Sunday 11 February 2024

अजब गजब घोटाला...

*अजब गज़ब ठगी: ‘आॅल इंडिया प्रेगनेंट जाॅब’ से करोड़ों का घोटाला!* 

0 मशहूर ठग नटवरलाल ने एक बार कहा था कि जब तक इंसान में लालच है उसका ठगी का ध्ंाधा चलता रहेगा। बिहार के नवादा के एक ठग मुन्ना ने लाखांे लोगों को करोड़ों का चूना लगाकर ठगी का नायाब नमूना पेश कर नटवरलाल की यह बात एक बार फिर से सही साबित कर दी है। मुन्ना ने फेसबुक पर एक अजीब ही जाॅब निकाल दिया। उसने लिखा जो महिलायें शादी के बाद भी किसी वजह से मां नहीं बन सकीं   और अपने पति से अलग हो चुकी हैं। उनको गर्भवती करने के लिये कुछ युवाओं की आवश्यकता है। इन युवाओं को उन सुंदर महिलाओं से सैक्स करना होगा। जो युवा प्रेगनेंट करने मंे कामयाब रहेंगे उनको दस से 13 लाख और जो असफल रहेंगे उनको 5 लाख दिये जायेंगे। यह आॅफर देखते ही लोगों की लाइन लग गयी और वे लुट गये...।    
   -इक़बाल हिंदुस्तानी
बिहार के नवादा का एक कम पढ़ा लिखा सीधा सादा गरीब युवा मुन्ना राजस्थान के मेवाड़ काम की तलाश में गया था। उसने घरवालों को बताया उसकी नौकरी लग गयी है। वह पांच साल वहां रहा उसको नौकरी नहीं मिली लेकिन कुछ छोटा मोटा काम करने लगा। इस दौरान उसका वास्ता जामतारा के साइबर क्राइम गैंग से पड़ गया। जिससे उसने शाॅर्टकट से बहुत अधिक पैसा कमाने के गुर सीख लिये। इसके बाद वह अपने गांव नवादा वापस आ गया। यहां उसने साइबर क्राइम वालों से मिलकर बनाई योजना के अनुसार मछली पालन के लिये पुराना तालाब सही किया। उसके बाद तालाब के पास पड़े खंडरनुमा घर को ठीक कर दो मंज़िला बनाया। उस मकान के पास एक मचान बनाया। जिस पर दस बारह लोग आराम से बैठ सकते थे। इसका मकसद उसकी तरफ आने वाले लोगों पर दूर से ही चंबल के डाकुओं की तरह नज़र रखना था। साथ ही जो लगभग दो दर्जन लड़के इस नई ठगी की योजना के लिये उसने अपने साथ जोड़े थे।  
उनको इस उूंची मचान पर बैठाकर मोबाइल से लोगों को झांसे में लेकर ठगना था। जिससे मोबाइल टाॅवर से खुले में सिग्नल ठीक से आते रहें। इन सभी लड़कों को ठगी से होने वाली लाखों की कमाई से 30 प्रतिशत कमीशन दिया जाना तय किया गया था। दर्जनों मोबाइल सैंकड़ों फर्जी नाम के सिम तमाम चार्जर और प्रिंटर वगैरा मुन्ना ने खुद लगाये। गांव छोटा सा था। आबादी कम थी। अपराध ना के बराबर होते थे। लिहाज़ा पुलिस कभी उस गांव में आती नहीं थी। इसके बाद जब सब तैयारी हो गयी। मुन्ना ने फेसबुक पर खूबसूरत महिलाओं के फोटो के साथ एक एड पोस्ट किया। जिसमें एक आदमी को सेना की फर्जी वर्दी में दिखाया गया था। कुछ महिलाओं को जाॅब पाये लोगों के द्वारा गर्भवती होने का दावा करते हुए उनका फोटो भी अपलोड किया गया था। एड का शीर्षक था- आॅल इंडिया प्रेगनेंट जाॅब। एड के साथ संपर्क करने को मोबाइल नंबर भी दिया गया था। 
