Sunday 5 July 2015

Digital Locker


अब आपको अपने important documents  साथ लेकर घूमने की जरूरत नही है।

इसके लिए सरकार ने Digital Locker लांच कर दिया है।   जहां आप जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र जैसे अहम दस्तावेजों को ऑनलाइन स्टोर कर सकते हैं।

यह सुविधा पाने के लिए बस आपके पास आधार कार्ड होना चाहिए।
आधार का नंबर फीड कर आप DIGITAL LOCKER अकाउंट खोल सकते हैं।

इस सुविधा की खास बात ये है कि एक बार लॉकर में अपने DOCUMENTS अपलोड करने के बाद आपको कहीं भी अपने सर्टिफिकेट की मूल कॉपी देने की जरूरत नहींहोगा। इसके लिए आपके DIGITAL LOCKER का लिंक ही काफी होगा।

DIGITAL LOCKER , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का अहम हिस्सा है।

डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (डीईआईटीवाई) ने  डिजिटल लॉकर का बीटा वर्जन लॉन्च किया है।

कैसे मिलेगा  :

digital locker को खोलने के लिए आपको  https://digitallocker.gov.in/   वेबसाइट पर जाकर अपनी आईडी बनानी होगी। आईडी बनाने के लिए आपको अपना आधार कार्ड नंबर से लॉगिन करना होगा।

लॉगिन होने के बाद आपसे जो इन्फॉर्मेंशन मांगी जाए उसे भरें। इसके बाद आपका अकाउंट बन जाएगा। अकाउंट खुलने के बाद आप कभी भी इस पर अपने पर्सनल डॉक्युमेंट्स अपलोड कर सकेंगे।

क्या है खासियत ?

DIGITAL LOCKER की खासियत ये है कि आप कहीं भी और कभी भी अपने डॉक्युमेंट्स इसके जरिए जमा कर सकते हैं।

डिजिटल लॉकर स्कीम में हर भारतीय एजुकेशनल, मेडिकल, पासपोर्ट और पैन कार्ड डिटेल्स को डिजिटल फॉर्म में रख सकता है।

वेबसाइट में कहा गया है, 'डिजिटल लॉकर अधिकृत उपभोक्ताओं/ एजेंसियों को किसी भी समय और कहीं भी अपने दस्तावेजों को सुरक्षित तरीके से अपलोड और साझा करने की सहूलियत देंगे।' ��

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SHAYRI

आ कहीं मिलते हैं हम,कि बहारें आ जाएं,
इससे पहले कि ताल्लुक में दरारें आ जाएं;

ये जो ख़ुद्दारी का मैला-सा अंगौछा है मेरा,
मैं अगर बेंच दूं तो इससे कई कारें आ जाएं;

दुश्मनी हो तो फिर ऐसी कि कोई एक ही रहे,
या ताल्लुक हो तो ऐसा कि पुकारें आ जाएं;

ये भी मुमकिन है कि इन ही में कही हम लेटे हों,
तुम ठहर जाना रस्ते में अगर मज़ारें आ जाए!!!

रफ़ीक शादानी

तू जेतना समझत हौ ओतना महान थोड़े है
ख़ान तो लिखत हैं लेकिन पठान थोड़े है

मार-मार के हमसे बयान करवाईस
ईमानदारी से हमरा बयान थोड़े है

देखो आबादी मा तो चीन का पिछाड़ दिहिस
हमरे देस का मरियल किसान थोड़े है

हम ई मानित है मोहब्बत में चोट खाईस है
जितना चिल्लात है ओतना चोटान थोड़े है

ऊ छत पे खेल रही फुलझड़ी पटाखा से
हमरे छप्पर के ओर उनका ध्यान थोड़े है

चुनाव आवा तब देख परे नेताजी
तोहरे वादे का जनता भुलान थोड़े है

"रफ़ीक" मेकप औ' मेंहदी के ई कमाल है सब
तू जेतना समझत हौ ओतनी जवान थोड़े है.

जिसे लिखता है तू वो ही तेरा किस्सा नहीं होता
जो अपना है वही अक्सर यहाँ अपना नहीं होता

कहीं चेहरा तो मिलता है मगर शीशा नहीं होता
कहीं आइना होता है मगर  चेहरा नहीं होता

मुहब्बत की न हो बुनियाद  तो रिश्ते  बनाएं क्यूँ
फ़क़त बरगद उगा लेने ही से साया नहीं होता

फ़क़त इंसान ही इन्सां  नहीं बनता ज़माने में
वगरना आज की दुनिया में देखो क्या नहीं होता

करे तश्हीर वो जितनी  मचाले शोरो गुल जितना
कोई क़तरा कभी फैलाव में दरिया नहीं होता

कई आंसू यहाँ चुपचाप  बह  जाते हैं  अनदेखे
हरिक आंसू की ख़ातिर  दोस्त  का कन्धा नहीं होता

वो सब कुछ देख कर और सोचकर कुछ फैसला करता
अगर मज़हब न होता तो बशर  अँधा नहीं होता

बिस्मिल अज़ीमाबादी का कलाम

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजूए कातिल में है 

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत में तेरे ऊपर निसार
ले तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल मैं है

