Monday 30 September 2019

योगी और मौलाना

मौलाना अपनी ज़िम्मेदारी योगी पर क्यों ?

0पहले तीन तलाक़ पीड़ित महिलाओं पर मौलाना लंबे समय तक खामोश रहे। इसके बाद जब सरकार ने कोर्ट के आदेश पर इसके खिलाफ कानून बनाया तो मोदी सरकार को कोसा गया। अब यूपी की योगी सरकार ने तीन तलाक पीड़ितों के लिये 6000 आर्थिक मदद,मकान और सरकारी नौकरी का ऐलान किया तो मौलाना फिर नुक्ताचीनी कर रहे हैं। जबकि यह मुस्लिम समाज की ज़िम्मेदारी थी।          

      

  यूपी की योगी सरकार ने तीन तलाक़ पीड़ित महिलाओं के लिये जो भी घोषणायें की हैं। वे कुछ ना होने से बेहतर और स्वागत योग्य हैं। योगी सरकार के इन क़दमों पर सवाल उठाते हुए कुछ मुस्लिम उलेमा ने इस मदद को पीड़ित महिलाओं के साथ मज़ाक बताया है। सच यह है कि अगर कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को गलत तरीके से तलाक दे रहा है तो यह मुस्लिम समाज का अंदरूनी मसला हैैै। लेकिन उलेमा इस मसले का आज तक कोई हल तलाश नहीं कर पाये। बल्कि उल्टे पति की गल्ती के लिये पत्नी को हलाला की ज़लालत से गुज़रने का शॉर्ट कट भी इनमें से ही कुछ मौलाना की खोज रहा है।

    हालांकि उलेमा इस तरह के किसी हल के इस्लामी ना होने का दावा भी करते रहे हैं। हालांकि व्यवहारिक सच यही है। इसके बाद सवाल यह उठता रहा है कि जिस महिला को उसके पति ने चाहे एक साथ तीन तलाक़ यानी तलाक ए बिद्अत या कुरान पाक में बताये गये तरीके से तीन माह में तलाक दे दिया हो। उसके गुज़ारे का इंतज़ाम कैसे और कौन करेगा?संविधान के हिसाब से किसी भी महिला का पति बिना कोर्ट की अनुमति के उसको तलाक दे ही नहीं सकता। अगर वह ऐसा करता है तो उसको उस महिला का शादी या मृत्यु होने तक खर्चा देना होगा।

   1985 में शाहबानों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने यही फैसला दिया था। लेकिन कांग्रेस की राजीव सरकार ने मुस्लिम वोट बैंक के लालच में इस फैसले को संसद में पलट दिया। हालांकि इसके बाद भी कोर्ट में आईपीसी की धारा 125 के तहत जो भी मुस्लिम महिला अपने पति द्वारा तलाक देने पर गुज़ारा भत्ता मांगने गयी कोर्ट उसको गुज़ारा भत्ता देने का आदेश लगातार देता रहा है। लेकिन राजीव सरकार ने ऐसी तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिये सबसे बड़ी अदालत का फैसला पलटकर जो झूठमूठ का दिखावटी कानून बनाया था।

   उस पर आजतक कोई अमल होता नज़र नहीं आया है। उस कानून के अनुसार तलाक दी गयी मुस्लिम महिला को उसका पति और उसका मूल परिवार अगर खर्चा नहीं देता है तो उसको वक्फ बोर्ड गुजारे के लिये पेंशन देगा। कई बार इस बारे में बोर्ड से सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी गयी लेकिन उसने कोई आंकड़ा जारी नहीं किया। इसका मतलब यह माना जा सकता है कि उसने किसी तलाकशुदा महिला को या तो कांग्रेस सरकार से कानून अपने हिसाब से जबरन बनवाकर आज तक कोई पेंशन दी ही नहीं है।

   या फिर जिनको नामचारे की सहायता दी भी गयी हो वह संख्या इतनी कम है कि उसको सूचना देते हुए शर्म और डर लग रहा है कि कहीं यह जानकारी सार्वजनिक होने से एक बार फिर से यह मसला उनके लिये मुसीबत न बन जाये। बहरहाल सच जो भी हो लेकिन यह आसानी से पता लग रहा है कि मौलानाओं ने कांग्रेस सरकार पर बेजा दबाव डालकर एक ऐसा कानून बनवा लिया था। जिस पर उनकी मुहिम पहले से ही तलाकशुदा महिला के पक्ष में ना होकर उसके उत्पीड़क अन्यायी और ज़ालिम पति के पक्ष में अधिक नज़र आती है।

