बहनजी का
हिसाब ज्यों का त्यांे फिर बसपा सरकार डूबी क्यों ?
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 विकास बढ़ने के बावजूद भ्रष्टाचार उससे अधिक बढ़ गया
था।
सत्ता
वाकई ऐसा नशा है कि इसके छिनते ही आदमी बौखलाने लगता है। अब बहनजी को ही देख
लीजिये हार से आपा खो बैठी हैं। बजाये अपनी गल्ती मानकर जनादेश स्वीकार कर
लोकतंत्र का सम्मान करने के अहंकार और गुस्से में कह रही हैं कि कांग्रेस भाजपा और
मीडिया ने उनको हराया है यानी जनता इतनी मूर्ख है कि सही और ईमानदार होने के
बावजूद भ्रमित होकर बहनजी को ना जिताकर सपा को जिताने की भूल कर बैठी। वे यह भी
बार बार दोहरा रही हैं कि मुसलमानों ने 70 प्रतिशत वोट सपा को दिये हैं। उनकी
बातों से ऐसा लगता है कि कांग्रेस, भाजपा, मीडिया और मुसलमानों ने उनको जिताने का ठेका लिया था
और धोखा देकर मानो जिता दिया सपा को।
बहनजी एक
बात नोट करलें कि राहुल ज़मीन चाट चुके हैं, उत्तराखंड में उनकी मां यानी कांग्रेस आलाकमान बनी
बैठी तानाशाही चला रही सोनिया को वहां के मेहनती और कर्मठ कांग्रेसियों ने सीएम के
चुनाव को लेकर खुली चुनौती दे दी है अब बहनजी की क्या हैसियत और औकात जनता के
सामने इसलिये वे यूपी के नौजवान सीएम अखिलेश से अभी से घबरा कर दिल्ली राज्यसभा
में मुंह चुराकर मैदान छोड़कर भाग रही हैं जिससे पांच साल बाद हो सकता है उनकी यूपी
में जनता नो एन्ट्री ना कर दे ?
जब बहनजी
ने चुनाव बहुमत से जीतकर 2007 में यूपी की कुर्सी संभाली थी तो उस समय राज्य की
विकास दर 2.2 प्रतिशत थी। योजना आयोग के आंकड़े के अनुसार 2007 से 2011 तक यह
जीडीपी बढ़कर रिकॉर्ड 7.6 प्रतिशत तक जा पहंुची। अगर इस दौरान यूपी की औसत विकास दर
7.01 को भी देखा जाये तो यह देश की विकास दर के आसपास ही है। साथ ही मायावती के
राज में कृषि की विकास दर 30 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग की विकास दर 10 और निर्माण क्षेत्र की
औसत विकास दर 11 प्रतिशत रही है।
इस आंकड़े
को एक और तरह से देख सकते हैं। मिसाल के तौर पर 2005 से 2010 तक बिहार में औसत
विकास दर 10.9, छत्तीसगढ़ में 9.45 और उड़ीसा मंे 9.47 प्रतिशत रही
जिससे वहां के नीतिश कुमार, रमन सिंह और नवीन पटनायक जैसे मुख्यमंत्रियांे की
सत्ता में वहां वापसी हुयी लेकिन उच्च विकास दर के बावजूद केरल और तमिलनाडु में भ्रष्टाचार
के आरोपों के चलते वहां की वाममोर्चा और डीएमके सरकारें गच्चा खा गयीं। इसके उलट
असम में कम जीडीपी के बावजूद साफ सुथरी सरकार चलाने के इनाम के तौर पर तरूण गोगोई
सत्ता में फिर से आने मंे कामयाब हो गये। इससे पता चलता है कि विकास से भी बड़ा
मुद्दा इस समय अन्ना के आंदोलन से देश में मौन क्रांति के रूप में भ्रष्टाचार बन
चुका है।
बसपा जब
तक दलित वोट बैंक की राजनीति करती रही तब तक वह अपने बल पर सत्ता में नहीं आ सकी
लेकिन जैसे ही उसने ‘तिलक तराजू और तलवार इनके मारो जूते चार’ का विषैला नारा छोड़कर बहुजन समाज से सर्वजन समाज
बनने का व्यापक कदम उठाने का फैसला किया वैसे ही देखते देखते उसके साथ न केवल
