Monday 20 April 2015

कांग्रेस: नेता नहीं छवि बदलो

.......लौट के राहुल घर को आये!
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0कांग्रेस को नेता नहीं ‘हिंदू विरोधी’ छवि बदलने की ज़रूरत है ?
      कांग्रेस के भावी प्रेसीडेंट राहुल गांधी अचानक 56 दिन को गायब होकर अब घर लौट आये हैं। सत्ताधारी भाजपा को भी इसपर कोई एतराज़ नहीं होना चाहिये क्योंकि उसके नेता पहले से ही ‘घर वापसी’ के अभियान पर काम करते रहे हैं। अब सवाल यह है कि कांग्रेस में अगर सोनिया की जगह राहुल गांधी नेता बन जाते हैं तो देश की सियासत पर क्या असर पड़ने वाला है? 2014 के आम चुनाव के बाद बुरी तरह हारने से आज कांग्रेस को इस बात पर चिंतन करने पर मजबूर होना पड़ा है कि आखि़र ऐसा क्यों हुआ? कांग्रेस के वरिष्ठ और ईमानदार छवि के नेता ए के एंटोनी को चुनाव में हुयी हार की समीक्षा का काम सौंपा गया था।
      एंटोनी ने पार्टी को आगाह किया था कि उसकी छवि वर्ग विशेष का हित साधने वाली बन रही है जबकि ऐसा नहीं है। अभी एंटोनी की इस बात पर ठीक से चर्चा भी नहीं शुरू हुयी थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता जाफ़र शरीफ़ ने इस बात पर असहमति जता दी कि कांग्रेस की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति के बावजूद मुसलमानों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ जबकि हिंदू उससे छिटक कर भाजपा की तरफ तेज़ी से जाने से नहीं रोका जा सका। इसके बाद गुलाम नबी आज़ाद ने भी यह बात दोहराई कि संघ परिवार के इस मिथ्या प्रचार से हिंदुओं के बड़े वर्ग को यह लगने लगा है कि कांग्रेस हिंदू हित की विरोधी है। इस के बाद इस बड़े और अहम मुद्दे पर बहस के बजाये चर्चा इस बात पर होने लगी कि कांग्रेस के प्रेसीडेंट राहुल गांधी बनाये जायें तो कांग्रेस का भला हो सकता है?
     कुछ कांग्रेसी जीहजूरों का सुझाव था कि राहुल की जगह प्रियंका को नेता बनाने से पार्टी का जादू तेज़ी से चल सकता है। अगर कांग्रेस का आज़ादी के बाद का इतिहास भी देखें तो पंडित नेहरू ने समान नागरिक संहिता की बजाये जब मुस्लिम पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की हिम्मत न करके समानांतर हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया तो हिंदुओं को तभी यह लगने लगा कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रही है। इसी तरह की राजनीति जनता पार्टी जनता दल वामपंथी सपा बसपा से लेकर सेकुलर समझे जाने वाले क्षेत्रीय दल भी करने लगे। कांग्रेस ने तब ऐसा करने का कारण अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना को ख़त्म करना बताते हुए कश्मीर में भी धारा 370 ख़त्म न कर उसके मुस्लिम बहुल होने से वहां भी तुष्टिकरण की नीति अपनानी शुरू की जिससे जनसंघ को हिंदुओं में यह संदेश देने का अवसर मिला कि कांग्रेस उनसे अधिक मुस्लिमों का हित साध रही है।
     संघ ने हिंदुओं से कहा कि कश्मीर के मुसलमान भारत के साथ रहने की कांग्रेस से कीमत वसूल रहे हैं। 1967 में जब गौरक्षा का मुद्दा उठा तो कांग्रेस ने हिंदू भावनाओं को कोई खास भाव नहीं दिया जिससे उनमें यह धरणा और मज़बूत होने लगी कि कांग्रेस केवल अल्पसंख्यकों और विशेषरूप से मुस्लिमों को खुश रखने में रूचि लेती है। बंग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर जब कांग्रेस ने उनके मुस्लिम अधिक तादाद में होने की वजह से उनको सुप्रीम कोर्ट के बार बार निर्देश के बाद भी देश से बाहर निकालने की बजाये वोट बैंक बनाकर देश की सुरक्षा से समझौता करने की घिनौनी कोशिश मानवीय संवेदना और धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर की तो हिंदुओं में उसकी छवि और भी ख़राब होती चली गयी।
