Friday 27 July 2018

सऊदी अरब बदलेगा मुस्लिम दुनिया!

कुछ निराशावादी लोग दावा करते हैं कि पूरी दुनिया बदलेगी लेकिन मुसलमान नहीं बदलेगा। उधर सऊदी अरब में आ रहे बदलाव से कुछ कट्टरपंथी आग बबूला हो रहे हैं। लेकिन वहां के पिं्रस मुहम्मद बिन सलमान ने यह अच्छी तरह से समझ लिया है कि अपना अस्तित्व बचाना है तो उदार बदलाव लाना ही होगा।

अभी कुछ दिन पहले ही सऊदी अरब की महिलाओं को कार चलाने की आज़ादी दी गयी थी। इस पर पूरी दुनिया के कट्टरपंथी मुसलमानों ने नापसंदी तो ज़ाहिर की लेकिन वे इस बदलाव को रोक नहीं सके। ऐसे ही खुद अरब के दकियानूसी मौलवी भी इस छूट के खिलाफ थे लेकिन वे भी पिं्रस सलमान के इस फैसले को रोकने की हालत में नहीं थे। इतना ही नहीं पिछले दिनों लेबनानी गायिका हिबा तवाजी का वहां कन्सर्ट हुआ। जिसमंे हजारों सऊदी महिलायें शरीक हुयीं। पश्चिमी पॉप गायिका सेलीनडियन की ध्ुान पर वे जमकर नाचीं भी थीं।
प्रिंस मुहम्मद सलमान ने यह ऐसा काम कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। दरअसल प्रिंस ने यह बात बखूबी समझ ली है कि भविष्य नौजवानों का है। अरब की आबादी में 65 प्रतिशत आबादी 30 साल से कम उम्र की है। यही वजह है कि सऊदी सरकार में अधिकांश मंत्री भी युवा ही हैं। जानकारों का कहना है कि प्रिंस अरब में 1979 के पहले की पोज़िशन बहाल करना चाहते हैं। बताया जाता है कि उस दौर का इस्लाम उदार आध्ुानिक और सभी धर्मों के मानने वाले लोगों के लिये खुला था। आज अरब में महिलायें स्टेडियम जाकर फुटबाल मैच भी देख सकती हैैं।
सड़कों पर वे गाड़ी चला ही रही हैं। इतना ही नहीं आज अरब में थोक में सिनेमा हॉल और कन्सर्ट खोले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि प्रिंस कुछ साल बाद अरब के तेल के भंडार ख़त्म होने के बाद के हालात से निबटने के लिये अभी से बड़े पैमाने पर तैयारी कर रहे हैं। उनका मानना है कि महिलाओं को अब तक घर में क़ैद रखकर सऊदी अर्थव्यवस्था का पहले ही काफी नुकसान हो चुका है। उनको यह भी लगता है कि महिलाओं को कार चलाने से लेकर हर क्षेत्र में भागीदारी करने की इजाज़त देकर सऊदी इकॉनोमी को मज़बूत किया जा सकता है।
