Thursday, 12 June 2025

पाकिस्तान हल्कान

पाकिस्तान: अपने आतंक के बोझ से खुद होगा हलकान!
0 आॅप्रेशन सिंदूर के बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। पहलगाम हमले का बदला लेने के लिये जब भारत ने उसके नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल दाग़ीं तो तो वह उनमें से एक को भी इंटरसेप्ट कर नाकाम नहीं कर पाया। उसने अपना रक्षा बजट बेतहाशा बढ़ा दिया है। पाकिस्तान आज आर्थिक रूप से भारी संकट में है। सिंध ुजल समझौता टूटने से पाक में सूखा पड़ने के आसार अभी से दिखने लगे हैं। उसकी कुल खेती लायक ज़मीन में से 70 प्रतिशत पर 263 अमीर सामंत और नवाब रहे बड़े लोगों का कब्ज़ा है। आतंकवाद उसे अंदर ही अंदर खाता जा रहा है। पिछले साल आई भीषण बाढ़ से उसकी एक तिहाई खेती तबाह हो गयी। वहां निर्माण से अधिक आतंक पैदा हुआ है। पाक लगभग दिवालिया हो चुका है।                  -इक़बाल हिंदुस्तानी
     आॅप्रेशन सिंदूर से घबराये पाकिस्तान ने जब पलटवार करने को भारत पर मिसाइल हमला करना चाहा तो उसका एक भी वार कामयाब नहीं हुआ। इन सबको भारत ने नाकाम कर दिया। इससे यह साबित होता है कि पाकिस्तान भारत का सीधी जंग होने पर बराबर का मुकाबला नहीं है। इससे पहले भी पाकिस्तान हम से कई जंग हार चुका है। यही वजह है कि उसने आतंक के ज़रिये एक छिपा हुआ गोरिल्ला यानी छद्म वार का रास्ता चुना है। विश्व के सैन्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि पाकिस्तान भारत के साथ सीधे युध्द में तीन से 7 दिन तक ही टिक सकता है। आॅप्रेशन सिंदूर के बाद तीन दिन बाद ही जिस तरह से पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेक दिये उससे दुनिया के रक्षा जानकारों का यह अंदाज़ सही साबित भी हो चुका है। इस मामले में पाकिस्तान की चार बड़ी समस्यायें सामने आ रही हैं जिसमें सैन्य, आर्थिक रण्नीतिक और भौगोलिक चुनौती उसके सामने खड़ी हैं। भारत के पास 15 लाख एक्टिव और 11 लाख 50 हज़ार रिज़र्व फौजी हैं जबकि पाकिस्तान के पास 6 लाख 50 हज़ार सक्रिय और 5 लाख सुरक्षित सैनिक हैं। जानकारों का कहना है कि भारत की सेना को लेकर कई लोगों को यह भ्रम रहता है कि उसकी सेना चीन बंगलादेश की सीमा और कश्मीर में विभाजित है जबकि पाकिस्तान की सेना खुद भी ब्लोचिस्तान और खैबर पख्तूनवा के साथ ही अफगानिस्तान और भारत की सीमा पर चार चार जगह बंटी हुयी है। 
    भारत के पास टैंक 4614 एयरक्राफट 2230 जबकि पाक के पास टैंक 3742 और एयरक्राफट केवल 425 ही हैं। युध्दपोत के हिसाब पाक भारत के सामने कहीं मुकाबले मंे टिक ही नहीं सकता क्योंकि हमारे पास जहां पूरा नौसैनिक बेड़ा है तो पाक के पास छोटा सा पोत है। जो हाथी और चींटी जैसा मुकाबला माना जा सकता है। मिसाइलों के मामले में भी पाकिस्तान भारत से हर मामले में उन्नीस ही साबित होगा। गोला बारूद पाक पूरी तरह से बाहर से आयात करने पर निर्भर है जिससे वह चार से सात दिन तक का ही कोटा रखता है जबकि भारत खुद भी गोला बारूद बनाता है जिससे वह इस मामले में भी पाक पर बहुत भारी पड़ने वाला है। भारत की जीडीपी पाक से दस गुना अधिक है। भारत का रक्षा बजट 83 बिलियन डाॅलर जबकि पाक का मात्र 7 से 8 बिलियन डालर था जो अब 9 बिलियन किया है। पाक में महंगाई की दर 23 प्रतिशत अभी है जो जंग जारी रहने पर वह कई गुना बढ़कर पाक का दिवाला निकाल देगी। जहां तक भौगोलिक और रण्नीतिक लड़ाई की बात है तो भारत की सेना मैदानी और पहाड़ी दोनों तरह के मोर्चो पर लड़ने के लिये प्रशिक्षित रही है जबकि पाक की सेना शुरू से ही रक्षात्मक होने की वजह से जंग चालू होने के कुछ समय बाद ही पीछे हटने पर मजबूर हो जाती है। 
       1971 की जंग मंे भारत ने पाकिस्तान के एकमात्र करांची पोर्ट की पूरी तरह नाकेबंदी कर दी थी। यह जंग केवल 13 दिन चली था। जबकि हमारे पास रसद तेल और दूसरे जंगी सामान पहंुचाने के कई वैकल्पिक रास्ते मौजूद रहे हैं जिनमें से एक भी पाक के बस का बंद करना नहीं है। इस कमज़ोरी को समझते हुए पाक ने इस बार तुर्की से एक युध्दपोत उधार ले लिया था लेकिन वह उसकी कोई खास मदद कर पाया हो ऐसी कोई ख़बर अब तक सामने नहीं आई है। पाक की सेना भारत से लड़ने को अगर घरेलू मोर्चे से हटती है तो उसके पाले हुए अफगानी आतंकी उसकी सत्ता पर हमला कर सत्ता पलट कर अंदरूनी मसला खड़ा कर सकते हैं। चीन का खुलकर समर्थन हासिल करने का पाक का दावा उसका माॅरल हाई कर सकता है यह किसी हद तक सच है। पाक का जंग में कमजोर पड़ने पर परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने की धमकी देना एक तरह से ब्लैकमेल करना है जिसे दुनिया चुपचाप शायद ही देख सकती है। आईएमएफ यानी इंटरनेशनल मोनेट्री फंड ने उसको इस संकट से निकालने के लिये 7 अरब डालर का बेलआउट पैकेज दिया है लेकिन उसकी शर्तें इतनी मुश्किल जनविरोधी और सख़्त हैं कि पाक के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली हालत है। रेटिंग एजेंसी मूडीज़ का कहना है कि पाक की कर्ज़ चुकाने की क्षमता आज दुनिया के किसी भी आज़ाद और संप्रभु देश के मुकाबले सबसे कमज़ोर है। उसके कर्ज़ का ब्याज भुगतान ही कुल आने वाले राजस्व का आधा है। 
      2017 का विदेशी कर्ज़ 66 से बढ़कर 100 बिलियन हो चुका है। डाॅलर की कीमत 267 रूपये हो चुकी है जिससे पाक का कर्ज़ बिना और लिये ही बढ़ता जा रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 3.67 अरब डालर बचा है जोकि आगामी तीन सप्ताह के लिये ही हैै। उसकी सीमा पर विदेशी माल के ढेर लगे हैं। लेकिन उनकी कीमत चुकाने के लिये विदेशी मुद्रा ना होने से वह माल पाक मंे अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहा है। आतंकवाद उग्रवाद चरमपंथ कट्टरपंथ करप्शन सेना का बार बार चुनी हुयी सरकार का तख़्ता पलट करना आर्थिक गैर बराबरी विदेश में काम करने वाले पाकिस्तानियों पर अर्थव्यवस्था का टिका होना आज़ादी के दशकों बाद तक अपना संविधान ना बना पाना लोकतंत्र मज़बूत ना होना सेना पर बजट का बड़ा हिस्सा खर्च करना अमेरिका और खाड़ी के देशों से मिलने वाली बड़ी वित्तीय मदद का बड़ा हिस्सा तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को पैदा कर पालना पोसना और भारत की तरह ज़मींदारी उन्मूलन ना कर देश में केवल बेहद गरीब और बेहद अमीर दो ही वर्ग आज तक बने रहना भी पाक की तबाही का कारण बना है। 
      ऐशियन लाइट की रिपोर्ट बताती है कि पाक ने जेहाद के नाम पर अमेरिका से मोटी रकम हथियार और राजनीतिक मदद लेकर पहले 1979 में रूस को अफगानिस्तान से निकालने कश्मीर को आज़ाद कराने के दावे को लेकर और बाद में 2001 में ओसामा बिन लादेन के 9 बटे 11 के हमले के बाद अलकायदा को ख़त्म करने को लेकर लोहे को लोहे से काटने के लिये अपनी सरज़मीं पर दहशतगर्द पैदा करने का कारखाना लगाया। अब जब ये अभियान खत्म हो चुका है तो पाक को अमेरिकी और अन्य मुल्कों की मदद मिलनी तो बंद हो ही गयी है। साथ ही उसने जिस तालिबान के जिन्न को बोतल से निकाला था। वह आज अफगानिस्तान में मिशन पूरा होने पर पाकिस्तान के गले का सांप बन गया है। कहावत सही है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये।
नोट- लेखक पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक व नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।

