Sunday 31 May 2015

Beef meet exporter ?

��������������������
एक खबर पढ़ के मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है!!!
यह खबर कितनी सच है मैं दावे से नहीं नहीं कह सकता। आप भी जांच करें।
भारत की 6 बड़ी गोश्त सप्लाई करने वाली कम्पनियों में से 4 के मालिक ब्राम्हण हैं। दुनिया का सबसे बड़ा "Beef meet�� exporter country"
ब्राज़ील है, उसके बाद India,
Australia, USA, और UK.
का न० आता है।

4 बड़ी भारतीय कम्पनियां और उनका पता-

1-Al-kbeer Exports Pvt Ltd.
(Owner- Shree Shatish &
Atul Sabharwal) 92, jolly
makers/ chembur Mumbai
400021

2- Arabian Exports pvt Ltd.
(owner- Shree Sunil Kapoor)
Russion mentions,
Overlies,
Mumbai 400001

3-M.K.R frozen food Exports pvt Ltd (Owner-
Shree Madan Abot)
MG Road, Janpath
NEW DELHI 110001

4-P.M.L Industries pvt.Ltd
(Owner- shree A.S bindra)
S.C.O. 62-63Sector 3
4 -A Chandigarh 160022

मुसलमान तो ऐसे ही बदनाम किये जाते हैं, जब कि सच्चाई ये है कि मुसलमानों से ज्यादा मीट खाने वाले ईसाई ,और यहूदी हैं।

अभी पिछले दिनों बकरीद पे फेसबुक पे तरह तरह की फोटो डाल के मुसलमानों के खिलाफ माहोल बनाया गया।

जबकि विश्व प्रसिद्ध
"पशुपति नाथ" के मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कई
मंदिरों में बलि���� की प्रथा आज भी प्रचलित है।

अभी नेपाल के विश्व प्रसिद्ध
"गढ़ीमाई मंदिर " बेरियापुर में
28-29 नवम्बर को 5 लाख पशुओं की बलि दी जानी है।

यकीन ना हो तो Google पे सर्च कर सकते हैं।

कुछ समय पहले उत्तर कोरिया के एक  महंगे होटल की फोटो अखबारों में छपी थी, जिसमें 4-5 महीने के ढ़ेर सारे human embryo किचन की
रस्सी पे लाइन से बंधे लटके हुये थे।
मांसाहारी लोग. White meat के बारे में जरूर सुने होगें, जो इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशो में बहुत खाया जाता है।

कभी सोचा है कैसे बनता है ?
गाय के बछड़े को महीनों भूखा रखा जाता है,जब वो मरणासन्न हो जाता है, तब उसे काटते हैं ।

Wednesday 27 May 2015

40 tips of happy life

40 Tips For Better Life

1. Take A 10-30 Minutes Walk Every Day.
And While You Walk, Smile.

2. Sit In Silence For At Least 10 Minutes
Each Day.

3. Sleep For 7 Hours.

4. Live With The 3 E's -- Energy,
Enthusiasm, And Empathy.

5. Play More Games.

6. Read More Books Than You Did In 2014.

7. Make Time To Practice Meditation, Yoga,
And Prayer. They Provide Us With
Daily Fuel For Our Busy Lives.

8. Spend Time With People Over The Age Of
70 & Under The Age Of 6.

9. Dream More While You Are Awake.

10. Eat More Foods That Grow On Trees And
Plants And Eat Less Food That Is
Manufactured In Plants.

11. Drink Plenty Of Water.

12. Try To Make At Least Three People
Smile Each Day.

13. Don't Waste Your Precious Energy On
Gossip.

14. Forget Issues Of The Past. Don't
Remind Your Partner With His/her
Mistakes Of The Past. That Will Ruin Your
Present Happiness.

15. Don't Have Negative Thoughts Or
Things You Cannot Control. Instead
Invest Your Energy In The Positive Present
Moment.

