Thursday, 12 June 2025

पाकिस्तान हल्कान

पाकिस्तान: अपने आतंक के बोझ से खुद होगा हलकान!
0 आॅप्रेशन सिंदूर के बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। पहलगाम हमले का बदला लेने के लिये जब भारत ने उसके नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल दाग़ीं तो तो वह उनमें से एक को भी इंटरसेप्ट कर नाकाम नहीं कर पाया। उसने अपना रक्षा बजट बेतहाशा बढ़ा दिया है। पाकिस्तान आज आर्थिक रूप से भारी संकट में है। सिंध ुजल समझौता टूटने से पाक में सूखा पड़ने के आसार अभी से दिखने लगे हैं। उसकी कुल खेती लायक ज़मीन में से 70 प्रतिशत पर 263 अमीर सामंत और नवाब रहे बड़े लोगों का कब्ज़ा है। आतंकवाद उसे अंदर ही अंदर खाता जा रहा है। पिछले साल आई भीषण बाढ़ से उसकी एक तिहाई खेती तबाह हो गयी। वहां निर्माण से अधिक आतंक पैदा हुआ है। पाक लगभग दिवालिया हो चुका है।                  -इक़बाल हिंदुस्तानी
     आॅप्रेशन सिंदूर से घबराये पाकिस्तान ने जब पलटवार करने को भारत पर मिसाइल हमला करना चाहा तो उसका एक भी वार कामयाब नहीं हुआ। इन सबको भारत ने नाकाम कर दिया। इससे यह साबित होता है कि पाकिस्तान भारत का सीधी जंग होने पर बराबर का मुकाबला नहीं है। इससे पहले भी पाकिस्तान हम से कई जंग हार चुका है। यही वजह है कि उसने आतंक के ज़रिये एक छिपा हुआ गोरिल्ला यानी छद्म वार का रास्ता चुना है। विश्व के सैन्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि पाकिस्तान भारत के साथ सीधे युध्द में तीन से 7 दिन तक ही टिक सकता है। आॅप्रेशन सिंदूर के बाद तीन दिन बाद ही जिस तरह से पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेक दिये उससे दुनिया के रक्षा जानकारों का यह अंदाज़ सही साबित भी हो चुका है। इस मामले में पाकिस्तान की चार बड़ी समस्यायें सामने आ रही हैं जिसमें सैन्य, आर्थिक रण्नीतिक और भौगोलिक चुनौती उसके सामने खड़ी हैं। भारत के पास 15 लाख एक्टिव और 11 लाख 50 हज़ार रिज़र्व फौजी हैं जबकि पाकिस्तान के पास 6 लाख 50 हज़ार सक्रिय और 5 लाख सुरक्षित सैनिक हैं। जानकारों का कहना है कि भारत की सेना को लेकर कई लोगों को यह भ्रम रहता है कि उसकी सेना चीन बंगलादेश की सीमा और कश्मीर में विभाजित है जबकि पाकिस्तान की सेना खुद भी ब्लोचिस्तान और खैबर पख्तूनवा के साथ ही अफगानिस्तान और भारत की सीमा पर चार चार जगह बंटी हुयी है। 
    भारत के पास टैंक 4614 एयरक्राफट 2230 जबकि पाक के पास टैंक 3742 और एयरक्राफट केवल 425 ही हैं। युध्दपोत के हिसाब पाक भारत के सामने कहीं मुकाबले मंे टिक ही नहीं सकता क्योंकि हमारे पास जहां पूरा नौसैनिक बेड़ा है तो पाक के पास छोटा सा पोत है। जो हाथी और चींटी जैसा मुकाबला माना जा सकता है। मिसाइलों के मामले में भी पाकिस्तान भारत से हर मामले में उन्नीस ही साबित होगा। गोला बारूद पाक पूरी तरह से बाहर से आयात करने पर निर्भर है जिससे वह चार से सात दिन तक का ही कोटा रखता है जबकि भारत खुद भी गोला बारूद बनाता है जिससे वह इस मामले में भी पाक पर बहुत भारी पड़ने वाला है। भारत की जीडीपी पाक से दस गुना अधिक है। भारत का रक्षा बजट 83 बिलियन डाॅलर जबकि पाक का मात्र 7 से 8 बिलियन डालर था जो अब 9 बिलियन किया है। पाक में महंगाई की दर 23 प्रतिशत अभी है जो जंग जारी रहने पर वह कई गुना बढ़कर पाक का दिवाला निकाल देगी। जहां तक भौगोलिक और रण्नीतिक लड़ाई की बात है तो भारत की सेना मैदानी और पहाड़ी दोनों तरह के मोर्चो पर लड़ने के लिये प्रशिक्षित रही है जबकि पाक की सेना शुरू से ही रक्षात्मक होने की वजह से जंग चालू होने के कुछ समय बाद ही पीछे हटने पर मजबूर हो जाती है। 