Thursday, 5 June 2025

चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था

चैथी बड़ी अर्थव्यवस्था होना नहीं,
प्रति व्यक्ति आय बढ़ना विकास है ?
0 नीति आयोग का दावा है कि देश दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जबकि सच यह है कि आईएमएफ ने यह मात्र अनुमान लगाया है कि शायद भारत 2025 खत्म होने तक जापान को पीछे छोड़कर यह स्थान पा सकता है। उधर मोदी सरकार का कहना है कि वह देश को जल्दी ही विश्व की तीसरी बड़ी इकाॅनोमी बना देगी। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश की जीडीपी उनके कार्यकाल में कांग्रेस की सरकार के मुकाबले आधी से भी कम स्पीड यानी 2014 से 2023 तक 84 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक दोगुने से भी अधिक यानी 183 प्रतिशत बढ़ी थी। जबकि दुनिया की तालिका में भारत प्रति व्यक्ति आय 2600 डाॅलर के हिसाब से देखा जाये तो हम 144 वें स्थान पर हैं।   
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      इंटरनेशनल माॅनेटरी फंड के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार दुनिया में जीडीपी के हिसाब से 2025 के अंत तक अमेरिका 30507.22 बिलियन डाॅलर से नंबर वन तो चीन 19231.71 बिलियन डाॅलर से दूसरे व जर्मनी 4744.80 बिलियन डाॅलर से तीसरे भारत 4187.02 बिलियन डाॅलर के साथ चैथे और 4186.43 बिलियन डाॅलर से जापान पांचवे स्थान पर पहुंच सकता है। 2014 से 2023 तक चीन की जीडीपी 84 तो अमेरिका की 54 प्रतिशत बढ़ी है। इनके अलावा दुनिया के टाॅप टेन देशों में से कई की जीडीपी या तो मामूली बढ़त के साथ स्थिर रही है या फिर मंदी के कारण वर्तमान से भी कुछ नीचे चली गयी है। अगर अप्रैल के आंकड़ों की बात करें तो अभी हम पांचवे स्थान पर ही हैं। मिसाल के तौर पर जिस ब्रिटेन को पहले हमने पांचवे पायेदान से पीछे छोड़ा था। उसकी जीडीपी बढ़त इस दौरान मात्र 3 तो फ्रांस की 2 और रूस की केवल एक प्रतिशत ही रही है। ऐसे ही जिस जापान को हम इस साल के अंत तक पीछे छोड़ने जा रहे हैं उसकी जीडीपी ग्रोथ मात्र 0.3 प्रतिशत है। इसके लिये यह भी ज़रूरी है कि देश में जंग के हालात न बनें, अमेरिका के लिये भारत का निर्यात बिना टैरिफ बढ़े पहले की तरह चलता रहे, हमारे यहां जीडीपी की रियल ग्रोथ मज़बूत बनी रहे और इस बढ़त में प्रोडक्शन का हिस्सा न केवल 15 प्रतिशत से नीचे न जाये बल्कि इससे आगे रहे।
      इनमें से एक भी चीज़ गड़बड़ होती है तो हम अपनी विकास दर वर्तमान स्तर पर भी बनाये रखने के लिये संघर्ष करने को मजबूर हो सकते हैं। उधर ब्राजील की जीडीपी उल्टा 15 प्रतिशत पीछे चली गयी है। इसकी वजह दुनिया में आई 2008-09 की मंदी भी बनी। हालांकि भारत भी इस मंदी से प्रभावित हुआ लेकिन उसका असर बहुत हल्का सा था। हालांकि पूर्व अनुमान के अनुसार भारत आशा के अनुसार 8 से 9 प्रतिशत की स्पीड से नहीं बढ़ रहा है लेकिन अगर हम 6 प्रतिशत की जीडीपी औसत बढ़त भी बनाये रख सके तो 2026 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। इसकी वजह यह होगी कि हमारी इकाॅनोमी तब तक 38 तो जापान और जर्मनी की 15 प्रतिशत ही बढे़गी। 2004-09 में डीडीपी 8.5 प्रतिशत तो 2004 से 2014 तक औसत 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। आज भारत की जीडीपी औसत 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। वह दौर एक तरह से मनमोहन सिंह सरकार का भारत में आार्थिक प्रगति का स्वर्ण काल था लेकिन अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आड़ में मीडिया व संघ परिवार ने एक सोची समझी योजना के तहत तिल का ताड़ बनाकर उस सरकार को काल्पनिक टू जी घोटाले के बहाने इतना अधिक बदनाम कर दिया जितना उसका कसूर नहीं था। इन आंकड़ों की सहायता से हम यह समझ सकते हैं कि किसी देश की जीडीपी बढ़ने में उसकी सरकार आबादी और दूसरे देशों की मंदी कम स्पीड और प्रति व्यक्ति आय की क्या भूमिका होती है?
     हमारे देश में 35 करोड़ लोग पूरा पौष्टिक खाना नहीं खा पा रहे हैं। 80 करोड़ लोगों को सरकार 5 किलो अनाज देकर जीवन जीने में मदद कर रही है। देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी सालाना आमदनी 50 हज़ार रूपये कमाकर भी कुल जीएसटी का 64 प्रतिशत चुका रही है। जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत मात्र 3 प्रतिशत भागीदारी कर रहे हैं। इससे आमदनी ही नहीं खर्च और कर चुकाने के हिसाब से भी आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। जबकि चोटी के एक प्रतिशत की वार्षिक आय 42 लाख है। जीएसटी हर साल हर माह पहले से अधिक बढ़ने का दावा भी सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर करती है जबकि जानकार बताते हैं कि इसका बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ती बेतहाशा महंगाई भी है। महंगाई बढ़ाने में खुद सरकार पेट्रोलियम पदार्थों रसोई गैस और चुनचुनकर उपभोक्ता पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना या कर की दरें लगातार बढ़ाते जाना भी हैै। जीडीपी प्रोडक्शन का पैमाना माना जाता है। लेकिन यह उपभोग का माप भी है। जब आप कन्ज्यूमर की एक विशाल गिनती लेकर उसे एक मामूली राशि से गुणा करेंगे तो एक बहुत बड़ी संख्या आती है। अगर क्रय मूल्य समता यानी पीपीपी के आधार पर देखा जाये तो हमारी यह 2100 अमेरिकी डाॅलर है। जबकि यूके की 49,200 डाॅलर और अमेरिका की 70,000 डाॅलर है।
        अगर देश के लोग गरीब हैं तो दुनिया में जीडीपी पांचवे तीसरे नंबर पर ही नहीं नंबर एक हो जाने पर भी क्या हासिल होगा? यह एक तरह से भोली सीधी सादी जनता को गुमराह करने का एक चुनावी राजनीतिक झांसा ही अधिक है। सच तो यह है कि मोदी सरकार की नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी बिना विशेषज्ञों की सलाह लिये और बिना सोचे समझे और जल्दबाज़ी में लागू करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहंुचा है जिससे यह वर्तमान में जहां खुद पहंुचने वाली थी उससे भी पीछे रह गयी है। इसका परिणाम तेज़ी से बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई है। इसके साथ ही यह भी एक बड़ा विचारणीय तथ्य है कि जिस देश में शांति भाईचारा समानता निष्पक्षता धर्मनिर्पेक्षता न्याय नहीं होगा वहां शांति नहीं रह सकती और जब शांति नहीं होगी तो ना विदेशी निवेश आयेगा और ना ही स्थानीय स्वदेशी कारोबार से अर्थव्यवस्था ठीक से फले फूलेगी। इस बार अब तक विदेशी निवेश में भारी कमी की ख़बरें आ रही हैं। कहने का मतलब यह है कि जब तक प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ती है तब तक लोगों को निशुल्क शिक्षा, बेहतर इलाज, शानदार सड़कें और 24 घंटे बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराना एक सपना ही बना रहेगा। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद गर्ग ने भी यही दोहराया है कि अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ना अच्छी बात है लेकिन विकसित राष्ट्र बनने के लिये प्रति व्यक्ति आय बढ़ना ज़रूरी है जिसमें हम अभी काफी पीछे हैं। अदम गोंडवी का एक शेर याद आ रहा है- तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है।         नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।

