गैंगरेप
ही विरोध का एकमात्र कारण मानना सरकार की भूल?
-इक़बाल
हिंदुस्तानी
0नेताओं के इस तरह के घटिया बयानों से
जनआक्रोश और बढे़गा!
‘दामिनी’ के साथ सामूहिक बलात्कार का
केस दिल्ली में 16
दिसंबर को हुआ था। पूरे देश को आंदोलित और आक्रोशित कर देने वाले इस सनसनीखेज़
मामले को हुए लगभग काफी समय बीत चुका है लेकिन सरकार , नेताओं और अन्य अनेक
क्षेत्रों के विद्वानों की ओर से जो बयान और सुझाव सामने आये हैं उनसे जनता का
गुस्सा शांत होने की बजाये और अधिक बढ़ता नज़र आ रहा है। खुद सरकार यह मानकर भारी
भूल कर रही है कि देशवासी केवल इस बलात्कार कांड की वीभत्सता और क्रूरता को लेकर
ही नाराज़ हैं। उसे यह भी समझ नहीं आ रहा है कि यह घिनौना कांड तो मात्र लक्षण है
जबकि रोग तो हमारी सारी व्यवस्था और नेताओं का मनमानी करना और असंवेदनशील हो जाना
है।
इससे
पहले जब बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे की टीम ने दिल्ली में भ्रष्टाचार और कालेधन के
खिलाफ जोरदार आंदोलन खड़ा किया था तब भी सरकार यह व्यक्ति विशेष का अभियान मानकर
असफल करने में जुट गयी थी। यूपीए सरकार बार बार मीडिया और कोर्ट में ज़लील होने के
बावजूद अपनी तिकड़मों, फरेब
और पुलिस के बल पर इन आंदोलनों को भटकाने, लोकपाल बिल को लटकाने और
जनता को बाबा रामदेव के कारोबार की जांच के नाम पर दूध का धुला ना होने का फंडा
अटकाने में काफी हद तक कामयाब भी होती नज़र आई। आज सारा जोर इस बात पर दिया जा रहा
है कि बलात्कारी को सज़ा बढ़ाकर सात साल से उम्रकैद या फांसी व नपंुसक बनाने के
विकल्प को अपनाया जाये? दिल्ली
में बलात्कार के मामलों की सुनवाई करने के लिये फास्टट्रक कोर्ट का गठन भी कर दिया
गया है।
इसके
साथ ही हर थाने में महिला थाना और बड़े पैमाने पर महिला पुलिस की भर्ती का अभियान
भी शुरू किया जा सकता है। महिला हेल्पलाइन को भी पहले से प्रभावशाली बनाने की
कवायद चल रही है। डीटीसी की बसों में जीपीआरएस और सभी वाहनों के शीशों से काले टेप
हटाने की कार्यवाही भी बड़े पैमाने पर की जा रही है। जस्टिस वर्मा के नेतृत्व में
ऐसे मामलों में आगे कार्यवाही करने के लिये सुझाव देने को एक आयोग भी बना दिया गया
है। आयोगों की रपटों पर सरकार क्या करती है यह किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी मामले की संवेदनशीलता को देखकर अपनी ओर से स्वतः
संज्ञान लेकर सरकार और पुलिस से इस मामले में जवाब तलब कर रहे हैं।
हो
सकता है इसके अलावा भी भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने या होने पर अपराधियों को
कड़ी सज़ा देने की की कुछ और कवायदें भी सरकार करने जा रही हो लेकिन सवाल यह है कि
क्या दिल्ली में ही बलात्कार होते हैं? देश के अन्य हिस्सों में
राज्य सरकारें ऐसी कोई कवायद करती नज़र क्यों नहीं आ रहीं? आज भी बड़े पैमाने पर पूरे
देश में प्रतिदिन बलात्कार हो रहे हैं । इसके साथ ही सरकार यह समझने को तैयार
क्यों नहीं है कि दामिनी का रेपकेस तो एक बहाना था उस गुस्से और नाराज़गी को दर्ज
कराने का जो जनता के मन में लंबे समय से जमा हो रहा था। इतनी सर्दी में जंतर मंतर
और इंडियागेट पर जो भीड़ जुटी और आज भी लोग गाहे बगाहे वहां पहुंचकर भारत का तहरीर
चौक बनाने का इरादा जता रहे हैं, वह उस रोग का लक्षण मात्र है
जो हमारी व्यवस्था को घुन की तरह खा रहा है।
सरकार
आज भी यह मानने का तैयार नहीं है जिस तरह दो सम्प्रदायों के बीच जब दंगा होता है
तो उसका कारण वह नहीं होता जो तात्कालिक तौर पर सामने आता है। कई बार हम सुनते हैं
कि एक सम्प्रदाय की एक लड़की को दूसरे सम्प्रदाय के लड़के ने छेड़ दिया था, बस इतनी सी बात पर दंगा भड़क
गया। यूपी के कानपुर में पिछले दिनों एक सम्प्रदाय के साइकिलसवार की टक्कर से