16. Realize That Life Is A School And You
Are Here To Learn. Problems Are
Simply Part Of The Curriculum That Appear
And Fade Away Like Algebra Class
But The Lessons You Learn Will Last A
Lifetime.

17. Eat Breakfast Like A King, Lunch Like A
Prince And Dinner Like A Beggar.

18. Smile And Laugh More.

19. Life Is Too Short To Waste Time Hating
Anyone. Don't Hate Others.

20. Don't Take Yourself So Seriously. No
One Else Does.

21. You Don't Have To Win Every Argument.
Agree To Disagree.

22. Make Peace With Your Past So It Won't
Spoil The Present.

23. Don't Compare Your Life To Others'.
You Have No Idea What Their Journey
Is All About. Don't Compare Your Partner
With Others.

24. No One Is In Charge Of Your Happiness
Except You.

25. Forgive Everyone For Everything.

26.. What Other People Think Of You Is
None Of Your Business.

27. GOD ! Heals Everything.

28. However Good Or Bad A Situation Is, It
Will Change.

29. Your Job Won't Take Care Of You When
You Are Sick. Your Friends Will.
Stay In Touch.

30. Get Rid Of Anything That Isn't Useful,
Beautiful Or Joyful.

31. Envy Is A Waste Of Time. You Already
Have All You Need.

32. The Best Is Yet To Come.

33. No Matter How You Feel, Get Up, Dress
Up And Show Up.

34. Do The Right Thing!

35. Call Your Family Often.

36. Your Inner Most Is Always Happy. So
Be Happy.

37. Each Day Give Something Good To
Others.

38. Don't Over Do. Keep Your Limits.

39. When You Awake Alive In The Morning,
Thank GOD For It.

40. Please Forward This To Everyone You
Care About

Thursday 21 May 2015

Manavvar raana

एक टूटी हुई कश्ती का मुसाफिर हूॅ मैं.

हाॅ निगल जायेगा एक रोज़ समुन्दर मुझको..

इससे बढ़ कर मेरी तौहीने अना क्या होगी.

अब गदागर भी समझते हैं गदागर मुझको..

जख़्म चेहरे पे, लहू आॅखो में, सीना छलनी.

ज़िन्दगी अब तो ओढ़ा दे कोई चादर मुझको..

मेरी आॅखों में वो बीनाई अता कर मौला.

एक आॅसू भी नज़र आये समुन्दर मुझको..

कोई इस बात को माने कि न माने लेकिन.

चाॅद लगता है तेरे माथे का झूमर मुझको..

दुख तो यह है मेरा दुश्मन ही नही है कोई.

ये मेरे भाई हैं कहते हैं जो बाबर मुझको..

मुझसे आॅगन का अंधेरा भी नही मिट पाया.

और दुनियाॅ है कि कहती है "मुनव्वर" मुझको..

                               "मुनव्वर राना"
मुद्दतों पहले जो डूबी थी वो पूँजी मिल गयी,
जो कभी दरया मैं फेंकी थी वो नेकी मिल गयी,,

ख़ुदकुशी करने पर आमादा थी नाकामी मेरी,
फिर मुझे दीवार पर चढ़ती ये चींटी मिल गयी,,

मैं इसे इनाम समझूँ या सज़ा का नाम दूँ,
उंगलियां कटते ही तोहफे मैं अंगूठी मिल गयी,,

मैं इसी मिट्टी से उठा था बबूला की तरह,
और फिर एक दिन मिटटी मैं मिटटी मिल गयी,,

फिर किसी ने लक्ष्मी देवी को ठोकर मार दी,
आज कूड़ेदान से फिर एक बच्ची मिल गयी,,

                               "मुनव्वर राना"
अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा अभी बीमार ज़िन्दा है!
अभी इस शहर में उर्दू का इक अख़बार ज़िन्दा है!!