   सवाल यह है कि जिस महिला का पिता भाई या मां ज़िंदा ना रही हो और उसका कोई करीब का रिश्तेदार भी ना हो या फिर अपने खर्च के लिये भी सक्षम ना हो और उसका पति मनमाने तरीके से उसको इंस्टैंट तीन तलाक देकर अपना पल्ला उससे और बच्चो से झाड़ लेता हैउसको गुज़ारा भत्ता कौन देगाऐसे में योगी सरकार अगर एक अच्छी पहल करते हुए ऐसी पीड़ित महिलाओं को 500 रू. माह ही सहायता दे रही है तो उसका स्वागत ना करके विरोध के लिये विरोध करने का किसी मौलाना को क्या हक़ बनता हैमौलाना को पता होना चाहिये कि जिसका कोई सहारा ना हो उसके लिये 500रू. भी कम नहीं होते।

   मिसाल के तौर पर आज भी सरकार की वृध्दा अवस्था पेंशन और किसान सम्मान योजना में 500 रू. या उससे कम धन राशि मासिक सहायता के तौर पर दी जा रही है। इसके साथ ही सरकार ने बेघर तीन तलाक पीड़ितों को कानूनी सहायता मकान और सरकारी नौकरी का भी आश्वासन दिया है। दरअसल यह फर्ज तो सही मायने में मुस्लिम समाज वक्फ बोर्ड और उलेमाओं का था। जो आयेदिन नई मस्जिदों या उनको भव्य बनाने मदरसे बनाने और तरह तरह के मज़हबी आयोजनों पर करोड़ों अरबों रू. मुसलमानों से चंदा कर अंजाम तो दे रहे हैं।

  लेकिन तलाकशुदा महिलाआंे बेवाओं और अनाथ व गरीब लाचार मुसलमानों के लिये मासिक सहायता की कोई योजना या स्कूल कॉलेज धर्मशाला प्याउू मेडिकल शिविर खाने का निशुल्क लंगर या यूनिवर्सिटी बनाने का कोई बड़ा दुनियावी समाजसेवा का मिशन बड़े पैमाने पर बनाते नज़र नहीं आ रहे हैं। इस्लाम मंे दीन और दुनिया को बराबर नहीं बल्कि दीन से दुनिया को भारी बताया गया है। ऐसे में पहले तीन तलाक कानून बनाकर और अब ऐसी तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के लिये जो भी सहायता भाजपा की योगी सरकार ने देने का ऐलान किया है। वह खुद मुस्लिम समाज चंद कट्टर मौलाना और वक्फ बोर्ड की ना अहली और इन जैसे मुद्दों पर अपराधिक चुप्पी साधने का नतीजा अधिक कहा जा सकता है।                                                

0 कुछ ना कहने से भी छिन जाता है ऐजाज़ ए सुख़न,

   जुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है।।

Sunday 22 September 2019

मोदी का विरोध

मोदी का अंध विरोध बंद करेगी कांग्रेस ?

0कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेशअभिषेक मुन सिंघवी और शशि थरूर को ऐसा लगने लगा है कि वे पीएम मोदी का जितना तीखा और जितना अधिक विरोध करते रहे हैं। उस अंध विरोध से कांग्रेस का भला होने की बजाये उल्टे मोदी और भाजपा का राजनीतिक लाभ हुआ हैै। कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्राी ए के एंटोनी ने यह बात 2014 के चुनाव में पार्टी की हार के बाद समीक्षा करके बहुत पहले कही थीलेकिन तब से अब तक कांग्रेस ने उस पर गौर नहीं किया।           

      