     साम्प्रदायिकता को लेकर कांग्रेस का दोगलापन हिंदुओं को इसलिये भी खलने लगा कि वह हिंदू साम्प्रदायिकता के नाम पर संघ और भाजपा को तो अछूत मानती है जबकि केरल मेें मुस्लिम लीग और ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस के साथ गठबंधन करके साझा सरकार बनाने में उसे कोई हिचक नहीं थी। शाहबानो मामले से कांग्रेस के सेकुलर ताबूत में अंतिम कील ठुक गयी। सुप्रीम कोर्ट ने एक मानवीय और न्यायसंगत फैसला किया था कि अगर कोई मुस्लिम अपनी पत्नी को बिना किसी वाजिब वजह के तलाक देता है तो उसको अपनी पत्नी को दूसरी शादी करने तक गुज़ारा भत्ता देना होगा। यह एक सामाजिक सुधारवादी निर्णय था लेकिन कांग्रेस मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में संविधान संशोधन कर इस फैसले को पलटने पर उतर आई जिससे हिंदुओं को एक बार फिर यह एहसास हुआ कि मुस्लिम वोटबैंक की वजह से कांग्रेस उनकी बहुसंख्यक होने के बावजूद उपेक्षा कर रही है।
     ऐसे ही हिंदुओं की श्रध््दा से जुड़ा रामजन्म भूमि का मुद्दा कांग्रेस ने जब कानूनी दांवपेंच में उलझाकर हल करना चाहा तो हिंदू समुदाय भाजपा की तरफ मुड़ गया। कम्युनिस्टों के सहयोग से बनी यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक परस्ती की सारी सीमायें तोड़कर जब सच्चर कमैटी की रिपोर्ट लागू करने के लिये मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने सेना में उनकी तादाद पता कराने और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह द्वारा सरकारी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों का पहला अधिकार बताया तो हिंदू बड़ी तादाद में कांग्रेस चिढ़ गया लेकिन विडंबना यह थी कि जिस मुस्लिम वोट के लिये कांग्रेस यह सब नाटक कर रही थी वह भी कांग्रेस से खुश नहीं हो सका क्योेंकि उसका विकास भी वास्तव में नहीं हो पाया था।
     उनका अपना मज़हबी कट्टरपन और अंधी आस्था भी हालांकि इसके लिये ज़िम्मेदार रही है लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह संविधान विरोधी होने के बाद भी महाराष्ट्र में मुस्लिमों को आरक्षण देने की जल्दबाज़ी की उससे हिंदू फिर उसे अपने खिलाफ मान बैठा। आतंकवाद को लेकर कांग्रेस पर ये आरोप लगते रहे कि वह मुस्लिम आतंकवादियों के प्रति नरम है जबकि हिंदू और भगवा आतंकवाद का झूठा प्रचार करके उदार और सहिष्णु हिंदुओं को बदनाम कर रही है। राहुल गांधी ने तो एक बार यहां तक कह दिया कि देश के लिये सबसे बड़ा ख़तरा केसरिया आतंकवाद है। हालांकि उनकी यह आशंका इसलिये ठीक थी कि अल्पसंख्यक से अधिक बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता ख़तरनाक मानी जाती है क्योंकि वह सत्ता में आकर तानाशाही और फासिज़्म में बदल सकती है।
     साम्प्रदायिक हिंसा विध्ेायक पास करने के बारे में भी हिंदुओं में यह संदेश गया कि वह बहुसंख्यक होने की वजह से उनको उन दंगों की सज़ा देने का कानून बनाना चाहती है जो वे न करके खुद अल्पसंख्यक शुरू करते हैं। इतना ही नहीं संघ परिवार के ‘घर वापसी’ अभियान का कांग्रेस ने जब विरोध किया तो हिंदुओं को लगा कि जब मुस्लिम और ईसाई हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा सकते हैं तो केवल घर वापसी का विरोध कांग्रेस अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता की वजह से ही कर रही है। उधर कांग्रेस का यह दांव भी उल्टा पड़ गया कि मुस्लिम, दलित और ईसाई केवल उसके राज मंे ही सुरक्षित हैं अगर भाजपा किसी तरह से किसी दिन सत्ता में आ गयी तो वह देश को हिंदू राष्ट्र बनाकर इन वर्गों के नागरिक अधिकार ख़त्म कर देगी।
     ऐसा कुछ नहीं हुआ और उधर क्षेत्रीय दलों के साथ आप और बसपा जैसी पार्टियां जब विकल्प के तौर सामने आईं तो कांग्रेस के हिंदू भाजपा में और दलित व मुस्लिम क्षेत्रीय दलोें में चले गये। आज राहुल गांधी चाहे जो करलें जब तक कांग्रेस यह विश्वास हासिल नहीं कर लेती कि वह भ्रष्टाचार और झूठे वादे करने की बजाये सबका निष्पक्ष और समान वास्तविक विकास करेगी तब तक उसकी केंद्र में सत्ता में वापसी होना कठिन ही नहीं लगभग असंभव है यह अलग बात है कि खुद मोदी सरकार ही भूमि अधिग्रहण विध्ेायक जैसे किसान विरोधी कानून बनाने पर आमादा रहती है तो कांग्रेस बिना नीति बदले ही सत्ता में मोदी की तरह विकल्पहीनता की वजह से लौट सकती है।
0 मुझे क्या ग़रज़ पड़ी है तेरी हस्ती मिटाने की,
  तेरे आमाल काफी हैं तेरी बरबादियों के लिये।।











