Saturday, 25 January 2014

भाजपा सोच नहीं बदल सकती ?

भाजपा हिंदूवादी सोच बदलेगी तो वह भाजपा नहीं रह जायेगी!
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0मुलायम सिंह सीबीआई से बचने को कांग्रेस का साथ दे रहे हैं!
       सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि अगर भाजपा मुसलमान और कश्मीर आदि मुद्दों पर अपना नज़रिया बदल ले तो उससे सपा की दोस्ती हो सकती है। उनका यह भी कहना है कि अर्थव्यवस्था, सीमा सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति पर भाजपा और सपा की सोच एक है। लोकसभा में बोलते हुए यादव ने यहां तक कह दिया कि सपा कांग्रेस का साथ मजबूरी में दे रही है। यह ठीक है कि सपा सुप्रीमो आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सीबीआई जांच में फंसे होने की वजह से यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे हैं लेकिन जहां तक भाजपा के साथ दोस्ती का सवाल है तो मुलायम सिंह शायद यह सच जानबूझकर अनदेखा करना चाहते हैं कि भाजपा की असली कमान उसके मुखिया के हाथ में नहीं बल्कि हमेशा आरएसएस के हाथ में रहती है। अगर यह कहा जाये कि भाजपा संघ का राजनीतिक विंग है तो गलत नहीं होगा।
आरएसएस अपनी हिंदूवादी सोच से बंधा है। अगर आज भाजपा अपनी हिंदूवादी सोच से हटती है तो अव्वल तो उसको संघ ऐसा करने नहीं देगा और अगर ऐसा चमत्कार हुआ भी तो पहले राजनाथ सिंह और फिर ज़रूरत पड़ने पर उनकी पूरी टीम को जिनाह प्रकरण में आडवाणी की तरह बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इस पर भी अगर पूरी की पूरी भाजपा कथित सेकुलर बनने का अविश्वसनीय और आत्मघाती फैसला किसी दिन मुलायम सिंह को अपने साथ जोड़ने के लिये करने का दुस्साह करती है तो संघ उसी दिन राष्ट्रवादी भाजपा आदि के नये नाम से एक और राजनीतिक दल सियासत के मैदान में उतार देगा। इसकी एक वजह समझ में भी आती है कि जो भाजपा 1989 तक केवल दो सांसदों का दल थी वह आडवाणी की रामरथयात्रा और राममंदिर के मुद्दे पर एक झटके में 88 सीट तक उछलकर पहुंच गयी थी।
इतना ही नहीं चार राज्यों में उसकी सरकार भी बन गयी थी। इसके बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद के शहीद होने के बाद वह 1998 में गठबंधन करके इसी हिंदूवादी छवि के बल पर केंद्र की सत्ता में पहंुच गयी और कई राज्यों में अपने बल पर या गठबंधन सरकार भी वह बनाने मंे सफल होती गयी। ऐसे में सवाल यह है कि भाजपा की जो हिंदूवादी छवि उसको आज यहां तक लाई हो वह उसको कैसे छोड़ सकती है? यह ठीक ऐसी ही बात है जैसे कोई मेडिकल स्टोर वाले से कहे कि आप अपनी दुकान में दवा बेचनी बंद कर दो तो आपका स्टोर ज़्यादा अच्छा चलेगा। यह ठीक है कि राममंदिर का मामला अब पुराना हो चुका है और हिंदू भी यह मान चुके हैं कि भाजपा अपने बल पर पूर्ण बहुमत लाये बिना राममंदिर बना नहीं सकती और गठबंधन सरकारें अभी लंबे समय तक चलेंगी।
अभी तो यह समस्या आयेगी कि भाजपा को पहले की तरह 2014 में आमचुनाव के बाद समर्थन करने को कथित सेकुलर दल मिलने कठिन हैं क्योंकि पहले जिन सेकुलर दलों ने एनडीए बनाया था 2004 के चुनाव में उनको सेकुलर मतदाताओं खासतौर पर मुस्लिमों ने नकार दिया था जिससे वे दोबारा ऐसी भूल शायद ही करें? ऐसे दलों के लिये सबसे बड़ी बाधा गुजरात के सीएम मोदी को पीएम बनाने का भाजपा का प्रस्ताव होगा क्योंकि वाजपेयी के बाद अभी तो मुसलमानों और सेकुलर हिंदुओं के गले आडवाणी ही नहीं उतर सके हैं।
   सवाल अकेला यह नहीं है कि मोदी गुजरात के दंगों के लिये गल्ती मानते हैं कि नहीं बल्कि यह है कि भाजपा अपनी मुस्लिम विरोधी सोच को बदलती है कि नहीं। सबको पता है कि भाजपा राममंदिर, मुस्लिम पर्सनल लॉ, अल्पसंख्यक आयोग, कश्मीर की धारा 370, वंदे मातरम, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, हिंदू राष्ट्र, धर्मनिर्पेक्षता और आतंकवाद को लेकर विवादास्पद नज़रिया रखती है। इसी साम्प्रदायिक सोच का नतीजा है कि वह आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गये बेक़सूर नौजवानों को आयोग द्वारा जांच के बाद भी रिहा करने के सरकार के प्रयासों का जोरदार विरोध करती है। वह सबको भारतीय ना मानकर हिंदू मानने की ज़िद करती है। वह दलितों के आरक्षण में मुसलमान दलितों को कोटा देनेेेे या पिछड़ों के कोेटे में से अल्पसंख्यकों को कोटा तय करने या सीधे मुसलमानों को रिज़र्वेशन देने का विरोध करती है जबकि सच्चर कमैटी की रिपोर्ट चीख़ चीख़कर मुसलमानों की दयनीय स्थिति बयान कर रही है। 