आज फिर मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार
आयें वह, शौक़े-शहादत जिनके-जिनके दिल में है

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यों बताएँ क्या हमारे दिल में है  

अब न अगले वलवले हैं और न वह अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिले-बिस्मिल में है

[11:11AM, 1/3/2015] iqbalhindustani: ग़लतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही,
दोनो इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नही!
"तू मुझे ओर मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही, मैं भी नही "!!
"ग़लत फ़हमियों ने कर दी दोनो मैं पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नही...!!
[9:30PM, 2/22/2015] iqbalhindustani: "प्‍यास की कैसे लाए ताब कोई,
नहीं दरिया तो हो सराब कोई।

रात बजती थी दूर शहनाई,
रोया पीकर बहुत शराब कोई।

कौन सा ज़ख्‍म किसने बख्‍शा है,
उसका रखे कहाँ हिसाब कोई।

फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की,
आने वाला है फिर अज़ाब कोई।"

जावेद अख्तर
[11:57AM, 4/22/2015] iqbalhindustani: Benaam sa ye ded thrhr q nhi jata
Jo beet gya h wo guzr q nhi jata
Sb kuch to h q dhoondti rhti h nigahe
Kya baat h m ab b ghr q nhi jata
Wo ek he chehra to nhi sare jahaan me
Jo door h wo dil se utr q nhi jata
M hu apni he uljhi hui rahon ka tmasa
Jate h jidhr sb m udhr q nhi jata
Wo khwab jo brso se na chehra na bdn h
Wo khwab hwaon me bikhar q nhi jata.......
[3:36PM, 4/23/2015] iqbalhindustani: यहाँ हर शख़्स, हर पल
हादसा होने से डरता है।
खिलौना है जो मिट्टी का
फ़ना होने से डरता है।।

मेरे दिल के किसीे कोने में
एक मासूम सा बच्चा।
बड़ों की देख कर दुनिया,
बड़ा होने से डरता है ।।

ना बस में ज़िंदगी इसके
ना काबू मौत पर इसका।
मगर इंसान फिर भी कब
ख़ुदा होने से डरता है।।

अजब ये ज़िदगी की क़ैद है
दुनिया का हर इन्सां।
रिहाई मांगता है और
रिहा होने से डरता है।।
[3:36PM, 4/23/2015] iqbalhindustani: कभी खमोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊंगा मुझे जितना भुलाओगे
कभी दुनिया मुकम्मल बन के आएगी निगाहों में
कभी मेरी कमी दुनियां की हर एक शह में पाओगे
कहीं पर भी रहें हम तुम मोहब्बत फिर मोहब्बत है
तुम्हें हैम याद आएंगे हमें तुम याद आओगे
कोई जब पूछ बैठेगा ख़ामोशी का सबब तुमसे
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझ ना पाओगे।❤️
[5:55PM, 4/28/2015] iqbalhindustani: Na Bujha chiragh-e-dayaar-e-dil,
Na Bichdne Ka Tu Malal Kar,
Tujhe Degi Jeene Ka Hosla,
Meri Yaad Rakh Le Sambhal Kar,

Yay Bhi Kya K Ek Hi Shakhs Ko
Kabhi Sochna,Kabhi Bholna,
Jo Na Bujh Sake Wo Diya Jala,
Jo Na Ho Sake Wo Kamal Kar,

Gham-e-Aarzu Meri Justju,
Mein Simat Ke Aa Gaya Ru-Baru,
Ye Sukoot-e-Marg Hai Kis Liye?
Mein Jawab Du Tu Sawal Kar,

Tu Bichad Raha Hai To Soch Le,
Tere Hath Hai Meri Zindage,
Tera Routhna Meri Mout Hai,
Meri Be,basi Ka Khayal Kar…
[5:55PM, 4/28/2015] iqbalhindustani: Kabhi unka naam lena
kabhi unki baat krna
mera zoq unki chahat
mera shoq unpe mrna
kabhi chalte-2 thamna
aur tham k beth jana
kabhi ladkhda k girna
aur gir k phir sambhalna
Kabhi raat raat rona
kabhi din chade sisakna
kabi darya darya rehna…
kabi boond ko tarasna…
raha ishq se hamesha…
koi wasta hai apna…
yehi zindagi hai apni…
yehi rasta hai apna
[9:58AM, 4/29/2015] iqbalhindustani: बस एक वक्त का खंजर मेरी तलाश में है
जो रोज़ भेस बदल कर मेरी तलाश में हैं

मैं कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है

मैं देवता की तरह क़ैद अपने मंदिर में
वो मेरे जिस्म के बाहर मेरी तलाश में है

मैं जिसके हाथ में एक फूल दे के आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
[9:58AM, 4/29/2015] iqbalhindustani: मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?

ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते।

है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत
कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते।

गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।
[9:58AM, 4/29/2015] iqbalhindustani: Mere hm nafas mere hm nawa, mujhe dost bn k dga n de....!
Mai hoon drde ishq se jan-b-lab, mujhe zindagi ki duaa n de....!!
Mere daage, dil se roshni, isi roshni se h zindagi...!
Mujhe dr h ai mere charagar, ye chirag tu hi bujha n de....!!
Mera azm itna buland h, k paraye sholo ka dr nhi....!
Mujhe khauf aatishe-gul se h, ye kahin chaman ko jala n de....!!
Mujhe chod de mere hal pr, tera kya bharosa ai charagar....!
Ye teri nwazishe-mukhtsar, mera drd or badha n de.....!!
Wo uthe h leke khumo-subu, are o "shakeel" kahan h tu....!
Tera jaam lene ko bzm me koi or haath badha n de....!!
[9:24PM, 4/29/2015] iqbalhindustani: आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है
भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाज़ार है
[10:40AM, 4/30/2015] iqbalhindustani: Khuvab me gul hampe barse is qadar, chain se kanto pe soye rat bhar.
Katkar jangal basaee bastiyan, bastiyon me a basa jangal ka dar.
Kya batayen ham unhain apna pata, chitthiyan milti nahin futpath par.
Mar gayi sanvedna is daur ki, dil pe ab hota nahin koi asar.
-S.makkad
[11:18AM, 5/26/2015] iqbalhindustani: छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के,
नज़र है आईना-बरदार आओ सच बोलें

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें

सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें
[4:10PM, 5/28/2015] iqbalhindustani: Na Paane Ki Khushi Hai Kuch
Na Khone Ka Hi Kuch Gam Hai

Ye Daulat Aur Shohrat Sirf
Kuch Zakhmo Ka Marham Hai

Ajab Si Kashmakash Hai
Roz Jeene,Roz Marne Me

Mukkammal Zindagi To Hai
Magar Poori Se Kuch Kam Hai.
[3:37PM, 6/4/2015] iqbalhindustani: ग़रीब बच्चों की ज़िद भी न कर सका पूरी

तमाम उम्र खिलौनों के भाव करता रहा

****

वो मेरे बच्चों का नंगे पैर फिरना शहर भर में

और मेरा महसूस ये करना कि सड़कें जल रहीं हैं

****

ये ख़्वाब था मेरे बच्चों के ख़्वाब पूरे हों

सो अपने आपको मैंने अधूरा छोड़ दिया
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: न कोई ख्वाब हमारे है, न ताबीरे है
हम तो पानी पे बनाई हुई तस्वीरे है

कोई अफवाह गला काट न डाले अपना
ये जुबाने है कि चलती हुई शमशीरे है

हो न हो यह कोई सच बोलने वाला है क़तील
जिसके हाथो में कलम, पाँव में जंजीरे है
                                    - क़तील शिफाई
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: कोई हसीन सा नुक्ता निकल देता है
अजीब शख्स है बातो में टाल देता है

हजार फासले होने के बावजूद हमें
बड़ा सुकून किसी का ख्याल देता है

जो मछलियों को सिखाता है तैरना निकहत
वही तो है, जो मछेरो को जाल देता है -
नसीम निकहत
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: मिट्टी में मिला दे के जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
दहलीज़ पे रख दी हैं किसी
शख़्स ने आँख़ें
रोशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता
बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिलादे
फिर देख के इस शहर में क्या हो नहीं सकता
ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता
इस ख़ाक बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ
भी
क्या इतना करम बादे सबा हो नहीं सकता
पेशानी को सजदे भी अता कर मेरे मौला
आँखों से तो ये क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता
दरबार में जाना मरा दुश्वार बहुत है
जो शख़्स क़लन्दर हो गदा हो नहीं सकता।
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: है ग़लत गर गुमान में कुछ है
तुझ सिवा भी जहान में कुछ है
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा
है
आन में कुछ है, आन में कुछ है
बेखबर तेग़-ए-यार कहती है
बाक़ी इस नीम जान में कुछ है
इन दिनों कुछ अजब है मेरा हाल
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
और भी चाहिए सो कहिए अगर
दिल ए नामेहरबान में कुछ है
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
फ़ायदा इस ज़ियान में कुछ ह
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: यहाँ हर शख्स हर पल , हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिटटी का फ़ना होने से डरता है

मेरे दिल के किसी कोने में, एक मासूम सा बच्चा
बड़ो कि देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है

अजब यह जिन्दगी कि कैद है, दुनिया का हर इंसा
रिहाई मांगता है और, रिहा होने से डरता है
                                                        -राजेश रेड्डी
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: बेटी बहन बीबी के रिश्ते के समाजिक पहलू  पर एक शायर का नज़रिया

आने वाले दिन मसाइल ले के आएंगे ‘बशीर’
घर के आंगन में कई चेह्रे जवां हो जाएंगे

एक शायरा ने इस दर्द का इज़हार यूं किया-

दहेज़ की बदौलत मियां-बीवी के माबैन तलाक़ तक बात पहुंची तो एक शेर ने जन्म ले ही लिया-

तलाक़ दे तो रहे हो ग़ुरूरो-क़ह्र के साथ! !
मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेह्र के साथ! !

