Sunday 31 October 2021

कांग्रेस की समझ

कांग्रेस नहीं समझती देश का मिज़ाज, लंबा चलेगा भाजपा का राज?

0 इंडियन पाॅलिटिकल स्ट्रेटेजिस्ट और चुनावी विश्लेषक प्रशांत किशोर ने कहा है कि मोदी अगर आने वाले एक दो चुनाव के बाद पीएम नहीं भी बने तो भी भाजपा अगले कई दशक तक भारत की राजनीति के केंद्र में बनी रहेगी। उनका यह भी कहना है कि राहुल गांधी देश का मिज़ाज नहीं समझ पा रहे हैं। उधर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी कुछ ऐसे ही आरोप कांग्रेस पर लगाते हुए अपनी पार्टी टीएमसी का राज्य से बाहर विस्तार शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि कांग्रेस की कमियों ग़ल्तियों और नालायकी से मोदी लगातार मज़बूत होते जा रहे हैं। लेकिन इधर यूपी में प्रियंका गांधी और हाल ही में राहुल गांधी ने बहुत कुछ नया व अच्छा भी किया है।

                  -इक़बाल हिंदुस्तानी

          2014 के चुनाव में भाजपा से करारी हार के बाद से कांग्रेस को ऐसा लग रहा था कि वह एक बार फिर 1977 1989 और 1996 में उसकी हार के बाद बनी जनता पार्टी जनता दल और संयुक्त मोर्चा सरकार के कार्यकाल पूरा किये बिना गिरने के बाद एक बार फिर से सत्ता में मोदी सरकार की ग़ल्तियों के कारण आराम से वापसी कर लेगी। लेकिन वह यह भूल गयी कि 1998 में वाजपेयी की सरकार 13 महीने बाद ही गिर जाने के बाद वह सत्ता में नहीं लौट सकी थी। उल्टा वाजपेयी की एनडीए सरकार न केवल एक बार फिर से बनी बल्कि वह पूरे 5 साल चली भी थी। यह सच है कि मोदी सरकार के पास उलब्ध्यिों के नाम पर कम लेकिन चुनाव जीतने की रण्नीति के लिये ढेर सारे तौर तरीके मौजूद रहे हैं। यही वजह है कि 2019 में मोदी सरकार न केवल एक बार फिर से जीती बल्कि उसके वोट और सीटें भी पहले से बढ़ गयीं। प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी अगर आज कांग्रेस को आईना दिखा रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे कांग्रेस के बजाये भाजपा या मोदी को सपोर्ट कर रहे हैं। सच तो यह है कि वे दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने की हिम्मत दिखा रहे हैं। दरअसल आज की भाजपा ने जिस तरह से मोदी के नेतृत्व में दो दो बार केंद्र और कई बार कई राज्यों का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से ही जीतकर धीरे धीरे लोकतंत्र को ही ख़त्म करना शुरू कर दिया है। उस सोची समझी योजना का कोई जवाब यानी विकल्प कांग्रेस और अन्य विरोधी दल अब तक नहीं खोज पा रहे हैं। मिसाल के तौर पर भाजपा ने सभी सेकुलर दलों को हिंदू विरोधी देश विरोधी और मुस्लिम समर्थक साबित करने की एक सोची समझी कांगे्रसमुक्त भारत की मुहिम लंबे समय से शुरू कर रखी है। भाजपा हिंदू साम्प्रदायिकता कट्टरता अंधविश्वास और मुस्लिम विरोधी माॅब लिंचिंग लव जेहाद सीएए एनआरसी पक्षपात अन्याय को राष्ट्रवाद देशभक्ति हिंदूराष्ट्र का चोला पहनाकर बुनियादी मुद्दों रोज़गार शिक्षा स्वास्थ्य विकास सस्ता न्याय कानून व्यवस्था करप्शन कालाधन महंगाई और दूसरी बड़ी समस्याओं से एजेंडा बदलने मंे आज तक सफल है। उसने पूरे देश में अपने 30 से 40 प्रतिशत से अधिक के वोटबैंक में जहां तरह तरह लोगों में से कुछ को कांगे्रस के विकल्प अन्य सेकुलर व जातिवादी दलों क विरोध मुसलमानों के