  भाजपा से हिंदूवादी राजनीति को छोड़ने की आशा करना ठीक ऐसा ही होगा जैसे किसी बार के संचालक से वहां शराब ना पिलाने की मांग करना या नाई से बाल काटने से परहेज़ करने की अपील करना। एनडीए की सरकार के बाद दो चुनाव हो चुके हैं देश ने ना तो आडवाणी जी का नेतृत्व और ना ही भाजपा का कट्टर हिंदुत्व स्वीकार किया है। आज मुसलमान ही नहीं हिंदुओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भाजपा की कथनी करनी में भारी अंतर से आहत होकर उसका विरोध करता है जिससे कांग्रेस के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगने के बावजूद यूपीए सरकार का विकल्प एनडीए बनता नज़र नहीं आ रहा है। मोदी ही नहीं भाजपा जब तक अपनी साम्प्रदायिक राजनीति छोड़कर सभी भारतीयोें के लिये ईमानदारी से भलाई का काम करना शुरू नहीं करती तब तक कांग्रेस की जगह क्षेत्राीय दल चुनाव में आगे आते जायेंगे, भाजपा का यह सबसे बड़ा बदलाव माना जाना चाहिये कि कुछ समय पहले आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा समग्र क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण के जन्मस्थल बिहार स्थित सिताब दियारा से शुरू हुयी थी ।
   साथ  ही इसको हरी झंडी भी सेकुलर छवि के नीतीश कुमार ने दिखाई थी। अब ख़बर आई है कि जनाधार बढ़ाने के लिये भाजपा न केवल विवादास्पद मुद्दों से किनारा करने का मन बना चुकी है, बल्कि राजग के साथ फिर से नये साथी जोड़ने को भी इसी रथयात्रा को माध्यम बनाया जायेगा।
      यह बात अब किसी से छिपी नहीं रह गयी है कि देश मंे अभी आगे भी गठबंधन राजनीति ही चलने जा रही है। हालांकि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी यह अंतरविरोध सामने आ रहा है कि एक तरफ उसकी मातृसंस्था आरएसएस गुजरात के सीएम मोदी को भावी पीएम देखना चाहती है और दूसरी तरफ न केवल भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बल्कि उसके पुराने घटक भी मोदी से ज़्यादा आडवाणी के नाम पर सहमत होते नज़र आ रहे हैं। दरअसल बीजेपी को यह बात दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ नज़र आ रही है कि राजग के दो दर्जन घटक आज उसके साथ घटकर मात्र चार रह गये हैं जिनके बिना लालकिला फतह करना दिन में सपना देखना ही होगा।
   इस समय भाजपा मोदी सहित उन तमाम विवादित मुद्दो को एक ओर रखना चाहती है जिनकी वजह से तदेपा, बीजद, रालोद, अगप और टीआरएस जैस दल उससे दूर हैं। हालांकि राजनाथ सिंह ने यह दावा किया है कि सपा भाजपा के बीच कोई दूरी नहीं है और अगले चुनाव के बाद सपा हमारे साथ होगी लेकिन सवाल यह है कि जो सपा पहले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता कल्याण सिंह को भाजपा छोड़ने के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में अपने साथ लेकर अपने हाथ जला चुकी हो वह भाजपा के मुस्लिम विरोधी रूख़ पर अडिग रहते कैसे उससे दोस्ती कर सकती है।
वास्तविकता तो यह लगती है कि जैसे मुलायम सिंह राजनीति में अकसर धोबी पाट मारते हैं यह उसी श्रृंखला की एक और कड़ी है जिससे कांग्रेस को झटका दिया जा सके कि अगर वह सीटें कम आने पर सपा मुखिया को सपोर्ट करके पीएम बनाने के अपने लॉलीपॉप से पीछे हटी तो मुलायम भाजपा के साथ जाने का विकल्प भी खुला रखते हैं। वाजपेयी सरकार अविश्वास प्रस्ताव पास होने पर गिरने के बाद सोनिया को पीएम बनाने से पलटकर ,वामपंथियों द्वारा पिछली यूपीए सरकार से परमाणु करार पर समर्थन वापस लेकर उसे गिराने और एफडीआई के मुद्दे पर ममता बनर्जी के साथ सदन में कांग्रेस सरकार के खिलाफ मतदान करने के वादे से पीछे हटकर और प्रेसीडेंट के चुनाव में अपना गैर कांग्रेसी उम्मीदवार उतारने के दांव से मुकर जाने को लेकर मुलायम सिंह यादव अपनी सियासी चालों का सबूत पहले से ही देते रहे हैं जिससे भाजपा से दोस्ती करने की बात को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिये। यह अलग बात है कि मुलायम का यह बयान सपा और भाजपा की अंदर अंदर पक रही किसी खिचड़ी का संकेत हो।
 0सुविधा पर बिके लोग कोहनी पर टिके लोग,

   करते हैं बरगद की बात गमलों में उगे लोग।।

No comments:

Post a Comment