जाने माने शायर जनाब मुनव्वर राना ने रिश्तों को लेकर हमेशा अतभुत काव्य रचा है. उनकी ग़ज़लों में रिश्तों की महक का रंग कुछ ख़ास ही रहा है.

घरों में यूँ सयानी लड़कियाँ बेचैन रहती है
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है

रो रहे थे सब तो मै भी फ़ूटकर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रूख़सती अच्छी लगी
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: अगली कड़ी
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं

उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं

सहमी-सहमी हुई रहती हैं मकाने दिल में
आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं

टूटकर ये भी बिखर जाती हैं एक लम्हे में
कुछ उम्मीदें भी घरौंदों की तरह होती हैं

बाप का रुत्बा भी कुछ कम नहीं होता लेकिन
जितनी माँएँ हैं फ़रिश्तों की तरह होती हैं

मुनव्वर राना
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
न जाने कौन सी मजबुरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो
ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
हमारे ऐब हमें उन्गलियों पे गिन्वाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल
मुझे भी अपने गुनाहों का सिल्सिला न कहो
ये शहर वो है जहाँ राक्शस भी है "ड़हत"
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कह
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझ को ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आँसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नही
[12:07PM, 6/8/2015] iqbalhindustani: मंजिले भी उसकी थीं रास्ता भी उसका था।
एक मैं अकेला था काफ़िला भी उसका था।
साथ साथ चलने की सोच भी उसकी थी, फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था।
आज क्यों अकेला हूँ, दिल सवाल करता है,
लोग तो उसके थे क्या खुदा भी उसका था।
[12:07PM, 6/8/2015] iqbalhindustani: जुगाड़

जुगाड़ इक नई तेहज़ीब की अलामत है
बिना जुगाड़ के जीना यहाँ क़यामत है
जुगाड़ है तो चमन का निज़ाम अपना है
जुगाड़ ही को हमेशा सलाम अपना है
जुगाड़ दिन का उजाला है रात रानी भी
जुगाड़ ही से हुकूमत है राजधानी भी
जुगाड़ ही से मोहब्बत के मेले ठेले हैं
बिना जुगाड़ के हम सब यहाँ अकेले हैं
जुगाड़ चाय की प्याली में जब समाती है
पहाड़ काट के ये रास्ते बनाती है

जुगाड़ बन्द लिफाफे की इक कशिश बन कर
किसी अफसर किसी लीडर को जब लुभाती है
नियम उसूल भी जो काम कर नहीं पाते
ये बैक डोर से वो काम भी कराती है
जुगाड़ ही ने तो रिश्वत पे दिल उछाला है
जुगाड़ ही से कमीशन का बोल बाला है
जुगाड़ एक ज़ुरूरत है आदमी के लिये
जुगाड़ रीढ़ की हड्‍डी है ज़िन्दगी के लिये
मैं दूसरों की नहीं अपनी तुम्हें सुनाता हूँ
जुगाड़ ही की बदौलत यहाँ पे आया हूँ

जुगाड़ क्या है जो पूछोगे हुक्मरानों से
यही कहेंगे वो अपनी दबी जबानों से
जुगाड़ से हमें दिल जान से मोहब्बत है
जुगाड़ ही की बदौलत मियां हकूमत है
जहाँ जुगाड़ ने अपना मिजाज़ बदला है
नसीब कौम का फूटा समाज बदला है
जुगाड़ ही ने बिछाए हैं ढेर लाशों के
जुगाड़ ही ने तो छीने हैं लाल माओं के
हमें जुगाड़ से जुल्मों सितम मिटाना है
खुलूस प्यार मोहब्बत के गुल खिलाना है

करो जुगाड़ खुलुसो वफ़ा के दीप जलें
करो जुगाड़ कि फिर अमन की हवाएँ चलें
करो जुगाड़ के सिर से कोई चादर न हटे
करो जुगाड़ के औरत की आबरू न लुटे
करो जुगाड़ के हाथों को रोज़गार मिले
मेहक उठे ये चमन इक नई बहार मिले
करो जुगाड़ नया आसमाँ बनाएँ हम
कबूतर अमन के फिर से यहाँ उड़ाएँ हम
तो आओ मिले इसी को सलाम करते है
जुगाड़ की यही तेहज़ीब आम करते हैं।
[12:07PM, 6/8/2015] iqbalhindustani: मसखरा मशहूर है, आँसू छिपाने के लिए
बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए
ज़ख्म सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक
आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिए
देखकर तेरी तरक्की, खुश नहीं होगा कोई
लोग मौका ढूँढ़ते हैं काट खाने के लिए
फलसफा कोई नहीं है और न मकसद कोई
लोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए
मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए
ज़िन्दगी में गम बहुत हैं, हर कदम पर हादसे
रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए
[11:21AM, 6/9/2015] iqbalhindustani: ज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गया
कटा के पर ये परिंदा उडान से भी गया

तबाह कर गयी पक्के मकान की ख्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया

परायी आग में कूदा तो क्या मिला तुझ को
उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया

किसी के हाथ का निकला हुआ वह तीर हूँ मैं
हद्फ़ को छू न सका और कमान से भी गया
[11:21AM, 6/9/2015] iqbalhindustani: महफ़िल की खवातन
महिला शक्ति की नज़र

अनन्त कौर

तिरे ख़्याल के साँचे में ढलने वाली नहीं
मैं ख़ुशबुओं की तरह अब बिखरने वाली नहीं

तू मुझको मोम समझता है पर ये ध्यान रहे
मैं एक शमा हूँ लेकिन पिघलने वाली नहीं

तिरे लिये मैं ज़माने से लड़ तो सकती हूँ
तिरी तलाश में घर से निकलने वाली नहीं

मैं अपने वास्ते भी ज़िंदा रहना चाहती हूँ
सती हूँ पर मैं तेरे साथ जलने वाली नहीं

हरेक ग़म को मैं हँस कर ग़ुज़ार देती हूँ अब
कि ज़िंदगी की सज़ाओं से डरने वाली नहीं
[11:09AM, 6/12/2015] iqbalhindustani: बारिश
बारिश को छुआ है मैंने
छुआ है उसके अहसास को

हथेली पर गिरती हुई
बूंदो की कंपन को
महसूस किया है मैंने
ठीक उसी तरह.....
जब छू लेते हो तुम मुझे
और एक सिहरन सी
दौड़ जाती है मुझमे !

हथेली पर गिरते ही
बूंदो को अस्त व्यस्त
फैलते गिरते अपना वजूद
खोते देखा है मैंने
ठीक उसी तरह.....
जिस तरह बिखर बिखर सी
जाती हूँ मै तुममे
अपना वजूद खोते हुए
ठीक बूंदो की तरह.....!
  सुमीता प्रवीण केशवा
[11:09AM, 6/12/2015] iqbalhindustani: ज़मीन पे चल न सका आसमान से भी गया
कटा के पर ये परिंदा उडान से भी गया

तबाह कर गयी पक्के मकान की ख्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया

परायी आग में कूदा तो क्या मिला तुझ को
उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया

भुलाना चाहा तो भुलाने की इंतहा कर दी
वह शख्स अब मेरे वहम ओ गुमान से भी गया

किसी के हाथ का निकला हुआ वह तीर हूँ मैं
हद्फ़ को छू न सका और कमान से भी गया
[10:03AM, 6/15/2015] iqbalhindustani: जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल* रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख्तर
[10:03AM, 6/15/2015] iqbalhindustani: पैसा तो ख़ुशामद में, मेरे यार बहुत है
पर क्या करूँ ये दिल मिरा खुद्दार बहुत है

इस खेल में हाँ की भी ज़रूरत नहीं होती
लहजे में लचक हो तो फिर इंकार बहुत है

बेताज हुकूमत का मज़ा और है वरना
मसनद** के लिए लोगों का इसरार बहुत है
[10:03AM, 6/15/2015] iqbalhindustani: यार से ऐसी यारी रख
                दुःख में भागीदारी रख,
चाहे लोग कहे कुछ भी
                 तू तो जिम्मेदारी रख,
वक्त पड़े काम आने का
                 पहले अपनी बारी रख,
मुसीबते तो आएगी
                 पूरी अब तैयारी रख,
कामयाबी मिले ना मिले
                जंग हौंसलों की जारी रख,
बोझ लगेंगे सब हल्के
                मन को मत भारी रख,
मन जीता तो जग जीता
               कायम अपनी खुद्दारी रख......
सुप्रभात
[10:03AM, 6/15/2015] iqbalhindustani: तू जब राह से भटकेगा, मैं बोलूंगा
मुझको कुछ भी खटकेगा, मैं बोलूंगा
सच का लहजा थोड़ा टेढ़ा होता है,
तू कहने में अटकेगा, मैं बोलूंगा
अवसरवादी साथी-सा व्यवहार न कर,
हाथ अगर तू झटकेगा, मैं बोलूंगा
विश्वासों का शीशा नाज़ुक होता है,
ये शीशा जब चटकेगा, मैं बोलूंगा
मीठे-मीठे वादों के सब बाग़ दिखा,
वादों से जब भटकेगा, मैं बोलूंगा
[12:12PM, 6/16/2015] iqbalhindustani: रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें
भीड़ में उगती हुई तन्हाइयों का क्या करें

हुक्मरानी हर तरफ बौनों की, उनका ही हजूम
हम ये अपने कद की इन ऊचाइयों का क्या करें

नाज़ तैराकी पे अपनी कम न था हमको मगर
नरगिसी आँखों की उन गहराइयों का क्या करें :: अखिलेश तिवारी
[10:03AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: वाली आसी:

लोग प्यास अपनी बुझाते हैं चले जाते हैं
और दरिया है कि चुपचाप रवाँ रहता है

देर तक रहे रहे दाता तेरी ऊँची सराय
सब मुसाफ़िर हैं यहाँ कोई नहीं रह जाएगा.

