Thursday, 27 March 2025

मोदी की सौगात

मुस्लिम स्वीकारेंगे मोदी की सौग़ात,
बशर्ते ख़त्म तो हो उनसे पक्षपात?
0 32 लाख पसमांदा गरीब मुसलमानों को ईद पर मोदी की सौग़ात किट दी जा रही है। इस किट में मेवा सवईं कपड़े और भी बहुत कुछ होगा। इसके बाद ऐसी ही किट अन्य अल्पसंख्यकों के पर्व बैसाखी और ईस्टर पर बांटी जायेगी। विपक्ष का आरोप है कि यह भाजपा की सियासी चाल है। यह भी सही है कि अगर ऐसा ही कोई तोहफ़ा सेकुलर दलों की तरफ़ से मुसलमानों को दिया जाता तो भाजपा तुष्टिकरण का आरोप लगाकर आसमान सर पर उठा लेती। लेकिन गोदी मीडिया अब चुप है। हमारा मानना है कि मुसलमानों को खुल दिल से मोदी का ईद का उपहार क़बूल करना चाहिये और आगे से भाजपा सरकारों को मुसलमानों से पक्षपात भी बंद करना चाहिये?    
               -इक़बाल हिंदुस्तानी
      एनडीए सहयोगी टीडीपी और जदयू के विरोध के चलते फिलहाल वक्फ़ बिल टल गया है। इन दोनों दलों के चार फीसदी से अधिक वोटर मुसलमान हैं। वक़्फ़ बिल पर इन दोनों की चुप्पी पर हाल ही में मुसलमान उलेमा ने इनकी अफ़तार पार्टियों का बाॅयकाट करने का ऐलान किया था। अगर चुनाव में भी इनका नुकसान हुआ तो ये मोदी सरकार को अपने समर्थन पर आंखे दिखा सकते हैं। विदेशों से लगातार मोदी सरकार को लोकतंत्र संविधान और धर्मनिर्पेक्षता से समझौता करने को लेकर घेरा जा रहा है। हाल ही में अमेरिकी इंटरनेशनल रिलीजियस कमीशन ने मोदी सरकार पर अल्पसंख्यकों से पक्षपात के आरोप लगाये हैं। अमेरिका से टैरिफ वार पर अभी तक कोई राहत ना मिलने से यह तय माना जा रहा है कि भारत को विश्व स्तर पर व्यापार में भारी घाटा हो सकता है? इधर विदेशी निवेशकों के भारत के शेयर बाज़ार में लगातार भारी बिकवाली से उतार चढ़ाव बना हुआ है। हालांकि विगत कुछ दिन से शेयर मार्केट कुछ संभला है। लेकिन इसमें घरेलू कंपनियों का निवेश माना जा रहा है। साथ ही डाॅलर का रेट भी बढ़ता जा रहा है। जीडीपी की दर भी तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद कम हो रही है।
     महंगाई और बेरोज़गार अपने चरम पर पहुंच चुकी है, भले ही सरकार आंकड़ों की जादूगरी से इसको कितना छिपाये और झुठलाये। इन हालात में यह माना जा रहा है कि अरब मुल्कों से निवेश लाने और भारत के कुछ चहेते काॅरपोरेट का कारोबार अमेरिका चीन यूरूप में सिमटने से मुस्लिम देशों में बढ़ाने को भी ऐसे प्रतीकात्मक काम किये जाने की ज़रूरत है जिससे भाजपा सरकार की छवि मुस्लिम विरोधी नज़र न आये। साथ ही भाजपा की हिंदू तुष्टिकरण की सियासत अब चरम पर पहुंच चुकी है। हिंदुत्व की राजनीति का इससे और आगे जाना खतरनाक माना जाता है। ऐसे में औरंगजे़ब पर हाल ही में नागपुर में भड़की हिंसा पर आरएसएस ने यू टर्न लेते हुए दो टूक कहा है कि अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं होगा। बिहार में चुनाव जीतने को सीएम नीतीश कुमार उर्दू पढ़ने पढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं लेकिन साझा सरकार में सहयोगी भाजपा चुप है। 
       ऐसे ही कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा मुसलमानों को छोटे सरकारी ठेकों में मात्र चार प्रतिशत आरक्षण का मुखर विरोध करने वाली भाजपा आंध्रा में अपने सहयोगी टीडीपी के मुसलमानों को दिये जा रहे चार प्रतिशत रिज़र्वेशन पर चुप्पी साधे है। इसके साथ ही भाजपा के ही कई राज्यों की सरकारें मुसलमानों के खिलाफ लगातार एकतरफ़ा कानून पक्षपातपूर्ण बुल्डोज़र कार्यवाही और उनके सीएम ज़हरीले बयान देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। केंद्र के भी कुछ मंत्री चंद बड़े भाजपा नेता और उसके सहयोगी संगठन व मुट्ठीभर कथित हिंदू कट्टर धार्मिक नेता लगातार मुसलमानों के खिलाफ नफ़रती बयान देकर सियासी माहौल गर्म करते रहते हैं जिसका राजनीतिक लाभ चुनाव में भाजपा को मिलता है। पिछले दिनों चुनाव आयोग पर विपक्ष ने भाजपा के साथ मिलीभगत कर मतदाता सूचियों में गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप भी लगाये थे जिससे लगता है कि अब तक जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे विपक्ष के जाग जाने और सांठगांठ के आरोपों से आयोग सचेत हो गया है। अब भाजपा के सामने आगे चुनाव जीतने के लिये यह ज़रूरी होता जा रहा है कि वह सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग मुसलमान को किसी तरह से पार्टी के करीब लाये। यह भी सच है कि अब तक मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याण की सभी योजनाओं का लाभ मुसलमानों को भी मिल रहा है। 
      भाजपा ने मुसलमानों को कई तरह से डराकर भी देख लिया जिससे वे पार्टी के लिये वोट करें लेकिन मुसलमान भाजपा विरोध पर नुकसान उठाकर भी डटा है। अब लालच और उपहार देकर मुसलमानों से दोस्ती का रास्ता ही भाजपा के लिये बाकी बचा है। शायद यही वजह है कि ईद पर मोदी की सौग़ात के तौर पर भाजपा ने यह पहल की है। हमारा मानना है कि मुसलमानों को इस पहल का स्वागत करना चाहिये। साथ ही संघ परिवार भाजपा और मोदी सरकार से बातचीत की शुरूआत कर अपनी शिकायतों मांगों और सुझावों से अवगत कराना चाहिये जिससे दस साल से चली आ रही यह परस्पर विरोध दुश्मनी और टकराव की राजनीति ख़त्म हो सके और आने वाले समय में भाजपा और मुसलमान देशहित में मिलजुलकर काम कर सकें, लेकिन अगर मोदी की सौग़ात का मतलब केवल एक प्रतीकात्मक दिखावा कर राजनीतिक मकसद पूरा करना है और भाजपा नेता उसकी सरकारें व उसके सीएम पहले की तरह मुस्लिम विरोध पर डटे रहते हैं तो इतना भोला मासूम और नादान मुसलमान भी नहीं है कि वह एक किट से उनके सियासी सांचे में बिना सोचे समझे और हकीकत जाने फिट हो जाये। शायर ने क्या खूब कहा है- उसके नज़दीक ग़म ए तर्क ए वफ़ा कुछ भी नहीं, मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं।।  
नोट- लेखक नवभारट टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Sunday, 23 March 2025