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Wednesday 15 April 2015

U P D.M. cug no.

उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों के
संपर्क सूत्र...
District Magistrate Uttar Pradesh CUG
No's
Sl.No District CUG No.
1 DM Agra 9454417509
2 DM Aligarh 9454417513
3 DM Aligarh 9454415313
4 DM Allahabad 9454417517
5 DM Ambedkar Nagar 9454417539
6 DM Amroha 9454417571
7 DM Auraiya 9454417550
8 DM Azamgarh 9454417521
9 DM Badaun 9415908422
10 DM Baghpat 9454417562
11 DM Bahraich 9454417535
12 DM Ballia 9454417522
13 DM Balrampur 9454417536
14 DM Banda 9454417531
15 DM Barabanki 9454417540
16 DM Bareilly 9454417524
17 DM Basti 9454417528
18 DM Bijnor 9454417570
19 DM Budaun 9454417525
20 DM Bulandshahar 9454417563
21 DM Chandauli 9454417576
22 DM Chitrakoot 9454417532
23 DM CSJM Nagar 9454418891
24 DM Deoria 9454417543
25 DM Etah 9454417514
26 DM Etawah 9454417551
27 DM Faizabad 9454417541
28 DM Farrukhabad 9454417552
29 DM Fatehpur 9454417518
30 DM Firozabad 9454417510
31 DM Gautambudh Nagar 94544
32 DM Ghaziabad 9454417565
33 DM Ghazipur 9454417577
34 DM Gonda 9454417537
35 DM Gorakhpur 9454417544
36 DM Hamirpur 9454417533
37 DM Hapur 8449053158
38 DM Hardoi 9454417556
39 DM Hathras 9454417515
40 DM J.P.Nagar 5922262999
41 DM Jalaun 9454417548
42 DM Jaunpur 9454417578
43 DM Jhansi 9454417547
44 DM Kannauj 9454417555
45 DM Kanpur Nagar 9454417554
46 DM Kashiram Nagar 9454417516
47 DM Kaushambhi 9454417519
48 DM Kheri 9454417558
49 DM Kushinagar 9454417545
50 DM Lalitpur 9454417549
51 DM Lucknow 9454417557
52 DM Maharaj Ganj 9454417546
53 DM Mahoba 9454417534
54 DM Mainpuri 9454417511
55 DM Mathura 9454417512
56 DM Mau 9454417523
57 DM Meerut 9454417566
58 DM Mirzapur 9454417567
59 DM Moradabad 9454417572
61 DM MRT 1212664133
62 DM Muzaffar Nagar 9454417574
63 DM Mzn 9454415445
64 DM PA Mujeeb 9415908159
65 DM Pilibhit 9454417526
66 DM Pratapgarh 9454417520
67 DM Raebareili 9454417559
68 DM Ramabai Nagar 9454417553
69 DM Rampur 9454417573
70 DM Saharanpur 9454417575
71 DM Sambhal 9454416890
72 DM Sant Kabir Nagar 9454417529
73 DM Sant Ravidaas Nagar
9454417568
74 DM Shahjhanpur 9454417527
75 DM Shamli 9454416996
76 DM Shrawasti 9454417538
77 DM Siddhathnagar 9454417530
78 DM Sitapur 9454417560
79 DM Sonbhadra 9454417569
80 DM Sultanpur 9454417542
81 DM Unnao 9454417561
82 DM Varansi 9454417579