    1999 का आम चुनाव एनडीए के हाथों हारने के बाद कांग्रेस को यह खुशफहमी थी कि जैसे पहले 1977 में जनता पार्टी 1989 में जनता दल की सरकार खुद बिना अपना 5साल का कार्यकाल पूरा किये अपने अंदरूनी झगड़ों आपसी मतभेदों और विपक्षी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के बोझ से गिर गयी थी। वैसे ही वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार भी देर सवेर गिर जायेगी। कांग्रेस को लगता था कि इसके बाद जनता एक बार फिर से मजबूर होकर कांग्रेस को वोट करेगी। हालांकि वाजपेयी की सरकार कार्यकाल पूरा किये बिना गिरी तो नहीं लेकिन जनता पर अपनी कोई विशेष छाप भी नहीं छोड़ पाई।

   इसके साथ ही वाजपेयी के स्वतंत्र रूप से पीएम के तौर पर काम करने से आरएसएस की उनसे ठन गयी। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार 2004 से लगातार दो बार चुनाव जीती। उल्लेखनीय बात यह रही कि कांग्रेस ने 2009 में दूसरा चुनाव कम्युनिस्टों के बिना पहले से अधिक सीटों के साथ जीता। इससे कांग्रेस को यह भ्रम हो गया कि उसका देश में कोई विकल्प नहीं है। लेकिन संघ परिवार ने जिस तरह सोच समझकर एक रण्नीति के तहत मोदी को अपना पीएम पद का प्रत्याशी घोषित किया।

   उससे 2014 का चुनाव कांग्रेस बुरी तरह न केवल हारी बल्कि उसकी सीटें कम होकर इतनी नीचे चली गयीं कि उसको विपक्ष का दर्जा तक नहीं मिला। इसके साथ ही 25 साल बाद किसी गठबंधन को नहीं बल्कि अकेली पार्टी भाजपा को अपने बल पर बहुमत मिल गया। कांग्रेस यहां गच्चा खा गयी। उसको फिर से यह गलतफहमी हो गयी कि वह ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका अदा करे या ना करे लेकिन5 साल बाद लोगों का मोदी से मोहभंग हो जायेगा। कांग्रेस को लगा कि बिना संघर्ष बिना स्पश्टीकरण और बिना नीतियां बदले वह2019 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को सत्ता से बाहर करने में सफल हो जायेगी।

    उसको पूरा विश्वास था कि मोदी विकास और हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोज़गार देने का वादा पूरा नहीं कर पायेंगे। कांग्रेस यह भी मानकर चल रही थी कि देश का किसान अपनी आय दोगुनी करने का वादा पूरा नहीं होने से इस बार भाजपा को वोट नहीं करेगा। लेकिन वह भूल गयी कि यह सब सही होने के बावजूद उस पर जो भ्रष्ट पार्टी होने मुसलमानों का धार्मिक तुष्टिकरण करने और विदेशी मूल की महिला के हाथों में देश का भविष्य सुरक्षित न होने का ठप्पा लग चुका है। वह अब जल्दी से हटने वाला नहीं है।

   उधर मोदी के पीएम बनने से पहले और बाद में गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर जैसे पूर्व मंत्रियों ने मोदी के लिये जिस अभद्र और अशिष्ट भाषा का अहंकार में डूबकर प्रयोग किया। उसका नतीजा आज देश के सामने है। यह ठीक है कि कांग्रेस आज विपक्ष में है। यह भी सही है कि विपक्ष का काम ही लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करना होता है। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि विपक्ष की भाषा संयत और सकारात्मक होनी चाहिये। कांग्रेस अगर मोदी का अंध विरोध ना करके उनके कामों की गुण दोष के आधार पर समीक्षा करती तो आज कांग्रेस की हालत इतनी ख़स्ता ना होती।

   हालांकि जीतकर जहां भाजपा को लगभग22 करोड़ वोट मिले हैं। वहीं कांग्रेस को इतनी बुरी तरह हारकर भी 12 करोड़ के आसपास वोट मिले हैं। लेकिन सीटों के एतबार से कांग्रेस को कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ है। देर से ही सही कांग्रेस को यह अंदाज़ होने लगा है कि अब उसकी सत्ता में वापसी कई दशक तक होने के आसार नहीं है। इसकी वजह भी साफ नज़र आने लगीं हैं। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का जो समीकरण भाजपा ने चुनावी जीत के लिये तैयार किया है। उसका कोई तोड़ आज तक भी कांग्रेस तलाश नहीं पाई है। उसने अपनी छवि सुधारने के लिये आज तक अपने अभूतपूर्व करप्शन के लिये भी जनता से भी माफी नहीं मांगी है।