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी:

अब कह दिया तो साथ निभाएंगे उम्र भर
हालाँकि दोस्ती का ज़माना तो है नहीं
[10:03AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: मरहूम साग़र खय्यामी का लिखा "आम का सेहरा"

जो आम मैं है वो लब ए शीरीं मैं नहीं रस,
रेशों मैं हैं जो शेख की दाढ़ी से मुक़द्दस,
आते हैं नज़र आम, तो जाते हैं बदन कस,
लंगड़े भी चले जाते हैं, खाने को बनारस,
होटों मैं हसीनों के जो, अमरस का मज़ा है,
ये फल किसी आशिक की, मोहब्बत का सिला है
आमद से दसहरी की है, मंडी में दस्हेरा,
हर आम नज़र आता है, माशूक़ का चेहरा,
एक रंग में हल्का है, तो एक रंग में गहरा,
कह डाला क़सीदे के एवज़, आम का सेहरा,
खालिक को है मक़सूद, के मख्लूक़ मज़ा ले,
वो चीज़ बना दी है के बुड्ढा भी चबा ले,
फल कोई ज़माने में नहीं, आम से बेहतर,
करता है सना आम की, ग़ालिब सा सुखनवर,
इकबाल का एक शेर, कसीदे के बराबर,
छिलकों पा भिनक लेते हैं , साग़र से फटीचर,
वो लोग जो आमों का मज़ा, पाए हुए हैं,
बौर आने से पहले ही, वो बौराए हुए हैं,
नफरत है जिसे आम से वो शख्स है बीमार,
लेते है शकर आम से अक्सर लब ओ रुखसार,
आमों की बनावट में है, मुज़मर तेरा दीदार,
बाजू वो दसहरी से, वो केरी से लब ए यार,
हैं जाम ओ सुबू खुम कहाँ आँखों से मुशाबे,
आँखें तो हैं बस आम की फांकों से मुशाबे,
क्या बात है आमों की हों देसी या विदेसी,
सुर्खे हों सरौली हों की तुख्मी हों की कलमी,
चौसे हों सफैदे हों की खजरी हों की फ़ज़ली,
एक तरफ़ा क़यामत है मगर आम दसहरी !
फिरदौस में गंदुम के एवज़ आम जो खाते,
आदम कभी जन्नत से निकाले नहीं जाते
[10:03AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: सब्र को दरिया कर देते हैं,
आंसू रुस्वा कर देते हैं
ज़ख्म पे मरहम रखने वाले,
ज़ख्म को गहरा कर देते हैं
हम जिस जंगल से भी गुज़रें,
उसको रस्ता कर देते हैं
रोटी महंगी करने वाले,
ज़हर को सस्ता कर देते हैं।'
डॉ नवाज़ देवबंदी
[10:03AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: कभी ऐसा नहीं लगता कभी वैसा नहीं लगता
ग़रज़ के कोई भी पूरी तरह पूरा नहीं लगता

किसी के लब पे गाली है न ग़ुस्सा है निगाहों में
ये कैसा शह्र है इसमें कोई अपना नहीं लगता

न रोशनदान चिड़ियों के, न कमरा है किताबों का
इमारतसाज़ ये नक़्शा मिरे घर का नहीं लगता

-निदा फ़ाज़ली
[10:59AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: खुशी का चाँद यहां कम जवान होता है।हमेशा फिक्र जदा आसमान होता है।।
खडा हूँ इस तरह खामोश इस तरह तनहा।कि जैसे शहर का अंतिम मकान होता है।।
तुम्हारे वास्ते बारिश की बात सही।
हमारी छत के लिए इम्तहान होता है।।
लपेटिये, इसे रखिये या काटते रहिये।
गरीब आदमी कपडे का थान होता है।।
[10:59AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: अब फर्श हैं हमारे , छतें दूसरों की हैं
ऐसा अज़ाब पहले कहाँ था घरों के साथ

कैसा लिहाज़ -पास , कहाँ की मुरव्वतें
जीना बहुत कठिन है , अब इन आदतों के साथ

बिस्तर हैं पास-पास मगर क़ुर्बतें(२) नहीं
हम घर में रह रहे हैं ,अजब फ़ासलों के साथ

मैयत(३)को अब उठाके ठिकाने लगाइये
मौक़े के सब गवाह हुए क़ातिलों के साथ

शब्दार्थ
१–तट
२- निकटता

मेरे सब पसंदीदा लेखक
परसाई जी की एक कविता

क्या किया आज तक क्या पाया?
मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?
जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?
जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?
हरी शंकर परसाई

मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिकस्त का
इल्ज़ाम अबकी बार भी क़िस्मत के सर गया
अर्से से दिल ने की नहीं सच बोलने की ज़िद
हैरान हूँ मैं कैसे ये बच्चा सुधर गया
उनसे सुहानी शाम का चर्चा न कीजिए
जिनके सरों पे धूप का मौसम ठहर गया
जीने की कोशिशों के नतीज़े में बारहा
महसूस ये हुआ कि मैं कुछ और मर गया
राजेश रेडडी