वे बाहरी मज़दूरों और प्रवासी कारीगरों को कम करके अपने स्थानीय नागरिकों भी रोज़गार देने की नीति अपना रहे हैं। अंदरूनी बदलावों के तौर पर व्यक्तिगज आज़ादी बढ़ाने को मज़हबी पुलिस के अध्किारों में लगातार कटौती की जा रही है। अरब शिक्षक बहुत बड़ी संख्या में विश्व स्तरीय तौर तरीके सीखने के लिये फिनलैंड भेजे जा रहे हैं। लड़कियों के लिये शारिरिक शिक्षा की क्लासंे शुरू की गयीं हैं। इतना ही सऊदी स्कूलों में साइंस के प्रोजेक्ट देने की सुविधा भी हाल ही में वहां की सरकार ने शुरू की है। एमबीएस उग्रवाद और कट्टरपंथ को पूरी तरह से ख़त्म करना चाहते हैं।
उनको यह एहसास है कि पूरी दुनिया कट्टर वहाबी इस्लाम से नफ़रत करती है। उनको यह भी पता है कि वहाबियत का गढ़ सऊदी अरब को समझा जाता है। पूरी दुनिया का मुसलमान अरब की नकल करता है। अगर अरब उदार होता जायेगा तो आज नहीं तो कल मुस्लिम दुनिया के देश भी देर सवेर उदार होने लगेंगे। वे संगीत कला के ज़रिये दूसरे धर्मो के लोगों को एक संदेश देना चाहते हैं। गैर मुस्लिमों को समान अधिकार दिये बिना यह मुमकिन नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात ये सुधार पहले ही कर चुका है। जिससे वह दुनिया का सिरमौर बनता जा रहा है।
उनको पता है कि अरब के पास तेल के ख़ज़ाने के अलावा कमाई का दूसरा कोई ज़रिया फिलहाल नहीं है। अरब को अरबों का आज का उच्च रहनसहन का स्तर बनाये रखने के लिये भविष्य में जितने धन की ज़रूरत होगी उसका आधा भी काले सोने या तेल से पूरा नहीं किया जा सकेगा। पिं्रस जिनको एमबीएस के नाम से भी जाना जाता है। आज भविष्य की उस योजना को अंजाम देने के लिये सक्रिय हो चुके हैं। जिनके साथ आने वाले कल को दुनिया के हर वर्ग और हर धर्म के लोगों से पर्यटन के ज़रिये धन जुटाया जा सके। एमबीएस समंदर किनारे कई स्थानों पर ऐसे पर्यटन स्थल विकसित करने की दूरगामी योजना पर काम कर रहे हैं।
जिसको कभी विदेशों में भी मौलवी बुरा बताते थे। प्रगति और उन्नति करने वाले लोग जानते हैं कि दुनिया अब 1400 साल पीछे नहीं जा सकती। दुनिया को हर हाल में आगे ही जाना है। अगर कोई प्रगतिशील बदलावों का विरोध करेगा तो वो खत्म हो जायेगा।
0 मज़हब को लौटा ले उसकी जगह दे दे,
इंसान क़रीने के तहज़ीब सलीक़े की ।।