    कांग्रेस ने यह अहसास भी नहीं किया है कि उसका धर्मनिर्पेक्षता के बहाने मुसलमानों को मज़हबी तौर पर खुश करना उसके सियासी ताबूत में आखि़री कील की तरह ठुक गया है। कांग्रेस पाकिस्तान कश्मीर और आतंकवाद पर कोई ठोस हल आज तक पेश नहीं कर पाई। जिसके लिये उसके मुसलमान वोट बैंक के मोह को हिंदुओं ने ज़िम्मेदार माना। यहां तक कि मोदी सरकार की पीएम उज्जवला योजनाघर घर शौचालय योजना और पीएम गृह निर्माण योजना का भी कांग्रेस ने मखौल उड़ाया जबकि जनता इन कामों से मोदी को सराह रही थी।

    सबसे बड़ी बात जनता का भरोसा मोदी पर कायम है। कांग्रेस को जितनी जल्दी हो मोदी का अंध विरोध या विरोध के लिये विरोध बंद कर देना चाहिये। वर्ना हिंदुओं का बड़ा वर्ग उसके नरम हिंदुत्व की आत्मघाती लाइन पकड़ने के बावजूद उससे लगातार दूर होता जा रहा है।                                                                

0उसे शोहरत ने तन्हा कर दिया,

 समंदर है मगर प्यासा बहुत है।।         

एनआरसी से क्या हासिल हुआ?

एन आर सी: खोदा पहाड़निकली चुहियां!

0असम में बहुप्रतीक्षित एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न बनाने की क़वायद पूरी हो गयी है। इसके बावजूद केंद्र सरकार से लेकर वहां की राज्य सरकार और असम गण परिषद से लेकर इसके लिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली एनजीओ असम पब्लिक वकर््स तक इससे खुश नहीं हैं। असम की जनता का तो इससे संतुष्ट होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इसके बावजूद पूरे देश में एन आर सी कराने का मोदी सरकार दावा हवा मेें तैर रहा है।            

        

 असम की कुल आबादी 3,30,27,661 में से3,11,21,004 लोगों को 31 अगस्त को जारी एनआरसी में जगह मिली है। यानी लगभग 19लाख लोग इस नागरिकता सूची से बाहर रह गये हैं। एनआरसी अधिकारियों का कहना है कि यह तकनीकी रूप से अंतिक सूची ज़रूर है। लेकिन इसमें आये नामों में से अभी भी उन लोगों का बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। जिन्होंने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिये फ़र्जी और नक़ली काग़ज़ात का सहारा लिया है। उनका कहना है कि जिन लोगों का नाम 24 मार्च 1971 से पहले की मतदाता सूची या अन्य घोषित रिकॉर्ड मंे मौजूद नहीं है।

   या फिर जिन लोगों के केस फॉरेन ट्रिब्यूनल या कोर्ट में विचाराधीन हैं। उनके नाम फ़ायनल एनआरसी मेें आने के बावजूद शिकायत मिलने या पता लगने पर फिर से बाहर कर दिये जायेंगे। जिन 19,06,657 लोगों के नाम एनआरसी में आने से रह गये हैं। उनको फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपना दावा पेश करने के लिये120 दिन का समय मिला है। इस दौरान जो लोग अपनी भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर पायेंगे। उनके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील का विकल्प मौजूद रहेगा। लेकिन सबको पता है कि सरकार के कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के तमाम दावों के बावजूद अधिकांश लोग बड़ी अदालतों तक नहीं पहुंच पायेंगे।

   इसके बाद ऐसे लोगों में से गैर मुस्लिमों को सरकार नागरिकता कानून में संशोधन पास कराने के बाद भारत मंे 6 साल से अधिक रहने की शर्त पर नागरिकता देने की बात कह रही है। इसका मतलब इस 19 लाख की सूची में से लगभग 12 से 13 लाख हिंदू सिख जैन पारसी बौध और ईसाई अंत में भारतीय नागरिकता पाकर एनआरसी में शामिल हो जायेंगे। इसके साथ ही 3 लाख असमी मूल नागरिक ऐसे हैं। जिन्होंने खुद को धरतीपुत्र बताते हुए एनआरसी में शामिल होने के लिये आवेदन ही नहीं किया था। ज़ाहिर है इनको भी आज नहीं तो कल एनआरसी मेें शामिल करना ही पड़ेगा।

