ख़राब होगी अमेरिका की कहानी?
0 अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर असरदार और अमीर देश है। इसलिये उसका राष्ट्रपति होना ट्रंप के लिये बहुत बड़ी बात है, लेकिन यह अपनेआप में दुधारी तलवार भी है। वहां राष्ट्रपतियों को कुछ खास अधिकार मिले हुए हैं जिनसे वे समय समय पर अपने वर्चस्व का अहसास कराते रहे हैं। राष्ट्रपति बुश ने ईराक पर तो बराक ओबामा ने बिना अमेरिकी कांग्रेस को विश्वास में लिये लीबिया में जंग छेड़ दी थी। आज ट्रंप कभी कनाडा को अपने देश का 51 वां राज्य बनाने व ग्रीनलैंड को ज़बरदस्ती अमेरिका में शामिल करने का दावा करते हैं तो कभी पनामा नहर व ग़ाज़ा पर अधिकार जताते हैं। साथ ही टैरिफ़ वार की धमकी पूरी दुनिया को देकर वे ब्लैकमेल कर ही रहे है।
-इक़बाल हिंदुस्तानी
अमेरिका अब तक अपनी शक्ति का प्रयोग स्वतंत्रता, वैश्विक शांति और लोकतांत्रिक देशों की रक्षा करने में अधिक लगाने का दावा करता रहा है। वह दुनिया के कई गरीब देशों में अनाज दवाई और अन्य तरह से मानवीय सहायता करने का भी काम अपनी विश्व दारोगा की छवि बनाये रखने के लिये करता रहा है। लेकिन अब ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के दो माह बाद ही अमेरिका ने वल्र्ड हैल्थ आॅगर्नाइजे़शन से हटने के साथ ही यूनाइटेड नेशन हयूमन राइट कमीशन और यूएन रिलीफ़ एंड वर्क एजेंसी को आर्थिक सहायता देने से हाथ खींचने के इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। इतना ही नहीं ट्रंप ने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फाॅर इंटरनेशनल डवलपमेंट को भी बंद कर दिया है। इससे पूरे विश्व में अमेरिकी सहयोग से होने वाले तमाम मानवीय सहायता के काम रूक गये हैं। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं जिससे आज नहीं तो कल ट्रंप का यूक्रेन यूरूपीय यूनियन और नाटो देशों को छोड़ना भी तय माना जा रहा है। इतना ही विनाशकाल विपरीत बुध्दि की कहावत को लागू करते हुए वे अमेरिकी नागरिकों के लिये भी मुसीबत बनते जा रहे हैं।
इसकी वजह यह है कि वे खुद एक उद्योगपति रहे हैं जिनको किसी भी कीमत पर लाभ कमाने के अलावा और कुछ नज़र नहीं आता है। उन्होंने अपना चुनाव लड़ाने जिताने और उसमें पैसा पानी की तरह बहाने के लिये अपने मित्र और दुनिया के सबसे अमीर काॅरपोरेटर एलन मस्क को सरकारी खर्च घटाने के लिये कर्मचारियों की छंटनी को खुला हाथ दे दिया है जिससे वे हज़ारों अमेरिकीयों की नौकरी छीनने के बाद अब वहां का शिक्षा विभाग बंद करने की योजना बना रहे हैं। इतना शायद कम था कि ट्रंप ने अपने परंपरागत दोस्त यूक्रेन को अपना दुश्मन बना लिया है। यूक्रेन के मुखिया जेलेंस्की को अपने देश बुलाकर जिस बेशर्मी से ट्रंप ने ज़लील कर व्हाइट हाउस से निकाला है उससे अमेरिकी छवि पहले ही काफी ख़राब हो चुकी है। ट्रंप का दावा है कि उन्होंने पूरी ज़िंदगी सौदे ही किये हैं। उनको यह कौन बताये कि बिज़नेस में सौदे करना और देश के लिये डील करना दोनों बिल्कुल अलग अलग बात हैं।