परिसीमन का विरोध

परिसीमन पर दक्षिण की तक़रार,
आधा सच बोल रही है सरकार?
0 संसद में दक्षिण के पांच राज्यों तमिलनाडू आन्ध्रा कर्नाटक केरल और तेलंगाना की 24 प्रतिशत यानी कुल 124 सीट हैं जबकि नई जनगणना के हिसाब से परिसीमन होने पर साउथ के एमपी 103 रह जायेंगे। उधर उत्तर के राज्यों यूपी बिहार राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की सीट 32 प्रतिशत यानी 174 हैं जो नये परिसीमन के बाद बढ़कर 205 हो जायेंगी। अगर लोकसभा के नये भवन की क्षमता 888 के हिसाब से बढ़ाई जाती है तो नाॅर्थ की सीट 39 प्रतिशत यानी 324 और साउथ की 19 प्रतिशत यानी 164 ही हो पायेेंगी। केंद्र सरकार साउथ के इस दावे को झुठला रही है लेकिन उसका यह दावा आधा ही सच है क्योंकि साउथ की सीट अगर घटी भी नहीं तो नाॅर्थ की काफी अधिक बढ़ जायेंगी।      
                 -इक़बाल हिंदुस्तानी
     तमिलनाडू के सीएम स्टालिन ने पिछले दिनों दक्षिण के राज्यों की एक मीटिंग की थी। बैठक में एक प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से मांग की गयी कि वह नई जनगणना के बाद 2026 में संसदीय सीटों के नये परिसीमन को 25 साल के लिये आगे टाल दे। उनका कहना है कि दक्षिण के राज्यों ने देशहित में परिवार नियोजन को अपनाया है। जिससे साउथ के पांचों राज्यों की आबादी तेज़ी से कम हुयी है। अगर नई जनगणना के बाद बढ़ी आबादी के हिसाब से संसदीय सीटों का परिसीमन होता है तो इससे दक्षिण की सीटें घट जायेंगी। इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि तमिलनाडू या किसी भी साउथ स्टेट की एक भी सीट कम नहीं होगी। लेकिन यहां वह आधा सच छिपा रहे हैं कि अगर उत्तर के राज्यों के एम पी दक्षिण के सांसदों से संख्या में काफी अधिक बढ़ जाते हैं तो दक्षिण के संसदीय प्रतिनिधित्व में कमी तो अवश्य आयेगी। दअरसल संविधान का अनुच्छेद 82 कहता है कि हर नई जनगणना के बाद संसदीय और आर्टिकल 170 के अनुसार राज्यों की विधानसभा सीटों का नया परिसीमन होगा। यह परंपरा 1970 की जनगणना के बाद तक जारी भी रही। आखिरी परिसीमन 1976 में हुआ था। लेकिन उस समय भी दक्षिण के राज्यों के विरोध के बाद नया परिसीमन पहले 2001 और फिर बाद में 2026 तक के लिये स्थगित कर दिया था। 
     2001 में संसदीय और विधानसभा सीटों की संख्या तो नहीं बढ़ाई गयी लेकिन वर्तमान सीटों की आबादी को कुछ संतुलित करने के लिये क्षेत्रों का नया परिसीमन कर कुछ मतदाता इधर से उधर अवश्य किये गये थे। साथ ही दलित सीट 79 से बढ़ाकर 84 और आदिवासी सीट 41 से बढ़ाकर 47 की गयी थीं। सैक्शन 55 राज्यों का आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति चुनाव के लिये करने का आदेश देता है। सैक्शन 81 बढ़ी हुयी जनसंख्या के हिसाब से एक वोट एक पाॅवर के अनुसार संसद की सीटें बढ़ाने का निर्देश देता है। लेकिन 1976 में 42वां संशोधन कर दक्षिण के राज्यों के साथ परिवार नियोजन के कारण आबादी घटाने के लिये अन्याय होने से बचाने के लिये लोकसभा की सीट बढ़ाने का विचार त्याग दिया गया था। 1971 में बिहार और तमिलनाडू की आबादी और सीट लगभग बराबर थीं। लेकिन आज बिहार की आबादी बहुत बढ़ चुकी है। अगर बढ़ी हुयी आबादी के हिसाब से सीट बनी तो बिहार की सीट तमिलनाडू से बहुत अधिक बढ़ जायेंगी। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो उत्तर के राज्यों की सीट नई आबादी के हिसाब से 43 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के आसपास पहुंच जायेगी। जबकि दक्षिण की सीट कुल संसदीय सीट की 24 प्रतिशत से घटकर 19 प्रतिशत रह सकती हैं। यही वह विवाद है जिस पर उत्तर बनाम दक्षिण की तकरार में नई जनगणना और नया परिसीमन शुरू होने से पहले ही फंसने के आसार लग रहे हैं। 