ब्रहम्ण, क्षत्रिय
जुड़ा बल्कि मुसलमान भी बड़ी तादाद में शामिल होने लगा। विडंबना यह रही कि जिस तरह
से रामराज लाने का दावा कर भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार और पक्षपात के कीर्तिमान
बनाये थे ठीक उसी तरह बसपा को यह गलतफहमी हो गयी कि केवल गैर दलित समाज के चंद
लोगों को टिकट देकर विधायक और मंत्री बना देने से उनका समर्थन सदा बसपा को मिलता
रहेगा।
मायावती
यह भी भूल गयी कि जिन दो दर्जन मंत्रियों और सौ से अधिक विधायकों को भ्रष्टाचार के
आरोप में उन्होंनेे पौने पांच साल तक उनके ज़रिये सत्ता की मलाई चाटकर बाहर का
रास्ता दिखाया उससे उन अपमानित किये गये जनप्रतिनिधियों की बिरादरियां बुरी तरह
नाराज़ हो सकती हैं। माया यह भी भूल गयीं कि पहले उन्होंने सपा के साथ बठबंधन करके
चुनाव लड़ा और साझा सरकार की पीठ में छुरा भोंक कर खुद सीएम बन बैठी । इसके बाद
उनको भाजपा ने समर्थन देकर दूसरी बार सीएम बनाया तो 6 माह बाद कल्याण सिंह की बारी
आने पर मुकर गयीं और धोखा देकर सरकार गिरानी चाही जिससे उनको सपोर्ट देने की सपा
के बाद भाजपा ने भी कसम खाली। अगर धर्म और जाति के आंकड़ों के हिसाब से गुणा भाग की
जाये तो प्रदेश में सबसे अधिक संख्या 28 प्रतिशत पिछड़ी जाति, उसके बाद 22 प्रतिशत दलित, 16 प्रतिशत मुसलमान, 11 प्रतिशत ब्रहम्ण, 9 प्रतिशत ठाकुर, 4 प्रतिशत वैश्य, 4 प्रतिशत जाट और 5 प्रतिशत अन्य जातियों के वोट माने
जाते हैं।
पिछड़ों में
यादवों की तादाद सबसे अधिक बताई जाती है। बहनजी यह भूल गयी कि दलितों के साथ जब तक
अन्य जातियों के वोट उनको नहीं मिलेंगे तब तक उनका बेड़ा पार नहीं हो सकता, उधर आंकड़े बता रहे हैं कि खुद उनका दलितों में से
21 प्रतिशत इस बार ख़फा हो कर सपा के खाते में चला गया है।
मुसलमान
जहां सपा का दामन एक बार फिर मज़बूती से थाम चुके हैं, वहीं बहनजी ने उनके साथ सौतेला व्यवहार करके बसपा के
ताबूत में कील गाड़ दी है। बहरहाल दलित अभी भी बसपा के साथ अच्छी तादाद में बना हुआ
है लेकिन उधर ब्रहम्ण ने भी मायावती से किनारा कर लिया है। 2002 में सपा को 25.37
प्रतिशत वोट मिले थे तो 2007 में मिले 25.43 प्रतिशत लेकिन सीट 143 से घटकर 97 रह
गयीं। उधर बसपा को 2002 के 23.06 के मुकाबले 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट मिले
जिससे बहनजी 7.37 प्रतिशत मतों के सहारे
98 सीटों से उछलकर सीधे 206 के रिकॉर्ड बहुमत पर पहंुच गयीं।
बहनजी को
चााहिये था कि वे आत्मविश्लेषण करें नाकि अहंकार और तानाशाही ना चलने से किसी और
पर उल्टे सीधे आरोप लगायें। यही वजह रही कि दलितों के नाम पर बनी सरकार के बावजूद
दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ तक के पास यूपी के विकास के लिये
औद्योगिकीकरण के या सुनियोजित विकास की कोई योजना नहीं है। दलित सीएम होने के
बावजूद दलित उद्योगपतियों का यह संगठन भी नई कम्पनियां और उद्योग लगाने को गुजरात
और महाराष्ट्र को प्राथमिकता देता है। उनका कहना भी वही है जो अन्य उद्योगपतियों
के संगठन शिकायत करते हैं कि यूपी में उत्पादन लागत व तरह तरह के टैक्स अधिक है और