नदी की तरह होती हैं ये सरहद की लकीरें भी!
कोई इस पार ज़िन्दा है कोई उस पार ज़िन्दा है!!

ख़ुदा के वास्ते ऐ बेज़मीरी गाँव मत आना!
यहाँ भी लोग मरते हैँ मगर किरदार ज़िन्दा है!!

⭐⭐⭐मुनव्वर राना⭐⭐⭐
यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है!

जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है!!

बड़े सलीक़े से यह कह के ज़िन्दगी गुज़री!
हर एक शख़्स को मरना ज़रूर पड़ता है!!

वो दोस्ती हो मुहब्बत हो चाहे सोना हो!
कसौटियों पे परखना ज़रूर पड़ता है!!

कभी जवानी से पहले कभी बुढ़ापे में!
ख़ुदा के सामने झुकना ज़रूर पड़ता है!!

हो चाहे जितनी पुरानी भी दुश्मनी लेकिन!
कोई पुकारे तो रुकना ज़रूर पड़ता है!!

वफ़ा की राह पे चलिए मगर ये ध्यान रहे!
की दरमियान में सहरा ज़रूर पड़ता है.!!

मुनव्वर राना.
जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है
हर एक पत्थर से मेरे सर का कुछ रिश्ता निकलता है
डरा-धमका के तुम हमसे वफ़ा करने को कहते हो
कहीं तलवार से भी पाँव का काँटा निकलता है?
ज़रा-सा झुटपुटा होते ही छुप जाता है सूरज भी
मगर इक चाँद है जो शब में भी तन्हा निकलता है
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी की एड़ियों से रेत में चश्मा निकलता है
फ़ज़ा में घोल दीं हैं नफ़रतें अहले-सियासत ने
मगर पानी कुएँ से आज तक मीठा निकलता है
जिसे भी जुर्मे-ग़द्दारी में तुम सब क़त्ल करते हो
उसी की जेब से क्यों मुल्क का झण्डा निकलता है
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों-मील आती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है

मुनव्वर राना
मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं ।

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं ।

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं ।

किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं ।

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं ।

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद,
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं ।

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है,
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं ।

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं ।

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं ।

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं ।

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं ।
 
कई आँखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं,
के हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं ।

शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,
के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं ।

वो बरगद जिसके पेड़ों से महक आती थी फूलों की,
उसी बरगद में एक हरियल का जोड़ा छोड़ आए हैं ।

अभी तक बारिसों में भीगते ही याद आता है,
के छप्पर के नीचे अपना छाता छोड़ आए हैं ।

भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढ़ती होगी,
वही झूले में हम जिसको हुमड़ता छोड़ आए हैं ।

ये हिजरत तो नहीं थी बुजदिली शायद हमारी थी,
के हम बिस्तर में एक हड्डी का ढाचा छोड़ आए हैं ।

हमारी अहलिया तो आ गयी माँ छुट गए आखिर,
के हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आए हैं ।

महीनो तक तो अम्मी ख्वाब में भी बुदबुदाती थीं,
सुखाने के लिए छत पर पुदीना छोड़ आए हैं ।

वजारत भी हमारे वास्ते कम मर्तबा होगी,
हम अपनी माँ के हाथों में निवाला छोड़ आए हैं ।

यहाँ आते हुए हर कीमती सामान ले आए,
मगर इकबाल का लिखा तराना छोड़ आए हैं ।

हिमालय से निकलती हर नदी आवाज़ देती थी,
मियां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए हैं ।

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है,
के हम जल्दी में जमुना का किनारा छोड़ आए हैं ।

उतार आये मुरव्वत और रवादारी का हर चोला,
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं ।

जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये,
मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आए हैं ।

उधर का कोई मिल जाए इधर तो हम यही पूछें,
हम आँखे छोड़ आये हैं के चश्मा छोड़ आए हैं ।