      यही वजह है कि आंध््राा के सीएम नायडू से लेकर तमिल सीएम स्टालिन तक अपने राज्यों के लोगों से परिवार नियोजन त्याग कर अधिक बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं। दक्षिण के राज्यों को भाजपा की नीयत पर भी शक है। उनको लगता है कि भाजपा कर्नाटक को छोड़कर साउथ के किसी और राज्य में अभी तक दस साल के केंद्रीय शासन के बावजूद कोई खास पकड़ नहीं बना सकी है, लेकिन भाजपा का उत्तर के राज्यों में जिस तरह मज़बूत होल्ड है उससे वह उत्तर के राज्यों की सीट अधिक बढ़ने से राजनीतिक लाभ उठाकर आसानी से आगे बहुमत इन नार्थ के स्टेट के बल पर हासिल कर लेगी जिससे साउथ के राज्य उपेक्षा और पक्षपात का शिकार हो सकते हैं। संघ परिवार भाजपा और मोदी सरकार अब तक जिस मनमाने तानाशाही और संविधान विरोधी तरीके से कम करती रही है उसे देखते हुए साउथ के राज्यों की इस आशंका को बल मिल रहा है। भाजपा का काम करने का तरीका वैसे भी केंद्रीयकरण वाला है जिससे वह एक धर्म एक भाषा एक राष्ट्र और एक चुनाव की बात अकसर करती रहती है। गैर भाजपा और विशेष रूप से दक्षिण के राज्य उस पर हिंदी थोपने नई शिक्षा नीति जबरन लागू करने और वित्तीय पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं। 
       दक्षिण के राज्यों का यह भी कहना रहा है कि एक तरफ वे केंद्रीय कर में साउथ के राज्यों से कहीं अधिक योगदान करते हैं, बदले में उनको उत्तर के मुकाबले कम धन विकास के लिये मिल रहा है। उधर उत्तर के राज्य इस बात से चिंतित हैं कि उनको आबादी के हिसाब से सीटें ना मिलने की वजह से वे अपने बड़े बड़े चुनाव क्षेत्रों के सभी मतदाताओं तक चुनाव लड़ने से लेकर बाद में पांच साल तक पहुंच नहीं बना पाते हैं। मिसाल के तौर पर केरल का एक एमपी जहां 18 लाख तो राजस्थान का एक सांसद 33 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। नार्थ के स्टेट यह भी तर्क सही देते हैं कि अब तो देश का टोटल फर्टिलिटी रेट 1.9 आ गया है जबकि वर्तमान आबादी जस की तस बनाये रखने के लिये यह 2.1 होना चाहिये। केवल यूपी बिहार झारखंड मणिपुर मेघालय का टीएफआर अभी तक 2.1 से अधिक बना हुआ है। इस सब कवायद के पीछे संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला भी बताया जाता है जिससे कुल सीट 543 से बढ़कर 888 हो जाने पर परंपरागत पुरूष सीट कम ना हों लेकिन यहां मोदी सरकार भाजपा व आरएसएस को यह भी याद रखना चाहिये जिस तरह वे आबादी बढ़ाने को लेकर एक वर्ग विशेष को टारगेट करते हैं आज वे खुद उत्तर दक्षिण के चक्कर में परिवार नियोजन के सियासी जाल में फंस गये हैं। अल्लामा इक़बाल ने कहा है- जम्हूरियत इक तर्ज़ ए अमल है जिसमें, बंदों को गिना करते हैं तोला नहीं करते।।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 20 March 2025

