Saturday, 16 May 2015

Raahat indauri

जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए
वोह पेड़ मिले हैं तुम्हे लगे लगाये हुए

ज़मीर इनके बड़े दागदार है 
ये फिर रहे है जो चेहरे धुले धुलाए हुए

जमीन ओढ़ के सोये हैं दुनिया में
न जाने कितने सिकंदर थके थकाए हुए

यह क्या जरूरी है की गज़ले ख़ुद लिखी जाए
खरीद लायेंगे कपड़े सिले सिलाये हुए।

हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए।

2-

अगर  ख़िलाफ़  है  होने दो  जान थोड़ी  है
यह सब  धुआँ  है  कोई आसमान थोड़ी  है,

लगेगी  आग  तो  आएंगे  घर  कई  ज़द में
यहाँ  पे   सिर्फ़   हमारा   मकान  थोड़ी  है,

हमारे जो मुंह से निकले  वही  सदाक़त  है
हमारे  मुंह  में   तुम्हारी   ज़ुबान  थोड़ी   है,

मैं  जानता  हूँ   कि  दुश्मन  भी  कम  नहीं
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है,

जो आज साहिबे मसनद हैं  कल नहीं  होंगे
किरायेदार   हैं    ज़ाती   मकान   थोड़ी   है,

सभी  का  ख़ून  है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी  के  बाप  का  हिन्दोस्तान  थोड़ी   है!

राहत इंदौरी

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