Thursday, 22 May 2025

संविधान सर्वोच्च है

सही है चीफ़ जस्टिस का बयान,
सर्वोच्च है भारत का संविधान!
0 सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई ने बिल्कुल सही कहा है कि लोकतंत्र में विधायिका न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों स्तंभ समान हैं, उनको एक दूसरे का सम्मान करना चाहिये। उनका कहना है कि अगर कोई सर्वोच्च है तो वह संविधान है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से तमिलनाडू के मामले में वहां के राज्यपाल और देश के राष्ट्रपति को तीन माह के भीतर विधानसभा से पास विधेयकों को पास करने या वापस लौटाने का आदेश दिया उस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने जिन शब्दों में एतराज़ जताया है उससे यह बहस छिड़ गयी है कि संसद बड़ी है या सुप्रीम कोर्ट अथवा राष्ट्रपति? जबकि सच यह है कि संविधान सबसे बड़ा है।   
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
    राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर पांच पन्ने का संदर्भ मांगा है। प्रेसिडंेट ने यह संदर्भ संविधान में उनको दिये गये अनुच्छेद 143 के तहत अधिकार का प्रयोग करते हुए यह जानना चाहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान में व्यवस्था नहीं होने के बावजूद उनको समय सीमा के अंदर बिल पास करने के लिये कह सकता है? दो जजों की बैंच ने जब यह निर्णय दिया था जानकार लोगों ने तभी अनुमान लगाया था कि केंद्र सरकार इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका लगा सकती है। इसके बाद अनुमान है कि यह मामला संविधान पीठ के सामने विचार के लिये जा सकता है। आपको याद दिला दें कि तमिलनाडू सरकार के कुछ बिलों को वहां के गवर्नर द्वारा कई साल तक रोकने और उसके बाद वापस करने पर उनको वहां की सरकार द्वारा दोबारा पास करके भेजने के बाद उन बिलों को विचार के लिये गवर्नर द्वारा प्रेसीडेंट के पास भेज देने और वहां एक बार फिर से वे बिल ठंडे बस्ते में असीमित समय के लिये रूक जाने से नाराज़ होकर सबसे बड़ी अदालत ने अपने विशेष संवैधानिक अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए उन दस बिलों को बिना राष्ट्रपति की सहमति के ही पास मानकर कानून का दर्जा दे दिया था। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने भविष्य में ऐसे विवाद रोकने के लिये राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिये ऐसे बिलों को पास करने या वापस करने के लिये एक से तीन माह का समय तय कर दिया था।
     अब राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए उससे संदर्भ मांगा है कि क्या वह संविधान में ऐसी कोई समय सीमा न होने के बाद भी उनको निर्धारित समय में ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये आदेश दे सकता है? साथ ही राष्ट्रपति ने इस बात पर भी एतराज़ किया है कि सुप्रीम कोर्ट को उनके विवेक पर सवाल उठाने का अधिकार कहां से मिला है? 2014 के बाद से यह देखा गया है कि केंद्र सरकार के निर्देशों पर काम करने वाले राज्यपाल विपक्षी सरकारों को तरह तरह से पहले की केंद्र सरकारों के मुकाबले कुछ अधिक ही परेशान करते रहे हैं। हालांकि हाल ही में विरोधी दलों की राज्य सरकारों को असंवैधानिक रूप से गिराने की तिगड़मों में कुछ कमी आई है। इस मामले में कांग्रेस की केंद्र सरकार का रिकाॅर्ड अधिक खराब रहा है। जहां तक राज्यों की चुनी हुयी सरकारों का सवाल है उनको राष्ट्रपति और राज्यपाल से अधिक संवैधानिक शक्तियां मिली हुयी हैं। सही मायने में राष्ट्रपति और राज्यपाल तो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं। इसी लिये यह नियम बनाया गया था कि अगर केंद्र या राज्य की कोई सरकार किसी विधेयक को बिना पास किये विचार के लिये लौटाने पर दोबारा पास करके भेजती है तो राष्ट्रपति और राज्यपाल को उन पर हस्ताक्षर करने ही होंगे। ऐसा न करने पर उनको अपना पद छोड़ होगा।
       इसका मतलब यह है कि उनको किसी भी बिल को पास करने से रोकने की संवैधानिक पाॅवर हासिल नहीं है। लेकिन संविधान में ऐसा करने के लिये कोई समय सीमा न होने से वे इसका इस्तेमाल बिलों को अनिश्चित समय तक रोके रखने के लिये करते रहे हैं। सच तो यह है कि ऐसा वे खुद नहीं बल्कि केंद्र सरकार के इशारे पर करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में ऐसी समय सीमा नहीं होने के कारण गलत इस्तेमाल की जा रही इस शक्ति पर रोक लगाकर कुछ भी गलत नहीं किया है लेकिन हां यह संविधान में नहीं लिखा है यह बात सच है। लेकिन शायद संविधान निर्माता यह कल्पना नहीं कर पाये कि किसी दिन देश में ऐसी सरकार भी आ सकती है जो विपक्षी सरकारों को परेशान करने के लिये राज्यपालों के सहारे चुनी हुयी सरकारों को कानून बनाने से ही रोक दे? इसके साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिये अनुच्छेद 142 परमाणु मिसाइल बन गया है, वह सुपर संसद की तरह पेश आ रहा है और उसको सबसे बड़े पद पर बैठे यानी राष्ट्रपति को आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद बड़बोले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने भी दुस्साहस दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट और उसके चीफ जस्टिस पर अमर्यादित टिप्पणी की।
       सुप्रीम कोर्ट अपने पहले के फैसले में एक बार यह कह चुका है कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं, उनको भी संविधान के अनुसार चलना होता है। दि हिंदू अख़बार के संपादक एन राम ने धनकड़ को सटीक जवाब देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जब राष्ट्रपति को कोई निर्देश जारी करता है तो वह वास्तव में संघीय मंत्रिपरिषद को निर्देश दे रहा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडू राज्य बनाम तमिलनाडू राज्यपाल मामले में अपने अपै्रल 2025 के फैसले में संघीय मंत्रिपरिषद को संविधान के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है। जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं। सवाल यह है कि तमिलनाडू सरकार ने कई साल पहले दस कानून बनाये थे। जब उन कानूनों को पास करने के लिये गवर्नर के पास भेजा गया तो वे कई साल तक उनको दबाकर बैठ गये। उसके बाद जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने गवर्नर से उन कानूनों को पास करने या फिर से विचार करने को वापस राज्य सरकार के पास भेजने को कहा। लेकिन जब बात नहीं बनी तो राज्यपाल ने उन कानूनों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। सरकार के कुल कार्यकाल पांच साल में अगर तीन साल कानून राज्यपाल के यहां अटके रहेंगे और इसके बाद जानबूझकर देर करने सरकार को बदनाम करने या उसको काम न करने देने के इरादे से वही कानून राष्ट्रपति के पास भेज दिये जायेंगे। जहां वे राज्यपाल के आॅफिस की तरह ठंडे बस्ते में पड़े रहेंगे तो निर्वाचित सरकार का क्या मतलब रह जाता है? केंद्र सरकार के संविधान विरोधी इलैक्टोरल बांड जैसे कानून पहले भी सुप्रीम कोर्ट में निरस्त होते रहे हैं। लगता है वक्फ़ कानून का भी यही हश्र होने जा रहा है।
 0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 15 May 2025