ऐसे तो नहीं रुकेगी मोब लिंचिंग...

0सुप्रीम कोर्ट मीडिया और पूरी दुनिया में बदनामी के बावजूद मॉब लिंचिंग की घटनायें देश में रूकने का नाम नहीं ले रही हैं। इसकी वजह कानून की कमी नहीं बल्कि इन घटनाओं को रोकने की राजनीतिक इच्छा शक्ति सरकारों मंे ना होना है। उल्टा उन्हें इससे हिंदू वोटबैंक मज़बूत होता नज़र आ रहा है।
-इक़बाल हिंदुस्तानी
राजस्थान के अलवर में एक बार फिर से मॉब लिंचिंग की घटना हो गयी। ऐसा नहीं है कि मॉब लिंचिंग की यह आखि़री घटना है। हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों सरकारों को इस तरह की घटनायें रोकने के लिये नया और सख़्त कानून बनाने की हिदायत दे चुका है। लेकिन सबको पता है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे कई फैसले आज तक सरकारों ने लटका कर रखे हुए हैं। जिनसे उनको राजनीतिक नुकसान या फ़ायदा नज़र आता रहा है। यह बात भाजपा नहीं सभी दलों की सरकारों पर लागू होती है।
इसके अलावा मीडिया और पूरी दुनिया में बदनामी होने और भीड़ द्वारा आयेदिन होने वाली हत्या की वीभयत्स घटनाओं को विपक्ष द्वारा कानून व्यवस्था नाकाम होना बताने और विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को सुनियोजित षडयंत्र के तहत सबक सिखाने के आरोपों के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने दिखावे के लिये राज्यों को एडवाइज़री जारी कर अपना पल्ला झाड़ने की कवायद की है। पिछले दिनों लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने बजाये मॉब लिंचिंग पर सरकार की ज़िम्मेदारी स्वीकार कर अपनी नाकामी पर लज्जित होते हुए भीड़ द्वारा हत्या रोके जाने के ठोस उपाय करने के कांग्रेस को 1984 की सिख हत्याकांड की याद दिलाई।
उनका दावा था कि देश की सबसे बड़ी मॉब लिंचिंग इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ द्वारा हज़ारों सिखों को घेरकर मारना था। यहां वे सरकार की शह पर 2002 के दंगों के नाम पर एक वर्ग विशेष के उस कुख्यात नरसंहार को भूल गये जो उनके वर्तमान पीएम और तत्कालीन गुजरात सीएम मोदी के सत्ता में रहते अंजाम देने का विपक्ष और मीडिया आरोप लगाता रहा है। अगर यह मान भी लिया जाये कि 1984 की घटना भी कांग्रेस सरकार की नाकामी थी जोकि वास्तव में थी भी तो क्या इसी तरह की नाकामी भाजपा सरकार की कांग्रेस सरकार की नाकामी की वजह से क्षम्य और स्वीकार्य मानी जाये?
इसके साथ ही केंद्र सरकार यह कहकर भी अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही है कि मॉब लिंचिंग रोकना राज्य सरकारों का काम है। केंद्र सरकार से पूछा जा सकता है कि जब देश के 20 से अधिक राज्यांे में खुद भाजपा और उसके गठबंधन की सरकारें हैं तो उनको मॉब लिंचिंग रोकने के लिये भाजपा और पीएम मोदी खुद क्यों नहीं मजबूर कर सकते? लेकिन मॉब लिंचिंग को लेकर जिस तरह के निर्लज और ढीटता भरे अमानवीय बयान खुद भाजपा नेताओं के आ रहे हैं। उनसे साफ पता चलता है कि उसकी रूचि मॉब लिंचिंग को रोकने की है ही नहीं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट विपक्ष और मीडिया के दबाव में उसने केंद्रीय गृह सचिव के नेतृत्व मेें इस मामले पर लीपापोती को एक समिति बनाई ज़रूर है। लेकिन जब राजनीतिक एजेंडा कुछ और हो तो इस तरह की समिति खानापूर्ति से अधिक साबित नहीं होगी। खुद भाजपा के केंद्रीय मंत्री मॉब लिंचिंग के आरोपियों को फूल मालायें पहना रहे हैं। इसके साथ ही भाजपा नेता बेशर्मी से कह रहे हैं कि जैसे जैसे मोदी की लोकप्रियता बढ़ेगी, मॉब लिंचिंग की घटनायें भी बढ़ेंगी।
इतना ही नहीं एक भाजपा नेता बोल रहा है कि मुसलमानों को गाय को हाथ लगाते हुए भी डरना चाहिये। पुलिस भी भाजपा सरकारों की शह पर मॉब लिंचिंग करने वालोें को बचाकर अब खुद ही आरोपी को यातना देकर मार रही है। इसका मतलब यह है कि जब तक भाजपा सरकारों को मॉब लिंचिंग से हिंदू वोट बैंक से सत्ता मिलती रहेगी तब तक यह रूकने वाली नहीं है।
0 हमने सोचा था जाकर उससे फ़रियाद करेंगे,
कम्बख़्त वो भी उसका चाहने वाला निकला ।।

पुलिस इंस्पेक्टर हो तो ऐसा...