       1971 की जंग मंे भारत ने पाकिस्तान के एकमात्र करांची पोर्ट की पूरी तरह नाकेबंदी कर दी थी। यह जंग केवल 13 दिन चली था। जबकि हमारे पास रसद तेल और दूसरे जंगी सामान पहंुचाने के कई वैकल्पिक रास्ते मौजूद रहे हैं जिनमें से एक भी पाक के बस का बंद करना नहीं है। इस कमज़ोरी को समझते हुए पाक ने इस बार तुर्की से एक युध्दपोत उधार ले लिया था लेकिन वह उसकी कोई खास मदद कर पाया हो ऐसी कोई ख़बर अब तक सामने नहीं आई है। पाक की सेना भारत से लड़ने को अगर घरेलू मोर्चे से हटती है तो उसके पाले हुए अफगानी आतंकी उसकी सत्ता पर हमला कर सत्ता पलट कर अंदरूनी मसला खड़ा कर सकते हैं। चीन का खुलकर समर्थन हासिल करने का पाक का दावा उसका माॅरल हाई कर सकता है यह किसी हद तक सच है। पाक का जंग में कमजोर पड़ने पर परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने की धमकी देना एक तरह से ब्लैकमेल करना है जिसे दुनिया चुपचाप शायद ही देख सकती है। आईएमएफ यानी इंटरनेशनल मोनेट्री फंड ने उसको इस संकट से निकालने के लिये 7 अरब डालर का बेलआउट पैकेज दिया है लेकिन उसकी शर्तें इतनी मुश्किल जनविरोधी और सख़्त हैं कि पाक के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली हालत है। रेटिंग एजेंसी मूडीज़ का कहना है कि पाक की कर्ज़ चुकाने की क्षमता आज दुनिया के किसी भी आज़ाद और संप्रभु देश के मुकाबले सबसे कमज़ोर है। उसके कर्ज़ का ब्याज भुगतान ही कुल आने वाले राजस्व का आधा है। 
      2017 का विदेशी कर्ज़ 66 से बढ़कर 100 बिलियन हो चुका है। डाॅलर की कीमत 267 रूपये हो चुकी है जिससे पाक का कर्ज़ बिना और लिये ही बढ़ता जा रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 3.67 अरब डालर बचा है जोकि आगामी तीन सप्ताह के लिये ही हैै। उसकी सीमा पर विदेशी माल के ढेर लगे हैं। लेकिन उनकी कीमत चुकाने के लिये विदेशी मुद्रा ना होने से वह माल पाक मंे अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहा है। आतंकवाद उग्रवाद चरमपंथ कट्टरपंथ करप्शन सेना का बार बार चुनी हुयी सरकार का तख़्ता पलट करना आर्थिक गैर बराबरी विदेश में काम करने वाले पाकिस्तानियों पर अर्थव्यवस्था का टिका होना आज़ादी के दशकों बाद तक अपना संविधान ना बना पाना लोकतंत्र मज़बूत ना होना सेना पर बजट का बड़ा हिस्सा खर्च करना अमेरिका और खाड़ी के देशों से मिलने वाली बड़ी वित्तीय मदद का बड़ा हिस्सा तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को पैदा कर पालना पोसना और भारत की तरह ज़मींदारी उन्मूलन ना कर देश में केवल बेहद गरीब और बेहद अमीर दो ही वर्ग आज तक बने रहना भी पाक की तबाही का कारण बना है। 
      ऐशियन लाइट की रिपोर्ट बताती है कि पाक ने जेहाद के नाम पर अमेरिका से मोटी रकम हथियार और राजनीतिक मदद लेकर पहले 1979 में रूस को अफगानिस्तान से निकालने कश्मीर को आज़ाद कराने के दावे को लेकर और बाद में 2001 में ओसामा बिन लादेन के 9 बटे 11 के हमले के बाद अलकायदा को ख़त्म करने को लेकर लोहे को लोहे से काटने के लिये अपनी सरज़मीं पर दहशतगर्द पैदा करने का कारखाना लगाया। अब जब ये अभियान खत्म हो चुका है तो पाक को अमेरिकी और अन्य मुल्कों की मदद मिलनी तो बंद हो ही गयी है। साथ ही उसने जिस तालिबान के जिन्न को बोतल से निकाला था। वह आज अफगानिस्तान में मिशन पूरा होने पर पाकिस्तान के गले का सांप बन गया है। कहावत सही है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये।
नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक व नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।

Thursday, 5 June 2025

चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था

चैथी बड़ी अर्थव्यवस्था होना नहीं,
प्रति व्यक्ति आय बढ़ना विकास है ?