ट्रंप की मनमानी

जारी रही अगर ट्रंप की मनमानी,
ख़राब होगी अमेरिका की कहानी?
0 अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर असरदार और अमीर देश है। इसलिये उसका राष्ट्रपति होना ट्रंप के लिये बहुत बड़ी बात है, लेकिन यह अपनेआप में दुधारी तलवार भी है। वहां राष्ट्रपतियों को कुछ खास अधिकार मिले हुए हैं जिनसे वे समय समय पर अपने वर्चस्व का अहसास कराते रहे हैं। राष्ट्रपति बुश ने ईराक पर तो बराक ओबामा ने बिना अमेरिकी कांग्रेस को विश्वास में लिये लीबिया में जंग छेड़ दी थी। आज ट्रंप कभी कनाडा को अपने देश का 51 वां राज्य बनाने व ग्रीनलैंड को ज़बरदस्ती अमेरिका में शामिल करने का दावा करते हैं तो कभी पनामा नहर व ग़ाज़ा पर अधिकार जताते हैं। साथ ही टैरिफ़ वार की धमकी पूरी दुनिया को देकर वे ब्लैकमेल कर ही रहे है।   
                -इक़बाल हिंदुस्तानी
   अमेरिका अब तक अपनी शक्ति का प्रयोग स्वतंत्रता, वैश्विक शांति और लोकतांत्रिक देशों की रक्षा करने में अधिक लगाने का दावा करता रहा है। वह दुनिया के कई गरीब देशों में अनाज दवाई और अन्य तरह से मानवीय सहायता करने का भी काम अपनी विश्व दारोगा की छवि बनाये रखने के लिये करता रहा है। लेकिन अब ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के दो माह बाद ही अमेरिका ने वल्र्ड हैल्थ आॅगर्नाइजे़शन से हटने के साथ ही यूनाइटेड नेशन हयूमन राइट कमीशन और यूएन रिलीफ़ एंड वर्क एजेंसी को आर्थिक सहायता देने से हाथ खींचने के इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। इतना ही नहीं ट्रंप ने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फाॅर इंटरनेशनल डवलपमेंट को भी बंद कर दिया है। इससे पूरे विश्व में अमेरिकी सहयोग से होने वाले तमाम मानवीय सहायता के काम रूक गये हैं। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं जिससे आज नहीं तो कल ट्रंप का यूक्रेन यूरूपीय यूनियन और नाटो देशों को छोड़ना भी तय माना जा रहा है। इतना ही विनाशकाल विपरीत बुध्दि की कहावत को लागू करते हुए वे अमेरिकी नागरिकों के लिये भी मुसीबत बनते जा रहे हैं। 
     इसकी वजह यह है कि वे खुद एक उद्योगपति रहे हैं जिनको किसी भी कीमत पर लाभ कमाने के अलावा और कुछ नज़र नहीं आता है। उन्होंने अपना चुनाव लड़ाने जिताने और उसमें पैसा पानी की तरह बहाने के लिये अपने मित्र और दुनिया के सबसे अमीर काॅरपोरेटर एलन मस्क को सरकारी खर्च घटाने के लिये कर्मचारियों की छंटनी को खुला हाथ दे दिया है जिससे वे हज़ारों अमेरिकीयों की नौकरी छीनने के बाद अब वहां का शिक्षा विभाग बंद करने की योजना बना रहे हैं। इतना शायद कम था कि ट्रंप ने अपने परंपरागत दोस्त यूक्रेन को अपना दुश्मन बना लिया है। यूक्रेन के मुखिया जेलेंस्की को अपने देश बुलाकर जिस बेशर्मी से ट्रंप ने ज़लील कर व्हाइट हाउस से निकाला है उससे अमेरिकी छवि पहले ही काफी ख़राब हो चुकी है। ट्रंप का दावा है कि उन्होंने पूरी ज़िंदगी सौदे ही किये हैं। उनको यह कौन बताये कि बिज़नेस में सौदे करना और देश के लिये डील करना दोनों बिल्कुल अलग अलग बात हैं। 
     आज वे जिस लहजे में अपने परंपरागत प्रतिस्पर्धी चीन को धमका रहे हैं ठीक उसी तरह अपने अब तक दोस्त रहे भारत को भी टैरिफ को लेकर बार बार चेतावनी दे रहे हैं। चीन कनाडा और मैक्सिको ने तो ट्रंप को उनकी ही शैली में उतनी ही टैरिफ लगाने का जवाब दे भी दिया है लेकिन विश्व गुरू बनने का सपना देखने वाला भारत अभी तक उनके सामने नतमस्तक होता ही नज़र आ रहा है। हमारे पीएम मोदी की इतनी भी हिम्मत नहीं हुयी कि वह प्रवासी भारतीयों को बेड़ी और हथकड़ी लगाकर भारत न भेजने की ट्रंप से अपील ही कर दें। ट्रंप के इस तरह के मनमाने तानाशाह और अशिष्ट तरीके से काम करने से दुनिया चिंतित है कि आगे अमेरिका के इस रूख़ से क्या नतीजे निकलेंगे? यह ख़तरा भी मंडराने लगा है कि कहीं ट्रंप रूसी पुतिन और चीन के शी जिनपिंग मिलकर पूरी दुनिया को अपने हिसाब से हांकने को एक काॅकस ना बना लें जिससे तीसरे विश्व युध्द का ख़तरा सामने खड़ा हो सकता है। इन तीनों देशों के इरादे दुनिया के खनिज देशों पर अपना वैध अवैध कब्ज़ा जमाकर उनका आर्थिक शोषण करने और अपने हथियार व तकनीक अपनी शर्तों पर बेचकर उनको कंगाल बनाकर खुद मालामाल बनना है। अमेरिका पूरी दुनिया की जीडीपी में एक चैथाई से अधिक का योगदान करता है। एक दर्जन से अधिक देशों की सुरक्षा का उसने ठेका करार के तहत ले रखा है। 
    हथियारों का वह सबसे बड़ा सौदागर है और कुछ देश यह भी आरोप लगाते हैं कि अमेरिका दुनिया में कहीं ना कहीं जानबूझकर ऐसे हालता पैदा करता रहता है जिससे उसके हथियार बिकते रहें। वह हाल में भारत पर पुराने बेकार और महंगे एफ 35 लड़ाकू विमान खरीदने का भी नाजायज़ दबाव डाल चुका है। अमेरिका ने बड़ी चालाकी से पूरी दुनिया का कारोबार डाॅलर में करने को अनेक देशों को मजबूर कर रखा है। वह यूरो या किसी अन्य करेंसी में वैश्विक कारोबार करने पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बार बार धमकी भी देता रहता है। ट्रंप को यह अहसास अभी नहीं है कि टैरिफ वार से उसके अपने देश में सामान इतना महंगा हो जायेगा कि खुद अमेरिकी उससे खफा हो जायेंगे। ऐसे ही जिन अवैध प्रवासियों को ट्रंप आज थोक में निकाल रहे हैं। उनके अमेरिका छोड़ने से बेशक कुछ रोज़गार वहां के स्थानीय निवासी अमेरिकी लोगों को मिल सकते हैं लेकिन वे बहुत महंगे और प्रतिभाहीन हो सकते हैं। साथ ही वे साइंस और रिसर्च पर भी सरकारी खर्च घटाने की सोच रखते हैं। इन सब विरोधाभासी आत्मघाती और मूर्खतापूर्ण निर्णयों से अमेरिका को केवल लाभ ही नहीं उल्टा नुकसान भी हो सकता है इसका पता ट्रंप और अमेरिकीयों को अमेरिका की कहानी ख़राब होने पर कुछ साल बाद ही चल सकता है। ट्रंप के लिये किसी शायर ने क्या खूब कहा है- तुम आसमां की बुलंदी से जल्द लौट आना, मुझे ज़मीं के मसायल पर बात करनी है।
 नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Friday, 14 March 2025

औरंगज़ेब के बहाने...

