पूर्वाग्रह रखकर किसी का विरोध नहीं
किया जाना चाहिये !
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 हम निष्पक्ष व ईमानदार होकर मसले
आसानी से हल कर सकेंगे!
पूरा देश एक होकर भी एक नहीं है। दलगत आधार की तो बात ही छोड़ दीजिये जाति, धर्म और क्षेत्र के साथ ही अब हम व्यक्तिगत
विरोध और समर्थन पर उतर आये हैं। मिसाल के तौर पर पिछले दिनों गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुजरात विशेषरूप से मध्यवर्गीय लोगों का
प्रदेश है,
जहां
लड़कियां खाने पर नहीं अपनी खूबसूरती पर अधिक ध्यान देती हैं। मोदी ने इसका उदाहरण
भी दिया कि जब मां बेटी से दूध पीने को कहती है तो वह मोटी होने के डर से इसके
लिये तैयार नहीं होती और कभी कभी इस बात पर दोनांे में झगड़ा शुरू हो जाता है। मोदी
की इस बात पर उनके राजनीतिक विरोधियों ने मोर्चा खोल दिया। उनका दावा था कि गुजरात
में बड़ी संख्या में बच्चियों को पूरा खाना भी उपलब्ध नहीं है जिससे वे कुपोषण का
शिकार हैं।
मोदी से 2002 के दंगों को लेकर घृणा
करने वालों ने यहां तक आरोप लगाया कि उन्होंने ऐसा कहकर पूरी नारी जाति का अपमान
किया है लिहाज़ा वे महिलाओं से बिना शर्त क्षमा मांगे। दंगों को लेकर हम भी मोदी की
छवि से सहमत नहीं हैं लेकिन आज की मीडियम क्लास लड़कियों को लेकर मोदी ने जो कुछ
कहा वह एक कड़वा सच है। केवल इस वजह से मोदी की इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता
क्योंकि उन पर दंगों को शह देने के गंभीर आरोप हैं।
ऐसे ही पिछले दिनों लैंगिक उत्पीड़न संरक्षण विध्ेायक 2010 संसद में पास कर
दिया गया। इस विध्ेायक के अधिनियम बनने से महिलाओं को उचित सम्मान, उनके साथ विनम्रता और गरिमा के साथ पेश
आना,
कार्यस्थल
पर उत्पीड़न की ज़िम्मेदारी नियोक्ता और उस जिले के डीएम पर डालना तथा संस्थान में
ही शिकायत निवारण तंत्र बनाना आदि प्रावधान शामिल हैं। एयरहोस्टेस गीतिका से लेकर
टीचर कविता चौधरी तक एक लंबी सूची है जिससे पता चलता है कि कैसे महिलाओं को अपने
जाल में फंसाकर कुछ प्रभावशाली लोग उनका हर प्रकार से शोषण करते हैं और जब मन भर
जाता है तो उनको ठिकाने लगाने के लिये या तो सुपारी किलर से उनका काम तमाम करा
देते हैं या फिर उनको भावनात्मक रूप से इतना तोड़ देते हैं कि वे सारे रास्ते बंद
होने से तंग आकर खुद ही मौत को गले लगा लेती हैं।
हमारा कहना यह है कि बेशक कानून सख़्त से
सख़्त बनाकर महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर होने वाले पक्षपात और अन्याय को रोका
जाये लेकिन महिलाओं को खुद भी यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे अपनी खूबसूरती, आकर्षक देह और सैक्स अपील का सहारा लेकर
आगे बढ़ने का अनैतिक और ख़तरनाक रास्ता ना चुनें। अकसर यह देखने में आता है कि आज
के पूंजीवादी और भौतिवादी दौर में अच्छी
नौकरी,
प्रमोशन
और अधिक सुख सुविधयें पाने के लिये अनेक महिलायें सारी लोकलाज को ताक पर रखकर अपने
महिला होने का बेजा लाभ उठाती हैं और जब पानी सर से उूपर निकलने लगता है तो वे
यौनशोषण और अपनी जान को ख़तरा होने का आरोप लगाती हैं।
यह भी देखने में आता है कि महिलायें
अधिक भावुक और नाज़ुक होने की वजह से अकसर पुरूषों की चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास
करके उनको अपना सब कुछ सौंप देती हैं लेकिन यह भी सच है कि जो महिलायें सही गलत और
जायज़ नाजायज़ का पूरा ख़याल रखती हैं वे पक्षपात और धोखे का कम शिकार होती हैं। वे
शादी के बाद ही अपने जिस्म को अपने पति को सौंपती हैं।
ऐसे ही भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव के
द्वारा चलाये गये आंदोलन के पीछे कुछ लोगों को संघ परिवार लगातार भूत बनकर नज़र आता रहा। कांग्रेस सरकार
का यह प्रचार लोगों के सर चढ़कर बोला। बाद में हालांकि बाबा ने भाजपा को सपोर्ट की
बात कहकर इस आरोप की किसी हद तक पुष्टि भी कर दी लेकिन बाबा के जड़ी बूटियों के
कारोबार और अन्य मामलों को लेकर सरकार ने जो रूख़ अपनाया उससे यह भी साबित हो गया
कि सरकार अपने खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को सत्ता के बल पर कुचल देना चाहती है।
हमारा यह कहना है कि अगर यह सच भी है कि अन्ना और बाबा के पीछे संघ परिवार का
समर्थन है तो भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ क्या इसी लिये आवाज़ नहीं उठाई जानी
चाहिये?