हमारी रिश्तेदारी तो नहीं थी हाँ ताल्लुक था,
जो लक्ष्मी छोड़ आये हैं जो दुर्गा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नाज़ारा छोड़ आए हैं ।

कल एक अमरुद वाले से ये कहना पड़ गया हमको,
जहां से आये हैं हम इसकी बगिया छोड़ आए हैं ।

वो हैरत से हमे तकता रहा कुछ देर फिर बोला,
वो संगम का इलाका छुट गया या छोड़ आए हैं।

अभी हम सोच में गूम थे के उससे क्या कहा जाए,
हमारे आन्सुयों ने राज खोला छोड़ आए हैं ।

मुहर्रम में हमारा लखनऊ इरान लगता था,
मदद मौला हुसैनाबाद रोता छोड़ आए हैं ।

जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीँ हसरत के ख्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।
 
महल से दूर बरगद के तलए मवान के खातिर,
थके हारे हुए गौतम को बैठा छोड़ आए हैं ।

तसल्ली को कोई कागज़ भी चिपका नहीं पाए,
चरागे दिल का शीशा यूँ ही चटखा छोड़ आए हैं ।

सड़क भी शेरशाही आ गयी तकसीम के जद मैं,
तुझे करके हिन्दुस्तान छोटा छोड़ आए हैं ।

हसीं आती है अपनी अदाकारी पर खुद हमको,
बने फिरते हैं युसूफ और जुलेखा छोड़ आए हैं ।

गुजरते वक़्त बाज़ारों में अब भी याद आता है,
किसी को उसके कमरे में संवरता छोड़ आए हैं ।

हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी,
वो आँखे जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आए हैं ।

तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता है
हम अपनी झील में एक चाँद उतरा छोड़ आए हैं ।

ये दो कमरों का घर और ये सुलगती जिंदगी अपनी,
वहां इतना बड़ा नौकर का कमरा छोड़ आए हैं ।

हमे मरने से पहले सबको ये ताकीत करना है ,
किसी को मत बता देना की क्या-क्या छोड़ आए हैं ।

[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: बेटी बहन बीबी के रिश्ते के समाजिक पहलू  पर एक शायर का नज़रिया

आने वाले दिन मसाइल ले के आएंगे ‘बशीर’
घर के आंगन में कई चेह्रे जवां हो जाएंगे

एक शायरा ने इस दर्द का इज़हार यूं किया-

दहेज़ की बदौलत मियां-बीवी के माबैन तलाक़ तक बात पहुंची तो एक शेर ने जन्म ले ही लिया-

तलाक़ दे तो रहे हो ग़ुरूरो-क़ह्र के साथ! !
मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेह्र के साथ! !

जाने माने शायर जनाब मुनव्वर राना ने रिश्तों को लेकर हमेशा अतभुत काव्य रचा है. उनकी ग़ज़लों में रिश्तों की महक का रंग कुछ ख़ास ही रहा है.

घरों में यूँ सयानी लड़कियाँ बेचैन रहती है
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है

रो रहे थे सब तो मै भी फ़ूटकर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रूख़सती अच्छी लगी
[1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: अगली कड़ी
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं

उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं

सहमी-सहमी हुई रहती हैं मकाने दिल में
आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं

टूटकर ये भी बिखर जाती हैं एक लम्हे में
कुछ उम्मीदें भी घरौंदों की तरह होती हैं

बाप का रुत्बा भी कुछ कम नहीं होता लेकिन
जितनी माँएँ हैं फ़रिश्तों की तरह होती हैं

मुनव्वर राना
[1:18PM, 6/16/2015] iqbalhindustani: ज़रूरत  से अना का भारी पत्थर टूट जाता है
मगर फिर आदमी भी अन्दर -अन्दर टूट जाता है

ख़ुदा के वास्ते इतना न मुझको टूटकर चाहो
ज़्यादा भीख मिलने से गदागर टूट जाता है

तुम्हारे शहर में रहने को तो रहते हैं हम लेकिन
कभी हम टूट जाते हैं कभी घर टूट जाता है