तथाकथित तुष्टिकरण को ख़त्म कर उनको दूसरे दर्जे का डरा हुआ मजबूर नागरिक बनाने तो कुछ को शौचालय उज्जवला जलनल सौभाग्य आयुष्मान किसान सम्मान पीएम आवास योजना पाकिस्तान विरोध राममंदिर कश्मीर से धारा 370 खत्म कर उसे केंद्र शासित राज्य बनाने तो कुछ को दिवाली पर सरकारी पूजापाठ दिये जलाना कांवड़ और कुंभ मेले दशहरे पर सरकारी रामलीला पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने का दावा विदेशों में भारत का डंका बजने का झूठा प्रचार वोटबैंक तैयार किया है। ऐसे में 2024 में भी तमाम नुकसान उठाकर भी भाजपा को बार बार चुनाव जिताने वाला एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के साथ आने को तैयार नहीं होगा। आज देश में मीडिया ही नहीं न्यायपालिका तक कई मामलों में सरकार के साथ खड़े नज़र आते हैं। काॅरपोरेट और धन्नासेठ इस हाथ दे उस हाथ ले की नीति पर चलते हुए मोदी सरकार से लगभग सारे सरकारी संसाधनों को लूटने तेज़ी से निजीकरण कराने में सफल हैं। देश मंे पहली बार कारपोरेट टैक्स इनकम टैक्स से कम जमा हुआ है। देश की आधी से अधिक संपत्ति एक प्रतिशत पूंजीपतियों के हाथ में सीमित हो चुकी है। भाजपा सरकार न केवल पुलिस व नौकरशाही बल्कि सीबीआई एनआईए एनसीबी ईडी और अन्य सरकारी एजंसियों मीडिया व राजनीतिक चंदे का इस्तेमाल विपक्ष अपने विरोधियों निष्पक्ष पत्रकारों लेखकों आंदोलनकारी किसानों दलितों अल्पसंख्यकों एनजीओ जनसंगठनों सेकुलर हिंदुओं अपवाद के तौर पर बचे रह गये अख़बारों चैनलों सोशल मीडिया प्लेटफाॅम्र्स के खिलाफ खुलकर कर रही है। कांग्रेस यह नहीं समझ पा रही है कि आज देश में लेविल प्लेयिंग फील्ड नहीं बचा है। कांग्रेस यह मानने को तैयार नहीं है कि उसने अपने कार्यकाल मंे जो कुछ किया उससे भी आज भाजपा को यहां तक पहुंचने की ज़मीन मिली है। कांग्रेस मुसलमानों का मज़हबी तुष्किरण शाहबानोें जैसे मामलों में कर रही थी। वह आज भी उसे भूल नहीं मानती। कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर हिंदू साम्प्रदायिकता जिन्न बोतल से बाहर निकाला वह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं दिखाती है। कांग्रेस ने ब्रहम्णों के नेतृत्व में मुसलमान और हरिजनों के बल पर देश में कई दशक तक राज कर न केवल इन दोनों वर्गों का कोई खास भला नहीं किया बल्कि कुल आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक पिछड़ों किसानों नौजवानों और गरीबों के कल्याण के लिये नारे से आगे बढ़कर कोई ठोस योजना नया विज़न और दूरगामी प्रोग्राम नहीं बनाया जिससे आज उसको फिर से वापस सत्ता मेें लाने को समाज के किसी वर्ग में कोई हलचल ना होकर जुम्मा जुम्मा आठ दिन की आम आदमी पार्टी या क्षेत्रीय दलों के लिये भाजपा का विकल्प बनने के आसार नज़र आ रहे हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेस हाल ही में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की तेज़ होती गतिविधियों के साथ ही भाजपा नहीं पूरे संघ परिवार के प्रोपेगंडे आरएसएस जैसे वैकल्पिक संगठन हिंदू कार्ड और काॅरपोरेट व मीडिया का क्या विकल्प तलाशती है।       

 0लेखक नवभारतटाइम्सडाॅटकाम के ब्लाॅगर व स्वतंत्र पत्रकार हैं।

Friday 15 October 2021

मज़हबी गैंगवार

मानवता के दुश्मनोंमज़हबी गैंगवार बंद करो !