क्या
इसी कारण इन बुराइयों के खिलाफ कानून नहीं बनना चाहिये?
इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर कल संघ
परिवार यह मांग करे कि लोगों को रोटी खानी चाहिये तो उसका विरोधी वर्ग यह कहेगा कि
क्योंकि यह मांग संघ ने उठाई है लिहाज़ा अब कोई भी आदमी रोटी नहीं खायेगा। ऐसा ही
पूर्वाग्रह वामपंथियों के बारे में रखा जाता है। कुछ लोग सारे हिंदुओं को काफिर
बताकर और मुसलमानों को आतंकवादी कहकर भी इसी आधार पर कोसते हैं। सिखों के बारे में
तो इसी गलत आधार पर तमाम चुटकुले तक घड़े जाते हैं। कुछ लोग देश में होने वाली हर
गलत हरकत के पीछे पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर विदेशी हाथ तलाश करते रहते हैं। वे
कभी नहीं पूछते कि हमारी सरकार के हाथ कमर के पीछे क्यों बंधे रहते हैं?
धर्म और जाति के आधार पर बने वोट बैंको का नतीजा यह है कि भाजपा
अल्पसंख्यकों के खिलाफ बोलने का कोई मौका चूकना नहीं चाहती तो बसपा को केवल दलित
मामले ही नज़र आते हैं और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के
खिलाफ भी लामबंद हो गयी है। उधर सपा अपने पिछड़े वर्ग को खुश करने के लिये इस बिल
के खिलाफ खम ठोक रही है। कांग्रेस अपना परंपरागत दलित मतदाता वापस पा लेने की चाह
में इस बिल को लाई है जबकि भाजपा दोनों को ही अपने पाले में रखने के लिये रहस्यमयी
चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझ रही है। द्रमुक-अन्नाद्रमुक तमिलों के मुद्दे
पर श्रीलंका तक से भारत सरकार को भिड़ाने का तैयार रहती हैं तो ममता बनर्जी ने
पिछले दिनों नदी जल बंटवारे को लेकर अपने बंगालियों को खुश करने के लिये बंगलादेश
के सामने अपने ही प्रधनमंत्री की किरकिरी करा दी थी।
महाराष्ट्र में ठाकरे बंधु पूर्वाग्रह
से उत्तरभारतीयों के खिलाफ जे़हर उगलकर अपना मराठी वोटबैंक लगातार मज़बूत करने की
नाजायज़ हरकत पर ज़रा भी शर्मिंदा नहीं होते। और तो और चाहे बात कितनी ही गलत हो हर
दल के लोग अपने लोगों को बचाने में पूरी निर्लजता से जुटे रहते हैं। टू जी घोटाले
से लेकर कोयला घोटाले तक यूपीए सरकार अपने गिरेबान में झांकने की बजाये उल्टा चोर
कोतवाल को डांटे की तर्ज पर कैग को बुरा कह रही है। इससे पहले अपनी नाकामियों पर
कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार कोर्ट को भी अपनी सीमा में रहने की नसीहत दे चुकी है।
काश हम लोग अपने अपने पूर्वाग्रह छोड़कर ईमानदारी और पूरी निष्पक्षता से सच को सच
कहने की हिम्मत दिखा सकते तो अब तक तमाम मसले हल हो सकते थे।
0तू दो क़दम भी मेरे साथ चल नहीं सकता,
अगर तू मेरे उसूलों में ढल नहीं सकता।
मेरे उसूल मुझे ज़िंदगी से प्यारे हैं,
मैं तेरे वास्ते इनको बदल नहीं सकता।।
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