'सर्वत जमाल साहब' की एक ग़ज़ल आप सबके लिए

हमारा सब्र तोला जा रहा है
मुसल्सल झूठ बोला जा रहा है।

अभी कब्जा नहीं है उसके तन पर
अभी तो मन टटोला जा रहा है।

यकीनन हो चुकी है डील पक्की
बड़े साहब का झोला जा रहा है।

मुझे पैसा मिला तो लोग बदले
ज़ुबां में शहद घोला जा रहा है।

सुना है शांति है सरहद पे, तो फिर

घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पता
है नज़र उन पर किसी की बस्तियों को क्या पता

ढूँढ़ती हैं आज भी पहली सी रंगत फूल में
ज़हर कितना है हवा में तितलियों को क्या पता

हाल क्या है ? ठीक है, जब भी मिले इतना हुआ
किसके अन्दर दर्द क्या है, साथियों को क्या पता

धूप ने, जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें
इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता

जाएगा उनके सहारे ही शिखर तक आदमी
फिर गिरा देगा उन्हें ही सीढ़ियों को क्या पता

हसीं भी है मोहब्बत की अदाकारी भी रखता है।
मगर उससे कोई पूछे वफ़ादारी भी रखता है ।

इलाजे-जख़्मे-दिल की वो तलबगारी भी रखता है,
नये जख़्मों की लेकिन पूरी तैयारी भी रखता है।

इक ऐसा शख्स मेरी ज़िन्दगी में हो गया दाख़िल,
जो मुझको चाहता है मुझसे बेज़ारी भी रखता है।

वो मत्था टेकता है गिड़गिड़ाता है कि कुछ दे दो,
फ़िर उसके बाद ये दावा कि खुद्दारी भी रखता है।

वही है आजकल का बागबाँ जो हाथ में अपने,
दरख़्तों की कटाई के लिये आरी भी रखता है।

ख़ुदा के नाम पर भी तुम उसे बहका नहीं सकते,
वो दीवाना सही लेकिन समझदारी भी रखता है।

तुम उसके नर्म लहजे पर न जाओ ऐ जहाँ वालों,
वो है ’मेयार’ जो लफ़्जों में चिनगारी भी रखता है।

कोई सूरत निकालिये साहिब
ख़ुद को दुनिया में ढालिये साहिब

अस्ल चेहरा छिपा रहे जिसमें
इक नक़ाब ऐसा डालिये साहिब

'वाह' कह कर निभाइए  सबसे
यूँ न कमियाँ निकालिये साहिब

ख़्वाब कोई तो फल ही जाएगा
ख़्वाहिशें ख़ूब पालिए साहिब

मैकदे में भी आपसी झगड़े
छोड़िये, ख़ाक डालिये साहिब

ये ज़बां कौन अब समझता है
आँसुओं को सँभालिए साहिब

जो हक़ीक़त बयां न कर पाए
वो क़लम तोड़ डालिये साहिब

वो तो टुल्लू की मदद से आस्माँ धोते रहे।
और जमीं की प्यास को पानी के लाले पड़ गये।

जाने क्या जादू किया उस मजहबी तकरीर ने,
सुनने वाले लोगों के जहनों पे ताले पड़ गये।

भूख से मतलब नहीं उनको मगर ये फिक्र है,
कब कहाँ किस पेट में कितने निवाले पड़ गये।

जब हमारे कहकहों की गूँज सुनते होंगे गम।
सोचते होंगे कि हम भी किसके पाले पड़ गए।

मोहब्बत कम नहीं होती

हम अक्सर ये समझते हैं
जिसे हम प्यार करते हैं
उसे हम छोड़ सकते हैं
मगर ऐसा नहीं होता
मोहब्बत दयामी सच है
मोहब्बत ठहर जाती है
हमारी बात के अन्दर
हमारी जात के अन्दर
मगर ये कम नहीं होती
किसी भी दुःख की सूरत में
कभी कोई जरूरत में
कभी अनजान से गम में
हमारी आँख के अन्दर
कभी आबे-रवां बनकर
कभी कतरे की सूरत में
मोहब्बत ठहर जाती है

ये हरगिज़ कम नहीं होती

इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
मुफ़लिस का दिया हूँ मगर आँधी से लड़ा हूँ

कंदील समझ कर कोई सर काट न ले जाए
ताजिर हूँ उजाले का अँधेरे में खड़ा हूँ

सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे
मैं वक़्त के शोकेस में चुपचाप खड़ा हूँ

वो आईना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ

दुनिया का कोई हादसा ख़ाली नहीं मुझसे
मैं ख़ाक हूँ, मैं आग हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ

मिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया
सिर्फ़ इसलिए क़तरा हूँ ,मैं दरिया से जुदा हूँ

हर दौर ने बख़्शी मुझे मेराजे मौहब्बत
नेज़े पे चढ़ा हूँ कभी सूली पे चढ़ा हूँ

दुनिया से निराली है 'नज़ीर' अपनी कहानी
अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ

हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है,
तुम्ही कहो की ये अंदाज-ए-गुफ्तगुं क्या है!
जला है जिस्म जहाँ , दिल भी जल गया होगा ,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजूं क्या है!
रंगों में दोड़ने फिरने के, हम नहीं कायल ,
जब आँख ही से ना टपका तो लहू क्या है !
वो चीज़ जिसके लिए हो हमको हो बहिश्त ( स्वर्ग) अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुल्फामें(सुन्दर) मुश्कबू (कस्तूरी या सुगंध ) क्या है !!

