Monday, 20 January 2014

अल्पसंख्यक राजनीति

सेकुलर दलों की अल्पसंख्यक राजनीति भाजपा का खादपानी?
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0सपा,बसपा व कांग्रेस सरकारें सबका विकास करतीं तो मुस्लिमों का खुद    भला हो गया होता!
  अगर कांग्रेस या सपा/बसपा जैसी सेकुलर मानी जानी वाली सरकारें सुशासन यानी आम आदमी के हित में ईमानदारी से काम करें तो फिर मुसलमानों का भला अपने आप ही हो जायेगा, मगर देखने में यह आता है कि इन सरकारों के पास अकसर विकास या सुशासन का कोई सुचिंतित एजेंडा ही नहीं होता जिससे ये अपने कार्यकाल में सपा यादवों के लिये और बसपा दलितों के लिये मुख्यतौर पर हर तरह से सत्तासुख के ख़ज़ाने खोलने का सीमा से बाहर जाकर भी प्रयास करती हैं। चूंकि इनकों मुसलमानों के वोट भी सरकार बनाने के लिये ज़रूरी लगते हैं सो कुछ ऐसे कामों को भी ये सरकारें प्रमुखता से करने से ज्यादा दिखाने की कोशिश करती हैं जिससे यह संदेश जाये कि इनको मुसलमानों की बड़ी चिंता है। खुद कांग्रेस का भी यही दिखावा रहा है कि चाहे शिक्षा, रोज़गार और विकास का कोई ठोस प्रयास मुसलमानों के लिये वे करें या ना करें लेकिन यह अवश्य ही ख़याल रखा जाता है कि कौन कौन से ऐसे मौकें हो सकते हैं जिनपर छुट्टी घोषित कर, उनकी धार्मिक भावनाओं के पक्ष में बयान जारी कर और विवादित लेखक तस्लीमा नसरीन, सलमान रूश्दी व स्वीडिश कार्टूनिस्ट को प्रतिबंधित कर उर्दू, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, पर्सनल लॉ, कश्मीर की धारा 370 की पैरवी जोरदार तीरके करके उनका दिल जीता जाये। सवाल यह है कि अगर किसी सरकार के राज में नीतीश कुमार की तरह सबका भला हो और खासतौर पर गरीबों का तो क्या मुसलमानों का भला अपने आप ही नहीं हो जायेगा? फिर मुसलमानों को अलग से दिखावे के तौर पर दो चार लॉलीपॉप देकर हिंदूवादी भाजपा को मज़बूत होने से रोकना मुश्किल नहीं होगा। जिस बसपा ने कई बार भाजपा से सहयोग लेकर अपनी सरकार बनाई और कई बार भाजपा की बनवाई वह आज मुसलमानों को खुश करने के लिये कह रही है कि आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद पर रोक लगनी चाहिये। क्या मायावती नहीं जानती कि भाजपा आरएसएस का ही राजनीतिक चेहरा है। जब बसपा खुद अपना बहुमत लाकर सत्ता में थी तब उन्होंने संघ पर रोक क्यों नहीं लगाई? आज भी वह कोर्ट से मांग कर रही हैं ना कि यूपीए सरकार से जिसको वह सपोर्ट करके बहुमत की बैसाखी से टिकाये हुए हैं। इसे ही तो कहते हैं कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। ऐसे ही सपा जिन मुसलमानों के एकतरफा सपोर्ट की वजह से आज पहली बार पूरे बहुमत से यूपी मंे राज कर रही है वह चंद ऐसी योजनाएं और बयान जारी करके भाजपा और संघ परिवार को मज़बूत होने का सुनहरा मौका दे रही है जिससे ऐसा लगता है मानो प्रदेश में मुसलमानों का ही एकक्षत्र राज चल रहा हो? जो थोड़े बहुत काम ऐसे हो रहे हैं जिनसे मुसलमानों को सीधा लाभ पहुंचता नज़र आ रहा है वे दिखावटी और प्रतीकात्मक ही ज्यादा हैं। आतंकवाद के झूठे आरोप में पकड़े गये मुसलमानों को रिहा करने का मामला यह बताता है कि पुलिस गैर मुस्लिमों को भी फर्जी तौर पर जेल भेजती है। हमारी न्यायप्रणाली सुस्त होने की वजह से ऐसे निर्दाेष लोगोें की ज़िंदगी तबाह हो जाती है लेकिन इस मूल समस्या का कोई हल नहीं तलाश कर केवल मुस्लिम के नाम पर राजनीति हो रही है। सही मायने में तो मुलायम सिंह केे बाद सबसे वरिष्ठ सपाई होने के नाते आज़म खां को यूपी का सीएम बनाया जाना चाहिये था लेकिन कांग्रेस को खानदानी राज के लिये कोसने वाली सपा ने भी अखिलेष को केवल मुलायम का बेटा होने की वजह से ही मुख्यमंत्री बनाने में ज़रा भी देर नहीं की। एक तरफ भाजपा है जो मुस्लिम तुष्टिकरण और उनकी बढ़ती आबादी से देश के इस्लामी राष्ट्र बन जाने का प्रोपेगंडा करके हिंदुओं को डराने और भड़काने की साम्प्रदायिक राजनीति करके आज सत्ता की अपने बल पर दावेदारी के लिये खड़ी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस है जो बार बार सच्चर कमैटी से लेकर रंगनाथ आयोग की सिफारिशों का सिर्फ ढोल बजाती रहती है जिससे ऐसा लगता है कि मुसलमानों के लिये कांग्रेस आसमान से तारे तोड़कर ला रही है। इतना ही नहीं बाबरी मस्जिद से लेकर दंगों तक में कांग्रेस की जो दोगली भूमिका