भोली
गाय, शिकारी
कुत्तेः भ्रष्ट व्यवस्था, नपंुसक
समाज!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0लड़कियां
जब तक सबला बनकर खुद दो दो हाथ करने मैदान में नहीं आयेंगी जुल्म और पक्षपात बंद
नहीं होगा!
गुवाहाटी में एक नाबालिग़ लड़की के साथ भोली
गाय समझकर दो दर्जन से अधिक नौजवान दिखने वाले शिकारी कुत्तों द्वारा किया गया
किया गया छेड़छाड़ या बलात्कार के प्रयास का मामला हो या फिर यूपी के बाग़पत की आसरा गांव पंचायत द्वारा किया गया महिला
विरोधी तालिबानी फरमान, इन
सबके पीछे हमारी भ्रष्ट व्यवस्था और नपुंसक समाज ज़िम्मेदार है। हम बार बार यह बात
भूल जाते हैं कि परंपरा, सभ्यता
और संस्कृति के नाम पर होने वाले पक्षपात और अन्याय तब तक चलते रहते हैं जब तक
उसका शिकार सक्षम और सबल होकर उनके खिलाफ दो दो हाथ करने के लिये मैदान में नहीं
उतर आता। बहुत पुरानी बात नहीं है। हमारा भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था।
क्या
अंग्रेज़ों को एक दिन खुद ही यह सपना आया था कि बस अब बहुत हो चुका चलो
हिंदुस्तानियों को आज़ाद करके वापस इंग्लैंड चलो? नहीं हमने जब संघर्ष किया और करो या मरो की
लड़ाई तक बात आ पहंुची और अंग्रेजों के लिये हमें गुलाम बनाये रखना लगभग नामुमकिन
हो गया, तब
कहीं जाकर उन्होंने देश को आज़ाद किया था। अब यह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है कि
इस लड़ाई में गांधी जी के अहिंसक आंदोलन की बड़ी भूमिका थी या क्रांतिकारियों का
हथियारबंद संघर्ष? बहरहाल
जब तक हमने यह तय नहीं किया कि अब हमको अंग्रेज़ों को भारत से भगाना है तब तक वे
किसी कीमत पर जाने का तैयार नहीं हुए। मिसाल के तौर पर 1857 में हम एक बार अध्ूारी
आज़ादी के गदर में एक बार कामयाब होने से चूके तो पूर 90 साल लग गये उस भूल को
सुधारने में।
हम
चुप रहे तो मुगल हम पर 800 साल तक एकक्षत्र राज करते रहे, और जुल्म स्वीकार करने की आदत पड़ गयी तो 200
साल अंग्रेज़ भी आराम से हमारी छाती पर मंूग दल गये।
हम यहां वे सब घटनायें नहीं दोहराना चाहते
जिनमें एक से बढ़कर एक वीभत्स और दर्दनाक महिला विरोधी वाकये होते रहते हैं। दरअसल
ये सब मामले उस कारण का परिणाम हैं जो हम दूर नहीं करना चाहते। सच यह है कि हम
अंदर से आज भी जंगली हैं। ऐसे लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही मिल सकते हैं जिनमें
नैतिकता या धर्म का डर हो और वे ऐसे काम सक्षम और सबल होकर भी नहीं करते हों जिनसे
अन्याय और शोषण होता है। वास्तविकता तो यह है कि जिस तरह से धार्मिक आदमी स्वर्ग
के लालच और नर्क के डर से ही अपने अच्छे और बुरे काम करता है वैसे ही अधिकांश लोग
यह समझ कर ही अपने काम करते हैं कि अगर वे ऐसा करेंगे तो कानून और समाज उनके साथ
क्या करेगा?
