दिल्ली की सत्ता पड़ गयी गंवानी!
0आम आदमी पार्टी दिल्ली में हार गयी। उसके मुखिया केजरीवाल अपनी सीट भी हार गये। उसके और भी कई बड़े नेता हार गये। हालांकि कम लोगों को पता होगा कि आप के वोट केवल 10 प्रतिशत ही कम हुए हैं लेकिन उसकी सीट 62 से 22 पर आ गयी। आप जितने वोटों से 13 सीट हारी उससे अधिक वोट कांग्रेस और ओवैसी की एआईएमआईएम को मिले। यही काम आप ने गोवा गुजरात और हरियाणा में कांग्रेस को दर्जनों सीट हराकर किया था। केजरीवाल मजबूरी मंे लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन में गये लेकिन वे भाजपा से अधिक कांग्रेस का विरोध करते रहे। मुस्लिम मुद्दों पर चुप रहकर वे हिंदूवादी बनने चले थे लेकिन भाजपा ने उनको अपना कार्ड खेलन नहीं दिया और उनकी इमेज बिगाड़ कर उनका खेल खत्म कर दिया।
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
आम आदमी पार्टी ने अपना सफर समाज सेवा से शुरू किया था। उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने करप्शन के खिलाफ अन्ना हज़ारे के कथित गैर राजनीतिक आंदोलन का सफल प्रबंधन और संचालन किया था। वे अपने इनकम टैक्स कमिश्नर के बड़े भारी भरकम और कमाई वाले पद से इस्तीफा देकर इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले जनलोकपाल कानून बनाने को लेकर आमरण अनशन में अन्ना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शामिल होकर लोगों का यह विश्वास जीतने में उस समय सफल रहे थे कि यह नौजवान समाज के लिये कुछ बड़ा क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहता है। लेकिन बाद में देश को पता लगा वे संघ परिवार के छिपे एजेंडे के तहत तत्कालीन मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार को बदनाम करने भाजपा को सत्ता में लाने और खुद अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी करने के लिये यह सब कर रहे थे। यही वजह थी कि बाद में यूपीए सरकार पर उस समय लगाये गये अधिकांश आरोप झूठे साबित हो गये। जब कांग्रेस और भाजपा जैसे राजनीतिक दलों ने उनकी मांगों पर कोई खास तवज्जो न देते हुए उनको राजनीति में आकर खुद लोकपाल जैसे कानून बनाने और भ्रष्टाचार खत्म कर साफ सुथरा शासन चलाने के लिये चुनौती दी तो वे अपनी सरकार बनाने की आकांक्षा पूरी करने को अपने गुरू अन्ना के मना करने के बावजूद आम आदमी पार्टी बनाकर सियासत में कूद पड़े।
बाद में उनमें इतना अहंकार और स्वार्थ भर गया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वकील और सोशल एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण, जाने माने सेफोलोजिस्ट योगेंद्र यादव पूर्व जज हेगड़े वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष व पूर्व पुलिस कमिश्नर किरण बेदी सहित दर्जनों वरिष्ठ साथियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह सही है कि केजरीवाल ने दिल्ली में शिक्षा स्वास्थ्य और निशुल्क बिजली पानी के साथ महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा व वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा कराने जैसी समाज कल्याण की अनेक योजनायें शुरू कीं लेकिन जिस सुशासन भ्रष्टाचार मुक्त और उच्च मानक के सर्वसमावेशी विकास के दावे के साथ वे सत्ता में तीन बार आये उनको पूरा करने में नाकाम नज़र आने लगे थे। साथ ही उन्होंने दिल्ली दंगों शाहीन बाग आंदोलन मुसलमानों के मकानों दुकानों पर चलने