0आज पुलिस की बेईमानी और करप्शन को लेकर अकसर खिंचाई होती है। लेकिन जब कोई पुलिस कर्मचारी या अधिकारी अच्छा काम करता है तो हम सब चुप्पी साध लेते हैं। मेरठ के एक पुलिस इंस्पेक्टर ने अपने खिलाफ ही थाने में शिकायत दर्ज करके एक अभूतपूर्व और अनुकरणीय मिसाल पेश की है।

यूपी के मेरठ ज़िले में खरखौदा एक थाना है। इस थाने के इंचार्ज राजेंद्र त्यागी हैं। वैसे तो देखने में त्यागी एक आम पुलिस अफसर ही नज़र आते हैं। लेकिन उन्होंने एक काम ऐसा किया है कि उससे उनकी पहचान मेरठ ही नहीं शायद पूरे राज्य में एक ज़िम्मेदार और ईमानदार अधिकारी की बन गयी है। जब वे मेरठ के खरखौदा थाने में प्रभारी के तौर पर तैनात हुए थे। उससे पहले वहां कानून व्यवस्था की हालत बहुत ख़स्ता हो चुकी थी। दरअसल राजेंद्र त्यागी की छवि एक तेज़ तर्रार और समर्पित पुलिस इंस्पेक्टर की मानी जाती है।
उन्होंने खरखौदा थाने का चार्ज लेने के फौरन बाद अपनी इस बेशकीमती छवि को सुरक्षित बनाये रखने के लिये कुछ सख़्त और ज़रूरी फैसले लिये। त्यागी ने तय किया कि अगर उनके थाना क्षेत्र में कहीं भी लूट की घटना होती है तो इसके लिये उस इलाके का बीट कांस्टेबिल हल्का इंचार्ज और चौकी प्रभारी ज़िम्मेदार होंगे। इसके साथ ही संवेदनशील मामले जैसे हत्या बलात्कार या गोहत्या के लिये लूट की तरह उपरोक्त तीन लोगों के साथ ही इंस्पेक्टर खुद भी ज़िम्मेदार होंगे। इस फैसले से ही त्यागी की नेकनीयती और दृढ़ निश्चय का पता चलता है।
अकसर होता यह है कि ऐसे मामलों में बाद में कोई तवज्जो नहीं दी जाती। जिस समय कोई नया अफसर चार्ज लेता है। वह बड़ी बड़ी बातें और लंबे चौड़े दावे करता है। बाद में उस इलाके की जनता जनप्रतिनिधि और मीडिया तक उस अधिकारी से जवाब तलब नहीं करता कि आपने अमुख अमुख वादे और दावे किये थे। ऐसा शायद इसलिये भी होता है कि खुद जनता की तो हिम्मत नहीं होती कि वह किसी थाने के सबसे बड़े अधिकारी से जवाब तलब कर सके। इसके साथ ही इलाके के ग्रामप्रधान चेयरमैन विधायक सांसद विपक्षी नेता और मंत्री तक उस अफसर से इतने सही और गलत काम कराने लगते हैं कि उससे उसके वादों के बारे में सवाल करने का उनका मंुह ही नहीं रहता।
एक सबसे बड़ी वजह यह भी होती होगी कि खुद आज के नेता इतने झूठे और बेबुनियाद वादे करके सत्ता में आते हैं कि वे अपने वादे ही सरकार बनने के बाद भूल जाते हैं। ज़ाहिर है कि ऐसे में वे किसी अफ़सर से उसके वादों के बारे में कैसे पूछ सकते हैं? लेकिन खरखौदा में खुद इंस्पेक्टर त्यागी ने यह दावा याद रखा कि उन्होंने अपनी तैनाती के समय क्या क्या तय किया था। कुछ ही माह में जब लूट की घटनायें हुयीं तो बीट कांस्टेबिल से लेकर चौकी प्रभारी का तस्करा जीडी में दर्ज किया जाने लगा।
हालांकि खरखौदा का पुलिस स्टाफ दबी ज़बान से यह चर्चा करता रहता होगा कि खुद इंस्पेक्टर की गर्दन जब किसी संगीन अपराध में फंसेगी तो उस दिन देखेंगे कि वह अपनी घोषणाओं पर कितना खरा उतरते हैं? अचानक गोहत्या और गो तस्करी का एक बड़ा मामला सामने आया तो इंस्पेक्टर त्यागी ने अपने तीनों मतहत के साथ ही अपने खिलाफ भी जीडी में तस्करा डाल दिया कि उनकी लापरवाही से इलाके में यह संवेदनशील घटना घटी। साथ ही उन्होंने मुखबिर से सूचना पर इस तरह के गंभीर अपराधों में कई को जेल भी भेजा है। सच तो यह है कि आज ऐसे ही अफसर चाहिये।
0 दूसरों पर जब तब्सिरा किया कीजिये,
आईना सामने रख लिया कीजिये ।।