आज ना
तो ऐसे अपराधी और अनैतिक लोगों को कानून का डर रह गया है और ना ही समाज का। समाज
आज इतना स्वार्थी और असंवेदनशील हो चुका है कि वह हर गलत काम पर एक ही डायलॉग
बोलता है कि हमें किसी और के चक्कर में नहीं पड़ना है। अब बारी बारी से यह ‘कोई और’ समाज का हर आदमी बनता जा रहा है। हर आदमी साथ
साथ यह सोचता है कि जब वह मेरे मामले में मदद को नहीं आया था तो मैं उसके मामले
में क्यों सहायता करूं?
जहां तक सरकार का सवाल है उसके नेताओं को केवल
हर चीज़ में अपने वोट तलाश करने हैं चाहे इससे समाज का तालिबानीकरण हो या जंगलीकरण, उनकी बला से। राजस्थान में जब रूपकुंवर को
जबरन सती कर दिया गया था तो वहां के
तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेख़ावत ने दो टूक कहा था कि यह हमारे राज्य की
धार्मिक परंपरा है इसमें कानून क्या कर सकता है? आज भी असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगाई उस
पत्रकार को नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं जो घटना के समय अपनी कवरेज कर रहा था, उसकी वीडियो फुटेज की फोरेंसिक जांच भी कराई
जा रही है, जबकि
अपनी पुलिस की काहिली और उस संपादक की सराहनीय भूमिका को छिपा रहे हैं जिसने अपनी
जान पर खेलकर इस लड़की को उन गुंडों से अपमानित होने के बावजूद रेप से बचाया है।
असम
के सीएम अपने राज्य के पुलिस प्रमुख की इस घटिया और महिला विरोधी सोच को भी हल्के
में ले रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा कि पुलिस एटीएम नहीं है जिसमें शिकायत डाली और
कार्यवाही तुरंत बाहर आ जाये। इतना ही नहीं हमारे केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम
के निर्देश देने के बावजूद यूपी के वरिष्ठ मंत्री आज़म खां ने बागपत की आसरा पंचायत
को यह कहकर क्लीनचिट दे दी कि समाज सुधार के लिये अगर गांव की पंचायत कोई फैसला
करती है तो इससे कानून का उल्लंघन नहीं होता। मंत्री जी और यूपी के सीएम अखिलेश के
ऐसे ही बयान के बाद पुलिस भी ढीली पड़ गयी और उसने औपचारिकता के लिये तालिबानी
फरमान जारी करने वाली पंचायत के जिन दो लोगों को पकड़ा था, मौके पर ही भीड़ के दबाव में छोड़ दिया। आपको
याद दिलादें यूपी में मधुमिता की हत्या का आरोप में पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी
जेल काट रहे हैं।
मधुमिता
को 2003 में लखनऊ स्थित पेपर कॉलोनी में कत्ल कर दिया गया था। बताते हैं मधुमिता
गर्भवती थी और वह अमरमणि से हर हाल में शादी करना चाहती थी। नेशनल बैडमिंटन
चैम्पियन सैयद मोदी की पत्नी अमिता मोदी ने उनकी 23 जुलाई 1988 को जान जाने के बाद
राजनेता संजय सिंह से कुछ दिन बाद ही शादी कर ली। फैजाबाद की छात्रा शाशि सिंह 22
अक्तूबर 2007 से गायब है, आरोप
है कि वह प्रदेश के पूर्व खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री आनंद सेन यादव से प्यार
करती थी और यादव ने ही उसकी हत्या करा दी। राजस्थान की अशोक गहलौत सरकार में
मंत्री रहे महिपाल मदेरणा का नाम उस भंवरी देवी से जुड़ा जिसको अचानक गायब कर हत्या
कर दी गयी। 04 जनवरी 2011 को बिहार के पूर्णिया जिले में एक शिक्षिका रूपम ने यौन
उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए भाजपा के दबंग विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या उनके
निवास में कर दी थी।
23