ना जुर्म करे ना होने दे।
करे सीधे जिला अधिकारी से संपर्क।
उत्तर प्रदेश बनेगा अब उत्तम प्रदेश.

Tuesday 14 April 2015

कश्मीरी पंडितों की वापसी

कश्मीरी पंडितों की वापसी उनका हक़ है, भीख नहीं!
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0चाहे मु़फती सरकार गिरानी पडे़ या और सेना लगानी पडे़ झुकें नहीं।
       62000 कश्मीरी पंडित परिवार हर बार राज्य में सरकार बदलने पर यह उम्मीद नये सिरे से लगाते हैं कि उनकी अपने घर सुरक्षित वापसी इस बार ज़रूर होगी लेकिन नयी सरकार के शपथ लेने के बाद हर बार खूब चर्चा इस मुद्दे पर होकर बात आई गयी हो जाती है। इस बार चूंकि राज्य में जो गठबंधन सरकार बनी है उसमें पहली बार भाजपा की भागीदारी भी है और साथ ही भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में भी मौजूद है जिससे कश्मीरी पंडितों को इस बार सरकार से पहले से अधिक आशा इस बात की होना स्वाभाविक ही है कि इस बार उनका मामला ज़ोरशोर से चर्चा से आगे बढ़कर अमल में आयेगा उचित ही लगता है। लगभग ढाई दशक से कश्मीरी पंडित बेघर होकर दड़बेनुमा उन राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं जो एक तरह से यातना शिविर अधिक नज़र आते हैं।
      सवाल यह है कि कोई अपना घर आंगन कारोबार और मातृभूमि छोड़कर कब तक उन कैम्पों में ज़िंदगी गुज़ार सकता है जिनमें तकलीफ़ों का अंबार लगा है। जब कोई इंसान अपना पुशतैनी घर श्रध्दास्थल और यादें छोड़कर किसी डर या मजबूरी में पलायन करता है तो उसके दिल पर कितना बोझ होता है यह कोई और आदमी ठीक से अंदाज़ नहीं लगा सकता। घाटी की वो सुंदरता वो आब ओ हवा वो खुशनुमा माहौल जब बार बार टीन के तपते कैंपों में गर्मी और बरसात में याद आता है तो दिल तड़प जाता है। एक मुहाजिर का दर्द और मन की पीड़ा व व्यथा हर कोई नहीं समझ सकता। मुझे तो इस तरह की कल्पना करने से ही तकलीफ और गुस्से व ग़म के सैलाब का अहसान सताने लगता है और जब इस दुख और परेशानी को कोई दो दशके से अधिक से जी रहा हो झेल रहा हो और भुगत रहा हो उसका क्या हाल होगा?
    राज्य में चुनाव से पहले हर पार्टी यह दावा और वादा करती रही है कि कश्मीर को मज़हब के नाम पर नहीं बांटा जाना चाहिये और कश्मीर हिंदू पंडितों का भी उतना ही है जितना कि घाटी के मुसलमानों का, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह केवल चुनावी नारा और घोषणा पत्रों का दिखावटी आश्वासन ही अधिक नज़र आता है। वैसे तो उस मुफती सरकार से कश्मीरी पंडितों के वापसी की आशा करना रेगिस्तान में पानी तलाश करना ही माना जायेगा जिसके मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय पाकिस्तान और अलगाववादियों को देने में ज़रा भी शर्म या हिचक महसूस नहीं की थी।
     अगर मुफ़ती इसके साथ साथ भारतीय सेना कश्मीरी जनता और चुनाव आयोग को भी राज्य में लोकतंत्र को निष्पक्ष चुनाव के लिये मज़बूत करने का सिला देते तो भी बात किसी सीमा तक गले से उतर सकती थी लेकिन अब वे कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में प्राथमिकता के आधार पर शामिल कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी पर अगर मगर कर रहे हैं। यह अजीब और दोगली बात है कि एक तरफ़ तो कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित घर वापसी को लेकर सब पक्ष सहमत नज़र आते हैं लेकिन जब वास्तव में इस काम को अंजाम देने की योजना पर अमल की बात आती है तो अलगाववादी और विपक्ष इसके विरोध में तरह तरह के बहाने बनाने लगते हैं। अब विवाद कश्मीरी पंडितों के लिये राज्य में अलग टाउनशिप बनाने को लेकर उठा है।