सेना का सम्मान

देशभक्तों सेना का सम्मान कीजिये, 
सभी भारतीयों को साथ लीजिये!
0 आॅप्रेशन सिंदूर हमारी सेना का पाकिस्तान को पहलगाम हमले का करारा जवाब है। हर भारतीय को सेना के इस साहस पर गर्व है। पूरा देश इस नाजुक और एतिहासिक अवसर पर सेना के साथ खड़ा है। सरकार ने सेना को इस आॅप्रेशन के लिये खुली छूट दी थी। इसके लिये विपक्ष ने सरकार का पूरा साथ दिया है। हर भारतीय पाक को सबक सिखाने के लिये देश के लिये हर तरह की कुरबानी देने को तैयार है। लेकिन दुख की बात है कि जिनका एजेंडा हिंदू मुस्लिम है उनमें से चंद लोग अभी भी कर्नल सोफिया कुरैशी को मुसलमान होने की वजह से टारगेट कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे विदेश सचिव विक्रम मिस्री को भी पाक के साथ सीज़ फ़ायर का ऐलान करने से ट्राॅल करने लगते हैं। उनके परिवार तक पर कीचड़ उछाला जाता है जिससे तंग आकर वे अपना सोशल मीडिया एकाउंट लाॅक करने को मजबूर होते हैं। यह बहुत निंदनीय और दुखद सोच है। सही मायने में ऐसे लोगों पर देशद्रोह का केस चलाया जाना चाहिये।  
-इक़बाल हिंदुस्तानी
     सेना सेना होती है। उसका कोई निजी धर्म नहीं होता। उसका मकसद सदा देश और जनता की सेवा होता है। सेना से बड़ा देशभक्त कोई दूसरा नहीं साबित कर सकता। सेना अपना सब कुछ दांव पर लगाकर सीमा की निगहबानी करती है। वो देश की बिना शर्त रक्षा करती है। सैनिक अपनी जान की परवाह किये बिना विषम हालात में भूख प्यासा आंधी तूफान के बीच भी दिन रात देश की आन बान शान के लिये आखि़री सांस तक लड़ता है। लेकिन जब कोई दो कौड़ी का नेता आॅप्रेशन सिंदूर को अपने नेतृत्व में अंजाम तक पहंुचाने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी जांबाज़ फौजी को उनके धर्म की वजह से पाक के आतंकियों की बहन बताकर अपमान करता है तो वह हमलावरों के देशवासियों को बांटने के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहा होता है। वह तो अच्छा हुआ एमपी के हाईकोर्ट ने इस मामले का खुद संज्ञान लिया और आरोपी के खिलाफ रपट दर्ज करने का आदेश दे दिया। लेकिन अफसोस यह रहा कि खुद को सबसे बड़ा देशभक्त बताने वाली पार्टी के मुखिया उनके पितामाह सांस्कृतिक संगठन पीएम सीएम और अन्य बड़े बड़े पदों पर बैठे नेताओं ने उस मुंहफट मंत्री से इस्तीफा तक नहीं लिया। अलबत्ता पार्टी ने जब उनके बयान से खुद को अलग किया तो उसने मजबूरन दिखावे की माफी ज़रूर मांग ली। ऐसे ही विदेश सचिव विक्रम मिस्री का मामला है। उनको सरकार के आदेश का पालन करना होता है। उन्होंने जब मीडिया में पाक के साथ सीज़ फायर का ऐलान किया तो ट्राॅल आर्मी उनके पीछे पड़ गयी।
      14 नवंबर 2015 को लंदन के वेम्बली स्टेडियम में भारतीय प्रवासियों की एक सभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने सेल्फी विद डाॅटर अभियान की अपील करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय आंदोलन बताया था। जानी मानी काॅरपोरेट लाॅयर डिडोन के पिता विक्रम मिस्री ने अपनी बेटी के साथ एक सेल्पफी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी थी। दस साल बाद इस सेल्फी को ट्राॅल आर्मी ने तलाश कर निकाला और डिडोन के अश्लील मीम बनाकर उनके पिता विदेश सचिव विक्रम मिस्री के ट्विटर हैंडल पर भद्दे चित्रों और कमेंट की बाढ़ ला दी। मिस्री का कसूर यह था कि उन्होंने भारत सरकार के निर्देशानुसार पाक के साथ जंगबंदी की घोषणा की थी। अंधभक्त चाहते थे कि जंग जारी रहे और गोदी मीडिया के झूठे दुष्प्रचार के हिसाब से इस बार पाकिस्तान को पूरी तरह निबटा दिया जाये। उनको यह नहीं पता कि न तो कोई विदेश सचिव जंग की शुरूआत करता है और न ही जंग रोकने का फैसला उसके हाथ में होता है। इससे पहले पहलगाम हमले में अपने फौजी पति को खो बैठी हिमांशी नरवाल को उनकी इस पोस्ट पर निशाने पर लिया गया था कि वे चाहती हैं कि पाक हमलावरों को कड़ी सज़ा मिले लेकिन इसके लिये कश्मीरी और भारतीय मुसलमानों को आरोपी न माना जाये। ऐसे ही नैनीताल में एक लड़की के साथ रेप होने पर जब आरोपी के दूसरे धर्म का होने की वजह से उस धर्म के लोगों को हिंसा का शिकार बनाया गया तो शैला नेगी ने इस अन्याय का विरोध किया तो ट्राॅल आर्मी ने कायदे की बात करने वाली इस बहादुर और समझदार लेडी को ही डराना धमकाना और अपमानित करना शुरू कर दिया था।
       इतना ही नहीं देश के वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने पिछले दिनों सरकार से उसकी नाकामी और गैर ज़िम्मेदारी पर कुछ तीखे सवाल पूछे तो उनकी डीपी पर लगी उनकी बेटी की फोटो लेकर सोशल मीडिया पर अश्लील कमेंट किये जाने लगे। इससे दुखी और नाराज़ होकर कभी संघ के समर्थक रहे राहुल देव ने अपनी डीपी से अपनी बेटी की तस्वीर हटा दी। अब वे खुद भी सोशल मीडिया पर इस मानसिक आघात से बहुत कम पोस्ट कर रहे हैं। इससे पहले सरकार के खिलापफ कुछ कड़े फैसले देने पर कोर्ट के खिलाफ भी ऐसे ही ट्राॅल ने बहुत अभद्र और आक्रामक भाषा का प्रयोग किया था। इस तरह के पीड़ित लोगों की लिस्ट काफी लंबी है। धर्म और साम्प्रदायिकता की नफ़रत भरी झूठी राजनीति करने वालों के संरक्षण के कारण ऐसे ट्राॅल अब निडर होकर किसी पर भी टूट पड़ते हैं। इनका विश्वास न तो संविधान में है और न ही ये लोकतंत्र का सम्मान करते हैं। यही वजह है कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता को भी कुछ नहीं समझते हैं। ज़ाहिर बात है कि ऐसे लंपटों के लिये किसी भी मामले में असहमति या विरोध के लिये भी कोई जगह नहीं है। हम शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि अगर किसी वर्ग जाति या धर्म के लोगों के लिये कोई कानून हाथ में लेगा उनको बात बात पर निशाने पर लेगा या हिंसक और अश्लील तरीके से पेश आयेगा और सरकारें उस पर जानबूझकर चुप्पी साधेंगी तो यह आग एक दिन उनके घर को भी जलायेगी जो दूसरों को नुकसान पहुंचाकर आज बहुत खुश हो रहे हैं। अभी भी समय है कि अगर आप सच्चे देशभक्त हैं तो सेना का सम्मान कीजिये और सभी भारतीयों को साथ लीजिये। मजाज़ का एक शेर याद आ रहा है- बख़्शी हैं हमको इश्क ने वो जुर्रत ए मजाज़, डरते नहीं सियासत ए अहले जहां से हम।
 नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 8 May 2025