0कश्मीर में पिछले सप्ताह 7 लोगों की हत्या हुयी है। जिनमें 4 अल्पसंख्यक और 3 मुसलमान हैं। इनमें एक कश्मीरी पंडित एक सिख और 2 कश्मीर से बाहर के दलित भी शामिल हैं। पिछले एक साल में कश्मीर में कुल 28 लोगांे की हत्या हुयी है। इनमें भी 7 गै़र मुस्लिम शामिल हैं। इधर पूरे देश में कई मुसलमानों की धर्म के नाम पर माॅब लिंचिंग की ख़बरें भी अब न्यू नाॅर्मल बन चुकी हैं। उनके साथ पुलिस और खासतौर पर भाजपा सरकारों पर क़दम क़दम पर पक्षपात और अन्याय करने का आरोप लगता रहा है। अगर पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान अफ़गानिस्तान और बंग्लादेश में देखें तो वहां भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार पक्षपात और हमलों के मामले सामने आते रहते हैं।

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

     किसी भी देश राज्य या क्षेत्र विशेष में किसी की हत्या होना अपराध और चिंता की बात है। लेकिन किसी पर उसके धर्म की वजह से हमला बलात्कार उसको बेघर करना बिल्कुल अलग बात है। कश्मीर में आतंकियों ने 2019 में 36 और 2020 में 33 लोगों की जान उनको पुलिस और सरकार का मुखबिर बताकर ली थी। हिंदू अख़बार के अनुसार स्कूल में जब टीचर सुपिंदर कौर और उनके सहायक दीपक चंद की हत्या हुयी उस दिन अपने बाकी अल्पसंख्यक सहयोगियों को मुस्लिम स्टाफ उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाने गया। ऐसे ही कश्मीरी पंडित माखन बिंद्रू के घर स्थानीय मुसलमान बड़ी संख्या में अफ़सोस जताने और हत्या की निंदा करने को गये। साथ ही पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ़ती ने भी उनके घर जाकर हत्या की निंदा करते हुए यह शैतानों का काम बताया। जम्मू के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दिलबाग़ सिंह ने बयान दिया कि घाटी के सभी वर्गों ने इस हत्या की एक आवाज़ में निंदा की है। हत्याओं को आप संख्या के हिसाब से नहीं धर्म के हिसाब से इसलिये देख सकते हैं क्योंकि इससे कश्मीरी पंडितों में 1990 के दौर की डरावनी यादें ताज़ा हो गयी हैं। उनमें फिर से खौफ़ की लहर दौड़ने लगी है। ठीक ऐसा ही डर और गुस्सा शेष भारत में जब किसी मुसलमान या दलित की हत्या उत्पीड़न या अत्याचार करके उल्टा उसी के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज कराया जाता हैपैदा होता है। लेकिन उसपर अब कोई शोर नहीं होता। संघ परिवार ने नागरिकता और अपराध के दो दो पैमाने बना दिये हैं। भाजपा का दावा रहा है कि न्याय सबकोतुष्टिकरण किसी का नहीं। लेकिन व्यवहारिकता में वह इससे कोसों दूर है। मिसाल के तौर पर पूरे देश में तो छोड़ ही दें। कश्मीर में बीजेपी नेता और पंचायत सदस्य राकेश पंडिता की हत्या हुयी तो राज्यपाल शासन में भाजपा सरकार ने उसको 45 लाख मुआवज़ा दिया। लेकिन जब बीजेपी के ही एक मुस्लिम पंचायत सदस्य की हत्या हुयी तो उसको 5 लाख मुआवज़ा दिया गया। शुक्र है कि उसको कम से कम मुआवज़ा दिया तो गया। वर्ना भाजपा शासित राज्यों में जब भी कोई मुस्लिम इस तरह से मारा जाता है ना तो कोई भाजपा नेता कश्मीर के मुस्लिम नेताओं की तरह उसके घर जाने की ज़हमत करता है ना