    जो लोग उनके लिये अलग टाउनशिप की तुलना इस्राईल में यहूदी बस्तियों से कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिये कि इस्राईल जिन फिलिस्तीन बस्तियों में अपनी यहूदी आबादी को जबरन कब्ज़ा करने की नीयत से एक सुनियोजित साज़िश के तहत पूरी दुनिया को ठंेगा दिखाकर बसा रहा है क्या कश्मीरी पंडितों पर वह मिसाल लागू करने का कोई समान आधार है? कश्मीरी पंडित कश्मीर के मूल निवासी हैं और उनको पाकिस्तान और कश्मीर के अलगाववादी तत्वों ने घाटी को मुस्लिम आबादी तक सीमित करने के लिये बाकायदा आतंकी अभियान चलाकर वहां से बेदख़ल किया है।
    अगर ऐसा करने वालों को यह खुशफ़हमी है कि वे अपनी ताक़त के बल पर ऐसा करने में सफल रहे हैं और अब वे नहीं चाहेंगे तो कश्मीरी पंडित घाटी में अपने घर कभी वापस नहीं लौट सकेंगे तो उनको सरकार भी सेना की तैनाती बढ़ाकर कश्मीरी पंडितों की उनके पुराने घरों या संभव न हो तो नई टाउनशिप में वापसी कराकर यह अहसास करा सकती है कि भारत सरकार और कश्मीर सरकार अलगाववादियों आतंकवादियों और उनके आक़ा पाकिस्तान को जब चाहे तब उनकी औक़ात और हैसियत बता सकती है। अगर इस योजना पर अमल में मुुुफ़ती सरकार बाधा डालती है या अपने वायदे से मुकरती है तो भाजपा को चाहिये कि वह गठबंधन सरकार गिराकर और राज्यपाल शासन लगाकर सेना की मदद से हर कीमत पर कश्मीरी पंडितों की घाटी मेें समय रहते वापसी कराये क्योंकि पंडितों ने कभी कानून हाथ में नहीं लिया है।
     भाजपा को यह भी याद रखना होगा कि अगर वह कश्मीरी पंडितों की घाटी में सुरक्षित वापसी जैसे अहम इरादे को भी पूरा करने से गुरेज़ करती है तो उसको सत्ता का भूखा माना जायेगा। पीडीपी जैसी अलगावादी और उग्रवादी समर्थक पार्टी के साथ गठबंधन करने को लेकर भाजपा की पहले ही काफी फ़ज़ीहत हो चुकी है। अब भाजपा के पास यह बचाव का हथियार भी नहीं है कि कश्मीर में अपना एजेंडा लागू करने में वह केंद्र में अपनी सरकार न होने की वजह से असहाय है।
     धारा 370 हटाने की बात एक बार फिर ठंडे बस्ते में डालने से भाजपा की हालत सत्ता और विपक्ष में अलग अलग बात बोलने से पहले ही चाल चरित्र और चेहरे पर उंगली उठने से पतली हो रही है अब कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी पर भाजपा को किसी कीमत पर नहीं झुकना चाहिये वर्ना हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत उस पर लागू होने में देर नहीं लगेगी क्योंकि कालाधन वापस लाने और भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर वह पहले ही दबाव में है।
0कैसे आसमां में सुराख़ हो नहीं सकताए
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारोा












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00कैसे आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।।