मुनव्वर राना
[1:18PM, 6/16/2015] iqbalhindustani: वो महफ़िल में नहीं खुलता है तनहाई में खुलता है
समुन्दर कितना गहरा है ये गहराई में खुलता है

जब उससे गुफ़्तगू कर ली तो फिर शजरा नहीं पूछा
हुनर बखियागरी का एक तुरपाई में खुलता है

फ़क़त ज़ख़्मों से तक़लीफ़ें कहाँ मालूम होती हैं
पुरानी कितनी चोटें हैं ये पुरवाई में खुलता है

मुनव्वर राना
[1:18PM, 6/16/2015] iqbalhindustani: जिसने भी इस खबर को सुना सर पकड़ लिया
कल इक दिए ने आँधी का कालर पकड़ लिया
जिसकी बहादुरी के वो किस्से लिखे गए
निकला शिकार पे तो कबूतर पकड़ लिया
इक उम्र तक तो मुझको तेरा इंतज़ार था
फिर मेरी आरजुओं ने बिस्तर पकड़ लिया
.........मुनव्वर .......
[10:03AM, 6/18/2015] iqbalhindustani: मुनव्वर राना:

बिछड़ेंगे तो मर जाएंगे हम दोनो हम दोनो बिछड़कर
इक डोर में हमको यही डर बांधे हुए है.

ठंडे मौसम में भी सड़ जाता है बासी खाना
बच गया है तो ग़रीबों के हवाले कर दे.

कोई दु:ख तो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वह ज़रूरत को तलबगार से पहचानता ह
[8:46AM, 6/27/2015] iqbalhindustani: कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में
ज़मीनें बिक गईं सारी ज़मींदारी बचाने में

कहाँ आसान है पहली मुहब्बत को भुला देना
बहुत मैंने लहू थूका है घरदारी बचाने में

कली का ख़ून कर देते हैं क़ब्रों की सजावट में
मकानों को गिरा देते हैं फुलवारी बचाने में

कोई मुश्किल नहीं है ताज उठाना पहन लेना
मगर जानें चली जाती हैं सरदारी बचाने में

बुलावा जब बड़े दरबार से आता है ऐ 'राना'
तो फिर नाकाम हो जाते हैं दरबारी बचाने में
~मुनव्वर राना
[5:06PM, 7/2/2015] iqbalhindustani: समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
इतने घुटने टेके हमने, आख़िर घुटना टूट गया

देख शिकारी तेरे कारण  एक परिन्दा टूट गया,
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन शीशा टूट गया

घर का बोझ उठाने वाले बचपन की तक़दीर न पूछ
बच्चा घर से काम पे निकला और खिलौना टूट गया

किसको फ़ुर्सत इस दुनिया में ग़म की कहानी पढ़ने की
सूनी कलाई देखके लेकिन, चूड़ी वाला टूट गया

ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में
टूटा-फूटा नाच रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया

पेट की ख़ातिर फ़ुटपाथों पर बेच रहा हूँ तस्वीरें
मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया

▪मुनव्वर राना

GAS SUBSIDY ?

Why, I will not waive my gas subsidy

Mangalore Today News Network

An Open Letter to the Prime Minister
By SUMITH S. RAO

Respected Sir:

You have asked the rich and affluent people of India to waive off their share of subsidy on gas cylinders used by them in their homes and help in nation building.

I, for one would definitely prescribe to your view and gladly do so. In return, I would like all of you esteemed gentlemen and ladies who run our great country to also reciprocate our generous offer.

If only, every corporator, MLA, MP, and Minister could also waive off his gas subsidy, we the people of India would be very proud of you and salute you.

You would be setting an example to the citizens of India. Most of you have declared incomes running into a few crores while contesting the elections.