कंपनी को रजिस्टर्ड बताते हुए यह दावा भी किया गया था कि हम जो काम कर रहे हैं उसका मकसद समाजसेवा भी है। कुछ शर्तें भी थीं। जैसे उन लोगों को ही नौकरी दी जायेगी जिनके परिवार के लोग जैसे पत्नी माता पिता या भाई बहन इस जाॅब से सहमत होंगे। गर्भवती की जाने वाली महिला के होने वाले बच्चे पर उस युवा का कोई अधिकार नहीं होगा जिससे शारिरिक संबंध बनाकर वह प्रेगनेंट हुयी है। उन युवाओं से इस तरह का शपथ पत्र आधार कार्ड पहचान पत्र और दूसरे ज़रूरी सरकारी दस्तावेज़ लिये जायेंगे। ठगी का असली खेल इसके बाद शुरू होता था। नौकरी के लिये 799 रूपये फीस जमा रजिस्टेªशन आॅनलाइन साइबर कैपफे से बताये गये दूसरे कागजों के साथ जमा करनी होगी। इसके बाद कंपनी से आवेदनकर्ता को काॅल आती थी। उससे कहा जाता था कि आपके शहर में अगर थ्री स्टार हाॅटल है तो महिलाओं को उसी होटल में भेजेंगे। नहीं तो आपको मुंबई जाना होगा। जिसका आने जाने होटल खाना पीना सब खर्च कंपनी करेगी। 
लेकिन किसी भी महिला से सेक्स करने से पहले आपको सीमन यानी वीर्य टैस्ट के लिये 2500 रूपये की फीस जमा करनी होगी। अगर रिज़ल्ट पाॅजिटिव आया तो आपको आगे भेजा जायेगा। इंसान तो इंसान है। उसको सपने आने लगते हैं। नौकरी बढ़िया है। 799 और 2500 रूपये कोई बड़ी रकम नहीं है। खूबसूरत महिलाओं से सेक्स करने का हसीने मौका दिख रहा है। साथ ही कंपनी के खर्च पर मंुबई की सैर भी हो जायेगी। इसके साथ ही अगर बच्चे की चाह रखने वाली महिला गर्भवती हो गयी तो 10 से 13 लाख जैसी बड़ी रकम नहीं तो कम से कम 5 लाख न्यूनतम तो मिलने ही हैं। इससे शानदार और बेहतरीन नौकरी शायद ही दुनिया में किसी को मिली हो? इसके बाद आवेदक के मोबाइल में 472000 का बैंक में के्रडिट का फर्जी मैसेज भेजा जाता है। आवेदक को काॅल कर बताया जाता है कि आपके खाते में पांच लाख रूपये भेज दिये गये हैं। लेकिन बैंक यह रकम तब के्रडिट करेगा जब आप 28000 जीएसटी हमारे बताये गये सरकारी खाते में जमा करा देंगे। 
बंदा अब इतना उतावला हो चुका है कि वह कहीं से भी कैसे भी जुगाड़कर 28000 की रकम बताये गये खाते में साइबर कैफे से भेज देता है। इसके बाद न तो पांच लाख आते हैं और ना ही आॅल इंडिया प्रेगनेंट जाॅब कंपनी का फोन अटेंड होता है। यूपी बिहार राजस्थान हरियाणा झारखंड पंजाब बंगाल और उड़ीसा सहित कई प्रदेशों के लाखों लोगों से करोड़ों रूपये ठगकर यह कंपनी चुप्पी साध लेती है। जो ठगे गये वे बदनामी और शर्म से ना तो किसी को बताते हैं और ना ही पुलिस के पास शिकायत करने जाते हैं। नवादा का ही कोई आदमी साइबर क्राइम पुलिस के एक कांस्टेबिल को यह जानकारी देता है। वह कांस्टेबिल अपने बड़े अधिकारियों को यह घोटाला बताता है।  पुलिस उस गांव में छापा मारकर 8 लोगों को रंगे हाथ पकड़ लेती है। वहां से मोबाइल सिम चार्जर प्रिंटर और दर्जनों दस्तावेज़ भी बरामद करती है। लेकिन पुलिस के तमाम प्रयास के बावजूद केवल एक शिकायतकर्ता अपनी पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर सामने आ सका है। 
कोई गवाह और ठोस सबूत ना मिलने की वजह से पुलिस की जांच अभी अधर मंे लटकी है लेकिन असली सवाल यह है कि क्या लोगों को यह मामूली सी बात भी समझ में नहीं आती कि ऐसे एड निकालकर महिलाओं को खुलेआम प्रेगनेंट करने का आॅफर देना और लाखों रूपये की रकम देना कानूनी समाजी और नैतिक रूप से किसी तरह भी संभव नहीं है? लेकिन लोग हैं कि लालच में आयेदिन किसी ना किसी नये स्कैम मंे लगातार ठगे जाने को तैयार बैठे रहते हैं।      