अक्तूबर 2006 में डा. कविता चौधरी की हत्या का आरोप यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर
मैराजुद्दीन और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यायल के पूर्व वाइस चांसलर आर पी सिंह पर
लगा। उनकी अश्लील सीडी भी टीवी चैनलों पर चली थीं।
2011 के नेशनल रिकॉर्ड आफ क्राइम ब्यूरो के
अनुसार 40 सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 800 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है।
जबकि जुर्म साबित होने की दर एक तिहाई घट चुकी है। 2010 में 22171 बलात्कार की
घटनाएं दर्ज की गयी। इनमें से मात्र 26.6 फीसदी मामलों में अपराध साबित हो सका।
खून ग्रुप जांचने की पुरानी तकनीक पर आज भी केस चलने से डीएनए सैंपल नहीं लिये
जाते जिससे 25 फीसदी लोगों का रक्त और वीर्य समूह एक ही किस्म का होने से सकी
जानकारी सामने नहीं आ पाती। पूर्वोत्तर को देखें तो वहां मिजोरम में 96.6 नागालैंड
में 73.7 अरूणांचल और सिक्किम में 66.7 और मेघालय में 44.4 फीसदी मामलों में
अपराधियों को सज़ा मिली है। मिजोरम में प्रति एक लाख आबादी में से 9.1 प्रतिशत
बलात्कार के मामले दर्ज कराये गये।
हो
सकता है वहां पोषण, साक्षरता
और लिंगानुपात और राज्यों से बेहतर होना भी इसकी एक वजह हो। ऐसी अनेक घटनायें यहां
याद दिलाई जा सकती है जिससे साबित किया जा सकता है कि वोटों के लालची हमारे नेता
पुलिस प्रशासन के हाथ कैसे बांध देते हैं।
इतना ही नहीं हाल ही में सीबीआई कोर्ट के एक जज
पर पांच करोड़ रू0 रिश्वत लेकर अरबों रू0 के घोटाले के एक आरोपी को ज़मानत देने का
आरोप लगा था। खुद सुप्रीम कोर्ट मानता है कि निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बढ़ता जा
रहा है। पूर्व कानून मंत्री और टीम अन्ना के वरिष्ठ सदस्य शांतिभूषण का दावा रहा
है कि उच्चतम न्यायालय के अब तक बने मुख्य न्यायधीशों में से आध्ेा से ज़्यादा की
ईमानदारी संदिग्ध रही है। हमारी सरकार और अधिकारियों के अरबों रू0 के घोटाले किसी
से छिपे नहीं है। हम इन सब बातों से यह कहना चाहते हैं कि जिस देश में भ्रष्टाचार
इस स्तर तक आ चुका हो वहां कानून से कौन डरेगा?
हालांकि
लिंग के आधार पर होने वाला अन्याय और पक्षपात धर्म, जाति और हैसियत के आधार पर होने वाले भेदभाव
से कम गंभीर नहीं है लेकिन हमारा मतलब यह है कि जिस तरह से जंगल का राजा शेर अपनी
शक्ति की वजह से माना जाता है, वैसे
ही हमारे समाज में आज भी जंगल का कानून चल रहा है जिसमें हम सब शक्ति की ही पूजा
कर रहे हैं, चाहे
वह शक्ति शारिरिक हो, आर्थिक
हो या सत्ता से जुड़े किसी पद से हासिल हुयी हो। लोग खुलेआम ऐलान करके किसी को भी
सार्वजनिक रूप से नंगा घुमा देते हैं, बलात्कार
कर देते हैं और सुपारी देकर हत्या करा देते हैं, लेकिन कानून तमाशा देखता रहता है। सच तो यह
है कि हमारी व्यवस्था ध्वस्त हो रही है। ‘जस्टिस डिलेड जस्टिस डिनाइड’ खुद मानने वाली अदालतें सरकार के सामने मजबूर नज़र आती हैं।
समाज
जब तक नपंुसक और धनपशु बना रहेगा तब तक गुवाहाटी जैसे मामले एक लक्षण के रूप में
सामने आते रहेंगे क्योंकि असली रोग तो वह सोच है जिसको हम अपने स्वार्थ और काहिली
के कारण बदलने को तैयार नहीं हैं।
0
कैसे आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।।
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