औरंगजे़ब है अब नया बहाना, 
असली मुद्दों से है ध्यान हटाना?
0 पीएम मोदी के मुताबिक दिनेश विजयन की फ़िल्म ‘छावा’ छा गयी है। इससे पहले वे केरल स्टोरी और कश्मीर फ़ाइल की भी तारीफ़ कर चुके हैं। ज़ाहिर बात है ऐसी फ़िल्में जो संघ परिवार के एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं वे पीएम को भी पसंद आयेंगी ही। लेकिन वे यह नहीं बतायेंगे कि हमारी जीडीपी दर क्यों घट रही है? वे इस पर भी चुप्पी साधे हैं कि हमारा शेयर मार्केट लगातार क्यों गिर रहा है? मोदी महंगाई व बेरोज़गारी पर भी म ओर ब बोलने को तैयार नहीं हैं। वे अमेरिका द्वारा प्रवासी भारतीयों को बेड़ी और हथकड़ी लगाकर भेजने पर भी मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। वे जियो और एयरटेल के एलन मस्क के स्टार लिंक के साथ इंटरनेट क़रार पर देश के संवेदनशील डाटा शेयर करने के ख़तरे पर भी नहीं बोलते तो फिर औरंगज़ेब पर ही बोलेंगे।    
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      इतिहास गवाह है कि औरंगजे़ब एक कट्टर क्रूर और निर्दयी बादशाह था। मुगलकाल 1526 में बाबर से शुरू होकर अकबर जहांगीर से होता हुआ शाहजहां तक आता है। इसके बाद परंपरा के अनुसार शाहजहां के बड़े बेटे दाराश्किोह को राजा बनना था। लेकिन औरंगजे़ब बगावत कर दाराश्किोह को जंग में पहले हराता है, बंदी बनाता है और फिर उसको मारकर खुद बादशाह बन जाता है। वह अपने पिता शाहजहां को भी ज़िंदगीभर जेल में डाल देता है। वह अपने राज में कुछ मंदिर बनवाने के लिये ज़मीन दान देने जैसे अच्छे काम से लेकर कई ऐसे विवादित फैसले भी करता है जो उसको बड़ा कट्टरपंथी धर्मांध ज़ालिम और घोर साम्प्रदायिक व हिंदू विरोधी ठहराने के आरोप सही साबित करने के लिये कुछ इतिहासकार दावा करते हैं। साथ ही यह भी सच है कि कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम उसको बड़ा महान बताते हैं। जबकि देश के भाईचारे और सौहार्द के लिये ऐसा मानना बिल्कुल गलत है। लेकिन वह दौर ही ऐसा था। अशोक ने कलिंग की जंग के लिये कितना खून बहाया? उसने भी अपने भाइयों की हत्या की थी या नहीं? अंग्रेज़ों ने हमारा कितना नुकसान किया? कितना अन्याय अत्याचार किया? कितना लूटकर ले गये? आप उन मुद्दों पर बात क्यों नहीं करते? वे कौन थे जो देश को आज़ाद कराने के लिये लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी करके अंग्रेज़ों का साथ दे रहे थे? वे कौन थे जिन्होंने राजा रजवाड़ों का साथ दिया? वे कौन थे जिन्होंने देश आज़ाद होने के 50 साल बाद तक अपने आॅफिस पर राष्ट्रीय झंडा नहीं फहराया? कहने का मतलब यह है कि इतिहास अच्छा या बुरा जो भी हो आप उसको मिटा नहीं सकते, बदल नहीं सकते और छिपा नहीं सकते। 
       आपने औरंगाबाद का नाम बदलकर शंभाजी नगर कर दिया। अब औरंगजे़ब की कब्र का नामो निशान भी मिटाना चाहते हैं तो मिटा दीजिये कौन रोक रहा है? लालकिला और ताजमहल भी आपके रहमो करम पर है जब चाहंे जो चाहें आप उनका कर सकते हैं? सवाल यह नहीं है कि औरंगजे़ब बुरा था या अच्छा था? यूपी के सीएम योगी जी तो अकबर को भी उसी केटेग्री में रखते हैं। जहां तक बहुसंख्यकों की भावनाओं का सवाल है तो देश की एकता भाईचारे और विकास व शांति के लिये उनका सम्मान किया जाना चाहिये। बाबरी मस्जिद राम मंदिर का विवाद खत्म करने को अल्पसंख्यकों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिना गवाह सबूत और दस्तावेज़ों पर सवाल उठाये अमन चैन के लिये स्वीकार कर लिया था लेकिन अब प्लेस आॅफ वर्शिप एक्ट होने के बावजूद मथुरा कांशी और संभल के धार्मिक स्थलों पर विवाद शुरू हो गया है। 
        क्या अल्पसंख्यकांे की भावनाओं का सम्मान किये बिना शांति एकता और सौहार्द बना रह सकता है? अगर आप गिनने लगें तो गौरक्षा के नाम पर माॅब लिंचिंग, आज़म खां, डा. कफ़ील पत्रकार सद्दीक कप्पन, उमर खालिद, बिल्कीस बानो, फर्जी एनकाउंटर, हाफ एनकाउंटर, आरोपी के घर बुल्डोज़र, मस्जिदों मदरसों पर विवाद, एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म करने की मांग, अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ का शिगूफा, एनआरसी, सीएए, एक खास वर्ग से आंदोलन में नुकसान पहुंची सम्पत्ति के हर्जाने की वसूली, सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पर रोक, वक्फ बोर्ड को माफिया बोर्ड बताना, लोगों को कपड़ों से पहचानना, शाहरूख सलमान सैफ को टारगेट करना, हज सब्सिडी का विरोध कुंभ पर बेतहाशा खर्च, शोभायात्राओं का मस्जिदों के सामने हंगामा, जस्टिस शेखर यादव का अल्पसंख्यकों के लिये विवादित बयान, काॅमन सिविल कोड, कश्मीर की धारा 370 हटाकर उसको विभाजित कर केंद्र शासित प्रदेश बना देना जबकि अन्य उस जैसे राज्यों में 370 जैसी धारा लागू रखना आदि ऐसे अनेक मामले पक्षपात अन्याय और अत्याचारों की लंबी सूची है जिनसे एक वर्ग को टारगेट कर दूसरे बड़े वर्ग के वोट बैंक का तुष्टिकरण कर चुनाव जीतने की सोची समझी योजना पर काम चल रहा है? जबकि असली मुद्दे दबाये जा रहे हैं।
 0 मैं तो इस वास्ते चुप हूं कि तमाशा न बने,
तू समझता है कि मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Wednesday, 12 March 2025