   इसके साथ ही एक से 2 लाख लोग ऐसे हैं। जिनमें से किसी के पिता तो किसी की माता और किसी के बच्चो को तो एनआरसी में शामिल किया गया है। लेकिन उन ही दस्तावेज़ों के आधार पर परिवार के अन्य सदस्यों को एनआरसी से बाहर रखा गया है। यह कम्प्यूटर की तकनीक या मानवीय चूक से भी अगर हुआ होगा तो ऐसे लोगों को फॉरेन ट्रिब्यूनल एनआरसी में शामिल करने पर मजबूर हो जायेगा। नहीं तो ये लोग अगर गरीब अनपढ़ या कमजोर होने की वजह से कोर्ट नहीं भी गये तो आंदोलन का रास्ता अपना सकते हैं। जिससे सरकार इनको भी एनआरसी में जगह देने को आखि़रकार मजबूर हो जायेगी।

   इसका मतलब यह है कि अंत में 19 लाख में मुश्किल से 2 से 3 लाख लोग ही विदेशी यानी बंग्लादेशी घुसपैठिये घोषित किये जा सकेंगे। इनमें अभी वे लोग भी शामिल रह जायेंगे। जो होेंगे तो भारतीय ही लेकिन उनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिये कोई ठोस और पुख़्ता सबूत नहीं रहा होगा। सवाल यह है कि जब बंग्लादेश की सीमा से घुसपैठिये भारत में अवैध रूप से घुस रहे थे। उस समय हमारी तत्कालीन सरकारें सो रही थीं। इसके बाद पहले 10 लाख फिर 20 लाख फिर 50 लाख और बाद में ऐसे घुसपैठियों की तादाद बढ़ा चढ़ाकर एक से 2 करोड़ होने के दावे किये जाने लगे।

    इसके बाद असम गण परिषद ने वहां से बंग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने के लिये हिंसक आंदोलन चलाया। इस दौरान कुख्यात नैल्ली नरसंहार भी हुआ। कई बार बंग्लाभाषी लोगों को हिंसा का सामना भी करना पड़ा। इतना ही नहीं अकेले बंग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर असम स्टूडेंट यूनियन आंदोलन करते करते चुनाव जीतकर असम की सत्ता मेें भी आ गयी थी। लेकिन घुसपैठ की समस्या का हल वह भी नहीं खोज पाई। कांग्रेस की सरकारों पर लगातार यह आरोप लगा कि वह अधिकांश घुसपैठियों के मुसलमान होने की वजह से वोटबैंक के लालच में उनको बाहर का रास्ता नहीं दिखा रही है।

    इसके बाद राजीव गांधी सरकार और असम गण परिषद के बीच इस मुद्दे पर एक समझौता हुआ। लेकिन इस पर भी लंबे समय तक अमल नहीं हुआ तो ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने इस केस में न्याय के सामान्य नियम को उलट दिया। यानी बजाये सरकार के नागरिकों पर यह ज़िम्मेदारी डाल दी कि वे खुद को भारतीय नागरिक साबित करें। अब ज़ाहिर बात है कि शत प्रतिशत लोगों के पास ऐसे दस्तावेज़ नहीं हो सकते कि वे खुद भारतीय नागरिक साबित करें। जबकि वे भारतीय नागरिक ज़रूर रहे होंगे।

   उधर मोदी सरकार ने संविधान के बुनियादी आधार धर्मनिर्पेक्षता को अनदेखा कर बंग्लादेश से आने वाले मुस्लिमों के अलावा अन्य सभी को भारतीय नागरिकता देने का एलान करके अपना हिंदूवादी एजेंडा साधने का एक और अवसर तलाश लिया है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस सारी कवायद पर क्या निर्णय लेता है। कम लोगों को पता है कि असम में जिन लोगों ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिये दिन रात एक किया है। उन्होंने अपनी जमा पूंजी ज़ेवर घर ज़मीन सबकुछ दांव पर लगाया है। यहां तक कि कुछ लोगों ने तो अपने बच्चे अपनी किडनी और अपना खून तक बेचकर रिश्वत दी हैं। असम में एनआरसी की इतनी महंगी इतनी थकाउू और इतनी अमानवीय कवायद एक तरह से असफल होने के बावजूद अगर मोदी सरकार पूरे देश में एनआरसी कराने का फैसला करती है तो इसे हिंदू वोटबैंक का एजेंडा आगे बढ़ाने के सिवा विपक्ष और क्या कह सकता है?                                                           