ही उसको न्याय और मुआवज़ा दिलाने की कोई ख़बर अब तक सामने आई है। इस तरह से जो भाजपा यह दावा करती थी कि नोटबंदी और धारा 370 हटाने से कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट जायेगी। वह खुद ही   समाज को बांटने और हर मामले को हिंदू मुस्लिम की नज़र से देखने का काम कर रही है। पक्षपात और अलग अलग पैमानों की हालत यह है कि कश्मीर में जिस दलित वीरेंद्र पासवान की हत्या हुयी थी। सरकार ने उसका शव परिवार के लाख मिन्नतें करने के बावजूद बिहार के भागलपुर ना भेजकर कश्मीर में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया। यूपी के लखीमपुर में एक मंत्री के बेटे पर अपनी जीप से चार आंदोलनकारी किसानोें को कुचलने का आरोप लगा। बड़ी मुश्किल से मुकदमा कायम हुआ। अभी तक मंत्री का इस्तीफा नहीं लिया गया। पीएम मोदी ने आज तक इस घटना की निंदा तक नहीं की। मंत्री पुत्र को सीधे पकड़ने की बजाये पुलिस उसके घर पर समन चिपकाती रही। आज जब मंत्री पुत्र पकड़ा भी गया है तो उसको वीआईपी ट्रीटमेंट देने का आरोप किसान लगा रहे हैं। उधर कश्मीर में अल्पसंख्यक की इन हत्याओं के मामले में पूछताछ के लिये अब तक सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। कश्मीर के हालात बता रहे हैं कि वहां आतंकी एक बार फिर से मज़बूत होने का प्रयास कर रहे हैं। आतंकियों ने हाल ही में एक बड़े हमले में पुंछ में कई जवानों को शहीद कर दिया है। सवाल यह है कि जब पहले ऐसा होता था तो गोदी मीडिया वहां की सरकार से सवाल पूछता था। अब वही मीडिया मोदी सरकार से सवाल तलब क्यों नहीं कर रहा कि आप पाकिस्तान आतंकियों और उनके धनश्रोत बंद करने का दावा करते थे तो अब कहां से वे फिर उभर आयेकश्मीर की हर घटना के लिये वहां के बहुसंख्यकों और पाकिस्तान को कोसने से मसला हल नहीं होगा। हालांकि यह सच है कि कश्मीर में अगर आतंकी किसी मुसलमान को मारते हैं तो उसका परिवार या धर्म के लोग कश्मीर छोड़कर भागने की कभी नहीं सोचेंगे। लेकिन कश्मीरी पंडित सिख या दलित के साथ ऐसा होगा तो वे जान बचाकर पलायन को मजबूर हो सकते हैं। ऐसा ही माॅब लिंचिंग से देश के विभिन्न राज्यों में मुसलमानों के साथ डर पैदा होता है। इतना ही नहीं सीएए के खिलाफ आंदोलन करने वाले मुसलमानों और सेकुलर हिंदुओं के साथ जिस तरह से विभिन्न भाजपा और विशेष तौर पर योगी की सरकार और दिल्ली पुलिस पेश आई वह अपने में डरावना और चिंताजनक है। हमारा कहना है कि कश्मीर हो या शेष भारत संविधान कानून कोर्ट पुलिस और सरकारों को सबके साथ एक जैसा ही व्यवहार करना चाहिये। अगर वे यह समझकर ऐसा नहीं करेंगी कि वे इतनी शक्तिशाली और सक्षम हैं कि उनका पक्षपात अन्याय या अत्याचार करने पर भी कभी कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो यह उनकी खुशफहमी है। इतिहास गवाह है कि ऐसे अंग्रेजी़ राज तानाशाह हिटलर सामंतशाही रजवाड़े ज़मींदार तुग़लकशाही एक ना एक दिन खुद अपने कर्मों से ही खत्म हो जाते हैं। बहरहाल मानवता के दुश्मन चाहे जो हों चाहे जहां हो और जितने ताक़तवर हों मज़हब के नाम पर गैंगवार जितनी जल्दी बंद कर दें देश और दुनिया का उतना ही जल्दी भला होगा।          

