Saturday 17 October 2020

टीआरपी घोटाला

टी आर पी का खेलपूंजी-सत्ता का घालमेल!

0बीएआरसी यानी ब्रॉडकास्ट ऑडियेंस रिसर्च कौंसिल ने कुछ टीवी चैनलोें की टीआरपी यानी टेलीविज़न रेटिंग प्वाइंट पर उठे विवाद के बाद आगामी 12 सप्ताह तक अपने आंकडे़ जारी करने पर रोक लगा दी है। 80 करोड़ टीवी दर्शकों के देश में मात्र 41000 व्यूवर मीटर लगाकर बिना पारदर्शिता के चैनलों की लोकप्रियता परखना वैसे भी अपने आप मेें मज़ाक ही था। अब देखना यह है कि बीएआरसी टीआरपी को लेकर आगे क्या लीपापोती करता है?     

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   दरअसल टीआपी घोटाला सर्वे कंपनी हंसा रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के एक कर्मचारी ने ही खोला है। कंपनी के कर्मचारी महेश कुशवाह ने पूर्व कर्मचारी विनोद कुलश्रेष्ठ को यह जानकारी लीक कर दी कि एमपी के ग्वालियर के माधोगंज स्थित गुढ़ा क्षेत्र के किन घरों में बीएआरसी के बैरोमीटर लगे हैं। इसके बाद कंपनी के डिप्टी जनरल मैनेजर नितिन देवकर की शिकायत पर पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर सात लोगों को हिरासत में लिया है। बैरोमीटर जिन घरों मंे लगाया जाता है। गोपनीयता की वजह से उनको भी यह जानकारी नहीं दी जाती कि उनके घर में जो संयंत्र लगाया गया है। वह क्या हैउसका क्या मकसद हैऔर वह कैसे काम करता हैऐसा इसलिये किया जाता है। जिससे उनको कोई चैनल वाला लालच देकर अपना चैनल अधिक देखने को बहला फुसला ना सके। लेकिन इस बार जब पोल खुली तो पता लगा कि जिन घरों में बैरोमीटर लगाया जा रहा था। उनको 500रू. माह इस बात के लिये दिये जा रहे थे कि वह इंडिया न्यूज़ चैनल ही देखें। इसके लिये उनको यह भी समझाया गया कि वह अपने घर में इस चैनल को चाहे देखें या ना देखें लेकिन अपना टीवी दिन रात यह चैनल ऑन करके चालू रखें। ज़ाहिर बात है कि यही फार्मूला अन्य अनेक ऐसे घरों मंे भी अपनाया जा रहा होगा। जहां ये बैरोमीटर लगे होंगे। सभी टीवी चैनल विज्ञापन अधिक से अधिक लेने के लिये टीआरपी पर निर्भर करते हैं। जिसकी जितनी अधिक टीआरपी होगी। उसको ना केवल उतने ही अधिक एड मिलते हैं बल्कि उसकी विज्ञापन दर भी उतनी अधिक हो जाती हैै। सराकर चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की वह हर हाल में मीडिया और खासतौर पर इलैक्ट्रॉनिक टीवी चैनलों को अपने काबू में रखना चाहती है। इसके लिये बीएआरसी से सैटिंग करके टीआरपी का नकली और फर्जी खेल किया जाता है। आज जो गड़बड़ी अनैतिकता और तिगड़म भाजपा सरकार कर रही है। कल तक वही काम पूरी बेशर्मी और नंगेपन से कांग्रेस भी करती थी। हद तो यह थी कि जनवरी 2014 में यूपीए की मनमोहन सरकार को ऐसा लगा कि वह तीसरी बार चुनाव जीतने की हालत में नहीं है तो उसने टीआरपी आंकने वाली एजंसी बीएआरसी को 70 हज़ार करोड़ का वार्षिक कारोबार नियम कायदे ताक पर रखकर अपने पक्ष में करने को दे दिया था। लेकिन वह अपने मकसद में नाकाम रही। ब्रॉडकास्टिंग ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल देश के ब्रॉडकास्टर्सविज्ञापन एजंसियों और विज्ञापनदाताओं का सामूहिक संगठन है। मुंबई स्थित ग्लोबल मार्केट कंपनी हंसा बीएआरसी के लिये लोगों के घरों में बैरो मीटर लगाने का काम करती है। हमारे यहां गोपनीयता के नाम पर बहुत से घोटाले सरकार भी करती रही है। सो बीएआरसी ने भी पूंजीपतियों के पक्ष में मोटी रकम के बल पर कुछ टीवी