कांग्रेस में भाजपाई

*कांग्रेस से निकालेंगे ‘‘भाजपाई’’,* 
*राहुल कर पायेंगे पूरी सफ़ाई?*
0 राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस में कुछ भाजपा की सोच के नेता हैं। ये तादाद में 30 से 40 तक हो सकते हैं। ये कांग्रेस में रहकर भाजपा के लिये काम करते हैं। उनका यह भी कहना था कि एक रेस का घोड़ा होता है दूसरा बारात का घोड़ा होता है। पार्टी में कभी कभी इनका उल्टा इस्तेमाल होता है जिससे कांग्रेस का नुकसान होता है। गांधी ने मज़ाक में यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस में कई बबर शेर हैं लेकिन वे सो रहे हैं। इससे पहले राजस्थान छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश व हरियाणा की हार के बाद राहुल गांधी कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं पर अपने अपने परिवार के सदस्यों के चुनाव लड़ाने के लिये पार्टी के हित को अनदेखा करने का आरोप भी लगा चुके हैं। लेकिन अभी तक एक्शन क्यों नहीं लिया?    
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      कांग्रेस अपने सबसे मुश्किल दौर का सामना कर रही है। राहुल गांधी ने जब से कांग्रेस की कमान संभाली है वह केंद्र की सत्ता में भले ही ना आ सकी हो लेकिन वह गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद से मज़बूत हुयी है इसमें कोई दो राय नहीं है। साथ ही जब से मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का मुखिया बनाया गया है। तब से पार्टी में कुछ जान आई है। इसी का नतीजा है कि संसदीय चुनाव में उसके सांसद बढ़कर बढ़कर लगभग दोगुना हो गये हैं। इतना ही नहीं कांगे्रस के नेतृत्व में बने इंडिया गठबंधन ने भाजपा के 400 पार के नारे की हवा निकालकर उसके एमपी की संख्या पहले से 63 घटाकर उल्टा 240 तक सीमित कर दी है। लेकिन यह भी सच है कि लोकसभा के चुनाव के बाद से जितने भी राज्यों के चुनाव हुए हैं उनमें कश्मीर और झारखंड को छोड़कर भाजपा ने लगभग सबमें बाज़ी मारकर अपना माॅरल हाई कर लिया है। इस सब कवायद में कांग्रेस को सबसे अधिक झटका लगा है। हालांकि कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगियों ने एक के बाद एक हार के लिये भाजपा पर मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनाव आयोग की मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया है। लेकिन इस मामले में आज तक कोई ठोस आंदोलन विरोध प्रदर्शन या कानूनी कार्यवाही होती नज़र नहीं आ रही है। इस दौरान राहुल गांधी ने लीक से हटकर कांग्रेस की हार की निष्पक्ष और साहसी समीक्षा करनी शुरू की है। उन्होंने माना है कि कांग्रेस की सीधी लड़ाई सत्ता की नहीं वैचारिक और उसूलों की लड़ाई है। उनका कहना है कि वे आरएसएस की साम्प्रदायिक झूठी और नफरत की सोच के खिलापफ लड़ रहे हैं। उनका यह भी आरोप है कि मोदी सरकार ने चुनाव आयोग पुलिस ईडी इनकम टैक्स पर पूरा और अदालतों की स्वायत्ता व स्वतंत्रता पर आंशिक रूप से कब्ज़ा कर लिया है। इसके लिये वे इंडियन स्टेट से लड़ने तक का विवादित बयान तक दे चुके हैं। 
     गांधी ने यह भी माना कि जब उनके साथ दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक लंबे समय तक लगभग तीन चैथाई रहे तो कांग्रेस की सराकर उनके लिये उतने भलाई के काम नहीं कर सकी जितने करने चाहिये थे। उनको शायद पता नहीं या बाद में कभी वे यह भी मानेंगे कि पिछड़े आज भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बने है जिसे कांग्रेस ने कभी अहमियत नहीं दी। उसको आरक्षण देने के लिये देश आज़ाद होने के दो दशक बाद तक कांगे्रस ने सोचा तक नहीं। इसके बाद काका कालेलकर आयोग बनाया गया। उसकी रिपोर्ट दस साल बाद आई और कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल दी। इसके बाद