सम्मान के बदले अपमान...

ट्रजिडी! जिनको सम्मानित करना 
चाहिये उनको अपमानित कर रहे हैं!
0 पहलगाम हमले में अपने पति लेफ़निनेंट विनय नरवाल की जान गंवाने वाली उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल ने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में की गयी एयर स्ट्राइक को आतंकवाद ख़त्म होने तक नहीं रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि उनके पति का वायुसेना में शामिल होने का मकसद देश में शांति कायम करना और आतंकवाद को खत्म करना था। इससे पहले हिमांशी ने कहा था कि जिन लोगों ने उनके पति की हत्या की है उनको सज़ा मिलनी चाहिये लेकिन इस घटना के लिये सभी मुसलमानों और कश्मीरियों को निशाना नहीं बनाना चाहिये। इस बयान पर हिमांशी को सोशल मीडिया पर ट्राॅल किया गया तो महिला आयोग उनके पक्ष में बोला लेकिन यह दुखद है कि जिस साहस और विवेक के लिये हिमांशी को सम्मानित किया जाना चाहिये था उसके लिये उल्टा उनको अपमानित किया गया। ट्रजिडी यह है कि ऐसा ही कुछ शैला नेगी सहित और भी कुछ लोगों के साथ समय समय पर अनर्थ होता रहा है।   
-इक़बाल हिंदुस्तानी
      हिमांशी नरवाल उन बहादुर समझदार और विवेकशील चंद लोगों में से है। जो दुख गुस्सा और उन्माद के दौर में भी अपनी भावनाओं पर काबू रखकर वही कह रही हैं। जो कि सच है। जो कि कानून के अनुसार है। जो कि संविधान कहता है। जो कि एक सभ्य समाज को कहना चाहिये। जो कि एक अमन चैन न्याय तर्कशील और मानवीय सोच के इंसान को कहना चाहिये। कम लोगों को याद होगा नोएडा के दादरी में जब काफी पहले अख़लाक नाम के एक बुजुर्ग की भीड़ द्वारा लिंचिंग कर हत्या कर दी गयी थी तो वायुसेना में सेवा दे रहे उनके बेटे सरताज ने कहा था कि चंद लोगों द्वारा उनके पिता को मौत के घाट उतार देने के बावजूद वे हत्यारों के धर्म के कारण सारे हिंदुओं को दोषी नहीं ठहरा सकते। इसी तरह पहलगाम हमले में अपने पिता ए रामचंद्रन को खो देने वाली उनकी बेटी आरती ने कहा कि मेरे पिता को आतंकवादियों ने मार दिया लेकिन कश्मीर ने मुझे समीर और मुसाफिर के रूप में दो भाई भी दिये हैं। ऐसे ही एक लड़की दीपिका ने कहा कि आतंकवादियों ने जिस तरह से चुनचुनकर मेरे सामने हिंदुओं को मारकर मुसलमानों को हिंदुओं से अलग करना चाहा उसका जवाब कश्मीरी मुसलमानों ने मेरा साथ देकर हाथो हाथ दे दिया।
      पिछले दिनों नैनीताल में एक लड़की के साथ एक मुस्लिम व्यक्ति ने बलात्कार किया तो पुलिस ने रपट दर्ज आरोपी को पकड़कर जेल भेज दिया। लेकिन कुछ कट्टरपंथी लोगों ने इस घटना को साम्प्रदायिक रूप देते हुए जब हंगामा करना शुरू किया तो शैला नेगी नाम की महिला शेरनी की तरह उनके सामने खड़ी हो गयी। शैला का सवाल था कि जिसने अपराध किया उसको सज़ा देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऐसे में सब मुसलमानों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिये। शैला के इस रूख़ पर कट्टरपंथी उनसे नाराज़ हो गये और उनको डराया धमकाया जाने लगा। हालांकि जितनी बड़ी संख्या में इन बहादुर और समझदार महिलाओं के पक्ष में कानून के समर्थक लोगों को खड़ा होना चाहिये था उतने लोग सामने नहीं आये। उल्टा वे साम्प्रदायिक संकीर्ण धर्म की राजनीति करने वाले सत्ता के सहारे लंपट लोग इन महिलाओं को ट्राॅल करने लगे जिनको संविधान हिंदू मुस्लिम भाई चारा और कानून का राज पंसद नहीं है। यह विडंबना ही है कि जिनको उन्माद भीड़तंत्र और जंगलराज के दौर में सम्मानित किया जाना चाहिये उनको कट्टरपंथी लोग निडर होकर सोशल मीडिया पर डरा धमका रहे हैं लेकिन महिला आयोग की मुखिया के हिमांशी नरवाल के पक्ष में बयान के अलावा कोई बड़ा एक्शन नहीं हुआ।
      महिला आयोग ने भी हिमांशी को डराने धमकाने वालों के खिलाफ पुलिस को रपट दर्ज कर आरोपियों के खिलापफ सख़्त कानूनी कार्यवाही की ज़रूरत नहीं समझी। साथ ही पीएम रक्षामंत्री मुख्यमंत्री कथित सांस्कृतिक संगठनों के मुखिया सीएम एमपी एमएलए तक इस मामले पर चुप्पी साध्ेा रहे। हद तो यह है कि सेना का वह संगठन जो शहीदों और उनकी विधवाओं के भले के लिये काम करता है वह भी इस गंभीर आपत्तिजनक और शर्मनाक मामले पर कुछ नहीं बोला। बात बात पर स्वतः संज्ञान लेने वाला कोर्ट और उसमें छोटे छोटे मामलों में जनहित याचिका दायर करने वाले समाजसेवी भी इन साहसी महिलाओं और उनके कानून के राज के समर्थन में बोलने पर रहस्यमयी खामोशी से निराश करता नज़र आया। यह माना कि आज कुछ ऐसे लोग ऐसे बड़े पदों पर बैठे हैं जिनको सत्ता शक्ति और पद का नशा है। लेकिन यह दौर हमेशा रहने वाला नहीं है। जो लोग अपने सियासी स्वार्थ के लिये देश का माहौल बिगाड़ रहे हैं, धर्म के आधार पर लोगों को आपस में लड़ाना चाहते हैं, वे एक तरह से आतंकियों पाकिस्तान जैसे देश के दुश्मनों और समाज विरोधी कट्टर लोगों का ही जाने अंजाने एजेंडा आगे बढ़ाने का अपराध कर रहे हैं। जिनको इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।
       हमारा कहना है जो गलत है वह गलत है। वह चाहे किसी भी धर्म का व्यक्ति करे। किसी एक घटना एक अपराध और एक आदमी के जुर्म के लिये किसी पूरे समुदाय वर्ग या धर्म के लोगों को न तो टारगेट किया जाना चाहिये ना ही उनको कसूरवार मानना चाहिये। सभी धर्मों जातियों और समुदायों में अच्छे बुरे लोग होते हैं। यही बात कट्टरपंथी लोगों पर भी लागू होती है। हमारे देश में लोकतंत्र है। कानून का राज है। देश संविधान से चलेगा। अगर कोई कानून हाथ में लेता है और किसी पूरे समाज को निशाना बनाता है तो वह देशभक्त राष्ट्रवादी और संविधान का मानने वाला नहीं हो सकता। आज नहीं तो कल ऐसे लोगों को पूरा समाज देश और दुनिया उनके असली मकसद को समझकर सज़ा देंगे और उस समय हिमांशी नरवाल शैला नेगी आरती दीपिका और सरताज को याद किया जायेगा सम्मानित किया जायेगा आदर्श माना जायेगा उनको नायक माना जायेगा और उनके साहस समझ और विवेक को मिसाल मानकर इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। मुनीर नियाज़ी ने ऐसे लोगों के लिये ही शायद यह शेर लिखा है- लोग नाहक़ किसी मजबूर को कहते हैं बुरा, आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 1 May 2025