चैनलों से मिलीभगत करके यह घोटाला लंबे समय से चला रखा था। मुंबई पुलिस ने बीएआरसी हंसा और कुछ टीवी चैनलों का जो टीआरपी का खेल पकड़ा है। वह नया या पहली बार नहीं हैै। अगर आप गहराई से देखेंगे तो टीवी चैनल समाचार तथ्यों व सत्य आंकड़ों व प्रमाणों पर जोर ना देकर अपने एंकरों को मदारी की तरह रोज़ शाम को टीवी रूक्रीन पर बैठाकर ऐसे चंद मुद्दों पर फालतू घटिया और ओछी बहस कराते नज़र आते हैं। जिनमें टीआरपी बढ़ाने को गाली गलौच झूठ फर्जी जानकारी सनसनीखेल मसाला और मारपीट तक की नौबत आ जाती है। यह ठीक है कि अर्णव गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी ने टीआरपी ही नहीं मर्यादा संयम और नियम कानूनों के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। लेकिन कम लोगों को पता है कि आज जो चैनल रिपब्लिक और इंडिया न्यूज़ जैसे दो चार चैनलों को टीआरपी घोटाले के लिये खूब जोरशोर से कोस रहे हैं। वे कमोबेश खुद भी इस तरह की सैटिंग में गाहे बा गाहे शामिल रहे हैं। लेकिन हमारा समाज ऐसा मानता है कि जो पकड़ा जाये वही चोर है। हम यह भी नहीं कह रहे कि केवल और केवल देश में टीआरपी घोटाला हो रहा था। अख़बारों के प्रसार को आंकने वाली संस्था एबीसी यानी ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन भी कई आरोपों के घेरे में रही है। लेकिन हम यह भी नहीं कह सकते कि अगर और जगह ऐसी गड़बड़ी हो रही है तो टीआरपी में भी जायज़ है। सही बात तो यह है कि इस तरह की धोखाधड़ी जनता के विश्वास के साथ किसी भी क्षेत्र में होनी ही नहीं चाहिये। टीआरपी घोटाला इतना सीधा सरल नहीं है। जो साधारण आदमी को आराम से समझ आ जाये। देखने वाली बात यह भी है कि आप बैरोमीटर किन इलाकों में लगा रह हैंकिन घरों में लगा रहे हैंकहीं ऐसा तो नहीं कुछ धर्म जाति और क्षेत्र विशेष में ही ये पैनल होम जानबूझकर सत्ता के इशारे पर लगाये जाते हों। मिसाल के तौर पर आप किसी दल विशेष के गढ़ में या चुनचुनकर किसी लोकप्रिय नेता के अंधभक्तों के घरों में अगर बैरोमीटर लगायेंगे तो वह तो बिना रिश्वत लिये भी वही चैनल देखेगा जो उसको साम्प्रदायिक अंधविश्वासी और एक सोचे समझे सियासी एजंडे के तहत किसी वर्ग विशेष से दुश्मनी करना और निष्पक्ष सेकुलर हिंदुओं से घृणा करना दिन रात सिखा रहा है। इतना ही नहीं जिनकी रेटिंग घटानी होती है। उन निष्पक्ष चैनलों को रिमोट सैटिंग में अचानक ही दूसरे नंबर पर डाल दिया जाता है। तकनीकी कमी के नाम पर उनकी आवाज़ गायब कर दी जाती है। कभी पिक्चर साफ नहीं आती। जिससे दर्शक झुंझलाकर उस चैनल को देखना ही छोड़ देते हैं। पुलिस प्रशासन के ज़रिये कैबिल नेटवर्क चलाने वालों पर सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने वाले चैनलों को ना दिखाने का दबाव लगातार चलता है। बड़े होटल अस्पताल रेलवे स्टेशन बस स्टैंड और अन्य सरकारी सार्वजनिक स्थानों पर बाकायदा मौखिक आदेश आते हैं कि कौन सा चैनल जनता को लगातार दिखाने को फिक्स करना है। ऐसे और भी कई खेल टीआरपी घटाने बढ़ाने को गोपनीयता के नाम पर सरकार पूंजीपति यानी चैनल स्वामी और उनकी गुलाम बीएआरसी पर्दे के पीछे करती रही है। सवाल यह है कि जब सारा समाज सरकार प्रशासन पुलिस न्यायपालिका और मीडिया सवालोें के घेरे में है तो अकेले टीआरपी ईमानदार और निष्पक्ष कैसे बची रह सकती है?                                  

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