामलों में भी मुसलमानों की पैरवी बड़ी तादाद में सेकुलर और निष्पक्ष हिंदुओं ने खुलकर की है। गुजरात के 2002 के दंगे में हिंदू व सिख आईएसएस और आईपीएस के साथ एनजीओ की तीस्ता शीतलवाड़ ने मिलकर मुसलमानों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी। दूसरी तरफ कश्मीर से हिंदू पंडितों को निकाला गया।

उनके मंदिर जलाये गये। तब वहां के मुसलमानों को सांप संघ गया। हम भारतीय मुसलमान अपने देश से प्र्रेम करते हैं। हम अमनचैन और भाईचारे के साथ अपने हिंदू भाइयों के साथ सदियों से रहते आ रहे हैं। 1947 में हमारे बुजुर्गों ने खुद भारत में हिंदुओं के साथ रहने का विकल्प चुना था। जिनको पाकिस्तान जाना था। वे चले गये। 1971 में उसके दो टुकड़े होकर बंग्लादेश भी बन गया। अब तुम मुट्ठीभर अलगाववादी कश्मीरी आईएसआईएस और पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाकर पता नहीं कौन सा तीर मार लोगे? पाकिस्तान अफगानिस्तान और सीरिया सहित पूरी दुनिया के अधिकांश मुस्लिम मुल्कों में खुद मुसलमान एक दूसरे को किस तरह जानवर की तरह आयेदिन काट रहे हैं।

किसी भी मुस्लिम मुल्क में अल्पसंख्यकों को बराबर हक नहीं दिये जा रहे हैं। उनको ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना या मारना काटना व उनकी महिलाओं से रेप करना कई मुस्लिम मुल्कों में आम बात है। यह किसी से अब छिपा नहीं है। मिस्टर मूसा यह ठीक है कि जहां दो बर्तन होते हैं। वे खड़कते ही हैं। इसी तरह से हमारे हिंदू भाई हैं। उनसे कभी कभी कुछ तकरार झगड़े टकराव हिंसक रूप ले लेते हैं। लेकिन वे हमेशा उनकी तरफ से ही नहीं होते। बल्कि सच तो यह है कि यह सब सियासत की वजह से ज़्यादा होते हैं। इसके लिये खुद मुसलमानों की जहालत आक्रामकता और नासमझी भी काफी हद तक कसूरवार होती है। घर से बाहर हम सब हिंदू मुसलमान नहीं बल्कि भारतीय हैं।

हम लडे़ेगे भिड़ेंगे और इसके बावजूद उन हिंदू भाइयों के साथ ही मिलजुलकर प्यार मुहब्बत से रहेंगे जिनका बड़ा हिस्सा आज भी हम से पड़ौसी भाई और दोस्त का रिश्ता निभाता है। हम हिंदुस्तानी मुसलमान भारत में सबसे सुरक्षित हैं। मिस्टर मूसा अलबत्ता तुम ठहरे सारी दुनिया के खुदाई फौजदार, इस्लाम और इंसानियत के दुश्मन तो तुम अपना यह गंदा खूनी खेल कश्मीर तक ही सीमित रखो क्योंकि तुम्हारी ज़िंदगी चार दिन की ही है। भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन ने कम से कम इतनी बात तो ठीक ही कही है कि भारतीय मुसलमान तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाला और एक दिन ख़बर मिलेगी तुम कश्मीर को इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना देखते देखते खुद चंद दिन बाद सेना की गोली का शिकार हो गये।

*हम बावफ़ा थे इसलिये नज़रों से गिर गये,*
*शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफ़ा की थी।*