 मज़हब को लौटा ले उसकी जगह दे दे ,

  इंसान सलीक़े के तहज़ीब करीने की ।।

0लेखक नवभारतटाइम्सडाॅटकाम के ब्लाॅगर व स्वतंत्र पत्रकार हैं।         

Sunday 3 October 2021

प्रतीकों की राजनीति

प्रतीकों की राजनीति लोकप्रिय हो सकती हैलोकहितैषी नहीं ?

0 कांग्रेस ने पंजाब मंे पहली बार एक दलित सिख को मुख्यमंत्राी बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उधर गुजरात में भाजपा ने मुख्यमंत्राी के साथ पूरा मंत्रिमंडल बदलकर राजनीति में एक नया प्रयोग किया है। आज़ादी के बाद कई दशकों तक जिस तरह से कांग्रेस ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा है। आज ठीक उसी तरह से भाजपा शासित राज्यों में संघ परिवार कर रहा है। सवाल यह है कि धर्म जाति क्षेत्र घृणा दुष्प्रचार झूठ भावनाओं और प्रतीकों की राजनीति से जनता का भला होता है या नेताओं का?

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

     केंद्र मंे सरकार न होने से कांग्रेस को पहली बार यह अहसास हो रहा है कि जिन राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन करना है। उनके हटाये जाने वाले मुख्यमंत्री को कहां एडजस्ट करेपहले वह उनका दर्जा बढ़ाकर केंद्र में मंत्री किसी आयोग का मुखिया या गवर्नर बनाकर उनकी नाराज़गी या विद्रोह को काबू कर लेती थी। दरअसल सत्ता की अपनी अलग ही पाॅवर होती है। ऐसे में कांग्रेस हो या भाजपा उसका हाईकमान भी बहुत ताक़तवर होता है। आज यह शक्ति संघ प्रमुख और पीएम मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के हाथों में आ गयी है। अगर वे किसी को ना चाहते हुए भी सीएम पद से हटाकर दूसरे को सीएम बना देते हैं तो भूतपूर्व सीएम की यह मजाल नहीं कि वह उनका या पार्टी का राजनीतिक नुकसान कर सके। ऐसा कर्नाटक और उत्तराखंड में भी किया जा चुका है। उत्तराखंड में तो चार माह में ही दो सीएम बदल दिये गये। इस मामले में यूपी के सीएम योगी इसका अपवाद लगते हैं। इसकी वजह उनका कट्टर हिंदूवादी कोर वोट और उनकी पीठ पर संघ का हाथ माना जाता हैै। कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को केवल उन नौसीखिया नवजोत सिंह सिंधू की वजह से हटा दिया जो खुद कोई गंभीर नेता नहीं है। ऐसा ही फैसला उसने एमपी में सिंधिया को सीएम बनाकर किया होता तो वहां आज भी उसकी सरकार चल रही होती। इतना ही नहीं राजस्थान में सचिन पायलट के साथ वहां के सीएम और कांग्रेस हाईकमान जिस तरह का व्यवहार कर रहा है। आज नहीं तो कल वहां भी बगावत होगी और हो सकता है कि बिना कार्यकाल पूरा किये वहां भी कांग्रेस सत्ता से हाथ धो बैठे। कांग्रेस को दो दो लोकसभा चुनाव हारकर भी यह बात समझ नहीं आ रही कि उसको पार्टी में भी लोकतंत्र बहाल करना चाहिये। पुरानी गल्तियों से सीखना चाहिये। उसको पंजाब में एक दलित सीएम बनाकर लग रहा है कि अगला चुनाव वह केवल इसी मास्टर स्ट्राॅक से जीत सकती है। जबकि इससे ऐसा लगता है। मानो कोई दलित सीएम ही दलितों का भला कर सकता है। यह प्रयोग मायावती यूपी में सीएम बनकर कर चुकी हैं। लेकिन उनके सत्ता में रहते दलितों का कोई खास भला नहीं हुआ। ऐसे ही भाजपा ने जिस तरह से गुजरात में अपना सीएम और पूरा मंत्रिमंडल बदलकर यह संदेश देना चाहा है कि राज्य में जो कुछ हुआ उसके लिये भाजपा या संघ नहीं मुख्यमंत्री और सारे मंत्री जि़म्मेदार थे। जिनको बदल दिया गया है। यही काम जब केरल में कम्युुनिस्टों ने किया था तो सब दलों ने उनकी जमकर निंदा की थी। जबकि उन्होंने सीएम नहीं बदला था। साथ ही यह काम उन्होंने चुनाव बाद किया था। दरअसल भाजपा हो या कांग्रेस वह यह मानकर चलते हैं कि इस तरह की प्रतीकात्मक राजनीति से उनका वोट बैंक उनके साथ बना रहेगा। गुजरात में लगभग दो दशक से भाजपा सरकार लगातार चल रही है। पिछली बार 2017 में भाजपा वहां 99 सीट जीतकर बहुत किनारे पर ही सरकार बना पाई थी। इस बार वह चुनाव मेें एन्टी इंकम्बैसी से बचने को चुनाव से आधा साल पहले