बिजली तथा बुनियादी ढांचा तथा सरकारी सुविधायें ना के बराबर हैं।
वे यूपी में
भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। बसपा सरकार के सत्तासीन होते ही 2007
में मायावती द्वारा केंद्रीय टेंडर की व्यवस्था 2007 में ही ख़त्म कर देने से अलग
अलग विभाग अलग अलग नियम कानून बनाकर व्यापारियों और उद्योगपतियों का जमकर शोषण
करते हैं। इसके विपरीत दूसरे राज्यों में औद्योगिकीकरण के लिये सिंगल विंडो सुविधा
उपलब्ध कराई जा रही है।
यूपी के
सार्वजनिक निर्माण विभाग ने जगह जगह एनएच पर बोर्ड लगा रखे हैं कि यह रोड भारत
सरकार का है इसके मद में भारत सरकार धन नहीं दे रही है जिससे लोगों को आवागमन में
असुविधा हो रही है। उधर पूर्व सानिवि मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी स्वीकार करते हैं
कि इस मद में अभी भी 373 करोड़ बचे हुए हैं विभागीय अधिकारी झूठ बोल रहे हैं।
मनरेगा के 8000 करोड़ रूपये में से नौ माह में मात्र 3000 रूपये ही खर्च हो सके
हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के 3100 करोड़ मंे से 531 करोड़ खर्च
ही नहीं हुए जबकि इस में मची लूट खसोट में तीन तीन सीएमओ की जान जा चुकी है। 2008
में केंद्र सरकार ने झुग्गी झोंपड़ी की जगह पक्का मकान बनाकर देने के लिये एक योजना
शुरू की थी जिसमें तीन वर्ष बीत जाने पर
माया सरकार ने केवल एक पात्र आदमी को चुना।
ऐसे ही
बुंदेलखंड की सहायता के लिये दिये गये 800 करोड़ रूपयों में से 73 करोड़ खर्च किये
जा सके हैं। इतना ही नहीं सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में रेलवे की
कोच निर्माण इकाई, आंखों के इलाज का एक बड़ा अस्पताल और 823 करोड़ का एम्स
अस्पताल बनने का काम राज्य और केंद्र सरकार की बीच चलने वाली रस्साकशी मंे आज तक
रूका पड़ा है। शिक्षा का अधिकार कानून भी जब तक केंद्र ने धन देना बंद नहीं कर दिया
तब तक माया सरकार ने अधिसूचित नहीं किया था। छात्रों का केंद्र से आया स्कॉलरशिप
का धन माया सरकार बिना बांटे ही वापस कर दिया।केंद्र की पहल पर रायबरेली में
स्थापित होने वाला नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च को
राज्य की बसपा सरकार द्वारा 100 एकड़ भूमि उपलब्ध न कराने के कारण किराये के भवन
में चालू करना पड़ा।
ऐसा ही
मामला बंुदेलखंड में स्थापित किये जाने वाले कृषि विश्वविद्यालय को लेकर देखने में
आया था। इसे एक अन्य केंद्रीय संस्थान की ज़मीन में स्थापित करने के प्रयास चल रहे
हैं। यही कहानी कंेद्र की कोयला आधारित योजनाओं को चालू करने को लेकर राज्य सरकार
ने दोहराई थी। इतना ही नहीं माया सरकार ने केंद्र से आने वाली छात्रों के वजीफे की
बड़ी राशि न केवल बिना वितरित किये वापस कर दी बल्कि मुलायम सरकार द्वारा चालू की
गयी कई कल्याणकारी स्कीमें बदले की भावना से बंद कर भी कर दी जिसका खुमियाज़ा उनको
भुगतना पड़ा है।
0 सिर्फ़ एक
क़दम उठा था गलत राहे शौक में,
मंज़िल तमाम
उम्र मुझे ढूंढती
रही ।।
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