 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

Thursday 1 February 2024

बजट 2024

आम बजट: पूंजीवाद मंे आर्थिक असमानता बढ़ना स्वाभाविक है ?
 _0 गोदी मीडिया मोदी सरकार और संघ परिवार लगातार यह प्रचार कर रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। इस साल चुनाव होने की वजह से पूर्ण बजट पेश ना कर अंतरिम बजट पास किया जायेगा लेकिन यह भी उसी दिशा में एक और क़दम होगा जिसमें यह सरकार पिछले नौ सालों से चलती आ रही है। लाख जीडीपी जीएसटी और अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने का दावा किया जाये लेकिन आंकड़े गवाह है कि देश की कुल आय का 57 प्रतिशत 10 प्रतिशत लोगों के पास है। उसमें भी 22 प्रतिशत आय अकेले 1 प्रतिशत के पास है। ऐसे ही केवल 7 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख के आसपास है। 81.5 करोड़ लोग सरकार द्वारा दिये जा रहे निशुल्क अनाज पर निर्भर हैं।_    
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*    
      अंतरिम बजट से लोकलुभावन योजनाओं की उम्मीद रखना वैसे तो मुनासिब नहीं था लेकिन परेशान जनता है कि मानो उसका दिल है कि मानता नहीं। नौकरीपेशा को आयकर में कोई छूट नहीं मिली लेकिन कॉरपोरेट को 22 की जगह टैक्स 21% ज़रूर कर दिया गया। ये विरोधाभास ही कहा जायेगा कि इससे रोज़गार बढ़ने की कोई आशा नहीं है। हालांकि कृषि क्षेत्र फसल बीमा योजना और किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा को बढ़ाया गया लेकिन इससे शायद ही किसान खुश हो सके? डिजिटल इंडिया और महिला सशक्तिकरण के लिए कई एलान किए गए हैं लेकिन किसी वर्ग के लिए इस बजट में कुछ भी ठोस नज़र नहीं आता है। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत में जिन 7 करोड़ लोगों की आमदनी सालाना 8 लाख के आसपास है। उनकी तादाद 2026 तक 10 करोड़ हो सकती है। लेकिन सवाल यह है कि देश की कुल जनसंख्या में से बाकी बचे 133 करोड़ लोगों की चर्चा चिंता और भलाई की बात क्यों नहीं की जा रही? दरअसल गोल्डमैन सैक्स उन मुट्ठीभर लोगों की चर्चा इसलिये करता है क्योंकि वे बेहद अमीर हैं। ये 7 करोड़ लोग ही आज भारत की समृध््िद उन्नति और प्रगति का प्रतीक बने हुए हैं। ये थोड़े से लोग खूब कमाते हैं, खूब जमकर खर्च करते हैं, यही थोक मंे निवेश भी करते हैं, यही वर्ग दिखवा और फालतू खर्च भी करता है, यही तबका गोल्डमैन सैक्स जैसे अमीरों के बैंक में ग्राहक बनकर जमा कर बचत भी करता है तो ज़ाहिर सी बात है कि बैंक की रिपोर्ट उनकी ही चर्चा करेगी। भारत में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 1,70,000 लगभग 70 करोड़ भारतीयों की औसत आय 3,87,000 जबकि सम्पन्न वर्ग की आमदनी 8,40,000 है। आर्थिक असमानता की हालत यह है कि नीचे के 10 से 20 प्रतिशत लोगों की मासिक आमदनी जहां 12000 है वहीं सबसे नीचे जीवन जी रहे 10 प्रतिशत भारतीयों की आय मात्र 6000 तक मानी जाती है। बाकी के 20 से 50 प्रतिशत लोग नीचे के 10 से 20 प्रतिशत वाले कम आय वाले लोगों से मामूली ही बेहतर हालत मेें हैं।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से हिसाब से 22 करोड़ तो नीति आयोग के अनुसार लगभग 16 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रहे हैं। 