0 नीति आयोग का दावा है कि देश दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जबकि सच यह है कि आईएमएफ ने यह मात्र अनुमान लगाया है कि शायद भारत 2025 खत्म होने तक जापान को पीछे छोड़कर यह स्थान पा सकता है। उधर मोदी सरकार का कहना है कि वह देश को जल्दी ही विश्व की तीसरी बड़ी इकाॅनोमी बना देगी। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश की जीडीपी उनके कार्यकाल में कांग्रेस की सरकार के मुकाबले आधी से भी कम स्पीड यानी 2014 से 2023 तक 84 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक दोगुने से भी अधिक यानी 183 प्रतिशत बढ़ी थी। जबकि दुनिया की तालिका में भारत प्रति व्यक्ति आय 2600 डाॅलर के हिसाब से देखा जाये तो हम 144 वें स्थान पर हैं।   
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      इंटरनेशनल माॅनेटरी फंड के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार दुनिया में जीडीपी के हिसाब से 2025 के अंत तक अमेरिका 30507.22 बिलियन डाॅलर से नंबर वन तो चीन 19231.71 बिलियन डाॅलर से दूसरे व जर्मनी 4744.80 बिलियन डाॅलर से तीसरे भारत 4187.02 बिलियन डाॅलर के साथ चैथे और 4186.43 बिलियन डाॅलर से जापान पांचवे स्थान पर पहुंच सकता है। 2014 से 2023 तक चीन की जीडीपी 84 तो अमेरिका की 54 प्रतिशत बढ़ी है। इनके अलावा दुनिया के टाॅप टेन देशों में से कई की जीडीपी या तो मामूली बढ़त के साथ स्थिर रही है या फिर मंदी के कारण वर्तमान से भी कुछ नीचे चली गयी है। अगर अप्रैल के आंकड़ों की बात करें तो अभी हम पांचवे स्थान पर ही हैं। मिसाल के तौर पर जिस ब्रिटेन को पहले हमने पांचवे पायेदान से पीछे छोड़ा था। उसकी जीडीपी बढ़त इस दौरान मात्र 3 तो फ्रांस की 2 और रूस की केवल एक प्रतिशत ही रही है। ऐसे ही जिस जापान को हम इस साल के अंत तक पीछे छोड़ने जा रहे हैं उसकी जीडीपी ग्रोथ मात्र 0.3 प्रतिशत है। इसके लिये यह भी ज़रूरी है कि देश में जंग के हालात न बनें, अमेरिका के लिये भारत का निर्यात बिना टैरिफ बढ़े पहले की तरह चलता रहे, हमारे यहां जीडीपी की रियल ग्रोथ मज़बूत बनी रहे और इस बढ़त में प्रोडक्शन का हिस्सा न केवल 15 प्रतिशत से नीचे न जाये बल्कि इससे आगे रहे।
      इनमें से एक भी चीज़ गड़बड़ होती है तो हम अपनी विकास दर वर्तमान स्तर पर भी बनाये रखने के लिये संघर्ष करने को मजबूर हो सकते हैं। उधर ब्राजील की जीडीपी उल्टा 15 प्रतिशत पीछे चली गयी है। इसकी वजह दुनिया में आई 2008-09 की मंदी भी बनी। हालांकि भारत भी इस मंदी से प्रभावित हुआ लेकिन उसका असर बहुत हल्का सा था। हालांकि पूर्व अनुमान के अनुसार भारत आशा के अनुसार 8 से 9 प्रतिशत की स्पीड से नहीं बढ़ रहा है लेकिन अगर हम 6 प्रतिशत की जीडीपी औसत बढ़त भी बनाये रख सके तो 2026 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। इसकी वजह यह होगी कि हमारी इकाॅनोमी तब तक 38 तो जापान और जर्मनी की 15 प्रतिशत ही बढे़गी। 2004-09 में डीडीपी 8.5 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक औसत 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। आज भारत की जीडीपी औसत 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। वह दौर एक तरह से मनमोहन सिंह सरकार का भारत में आार्थिक प्रगति का स्वर्ण काल था लेकिन अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आड़ में मीडिया व संघ परिवार ने एक सोची समझी योजना के तहत तिल का ताड़ बनाकर उस सरकार को काल्पनिक टू जी घोटाले के बहाने इतना अधिक बदनाम कर दिया जितना उसका कसूर नहीं था। इन आंकड़ों की सहायता से हम यह समझ सकते हैं कि किसी देश की जीडीपी बढ़ने में उसकी सरकार आबादी और दूसरे देशों की मंदी कम स्पीड और प्रति व्यक्ति आय की क्या भूमिका होती है?