Saturday 11 April 2015

हाशिमपुरा हत्याकांड

हाशिमपुरा कांडः 28 साल बाद भी न्याय न मिलने पर सन्नाटा?
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0‘न्याय सबको, तुष्टिकरण किसी का नहीं’ नारा देने वाले भी चुप।
       हर समाज और देश में कट्टर और उदार सभी तरह के कम और ज्यादा लोग सदा से रहते रहे हैं। हम जैसे उदार मानवीय और निष्पक्ष सोच के लोग उस दिन से कट्टर और आतंकवाद समर्थक सोच के लोगों को जवाब देते देते परेशान हैं जिस दिन से मेरठ के हाशिमपुरा हत्याकांड पर कोर्ट का  पीएसी के सभी 19 आरोपियोें को बरी करने का विवादित फैसला आया है। 22 मई 1987 को यूपी के मेरठ ज़िले के हाशिमपुरा में 42 मुस्लिम युवकों को मारने का आरोप पीएसी पर लगा था। इस मामले को लेकर मुस्लिमों के दो वर्ग रहे हैं। एक का कहना था कि कानून देर से ही सही इस हत्याकांड में आज नहीं तो कल इंसाफ हर हाल में करेगा इसलिये किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिये।
      दूसरा वर्ग जो तादाद में भले ही बहुत कम हो लेकिन वह आतंकवाद और कट्टर सोच का समर्थक माना जाता है उसका शुरू से ही यह दावा रहा है कि यह हत्याकांड अचानक या अंजाने में नहीं हुआ बल्कि सोची समझी साज़िश के तहत दंगों में भारी पड़ने वाले मुस्लिम समाज को आतंकित करने के लिये बाकायदा अंजाम दिया गया था लिहाज़ा इसमें कानून का सहारा न लेकर आत्मघाती तरीके से बदला लेकर हत्यारोें और उनके आकाओं को सबक सिखाया जाना चाहिये जिससे भविष्य में कोई इस तरह की जुर्रत फिर से करने का दुस्साहस न करे लेकिन आज 28 साल बाद जो फैसला अदालत से आया उसमें कानून का सम्मान करने वाला उदार और सेकुलर पक्ष एक तरह से बुरी तरह मात खा गया।
      आज कानून हाथ में लेकर आतंकवाद का खुला समर्थन और अपने बल पर सज़ा देने को ही न्याय और दुश्मनों को कड़ा संदेश देने की मांग करने वाला कट्टरपंथी वर्ग इस बात की दुहाई दे रहा है कि देश का कानून अंधा और हमारी सरकारी व्यवस्था अमीर ताक़तवर और तिगड़मी बेईमान लोगों के हाथ का खिलौना बन चुकी है। अब हम जैसे उदार मानवीय सोच व कानून का सम्मान करने वाले और देश की न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा करने वाले निष्पक्ष लोग मुस्लिम समाज को बात बात पर हिंसा और बदले की कार्यवाही के लिये गैर कानूनी तरीके से भड़काने वालों के सामने ला जवाब हैं।
      और तो और इस निर्णय को आये दो सप्ताह बीतने वाले हैं लेकिन दुख और हैरत इस बात की है कि जिन सेकुलर दलों की सरकार के रहते यह वीभत्स हत्याकांड हुआ वे तो आरोपियों को बचाने में पहले दिन से लगी ही रहीं, जिनका नारा रहा है ‘न्याय सबको, तुष्किरण किसी का नहीं’ वे भाजपा वाले भी ऐसी रहस्यमयी चुप्पी साध्ेा हैं जैसे मुसलमान इस देश के नागरिक न हों या ये नारा केवल वे हिंदुओं के लिये ही लगाते रहे हों। यह माना कि कोर्ट ने जो फैसला दिया वह उपलब्ध तथ्यों, तर्कों, गवाह और सबूत के आधार पर कानून जो कर सकता था वही किया लेकिन समय पर आती जाती रही विभिन्न दलों की सरकारों की नालायकी, आरोपियों को बचाने को की गयी लापरवाही और जानबूझकर की गयी देरी यह सच्चाई और हकीकत चीख़ चीख़कर बयान कर रही है कि राजनेताओं प्रशासनिक मशीनरी और पुलिस व सुरक्षा बलों को लेकर उन सब दलों की नीति लगभग एक सी है चाहे वे विपक्ष में रहकर जो भी दावे करती हों।