7 करोड़ बेहद अमीर लोगों द्वारा सफलता का समारोह मनाये जाने पर किसी को एतराज़ नहीं होगा लेकिन सबसे गरीब 22 करोड़ भारतीयों की चिंता कौन करेगा? इस आंकड़े को मनरेगा के तहत रोज़गार की तलाश कर रहे 15 करोड़ लोगों के रजिस्ट्रेशन से भी समझा जा सकता है। जिनको सरकार ने साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार देने का वादा करने के बावजूद मात्र 50 दिन का औसत काम ही दिया है। जिनको रसोई गैस का निशुल्क कनेक्शन दिया गया था। वे साल में चार रिफिल भी नहीं भरवा पा रहे हैं। एक से दो एकड़ भूमि वाले किसान जो 10 करोड़ से अधिक थे, और पीएम किसान योजना में सम्मान निधि पा रहे थे, नवंबर 2023 घटकर 8 करोड़ के आसपास रह गये हैं।       हमारा देश सरकार के दावों के अनुसार 8 से 9 प्रतिशत की स्पीड से नहीं बढ़ रहा है लेकिन अगर हम 7 की जगह 6 प्रतिशत की जीडीपी औसत बढ़त भी बनाये रख सके तो तीन साल बाद 2027 तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। इसकी वजह यह होगी कि हमारी इकाॅनोमी तब तक 38 तो जापान और जर्मनी की 15 प्रतिशत ही बढे़गी। 
इन आंकड़ों से हम यह आसानी से समझ सकते हैं कि किसी देश की जीडीपी बढ़ने में उसकी सरकार जनसंख्या और दूसरे देशों की मंदी व कम स्पीड और प्रति व्यक्ति आय की क्या भूमिका होती है? हमारे देश में 35 करोड़ लोगों को पूरा पौष्टिक भोजन भी उपलब्ध नहीं है। 81.5 करोड़ नागरिकों को सरकार 5 किलो अनाज देकर जीवन जीने में सहायता करने को मजबूर है। देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी की सालाना आमदनी 50 हज़ार रूपये होने के बावजूद वो कुल जीएसटी का 64 प्रतिशत चुका रही है। जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत इसमें मात्र 3 प्रतिशत भागीदारी कर रहे हैं। जीएसटी हर साल हर माह पहले से अधिक बढ़ने का दावा भी सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर करती है। जबकि जानकार बताते हैं कि इसका बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ती महंगाई और नित नये सामान मदों और सेवाओं पर लगाये जाने वाला कर भी है। महंगाई बढ़ाने में खुद सरकार का पेट्रोलियम पदार्थों रसोई गैस और चुनचुनकर उपभोक्ता पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना या कर की दरें लगातार बढ़ाना भी हैै। जीडीपी प्रोडक्शन का पैमाना माना जाता है। लेकिन यह उपभोग का माप भी है। जब आप कन्ज्यूमर की एक विशाल गिनती लेकर उसे एक मामूली राशि से गुणा करेंगे तो एक बहुत बड़ी संख्या आती है। 
अगर क्रय मूल्य समता यानी पीपीपी के आधार पर देखा जाये तो हमारी यह 2100 अमेरिकी डाॅलर है। जबकि यूके की 49,200 और अमेरिका की 70,000 है। अगर देश के लोग गरीब हैं तो दुनिया में जीडीपी पांचवे तीसरे नंबर पर ही नहीं नंबर एक हो जाने पर भी क्या हासिल होगा? यह एक तरह से भोली सीधी जनता को गुमराह करने का एक राजनीतिक झांसा ही है। सच तो यह है कि मोदी सरकार की नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी बिना विशेषज्ञों की सलाह लिये बिना सोचे समझे और जल्दबाज़ी में लागू करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहंुचा है जिससे यह वर्तमान में जहां खुद पहंुचने वाली थी उससे भी पीछे रह गयी है। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि जिस देश में शांति भाईचारा समानता निष्पक्षता धर्मनिर्पेक्षता न्याय नहीं होगा वहां शांति नहीं रह सकती और जब शांति नहीं होगी तो ना विदेशी निवेश आयेगा और ना ही स्थानीय स्वदेशी कारोबार से अर्थव्यवस्था बढे़गी। इसलिये ज़रूरी है कि हम सब भारतीय देशहित मंे आपस में मिलजुलकर प्यार अमनचैन और भाईचारे से रहें साथ ही सरकार अधिक अधिक लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराये जिससे हर नागरिक आत्मसम्मान के साथ बिना सरकारी सहायता जीवन जी सके।
 (नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।)