     हमारे देश में 35 करोड़ लोग पूरा पौष्टिक खाना नहीं खा पा रहे हैं। 80 करोड़ लोगों को सरकार 5 किलो अनाज देकर जीवन जीने में मदद कर रही है। देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी सालाना आमदनी 50 हज़ार रूपये कमाकर भी कुल जीएसटी का 64 प्रतिशत चुका रही है। जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत मात्र 3 प्रतिशत भागीदारी कर रहे हैं। इससे आमदनी ही नहीं खर्च और कर चुकाने के हिसाब से भी आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। जबकि चोटी के एक प्रतिशत की वार्षिक आय 42 लाख है। जीएसटी हर साल हर माह पहले से अधिक बढ़ने का दावा भी सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर करती है जबकि जानकार बताते हैं कि इसका बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ती बेतहाशा महंगाई भी है। महंगाई बढ़ाने में खुद सरकार पेट्रोलियम पदार्थों रसोई गैस और चुनचुनकर उपभोक्ता पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना या कर की दरें लगातार बढ़ाते जाना भी हैै। जीडीपी प्रोडक्शन का पैमाना माना जाता है। लेकिन यह उपभोग का माप भी है। जब आप कन्ज्यूमर की एक विशाल गिनती लेकर उसे एक मामूली राशि से गुणा करेंगे तो एक बहुत बड़ी संख्या आती है। अगर क्रय मूल्य समता यानी पीपीपी के आधार पर देखा जाये तो हमारी यह 2100 अमेरिकी डाॅलर है। जबकि यूके की 49,200 डाॅलर और अमेरिका की 70,000 डाॅलर है।
        अगर देश के लोग गरीब हैं तो दुनिया में जीडीपी पांचवे तीसरे नंबर पर ही नहीं नंबर एक हो जाने पर भी क्या हासिल होगा? यह एक तरह से भोली सीधी सादी जनता को गुमराह करने का एक चुनावी राजनीतिक झांसा ही अधिक है। सच तो यह है कि मोदी सरकार की नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी बिना विशेषज्ञों की सलाह लिये और बिना सोचे समझे और जल्दबाज़ी में लागू करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहंुचा है जिससे यह वर्तमान में जहां खुद पहंुचने वाली थी उससे भी पीछे रह गयी है। इसका परिणाम तेज़ी से बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई है। इसके साथ ही यह भी एक बड़ा विचारणीय तथ्य है कि जिस देश में शांति भाईचारा समानता निष्पक्षता धर्मनिर्पेक्षता न्याय नहीं होगा वहां शांति नहीं रह सकती और जब शांति नहीं होगी तो ना विदेशी निवेश आयेगा और ना ही स्थानीय स्वदेशी कारोबार से अर्थव्यवस्था ठीक से फले फूलेगी। इस बार अब तक विदेशी निवेश में भारी कमी की ख़बरें आ रही हैं। कहने का मतलब यह है कि जब तक प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ती है तब तक लोगों को निशुल्क शिक्षा, बेहतर इलाज, शानदार सड़कें और 24 घंटे बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराना एक सपना ही बना रहेगा। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद गर्ग ने भी यही दोहराया है कि अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ना अच्छी बात है लेकिन विकसित राष्ट्र बनने के लिये प्रति व्यक्ति आय बढ़ना ज़रूरी है जिसमें हम अभी काफी पीछे हैं। अदम गोंडवी का एक शेर याद आ रहा है- तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है।         नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।