मुख्यमंत्री और सारा मंत्रिमंडल बदलकर यह दिखाना चाहती है कि जो काम नाराज़ जनता किसी दूसरी पार्टी को जिताकर करेगी। वह उसने चुनाव से पहले खुद ही कर दिया है। लिहाज़ा इस बार भी उसी को वोट देना। ऐसे ही पंजाब में कांग्रेस चुनाव से आधा साल पहले वहां की आबादी के 32 प्रतिशत दलितों को यह कहना चाहती है कि वह उनकी बड़ी हितैषी है। लिहाज़ा आने वाले चुनाव में कांग्रेस को ही वोट देना। ऐसे ही भाजपा आज जिस तरह से हिंदू वोटबैंक की राजनीति कर रही है। वैसी ही कांग्रेस और सपा बसपा राजद और टीएमसी जैसी सेकुलर पार्टियां मुसलमानों को रिझाकर अपना वोटबैंक बनाकर लंबे समय तक करती रही हैं। सेकुलर दल रोज़ा अफ़तारटोपी लगाकर हर ईद पर ईदगाह जाकर कब्रिस्तानों की दीवार बनवाकर उर्दू अनुवादक नियुक्त कर  चंद मस्जिद के इमामों को वेतन देकर मदरसों को थोड़ी सी ग्रांट देकर मुस्लिम पर्सनल लाॅ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बाबरी मस्जिद बचाने की दिल को छूने वाली बातें करके उनको लंबे समय तक अपना वोटबैंक बनाकर प्रतीकात्मक राजनीति करते रहे हैं। मोदी खुद को हिंदू राष्ट्रवादी और पिछड़े समाज में पैदा होने वाला बातते हैं। जबकि उनकी सूटबूट की सरकार जिस तरह से पूंजीपतियों कारपोरेट और निजीकरण की किसान मज़दूर गरीब विरोधी आर्थिक नीतियां तेज़ी से अपना रही है। उससे ना केवल पिछड़ों बल्कि शेष हिंदू समाज का भी कारोबार नौकरियों और आर्थिक नुकसान अधिक हो रहा है। इसकी वजह यह है कि उनकी भागीदारी इस क्षेत्र में पहले से ही  अल्पसंख्यकों की आबादी से अधिक रही है। भाजपा आज गैर यादव और गैर जाटव पिछड़े और दलित समाज के एक वर्ग को भी अपने साथ जोड़े रखने के लिये केंद्र और यूपी सहित अन्य भाजपा शासित राज्यों में चुनाव करीब आने पर उनके समाज से मंत्री बनाकर यह जतानी चाहती है कि वह सभी हिंदू जातियों को उनका समान प्रतिनिधित्व दे रही है। इसके साथ ही भाजपा सरकारें हर मुद्दे को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाकर खुलकर साम्प्रदायिक राजनीति भी ठीक उसी तरह से हिंदू भावनाओं के तुष्टिकरण के लिये कर रही है। जिस तरह से कभी कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय धर्मनिर्पेक्ष दल मुसलमानों को खुश करने के लिये करते थे। हालांकि सच्चर कमैटी की रिपोर्ट बता रही है कि इससे मुसलमानों का रोज़गार शिक्षा और स्वास्थ्य या सरकारी योजनाओं में उनकी आबादी से अधिक हिस्सा ना मिलने से अतिरिक्त लाभ नहीं हुआ। लेकिन आज मीडिया इतना झूठ बोल रहा है कि देश में ऐसा माहौल बन गया है। जिससे ऐसा लगता है कि हिंदुओं की तमाम समस्याओं के लिये केवल मुसलमान कसूरवार है। उधर कांवड़ वालों पर फूलों की वर्षा दिवाली पर लाखोें दिये जलाकर और दशहरा पर विदेशी कलाकारों को बुलाकर रामलीला कराकर भाजपा सराकर हिंदुओं को प्रतीकात्मक रूप से ऐसा आभास करा रही है। मानो रोज़गार शिक्षा इलाज अर्थव्यवस्था कालाधन भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था जनता के लिये कोई मायने ही ना रखती हो। कई कई हज़ार करोड़ की बड़ी बड़ी मूर्तियां लगाकर सरकारें ऐसा जता रही हैं। जैसे जनता की सबसे बड़ी ज़रूरत यही हो। आज़ादी के बाद कई दशक तक कांग्रेस ने भी दलितों और मुसलमानों के साथ यही प्रतीकात्मक खेल खेला है। लेकिन शासन प्रशासन में जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी देना नीतिगत रूप से तो सही लगता है। लेकिन किसी भी सरकार को चाहे उसका मुखिया किसी भी जाति या धर्म का हो ऐसे काम करने चाहिये। जिनसे सबका भला हो। जनता को आज सोचना चाहिये कि इस तरह से धर्म जाति नफरत और झूठ के नाम पर हर बार वोट देकर वो जीवन के असली मुद्दों से भटककर किसका भला कर रही हैअपना या नेताओं का जो नारों दावों और बड़े बड़े बयानों से आगे बढ़कर सबका विकास और सबका विश्वास हासिल नहीं कर पा रहे हैं।            

 0लेखक नवभारतटाइम्सडाॅटकाम के ब्लाॅगर व स्वतंत्र पत्रकार हैं।