    रात के अंध्ेारे मेें हेलमेट पहने पीएसी के जवानों को कत्लेआम करते पहचानना जो मरने से बच गये उनके लिये तो कठिन हो सकता है लेकिन किस क्षेत्र में उस दिन पीएसी की कौन सी बटालियन ड्यूटी पर गयी थी। किसके आदेश पर गयी थी और किसके कहने पर उसने ट्रक में चुन चुनकर मुस्लिम नौजवानों को भरा, फिर जंगल में दूर ले गयी, फिर वाहन से उतारकर गोलियों से भून डाला, फिर  गंग नहर और हिंडन नदी में उनकी लाशों को बहा दिया गया? यह सरकार न जानती हो ऐसा नहीं माना जा सकता। ऐसे ही ढेर साले सवाल उस समय के गाज़ियाबाद के एसपी वी एन राय सहित अनेक निष्पक्ष हिंदू समाज के बुध्दिजीवियों ने भी उठाये हैं जिन पर तत्कालीन सत्ताधारी दल कांग्रेस से लेकर आज की मुसलमानों की कथित हमदर्द समाजवादी पार्टी की सरकार भी अपराधिक चुप्पी साधे बैठी है।
    मरने वाले मुस्लिम नौजवानों में से संयोग से कुछ गोली लगने के बाद भी ज़िंदा बच गये जिससे यह मामला खुला लेकिन तीन दशक बाद भी इंसाफ इसलिये नहीं मिला क्योंकि इसमें तत्कालीन सत्ता में बैठे राजनेताओं की शह होने की बू आ रही है। हालांकि यह दावा नहीं किया जा सकता कि जो मुस्लिम नौजवाद मारे गये सब बेकसूर हों लेकिन उनके दोषी होने पर भी उनको सज़ा देने का यह गैर कानूनी तरीका किसी भी तर्क से ठीक नहीं ठहराया जा सकता बल्कि सच और आशंका तो यह है कि ऐसे हत्याकांडों के बाद इतने लंबे समय तक न्याय न होने पर देश की दुश्मन ताक़तें मुसलमानों के एक वर्ग को आतंकवाद के रास्ते पर भटकाकर ले जाने में कामयाब भी हो सकती हैं जो बड़ा ख़तरा बन सकता है।
     यह अजीब विडंबना है कि एक तरफ दीमापुर में न्यायिक हिरासत में बलात्कार के आरोप में जेल में बंद एक मुस्लिम युवक को पुलिस हज़ारों लोगों की उग्र भीड़ के हवाले कर देती है जिससे उसको नंगा करके कई किलोमीटर घसीटकर जानवर से भी बदतर मौत मार दिया जाता है और दूसरी तरफ किसी मुस्लिम पर पुलिस द्वारा आतंकवाद का आरोप मात्र लगने से ही कुछ वकील साहेबान अपने ही साथी वकीलों को आरोपी की पैरवी करने से भी जबरन रोकते हैं। इसका मतलब यह है कि किसी को मुजरिम साबित करने के लिये हमारे ही संविधान द्वारा बनाई गयी अदालतों में मुकदमा चलाने की कोई ज़रूरत नहीं है? अगर वास्तव में ऐसा ही है तो और मामलों में आरोपी को अपने कानूनी बचाव का अवसर और वकील रखने की सुविधा क्यों दी जाती है?
      क्या केवल मुसलमानों और आतंकवाद के मामले में ही यह दोहरा रूख़ अपनाया जा सकता है क्योेंकि जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित पर आतंकी घटनाओं का आरोप लगता है तो हिंदू संगठन अदालत के बाहर उनके निर्दाेष होने का दावा करते हुए उन पर केस चलाये बिना उनकी बाइज़्ज़त रिहाई की मांग करते हैं। उनको वकील भी उपलब्ध कराने पर किसी को कोई एतराज़ नहीं होता? इसका मतलब आतंकवादी सिर्फ मुसलमान ही होे सकता है? कुछ लोग ऐसा कैसे मान सकते हैं? तर्क और तथ्य तो यह प्रमाणित करते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। समझ में नहीं आता यह कौन सा समानता न्याय और निष्पक्षता का संवेदनशील मानवीय गरिमा का रास्ता है?  
0हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता ।।



























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