रही है वह आज किसी से छिपी नहीं है लेकिन वह नाटक ऐसा करती है मानो वह ही मुसलमानों की एकमात्र मसीहा हो जिससे भाजपा को हिंदू मसीहा बनने का मौका मिलता रहा है। अगर इतिहास देखा जाये तो महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में भिंडरवाला और कंेद्र में भाजपा को मजबूत बनाने में कांग्रेस का कारनामा साफ दिखाई पड़ता है। आखि़र बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर कांग्रेस ने ही हिंदू राजनीति का जिन्न बोतल से बाहर निकला था जिसको सीढ़ी बनाकर भाजपा आज दो सीटों से 182 सीटों तक पहंुचकर दो बार केंद्र में सरकार बना चुकी है। शाहबानों मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर कांग्रेस ने ही यह दिखाया कि मुसलमान कितने कट्टरपंथी हैं लेकिन हुआ क्या आज भी कोर्ट में ऐसे केस तय हो रहे हैं। हज सब्सिडी के नाम पर कांग्रेस मुसलमानों को एयर इंडिया से महंगा हवाई सफर कराके लूट रही है और उल्टा उनको ही बदनाम किया जा रहा है कि वे सरकारी खर्च से अपना धार्मिक फर्ज पूरा कर रहे हैं। कांग्रेस का भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और दोनों वर्गों की साम्प्रदायिकता को समय समय पर बढ़ावा देने की गलत नीति की वजह से ही आज भाजपा को हिंदुओं का हमदर्द होने का मौका मिला है वर्ना सवाल यह है कि देश आज़ाद होने के बाद लगभग 50 साल तक राज करने वाली कांग्रेस ने रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा से लेकर रोज़गार और सुरक्षा के नाम पर मुसलमान ही नहीं जनता को क्या दिया है? मिसाल के तौर पर शबेबरात को दिल्ली में कुछ मुस्लिम नौजवानों का बाइक पर रेड लाइट क्रास कर हंगामा हो या मैट्रो के लिये खुदाई में किसी मस्जिद के ढांचे के निकल आने पर हाईकोर्ट की रोक के बावजूद वहां कब्ज़ा जमाना हो या फिर म्यामार और असम के मुस्लिम विरोधी दंगों के खिलाफ मंबई के आज़ाद मैदान में रैली के बाद मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के अराजक हो जाने पर भी पुलिस का वोटबैंक की राजनीति के कारण चुप्पी साध जाना हो, ये मामले हिंदुओं को उत्तेजित और आक्रोशित करने के लिये इस्तेमाल होते हैं। हाल ही में मेरठ के छीपी टैंक क्षेत्र में आजकल मुसलमानों का सड़क पर नमाज़ पढ़ना विवाद का विषय बना हुआ है। हालांकि यह विरोध संघ परिवार की तरफ से ही ज्यादा हो रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या मुसलमानों का ऐसा करना सही माना जा सकता है? कुछ लोगों का कहना है कि जुमे या रमज़ान की तरावीह मंे लोगोें की तादाद बढ़ जाने से कुछ समय के लिये ऐसा होता है तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? पहले मुंबई में भी जुमे के दिन नमाज़ सड़क पर होने से रोड जाम होने पर शिवसेना ने महाआरती और तनाव बढ़ने पर कई बार दंगे हुए हैं। हमारा मानना है कि मुसलमानों को कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिये जिससे आपसी भाईचारा या अमनचैन ख़तरे में पड़ने के साथ ही कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी होती हो। हम या तो नई मस्जिद बनायें या फिर पुरानी को कई मंज़िला कर लें और यह मुमकिन ना हो तो कोई ख़ाली प्लॉट ख़रीदकर या किराये पर लेकर नमाज़ियों की बढ़ती तादाद का इंतज़ाम खुद कर सकते हैं क्योंकि हमारे किसी काम से किसी दूसरे को परेशानी नहीं होनी चाहिये चाहे वह मुसलमान हो या गैर मुस्लिम इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे मंे पुलिस प्रशासन को भी सभी धर्मों के मामले में निष्पक्ष रूख़ अपनाना चाहिये लेकिन वह भी सरकार की साम्प्रदायिक और सेकुलर नीतियों से बंधा होता है। इसका सबसे वीभत्स नमूना बाबा रामदेव के अनशन के दौरान आधी रात को सोते हुए बच्चो और महिलाओं तक पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज करना था जो हिंदुओं के दिमाग में सेकुलर दलों की विलेन वाली छवि और भाजपा के नरेंद्र मोदी की एकमात्र हीरो की इमेज बनाता है।
0 चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,
  पत्थर को बुत की शुक्ल में लाने का शुक्रिया,
  तुम बीच में न आती तो कैसे बनाता सीढ़ियां,
  दीवारों में मेरी राह में आने का शुक्रिया।।
नोट-लेखक पब्लिक ऑब्ज़र्वर अख़बार के प्रधान संपादक हैं।

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