एक पार्टी हो भारतीयों की....

0पीएम मोदी ने दावा किया है कि कांग्रेस नेता ने कहा है कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। उधर कांग्रेस पार्टी ने मोदी के बयान को अफ़वाह बताया है। उधर विपक्ष भाजपा पर हिंदू कट्टर पंथियों की सियासत का आरोप लगाता रहा है। हैरत और अफ़सोस की बात है कि मानव विकास और उपलब्धियों की बजाये धर्म के नाम पर देश में सत्ताधारी दल और मुख्य विपक्षी दल में इस स्तर की घटिया सियासत जारी है।

लंबे समय से देश में संघ परिवार एक सुनियोजित दुष्प्रचार करता चला आ रहा है कि भाजपा हिंदुओं और बाकी विपक्षी दल मुसलमानों के हमदर्द हैं। वैसे तो आजकल चंद मीडिया समूह को छोड़कर लगभग सभी अख़बार और चैनल भगवा रंग से सराबोर हैं। लेकिन भाजपा का एक प्रबल समर्थक और देश का सबसे अधिक प्रसार वाला हिंदी दैनिक अख़बार समूह होने का दावा करने वाले मीडिया हाउस ने कुछ समय पहले मुुंबई के एक विख्यात उर्दू दैनिक को ख़रीदा था। उसी उर्दू दैनिक ने एक झूठा समाचार कांग्रेस के मुस्लिम विद्वानों के सम्मेलन को लेकर राहुल गांधी के नाम से यह छापा कि हां कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है।
कमाल की बात यह है कि जो आरोप खुद संघ परिवार कांग्रेस और दूसरे सेकुलर विपक्षी दलों पर लगाता रहा है कि भाजपा के अलावा सभी राजनीतिक दल मुसलमानों के ही दल हैं क्योंकि वे उनका तुष्टिकरण करते हैं। उसको खुद कांग्रेस मुखिया राहुल गांधी कैसे स्वीकार कर सकते हैं? लेकिन देश में झूठ की सियासत और फेक न्यूज़ का खेल इतने बड़े पैमाने पर चल रहा है कि पहले एक झूठा बयान संघ परिवार का समर्थक एक उर्दू अख़बार कांग्रेस नेता के नाम से छापता है। इसके बाद पीएम मोदी उस फर्जी बयान को आधार बनाकर कांग्रेस पर सियासी हमला करते हैं।
इसके बाद इस सारे सियासी खेल को समझकर कांग्रेस उस झूठे बयान का खंडन करती है। लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। यह किसी को नहीं पता चलता कि राहुल गांधी ने ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं। पीएम मोदी का कांग्रेस पर आरोप कांग्रेस को चुनाव से पहले ही चित कर देता है। यह मात्र एक फेेक न्यूज का मामूली मामला ही नहीं है बल्कि आने वाले आम चुनाव की एक बानगी भी है कि भाजपा और संघ परिवार किस तरह से सबका साथ सबका विकास सहित कई लुभावने झूठे वादे करके 2014 में सत्ता में आये और कैैसे उनके पास अब फिर से चुनाव जीतने को कोई ठोस उपलब्धि विकास या प्रगति का आंकड़ा मौजूद न होने से वे झूठे दावे फर्जी बयान और फेेक न्यूज़ के द्वारा 2019 का चुनाव जीतने को भावनात्मक साम्प्रदायिक और बनावटी मुद्दों की तलाश में हैं।
यह सबको पता है कि सोशल मीडिया पर संघ परिवार की लगभग दस लाख लोगांे की एक ट्रॉल आर्मी हर समय मुसलमानों दलितों और निष्पक्ष हिंदुओं के खिलाफ़ ज़हर उगलने का अभियान चला रही है। उन्होंने लोगों के दिमाग में मुसलमानों को लेकर इतनी घृणा और भय भर दिया है कि अगर आज किसी बेकसूर और मासूम मुसलमान को गोमांस और गोहत्या के झूठे आरोप में भीड़ पीट पीटकर मार डालती है तो उसको कट्टर हिदंुओं द्वारा गलत नहीं माना जाता। यहां तक कि मुसलमानों के साथ किसी भी तरह की नाइंसाफ़ी जुल्म और अत्याचार देशभक्ति और राष्ट्रवाद की एकमात्र पहचान बना दी गयी है।