वाले बुल्डोज़र पर चुप्पी साध्कर और कोरोना लाॅकडाउन के दौरान तब्लीगी जमात को टारगेट करके खुद को भाजपा से बड़ा हिंदूवादी नेता साबित करने का अवसरवादी साम्प्रदायिक और ध्ूार्तता वाला संकीर्ण कार्ड खेला वह आज उनके लिये आत्मघाती साबित हो गया। हालांकि उन पर मोदी सरकार द्वारा लगाये गये करप्शन के आरोप अभी तक सच साबित नहीं हुए लेकिन जिस तरह उनको ईडी ने शराब घोटाले के आरोप में और आप के कई बड़े नेताओं को कई माह तक जेल भेजा उससे उनकी छवि काफी खराब हो गयी।
इसके साथ ही आम आदमी की तरह सादगी और किफायत से सरकार चलाने के दावों के बावजूद जिस तरह से केजरीवाल ने अपने घर को भारी भरकम सरकारी खर्च पर सुसज्जित कराया उससे उन पर भाजपा का शीशमहल का आरोप चस्पा होता नज़र आया। हालांकि उनकी पार्टी के अभी भी केवल 10 प्रतिशत वोट ही पिछले चुनाव से कम हुए हैं जिनमें से भाजपा को आठ और कांग्रेस को दो प्रतिशत वोट मिले हैं लेकिन उनकी सीट 62 से कम होकर मात्र 22 ही रह गयी हैं। दो प्रतिशत वोट बढ़ने के बावजूद कांग्रेस का अभी भी विधानसभा में खाता तक नहीं खुला है। लेकिन बीजेपी ने केवल 8 प्रतिशत वोट बढ़ने से अपनी सीटों की संख्या 7 से बढ़ाकर 48 कर ली है। इतना ही नहीं केजरीवाल ने चुनाव के दौरान ही आरोप लगाये थे कि भाजपा मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर फेरबदल कर रही है। इस बारे में खोजी वेबसाइट क्विंट ने दावा किया है कि 2020 से 2024 के आम चुनाव तक चार साल में जहां दिल्ली में चार लाख वोट बढ़े वहीं हैरतनाक तरीके से 7 माह बाद चार लाख वोट और बढ़ गये। कुछ इसी तरह के आरोप भाजपा सराकर पर महाराष्ट्र के चुनाव में भी लगे थे।
हाल ही में राहुल गांधी ने इस बारे में प्रैस वार्ता कर आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र में जितने वोट चुनाव आयोग ने बताये हैं उतने तो वहां कुल बालिग भी नहीं हैं। अलबत्ता यह आरोप प्रतिआरोप चर्चा और विवाद चलते रहेंगे जबतक इनकी निष्पक्ष जांच नहीं होगा तब तक कोई अंतिम नतीजा नहीं निकाला जा सकता। बहरहाल जो जीता वह सिकंदर और जो हार गया उसकी लाख कमियां गल्तियां और नालायकियां तलाशी जाती हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि इस बार आपका एकमुश्त वोटबैंक रहा 17 प्रतिशत दलित 13 प्रतिशत मुस्लिम 15 प्रतिशत मिडिल क्लास 14 प्रतिशत झुग्गी झोंपड़ी वाला 15 प्रतिशत पूर्वांचली वोट बिखर गया। आठवे वेतन आयोग के गठन और बजट में 12 लाख तक की आय करमुक्त करके भाजपा ने आप के मिडिल क्लास वोट में खासी सेंध लगा दी है। बीजेपी ने आप द्वारा शुरू की गयी निशुल्क स्कीमें जारी रखने का वादा कर भी उस वोटर को अपनी ओर खींचा जो हर बार लोकसभा में भाजपा को वोट देकर अपनी सुविधायें खत्म होने के डर से विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के साथ चला जाता था। केजरीवाल और भाजपा संघ मोदी व लेफटिनेंट गवर्नर के बीच लगातार चलने वाले टकराव से भी दिल्ली की जनता यह सोचकर परेशान होने लगी थी कि एक ही पार्टी की सरकार दोनों जगह बनने से शायद रूका हुआ विकास तेज़ हो सकता है। शायर ने क्या खूब इशारा किया है अगर विपक्षी दल समझ रहे हों तो- मैं आज ज़द पर अगर हूं तो खुश गुमान ना हो, चिराग़ सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।।
नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं। ।
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