सुनो!
सुनो!! सुनो!!! भाजपा को भी चाहिये अब मुस्लिम वोट?
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0हिंदूवादी
सोच छोड़े बिना उसको मुसलमान स्वीकार नहीं करेगा!
वोटबैंक की राजनीति का लगातार विरोध करने
वाली भाजपा की नज़र भी मुस्लिम वोट बैंक पर गड़ चुकी है। मिशन 2014 को सामने रखकर
उसने भी अल्पसंख्यकों विशेषरूप से मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की कवायद शुरू कर
दी है। पार्टी अध्यक्ष राजनानथ सिंह ने जयपुर में मुसलमानोें को आश्वासन दिया कि
भाजपा शासित राज्यों में उनके हितों के रखवाले वह खुद बनेंगे। भाजपा ने विकास और
मुस्लिम मुद्दे पर एक सम्मेलन का आयोजन कर मुसलमानों को यह समझाने की कोशिश की है
कि कथित सेकुलर माने जाने वाले दल उनको वोटबैंक मानकर केवल सत्ता पाने के लिये
इस्तेमाल करते हैं जबकि भाजपा अल्पसंख्यकों के लिये विज़न डाक्यूमेंट जारी करेगी और
हज व वक़्फ पर सकारात्मक बहस चलाकर उनकी भलाई की योजनाएं लागू करने का एजेंडा
सामने रखेगी। पार्टी उपाध्यक्ष मुख़्तार अब्बास नक़वी का दावा है कि कांग्रेस के 50
साल के राज में मुसलमान विकास के आखि़री पायेदान पर चला गया है। उनका कहना है कि
कांग्रेस जैसे धर्मनिर्पेक्ष दल वोटों की खातिर ही भाजपा और साम्प्रदायिकता का
हल्ला मचाते हैं। उनका यह भी कहना है कि भाजपा सभी वर्गों को साथ लेकर चलना चाहती
है। बताया जाता है कि नरेंद्र मोदी को भाजपा की चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन
बनाये जाने के बाद मोदी ने महासचिवों और कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के सदस्यों
की पहली बैठक में ही अल्पसंख्यकों तक पहुंचने की कवायद शुरू करने पर जोर दिया है।
इससे पहले गुजरात चुनाव के दौरान ज्वाइंट कमैटी ऑफ मुस्लिम ऑर्गनाइज़ेशन फॉर
इंपॉवरमेंट नाम की दस तंजीमों की संयुक्त कमैटी का चेयरमैन सैयद शहाबुद्दीन को
बनाया गया था । शहाबुद्दीन की मांग थी कि अगर भाजपा मुसलमानों को लेकर वास्तव मंे
गंभीर है तो 20 ऐसी विधनसभा सीटों पर चुनाव में मुसलमानों को टिकट दें जहां
मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत तक है। साथ ही मोदी से दंगों के लिये माफी मांगने
की बिना शर्त बात कही गयी थी। हालांकि दंगों के लिये माफी मांगने या खेद जताने के
इस प्रस्ताव पर भी सारा मुस्लिम समुदाय एकमत नहीं है लेकिन यह एक अच्छी शुरूआत हो
सकती थी। दरअसल राजनीति के जानकार दावा करते हैं कि मोदी ऐसा कभी नहीं करेंगे और
ना ही उन्होंने ऐसा अब तक किया है क्योंकि ऐसा करने से उनका कट्टरपंथी हिंदू
समर्थक उनसे नाराज़ हो जायेगा। इसीलिये वे मुसलमानों की प्रतीक टोपी तक पहनने को
तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि यह पेशकश इसलिये भी स्वीकार नहीं होगी क्योंकि
भाजपा पर आरएसएस का नियंत्रण है और वह किसी कीमत पर नहीं चाहेगी कि जो काम वह अपनी
सोची समझी नीति के हिसाब से कर रही है उससे मोदी ज़रा भी पीछे हटें। दंगों में मोदी
की कसूरवार छवि के कारण ही मीडिया से लेकर गैर भाजपाई दल ही नहीं अमेरिका और यूरूप
तक उनसे दूर रहना चाहते हैं। हालत यह है कि अमेरिका तो आज तक मोदी को अपने देश में
आने की वीज़ा तक देने को तैयार नहीं है। सवाल अकेला यह नहीं है कि मोदी गुजरात के
दंगों के लिये गल्ती मानते हैं कि नहीं बल्कि यह है कि भाजपा अपनी मुस्लिम विरोधी
सोच को बदलती है कि नहीं। सबको पता है कि भाजपा राममंदिर, मुस्लिम
पर्सनल लॉ, अल्पसंख्यक आयोग, कश्मीर
की धारा 370, वंदे मातरम, मुस्लिम
यूनिवर्सिटी, हिंदू राष्ट्र, धर्मनिर्पेक्षता
और आतंकवाद को लेकर विवादास्पद राय रखती है। इसी साम्प्रदायिक सोच का नतीजा है कि