आज वे जिस लहजे में अपने परंपरागत प्रतिस्पर्धी चीन को धमका रहे हैं ठीक उसी तरह अपने अब तक दोस्त रहे भारत को भी टैरिफ को लेकर बार बार चेतावनी दे रहे हैं। चीन कनाडा और मैक्सिको ने तो ट्रंप को उनकी ही शैली में उतनी ही टैरिफ लगाने का जवाब दे भी दिया है लेकिन विश्व गुरू बनने का सपना देखने वाला भारत अभी तक उनके सामने नतमस्तक होता ही नज़र आ रहा है। हमारे पीएम मोदी की इतनी भी हिम्मत नहीं हुयी कि वह प्रवासी भारतीयों को बेड़ी और हथकड़ी लगाकर भारत न भेजने की ट्रंप से अपील ही कर दें। ट्रंप के इस तरह के मनमाने तानाशाह और अशिष्ट तरीके से काम करने से दुनिया चिंतित है कि आगे अमेरिका के इस रूख़ से क्या नतीजे निकलेंगे? यह ख़तरा भी मंडराने लगा है कि कहीं ट्रंप रूसी पुतिन और चीन के शी जिनपिंग मिलकर पूरी दुनिया को अपने हिसाब से हांकने को एक काॅकस ना बना लें जिससे तीसरे विश्व युध्द का ख़तरा सामने खड़ा हो सकता है। इन तीनों देशों के इरादे दुनिया के खनिज देशों पर अपना वैध अवैध कब्ज़ा जमाकर उनका आर्थिक शोषण करने और अपने हथियार व तकनीक अपनी शर्तों पर बेचकर उनको कंगाल बनाकर खुद मालामाल बनना है। अमेरिका पूरी दुनिया की जीडीपी में एक चैथाई से अधिक का योगदान करता है। एक दर्जन से अधिक देशों की सुरक्षा का उसने ठेका करार के तहत ले रखा है।
हथियारों का वह सबसे बड़ा सौदागर है और कुछ देश यह भी आरोप लगाते हैं कि अमेरिका दुनिया में कहीं ना कहीं जानबूझकर ऐसे हालता पैदा करता रहता है जिससे उसके हथियार बिकते रहें। वह हाल में भारत पर पुराने बेकार और महंगे एफ 35 लड़ाकू विमान खरीदने का भी नाजायज़ दबाव डाल चुका है। अमेरिका ने बड़ी चालाकी से पूरी दुनिया का कारोबार डाॅलर में करने को अनेक देशों को मजबूर कर रखा है। वह यूरो या किसी अन्य करेंसी में वैश्विक कारोबार करने पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बार बार धमकी भी देता रहता है। ट्रंप को यह अहसास अभी नहीं है कि टैरिफ वार से उसके अपने देश में सामान इतना महंगा हो जायेगा कि खुद अमेरिकी उससे खफा हो जायेंगे। ऐसे ही जिन अवैध प्रवासियों को ट्रंप आज थोक में निकाल रहे हैं। उनके अमेरिका छोड़ने से बेशक कुछ रोज़गार वहां के स्थानीय निवासी अमेरिकी लोगों को मिल सकते हैं लेकिन वे बहुत महंगे और प्रतिभाहीन हो सकते हैं। साथ ही वे साइंस और रिसर्च पर भी सरकारी खर्च घटाने की सोच रखते हैं। इन सब विरोधाभासी आत्मघाती और मूर्खतापूर्ण निर्णयों से अमेरिका को केवल लाभ ही नहीं उल्टा नुकसान भी हो सकता है इसका पता ट्रंप और अमेरिकीयों को अमेरिका की कहानी ख़राब होने पर कुछ साल बाद ही चल सकता है। ट्रंप के लिये किसी शायर ने क्या खूब कहा है- तुम आसमां की बुलंदी से जल्द लौट आना, मुझे ज़मीं के मसायल पर बात करनी है।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।
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