इसी श्रृंखला में भाजपा के कुछ मंत्री जनप्रतिनिधि और संघ परिवार के नेता मुसलमानों के साथ पक्षपात अपराध और बलात्कार तक करने वाले आरोपियों के साथ खुलकर खड़े होने लगे हैं। उन्होंने सियासत को एक तरह से धर्मयुध््द में बदल दिया है। हालांकि उनकी सांप्रदायिक और मुस्लिम विरोधी नीतियों से देश व हिंदुओं का केाई भला तो दूर उल्टा उनका ही अधिक नुकसान हो रहा है। ऐसे ही कांग्रेस सहित सेकुलर दलों की मूर्खता और वोटबैंक की सियासत से मुसलमानों का भी कोई भला नहीं हुआ है। इसके विपरीत मुसलमानों के कट्टरपंथियों की नाजायज़ मांगों के सामने कांग्रेस ने झुककर भाजपा की सियासत को मज़बूत ही किया है।
अगर आज भाजपा की केंद्र और 29 में से 20 राज्यों में अपनी या गठबंधन की सरकारों के आने का कारण खोजा जाये तो साफ पता लगता है कि कांग्रेस और भाजपा में नूरा कुश्ती चल रही है। भाजपा को 2 लोकसभा सीटों से 282 पर पहंुचाने वाले बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि विवाद में कांग्रेस की भूमिका मूर्ति रखे जाने से लेकर विवादित स्थल का ताला खुलवाने और वहां राम मंदिर का शिलान्यास कराने से लेकर संघ परिवार को पर्दे के पीछे पालने पोसने तक में संदिग्ध नहीं मुस्लिम और धर्मनिर्पेक्षता विरोधी रही है।
ऐसे ही शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने से लेकर सलमान रूश्दी की सैटेनिक वर्सेज़ विवादित किताब पर दुनिया में सबसे पहले रोक लगाकर कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरता और हिंदू कट्टरता को एक साथ पनपने और फलने फूलने का मौका दिया है। 2014 की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस ने हार के कारणोें को जानने के लिये वरिष्ठ नेता ए के एंटोनी के नेतृत्व में एक जांच कमैटी बनाई थी। एंटोनी ने बड़ी मेहनत से इस मुद्दे की गहन जांच कर यह निष्कर्ष निकाला कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक दल की बन चुकी है।
हालांकि यह मात्र धरणा ही है। लेकिन राजनीति मंे सच से अधिक धरणा काम करती है। कांग्रेस ने अपने माथे पर लगे मुस्लिम समर्थक और हिंदू विरोधी होने के कलंक को धोने को आज तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। राहुल गांधी ने गुजरात के चुनाव में मात्र इतना किया कि वे कई मंदिरों में पूजा पाठ करने गये। उस दौरान कांग्रेस प्रवक्ता ने यह भी दावा किया कि राहुल गांधी बाकायदा जनेउूधारी पक्के सच्चे हिंदू हैं।
यह एक तरह से भाजपा के जाल में फंसने वाली बात थी। कांग्रेस ने कभी सच्चर कमैटी की रपट के आधार पर हिंदुओं को यह बताने को कोई सघन अभियान नहीं चलाया कि मुसलमानों की हालत तो कांग्रेस के राज में दलितों से भी ख़राब हो चुकी है। कांग्रेस ने बजाये दोनों वर्गों की साम्प्रदायिक और कट्टर शक्तियों के सामने झुकने से मना कर खुद को सब वर्गों की पार्टी साबित करने के इन आरोपों पर सदा चुप्पी साधकर नरम हिंदुत्व का आत्मघाती रास्ता अपनाने की भूल जारी रखी। ज़ाहिर है नरम हिंदुत्व के मुकाबले हमेशा कट्टर हिंदुत्व की ही जीत होती है। यह सबको पता है कि कट्टर हिंदुत्व की सियासत देश में कौन कर रहा है। हमें लगता है कि कांग्रेस उसके प्रवक्ता और राहुल गांधी भाजपा के द्वारा उसके खिलाफ चलाये मुस्लिम हमदर्द और हिंदू विरोधी अभियान में जाने अनजाने और गहरे फंसते जा रहे हैं।
0 मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है ।।