बच्चों की गुल्लकों की खनक भी समेट ली
हम मुफलिसों का हाथ बुहारी की तरह है
बुहारी: झाडू
हमको नचा रहा है इशारों पे हर घड़ी
शायद हमारा पेट मदारी की तरह है
ये रात और दिन तो सरोते की तरह हैं
अपना वजूद सिर्फ सुपारी की तरह है

कुँअर बेचैन
[5:06PM, 7/2/2015] iqbalhindustani: इस खौफ़ से उठने नहीं देता वो कोई सर
हम ख्वाइशें अपनी कहीं मीनार न कर दें

मुश्किल से बचाई है जो एहसास की दुनिया
इस दौर के रिश्ते उसे बाज़ार न कर दें

ये सोच के नज़रें वो मिलाता ही नहीं है
आँखें कहीं ज़ज्बात का इज़हार न कर दें
[5:06PM, 7/2/2015] iqbalhindustani: खुली कपास को शोलों के पास मत रखना।
कोई बचायेगा तुमको।यह आस मत रखना।
अगर है डर तो  अंगारे समेट लो अपने।
हवा को बांधने का इलतमास मत रखना।
छिलेगा हाथ तुम्हारा जरा सी गफलत पर।
कि घर में काच का टूटा गिलास मत रखना।
[4:54PM, 7/4/2015] iqbalhindustani: आ कहीं मिलते हैं हम,कि बहारें आ जाएं,
इससे पहले कि ताल्लुक में दरारें आ जाएं;

ये जो ख़ुद्दारी का मैला-सा अंगौछा है मेरा,
मैं अगर बेंच दूं तो इससे कई कारें आ जाएं;

दुश्मनी हो तो फिर ऐसी कि कोई एक ही रहे,
या ताल्लुक हो तो ऐसा कि पुकारें आ जाएं;

ये भी मुमकिन है कि इन ही में कही हम लेटे हों,
तुम ठहर जाना रस्ते में अगर मज़ारें आ जाए!!!
ठहरी ठहरी तबियत में रवानी आई,
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई।

आज फिर नीँद को आँखो से बिछड़ते देखा,
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।

मुद्दतों बाद चला है मेरा जादू उन पर,
मुद्दतों बाद हमे बात बनानी आई।

मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।

मुद्दतों बाद मय्यसर हुआ माँ का आँचल,
मुद्दतों बाद हमे नीँद सुहानी आई।

इतनी आसानी से मिलती नही फ़न की दौलत,
ढल गयी उम्र तो गज़लो पे जवानी आई।

-इक़बाल अशहर
[12:59PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: जब तेरी धुन में जिया करते थे!
हम भी चुप चाप फिरा करते थे!!

आँख में प्यास हुवा करती थी!
दिल में तूफ़ान उठा करते थे!!

लोग आते थे ग़ज़ल सुनने को!
हम तेरी बात किया करते थे!!

सच समझते थे तेरे वादों को!
रात दिन घर में रहा करते थे!!

किसी वीराने में तुझसे मिलकर!
दिल में क्या फूल खिला करते थे!!

घर की दीवार सजाने के लिए!
हम तेरा नाम लिखा करते थे!!

वोह भी क्या दिन थे भुला कर! तुझको!
हम तुझे याद किया करते थे!!

जब तेरे दर्द में दिल दुखता था!
हम तेरे हक में दुआ करते थे!!

बुझने लगता जो चेहरा तेरा!
दाग सीने में जला करते थे!!

अपने जज्बों की कमंदों से तुझे!
हम भी तस्खीर किया करते थे!!

अपने आंसू भी सितारों की तरह!
तेरे होंटों पे सजा करते थे!!

छेड़ता था गम-ए-दुनिया जब भी!
हम तेरे गम से गिला करते थे!!

कल तुझे देख के याद आया है!
हम सुख्नूर भी हुआ करते थे!!

⭐⭐⭐मोहसिन नक़वी⭐⭐⭐
[12:59PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: मोहब्बत क्या है?

मुहब्बत ऐसा नगमा है
ज़रा भी झोल हो लय में
तो सुर कायम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा शोला है
हवा जैसी भी चलती हो
कभी मद्धम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रिश्ता है
के जिसमे बंधने वालों के
दिलों में गम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा पौधा है
जो तब भी सब्ज़ रहता है
के जब मौसम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रास्ता  है
अगर पैरों में लर्जिश हो
तो ये महरम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा दरिया है
के बारिश रूठ भी जाये
तो पानी कम नहीं होता
अमजद इस्लाम अमजद
[1:01PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना

अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा

दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है

बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना

हस्ती जी