पहलगाम हमला

पहलगाम हमला: जनता ने जवाब दे दिया अब सेना की बारी है!
0 1965, 1971 और 1999 में तीन तीन बार भारत से जंग हारकर मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान को शायद यह बात समझ में नहीं आ रही है कि वह आज जिस कंगाली की दहलीज़ पर पहुंच चुका है वहां से अब वापसी का कोई रास्ता नहीं है। कश्मीर को सेना के बल पर जब पाक हासिल करने में नाकाम रहा तो उसने चोर दरवाजे़ से आतंकवाद का शाॅर्टकट रास्ता चुना है। आज़ादी के बाद कुछ दशक तक उसको इस्लाम के नाम पर कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों संगठनों और भटके हुए कश्मीरी बेरोज़गार युवाओं का कुछ साथ मिला भी जिनको अपने लड़ाकों के साथ मिलाकर उसने पैसा हथियार और प्रशिक्षण देकर कश्मीर सहित हमारे देश में समय समय पर आतंकी हमले किये लेकिन आज पूरा देश उसके खिलाफ़ एकजुट है।   
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      कहावत है कि आप अपना घर बदल सकते हैं लेकिन पड़ौसी नहीं बदल सकते। यही बात आज पाकिस्तान पर लागू होती है। उसके संस्थापक मुहम्मद अली जिनाह ने टू नेशन थ्योरी के नाम पर इस्लाम के बहाने मुस्लिम लीग की मदद से पाकिस्तान बनाया लेकिन 24 साल बाद ही बंगाल की बगावत से जिनाह का यह सपना टूट गया। पूर्वी बंगालियों के साथ पक्षपात धोखा और जुल्म करने से उसका एक हिस्सा टूटकर अलग देश बंगलादेश बन गया। हालांकि इस बंटवारे का दोष पाक भारत को देता है लेकिन उससे पूछा जा सकता है कि अगर बंगाली मुसलमान न चाहते तो उनको पाक से अलग कौन कर सकता था? शेख़ मुजीबुर्रहमान को पाक के चुनाव में बहुमत मिला था लेकिन वहां हावी पंजाबी मुसलमानों ने शेख़ को पीएम नहीं बनने दिया जिससे टकराव बढ़ा और विद्रोह होने के बाद मुक्ति वाहिनी की मदद से बंगलादेश बन गया। इसका बदला लेने के लिये पाक ने कश्मीर को छीनना चाहा लेकिन वह आमने सामने की लड़ाई में इसमें हर बार नाकाम रहा। वह तो भारत की मेहरबानी रहमोकरम और बड़प्पन था जिससे पाक के 90 हज़ार सैनिकों के बंदी बनाकर उसके एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करने बावजूद हमने पीछे हटकर शिमला समझौता कर उसको माफ कर दिया वर्ना आज पाक का नाम निशान भी नहीं होता।
      इसके बाद पाक को यह बात समझ में आ गयी कि वह भारत का मुकाबला सीधी जंग में कभी नहीं कर सकता तो उसने आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया। अगर इस्लाम के नाम पर सब मुसलमान साथ रह सकते तो दुनिया में 57 मुस्लिम मुल्क ना होते। इसी तरह अगर सभी मुसलमानों के हित एक होते तो ईराक ईरान आठ साल तक जंग नहीं लड़ते। ऐसे ही पाकिस्तान के अहमदिया शिया और बलूच अलग देश की मांग नहीं कर रहे होते। पाक को यह बात समझ में नहीं आ रही कि उसने अफगानिस्तान से रूस का कब्ज़ा हटाने को जिस आतंकवाद की नर्सरी को शुरू किया था आज वह कैंसर बन चुका है। आज पाक में उसके ही बनाये आतंकी मस्जिद में नमाज़ पढ़ते मुसलमानों को बम से निशाना बनाते हैं। पहलगाम हमला भी उसी नीच घटिया और अमानवीय सोच का नतीजा है जिसमें बेकसूर निहत्थे और कश्मीर को रोज़गार देने वाले 28 टूरिस्टों को बेदर्दी से मारा गया है। इनका खून बेकार नहीं जायेगा बल्कि एक दिन रंग लायेगा। यह हमला करके पाक ने अपने ताबूत में खुद आखि़री कील ठोक दी है। उसके पापों का घड़ा इस घटना के बाद भर चुका है। अब उसके ऐसे हमले साज़िश और जुल्म आगे और सहन नहीं किये जा सकते। आज पूरा भारत उसके लोग उसके राज्य बिना किसी धर्म भाषा और क्षेत्रीय भेदभाव के छिटपुट घटनाओं को अपवाद मानकर छोड़दें तो पाक की इस नापाक हरकत के खिलाफ एक साथ खड़े हैं।
      हर तरह के बंद विरोध प्रदर्शन कैंडिल मार्च नारेबाज़ी ज्ञापन भाषण और काली पट्टी बांधने के साथ मंदिर व मस्जिदों में मृतकों की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना व दुआ तक सब एक साथ मिलकर कर रहे हैं। पहलगाम की शर्मनाक दर्दनाक और तकलीफदेह घटना ने देश के 140 करोड़ भारतीयों को एक दूसरे के साथ कंध्ेा से कंधा मिलाकर खड़ा कर दिया है। उनकी आंखों में गुस्सा तो दिल में दुख है। वे अब पाक को उसकी नापाक हरकतों के लिये अंतिम और निर्णायक सबक सिखाने की चाहत रखते हैं। खुद कश्मीरियों ने जिस तरह टूरिस्टों को बचाने संभालने और सुरक्षित घर पहुंचाने के लिये अपनी जान तक दी उनकी मेहमान के तौर पर सेवा की और बिना पैसा लिये वापस उनको सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाने मंे मदद की उससे पाक को संदेश मिल गया होगा कि वह जिन कश्मीरियों के कश्मीर को अपने साथ मिलाने के लिये यह सब घटिया और नीच हरकतें कर रहा है वे उसके साथ नहीं अपने मुल्क भारत के साथ खड़े हैं। अलबत्ता यह समय है जब पहलगाम की घटना को सियासत या हिंदू मुस्लिम दरार बढ़ाने के लिये ज़रा भी दुरूपयोग नहीं किया जाना चाहिये नहीं तो जाने अंजाने में ऐसे लोग पाकिस्तान का आतंकवाद अलगाववाद और देश की जनता को गृहयुध्द में झोंकने का एजेंडा ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे होंगे।
      विपक्ष ने सरकार का ध्यान इस गंभीर मुद्दे की तरफ दिलाया है और सरकार ने इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर लेकर सभी देशवासियों को एकजुट रखने का वादा भी किया है। हम सबको यह बात समझने की ज़रूरत है कि सभी धर्मों मेें कुछ शरारती कट्टर और अपराधी लोग हो सकते हैं लेकिन इन आरोपों को केवल किसी एक मज़हब जाति या रंग के लोगों पर शत प्रतिशत थोपकर आप राष्ट्रवादी देशभक्त और देशप्रेमी नहीं बन सकते। साम्प्रदायिकता कट्टरता और संकीर्णतावाद किसी का भी हो कभी भी अच्छा नहीं हो सकता। देशहित से बड़ा राजनीतिक हित कभी भी नहीं हो सकता। जो पार्टी संगठन या सरकार किसी वर्ग विशेष के खिलाफ दुभार्वना पक्षपात या घृणा रखता हो वह खुद भी कभी देशभक्त या राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। यह समय है जब हम सबको मिलकर आतंकवाद कट्टरता संकीर्णतावाद और पाकिस्तान को उसकी गलत हरकतों का जवाब देना है। पहलगाम के आतंकियों के लिये एक शेर याद आ रहा है- इसी लहू मंे तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा, ये कत्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।
नोट- लेखक नवभारट टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।