Saturday 7 July 2018

सुषमा ट्रोलिंग

सुषमा ट्रोलिंगः बोया पेड़ बबूल का तो....

सुषमा स्वराज न केवल बीजेपी की वरिष्ठ नेता हैं बल्कि विदेश मंत्री भी हैं। वह काफी सुलझी हुई नेता मानी जाती हैं। उनका सम्मान विपक्षी नेता भी करते रहे हैं, लेकिन जब उनको अंतरधार्मिक विवाह करने वाले एक जोड़े के पासपोर्ट बनवाने को लेकर हिंदूवादी उग्रवादियों ने ट्रोल किया तो पीएम मोदी सहित लगभग पूरा संघ परिवार चुप्पी साध गया।
बीजेपी में जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की छवि आडवाणी के मुकाबले काफी उदार मानी जाती थी, उसी तरह से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की इमेज भी कभी कट्टर नहीं मानी गई। हालांकि सुषमा भी आरएसएस और बीजेपी के अजेंडे को लागू करने में कभी पीछे नहीं रही, लेकिन यह अपना-अपना स्वभाव और संस्कार होता है कि कौन किस सीमा तक जाकर अपना मिशन पूरा करता है। कई बार ऐसे मौके आए जब सुषमा स्वराज ने पार्टी लाइन से इतर जाकर मानवता के आधार पर अपने मंत्रालय के द्वारा कुछ परेशान और बीमार पाकिस्तानियों तक की सहायता की।
ऐसे ही देश में जब कभी इंसानियत का सवाल आया तो सुषमा ने हिंदू-मुस्लिम का अकसर भेद नहीं किया। पिछले दिनों लखनऊ में एक ऐसा जोड़ा अपना पासपोर्ट बनवाने वहां के पासपोर्ट ऑफिस में पहुंचा, जिसने हाल ही में अंतर-धार्मिक विवाह किया था। वहां मौजूद एक अधिकारी विकास मिश्रा ने संघ परिवार की नज़र में अपने नंबर बढ़ाने की नीयत से इस जोड़े के पासपोर्ट पर यह कहकर अब्जेक्शनलगा दिया कि वे हिंदू मुस्लिम होकर पति पत्नी कैसे हो सकते हैं? मिश्रा जी ने तनवी सेठ के पति अनस सिद्दीकी को हिंदू बनने तक की सलाह दे डाली।
यह मामला जब सोशल मीडिया के ज़रिए सुषमा स्वराज तक पहुंचा तो उन्होंने तत्काल इस जोड़े का पासपोर्ट दिलाने के साथ ही विकास मिश्रा का तबादला कर दिया। बस इतनी सी बात से संघ परिवार सुषमा से बुरी तरह से नाराज़ हो गया। उन्होंने विकास मिश्रा के पक्ष और सुषमा के खिलाफ सोशल नेटवर्किंग पर मोर्चा खोल दिया। जो ट्रॉल कल तक गैरबीजेपी और गैर संघियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ज़हर उगला करते थे, वे खुलकर सुषमा के खिलाफ खुंदक निकालने लगे। सुषमा ने उनको कई बार प्यार से शालीन भाषा में समझाया कि वे असहमत हो सकते हैं, लेकिन जिस अश्ष्टि और अश्लील उग्र हिंसक भाषा का वे उनके खिलाफ प्रयोग कर रहे हैं, वह किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं की जा सकती। हालत इतनी खराब हो गई कि सुषमा के पति को टैग करके ट्रॉल यहां तक नीचता पर उतर आए कि उनसे उनकी पत्नी की पिटाई की मांग करने लगे। सुषमा की तरफ से उनकी बेटी ने सुषमा के बीमार होने और आहत होने की लाख दुहाई दी, लेकिन ट्रोल तो उनको एक मुस्लिम और हिंदू पति-पत्नी की पासपोर्ट बनवाने में मदद करने के लिये बेगम सुषमा तक नाम से संबोधित कर गंदे और घटिया आरोप लगाने से किसी कीमत पर बाज ही नहीं आये। मजबूर होकर सुषमा को बड़ी संख्या में अपने ट्विटर अकाउंट से ऐसे घटिया ट्रोलर्स को ब्लॉक करना पड़ा।