When will the day come when you will think of our poor brethren and waive off all the perks that you enjoy because of your position.

When will you stop voting unanimously for a pay hike for yourselves, while bitterly fighting against all other issues in Parliament?

When will we see you act as responsible citizens and fight over issues rather than take party based decisions?

Let me tell you, dear Sir, the Chancellor of a super power like Germany Ms. Angela Merkel rides on a public train to work, whereas in our country everyone from the Prime Minister, to the Members of Parliament, even down to the Zilla Panchayat President is allocated a car which is paid for from the coffers of our country which is filled generously by the tax payers money.

You incur thousands of rupees worth of telephone bills, electricity bills, free accommodation in luxury bungalows, avail free travel on public transportation, go on foreign jaunts on flimsy excuses and we the people of India pay for it.

When will you be a proud Indian and pay for all these facilities availed by you?

You get admitted to luxury hospitals for even a headache and especially when a probe is launched against you for any misdemeanor. Even there, you get the best beds and facilities free of charge.

Pray, tell me, Sir “When will you pay for these privileges?”

You travel in air conditioned railway coaches and fly first class in planes even when you are not on official duty. It is us, the citizens of India who pay the fare for you.

Everyone, who is anybody, stakes his claim to fame by clamouring for “Z Class” security when the actual risk assessment for that person is zero. We, the people of India pay a fortune for your security.

Alas, what a travesty of our times. That you who should be protecting the nation are being protected by the common man at his cost.

There are people in India who cannot even afford one meal a day and do not even have the strength to complain about it. Sadly, while you enjoy a cup of coffee bought at a princely sum of Rupees One or a full meal at Rupees Twelve at the Parliament canteen in air conditioned comfort and cannot be bothered about these trivial issues.

When shall you pay the full cost of a meal without passing on the bill to your countrymen?

Sir, I am just an ordinary citizen of India who dutifully pays his Income tax, Service Tax, Value Added Tax, Wealth Tax, Corporation Tax, Automobile Registration Tax and Property Tax which goes up to nearly 50 percent of our hard earned money while you enjoy the benefits of these taxes and live a privileged life because every citizen of India pays for your privileges.

The day all of you forego and waive all the unnecessary perquisites bestowed upon you by laws enacted by you would be a proud one in our nation’s history.

The day, you gentlemen who have been elected to power by the people to govern our nation become responsible citizens of INDIA will be a milestone in our history. That day, all of us will definitely waive off our gas subsidy. 

Yours sincerely, 

An honest and dutiful citizen.

Sumith S. Rao is a well known city based businessman and a former President of the District Small Scale Industries Association.  

Note:- Please circulate, so it reaches the PM.
Good afternoon friends

Saturday 16 May 2015

Basheer badr

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा,
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा,
फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम ,
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा,
आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना,
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा,
इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें,
बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा,
ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत,
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा.
-बशीर बद्र
2-
नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा
शे’र लिखा या ख़त उसको गुमनाम लिखा

उस दिन पहला फूल लिखा जब पतझड़ ने
पत्ती-पत्ती जोड़ के तेरा नाम लिखा

उस बच्चे की कापी अक्सर पढ़ता हूँ
सूरज के माथे पर जिसने शाम लिखा

कैसे दोनों वक़्त गले मिलते हैं रोज़
ये मंज़र मैंने दुश्मन के नाम लिखा

सात ज़मीनें, एक सितारा नया नया
सदियों बाद ग़ज़ल ने कोई नाम लिखा

’मीर’, ’कबीर’, ’बशीर’ इसी मक़तब के हैं
आ दिल के मक़तब में अपना नाम लिखा।

3- [1:01PM, 6/6/2015] iqbalhindustani: ��������������
उसे पाक नजरो से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फुल लाख करीब हो कभी मैंने उसको छुआ नहीं

ये खुदा कि देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तुने चाहा वो मिल गया, जिसे मैंने चाहा मिला नहीं