Thursday, 24 April 2025

संसद बनाम सुप्रीम कोर्ट

न संसद न कोर्ट न ही राष्ट्रपति,
 हमारा संविधान ही है सर्वोपरि!
0 इस देश में 2014 के बाद से जो थोड़ी बहुत उम्मीद कानून के राज न्याय और निष्पक्षता की बची है वह सुप्रीम कोर्ट से ही है। पिछले दिनों वक़्फ़ कानून के कुछ प्रावधानों पर सबसे बड़ी अदालत ने जिस तरह से सरकार से सख़्ती से कुछ सवाल पूछे उससे यह आशा एक बार फिर मज़बूत हुयी है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से तमिलनाडू के मामले में वहां के राज्यपाल और देश के राष्ट्रपति को तीन माह के भीतर विधानसभा से पास विध्ेायकों को पास करने या वापस लौटाने का आदेश दिया उस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने जिन शब्दों में एतराज़ जताया है उससे यह बहस छिड़ गयी है कि संसद बड़ी है या सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति जबकि सच यह है कि संविधान सबसे बड़ा है।   
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों संसद में दावा किया था कि जो भी कानून सरकार बनायेगी उसको सबको मानना ही होगा। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट विधायी मामलों में दख़ल नहीं देगा। हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिये। अगर कल सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप करती है तो यह अच्छा नहीं होगा। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिये अनुच्छेद 142 परमाणु मिसाइल बन गया है, वह सुपर संसद की तरह पेश आ रहा है और उसको सबसे बड़े पद पर बैठे यानी राष्ट्रपति को आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद बड़बोले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने भी दुस्साहस दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट और उसके चीफ जस्टिस पर अमर्यादित टिप्पणी की। इतना ही नहीं अपने पहले के विवादित बयान पर तमाम हंगामा विरोध और आलोचना होने के बाद भी वाइस प्रेसिडेंट धनकड़ ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पर उंगली उठाई है। सुप्रीम कोर्ट अपने पहले के फैसले में एक बार यह कह चुका है कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं, उनको भी संविधान के अनुसार चलना होता है। दि हिंदू अख़बार के संपादक एन राम ने धनकड़ को सटीक जवाब देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जब राष्ट्रपति को कोई निर्देश जारी करता है तो वह वास्तव में संघीय मंत्रिपरिषद को निर्देश दे रहा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडू राज्य बनाम तमिलनाडू राज्यपाल मामले में अपने अपै्रल 2025 के फैसले में संघीय मंत्रिपरिषद को संविधान के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है। जिसका नेतृत्व प्रधनमंत्री करते हैं। यही वजह है कि खुद राष्ट्रपति ने इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह सच है कि संविधान में ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं की गयी है। लेकिन शायद संविधान निर्माता यह कल्पना नहीं कर पाये कि किसी दिन देश में ऐसी सरकार भी आ सकती है जो विपक्षी सरकारों को परेशान करने के लिये राज्यपालों के सहारे चुनी हुयी सरकारों को कानून बनाने से ही रोक दे? सवाल यह है कि तमिलनाडू सरकार ने कई साल पहले दस कानून बनाये थे। जब उन कानूनों को पास करने के लिये गवर्नर के पास भेजा गया तो वे कई साल तक उनको दबाकर बैठ गये।
      गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों संसद में दावा किया था कि जो भी कानून सरकार बनायेगी उसको सबको मानना ही होगा। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट विधायी मामलों में दख़ल नहीं देगा। हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिये। अगर कल सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप करती है तो यह अच्छा नहीं होगा। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिये अनुच्छेद 142 परमाणु मिसाइल बन गया है, वह सुपर संसद की तरह पेश आ रहा है और उसको सबसे बड़े पद पर बैठे यानी राष्ट्रपति को आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद बड़बोले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने भी दुस्साहस दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट और उसके चीफ जस्टिस पर अमर्यादित टिप्पणी की। इतना ही नहीं अपने पहले के विवादित बयान पर तमाम हंगामा विरोध और आलोचना होने के बाद भी वाइस प्रेसिडेंट धनकड़ ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पर उंगली उठाई है। सुप्रीम कोर्ट अपने पहले के फैसले में एक बार यह कह चुका है कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं, उनको भी संविधान के अनुसार चलना होता है। दि हिंदू अख़बार