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डेयरी उद्योग को दिवाला निकालेगी सरकार?
1950 से 1960 तक डेयरी उद्योग की विकास दर 1.2
प्रतिशत थी जबकि 2009-10 में यह 4 प्रतिशत हो गयी। 1971-72 में शहरी और ग्रामीण
दूध का उपभोग क्रमशः14.47 और 10.01 प्रतिशत था जबकि 2012 में यह 18.31 और 14.88
प्रतिशत हो गया। 1970 में आप्रेशन फ्लड के तहत 700 शहरों व कस्बों को मिलाकर ‘राष्ट्रीय
दूध जाल’ बना।
1951 में प्रति व्यक्ति 132 ग्राम दूध उपलब्ध
था जबकि 1991 में यह प्रति व्यक्ति 220 ग्राम हो गया। इसी तरह देखा जाये तो गुजरात
में सड़कों का जाल अमूल डेयरी की कामयाबी का कारण बना जबकि उत्तरभारत में किसानों
को यह सुविधा आज तक नसीब नहीं हो सकी। साथ ही डेयरी संघों पर छुटभइया नेताओं का
क़ब्ज़ा है।
दुनिया के कुल मवेशियों का 12 प्रतिशत भारत
में है जबकि विश्व में दूध का हिस्सा हमारा 16 प्रतिशत ही है। उधर अमेरिका में
दुनिया के मात्र 4 प्रतिशत मवेशी हैं जबकि दुनिया में कुल दूध का उनका अनुपात 11
प्रतिशत है। भारत में प्रति पशु 1000 लीटर सालाना दूध का औसत है जो दुनिया के 8 से
10 हज़ार लीटर औसत से काफी कम है। 70 प्रतिशत दूध का उत्पादन छोटे सीमांत और
भूमिहीन किसान करते हैं।
एक आंकड़े के अनुसार केवल 40 प्रतिशत पशुओं के
लिये चारा उपलब्ध हो पाता है फिर भी हमारी सरकार विश्व व्यापार संगठन और अमेरिका
के दबाव में पशुओं के पसंदीदा चारे खली का थोक में निर्यात कर रही है। साथ ही
सरकार विदेशी मिल्क पॉवडर आयात करकेे बाजा़र को पाट रही है जबकि ज़रूरत अपने
किसानों को प्रोत्साहन देकर दूध का उत्पादन बढ़ाने की है। दूध का उत्पादन इसकी खपत
से दोगुना होने के बावजूद इसकी तेजी से बढ़ती कीमतें अर्थशास्त्र के उसूल को झुठला
रही हैं।
इसका कारण यह भी है कि दूध के कारोबार से
जुड़े लोग इसका प्रयोग पनीर, दही, खोया
और क्रीम के कारोबार में अधिक कर रहे हैं। इतना ही नहीं इससे दुग्धउत्पादकों को भी
पूरी कीमत नहीं मिल रही है। डेयरी फेडरेशन का कहना है कि यूपी में प्रतिदिन 565
लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है, जबकि मांग केवल 290 लाख लीटर है। उत्तराखंड मेें भी प्रतिदिन 38 लाख लीटर दूध
का उत्पादन होता है जबकि खपत मात्र 25 लाख लीटर है।
हरियाणा में 64लाख मिलियन टन दूध का उत्पादन
होता है जबकि खपत के बाद 27 प्रतिशत दूध डेयरियों पर जाता है। इसके विपरीत दिल्ली
में प्रतिदिन 60 लाख लीटर दूध की खपत होती हैू लेकिन यहां दूध का उत्पादन ना के
बराबर ही हो पाता है। दिल्ली में दूध का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी उत्तरप्रदेश और
हरियाणा से आता है। दिल्ली पहंुचते ही दूध के भाव और मांग दोनों ही बढ़ जाते हैं, साथ
ही इसमें मिलावटखोरी भी जमकर होती है।
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