0हमीं को क़त्ल करते हैं हमीं से पूछते हैं वो,

  शहीदे नाज़ बतलाओ मेरी तलवार कैसी है ।।                    

Friday 13 September 2019

भागवत मदनी मुलाक़ात


भागवत मदनी मुलाक़ात: देशहित में सुखद पहल!

0आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और जमीयत उलेमा ए हिंद के मुखिया मौलाना अरशद मदनी की मुलाक़ात आज के नफ़रत हिंसा और संकीर्णता के घुटन भरे माहौल में एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह है। हम यह भी जानते हैं कि दोनों वर्गों के कुछ कट्टरपंथी लोग इस मुलाक़ात को शक की निगाह से देखेंगे। लेकिन उनकी परवाह इसलिये नहीं करनी चााहिये क्योेंकि अधिकांश भारतीय अमन चैन और प्यार मुहब्बत से साथ रहना चाहते हैं।           

       

 किसी भी देश की प्रगति उन्नति और समृध्दि के लिये वहां के सभी लोगों का साथ मिलकर चलना ज़रूरी होता है। लेकिन पिछले तीन दशक से हम देख रहे हैं कि देश में हिंदू मुसलमान के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है। कुछ लोग इसके लिये दोनों धर्म के कट्टरपंथी तो कुछ लोग देश की सियासत को इस दरार के लिये ज़िम्मेदार बताते हैं। लेकिन सच्चाई इन दोनों के बीच कहीं लगती है। दरअसल देश मेें हिंदू मुस्लिम दरार देश के बंटवारे के साथ ही बढ़ती चली गयी। लेकिन इसके लिये अंग्रेज़ों को दोष देना या किसी एक वर्ग को कसूरवार मानना असली समस्या से मुुंह चुराना होगा।

    यही वजह है कि देश आज़ाद होने के बाद जब अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गये तो भी हिंदू मुस्लिम टकराव लगातार चलता रहा। छोटी छोटी बातों पर दोनों के बीच दंगों का सिलसिला भी चलता रहा। ये दंगे कुछ शहरों में कई कई महीने चलते थे। जिनमें हज़ारों लोगों की दोनों तरफ से जानें जाती थी। साथ ही करोड़ों अरबों रूपयों के नुकसान के साथ दोनों वर्गों की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और बच्चों के साथ वहशीपन भी देखने को मिलता था। इतिहास बताता है कि दंगों का यह वीभत्स अभियान बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि विवाद तूल पकड़ने के साथ साथ और भी तेज़ होता चला गया।

    इस दौरान आतंकवाद की भी कई बड़ी घटनायें देश के कई हिस्सों में घटी। लेकिन आज तक किसी निष्पक्ष जांच से यह नहीं पता चला कि पाकिस्तान के अलावा हमारे देश के किस वर्ग के लोग इन दर्दनाक और शर्मनाक घटनाओं में वास्तव में एकतरफा तौर पर शामिल रहे हैंकुल मिलाकर देश में ऐसा माहौल बना कि भाजपा शिवसेना के अलावा लगभग सभी सेकुलर दलों पर मुस्लिम समर्थक होने का ठप्पा लग गया। मोदी समर्थक हिंदुओं को लगा कि मुस्लिमों का अल्पसंख्यक होने के बावजूद तुष्टिकरण किया जाता है। उनको यह भी अहसास कराया गया कि सारे फ़साद की जड़ मुसलमान हैं।

   जबकि वास्तविकता यह नहीं है। धीरे धीरे हिंदुओं के बड़े वर्ग के दिमाग में यह मिथक बन गया कि जब तक मुसलमानों को अलग थलग,बहिष्कार और सियासी तौर पर कमज़ोर या बेअसर नहीं किया जायेगा। तब तक भारत सुरक्षित नहीं है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का एक नया समीकरण मुसलमानों के खिलाफ हिंदू वोट बैंक बनाने में सफल हो गया। आज हालत यह है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता जा रहा है। जो गैर मुस्लिम जनप्रतिनिधि उनके वोट से सेकुलर दलों से चुने भी जाते हैं।