के संपादक एन राम ने धनकड़ को सटीक जवाब देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जब राष्ट्रपति को कोई निर्देश जारी करता है तो वह वास्तव में संघीय मंत्रिपरिषद को निर्देश दे रहा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडू राज्य बनाम तमिलनाडू राज्यपाल मामले में अपने अपै्रल 2025 के फैसले में संघीय मंत्रिपरिषद को संविधान के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है। जिसका नेतृत्व प्रधनमंत्री करते हैं। यही वजह है कि खुद राष्ट्रपति ने इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह सच है कि संविधान में ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं की गयी है। लेकिन शायद संविधान निर्माता यह कल्पना नहीं कर पाये कि किसी दिन देश में ऐसी सरकार भी आ सकती है जो विपक्षी सरकारों को परेशान करने के लिये राज्यपालों के सहारे चुनी हुयी सरकारों को कानून बनाने से ही रोक दे? सवाल यह है कि तमिलनाडू सरकार ने कई साल पहले दस कानून बनाये थे। जब उन कानूनों को पास करने के लिये गवर्नर के पास भेजा गया तो वे कई साल तक उनको दबाकर बैठ गये।
      उसके बाद जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने गवर्नर से उन कानूनों को पास करने या फिर से विचार करने को वापस राज्य सरकार के पास भेजने को कहा। लेकिन जब बात नहीं बनी तो राज्यपाल ने उन कानूनों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। नियम यह है कि अगर सरकार दोबारा उन कानूनों को गवर्नर के पास फिर से पास करने के लिये बिना बदलाव किये भेज देती है तो राज्यपाल को उनको पास करना ही होगा लेकिन यहां गवर्नर केंद्र के इशारे पर उनको फिर से दबाकर बैठ गये। सरकार के कुल कार्यकाल पांच साल में अगर तीन साल कानून राज्यपाल के यहां अटके रहेंगे और इसके बाद जानबूझकर देर करने सरकार को बदनाम करने या उसको काम न करने देने के इरादे से वही कानून राष्ट्रपति के पास भेज दिये जायेंगे। जहां वे राज्यपाल के आॅफिस की तरह ठंडे बस्ते में पड़े रहेंगे तो निर्वाचित सरकार का क्या मतलब रह जाता है? केंद्र सरकार के संविधान विरोधी इलैक्टोरल बांड जैसे कानून पहले भी सुप्रीम कोर्ट में निरस्त होते रहे हैं। लगता है वक्फ़ कानून का भी यही हश्र होने जा रहा है। ऐसे मंे सुप्रीम कोर्ट ने मजबूर होकर तमिलनाडू सरकार के उन दस कानूनों को बिना गवर्नर और प्रेसीडेंट के हस्ताक्षर के ही पास घोषित करके आगे के लिये ऐसे मामलों में दोनों के लिये कानून पास करने या फिर से विचार के लिये वापस लौटाने के लिये तीन महीने का समय निर्धारित करके सराहनीय काम किया है। यह एक तरह से लोकतंत्र संविधान और चुनी हुयी सरकार के अधिकार की रक्षा का आदेश माना जाना चाहिये। लेकिन धनकड़ साहब मोदी सरकार का अंध समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बोल रहे हैं।
       उनको लगता है जिस तरह से वे बंगाल का गवर्नर रहते हुए ममता सरकार को नाको चने चबवाकर इनाम के तौर पर उपराष्ट्रपति बन गये वैसे ही शायद अब मोदी सरकार को खुश करके राष्ट्रपति भी बन सकते हैं। हम यह दावा नहीं कर सकते कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। हम यह भी नहीं कह रहे कि सुप्रीम कोर्ट के 12 मई के बाद नये बनने वाले चीफ जस्टिस सबसे बड़ी अदालत के पुराने फैसलों पर टिके ही रहेंगे या सरकार द्वारा फिर से विचार करने की अपील पर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दिये गये निर्णय की तरह पीछे हट जायेंगे? यह बात किसी से छिपी नहीं रह गयी है कि विपक्ष के आरोप के अनुसार वर्तमान सरकार का पूरा विश्वास संविधान कानून के राज और निष्पक्षता में नहीं है। संघ परिवार पर सेकुलर दल यहां तक आरोप लगाते हैं कि मोदी सरकार लोकतंत्र समानता धर्मनिर्पेक्षता जनपक्षधरता समाजवाद निष्पक्षता पारदर्शिता और स्वायत संस्थाओं की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करती है। यही वजह है कि वह सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसलों से तिलमिला रही है। अमित शाह हों रिजिजू हों धनकड़ हों या दुबे और शर्मा ये सब संघ परिवार के एजेंडे के लिये किसी सीमा तक भी जा सकते हैं। सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट ही आज लोकतंत्र संविधान और समानता को बचाने का प्रयास कर रहा है जबकि मोदी सरकार उसको भी मीडिया पुलिस सीबीआई ईडी और चुनाव आयोग जैसी अन्य संस्थाओं की तरह अपने दबाव में लेकर अपना मनमाना जनविरोधी और संविधान विरोधी एजेंडा किसी भी कीमत पर लागू करना चाहती है, जिससे आशंका यही है कि वह एक दिन सफल हो सकती है। शायर ने कहा है कि - तारीख़ के औराक़ में जो लोग बड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो लाशों पर खड़े हैं।
 0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।