मंडल आयोग बना। उसने पिछड़ों को रिज़र्वेशन देने की सिफारिश की उसको भी कांग्रेस ने अनसुना कर दिया। वी पी सिंह की जनमोर्चा सरकार ने मंडल आयोग लागू कर पिछड़ांे को आरक्षण दिया। जिससे पिछड़े कांग्रेस से नाराज़ हो गये। कांग्रेस सरकार ने संघ और भाजपा को अपनी नीतियां लागू करने को खुलकर मौका दिया। दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत दिखाकर उनके पक्ष में हिंदूवादी माहौल बनाया। शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेककर हिंदू ध््राुवीकरण करने का संघ परिवार को खुल मैदान दिया। बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर दंगे रामरथ यात्रा गुजरात दंगे और कांग्रेस में भाजपा की सोच के नेताओं को हिंदू कार्ड खेलने का जोखिम लिया। सत्ता में रहते कांग्रेसियों ने करप्शन में भी रिकाॅर्ड तोड़े। आज इसी का नतीजा है कि भाजपा सरकार जिस कांग्रेसी को चाहे उसे ईडी व सीबीआई से टारगेट कर लेती है। 
     बसपा की मायावती को जेल भेजने का डर दिखाकर ही भाजपा ने उनकी पार्टी को लगभग खत्म कर दिया है। ऐसी और भी कई क्षेत्रीय पार्टियां और कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेता हैं जिनको जांच के नाम पर डराकर भाजपा या तो कांग्रेस से खींच लेती है या फिर उनको कांग्रेेस में रहकर भाजपा के लिये काम करने को मजबूर कर देती है। एक सच यह भी है कि कई ईमानदार और सच्चे कांग्रेस व विपक्षी नेताओं को झूठे आरोप मुकदमें और जांच में उलझाकर भाजपा उनकी पार्टी छोड़ने को मजबूर कर देती है। ऐसे मामलों में राहुल गांधी के पास क्या बचाव है यह वही बता सकते हैं। इतना ही नहीं भाजपा के पास जो संघ के लाखों कार्यकर्ता हैं जिस तरह समर्पण त्याग और मेहनत से वे पार्टी के लिये काम करते हैं। उसका कोई विकल्प कांगे्रस के पास आज नहीं है। कांग्रेस ने मीडिया और न्यायपालिका में कभी उच्च जातियों के साथ पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी देने की गंभीर कोशिश नहीं की जिसकी कीमत आज वह खुद ही चुका रही है। कांग्रेस ने अपने नवजीवन कौमी आवाज़ और नेशनल हेराल्ड जैसे अखबार बंद कर दिये और कभी कोई नेशनल मैगजीन या टीवी चैनल शुरू नहीं किया जिससे आज उसकी बात जनता तक नहीं पहुंच रही है। कांग्रेस ने जनता पार्टी जनतादल वामपंथी और क्षेत्राीय दलों को स्वस्थ विपक्ष के तौर पर कभी विकसित नहीं होने दिया जिससे विपक्ष की खाली जगह संघ ने भाजपा को धर्म की राजनीति के सहारे सत्ता में लाकर भर दी। 
      कुछ समय पहले खुद राहुल मंदिर मंदिर जाकर अपना जनेउू दिखाकर और खुद को वैष्णवी ब्रहम्ण बताकर भाजपा के पाले में घुसकर उसकी हिंदू साम्प्रदायिकता को जाने अंजाने में मान्यता देने की गल्ती कर चुके हैं। राहुल गांधी को यह भी समझ आ गया होगा कि कांग्रेस भाजपा की तरह हिंदू साम्प्रदायिकता ध््राुवीकरण मुस्लिम विरोध दलित विरोध गरीब विरोध व्हाट्सएप प्रोपेगंडा काॅरापोरेट से दोस्ती कर मोटा चंदा धर्म की राजनीति नफ़रत की सियासत पिछड़ों का आरक्षण निजीकरण कर खत्म करना सत्ता का भाजपा की तरह खुलकर साम दाम दंड भेद से बेशर्म दुरूपयोग कर हर कीमत पर चुनाव जीतना इतिहास बदलना अतीत का झूठा गुणगान करना औरा भविष्य के फर्जी सपने दिखाकर भोली जनता को झांसे में लेना व चीन तथा अमेरिका के सामने अन्याय व अपमान पर चुप्पी साधना उसके बस की बात नहीं है। सवाल अब यह है कि देर आयद दुरस्त आयद ही सही लेकिन जब राहुल गांधी को कांग्रेस की जिन गल्तियों कमियांे और बुराइयों पता चल चुका हैं तो उन पर एक्शन लेने के लिये कौन से शुभ मुहूरत की प्रतीक्षा की जा रही है? बाकी यह बात सही है कि सत्ता मिले या ना मिले लेकिन भाजपा व संघ से बिना डरे अपनी जनहित की बात अपनी निष्पक्ष सोच और अपना सही वीज़न जनता के सामने रखना चाहिये।