अजीब बात यह रही कि बात-बात पर ट्वीट करने वाले पीएम मोदी और बीजेपी सहित संघ के वरिष्ठ नेताओं ने इस मामले में चुप्पी साध ली। एनडीटीवी के बार-बार सवाल करने पर केवल गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सुषमा के पक्ष में बयान दिया। सोचने वाली बात है कि जिस संघ परिवार ने देश में मुसलमानों के खिलाफ ऐसा माहौल बना दिया है कि उनके पक्ष में अगर कोई बड़े से बड़ा विपक्षी नेता रिटायर्ड जज या कलाकार और कलमकार दो शब्द भी बोल दे तो ट्रोल उसको गालियां देने और धमकी देने पर उतर आते हैं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका चुतर्वेदी को ऐसे ही एक मामले में ट्रोल उनकी बेटी से रेप करने की धमकी तक दे चुके हैं।

बाद में पूरे मुल्क में थू-थू होने पर धमकी देने वाले को सरकार ने मजबूरन पकड़कर जेल भेजा है, लेकिन यह अपवाद ही माना जाएगा क्योंकि ऐसे मामले लगभग रोज़ ही सामने आते हैं। ऐसे में ट्रोल अपनी ही सोच की पार्टी से जुड़ी एक मंत्री को किसी मुस्लिम हिंदू जोड़े की जायज़ मदद करते कैसे देख सकते हैं? यही वजह है कि देश में ऐसा नफरत और अलगाव का माहौल बना दिया गया है कि केवल हिंदू समर्थक होना राष्ट्रवाद और देशभक्ति माना जाता है, जबकि मुस्लिम के पक्ष में उसके पीड़ित होने पर भी बोलने पर बोलने वाले को पाकिस्तान समर्थक और देशद्रोही बताया जाता है। यही हालत कम्युनिस्टों और निष्पक्ष हिंदुओं को लेकर है।

इस घटना से आप आने वाले उस भयावह कल का अनुमान लगा सकते हैं कि कैसे साम्प्रदायिक और संकीर्ण हिंसक तत्व दुस्साहस के साथ चोरी और सीनाज़ोरी पर उतर आए।