रिक्शा में बैठी दूसरे सम्प्रदाय की सवारी गिर जाने से माहौल बिगड़ गया था। दरअसल
एक दूसरे के लिये दिल में पहले से ही जमा हो रहा बारूद ही किसी छोटी सी चिंगारी से
आग पकड़ लेता है। इतिहास गवाह है कि अकसर मामूली घटनाओं से दो देशों के बीच लंबी
जंग छिड़ जाती हैं इसका कारण उनके बीच लंबे समये से चला आ रहा तनाव, वैमनस्य और घृणा होती है।
ऐसे
ही जनता सरकार की मनमानी, भ्रष्टाचार
और तानाशाही से पक चुकी है जिससे दामिनी के रेपकेस को लेकर वह सड़कों पर उतर आई और
गुस्से की हालत यह थी कि लोग बिना किसी संगठन और नेता के अपील किये इतनी बड़ी तादाद
में पुलिस की लाठी और वाटर कैनन का सामना करने को
खुलकर मैदान में आये ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति और प्रधनमंत्री निवास में
गोली खाने को जान दांव पर लगाकर घुसने का दुस्साहस किया। इस पर भी यूपीए चेयरमैन
सोनिया गांधी और पीएम पद के भावी दावेदार राहुल गांधी ही नहीं बल्कि गृहमंत्री
सुशील कुमार शिंदे अपने घरों में छिपे बैठे रहे। ये लोग विरोध करने वाले युवाओं के
चेहरों को पढ़ नहीं पा रहे हैं कि अगर अभी भी सरकार ने अपने तौर तरीक़े नहीं बदले तो
वह दिन दूर नहीं जब भीड़ बेकाबू हो सकती है? ऐसा भी हो सकता है कि लोग एक
दिन नेपाल के राजभवन की तरह संसद को घेर लंे और इस बात की परवाह ना करें कि अंजाम
क्या होगा?
हमारा
मक़सद लोगों को कानून हाथ में लेने को भड़काना और काहिल व जाहिल नेताओं को डराना
हालांकि नहीं है लेकिन हालात जिस तरह का इशारा कर रहे हैं उससे यह शंका गलत भी
नहीं ठहराई जा सकती कि अब पीड़ित, दमित और निराश जनता के सब्र
का पैमाना लब्रेज़ हो चुका है जिससे वह कभी भी छलक सकता है। क्या हमारी सरकार यह
नंगा सच नहीं जानती कि जनता उसके बढ़ते भ्रष्टाचार और लोकपाल ना बनाकर उल्टे
भ्रष्टारियों को बचाने के बेशर्म प्रयासों से आज़िज़ आ चुकी है। क्या पुलिस को सरकार
ने अपना ज़रख़रीद गुलाम बनाकर देशवासियों को लूटने, मारने और किसी भी तरह से
उत्पीड़ित करने का लाइसेंस नहीं दे रखा है? सरकारी अस्पतालों में अव्वल
तो डाक्टर बैठते ही नहीं और अगर वे धोखे से मिल भी जायंे तो दवा मिलने का तो सवाल
ही नहीं? सरकारी
स्कूलों का हाल इससे भी बुरा क्यों है?
सरकार
का कोई भी अधिकारी या कर्मचारी बिना फीलगुड किये टस से मस होने को तैयार क्यों
नहीं होता? अब तो
वह यहां तक दावा करता है कि उूपरी आमदनी का एक हिस्सा उूपर तक बड़े अधिकारियों और
मंत्रियों को भी जाता है जिससे उसका क्या बिगड़ सकता है? उूपर से चले 100 रू0 में से नीचे मात्र 85 पैसे ही पहुंच रहे हैं, यह बात पूर्व पीएम राजीव
गांधी ने स्वीकार की थी फिर भी सरकार ने इसे रोकने को आज तक क्या किया? जनता इस बात से और भी हताश
है कि कांग्रेस से नाराज़ होकर वह भाजपा को सत्ता सौंपती है तो वह सांपनाथ और
नागनाथ का अंतर कर पाती है। यूपी में सपा बसपा ने बारी बारी से लूट का ठेका ले ही
लिया है।
कम्युनिस्टों
को नास्तिक होने और तानाशाही जनवादी ही सही एकतरफा नीतियां थोपने के डर से देश की
धर्मभीरू जनता विकल्प के रूप में किसी कीमत पर स्वीकार करने का तैयार नहीं हो सकती
तो सवाल उठता है कि सरकार अगर अभी भी व्यवस्था परिवर्तन को आमूल चूल परिवर्तन और
ठोस बदलाव को कमर नहीं कसेगी तो विरोध की चिंगारी किसी भी दिन विकराल आग का कारण
बन सकती है, क्योेंकि
जिस देश के 80
प्रतिशत से अधिक लोग मात्र 20 रु. रोज से कम में गुज़ारा
कर रहे हों उनके पास बेकाबू होने पर खोने के लिये कुछ भी नहीं है यह बात सरकार को
चेतावनी के तौर पर समझनी चाहिये, धमकी के रूप में नहीं।
0 उठा लाया किताबों से वो एक अल्फ़ाज़ का जंगल,
सुना है अब मेरी ख़ामोशियों का तर्जुमा होगा।।
No comments:
Post a Comment