वह आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गये बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को आयोग द्वारा जांच के
बाद बेकसूर पाये जाने पर भी रिहा करने के सरकार के प्रयासों का जोरदार विरोध करती
है। वह सबको भारतीय ना मानकर हिंदू मानने की ज़िद करती है। वह दलितों के आरक्षण में
मुसलमान दलितों को कोटा देनेेेे या पिछड़ों के कोेटे में से अल्पसंख्यकों को कोटा
तय करने या सीधे मुसलमानों को रिज़र्वेशन देने का विरोध करती है जबकि सच्चर कमैटी
की रिपोर्ट चीख़ चीख़कर मुसलमानों की दयनीय स्थिति बयान कर रही है। भाजपा के
नियंत्रणकर्ता आरएसएस के गुरू गोलवालकर के विचार ’’बंच
ऑफ थॉट्स’’ में देखकर यह विवाद समझा जा
सकता है। भाजपा से हिंदूवादी राजनीति को छोड़ने की आशा करना ठीक ऐसा ही होगा जैसे
किसी बार के संचालक से वहां शराब ना पिलाने की मांग करना। इतिहास गवाह है कि 1984
में भाजपा लोकसभा की मात्र 2 सीटों तक सिमट कर रह गयी थी लेकिन हिंदूवादी राजनीति करने
के लिये जब उसने रामजन्मभूमि विवाद को हवा दी तो वह दो से सीध्ेा 88 सीटों पर जा
पहुंची। इसके बाद उसने उग्र हिंदूवाद की
लाइन पकड़कर पार्टी को डेढ़ सौ सीटों तक पहुंचा दिया। आज मुसलमान ही नहीं हिंदुओं का
एक बहुत बड़ा वर्ग भाजपा की कथनी करनी में भारी अंतर से आहत होकर उसका विरोध करता
है जिससे कांग्रेस के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगने के बावजूद यूपीए
सरकार का विकल्प एनडीए बनता नज़र नहीं आ रहा है। अब हालत यह हो चुकी है कि जो भाजपा
का साथ देता है सेकुलर जनता अगले चुनाव में उसको भी सबक सिखा देती है जिससे एनडीए
के घटक सहमे हुए हैं। अगर आडवाणी के नेतृत्व में राजग की सरकार दो बार चुनाव होने
पर भी नहीं बन सकी है तो मोदी के नेतृत्व में वह कैसे बन सकती है यह सोचने की बात
है। आज गुजरात में मोदी भले ही दावा करते हों कि वह बिना किसी पक्षपात के सबका
विकास कर रहे हैं लेकिन मीडिया रिपोर्टें बार बार बता रही हैं कि 2002 के दंगों
में जो कुछ हुआ था उसके मुस्लिम पीड़ितों का ना तो आज तक ईमानदारी से पुनर्वास किया
गया है और ना ही उनको केंद्र सरकार तक से मिलने वाली सहायता राशि दी जा रही है।
इसके साथ ही उनको बीमा कम्पनी तक से दंगों में हुए नुकसान का हर्जाना तक लेने में
बाधायें खड़ी की जा रही हैं। जो लोग दंगों के दौरान अपना सबकुछ छोड़कर सुरक्षित
स्थानों पर चले गये थे उनको अपने पुश्तैनी स्थानों पर आज तक वापस नहीं आने दिया जा
रहा है। दंगों की दसवीं बरसी पर एक टीवी चैनल ने यह सब दिखाकर मोदी की निष्पक्षता
की पोल खोली है। सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि जिन्होंने दंगे किये थे उनमें से
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी विशेष निगरानी में लेकर सुने गये दो चार बड़े मामलों को
छोड़कर बाकी किसी केस में मोदी सरकार ने ना तो ईमानदार कार्यवाही करने की इच्छाशक्ति
दिखाई है और ना ही अपने आरोपी मंत्रियों को तब तक बाहर का रास्ता दिखाया जब तक
कोर्ट ने ही उनको दोषी नहीं ठहरा दिया। मोदी ही नहीं भाजपा जब तक अपनी
साम्प्रदायिक राजनीति छोड़कर सभी भारतीयोें के लिये ईमानदारी से भलाई का काम करना
शुरू नहीं करती तब तक कांग्रेस की जगह क्षेत्रीय दल चुनाव में क्षेत्रवाद, जाति
और मुस्लिम साम्प्रदायिकता का सहारा लेकर आगे आते जायेंगे। इसका एक नमूना मोदी के
पीएम पद का संभावित प्रत्याशी बनते ही नीतीश कुमार का राजग से अलग हो जाना
है।
0 कोई
थकान थी नहीं जब तक सफ़र में था,
मंज़िल जो मिल गयी तो बदन टूटने लगा।
जब तक मैं गै़र था वो मनाता रहा मुझे,
मैं उसका हो गया तो वो ही रूठने लगा।।
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