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अजीज है
उन्हें मेरी कोई खबर नहीं मुझे उनका कोई पता नहीं
                                                - बशीर बद्र
[12:12PM, 6/16/2015] iqbalhindustani: इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा ............
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा!
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा !!
हम भी दरिया हैं अपना हुनर मालूम है !
जिस तरफ भी चले जायेंगे रास्ता हो जायेगा !!
इतनी सचाई से मुझसे जिंदगी ने कह दिया !
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा !!
मै खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों !
जहर भी अगर इसमें होगा दवा हो जायेगा !!
सब उसी के हैं हवा खुशबू ज़मीनों आसमान !
मै जहाँ भी जाऊंगा उसे पता हो जायेगा !!
dr.bashir badar
[5:06PM, 7/2/2015] iqbalhindustani: सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा

बशीर बद्र

Faisal seoharvi...

Faisal syoharvi ki ek dardbhri ghazal...
Daulat bhee gava baithe izzat bhee gava baithe, a yar teri khatir sab kuchh hee luta baithe.
Zinda hain ya murda hain ehsas nahin ab to, is darje ka ham khud ko deevana bana baithe.
Kis bat ka ab rona kis bat ka pachhtana , khud hath se jab apne gulshan ko jala baithe.
Ghairon se gila kaisa apne hee mere faisal, jakar mere dushman se sab hath mila baithe.

Manzar bhopali

बेअमल को दुन्या में राहतें नहीं मिलतीं
दोस्तों दुआओं से जन्नतें नहीं मिलतीं

इस नए ज़माने के आदमी अधूरे हैं
सूरतें तो मिलती हैं, सीरतें नहीं मिलतीं

अपने बल पे लड़ती है अपनी जंग हर पीढ़ी
नाम से बुजुर्गों के अज्मतें नहीं मिलतीं

जो परिंदे आंधी का सामना नहीं करते
उनको आसमानों की रफतें नहीं मिलतीं

इस चमन में गुल बूटे खून से नहाते हैं
सब को ही गुलाबों की किस्मतें नहीं मिलतीं

शोहरतों पे इतरा कर खुद को जो खुदा समझे
मंज़र ऐसे लोगों की तुर्बतें नहीं मिलतीं

मंज़र भोपाली

Vaseem barelvi

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को  कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है ������

Raahat indauri

जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए
वोह पेड़ मिले हैं तुम्हे लगे लगाये हुए

ज़मीर इनके बड़े दागदार है 
ये फिर रहे है जो चेहरे धुले धुलाए हुए

जमीन ओढ़ के सोये हैं दुनिया में
न जाने कितने सिकंदर थके थकाए हुए

यह क्या जरूरी है की गज़ले ख़ुद लिखी जाए
खरीद लायेंगे कपड़े सिले सिलाये हुए।

हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए।

2-

अगर  ख़िलाफ़  है  होने दो  जान थोड़ी  है
यह सब  धुआँ  है  कोई आसमान थोड़ी  है,

लगेगी  आग  तो  आएंगे  घर  कई  ज़द में
यहाँ  पे   सिर्फ़   हमारा   मकान  थोड़ी  है,

हमारे जो मुंह से निकले  वही  सदाक़त  है
हमारे  मुंह  में   तुम्हारी   ज़ुबान  थोड़ी   है,

मैं  जानता  हूँ   कि  दुश्मन  भी  कम  नहीं
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है,

जो आज साहिबे मसनद हैं  कल नहीं  होंगे
किरायेदार   हैं    ज़ाती   मकान   थोड़ी   है,

सभी  का  ख़ून  है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी  के  बाप  का  हिन्दोस्तान  थोड़ी   है!

राहत इंदौरी

Gopal das neeraj

उनका लोकप्रिय गीत प्रस्तुत है   गीत ... कारवाँ गुज़र गया

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

- गोपालदास नीरज