    वे भी या तो भाजपा सरकार का बाहर से सपोर्ट करते हैं या फिर सीध्ेा भाजपा में ही शामिल हो जा रहे हैं। अगर वे अपने दलोें में बने भी रहते हैं तो भी शासन प्रशासन और पुलिस से मुसलमानों का तो दूर अपने क्षेत्र के अन्य लोगों तक का कोई जायज़ और कानूनी काम तक नहीं करा पा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि मुसलमान खुद को दूसरे दर्जे का नागरिक असुरक्षित और उपेक्षित महसूस कर रहा है। तीन तलाक से लेकर कश्मीर की धारा370 तक हटाने में जहां मोदी का हिंदू वोट बैंक लगातार मज़बूत हो रहा है।

    वहीं मुसलमान खुद को ठगा सा और लाचार महसूस कर रहा है। आने वाले समय में बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि विवाद का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आने वाला है। मुसलमान को यह साफ नज़र आ रहा है कि कोर्ट का फैसला चाहे जो आये लेकिन वहां फिर से मस्जिद नहीं बन पायेगी। मोदी सरकार राजीव सरकार की तरह शाहबानों फैसला पलटने की तर्ज़ पर कानून बनाकर भी हर हाल में वहां राम मंदिर बनाकर ही दम लेगी।

    इसके साथ असम के बाद पूरे देश में एनआरसी बनने की चर्चा से भी मुसलमान यह सोचकर सहमा हुआ है कि गैर मुसलमानोें को तो मोदी सरकार सिटीज़न अमेंडमेंट बिल लाकर विदेशी होने पर भी नागरिकता देने का एलान कर चुकी है। लेकिन उनको भारतीय होने पर भी वांछित काग़ज़ात न होने या कुछ कमी होने पर विदेशी घोषित कर सीध्ेा डिटंेशन कैंपों में भेजा जायेगा। इन शिविरों में उनको जेल से भी अधिक यातनाओं का डर सता रहा है। ऐसे और भी कई मुद्दे हैं। जिनपर मुसलमान केंद्र और अधिकांश राज्यों में भाजपा सरकारें आने के बाद खुद को पीड़ित और भयभीत महसूस कर रहा है।

    आज उसको अल्पसंख्यक होने की वजह से विशेष अधिकार तो दूर संविधान में दिये बराबरी के अधिकार भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। उसको जगह जगह समय समय पर पक्षपात उत्पीड़न और अन्याय का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में दारूल उलूम देवबंद के मुखिया मौलाना अरशद मदनी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच 2004 के बाद एक बार फिर से हिंदू मुस्लिम रिश्तों पर सीधे बातचीत का सिलसिला शुरू होना आज के घटाटोप अंधेरे में रोश्नी की एक किरण की तरह है। सबको पता है दुनिया की बड़ी से बड़ी समस्यायें बातचीत से ही हल हुयीं हैं।

     हालांकि अभी यह नहीं पता लगा है कि भागवत और मदनी के बीच विस्तार से क्या क्या बात हुयी है। लेकिन यह साफ हो गया है कि दोनों ने हिंदू मुस्लिम के साथ मिलकर देश की उन्नति और प्रगति करने के लिये ज़रूरी माना है। हमें आशा है कि अब वो समय आ गया है कि मुसलमान कथित सेकुलर दलों के झांसे से निकलकर अपनी सामाजिक प्रगति शैक्षिक उन्नति और आर्थिक सम्पन्नता का एजेंडा मोदी सरकार के सामने रखकर देशहित में हिंदुओं के साथ मिलकर चलने को और आपसी समस्याओं पर चर्चा कर हल निकालने को बातचीत का सिलसिला भागवत और मदनी के ज़रिये जारी रखेगा। मुसलमानों को मौलाना सलमान नदवी और मौलाना वुस्तानवी की ऐसी ही पहल के लिये अंध विरोध की गल्ती भूलकर भी नहीं दोहरानी चाहिये।                                                         

0 ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है कै़सर,

   कोई सवाल उठाओगे मारे जाओगे ।।