0 यहां मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है,

 कई झूठे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है।

 तसल्ली देने वाले तो तसल्ली देते रहते हैं,

 मगर वो क्या करे जिसका भरोसा टूट जाता है।।    
*0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।*

Monday, 3 March 2025

आपके दिमाग़ में क्या है?

*आप क्या लिखने की सोच रहे हैं, 
आपको पता है कोई यह जानता है?
इक़बाल हिंदुस्तानी
0 आपने सुना होगा पैगासस एक ऐसा स्पाई साफ्टवेयर है जिसको आपके मोबाइल फोन में इंस्टाॅल करके आपकी हर गतिविधि को ट्रैक किया जा सकता है। हैरत की बात यह है कि इसको आपके सेलुलर फोन मंे पहुंचाने के लिये केवल एक मिस काॅल करनी होती है। लेकिन चूंकि यह बहुत महंगा है इसलिये इसको आम तौर पर देशों के स्तर पर सरकारें अपने विरोधियों और दुश्मनों की जासूसी करने के लिये ही इस्तेमाल करती रही हैं। भारत में भी इसके इस्तेमाल को लेकर काफी हंगामा मचा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जांच कमैटी भी इस मामले में किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी। अब आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि आपके दिमाग़ मंे क्या चल रहा है आप क्या सोच रहे हैं और आप क्या लिखना चाहते हैं आज के दौर में तकनीक ने यह सब बहुत आसान बना दिया है। 
               आज का दौर आधुनिक तकनीक का दौर है। टेक कंपनियां आपके दिमाग में झांकने लगी हैं। आपने कभी नोटिस किया है कि आप के माइंड में जो कुछ चल रहा है, गैजेट उसको पहले ही जान जाता है। यही वजह है कि जब आप अपने मोबाइल लैप टाॅप या डेस्क टाॅप पर कुछ लिखने को की बोर्ड पर उंगली रखने की सोच रहे होते हैं तो आपके शब्दों के सुझाव में उूपर ठीक वही वर्ड दिखाई देता है जो आप अभी सोच रहे होते हैं? आखि़र ऐसा कैसा होता है? यह क्या रहस्य है? यह जादू तो नहीं है? तो फिर आपके कीबोर्ड यानी गूगल को कैसे पता लगा कि आप अगला शब्द क्या लिखने जा रहे थे? इतना ही नहीं टेक कंपनी की घुसपैठ आज आपके दिमाग तक हो चुकी है। अगर आपको अभी भी विश्वास नहीं आ रहा है तो हम आपको आज विस्तार से यह राज़ बतायेंगे कि आपका आज कुछ भी छिपा हुआ नहीं रह गया है। हालत यह है कि आपके भविष्य के कामों तक पर टेक कंपनी नज़रें गड़ायें हैं। आप क्या खरीदना चाहते हैं वे यह भी जानती हैं। वो कैसे? आपने नोट किया है कि अगर आप आॅनलाइन कुछ खरीदना चाहते हैं तो आप जिस साइट पर जायेंगे आपको उस ही प्रोडक्ट के एड दिखाई देने लगेंगे। आखि़र गूगल को किसने बताया कि आप क्या खरीदने की सोच रहे हैं? आपके ख्वाब क्या हैं? आप क्या योजना बना रहे हैं?  
     आप भविष्य में कहां की यात्रा करने का प्लान बना रहे हैं? दरअसल आप भूल जाते हैं कि आप जब फेसबुक ट्विटर और यूट्यूब पर जो कुछ लिख रहे पढ़ रहे पोस्ट कर रहे और सर्च कर रहे होते हैं। उसको यह ऐप आर्टिफीशियल इंटैलिजैंस से रिकाॅर्ड कर लेते हैं। यहां तक कि आप जो फोटो वीडियो आॅडियो या रील बनाकर इन साइट्स पर डालते हैं। ये उनके हिसाब से आपकी सोच आपकी पसंद और आपकी आदतों का एक पूरा चार्ट तैयार कर लेते हैं। इतना ही नहीं ये एप आपके कमेंट लाइक और शेयर करने से ही समझ जाते हैं कि आप किस तरह की सोच समझ और पसंद के इंसान हैं। इसके बाद आप जब भी नेट आॅन करेंगे ये आपको आपकी सोच चाहत और तलाश के हिसाब से चीजे़ परोसना शुरू कर देंगे। आपको लगता है कि इससे आपका काम भी आसान हो जाता है। एक दिन ऐसा आता है जब ये वेबसाइट एप और सर्च इंजन आपको कंट्रोल करने लगते हैं।
    यह आपको समय समय पर बिना सर्च किये बताने लगते हैं कि बाज़ार में क्या नया आया है? यह आपको मजबूर करते हैं कि जिस तरह का लेटेस्ट फैशन चल रहा है आप भी वही अपनायें। सोशल मीडिया आपको गाइड करता है कि आप किस तरह सोचें किस तरह से लिखें किस तरह से खायें किस तरह से सोयें किस तरह के कपड़े पहनें और यहां तक कि आपका निजी जीवन कैसा होना चाहिये यह सब भी इंटरनेट से बताया जाने लगता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि आज आपका सब कुछ इंटरनेट के आॅब्ज़र्वेशन में चल रहा है। आपका पर्सनल कुछ नहीं है। हो सकता है कि टेक कंपनी को आपके बारे में इतना अधिक पता हो जितना आपको खुद भी नहीं पता। यह सब कभी कभी बहुत डरावना भी लगता है। लेकिन यकीन मानिये यह सब सच है। वास्तविकता है। मुमकिन है। आपकी सोच ही नहीं आपकी भावनाओं को पढ़ने की टैक्नालाॅजी भी आज मौजूद है। तकनीकी एक्सपर्ट आपके लिखने के तौर तरीको को ही नहीं बल्कि आपके माइंडसेट को भी जानते हैं। आप कब किस मनःस्थिति में लिख रहे हैं वे यह भी समझने लगे हैं। आपका मूड कब कैसा होता है वे यह भी रीड कर रहे हैं। यही वजह है कि जब आप यूट्यूब पर जाते हैं तो वे आपको बिना सर्च किये ही वही वीडियो आॅटो प्ले कर देते हैं जिनको देखने की अभी आप बस सोच ही रहे थे। नेटफिलिक्स आपकी चाहत वाली फिल्म पहले ही पेश कर देता है। 
    कमाल है न? नहीं यह बाइचांस नहीं है यह आपके डिजिटल प्रोफाइलिंग का कमाल है। जो आसानी से आपके दिल को पढ़ लेता है। आप ने देखा होगा जब आप फेसबुक पर कुछ लिखने या पोस्ट करने के लिये खोलते हैं तो वहां लिखा आता है-व्हाट्स आॅन योर माइंड? यही वह ट्रेप है जिसमें फंसकर आप अपना वह सब साझा कर चुके हैं जो वे आपके लिखने सोचने और करने से पहले ही जान रहे हैं। जब आप अपने दोस्तों से चैट करते हैं तो आपका सब कुछ निजी ज्ञान उनके साथ अंजाने में ही साझा हो जाता है। मेटा फिलिप काॅर्ट अमेज़न गूगल माइक्रोसाॅफ्ट एआई सिरी एलेक्सा और न्यूराल केवल आपके लिये नहीं आपकी जासूसी को भी बनाये गये हैं। आपको अब तक यह खुशफहमी रही होगी कि नेट आपको अपने हिसाब से पोस्ट ख़बरें और कंटेंट दिखाकर आपकी सोच अपने हिसाब से बनाना चाहता है लेकिन तकनीक अब इससे आगे निकल चुकी है। वह आपका व्यवहार आपका नज़रिया और आपका मकसद भी तय करने लगी हैं। वे आपके अंर्तमन तक पहंच चुकी हैं। आज आपका सबसे बड़ा नेता संचालक और कंट्रोलर आप खुद नहीं आपका दिमाग नहीं आपकी अपनी समझ नहीं कोई और है। शायर ने शायद पहले ही इस टैक्नीक को समझ लिया था, तभी तो लिख दिया था- ये लोग पांव नहीं ज़ेहन से अपाहिज हैं, उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।